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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2024
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
w25 सितंबर पेज 8-13

अध्ययन लेख 37

गीत 114 “सब्र रखो”

नाइंसाफी होने पर क्या करें?

“मैंने उनसे न्याय की उम्मीद की थी, मगर चारों तरफ अन्याय का बोलबाला है।”—यशा. 5:7.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि जब यीशु ने देखा कि दूसरों के साथ नाइंसाफी हो रही है, तो उसने क्या किया और हम उससे क्या सीख सकते हैं।

1-2. नाइंसाफी होने पर कई लोग क्या करते हैं और ऐसे में हम शायद क्या सोचने लगें?

आज बहुत-से लोगों के साथ नाइंसाफी होती है। उनकी जाति, भाषा या रंग-रूप की वजह से उनके साथ भेदभाव किया जाता है। और गरीबों के साथ बुरा सलूक किया जाता है। इसके अलावा, लालची व्यापारी और नेता सिर्फ अपनी जेबें भरने के बारे में सोचते हैं। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि उनकी वजह से पर्यावरण पर और लोगों पर कितना बुरा असर हो रहा है। हम चाहे जहाँ भी रहते हों, हम सबको किसी-न-किसी तरह की नाइंसाफी सहनी पड़ती है।

2 लेकिन हम सब शांति से जीना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग हमारे साथ अच्छी तरह पेश आएँ। इसलिए जब लोगों के साथ नाइंसाफी होती है या वे दूसरों के साथ ऐसा होते हुए देखते हैं, तो कई बार वे गुस्से से भड़क उठते हैं। वे आवाज़ उठाते हैं, आंदोलन करते हैं, नारे लगाते हैं या फिर ऐसी राजनैतिक पार्टियों का समर्थन करते हैं जो नाइंसाफी मिटाने का दावा करती हैं। लेकिन हम मसीही उनसे बिलकुल अलग हैं, क्योंकि हम “दुनिया के नहीं हैं।” हम परमेश्‍वर के राज का साथ देते हैं, जो हर तरह की नाइंसाफी मिटा देगा। (यूह. 17:16) पर जब हम दूसरों के साथ कोई नाइंसाफी होते देखते हैं, तो शायद हम परेशान हो जाएँ या हमें गुस्सा आने लगे। ऐसे में शायद हम सोचें, ‘मुझे क्या करना चाहिए? मैं किस तरह उनकी मदद कर सकता हूँ?’ इन सवालों के जवाब जानने से पहले आइए देखें कि यहोवा और यीशु नाइंसाफी के बारे में कैसा महसूस करते हैं।

यहोवा और यीशु को नाइंसाफी से नफरत है

3. नाइंसाफी होने पर हम क्यों परेशान हो जाते हैं? (यशायाह 5:7)

3 जब नाइंसाफी होती है, तो हम परेशान हो जाते हैं। क्यों? बाइबल में इसकी वजह बतायी है। इसमें लिखा है कि यहोवा ने हमें अपनी छवि में बनाया है और वह “नेकी और न्याय से प्यार” करता है। (भज. 33:5; उत्प. 1:26) वह कभी किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करता और ना ही वह चाहता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हो। (व्यव. 32:3, 4; मीका 6:8; जक. 7:9) भविष्यवक्‍ता यशायाह के दिनों में कई इसराएलियों के साथ उनके अपने ही लोग बहुत बुरा व्यवहार कर रहे थे। तब परमेश्‍वर ने उनकी “दुख-भरी पुकार” सुनी। (यशायाह 5:7 पढ़िए।) यही नहीं, जो लोग बार-बार यहोवा का कानून तोड़ रहे थे और लोगों को सता रहे थे, यहोवा ने उन्हें सज़ा भी दी।—यशा. 5:5, 13.

4. जब किसी के साथ नाइंसाफी होती है, तो यीशु को कैसा लगता है? (तसवीर भी देखें।)

4 यहोवा की तरह यीशु भी न्याय से प्यार करता है और उसे हर तरह की नाइंसाफी से नफरत है। जब वह धरती पर था, तो एक मौके पर उसने एक ऐसे आदमी को देखा जिसका हाथ सूखा हुआ था। उसे देखकर वह तड़प उठा और उसने उसे ठीक कर दिया। लेकिन धर्म गुरु गुस्से से भर गए। वे सोचने लगे कि यीशु सब्त के कानून को कैसे तोड़ सकता है। धर्म गुरु कितने पत्थरदिल थे! उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि वह आदमी ठीक हो गया है। यह देखकर यीशु को कैसा लगा? बाइबल में लिखा है, “उनके दिलों की कठोरता देखकर यीशु बहुत दुखी हुआ।”—मर. 3:1-6.

