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  • शादियाँ जो परमेश्‍वर और इंसान की नज़र में आदर की बात समझी जाएँ
    प्रहरीदुर्ग—2006 | नवंबर 1
    • शादियाँ जो परमेश्‍वर और इंसान की नज़र में आदर की बात समझी जाएँ

      “काना में किसी का ब्याह था, . . . यीशु और उसके चेले भी उस ब्याह में नेवते गए थे।”—यूहन्‍ना 2:1, 2.

      1. काना में यीशु के बारे में दिया ब्यौरा किस बात की तरफ हमारा ध्यान खींचता है?

      यीशु, उसकी माँ और उसके कुछ चेले शादी को आदर की बात समझते थे। वे जानते थे कि ऐसी शादियों से परमेश्‍वर के लोगों को कितनी खुशी मिलती है। मसीह यीशु ने तो एक शादी में अपना सबसे पहला चमत्कार करके उस शादी को यादगार बनाया था और उस मौके की खुशी बढ़ायी थी। (यूहन्‍ना 2:1-11) आपको भी शायद ऐसे मसीहियों की शादियों में हाज़िर होकर खुशी मिली होगी, जो पति-पत्नी बनकर परमेश्‍वर की सेवा करना चाहते हैं। या हो सकता है, आप अपनी शादी के बारे में ऐसी उम्मीद करें। या फिर आप, अपने दोस्त की शादी को सफल बनाने में उसकी मदद करना चाहते हों। मगर शादी को सफल बनाने के लिए क्या किया जा सकता है?

      2. बाइबल, शादियों के बारे में क्या जानकारी देती है?

      2 मसीहियों ने पाया है कि परमेश्‍वर का प्रेरित वचन, बाइबल ऐसे स्त्री-पुरुषों को बहुत फायदेमंद सलाह देती है, जो शादी करने की सोचते हैं। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) यह सच है कि बाइबल बारीकी से जानकारी नहीं देती कि मसीही शादी कैसे की जानी चाहिए। और यह लाज़िमी भी है, क्योंकि हर देश और हर युग के रिवाज़ और कानूनी माँगें अलग-अलग होती हैं। मिसाल के लिए, प्राचीन इस्राएल में शादी के लिए कोई कानूनी माँग पूरी नहीं करनी होती थी। शादी के दिन, दूल्हा अपनी दुलहन को अपने या अपने पिता के घर ले आता था। (उत्पत्ति 24:67; यशायाह 61:10; मत्ती 1:24) इसे लोग शादी मानते थे। इसके लिए, दूल्हा-दुलहन को कोई कानूनी माँगें पूरी नहीं करनी पड़ती थीं, जैसा कि आज करना ज़रूरी होता है।

      3. यीशु ने काना में किस मौके की खुशी बढ़ायी थी?

      3 दूल्हे का दुलहन को अपने घर ले जाना, इस्राएलियों की नज़र में शादी थी। इसके बाद, उन इस्राएलियों को शादी की दावत में बुलाया जाता था। यूहन्‍ना 2:1 कहता है: “काना में किसी का ब्याह था . . .।” मगर मूल-भाषा में “ब्याह” के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया गया है, उसका अनुवाद, “शादी की दावत” या “शादी का भोज” भी किया जा सकता है।a यूहन्‍ना की किताब में दिया ब्यौरा साफ दिखाता है कि यीशु, यहूदी शादी की दावत में न सिर्फ हाज़िर हुआ, बल्कि उसने उस मौके की खुशी भी बढ़ायी। मगर गौर करने लायक बात यह है कि यीशु के ज़माने की शादियों और आज की शादियों में फर्क है।

      4. कुछ मसीही किस तरह शादी करना पसंद करते हैं, और क्यों?

