क्या परमेश्वर अन्याय के बारे में कभी कुछ करेगा?
“यह न्यायोचित नहीं है।” एक युवा विद्यार्थी प्रत्यक्षतः परेशान थी, जिसने व्यक्तिगत रूप से न्याय का उपहास का अनुभव किया और वह रोष से विचलित थी। वह कहती है, “यदि सचमुच एक परमेश्वर है, वह ऐसे अन्याय की अनुमति कैसे दे सकता है?” क्या आप इस युवा महिला के भावनाओं से सहमत हो सकते हैं? शायद होंगे। लेकिन क्या आप उसके प्रतिरोध का उत्तर भी दे सकेगें?
अपने बाल्यकाल में आपने महसूस किया होगा कि आपके पालकों ने कभी आपके साथ अनुचित व्यवहार होने दिया। परन्तु वह अन्याय उनकी अस्तित्वहीनता का प्रमाण नहीं था। ऐसे ही, अन्याय का परमेश्वर की स्वीकृती भी उसकी अस्तित्वहीनता को प्रमाणित नहीं करती।
लेकिन, उस युवा विद्यार्थी ने उत्तर दिया कि यह मामला कुछ अलग था। उसने कहा कि एक असिद्ध मानव पिता स्वयं थोड़ा सा अन्यायी हो सकता है। या सारे तथ्यों को न जानने के कारण वह शायद अन्याय की पहचान नहीं रखता होगा। इसके अलावा, मानवीय मर्यादाओं के कारण वह अन्याय के प्रति कुछ करने में असमर्थ हो सकता है। उसने दावा किया कि इनमें से कुछ भी एक न्यायी परमेश्वर पर लागू नहीं होता जो सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान है।
क्या आप भी यह महसूस करते होंगे कि अन्याय की अनुमति का, ईश्वरीय गुणों के साथ कोई संगत नहीं हो सकता। फिर भी, क्या यह हो सकता है कि परमेश्वर की परम बुद्धि में अन्याय को थोड़े समय तक स्वीकृति देने के उचित कारण होंगे?
बाइबल के लेखक परमेश्वर को एक, “न्याय और धार्मिकता के प्रेमी” के रूप में जानते हैं। मूसा ने लिखा था, “उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं।”—भजन संहिता ३३:५; व्यवस्थाविवरण ३२:४; अय्यूब ३७:२३.
यहोवा को एक न्यायी परमेश्वर के रूप में देखने के अलावा जो अन्याय से खुश नहीं होता, बाइबल लेखक सहमत है कि वह एक दिन अन्याय को दूर कर देगा। उदाहरण के लिए, यशायाह ने इस स्थिति के बारे में भविष्यवाणी किया: “देखो! एक राजा धर्म से राज्य करेगा और राजकुमार न्याय से हुकूमत करेंगे। तब उस जंगल में न्याय बसेगा और उस फलदायक बारी में धर्म रहेगा।” (यशायाह ३२:१, १६) लेकिन कब? और यदि परमेश्वर अन्याय से संसार को मुक्त करने की इच्छा रखता है, तो उसने उसे पहले स्वीकृती ही क्यों दी?
अन्याय—क्यों अनुमति दी गयी?
एक समय था जब विश्व में अन्याय का कोई अस्तित्व न था। अन्याय से मानवजाति का परिचय केवल तब हुआ जब शैतान के दबाव मे आकर आदम और हव्वा ने विद्रोह किया। विद्रोह के समय शैतान को तत्काल ही नष्ट नहीं कर दिया गया। अपने अच्छे उद्देश्य के लिये, परमेश्वर ने एक निश्चित समय तक अन्याय की अनुमति दी जिसका उद्देश्य उस समर्पित लोगों की परख करना भी है कि क्या वे उसके प्रति वफादार रहते हैं या नहीं। उनका खराई में बने रहने का चुनाव, सारी मानव सृष्टि को परमेश्वर के विरूद्ध करने की शैतान की क्षमता को इन्कार करेगा। इस तरह परमेश्वर की प्रभुसत्ता समर्थित करके शैतान के कार्यों का विनाश किया जाएगा और सब अन्याय निकाले जाएँगे।
इस बीच, यदि परमेश्वर ने लोगों को अन्याय करने से रोका होता तो यह उनकी चुनाव की स्वतन्त्रता का चोरी होता। इसके बजाय, लोगों को दूसरों के बुरे कामों को महसूस करने देने से परमेश्वर ने यह प्रदर्शित किया कि आदम और हव्वा द्वारा ईश्वरीय नियमों को अपने दोषपूर्ण मानदण्डों में बदलने का अनुचित विद्रोह कितना हानिकारिक था। मानवजाती ने जो बोया है वही काटने की अनुमति देकर, परमेश्वर ने ईमानदार लोगों को यह पहचानने में मदद की है कि उसके निर्देशानुसार चलना ही उत्तम है।—यिर्मयाह १०:२३; गलतियों ६:७.
इसके अतिरिक्त, व्यक्तियों द्वारा किए गए उचित एवं अनुचित कार्य भी दृश्य प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। यह कार्य परमेश्वर के लिए कारण प्रदान करता है जिसके आधार पर वह न्याय करेगा कि कौन नए संसार में रहने योग्य होगा, जब सम्पूर्ण न्याय स्थापित होगा। इसके बारे में हम पढ़ते है: ‘परन्तु यदि दुष्ट जन अपने सब पापों से फिरकर, मेरी सब विधियों का पालन करे और न्याय और धर्म के काम करे, तो वह न मरेगा वरन् जीवित रहेगा।”—यहेजकेल १८:२१.
