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    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
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      कुछ लोग अपने भाषण की तैयारी में बड़ी मेहनत करके वे सारी बातें लिख डालते हैं, जो उन्हें शुरू से लेकर आखिर तक बोलनी होती हैं। भाषण तैयार करते-करते, वे ढेरों पन्‍ने भर देते हैं और इसमें कई घंटे बीत जाते हैं।

      क्या आप भी अपने भाषण की तैयारी ऐसे ही करते हैं? क्या आप एक आसान तरीका सीखना चाहेंगे? वह तरीका है, भाषण की एक आउटलाइन या रूपरेखा तैयार करना ताकि आपको भाषण का एक-एक शब्द लिखने की ज़रूरत न पड़े। इससे समय की बचत भी होगी और आपको भाषण का अभ्यास करने के लिए काफी वक्‍त भी मिलेगा। आपको भाषण पेश करने में ना सिर्फ आसानी होगी बल्कि वह दिलचस्प भी होगा और आपके सुननेवालों में सीखी हुई बातों पर अमल करने का जोश भर देगा।

      कलीसिया में दिए जानेवाले जन-भाषणों के लिए आपको बनी-बनायी आउटलाइन दी जाती है, मगर ज़्यादातर भाषणों के लिए कोई आउटलाइन नहीं दी जाती। इसके बजाय आपको शायद सिर्फ एक विषय या शीर्षक दिया जाए, या फिर आपको किसी लेख के आधार पर भाषण तैयार करने को कहा जाए। कभी-कभी आपको शायद बस कुछ हिदायतें दी जाएँ। ऐसे सभी भाषणों के लिए आपको खुद एक आउटलाइन तैयार करनी होगी।

      पेज 41 पर दी तसवीर

      एक छोटी आउटलाइन कैसे तैयार की जा सकती है, इसका एक नमूना पेज 41 पर दिया गया है। ध्यान दीजिए कि उसमें भाषण का हर मुख्य मुद्दा, बायें हाशिए या मार्जिन से शुरू होता है और उसे बड़े अक्षरों में लिखा गया है। हर मुख्य मुद्दे के नीचे उसे खुलकर समझानेवाले कुछ विचार दिए गए हैं। इन विचारों को समझाने के लिए उनके नीचे, छोटे-छोटे मुद्दे दिए गए हैं और ये बायीं तरफ के हाशिए से थोड़ा और हटकर लिखे गए हैं। इस आउटलाइन की ध्यान से जाँच कीजिए। गौर कीजिए कि उसमें दिए गए दोनों मुख्य मुद्दों का शीर्षक से सीधा संबंध है। और यह भी गौर कीजिए कि हर मुख्य मुद्दे के नीचे दिए गए छोटे-छोटे मुद्दे बस दिलचस्प बातें नहीं हैं, बल्कि उस मुख्य मुद्दे का समर्थन करते हैं।

      हो सकता है, आप जो आउटलाइन तैयार करें, वह हू-ब-हू इस नमूने जैसी ना हो। लेकिन अगर आप आउटलाइन तैयार करने के बुनियादी नियम समझ लेंगे, तो आप जानकारी को अच्छे क्रम में लिख सकेंगे और बिना वक्‍त ज़ाया किए, कुछ ही समय में आप एक बढ़िया भाषण तैयार कर पाएँगे। तो फिर आउटलाइन बनाना कैसे शुरू करें?

      जाँच कीजिए, चुनिए और सही क्रम में लिखिए

      सबसे पहले आपको भाषण के लिए मूल-विषय यानी एक शीर्षक की ज़रूरत है। मूल-विषय का मतलब कोई ऐसा विषय नहीं जिसमें बहुत-से पहलू शामिल हों और जिसे एक शब्द में लिखा जा सके, बल्कि यह आपके भाषण का मुख्य संदेश है जिससे ज़ाहिर होगा कि आप विषय के किस पहलू पर भाषण देने जा रहे हैं। अगर आपको पहले से एक शीर्षक दिया जाता है, तो उसके एक-एक खास शब्द पर ध्यान दीजिए। अगर आपको किसी लेख में छपी जानकारी के आधार पर शीर्षक दिया जाता है, तो उस शीर्षक को मन में रखकर लेख का अध्ययन कीजिए। लेकिन अगर आपको सिर्फ एक विषय दिया जाता है, तो फिर आपको खुद एक शीर्षक चुनना होगा। लेकिन शीर्षक चुनने से पहले अगर आप कुछ खोजबीन करेंगे, तो यह आपके लिए काफी मददगार साबित होगा। खुले दिमाग से सोचने पर आपको नए-नए विचार सूझेंगे।

      जैसे-जैसे आप यह कदम उठाते हैं, खुद से ये सवाल पूछते रहिए: ‘यह जानकारी सुननेवालों के लिए क्या अहमियत रखती है? मेरे भाषण देने का मकसद क्या है?’ आपका मकसद सिर्फ जानकारी पेश करना या तरह-तरह की दिलचस्प बातें बताना नहीं है, बल्कि सुननेवालों को फायदा पहुँचाना है। एक बार जब आप तय कर लेते हैं कि आपका मकसद क्या है, तो उसे लिख लीजिए। और तैयारी के दौरान लगातार खुद को यह याद दिलाते रहिए।

      जब आप अपना मकसद तय कर लेते हैं और उसके मुताबिक शीर्षक चुन लेते हैं (या जो शीर्षक आपको पहले से मिला है, उसकी जाँच करके जान लेते हैं कि यह आपके भाषण के मकसद से किस तरह मेल खाता है), तो आप उसे ध्यान में रखकर खोजबीन करना शुरू कर सकते हैं। ऐसी जानकारी पाने की कोशिश कीजिए जिससे सुननेवालों को खास फायदा पहुँचे। मोटी-मोटी जानकारी ढूँढ़ने के बजाय ऐसे खास मुद्दे ढूँढ़िए जिससे आपके सुननेवाले कुछ सीख सकें और उनको सचमुच फायदा हो। सिर्फ उतनी खोजबीन कीजिए जितनी आपको ज़रूरत है। अकसर आप पाएँगे कि खोजबीन करते-करते आपके पास इतनी ढेर सारी जानकारी इकट्ठी हो जाती है कि भाषण में यह सब बताना मुमकिन नहीं, इसलिए सोच-समझकर चुनिंदा जानकारी ही रखिए।

      भाषण को आगे बढ़ाने और अपने मकसद तक पहुँचने के लिए, उन मुख्य मुद्दों को छाँटकर अलग कीजिए जिन पर आप चर्चा करना चाहते हैं। यही मुख्य मुद्दे आपकी बुनियादी आउटलाइन हैं। आपके भाषण में कितने मुख्य मुद्दे होने चाहिए? अगर भाषण छोटा है, तो बस दो मुख्य मुद्दे काफी हैं और अगर भाषण एक घंटे का है, तो पाँच मुद्दे काफी हैं। भाषण में मुख्य मुद्दे जितने कम होंगे, उतनी ही आसानी से वे याद रहेंगे।