यीशु सभा-घर में यहूदी धर्म गुरुओं से उस आदमी के बारे में बात कर रहा है जिसका हाथ सूखा हुआ है। यीशु उस आदमी को ठीक करनेवाला है। धर्म गुरु यीशु को नीची नज़रों से देख रहे हैं।

यहूदी धर्म गुरुओं को लाचार लोगों के साथ कोई हमदर्दी नहीं थी, पर यीशु उनके जैसा नहीं था (पैराग्राफ 4)


5. नाइंसाफी होने पर जब हमें गुस्सा आता है, तो हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

5 हमने देखा कि जब लोगों के साथ नाइंसाफी होती है, तो यहोवा और यीशु को बहुत गुस्सा आता है। इसलिए अगर हमें नाइंसाफी देखकर गुस्सा आता है, तो उसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन हमें अपने गुस्से पर काबू करना चाहिए। (इफि. 4:26) हमें याद रखना चाहिए कि हम नाइंसाफी को नहीं मिटा सकते। और-तो-और अगर हम गुस्सा पाले रखें, तो हम निराश हो सकते हैं, यहाँ तक कि बीमार पड़ सकते हैं। (भज. 37:1, 8; याकू. 1:20) तो फिर नाइंसाफी होने पर हमें क्या करना चाहिए? इस बारे में हम यीशु से बहुत कुछ सीख सकते हैं।

नाइंसाफी देखकर यीशु ने क्या किया?

6. जब यीशु धरती पर था, तो लोगों के साथ किस तरह की नाइंसाफी हो रही थी? (तसवीर भी देखें।)

6 जब यीशु धरती पर था तो उसने लोगों के साथ बहुत नाइंसाफी होते देखी थी। उसने देखा था कि धर्म गुरु किस तरह लोगों को सता रहे हैं और उनका जीना मुश्‍किल कर रहे हैं। (मत्ती 23:2-4) यीशु यह भी जानता था कि रोमी अधिकारी लोगों के साथ कितना बुरा व्यवहार कर रहे हैं। इसलिए बहुत-से यहूदी रोमी हुकूमत से आज़ादी पाना चाहते थे। कुछ कट्टरपंथी यहूदियों ने तो उनसे लड़ने के लिए गुट बना लिए थे। लेकिन यीशु ने किसी भी तरह उनका साथ नहीं दिया। जब उसे पता चला कि लोग उसे राजा बनाना चाहते हैं, तो वह उनके बीच से निकलकर चला गया।—यूह. 6:15.

यीशु अकेले एक पहाड़ पर चढ़ रहा है। पहाड़ के नीचे बहुत सारे लोग इकट्ठा हैं।

जब लोगों ने यीशु को राजा बनाना चाहा, तो वह उनके बीच से निकलकर चला गया (पैराग्राफ 6)


7-8. धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने नाइंसाफी मिटाने की कोशिश क्यों नहीं की? (यूहन्‍ना 18:36)

7 यीशु ने नाइंसाफी को मिटाने के लिए राजनीति में हिस्सा नहीं लिया। वह जानता था कि इंसानों के पास राज करने का ना तो अधिकार है और ना ही काबिलीयत। (भज. 146:3; यिर्म. 10:23) यही नहीं, वह जानता था कि इंसान नाइंसाफी को जड़ से खत्म नहीं कर सकते। क्यों नहीं? क्योंकि इस दुनिया पर शैतान का राज है, जो बहुत बेरहम है और उसी की वजह से दुनिया में नाइंसाफी फैली हुई है। (यूह. 8:44; इफि. 2:2) इसके अलावा, हम अपरिपूर्ण हैं इसलिए चाहे एक इंसान के इरादे कितने भी नेक हों, वह हर किसी के साथ हमेशा इंसाफ नहीं कर सकता।—सभो. 7:20.

8 यीशु जानता था कि परमेश्‍वर का राज ही नाइंसाफी को जड़ से मिटा सकता है। इसलिए उसने अपना समय और ताकत “परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी” सुनाने में लगायी। (लूका 8:1) उसने “नेकी के भूखे-प्यासे” लोगों को यकीन दिलाया कि हर तरह का भ्रष्टाचार और अन्याय खत्म कर दिया जाएगा। (मत्ती 5:6 और अध्ययन नोट; लूका 18:7, 8) लेकिन यह किसी संगठन या समाज-सुधार आंदोलन के ज़रिए नहीं होगा, बल्कि परमेश्‍वर के राज के ज़रिए होगा और वह राज “इस दुनिया का नहीं” है।—यूहन्‍ना 18:36 पढ़िए।

यीशु की तरह आप क्या कर सकते हैं?