अन्याय का अन्त कब होगा?
मानवजाती के साथ यहोवा का व्यवहार हमेशा न्यायोचित व दयाशीलता से प्रभावी रहा है। दृष्टान्त रूप में, जब परमेश्वर का वफादार सेवक अब्राहम नहीं समझ सका कि ऐसा क्यों हो रहा है, उसने परमेश्वर के बारे में कहा: ‘इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनों की एक ही दशा हो। यह तुझ से दूर रहे; क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?’ (उत्पत्ति १८:२५) मसीह के आने पर परमेश्वर के न्याय, और दयाशीलता के गुणों की महिमा हुई। यीशु द्वारा छुड़ौती रूपी बलिदान के प्रबन्ध से यहूदी और गैर-यहूदी, दोनों के लिए, अनन्त जीवन पाने का मार्ग खुला। इसलिए पतरस यह कह सका: “अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाती में जो उस से डरता है और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों का कमा १०:३४, ३५.
यहोवा के गवाह यह घोषणा करने में सक्रिय हैं कि परमेश्वर का मसीही राज्य ने शासन करना आरम्भ कर दिया है और वह समय निकट है जब न्याय अपनी सम्पूर्णता में इस पृथ्वी पर पुनःस्थापित किया जाएगा।a यह तब पूरा होगा जब वह राजा वर्तमान अन्यायी संसार को नष्ट करेगा और उसके अदृश्य ईश्वर शैतान इबलीस की शक्ति को विनाश करेगा। बाइबल बताती है कि यह बहुत जल्द “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” में होगा, जिसे हरमगिदोन कहा गया है।—प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६.
“जब परमेश्वर क्रोध करता है वह अन्याय नहीं करता”। अतः हरमगिदोन एक न्यायोचित युद्ध होगा। (रोमियों ३:५) उसके पश्चात्, यीशु मसीह और उसके संगी शासन जैसे प्रेरित थे, स्वर्ग से एक हज़ार वर्ष तक राज्य करेंगे। (प्रकाशितवाक्य २०:४) लाखों लोग जिन्होंने बीते समय में अन्याय सहा है उनका इस धार्मिक रीति की पृथ्वी पर पुनरूत्थान होगा, जो मानवजाती का मूल आवास है, ताकि वे अपने जीवन में पहली बार सिद्ध न्याय अनुभव कर सकें।
“क्या यह उचित है कि परमेश्वर अन्यायी है?”
यह प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर के एक व्यवहार के बारे में पूछा था। उत्तर? बिल्कुल नहीं। पौलुस मनुष्यों की तुलना मिट्टी से करता है जिसे कुम्भकार ने क्रोध या दया के योग्य पात्र बनाया है। यह व्याख्या करता है: “यद्यपि परमेश्वर अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ प्रगट करने तैयार है, फिर भी वह सहनशीलता से उन लोगों से पेश आता है जो उन्हें क्राधित करते हैं, चाहे वे कितना भी विनाश के योग्य हों। दूसरे लोगों के कारण वह उनसे योग्य पेश आता है, जिनके लिए वह दयालू और अपनी महिमा के प्रचूरता प्रकट करना चाहता है।”—रोमियों ९:१४, २०-२४, द जेरूसलेम बाइबल
ऊपर बताए गए उस युवा विद्यार्थी के समान, आपको भी यह समझने में कठिनाई हो सकती है कि क्यों परमेश्वर ने समान्यतः अन्याय या किसी बुरे कार्य को अनुमति दी है। लेकिन कौन होते हैं हम—उसके हाथों की रचना— कि ऐसा करने में उसके धैर्य और बुद्धि पर प्रश्न करें? यहोवाने अय्यूब को कहा था: “क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्थ ठहराएगा? क्या तू आप निर्दोश ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा?”—अय्यूब ४०:८.
हम ऐसा करके कभी दोषी नहीं होना चाहेंगे। इसके बजाय, हम यह जानने में आनन्द करेंगे कि हालाँकि अन्याय अब भी हमारे बीच है, न्याय का परमेश्वर शीघ्र ही उसे सम्पूर्ण पृथ्वी से दूर कर देगा।
[फुटनोट]
a इस प्रमाण के लिए कि परमेश्वर का राज्य १९१४ से इस पृथ्वी पर अपना अदृश्य शासन आरम्भ कर चुका है, देखिए द वॉच टॉवर बाइबल एण्ड ट्रेक्ट सोसायटी ऑफ इन्डिया द्वारा प्रकाशित पुस्तक आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं पुस्तक के पृष्ठ १३४-४१। इसी पुस्तक में एक अध्याय का विषय भी यही है कि: “परमेश्वर ने दुष्टता की अनुमति क्यों दी है?”
[पेज 31 पर तसवीरें]
अन्याय की अनुमती के लिए किसी भी तरह परमेश्वर के अस्तित्वहीनता का प्रमाण नहीं बनाया जा सकता।
क्या एक पियक्कड़ चालक द्वारा, सामान्य बुद्धि, आत्मनियंत्रण और विचारशीलता की उपेक्षा करने पर परमेश्वर को दोष दिया जा सकता है?
समय निकट है जबकि हमारी पृथ्वी पर सम्पूर्ण न्याय पूनःस्थापित होगा।