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अध्याय 30

दूसरों में दिलचस्पी लेना

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

दिखाइए कि आप दूसरों के सोच-विचार का लिहाज़ करते हैं और उनकी भलाई चाहते हैं।

इसकी क्या अहमियत है?

यह एक तरीका है जिससे हम यहोवा के प्यार की मिसाल पर चलते हैं और इसके ज़रिए हम सुननेवाले के दिल तक पहुँच सकते हैं।

लोगों को बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाते वक्‍त, हमें सिर्फ दिमागी ज्ञान ही नहीं देना बल्कि और भी बहुत कुछ करना चाहिए। हमें उनके दिल तक पहुँचना चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका है, उनमें सच्ची दिलचस्पी दिखाना। यह दिलचस्पी कई तरीकों से दिखायी जा सकती है।

अपने सुननेवालों के विचारों का ध्यान रखिए। प्रेरित पौलुस अपने सुननेवालों की संस्कृति और उनके सोच-विचार को ध्यान में रखकर उनसे बात करता था। उसने कहा: “मैं यहूदियों के लिये यहूदी बना कि यहूदियों को खींच लाऊं, जो लोग व्यवस्था के आधीन हैं उन के लिये मैं व्यवस्था के आधीन न होने पर भी व्यवस्था के आधीन बना, कि उन्हें जो व्यवस्था के आधीन हैं, खींच लाऊं। व्यवस्थाहीनों के लिये मैं (जो परमेश्‍वर की व्यवस्था से हीन नहीं, परन्तु मसीह की व्यवस्था के आधीन हूं) व्यवस्थाहीन सा बना, कि व्यवस्थाहीनों को खींच लाऊं। मैं निर्बलों के लिये निर्बल सा बना, कि निर्बलों को खींच लाऊं, मैं सब मनुष्यों के लिये सब कुछ बना हूं, कि किसी न किसी रीति से कई एक का उद्धार कराऊं। और मैं सब कुछ सुसमाचार के लिये करता हूं, कि औरों के साथ उसका भागी हो जाऊं।” (1 कुरि. 9:20-23) आज हम, “सब मनुष्यों के लिये सब कुछ” कैसे बन सकते हैं?

लोगों से बातचीत शुरू करने से पहले, मौका मिले तो आप कुछ पल के लिए ही सही, मगर उन्हें गौर से देखिए। तब आपको कुछ सुराग मिल सकता है। क्या आप बता सकते हैं कि उनका रोज़गार क्या है? क्या ऐसी कोई निशानियाँ हैं जिन्हें देखकर आप बता सकें कि वे किस धर्म के माननेवाले हैं? क्या आप किसी तरह जान सकते हैं कि उनका परिवार किस हाल में है? आपने जो देखा है, उसके मुताबिक क्या आप अपनी बातचीत में कुछ फेरबदल कर सकते हैं जिससे सुननेवालों की दिलचस्पी जागे?

बातचीत को ज़्यादा दिलचस्प बनाने के लिए आपको पहले से सोचना चाहिए कि आप अपने इलाके के लोगों से बातचीत कैसे शुरू करेंगे। कुछ इलाकों में ऐसे लोग भी रहते हैं जो विदेश से आकर वहाँ बस गए हैं। अगर आपके इलाके में ऐसे लोग हैं, तो क्या आपने उनको गवाही देने का कोई असरदार तरीका ढूँढ़ निकाला है? परमेश्‍वर “चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें,” इसलिए यह लक्ष्य रखिए कि आप जिस किसी से मिलेंगे, उन्हें राज्य का संदेश इस तरीके से सुनाएँगे कि उनकी दिलचस्पी जागे।—1 तीमु. 2:4.

ध्यान से सुनिए। यहोवा को सब बातों का ज्ञान है, मगर फिर भी वह दूसरों की राय सुनता है। भविष्यवक्‍ता मीकायाह ने एक दर्शन में देखा कि एक मामले को निपटाने के लिए, यहोवा ने स्वर्गदूतों से अपनी-अपनी राय बताने के लिए कहा। फिर परमेश्‍वर ने एक स्वर्गदूत को उसके सुझाव के मुताबिक कार्यवाही करने की इजाज़त दी। (1 राजा 22:19-22) जब इब्राहीम ने सदोम पर आनेवाले विनाश के बारे में अपनी चिंता ज़ाहिर की, तो यहोवा ने उसका लिहाज़ करते हुए उसे अपने दिल की बात कहने दी। (उत्प. 18:23-33) यहोवा की तरह, हम भी प्रचार में लोगों की राय सुनने के लिए क्या कर सकते हैं?