9. आप क्यों मानते हैं कि परमेश्‍वर का राज ही हर तरह की नाइंसाफी खत्म करेगा?

9 यीशु के दिनों में जितनी नाइंसाफी हो रही थी, उससे कहीं ज़्यादा आज इन “आखिरी दिनों में” हो रही है। लेकिन नाइंसाफी की वजह आज भी वही है, शैतान और उसके इशारों पर चलनेवाले अपरिपूर्ण लोग। (2 तीमु. 3:1-5, 13; प्रका. 12:12) यीशु की तरह हम भी जानते हैं कि परमेश्‍वर का राज ही नाइंसाफी को जड़ से खत्म करेगा और हम उस राज का पूरा साथ देते हैं। इसलिए हम किसी भी तरह के आंदोलन में हिस्सा नहीं लेते। हम ना तो नारे लगाते हैं और ना ही किसी ऐसे संगठन का साथ देते हैं, जो नाइंसाफी खत्म करने का दावा करता है। स्टेसी के उदाहरण पर ध्यान दीजिए।a सच्चाई सीखने से पहले वह अकसर ऐसे आंदोलनों में हिस्सा लेती थी जो समाज-सुधार के लिए रखे जाते थे। लेकिन फिर वह सोचने लगी कि पता नहीं इसका कुछ फायदा होगा भी या नहीं। वह कहती है, “जब मैं आंदोलन में जाती थी, तो सोचती थी कि मैं जो कर रही हूँ वह सही है भी या नहीं। लेकिन अब मैं परमेश्‍वर के राज का साथ देती हूँ और मुझे पूरा यकीन है कि मैं एकदम सही कर रही हूँ। मैं जानती हूँ कि यहोवा ऐसे हर इंसान को इंसाफ दिलाएगा जिसे आज सताया जा रहा है। मैं ऐसा कभी नहीं कर पाती।”—भज. 72:1, 4.

10. समाज-सुधार के लिए चलाए जानेवाले आंदोलनों में हिस्सा लेना क्यों यीशु की शिक्षाओं के खिलाफ है? (मत्ती 5:43-48) (तसवीर भी देखें।)

10 आज बहुत-से लोग समाज-सुधार आंदोलनों में हिस्सा लेते हैं। लेकिन अकसर देखा गया है कि इन आंदोलनों में लोग गुस्से से भड़क उठते हैं। वे कानून को अपने हाथ में ले लेते हैं और लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। (इफि. 4:31) जेफ्री नाम के एक भाई ने कहा, “जब लोग धरना देते हैं, तो देखने में ऐसा लग सकता है कि सब शांति से हो रहा है, पर कब लोग गुस्से से भड़क जाएँ, तोड़-फोड़ करने लगें और लूटपाट करने लगें, यह कोई नहीं जानता।” लेकिन यीशु ने सिखाया था कि हमें सब इंसानों से प्यार करना चाहिए, यहाँ तक कि उनसे भी जो हमसे सहमत नहीं होते या जो हमारा विरोध करते हैं। (मत्ती 5:43-48 पढ़िए।) मसीही होने के नाते हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हम ऐसा कुछ ना करें जो यीशु की शिक्षाओं के खिलाफ हो।

सड़क किनारे कुछ लोग आंदोलन कर रहे हैं। हमारी एक बहन वहाँ से गुज़र रही है, लेकिन वह शांत है और उनकी तरफ नहीं, बल्कि आगे देख रही है।

दुनिया के राजनैतिक और सामाजिक मामलों में निष्पक्ष बने रहने के लिए हमें हिम्मत की ज़रूरत है (पैराग्राफ 10)


11. हमारे लिए निष्पक्ष बने रहना कब मुश्‍किल हो सकता है?