      4 आज कई देशों में, शादी करने से पहले मसीहियों को कुछ कानूनी माँगें पूरी करनी होती हैं। इसके बाद, वे किसी भी तरीके से शादी कर सकते हैं जो सरकार की नज़र में कानूनी हो। एक जज या मेयर, या फिर यहोवा का एक ऐसा साक्षी उनकी शादी करवा सकता है, जिसे सरकार की तरफ से ऐसा करने का अधिकार मिला हो। कुछ मसीही इस तरह शादी करना पसंद करते हैं। और वे अपने कुछ रिश्‍तेदारों या मसीही दोस्तों को या तो कानूनी गवाहों के तौर पर हाज़िर होने के लिए बुलाते हैं या फिर इस अहम मौके पर उनकी खुशी में शरीक होने के लिए। (यिर्मयाह 33:11; यूहन्‍ना 3:29) दूसरे मसीही शायद इतनी बड़ी दावत रखना पसंद न करें, जिसके लिए काफी योजना बनानी पड़े और बहुत खर्चा हो। इसके बजाय, वे रिश्‍तेदारों और करीबी दोस्तों के लिए एक छोटी-सी दावत रखना पसंद करें। इस मामले में हमारी पसंद चाहे जो भी हो, मगर हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे प्रौढ़ मसीहियों का नज़रिया हमसे अलग हो सकता है।—रोमियों 14:3,4.

      5. कई मसीही अपनी शादी में बाइबल पर आधारित भाषण रखने का चुनाव क्यों करते हैं, और भाषण में क्या बताया जाता है?

      5 मसीही जोड़े जानते हैं कि शादी की शुरूआत यहोवा ने की है और उसने अपने वचन में शादीशुदा ज़िंदगी को सफल और सुखी बनाने के लिए बुद्धि-भरी सलाह भी दी है। इसलिए कई जोड़े अपनी शादी में बाइबल पर आधारित भाषण रखने का चुनाव करते हैं।b (उत्पत्ति 2:22-24; मरकुस 10:6-9; इफिसियों 5:22-33) इतना ही नहीं, ज़्यादातर जोड़े चाहते हैं कि उनके मसीही दोस्त और रिश्‍तेदार इस मौके पर हाज़िर होकर उनकी खुशी में शरीक हों। मगर सवाल यह है कि हमें शादी से जुड़ी तरह-तरह की कानूनी माँगों, तरीकों, यहाँ तक कि किसी इलाके के जाने-माने रिवाज़ों को किस नज़र से देखना चाहिए? यह लेख इस बात पर चर्चा करेगा कि अलग-अलग देशों में शादियाँ कैसे होती हैं। यहाँ बताए कुछ तरीके शायद आपके लिए नए हों या आपके इलाके में लागू न हों। मगर फिर भी चर्चा के दौरान, आप शादी के बारे में ऐसे खास सिद्धांतों या पहलुओं पर ध्यान दे सकते हैं, जो परमेश्‍वर के सेवकों के लिए ज़रूरी हैं।

      कानूनी तौर पर की गयी शादियाँ—आदर की बात समझी जाती हैं

      6, 7. हमें शादी के बारे में सरकार के दिए कानूनों को क्यों मानना चाहिए, और यह हम कैसे कर सकते हैं?

      6 शादी की शुरूआत यहोवा ने की है और उसी ने इस बंधन को पवित्र ठहराया है। मगर कुछ हद तक इंसानी सरकारों को यह बताने का हक है कि शादी करने के लिए क्या माँगें पूरी करना ज़रूरी है। उन्हें ऐसा करने का हक है, क्योंकि यीशु ने कहा था: “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्‍वर का है परमेश्‍वर को दो।” (मरकुस 12:17) उसी तरह पौलुस ने भी कहा: “हर एक व्यक्‍ति प्रधान अधिकारियों के आधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्‍वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्‍वर के ठहराए हुए हैं।”—रोमियों 13:1; तीतुस 3:1.