दूसरों को अपनी राय बताने का बढ़ावा दीजिए। इसके लिए एक सही सवाल पूछिए और जवाब देने के लिए उन्हें वक्‍त दीजिए। ध्यान से उनकी सुनिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो उन्हें दिल खोलकर अपनी बात कहने का बढ़ावा मिलेगा। अगर उनके जवाब से सुराग मिलता है कि उन्हें कैसी बातों में दिलचस्पी है, तो व्यवहार-कुशलता से और भी सवाल पूछिए। उनके ज़ाती मामलों के बारे में सवालों की बौछार किए बिना, उन्हें अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए। अगर आपको लगता है कि उनके विचार अच्छे हैं, तो सच्चे मन से उनकी तारीफ कीजिए। और अगर आप उनकी राय से सहमत नहीं हैं, तो भी अपने विचार बताने के लिए उनका शुक्रिया अदा कीजिए।—कुलु. 4:6.

लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए कि लोगों में दिलचस्पी दिखाते वक्‍त हम मर्यादाओं को पार न करें। दूसरों की परवाह करने का यह मतलब नहीं कि हमें उनके ज़ाती मामलों में दखल देने की छूट है। (1 पत. 4:15) विपरीत लिंग के शख्स से बात करते वक्‍त हमें सावधानी बरतनी चाहिए कि हम नेक इरादे से उसमें जो दिलचस्पी दिखाते हैं, उसका वह गलत मतलब न निकाल बैठे। दूसरों में दिलचस्पी दिखाना किस हद तक सही है, इस बारे में अलग-अलग देशों, यहाँ तक कि अलग-अलग लोगों के स्तरों में फर्क होता है। इसलिए हमें समझ से काम लेना चाहिए।—लूका 6:31.

अच्छी तैयारी, दूसरों की बात ध्यान से सुनने में हमारी मदद करती है। अगर हमारे मन में यह साफ है कि लोगों को क्या संदेश सुनाना है, तो हम बिना किसी परेशानी के दूसरों की बात सुनेंगे। तब वे भी झिझक महसूस नहीं करेंगे बल्कि हमसे दिल खोलकर बात करना चाहेंगे।

दूसरों की बात सुनकर हम उनके लिए आदर दिखाते हैं। (रोमि. 12:10) इससे पता चलता है कि हम उनके विचारों और उनकी भावनाओं की कदर करते हैं। तब हो सकता है कि वे भी हमारी बात ध्यान से सुनें। इसलिए, जब परमेश्‍वर का वचन हमें सलाह देता है कि हम ‘सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरे’ हों, तो उसके पीछे ज़रूर एक ठोस कारण है।—याकू. 1:19.

तरक्की करने में दूसरों की मदद कीजिए। जो लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी दिखाते हैं, उनके लिए अगर हमें चिंता होगी तो हम उनके बारे में सोचते रहेंगे और उनसे दोबारा मिलने जाएँगे, ताकि हम उन्हें बाइबल से ऐसी सच्चाइयाँ बताएँ जो उनके लिए खासकर मददगार होंगी। किसी घर-मालिक से दोबारा मिलने के बारे में सोचते वक्‍त, यह ध्यान रखिए कि पिछली मुलाकातों में आपने उसके बारे में क्या-क्या जाना। किसी ऐसे विषय पर जानकारी देने की तैयारी करें जिसमें उसे दिलचस्पी हो। आप जो जानकारी देंगे, उसे लागू करने के फायदे बताइए और इस तरह उसे दिखाइए कि वह जो सीख रहा है, उससे क्या फायदा पा सकता है।—यशा. 48:17.