      जब एक बार आपके मन में आपका शीर्षक और मुख्य मुद्दे अच्छी तरह बैठ जाएँ, तब खोजबीन से मिली जानकारी को क्रम से लिखना शुरू कीजिए। देखिए कि कौन-सी जानकारी आपके मुख्य मुद्दों से सीधा ताल्लुक रखती है। ऐसी छोटी-मोटी जानकारी चुनिए जिससे आपके भाषण में नयापन आए। जब आप मुख्य मुद्दों को साबित करने के लिए आयतें चुनते हैं, तो साथ में ऐसे विचार भी नोट कीजिए जिनकी मदद से आप उन आयतों का मतलब अच्छी तरह समझा सकें। मुख्य मुद्दों से ताल्लुक रखनेवाले विचारों को उनके नीचे लिखिए। अगर खोजबीन से मिली कुछेक जानकारी आपके किसी भी मुख्य मुद्दे से ताल्लुक नहीं रखती, तो उसे भाषण में शामिल मत कीजिए, फिर चाहे वह कितनी ही दिलचस्प क्यों न हो। चाहे तो आप उसे अपनी फाइल में रख सकते हैं ताकि वह भविष्य में आपके काम आ सके। सिर्फ अच्छी-से-अच्छी जानकारी ही इस्तेमाल कीजिए। अगर आप ढेर सारी बातें बताने की कोशिश करेंगे, तो आपको बहुत तेज़ रफ्तार में बोलना पड़ेगा और आप विषय की सिर्फ ऊपरी जानकारी दे पाएँगे। इसलिए बेहतर यही होगा कि आप सिर्फ ऐसे चंद मुद्दे लें जिनसे सुननेवालों को सचमुच फायदा होगा और फिर उन्हीं मुद्दों को अच्छी तरह समझाएँ। जितने समय में आपको अपना भाग पेश करना है, उससे ज़्यादा समय न लें।

      अगर आपने अब तक अपने भाषण की जानकारी को क्रम से नहीं लिखा है, तो अब आप ऐसा कर सकते हैं। सुसमाचार के लेखक, लूका ने ऐसा ही किया था। अपने विषय के बारे में ढेर सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद, उसने उसे ‘क्रमानुसार’ लिखना शुरू किया। (लूका 1:3) आप चाहें तो जानकारी को मुख्य शीर्षकों या घटनाओं के समय के हिसाब से लिख सकते हैं, यानी जो घटना पहले घटी उसे पहले बताइए और जो बाद में घटी उसे बाद में। आप ऐसा भी कर सकते हैं कि पहले आप कारण बताएँ, फिर उसके अंजाम को समझाएँ या इसका उलटा कर सकते हैं। या फिर पहले एक समस्या बताइए, उसके बाद उसका समाधान बताइए। भाषण के मकसद तक पहुँचने का सबसे बढ़िया तरीका क्या है, इससे तय होगा कि आप जानकारी को किस क्रम में रखेंगे। अचानक एक विचार से हटकर बिलकुल दूसरे विचार पर बात मत कीजिए। आपके सुननेवालों को यह आसानी से समझ आना चाहिए कि हर विचार का पिछले-दूसरे विचार से क्या नाता है और विचारों के बीच इतना बड़ा फर्क नहीं होना चाहिए कि ये आसानी से समझ में ना आएँ। आपको भाषण में ऐसे सबूत पेश करने चाहिए जिनकी मदद से सुननेवाले सही नतीजे पर पहुँच सकें। इसलिए जब आप मुद्दों को क्रम में लिखते हैं, तो सोचिए कि उन्हें इस क्रम से पेश करने से सुननेवालों पर कैसा असर पड़ेगा। भाषण सुनते वक्‍त क्या वे आपके विचारों को समझकर आपकी तरह ही सोचेंगे? क्या आपके भाषण का मकसद पूरा होगा यानी आप उन्हें जो कदम उठाने के लिए उकसा रहे हैं, क्या वे इन्हें उठाएँगे?

      अब इसके बाद, अपने भाषण की शुरूआत के बारे में सोचिए। यह ऐसी होनी चाहिए जिससे आपके विषय में सुननेवालों की दिलचस्पी जागे और वे समझ सकें कि आप जो बताने जा रहे हैं, वह सचमुच उनके लिए बहुत मायने रखता है। आप शुरूआत में जो कहने जा रहे हैं, अगर उसके चंद वाक्य लिख लें, तो आपको काफी आसानी होगी। और फिर भाषण की समाप्ति तैयार कीजिए जो सुननेवालों के मन में जोश भर सके और आपके भाषण का मकसद पूरा हो।

      अगर आप काफी पहले से अपनी आउटलाइन तैयार कर लेंगे, तो भाषण देने से पहले आपको उसमें कुछ सुधार करने का वक्‍त मिलेगा। उस पर दोबारा नज़र डालने पर शायद आपको लगे कि भाषण के कुछ मुद्दों को साबित करने के लिए कुछ आँकड़े, कोई उदाहरण या अनुभव बताने की ज़रूरत है। अगर आप हाल की किसी घटना का या किसी ऐसे किस्से का ज़िक्र करेंगे, जिसमें आपके इलाके के लोगों को दिलचस्पी है, तो सुननेवाले, जानकारी की अहमियत को आसानी से समझ सकेंगे। अपने भाषण की आउटलाइन को दोबारा पढ़ते वक्‍त, आपको शायद ऐसी कई जगह नज़र आएँगी जहाँ आप सुननेवालों के फायदे के लिए जानकारी में थोड़ी-बहुत फेर-बदल करके उसे ज़्यादा फायदेमंद बना सकते हैं। इस तरह जानकारी की जाँच करना और उसे निखारना ज़रूरी है ताकि एक असरदार भाषण तैयार हो।

      भाषण के लिए कुछ लोगों को शायद और भी बड़े नोट्‌स्‌ लिखने की ज़रूरत पड़ सकती है। लेकिन अगर आप भाषण की जानकारी को चंद मुख्य मुद्दों के नीचे क्रम से लिखेंगे, गैर-ज़रूरी बातों को निकाल देंगे और सारे विचारों को सिलसिलेवार ढंग से लिखेंगे, तो आप पाएँगे कि कुछ समय के बाद आपको भाषण की एक-एक बात लिखने की ज़रूरत नहीं है। इससे आपका कितना वक्‍त बचेगा! और आपके भाषण, दिन-ब-दिन बेहतरीन होते जाएँगे। इससे ज़ाहिर होगा कि आप परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से सचमुच फायदा उठा रहे हैं।

  • अपना विद्यार्थी-भाग तैयार करना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
    • अपना विद्यार्थी-भाग तैयार करना

      स्कूल में मिलनेवाला हर विद्यार्थी-भाग आपको कदम-ब-कदम तरक्की करने का मौका देता है। इसलिए मन लगाकर अपने भाग की तैयारी कीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे तो कुछ समय बाद ना सिर्फ आपको बल्कि दूसरों को भी आपकी उन्‍नति नज़र आने लगेगी। (1 तीमु. 4:15) स्कूल में आपको अपना हुनर बढ़ाने के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

      क्या पूरी कलीसिया के सामने बात करने का खयाल आते ही आपके हाथ-पैर काँपने लगते हैं? ऐसा महसूस करना स्वाभाविक है, फिर चाहे आपको स्कूल में दाखिल हुए काफी वक्‍त क्यों ना हो गया हो। लेकिन कुछ कदम उठाने से आप अपनी घबराहट को कम कर सकते हैं। घर पर ज़ोर-ज़ोर से पढ़ने का अभ्यास कीजिए। कलीसिया की सभाओं में ज़्यादा-से-ज़्यादा जवाब देने की कोशिश कीजिए और अगर आप एक प्रचारक हैं, तो प्रचार में लगातार हिस्सा लीजिए। इससे लोगों के सामने बोलने का आपको तजुर्बा हासिल होगा। इसके अलावा, जब कभी आपको विद्यार्थी-भाग सौंपा जाता है, तो काफी समय पहले से ही तैयारी कीजिए और ऊँची आवाज़ में बोलकर उसे पेश करने का अभ्यास कीजिए। याद रखिए कि सभा में बैठे लोग आपके दोस्त ही हैं। कोई भी भाग पेश करने के लिए स्टेज पर जाने से पहले, यहोवा से प्रार्थना कीजिए। जो सेवक उससे पवित्र आत्मा की बिनती करते हैं, उन्हें वह खुशी-खुशी अपनी आत्मा देता है।—लूका 11:13; फिलि. 4:6, 7.