11 हम जानते हैं कि परमेश्‍वर का राज ही नाइंसाफी को हमेशा के लिए खत्म करेगा। लेकिन जब हमारे साथ कोई नाइंसाफी होती है, तो यीशु की तरह निष्पक्ष बने रहना और परमेश्‍वर के राज पर भरोसा करना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है। ज़रा बहन जनिया के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब उसके रंग-रूप को लेकर उसके साथ भेदभाव किया गया, तो उसे भी कुछ ऐसा ही लगा। उसने कहा, “मुझे बहुत गुस्सा आया और दुख भी हुआ। मैं चाहती थी कि जिन लोगों ने मेरे साथ भेदभाव किया, उन्हें सज़ा मिले। फिर मैं ऐसे लोगों के साथ जुड़ गयी जो भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाते थे। मुझे लगा ऐसा करने से मेरा गुस्सा शांत हो जाएगा।” लेकिन फिर जनिया को एहसास हुआ कि उसे अपनी सोच बदलनी होगी। उसने कहा, “मैं दूसरों की बातों में आ गयी थी। यहोवा पर भरोसा करने के बजाय मैं इंसानों पर भरोसा करने लगी थी। मैंने सोच लिया कि मैं उन लोगों से कोई नाता नहीं रखूँगी, जो आंदोलन करते हैं।” हो सकता है जब हमारे साथ नाइंसाफी हो या हम दूसरों के साथ नाइंसाफी होते देखें तो हमें भी गुस्सा आए। ऐसे में हमें अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए और ऐसे किसी भी संगठन या पार्टी का साथ नहीं देना चाहिए जो नाइंसाफी को मिटाने का दावा करती है।—यूह. 15:19.

12. हमें क्यों इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या पढ़ते हैं, देखते हैं या सुनते हैं?

12 अगर नाइंसाफी देखकर हमें गुस्सा आता है, तो हम कैसे अपने मन को शांत रख सकते हैं? हम कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं, जैसे हम क्या पढ़ते हैं, क्या सुनते हैं और क्या देखते हैं। सोशल मीडिया पर छोटी-सी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और लोगों को नाइंसाफी के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए उकसाया जाता है। यही नहीं, न्यूज़वाले अकसर ऐसी खबरें फैलाते हैं, जो एक-तरफा होती हैं। हो सकता है कोई घटना सही भी हो, लेकिन उसके बारे में बार-बार सोचते रहने से क्या हमें कोई फायदा होगा? अगर हम ऐसी खबरों में डूबे रहेंगे, तो हम बेवजह परेशान हो सकते हैं या निराश हो सकते हैं। (नीति. 24:10) और इससे भी बुरा यह हो सकता है कि हम इस बारे में सोचना ही बंद कर दें कि परमेश्‍वर का राज ही हर तरह की नाइंसाफी को मिटाएगा।

13. रोज़ बाइबल पढ़ने से कैसे हम नाइंसाफी होने पर सही नज़रिया रख पाएँगे?

13 अगर हम हर दिन बाइबल पढ़ें और उस पर मनन करें, तो नाइंसाफी होने पर हम सही नज़रिया रख पाएँगे। आलिया नाम की एक बहन पर ध्यान दीजिए। जब उसने देखा कि उसके आस-पास रहनेवाले कुछ लोगों के साथ बुरा सलूक किया जा रहा है, तो वह बहुत परेशान हो गयी। लेकिन उसे तब और भी गुस्सा आया जब सतानेवालों को कोई सज़ा नहीं दी गयी। वह कहती है, “मैंने आराम से बैठकर सोचा, ‘क्या मैं सच में मानती हूँ कि यहोवा ही सारी समस्याओं का हल करेगा?’ फिर मैंने अय्यूब 34:22-29 पढ़ा। उन आयतों से मुझे याद आया कि कोई भी इंसान यहोवा से छिप नहीं सकता। यहोवा ही सच्चा इंसाफ कर सकता है और मामलों को पूरी तरह ठीक कर सकता है।” हम भी परमेश्‍वर के राज का इंतज़ार कर रहे हैं जब हर किसी को इंसाफ मिलेगा। लेकिन नाइंसाफी होने पर आज हम क्या कर सकते हैं?

नाइंसाफी होने पर आज हम क्या कर सकते हैं?

14. हम नाइंसाफी को रोक तो नहीं सकते, लेकिन हम अपनी तरफ से क्या कर सकते हैं? (कुलुस्सियों 3:10, 11)

14 हम दूसरों को नाइंसाफी करने से नहीं रोक सकते, लेकिन हम इस बात का ध्यान रख सकते हैं कि हम दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। जैसा हमने पहले देखा था, हमें यीशु की तरह लोगों से प्यार करना चाहिए। अगर हम लोगों से प्यार करेंगे, तो हम उनके साथ आदर से पेश आएँगे, उन लोगों के साथ भी जो हम पर ज़ुल्म करते हैं। (मत्ती 7:12; रोमि. 12:17) जब यहोवा देखता है कि हम हर किसी से प्यार करते हैं और उनके साथ अच्छी तरह पेश आते हैं, तो उसे बहुत खुशी होती है।—कुलुस्सियों 3:10, 11 पढ़िए।

15. दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाने से क्या फायदा होगा?