अगर सामनेवाला, आपको किसी ऐसे हालात या समस्या के बारे में बताता है जिसकी वजह से वह बड़ा परेशान है, तो यह उसे सुसमाचार बताने का एक खास मौका समझकर उससे बात कीजिए। यीशु की मिसाल पर चलिए, जो दुःखी लोगों को दिलासा देने के लिए हमेशा तैयार रहता था। (मर. 6:31-34) समस्या का फौरन कोई हल बताने या पूरी बात सुने बगैर ही कुछ सलाह देने की इच्छा पर काबू पाइए। वरना, सामनेवाले को लगेगा कि आपको उसमें सच्ची दिलचस्पी नहीं है। इसके बजाय, हमदर्दी दिखाइए। (1 पत. 3:8) फिर, उसकी समस्या के बारे में बाइबल के साहित्य में खोजबीन कीजिए और उसे कुछ फायदेमंद जानकारी दीजिए ताकि वह अपने हालात का सामना कर सके। और अगर वह आपको कुछ गुप्त बातें बताता है, तो उसके लिए प्यार और परवाह की खातिर आप उन्हें गुप्त ही रखेंगे और सिर्फ किसी वाजिब कारण से ही किसी और को बताएँगे।—नीति. 25:9.

हमें खासकर उन लोगों में दिलचस्पी लेनी चाहिए जिनके साथ हम बाइबल अध्ययन करते हैं। अपने हर विद्यार्थी की ज़रूरतों के बारे में प्रार्थना करके गहराई से सोचिए और उन ज़रूरतों को मन में रखकर अध्ययन की तैयारी कीजिए। खुद से पूछिए, ‘उसे आध्यात्मिक तरक्की करते रहने के लिए आगे क्या करने की ज़रूरत है?’ विद्यार्थी को प्यार से समझाइए कि आगे उसे जो कदम उठाना चाहिए, उस बारे में बाइबल, और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के साहित्य में क्या सलाह दी गयी है। (मत्ती 24:45) कभी-कभी विद्यार्थी को किसी विषय पर सिर्फ समझाना काफी नहीं होता। आपको शायद विद्यार्थी को दिखाना होगा कि बाइबल के किसी सिद्धांत पर कैसे अमल किया जाना चाहिए, यहाँ तक कि साथ मिलकर कुछ करके दिखाना होगा कि सिद्धांत को लागू करने का तरीका क्या है।—यूह. 13:1-15.

दूसरों को यहोवा के स्तरों के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाने में मदद देते वक्‍त यह ज़रूरी है कि आप अपनी हद पहचानें और सोच-समझकर काम करें। लोगों की परवरिश अलग-अलग माहौल में होती है और उनकी काबिलीयतों में फर्क होता है जिसकी वजह से सभी एक ही रफ्तार से तरक्की नहीं करते। इसलिए दूसरों से उतनी ही उम्मीद कीजिए जितनी वाजिब है। (फिलि. 4:5) अपने जीवन में बदलाव करने के लिए उन पर दबाव मत डालिए। इसके बजाय उस वक्‍त का इंतज़ार कीजिए जब परमेश्‍वर का वचन और उसकी आत्मा उन्हें कदम उठाने के लिए प्रेरित करेंगे। यहोवा चाहता है कि लोग, अपनी मरज़ी से उसकी सेवा करें, किसी के दबाव में आकर नहीं। (भज. 110:3) उन्हें जो फैसले करने हैं, उनके बारे में अपनी राय मत बताइए और अगर वे आपकी राय पूछें भी, तो ध्यान रहे कि आप उनके लिए फैसले न करें।—गल. 6:5.

मदद करने के व्यावहारिक तरीके। हालाँकि यीशु को अपने सुननेवालों की आध्यात्मिक भलाई की सबसे ज़्यादा चिंता थी, मगर वह उनकी बाकी ज़रूरतों को भी समझता था। (मत्ती 15:32) हमारे पास चाहे ढेर सारा पैसा न हो, तब भी हम कई व्यावहारिक तरीकों से दूसरों की मदद कर सकते हैं।

दूसरों में दिलचस्पी होने से हम उनका लिहाज़ करेंगे। मसलन, अगर खराब मौसम की वजह से दूसरों को आपकी बात सुनने में दिक्कत हो रही है, तो किसी बेहतर जगह पर जाकर बात कीजिए या फिर किसी और दिन बातचीत जारी रखने का इंतज़ाम कीजिए। अगर आप ऐसे वक्‍त पर उनके पास गए हैं जब वे समय नहीं दे सकते, तो किसी और वक्‍त पर आने की पेशकश रखिए। हमारे संदेश में दिलचस्पी दिखानेवाला कोई पड़ोसी या कोई और व्यक्‍ति अगर बीमार है या अस्पताल में भरती है, तो आप उसे एक कार्ड या छोटा खत भेज सकते हैं या उससे मिलने जा सकते हैं और इस तरह दिखा सकते हैं कि आपको उनकी परवाह है। अगर उसके लिए सादा भोजन पकाना या किसी और तरीके से मदद करना मुनासिब लगे, तो आप ऐसा भी कर सकते हैं।