      आपका भाषण कितना अच्छा होगा, इस बारे में बड़ी-बड़ी उम्मीदें मत लगाइए। एक अच्छा वक्‍ता और काबिल शिक्षक बनने में वक्‍त लगता है। (मीका 6:8) अगर आप सेवा स्कूल में नए विद्यार्थी हैं, तो यह उम्मीद मत कीजिए कि अभी से आपकी पेशकश बहुत बढ़िया होगी। इसके बजाय, एक समय पर सलाह पर्चे में दिए एक ही गुण को अपने अंदर बढ़ाने की कोशिश कीजिए। हर गुण के बारे में इस किताब के जिस अध्याय में चर्चा की गयी है, उसका अध्ययन कीजिए। अध्याय के आखिर में जो अभ्यास दिया गया है, उसे भी करने की कोशिश कीजिए। तब आप कलीसिया में अपना भाग पेश करने से पहले काफी हद तक उस गुण को बढ़ा चुके होंगे। इससे उन्‍नति ज़रूर होगी।

      पढ़ने का भाग कैसे तैयार करें

      स्कूल में पढ़कर सुनाने की तैयारी करते वक्‍त सिर्फ दिए गए हिस्से के हर शब्द को सही-सही पढ़ लेना काफी नहीं है। इसके बजाय, जो लिखा है उसे अच्छी तरह समझने की कोशिश कीजिए। इसलिए जैसे ही आपको पढ़ाई का भाग सौंपा जाता है, तो इसकी जानकारी को समझने के लिए इसे पूरा पढ़िए। हर वाक्य और हर पैराग्राफ में क्या विचार दिए गए हैं, उन्हें समझने की कोशिश कीजिए। तब आप पढ़ते वक्‍त विचारों को सही-सही और पूरी भावनाओं के साथ ज़ाहिर कर पाएँगे। अगर हो सके, तो कठिन शब्दों का सही उच्चारण जानने के लिए व्याकरण की कोई किताब देखिए या किसी ऐसे व्यक्‍ति से पूछिए जो अच्छी हिंदी जानता हो। आपको पढ़ने के लिए जो भाग सौंपा जाता है, उससे अच्छी तरह वाकिफ होइए। अगर यह भाग छोटे बच्चों को सौंपा जाता है, तो माता-पिता को उनकी मदद करने की ज़रूरत पड़ सकती है।

      क्या आपको बाइबल का कोई हिस्सा या प्रहरीदुर्ग के किसी लेख के पैराग्राफ पढ़ने का भाग सौंपा गया है? हो सके, तो एक ऐसे व्यक्‍ति की मदद लें जो हिंदी अच्छी तरह पढ़ता हो। उससे कहिए कि आपको वह भाग ज़ोर से पढ़कर सुनाए। जब वह पढ़ रहा हो तो ध्यान दीजिए कि वह शब्दों का उच्चारण कैसे करता है, कई शब्दों को मिलाकर किस तरीके से पढ़ता है, किन शब्दों पर ज़ोर देता है और आवाज़ में उतार-चढ़ाव कैसे लाता है। फिर आप भी पढ़ते वक्‍त वैसा ही कीजिए।

      जब आप अपने विद्यार्थी-भाग की तैयारी करने बैठते हैं, तो आपको भाषण के जिस गुण पर काम करने के लिए कहा गया है, इस किताब में उस अध्याय का अध्ययन करना मत भूलिए। अगर हो सके तो अपने भाग को बार-बार ज़ोर से पढ़कर अभ्यास करने के बाद, दोबारा उस अध्याय की खास बातों पर नज़र डालें। उसमें दी गयी सारी सलाह पर अमल करने की भरसक कोशिश कीजिए।

      इस तरह की ट्रेनिंग से आपको प्रचार में काफी मदद मिलेगी। आपको प्रचार में दूसरों को पढ़कर सुनाने के कई मौके मिलेंगे। परमेश्‍वर के वचन में लोगों की ज़िंदगी बदलने की ताकत है, इसलिए इसे सही ढंग से पढ़कर सुनाना बेहद ज़रूरी है। (इब्रा. 4:12) यह उम्मीद मत कीजिए कि एक या दो बार स्कूल में भाग पेश करते ही आप अच्छी तरह पढ़ने में महारत हासिल कर लेंगे। गौर कीजिए कि प्रेरित पौलुस ने, सालों का तजुर्बा रखनेवाले एक मसीही प्राचीन को लिखा: ‘पढ़ने की तरफ ध्यान लगाए रह।’—1 तीमु. 4:13, हिन्दुस्तानी बाइबल।

      जब आपके भाग में एक विषय और सैटिंग होती है

      अगर आपको स्कूल में कोई ऐसा विद्यार्थी-भाग पेश करना है जिसमें एक सैटिंग भी है, तो आपको इसकी तैयारी कैसे करनी चाहिए?

      इसके लिए तीन अहम बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है: (1) आपको दिया गया विषय, (2) आपकी सैटिंग और वह व्यक्‍ति जिससे आप बात करेंगे और (3) सलाह पर्चे के जिस मुद्दे पर आपको काम करने के लिए कहा गया है।

      आपको जो विषय दिया गया है, उसके बारे में आपको जानकारी इकट्ठी करनी होगी। लेकिन इससे पहले, आपकी सैटिंग क्या होगी और आप किस व्यक्‍ति से बात करेंगे, आपको इस बारे में गहराई से सोचना होगा। क्योंकि इन्हीं बातों के आधार पर आप फैसला कर सकेंगे कि किस तरह की जानकारी इकट्ठी करनी है और किस तरीके से उसे पेश करना है। आप क्या सैटिंग रखेंगे? क्या आप किसी जान-पहचानवाले को सुसमाचार सुनाने का तरीका दिखाएँगे? या क्या आप यह दिखाएँगे कि प्रचार में जब हम लोगों से पहली बार मिलते हैं, तब क्या-क्या हो सकता है और उस हालात में गवाही कैसे दी जा सकती है? जिस व्यक्‍ति से आप बात करनेवाले हैं, वह आपसे उम्र में बड़ा है या छोटा? जिस विषय पर आप उसके साथ चर्चा करने की सोच रहे हैं, उसके बारे में वह क्या सोचता है? उस विषय के बारे में उसे पहले से कितनी जानकारी होगी? उससे बात करते वक्‍त आप क्या हासिल करने की उम्मीद करते हैं? इन सारे सवालों के जवाब से आप तय कर पाएँगे कि आपको किस तरह की जानकारी इकट्ठी करनी है।

      आपको अपने विषय पर जानकारी कहाँ से मिल सकती है? इस किताब के पेज 33 से 38 पर “खोजबीन कैसे करें,” इसके बारे में चर्चा की गयी है। उसे पढ़िए और फिर खोजबीन के लिए जो साहित्य आपके पास है, उसका इस्तेमाल कीजिए। अकसर आप पाएँगे कि आपको ज़रूरत से ज़्यादा जानकारी मिल जाती है। आपके विषय के बारे में कितनी जानकारी उपलब्ध है, यह जानने के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा साहित्य पढ़िए। लेकिन ऐसा करते वक्‍त, अपनी सैटिंग और जिसके साथ आप बात करने जा रहे हैं, उसे ध्यान में रखिए। जो मुद्दे आपके काम आ सकते हैं, उन पर निशान लगाइए।

      अपनी पेशकश तैयार करने से पहले और छोटी-मोटी जानकारी का चुनाव करने से पहले, वक्‍त निकालकर, सलाह पर्चे के जिस मुद्दे पर आपको काम करने के लिए कहा गया है, उसके बारे में ज़रूर पढ़िए। उस सलाह पर अमल करना, आपके भाग पेश करने की एक खास वजह है।

