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हमारी राज-सेवा—2008
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प्रश्‍न बक्स

◼ राज्य घर, सम्मेलन भवन और बेथेल घर जैसी जगहों का दौरा करते वक्‍त किस तरह के कपड़े पहनना मुनासिब होगा?

दुनिया-भर में राज्य घर, सम्मेलन भवन और बेथेल घर ऐसी खास जगहें हैं, जहाँ पर यहोवा की उपासना और सेवा की जाती है। ये जगह आलीशान तो नहीं लेकिन साफ-सुथरी होती हैं और इनका अच्छा रख-रखाव किया जाता है। इसलिए इनसे गरिमा साफ झलकती है। शैतान की दुनिया में हम जो आम तौर पर देखते हैं, उससे ये जगहें एकदम अलग हैं। और जब हम इनका दौरा करते हैं, तो देखनेवालों को लगना चाहिए कि हम यहोवा के लोग हैं, जो उसकी मरज़ी पर चलते हैं।

मसीही होने के नाते, हम हर बात में, यहाँ तक कि अपने पहनावे और बनाव-श्रृंगार में भी “परमेश्‍वर के योग्य सेवकों के सदृश्‍य अपने आप को प्रस्तुत करते हैं।” (2 कुरि. 6:3, 4, NHT) इसके अलावा, हमसे उम्मीद की जाती है कि हमारा बर्ताव अच्छा हो। हर वक्‍त हमारे पहनावे और बनाव-श्रृंगार से वह शालीनता और गरिमा झलकनी चाहिए, जो यहोवा परमेश्‍वर के एक सेवक को शोभा देती है। यह खासकर तब और भी ज़रूरी होता है जब हम मुख्यालयों या दूसरे शाखा दफ्तरों का दौरा करते हैं।

शालीन कपड़े और बनाव-श्रृंगार की अहमियत के बारे में चर्चा करते हुए यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए संगठित किताब कहती है कि प्रचार और सभाओं में जाते वक्‍त शारीरिक स्वच्छता बनाए रखना, सलीकेदार कपड़े पहनना और बालों को सँवारना बेहद ज़रूरी है। इसके बाद यह किताब पेज 138 के पैराग्राफ 3 में कहती है, “याद रखें कि बेथेल का मतलब है, ‘परमेश्‍वर का घर।’ इसलिए बेथेल का दौरा करते वक्‍त, हमारा पहनावा, बनाव-श्रृंगार और बर्ताव बिलकुल वैसा ही होना चाहिए जैसा होने की तब उम्मीद की जाती है जब हम राज्य घर में उपासना के लिए सभाओं में हाज़िर होते हैं।” बेथेल का दौरा करनेवाले प्रचारक चाहे आस-पास से या किसी दूर जगह से आए हों, उन सबको इस ऊँचे स्तर का पालन करना चाहिए। इस तरह वे यहोवा के लिए अपनी कदर और आदर दिखा पाएँगे।—भज. 29:2.

हमारा पहनावा ऐसा होना चाहिए जो ‘परमेश्‍वर की भक्‍ति करनेवालों’ को शोभा देता है। (1 तीमु. 2:10) हमारे सलीकेदार कपड़े और बनाव-श्रृंगार की वजह से लोग यहोवा की उपासना के बारे में अच्छी राय कायम करते हैं। लेकिन देखा गया है कि राज्य घरों, सम्मेलन भवनों या शाखा दफ्तरों के दौरे पर आनेवाले एकाध भाई-बहनों का पहनावा बहुत ही बेढंगा, भद्दा और बेहूदा किस्म का होता है। ऐसे कपड़े मसीहियों को बिलकुल नहीं सुहाते। मसीही ज़िंदगी के दूसरे पहलुओं की तरह इस पहलू में भी हमें उन ऊँचे स्तरों का पालन करना चाहिए, जिससे परमेश्‍वर की महिमा होती है।—रोमि. 12:2; 1 कुरि. 10:31.

इसलिए जब आप मुख्यालयों या शाखा दफ्तरों का दौरा करने की योजना बनाते हैं या छुट्टियाँ मनाते वक्‍त वहाँ जाने की सोचते हैं, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मेरे पहनावे और बनाव-श्रृंगार में वही शालीनता, स्वच्छता और गरिमा झलकती है जो उस जगह देखी जा सकती है? क्या इससे मेरे परमेश्‍वर की महिमा होती है? क्या मेरे कपड़े देखकर दूसरों का ध्यान भटक जाता है या उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचती है?’ आइए हम हमेशा अपने पहनावे और बनाव-श्रृंगार से “सब बातों में [अपने] उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के उपदेश को शोभा दें।”—तीतु. 2:10.

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