जब बाइबल विद्यार्थी तरक्की करते हैं, तो वे अपने पुराने साथियों के साथ पहले की तरह ज़्यादा वक्‍त नहीं बिता पाते, इस वजह से शायद मन-ही-मन वे कुछ खालीपन महसूस करते हैं। इसलिए उनके दोस्त बनिए। बाइबल अध्ययन के बाद और दूसरे मौकों पर उनसे बात करने में वक्‍त बिताइए। उन्हें अच्छे लोगों से दोस्ती करने का बढ़ावा दीजिए। (नीति. 13:20) मसीही सभाओं में हाज़िर होने में उनकी मदद कीजिए। सभाओं में उनके साथ बैठिए और अगर उनके बच्चे हैं, तो उन पर नज़र रखने में उनकी मदद कीजिए, ताकि वे कार्यक्रम से पूरा-पूरा फायदा पा सकें।

सच्ची दिलचस्पी दिखाइए। लोगों में दिलचस्पी लेना कोई तकनीक नहीं है जिसे सीखकर इसमें महारत हासिल की जा सकती है, बल्कि यह हृदय से पैदा होनेवाला गुण है। दूसरों के लिए हमारे दिल में कितनी जगह है, यह बात कई तरीकों से ज़ाहिर होती है। यह हमारे सुनने के तरीके से और हमारी बातों से नज़र आता है। हम दूसरों की जो मदद करते हैं और उनका जिस तरह लिहाज़ करते हैं, उससे भी यह देखा जा सकता है। यहाँ तक कि जब हम कुछ नहीं कहते या कुछ नहीं करते, तब भी हमारा रवैया और चेहरे के भाव बताते हैं कि हम दूसरों की कितनी परवाह करते हैं। अगर हम सचमुच दूसरों की परवाह करते हैं, तो उन्हें बताने की ज़रूरत नहीं, वे खुद-ब-खुद जान जाएँगे।

दूसरों में सच्ची दिलचस्पी लेने की सबसे ज़बरदस्त वजह यह है कि ऐसा करके हम अपने स्वर्गीय पिता की तरह प्यार और दया दिखा रहे होंगे। तब हमारे सुननेवाले, यहोवा की तरफ खिंचे चले आएँगे और यहोवा ने हमें जो संदेश देने के लिए कहा है उस पर वे कान देंगे। इसलिए सुसमाचार सुनाते वक्‍त कोशिश कीजिए कि आप ‘अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करें।’—फिलि. 2:4.

सच्ची दिलचस्पी कैसे दिखाएँ

  • जब कोई बात करता है, तो सुनिए। उसे अपने विचार और अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने के लिए शुक्रिया कहिए। उसके विचार और अच्छी तरह समझने के लिए सवाल पूछिए।

  • उसके साथ बातचीत खत्म हो जाने के बाद, उसके बारे में सोचिए। जल्द-से-जल्द उससे दोबारा मिलिए।

  • उसे बाइबल की वे सच्चाइयाँ बताइए जो उसके लिए सबसे ज़्यादा मददगार होंगी।

  • उसकी मदद कीजिए। उसकी मौजूदा ज़रूरतों और भविष्य की ज़रूरतों का भी खयाल रखिए।

अभ्यास: (1) कलीसिया की सभा से पहले, वहाँ मौजूद लोगों में से किसी एक में दिलचस्पी लीजिए। सिर्फ हैलो या नमस्ते कहकर मत चले जाइए। उसे अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए। दिखाइए कि आप उसकी परवाह करते हैं। हर बार ऐसा करने की आदत डालिए। (2) प्रचार में मिलनेवाले किसी शख्स में दिलचस्पी दिखाइए। उसे सिर्फ गवाही देकर मत आ जाइए। उसके बारे में जानिए। आप उसके बारे में जो मालूम करते हैं, उसके मुताबिक अपनी बातचीत में फेरबदल कीजिए और उसके साथ पेश आइए। इस तरह हमेशा दिलचस्पी दिखाने के मौके ढूँढ़ते रहिए।

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