      अगर आप अपनी जानकारी को तय किए गए समय में पेश करेंगे तो आप एक अच्छी समाप्ति भी दे पाएँगे, क्योंकि समय पूरा होने पर आपको एक सिगनल दिया जाएगा और आप भाषण की समाप्ति नहीं दे पाएँगे। हाँ, जहाँ तक प्रचार की बात है, वहाँ हमेशा समय का ध्यान रखने की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए अपने भाग की तैयारी करते वक्‍त इस बात का ध्यान रखिए कि आपको कितने समय के अंदर इसे पूरा करना है। मगर हमेशा आपका ज़ोर, असरदार तरीके से सिखाने पर होना चाहिए।

      सैटिंग के बारे में ज़रूरी हिदायत। सैटिंग के बारे में पेज 82 पर दिए सुझावों पर गौर कीजिए। फिर उनमें से ऐसी सैटिंग चुनिए जो प्रचार में कारगर साबित होगी और जिससे आप अपनी जानकारी को ऐसे पेश कर सकेंगे जो असल ज़िंदगी में काम आए। अगर आप काफी समय से इस स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं, तो समझिए कि यह प्रचार के लिए नए-नए हुनर बढ़ाने का एक अच्छा मौका है।

      अगर आपको, सेवा स्कूल का ओवरसियर सैटिंग देता है, तो उस चुनौती को स्वीकार कीजिए। ज़्यादातर सैटिंग, दूसरों को गवाही देने के बारे में हैं। सैटिंग में बताए हालात में अगर आपको गवाही देने का तजुर्बा नहीं है, तो उन प्रचारकों से सुझाव माँगिए जिन्हें इसका तजुर्बा है। अगर मुमकिन हो तो, स्कूल में जो सैटिंग इस्तेमाल करेंगे, उसी से मिलती-जुलती सैटिंग में किसी से अपने विषय के बारे में पहले ही चर्चा कर लें। ऐसा करने से, आप स्कूल में मिलनेवाली ट्रेनिंग का एक अहम लक्ष्य हासिल कर पाएँगे।

      जब अपना भाग एक भाषण के रूप में देना हो

      अगर आप एक भाई हैं, तो आपको कलीसिया के सामने एक छोटा-सा भाषण देने के लिए कहा जा सकता है। ऐसे भाषणों की तैयारी में भी वही हिदायतें लागू होती हैं, जो प्रदर्शन के रूप में दिए जानेवाले विद्यार्थी-भागों के लिए हैं, जिनके बारे में पहले चर्चा की गयी है। खास फर्क बस यह है कि एक के बजाय सारी सभा आपके सुननेवाले होते हैं और भाग पेश करने का तरीका भी बदल जाता है।

      अच्छा होगा अगर आप भाषण की तैयारी इस तरह करें जिससे सभी सुननेवालों को फायदा पहुँचे। वहाँ मौजूद ज़्यादातर लोग बाइबल की बुनियादी सच्चाइयाँ जानते हैं। हो सकता है आप जिस विषय पर भाषण देने जा रहे हैं, उसके बारे में उन्हें पहले से अच्छी जानकारी हो। इसलिए भाषण की तैयारी करते वक्‍त ध्यान में रखिए कि उन्हें पहले से कितनी जानकारी है। उसके ज़रिए उन्हें कुछ-न-कुछ फायदा पहुँचाने की कोशिश कीजिए। खुद से पूछिए: ‘इस विषय के ज़रिए, मैं अपने और सुननेवालों के दिल में यहोवा के लिए कदरदानी कैसे बढ़ा सकता हूँ, उन्हें यहोवा के करीब कैसे ला सकता हूँ? मेरे भाषण में ऐसा कौन-सा मुद्दा है जो परमेश्‍वर की मरज़ी जानने में हमारी मदद करता है? यह जानकारी हमें इस दुनिया में रहते हुए भी, जो शरीर की लालसाएँ पूरी करने में डूबी हुई है, सही फैसले करने में कैसे मदद दे सकती है?’ (इफि. 2:3) इन सवालों के सही जवाब दे पाने के लिए आपको खोजबीन करने की ज़रूरत होगी। जब आप भाषण में बाइबल का इस्तेमाल करते हैं, तो उसकी आयतें सिर्फ पढ़कर सुना देना काफी नहीं है। आयतों के बारे में दलीलें देकर समझाइए और बताइए कि इनकी मदद से हम किस तरह सही नतीजों पर पहुँच सकते हैं। (प्रेरि. 17:2, 3) अपने भाषण में बहुत ज़्यादा जानकारी ठूँसने की कोशिश मत कीजिए। इस तरीके से जानकारी पेश कीजिए कि सुननेवालों के लिए याद रखना आसान हो।

      भाषण की तैयारी करते समय आपको इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि आप अपना भाषण किस ढंग से पेश करेंगे। इसकी अहमियत को कभी कम मत समझिए। ऊँची आवाज़ में भाषण पेश करने का अभ्यास कीजिए। भाषण के अलग-अलग गुणों के बारे में अच्छी तरह अध्ययन करने और उनके बारे में दी गयी सलाह पर अमल करने से आप भाषण देने की कला बढ़ा सकेंगे। आप चाहे नए हों या तजुर्बेकार, अपने भाषणों की हमेशा अच्छी तैयारी कीजिए ताकि आप पूरे यकीन के साथ बोल सकें और अपनी जानकारी के मुताबिक सही भावनाएँ इज़हार कर सकें। जब कभी आप स्कूल में भाग पेश करते हैं, तो यह बात हमेशा याद रखिए कि परमेश्‍वर से आपको बोलने का जो वरदान मिला है उसका मकसद है, यहोवा की महिमा करना।—भज. 150:6.

  • जन भाषणों की तैयारी करना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
    • जन भाषणों की तैयारी करना

      यहोवा के साक्षियों की ज़्यादातर कलीसियाओं में, हर हफ्ते बाइबल के किसी विषय पर जन भाषण दिया जाता है। अगर आप एक प्राचीन या एक सहायक सेवक हैं, तो क्या आप ज़ाहिर कर रहे हैं कि आप एक अच्छे वक्‍ता और काबिल शिक्षक हैं? अगर हाँ, तो शायद आपको जन भाषण देने के लिए कहा जाए। परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से मिली तालीम की बदौलत हज़ारों भाई, जन भाषण देने का बढ़िया सुअवसर पाने के काबिल बने हैं। अगर आपको जन भाषण देने के लिए कहा जाता है, तब आपको किस तरह तैयारी करनी चाहिए?

      आउटलाइन का अध्ययन कीजिए

      भाषण की तैयारी में किसी भी तरह की खोजबीन शुरू करने से पहले, आउटलाइन को पूरा पढ़िए और फिर उस पर मनन करते रहिए, जब तक आप उसमें दी गयी बातों को अच्छी तरह समझ न लें। भाषण के शीर्षक को अपने मन में अच्छी तरह बिठा लीजिए। गौर कीजिए कि आप अपने सुननेवालों को क्या सिखाना चाहते हैं। भाषण देने का आपका मकसद क्या है?