15 नाइंसाफी का कई लोगों पर बुरा असर हुआ है। ऐसे लोगों की मदद करने का सबसे बढ़िया तरीका है, उन्हें यहोवा के बारे में सिखाना। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? क्योंकि “यहोवा के ज्ञान से” एक इंसान खुद को पूरी तरह बदल सकता है। हो सकता है एक व्यक्‍ति पहले बहुत ही खूँखार था और दूसरों से लड़ता-झगड़ता था, लेकिन बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने के बाद वह एक प्यार करनेवाला और शांत स्वभाव का इंसान बन सकता है। (यशा. 11:6, 7, 9) जमाल नाम के एक भाई पर ध्यान दीजिए। सच्चाई सीखने से पहले वह एक ऐसे गुट से जुड़ा हुआ था, जो सरकार के खिलाफ लड़ता था। उसे लगता था कि सरकार लोगों पर ज़्यादती कर रही है। लेकिन उसने बाइबल से जो सीखा, उस वजह से उसने लड़ना छोड़ दिया। वह कहता है, “आप लोगों से लड़कर उन्हें ज़बरदस्ती नहीं बदल सकते। लेकिन बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने से लोग बदल सकते हैं। मैं भी इसी वजह से बदला हूँ।” जमाल की तरह जितने ज़्यादा लोग बाइबल की सच्चाइयाँ सीखकर खुद को बदलेंगे, दुनिया से नाइंसाफी उतनी ही कम होती जाएगी।

16. आप परमेश्‍वर के राज के बारे में लोगों को क्यों बताना चाहते हैं?

16 यीशु की तरह हम भी लोगों को बताना चाहते हैं कि सिर्फ परमेश्‍वर का राज ही नाइंसाफी को हमेशा के लिए मिटाएगा। इस आशा से उन लोगों को हिम्मत मिल सकती है जो आज नाइंसाफी झेल रहे हैं। (यिर्म. 29:11) बहन स्टेसी, जिसका इस लेख में पहले भी ज़िक्र हुआ है, कहती है, “मैंने लोगों के साथ बहुत नाइंसाफी होते देखी है और मैंने भी कई नाइंसाफी झेली हैं। लेकिन बाइबल से सच्चाई जानने की वजह से मैं यह सब सह पायी हूँ। यहोवा ने मुझे बाइबल के ज़रिए दिलासा दिया है।” अगर आप लोगों को यह दिलासा देना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि नाइंसाफी को कैसे मिटाया जाएगा, तो इसके लिए आपको अच्छी तैयारी करनी होगी। जितना ज़्यादा आप बाइबल पढ़ेंगे उतना ज़्यादा आपका यकीन बढ़ेगा कि चारों तरफ जो नाइंसाफी फैली है, वह एक दिन खत्म हो जाएगी। फिर जब स्कूल में और काम की जगह पर इस बारे में बात होगी, तो आप अच्छी तरह समझा पाएँगे कि दुख-तकलीफें क्यों हैं और यहोवा इन्हें कैसे खत्म करेगा।b

17. आज नाइंसाफी सहने में यहोवा कैसे हमारी मदद करता है?

17 हम जानते हैं कि शैतान “इस दुनिया का राजा” है और जब तक उसे “बाहर” नहीं कर दिया जाता, तब तक हमें नाइंसाफी झेलनी पड़ेगी। (यूह. 12:31) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमारे पास कोई आशा नहीं है, हम एकदम लाचार हैं। यहोवा ने बाइबल के ज़रिए हमें ना सिर्फ यह बताया है कि दुनिया में इतनी नाइंसाफी क्यों है, बल्कि उसने यह भी बताया है कि जब हम तकलीफ में होते हैं, तो उसे कैसा लगता है। (भज. 34:17-19) इसके अलावा, उसने अपने बेटे यीशु के ज़रिए सिखाया है कि नाइंसाफी होने पर हमें क्या करना चाहिए और वह अपने राज के ज़रिए कैसे नाइंसाफी को हमेशा के लिए मिटा देगा। (2 पत. 3:13) आइए हम पूरे जोश से परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाते रहें और उस वक्‍त का इंतज़ार करें, जब पूरी धरती पर “न्याय और नेकी” का बसेरा होगा।—यशा. 9:7.

आपका जवाब क्या होगा?

  • नाइंसाफी होने पर हम क्यों परेशान हो जाते हैं?

  • नाइंसाफी मिटाने के लिए हम इंसानों पर भरोसा क्यों नहीं करते?

  • नाइंसाफी होने पर आज हम क्या कर सकते हैं?

गीत 158 तू देर ना करे!

a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

b लोगों से करें प्यार—सिखाने को रहें तैयार ब्रोशर में कुछ और सुझाव—क के मुद्दे 24-27 भी देखें।

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