      भाषण के उपशीर्षकों को पढ़िए, समझने की कोशिश कीजिए और जाँचिए। ये आपके भाषण के मुख्य मुद्दे हैं। ध्यान दीजिए कि हरेक मुद्दा, भाषण के शीर्षक से क्या ताल्लुक रखता है? हर मुख्य मुद्दे के नीचे कई छोटे-छोटे मुद्दे दिए होते हैं और इन मुद्दों के नीचे इनका खुलासा करनेवाले कुछ विचार होते हैं। गौर कीजिए कि आउटलाइन का हर भाग, किस तरह पिछले भाग से जुड़ा है और अगले भाग के लिए सुननेवालों के मन को तैयार करता है। और देखिए कि हर भाग, भाषण के मकसद तक पहुँचने के लिए कैसे मदद करता है। जब आप भाषण के शीर्षक और उसके मकसद को समझ लेते हैं और कि मुख्य मुद्दों के ज़रिए किस तरह यह मकसद पूरा होता है, तब आप दी गयी जानकारी की तैयारी शुरू कर सकते हैं।

      सबसे पहले यह कीजिए कि आपके भाषण में जितने मुख्य मुद्दे हैं यानी चार या पाँच, उतने ही भागों में भाषण को बाँटना अच्छा होगा। फिर हरेक भाग को एक छोटे-से भाषण के तौर पर तैयार कीजिए।

      याद रखिए कि आउटलाइन, भाषण तैयार करने में सिर्फ एक सहायक है। यह आपके नोट्‌स्‌ का काम नहीं करती जिसे देखकर आप भाषण देते हैं। आउटलाइन एक पंजर या कंकाल की तरह है जिसमें मानो माँस-पेशियाँ भरने, दिल डालने और जान फूँकने की ज़रूरत होती है, तभी जाकर एक जीता-जागता भाषण बनता है।

      बाइबल का इस्तेमाल कीजिए

      यीशु मसीह और उसके चेलों ने जो कुछ सिखाया, पवित्र शास्त्र से सिखाया। (लूका 4:16-21; 24:27; प्रेरि. 17:2, 3) आप भी वैसा ही कर सकते हैं। बाइबल ही आपके भाषण की बुनियाद होनी चाहिए। इसलिए आउटलाइन में दी गयी जानकारी सिर्फ समझाने और उसे लागू करने के बजाय यह समझने की कोशिश कीजिए कि बाइबल इस जानकारी को कैसे सही साबित करती है। और फिर, बाइबल का इस्तेमाल करके सिखाइए।

      अपने भाषण की तैयारी करते वक्‍त, आउटलाइन में दी हर आयत खोलकर पढ़िए और उसकी जाँच कीजिए। उसके आस-पास की आयतों पर भी ध्यान दीजिए। कुछ आयतें सिर्फ हालात के बारे में हमारी समझ बढ़ाने के लिए होती हैं। इसलिए हर आयत को पढ़ने या उस पर बात करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सिर्फ उन्हीं आयतों को चुनिए जिनसे आपके सुननेवालों को खास फायदा हो। अगर आप आउटलाइन में दी गयी आयतों पर ही ध्यान देंगे, तो आपको उनके अलावा दूसरी आयतों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

      अच्छा भाषण देने का मतलब यह नहीं कि आप ज़्यादा-से-ज़्यादा आयतों का इस्तेमाल करें। इसके बजाय, अच्छा भाषण वह होता है जिसमें बेहतरीन तरीके से सिखाया जाता है। जब आप आयत खोलकर पढ़ने के लिए कहते हैं, तो सुननेवालों को बताइए कि आप वह आयत क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं। थोड़ा वक्‍त देकर समझाइए कि वह आयत कैसे लागू होती है। और आयत पढ़ने के बाद, उस पर चर्चा करते वक्‍त अपनी बाइबल खुली ही रखिए। मुमकिन है कि यह देखकर सभा में हाज़िर लोग भी अपनी-अपनी बाइबल खुली रखें। आप, अपने सुननेवालों में परमेश्‍वर के वचन से ज्ञान हासिल करने की दिलचस्पी कैसे जगा सकते हैं और इससे पूरा फायदा पाने के लिए आप उनकी मदद कैसे कर सकते हैं? (नहे. 8:8, 12) ऐसा करने के तीन तरीके हैं: आयतों का मतलब समझाना, उदाहरण देना और उन्हें लागू करने का तरीका बताना।

      मतलब समझाना। जब आप किसी खास आयत को समझाने की तैयारी करते हैं, तो उस वक्‍त खुद से पूछिए: ‘इसका क्या मतलब है? इसे मैं अपने भाषण में क्यों बताना चाहता हूँ? इस आयत के बारे में सुननेवालों के मन में कौन-कौन-से सवाल उठ सकते हैं?’ आपको यह जाँच करनी पड़ सकती है कि आस-पास की आयतें क्या बताती हैं, उसे कब, कहाँ और किसने लिखा था। यह किन हालात में लिखी गयी थी, उसके शब्दों का ज़ोर किस पर है और ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखनेवाले ने उसे किस इरादे से लिखा था। यह सब जानने के लिए आपको खोजबीन करनी होगी। इस बारे में आपको, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए तैयार किए गए साहित्य में जानकारी का अनमोल खज़ाना मिलेगा। (मत्ती 24:45-47) आयत की हर बारीकी समझाने की कोशिश मत कीजिए, बल्कि इतना ही बताइए कि आपने अपने सुननेवालों को जो आयत पढ़कर सुनायी, उसका मुद्दे से क्या ताल्लुक है।

      उदाहरण देना। उदाहरण इसलिए दिए जाते हैं कि सुननेवाले मामले की तह तक जाएँ और उसे अच्छी तरह समझें या आपने जो मुद्दा या सिद्धांत बताया है, उसे याद रख सकें। उदाहरणों की मदद से लोग आपकी बात आसानी से समझ पाते हैं और जो वे पहले से जानते हैं, उसकी तुलना इस जानकारी के साथ करते हैं। यीशु ने अपने मशहूर पहाड़ी उपदेश में इसी तरह उदाहरणों का इस्तेमाल किया था। उसने “आकाश के पक्षियों,” “जंगली सोसनों,” “सकेत फाटक,” और ‘चटान पर बने घर’ जैसी कई मिसालें दीं जिनकी वजह से उसका सिखाने का तरीका बड़ा ज़बरदस्त था, उसकी शिक्षाएँ समझने में आसान थीं और भूली नहीं जा सकतीं।—मत्ती, अध्या. 5-7.

      लागू करना। जैसे ऊपर बताया है, समझाने और उदाहरण देने से सुननेवालों को ज्ञान तो ज़रूर मिलता है, मगर इसका फायदा तभी होगा जब वे इस ज्ञान को अमल में लाएँगे। सच है कि बाइबल के संदेश को अपने जीवन में लागू करने की ज़िम्मेदारी हर सुननेवाले की है, फिर भी उन्हें क्या कदम उठाने चाहिए, यह जानने के लिए आप उनकी मदद कर सकते हैं। पहले ध्यान दीजिए कि आपके सुननेवाले, चर्चा की जा रही आयत का मतलब और उसके ज़रिए आप क्या कहना चाहते हैं, यह समझ चुके हैं या नहीं। उसके बाद, कुछ वक्‍त के लिए यह बताइए कि पेश की गयी जानकारी का हमारे विश्‍वासों और चालचलन पर क्या असर होना चाहिए। जिस सच्चाई पर चर्चा हो रही है, उससे मेल न खानेवाले गलत विचारों और चालचलन से दूर रहने के फायदों पर ज़ोर दीजिए।

      जब आप सोच रहे होते हैं कि आयतों को कैसे लागू करें, तो हमेशा याद रखिए कि सभा में हाज़िर लोग, अलग-अलग माहौल में पले-बड़े हैं और वे तरह-तरह के हालात का सामना कर रहे हैं। सुननेवालों में कुछ दिलचस्पी दिखानेवाले नए लोग हो सकते हैं, कुछ जवान तो कुछ बूढ़े और ऐसे लोग भी हो सकते हैं, जो अपनी ज़िंदगी में तरह-तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। आप अपना भाषण इस ढंग से पेश कीजिए जिससे सुननेवाले कुछ सीखें और जानकारी उनके काम आए। ऐसी सलाह मत दीजिए जिससे सुननेवालों को यह लगे कि आप सिर्फ चंद लोगों को मन में रखकर सलाह दे रहे हैं।

      भाषण देनेवाले के फैसले

      आपके भाषण के संबंध में कुछ बातें पहले से तय होती हैं। जैसे कि आउटलाइन के उपशीर्षक यानी भाषण के मुख्य मुद्दे साफ-साफ लिखे होते हैं और यह भी बताया जाता है कि हर उपशीर्षक पर चर्चा करने के लिए कितना समय लेना चाहिए। बाकी के फैसले आपको करने होते हैं। जैसे हर मुख्य मुद्दे के नीचे जो छोटे मुद्दे दिए होते हैं, उनमें से किन मुद्दों पर आप ज़्यादा समय बिताएँगे और किन पर कम, यह चुनाव आपको करना होगा। यह मत सोचिए कि आपको हर छोटे मुद्दे पर बराबर ज़ोर देना है। ऐसा करने से आपको पूरी जानकारी फटाफट बतानी पड़ेगी और सुननेवालों को यह सबकुछ याद रखना बड़ा मुश्‍किल लगेगा। आप यह कैसे तय कर सकते हैं कि आपको किन छोटे मुद्दों को खोलकर समझाना है, और किन्हें थोड़े शब्दों में बताना है या उनका महज़ ज़िक्र करके छोड़ देना है? इसके लिए खुद से पूछिए: ‘किन मुद्दों पर ज़्यादा ज़ोर देने से मैं भाषण का ज़रूरी संदेश अपने सुननेवालों तक पहुँचा सकूँगा? किन मुद्दों से मेरे सुननेवालों को ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा होगा? किसी आयत और उससे जुड़े मुद्दे का ज़िक्र न करने से, क्या पेश की गयी दलीलें कमज़ोर पड़ जाएँगी?’

      इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखिए कि आप अपने भाषण में अनुमान की बिनाह पर कोई भी बात न कहें, ना ही अपनी राय ज़ाहिर करें। परमेश्‍वर के पुत्र, यीशु मसीह ने भी “अपनी ओर से” कोई बात नहीं कही थी। (यूह. 14:10) यह मत भूलिए कि लोग यहोवा के साक्षियों की सभाओं में इसलिए आते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि इनमें बाइबल पर चर्चा की जाती है। अगर आप एक अच्छे वक्‍ता के तौर पर जाने जाते हैं, तो यह शायद इसलिए है क्योंकि आप हमेशा लोगों का ध्यान अपनी तरफ नहीं बल्कि परमेश्‍वर के वचन पर दिलाते हैं। और इसी वजह से लोग, आपके भाषण सुनना पसंद करते हैं।—फिलि. 1:10, 11.

      एक आउटलाइन जिसमें सिर्फ कुछ मुद्दे दिए होते हैं, उससे बाइबल की बढ़िया जानकारी देनेवाला भाषण तैयार करने के बाद, अब आपको उसका अभ्यास करना चाहिए। ऐसा ऊँची आवाज़ में करना ज़्यादा फायदेमंद होगा। आपको इस बात का ध्यान रखना है कि सारे मुद्दे आपके मन में अच्छी तरह बैठ जाएँ। भाषण देते वक्‍त आपको पूरे यकीन के साथ बोलना चाहिए, जानकारी को जानदार बनाना चाहिए, साथ ही पूरे जोश के साथ सच्चाई पेश करनी चाहिए। अपना भाषण पेश करने से पहले, खुद से यह सवाल पूछिए: ‘भाषण देने का मेरा मकसद क्या है?’ इसके अलावा, ये सवाल भी पूछिए: ‘क्या मुख्य मुद्दे साफ पहचाने जाते हैं? क्या मेरा भाषण पूरी तरह बाइबल पर आधारित है? क्या एक मुख्य मुद्दे की चर्चा अगले मुद्दे के लिए सुननेवालों को तैयार करती है? क्या भाषण से यहोवा और उसके इंतज़ामों के लिए कदरदानी बढ़ती है? क्या भाषण की समाप्ति का इसके शीर्षक से सीधा संबंध है? क्या इससे सुननेवालों को पता लगता है कि उन्हें क्या-क्या कदम उठाने हैं और क्या भाषण के आखिरी शब्द उनके अंदर यह सब करने का जोश भरते हैं?’ अगर इन सारे सवालों का जवाब आप ‘हाँ’ में दे सकते हैं, तो पूरी कलीसिया को फायदा पहुँचाने और यहोवा की स्तुति करने के लिए, आप “ज्ञान का ठीक बखान” करने के काबिल हैं।—नीति. 15:2.

  • कलीसिया के लिए भाषण तैयार करना
    परमेश्‍वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए
    • कलीसिया के लिए भाषण तैयार करना

      परमेश्‍वर की सेवा स्कूल का कार्यक्रम, पूरी कलीसिया को फायदा पहुँचाने के लिए तैयार किया गया है। इसके अलावा, कलीसिया की दूसरी सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में भी बेहतरीन जानकारी दी जाती है। इसलिए अगर आपको इनमें से किसी भी कार्यक्रम में कोई भाग पेश करने के लिए कहा गया है, तो यह एक भारी ज़िम्मेदारी है। प्रेरित पौलुस ने मसीही अध्यक्ष, तीमुथियुस को उकसाया था कि वह अपने उपदेश देने के तरीके पर लगातार ध्यान देता रहे। (1 तीमु. 4:15, 16) मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में आकर उन हिदायतों को सुनने के लिए भाई-बहन अपना कीमती वक्‍त लगाते हैं, यहाँ तक कि कुछ को काफी संघर्ष करना पड़ता है। वे हाज़िर होने के लिए इतनी मेहनत इसलिए करते हैं, क्योंकि इन सभाओं में उन्हें परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते को और भी मज़बूत बनाने की शिक्षा मिलती है। ऐसी शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी वाकई बड़े सम्मान की बात है! लेकिन आप इस ज़िम्मेदारी को कैसे अच्छी तरह पूरा कर सकते हैं?

      बाइबल झलकियाँ

      स्कूल का यह भाग हफ्ते की बाइबल पढ़ाई पर आधारित होता है। इसमें इस बात पर ज़ोर दिया जाना चाहिए कि बाइबल पढ़ाई के हिस्से से आज हम क्या सीख सकते हैं। जैसा नहेमायाह 8:8 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) में लिखा है कि याजक एज्रा और उसके साथ लेवियों ने लोगों के सामने परमेश्‍वर का वचन पढ़कर सुनाया, उसका अर्थ बताया, उसकी व्याख्या की, और ‘उसका अभिप्राय: क्या है, इसे खोलकर समझाया।’ बाइबल पढ़ाई की झलकियाँ बताते वक्‍त आपको भी वही करने का मौका मिलता है।

      इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए आपको कैसे तैयारी करनी चाहिए? आपको बाइबल के जिस हिस्से की झलकियाँ बतानी हैं, उसे एक हफ्ते या उससे भी पहले पढ़ने की कोशिश कीजिए। उसके बाद सोचिए कि आपकी कलीसिया की ज़रूरतें क्या हैं। उन ज़रूरतों को समझने के बारे में परमेश्‍वर से प्रार्थना कीजिए। इसके अलावा, यह भी प्रार्थना कीजिए कि बाइबल के इस भाग से कौन-सी सलाह, कौन-से उदाहरण या सिद्धांत बताए जा सकते हैं।

      खोजबीन करना ज़रूरी है। आपको जो भाषा आती है, क्या उस भाषा में वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स या सीडी-रॉम पर वॉचटावर लाइब्रेरी उपलब्ध है? अगर नहीं, तो आप हर साल दिसंबर 15 की प्रहरीदुर्ग में दी गयी विषय-सूची का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। जब आप चुनी हुई आयतों पर संस्था के साहित्य में खोजबीन करेंगे, तो आपको बहुत-सी फायदेमंद जानकारी मिलेगी जैसे कि उन आयतों को कब और किन हालात में लिखा गया था, उन आयतों में दी गयी भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुईं, उनसे हम यहोवा के बारे में क्या सीख सकते हैं, इस बारे में लेख दिए हैं, या सिद्धांतों की चर्चा की गयी है। बहुत सारे मुद्दे बताने की कोशिश मत कीजिए। इसके बजाय, अच्छा होगा अगर कुछ आयतें चुनकर सिर्फ उन्हीं पर ध्यान दिलाएँ और उन्हें अच्छी तरह समझाएँ।

      अपना यह भाग पेश करने में आपको सुननेवालों से यह सवाल पूछना पड़ सकता है कि हफ्ते की बाइबल पढ़ाई से उन्हें क्या फायदा हुआ है। उन्होंने ऐसी कौन-सी बात सीखी जिसे निजी बाइबल अध्ययन में, पारिवारिक अध्ययन में, अपने प्रचार काम में या अपने जीवन में लागू करने से उन्हें फायदा होगा? यहोवा ने लोगों और जातियों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया, उससे यहोवा के कौन-से गुण देखने को मिलते हैं? सभा में मौजूद लोगों ने इससे क्या सीखा जिससे उनका विश्‍वास मज़बूत हुआ और उनके दिल में यहोवा के लिए श्रद्धा और बढ़ी? आयतों की बारीकियों या उनके कठिन मुद्दों को समझाने में ज़्यादा वक्‍त मत गवाँइए। बल्कि चुने हुए मुद्दों का मतलब समझाइए और उन्हें ज़िंदगी में कैसे लागू किया जाना चाहिए, इस पर ज़ोर दीजिए।

      हिदायत भाषण

      यह भाषण प्रहरीदुर्ग या सजग होइए! के किसी लेख से या फिर किसी किताब के भाग से दिया जाएगा। अकसर यह जानकारी इतनी होती है कि इसे तय किए गए समय में आसानी से पेश किया जा सकता है। आपको यह भाषण किस ढंग से पेश करना चाहिए? एक शिक्षक की तरह! सिर्फ जानकारी को शुरू से लेकर आखिर तक बता देना काफी नहीं। हर अध्यक्ष को “सिखाने में निपुण” होना चाहिए।—1 तीमु. 3:2.

      इस भाषण की तैयारी करने में, सबसे पहले आपको जिस भाग से भाषण देना है, उसका अध्ययन कीजिए। उसमें बतायी गयी आयतें, बाइबल से पढ़िए। उस पर मनन कीजिए। यह सबकुछ, भाषण के दिन से काफी पहले करने की कोशिश कीजिए। याद रखिए कि जिस किताब या लेख से आप भाषण देने जा रहें हैं, उसे पहले से पढ़कर आने के लिए भाई-बहनों को उकसाया जाता है। आपके भाषण का मकसद सिर्फ उस जानकारी के बारे में फिर से बताना या उसका सारांश देना नहीं है, बल्कि यह दिखाना है कि उस जानकारी पर कैसे अमल किया जाना चाहिए। इसलिए जानकारी में से ज़रूरी बातों को चुनकर इस ढंग से पेश कीजिए ताकि कलीसिया को वाकई फायदा हो।

      जिस तरह हर बच्चे का स्वभाव अलग होता है, उसी तरह हर कलीसिया की एक अलग पहचान होती है। जो पिता अपने बच्चे को अच्छी तरह सिखाता है, वह अच्छे-बुरे के नियमों के बारे में सिर्फ उपदेश ही नहीं देता बल्कि उसके साथ तर्क करके उसे समझाता है। पिता हमेशा इस बात का ध्यान रखता है कि बच्चे का स्वभाव कैसा है और वह किन मुश्‍किलों का सामना कर रहा है। उसी तरह, कलीसिया में सिखानेवाला यह समझने की कोशिश करता है कि जिन भाई-बहनों से वह बात कर रहा है, उन्हें किन-किन मामलों पर सलाह की ज़रूरत है। लेकिन उसे समझदारी से काम लेना होगा ताकि वह भाषण में ऐसे उदाहरण ना दे जिनसे किसी भाई या बहन को शर्मिंदा होना पड़े। इसके बजाय वह उन आशीषों की तरफ ध्यान दिलाएगा जो उन्हें यहोवा के मार्गों पर चलने से मिल रही हैं और वह बाइबल से सलाह देगा जिससे कि कलीसिया के भाई-बहन अपनी समस्याओं का सामना करने में कामयाब हो सकें।

      अच्छी शिक्षा, सुननेवालों के दिल में उतर जाती है। आपके भाषण का भी ऐसा असर हो, इसके लिए सिर्फ सच्चाइयाँ बयान करना काफी नहीं, बल्कि आपको यह भी बताना चाहिए कि यह जानकारी, सुननेवालों के लिए क्या मायने रखती है। इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपने सुननेवालों के लिए सच्ची परवाह दिखाएँ। आध्यात्मिक चरवाहों को चाहिए कि वे अपने झुंड की ज़रूरतों को जानें। अगर उनमें हर भाई-बहन के लिए प्यार होगा और वे उनकी मौजूदा समस्याओं को ध्यान में रखेंगे, तो वे समझ के साथ, दया और हमदर्दी दिखा सकेंगे और उनका हौसला बढ़ा पाएँगे।

      हर काबिल शिक्षक को पता होता है कि उसके भाषण का मकसद क्या है। जानकारी को इस ढंग से पेश किया जाना चाहिए ताकि सुननेवाले मुख्य मुद्दों को आसानी से समझ सकें और उन्हें याद रख सकें। साथ ही, उन्हें यह याद रह जाए कि भाषण की किन व्यवहारिक बातों को उन्हें अपने जीवन में लागू करना है।

      सेवा सभा

      अगर आपका भाषण हमारी राज्य सेवकाई के किसी लेख से है, तो यह आपके लिए एक अलग चुनौती हो सकती है। आप अकसर पाएँगे कि आप दी गयी जानकारी में से अहम मुद्दे नहीं चुन सकते, बल्कि आपको पूरी-की-पूरी जानकारी पेश करनी होगी। लेख में जिन आयतों के आधार पर सलाह दी गयी है, उन्हें समझने और सही नतीजे पर पहुँचने में सुननेवालों की मदद कीजिए। (तीतु. 1:9) सेवा सभा में हर भाग के लिए समय तय होता है, इसलिए ज़्यादातर भागों में कोई और जानकारी बताने का वक्‍त नहीं होता।

      कभी-कभी आपको ऐसे विषय पर भी भाषण देने के लिए कहा जा सकता है जो हमारी राज्य सेवकाई में से किसी लेख से न हो। शायद किसी प्रहरीदुर्ग का हवाला दिया गया हो या फिर इस भाग के बारे में आपको कुछ नोट्‌स्‌ दिए गए हों। एक शिक्षक के तौर पर अब आपको यह तय करना है कि दिए गए भाग को कलीसिया की ज़रूरतों के मुताबिक कैसे पेश किया जाए। आपको शायद अपनी बात कहने के लिए एक छोटी-सी और सही मिसाल या कोई अनुभव पेश करने की ज़रूरत पड़ सकती है। याद रखिए कि आपका मकसद सिर्फ किसी विषय पर बात करना ही नहीं बल्कि भाषण को इस तरीके से पेश करना है जिससे कलीसिया को परमेश्‍वर के वचन में बताए काम को पूरा करने में मदद मिले और खुशी भी।—प्रेरि. 20:20, 21.

      जब आप अपना भाग तैयार करते हैं, तो अपनी कलीसिया के भाई-बहनों के अलग-अलग हालात पर गौर कीजिए। वे परमेश्‍वर की सेवा में जो कुछ कर रहे हैं, उसके लिए उनकी तारीफ कीजिए। खुद से पूछिए कि दिए गए भाग की सलाह पर अमल करने से, वे कैसे प्रचार में ज़्यादा कामयाब हो सकते हैं और अपनी खुशी बढ़ा सकते हैं?

      क्या आपके भाग में कोई प्रदर्शन या इंटरव्यू है? अगर हाँ, तो इसकी काफी पहले से अच्छी तैयारी की जानी चाहिए। प्रदर्शन या इंटरव्यू का इंतज़ाम करने के लिए किसी दूसरे से कहना आसान है, लेकिन अगर आप खुद इसे करें, तो अच्छे नतीजे निकलेंगे। इसलिए अगर मुमकिन हो, तो सभा के दिन से पहले, प्रदर्शन या इंटरव्यू की रिहर्सल कीजिए। ध्यान दीजिए कि आपके कार्यक्रम का यह हिस्सा इस तरीके से पेश किया जाना चाहिए जिससे कि आपके भाषण में दी गयी शिक्षा और भी असरदार हो।

      सम्मेलन और अधिवेशन

      जो भाई अपने अंदर बढ़िया आध्यात्मिक गुण पैदा करते हैं और कलीसिया में भाषण देने और सिखाने की काबिलीयत बढ़ाते हैं, उन्हें कुछ समय बाद सम्मेलनों या अधिवेशनों में भाग सौंपे जा सकते हैं। परमेश्‍वर से शिक्षा पाने के ये वाकई खास मौके होते हैं। हो सकता है, आपको मैन्यूस्क्रिप्ट, आउटलाइन या बाइबल से लिए गए नाटक, जिसमें हमारे ज़माने के लिए सबक है, की हिदायतों या दूसरी सूचनाओं को पढ़ने के लिए कहा जाए। अगर आपको इस तरह के भाग पेश करने का सुअवसर मिलता है, तो दी गयी जानकारी को बहुत ध्यान से पढ़िए। और ऐसा तब तक कीजिए जब तक आप इसकी पूरी अहमियत अच्छी तरह समझ ना लें।

      मैन्यूस्क्रिप्ट भाषण देनेवालों को लिखी हुई जानकारी शब्द-ब-शब्द पढ़कर सुनानी होती है। इसमें वे न तो अपने शब्द इस्तेमाल करते हैं, ना ही भाषण की रचना में फेरबदल करते हैं। वे मैन्यूस्क्रिप्ट का अध्ययन करते हैं ताकि इसमें दिए गए खास मुद्दों को अच्छी तरह पहचान सकें और देख सकें कि उन मुद्दों को कैसे समझाया गया है। वे ऊँची आवाज़ में पढ़ते हुए भाषण का तब तक अभ्यास करते हैं, जब तक वे सही अर्थ देने के लिए ठीक शब्दों पर ज़ोर देना न सीख लें, और उनकी आवाज़ और भाषण देने के तरीके में जोश, उत्साह, उमंग, गंभीरता और पक्का विश्‍वास नज़र आने लगे। वे इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि वे इतनी ऊँची आवाज़ में बोले ताकि भारी तादाद में बैठे सभी लोग आसानी से सुन सकें।

      जिन भाइयों को आउटलाइन से भाषण देने को मिलता है, उनकी यह ज़िम्मेदारी है कि वे आउटलाइन में दी गयी जानकारी से ही अपना भाषण पेश करें। उन्हें ना तो सीधे आउटलाइन से पढ़ना चाहिए, ना ही मैन्यूस्क्रिप्ट की तरह भाषण का एक-एक शब्द लिख लेना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें अपने नोट्‌स्‌ को बार-बार देखे बिना जानकारी पेश करनी है और दिल से बात करनी है। यह ज़रूरी है कि आउटलाइन के हर मुख्य मुद्दों को उसके लिए दिए गए समय में ही पूरा करें। ऐसा करने से वे मुख्य मुद्दों को साफ-साफ समझा पाएँगे। भाषण देनेवालों को चाहिए कि वे मुख्य मुद्दों के नीचे दिए गए विचारों और आयतों का अच्छा इस्तेमाल करे। उन्हें आउटलाइन में दिए मुद्दे काटकर अपनी पसंद के कुछ मुद्दे नहीं जोड़ देने चाहिए। बेशक, पेश की जानेवाली सारी जानकारी परमेश्‍वर के वचन से होती है और मसीही प्राचीनों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे ‘वचन का प्रचार’ करें। (2 तीमु. 4:1, 2) इसलिए वक्‍ता को आउटलाइन में दी गयी आयतों पर खास ध्यान देना चाहिए, यानी तर्क करने के लिए उनका इस्तेमाल करना चाहिए और बताना चाहिए कि उन पर कैसे अमल करें।

      आखिरी मिनट तक टालमटोल मत कीजिए

      क्या आप एक ऐसी कलीसिया में हैं, जहाँ आपको भाषण देने के मौके बार-बार मिलते हैं? अगर हाँ, तो आप अपने सभी भाषणों की अच्छी तैयारी कैसे कर सकते हैं? अपने भाषणों की तैयारी करने के लिए आखिरी मिनट तक इंतज़ार मत कीजिए।

      जो भाषण कलीसिया को सचमुच फायदा पहुँचाते हैं, उन पर बहुत सोच-विचार किया गया होता है। इसलिए जब भी आपको भाषण सौंपा जाता है, उसकी जानकारी को फौरन पढ़ने की आदत डालिए। इस तरह पढ़ लेने से कुछ दूसरे काम करते वक्‍त भी आप अपने भाषण के बारे में सोच पाएँगे। भाषण देने के कुछ दिन या हफ्ते पहले, आपको शायद कुछ ऐसी बातें सुनने को मिलें जिनकी मदद से आप अपनी जानकारी को बेहतरीन तरीके से पेश कर पाएँगे। इस दरमियान कुछ ऐसी घटनाएँ घट सकती हैं, जिनका उदाहरण देकर यह बताया जा सकता है कि भाषण की जानकारी हमारे वक्‍त के लिए कितनी ज़रूरी है। हालाँकि भाषण मिलते ही उसे पढ़ने और उस पर सोच-विचार करने में वक्‍त लगता है, मगर यह बेकार नहीं जाता। क्योंकि जब आप आउटलाइन से तैयारी करने बैठेंगे, तो आप पाएँगे कि पहले से इस विषय पर सोचने से आपको काफी फायदा हुआ है। इस तरीके से अपने भाषण की तैयारी करने से आपकी परेशानी काफी कम होगी और आप जानकारी को इस ढंग से पेश कर पाएँगे जिससे कलीसिया के भाई-बहन काफी कुछ सीख सकेंगे और यह उनके दिल को छू जाएगा।

      अपने लोगों को सिखाने के लिए यहोवा ने जो इंतज़ाम किया है, उसमें उसने आपको शिक्षा देने का वरदान दिया है और ज़िम्मेदारी सौंपी है। उस वरदान की आप जितनी ज़्यादा कदर करेंगे, उतना ही आप यहोवा को आदर दिखाएँगे और आपके ज़रिए यहोवा से प्रेम करनेवालों को बहुत-सी आशीषें भी मिलेंगी।—यशा. 54:13; रोमि. 12:6-8.

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