      7 ज़्यादातर देशो में कैसर, या सरकार तय करती है कि कौन शादी कर सकता है। इसलिए जब दो मसीही, जिन पर बाइबल के उसूलों के मुताबिक शादी करने के लिए कोई बंदिशें नहीं हैं, यह कदम उठाने का चुनाव करते हैं, तो वे देश के कानून के मुताबिक शादी करते हैं। इसके लिए शायद उन्हें लाइसेंस लेनी पड़े, सरकार के ठहराए अधिकारी से शादी करवानी पड़े, और शादी हो जाने के बाद उसे पंजीकृत भी करवाना पड़े। बाइबल के ज़माने में, जब कैसर औगूस्तुस ने आज्ञा दी कि सारे जगत के लोगों के “नाम लिखे जाएं” या पंजीकृत किए जाएँ, तो मरियम और यूसुफ अपना ‘नाम लिखवाने’ के लिए बैतलहम नगर गए।—लूका 2:1-5.

      8. यहोवा के साक्षी क्या नहीं करते, और क्यों?

      8 जब मसीही स्त्री-पुरुष कानून के मुताबिक शादी करते हैं, तो परमेश्‍वर की नज़र में उनकी शादी जायज़ ठहरती है। इसलिए, यहोवा के साक्षी एक-से-ज़्यादा कानूनी तरीकों से शादी नहीं करते। और ना ही वे अपनी शादी की 25वीं या 50वीं सालगिरह पर दोबारा शादी की शपथ लेते हैं। (मत्ती 5:37) (कुछ चर्च ऐसी शादियों को नहीं मानते जो कचहरी में या रिवाज़ के मुताबिक की जाती है, मगर जो कानूनी तौर पर जायज़ हैं। वे कहते हैं कि जब तक पादरी, शादी की रस्मों को पूरा नहीं करता या दूल्हा-दुलहन को पति-पत्नी करार नहीं देता, तब तक उसे शादी नहीं माना जा सकता है।) कुछ देशों में सरकार, यहोवा के एक साक्षी को शादियाँ करवाने का अधिकार देती है। अगर यह मुमकिन हो, तो वह भाई राज्य घर में ही शादी के भाषण के दौरान दूल्हा-दुलहन की शादी करवा सकता है। राज्य घर, सच्ची उपासना की जगह है और यहोवा परमेश्‍वर के ठहराए शादी के इंतज़ाम के बारे में भाषण देने की बिलकुल सही जगह है।

      9. (क) कानूनी शादी करने के बाद, एक मसीही जोड़ा क्या कर सकता है? (ख) शादी की तैयारियों में प्राचीन कैसे शामिल हो सकते हैं?

      9 कुछ और देशों में कानून यह माँग करता है कि एक जोड़ा या तो सरकारी कार्यालय में शादी करे या किसी सरकारी अधिकारी के सामने। मसीही अकसर इस तरह शादी करने के बाद उसी दिन या उसके अगले दिन अपनी शादी का भाषण राज्य घर में रखते हैं। (शादीशुदा जोड़ों को कानूनी शादी करने के बाद, बाइबल पर आधारित भाषण के लिए ज़्यादा दिन नहीं रुकना चाहिए, क्योंकि वे परमेश्‍वर और इंसानों की नज़र में, जिसमें मसीही कलीसिया भी शामिल है, शादीशुदा हैं।) अगर एक जोड़ा कानूनी शादी करने के बाद किसी राज्य घर में भाषण का इंतज़ाम करना चाहता है, तो उन्हें पहले वहाँ की कलीसिया की सेवा समिति के प्राचीनों से इसकी इजाज़त लेनी चाहिए। प्राचीनों को चाहिए कि वे इस बात को पक्का कर लें कि इस जोड़े का कलीसिया में अच्छा नाम है। इसके अलावा, उन्हें यह भी देखना चाहिए कि शादी कहीं ऐसे समय पर न रखा गया हो, जिससे हफ्ते की सभाओं या राज्य घर के दूसरे कार्यक्रमों में रुकावट पैदा हो जाए। (1 कुरिन्थियों 14:33, 40) उन्हें राज्य घर की सजावट से जुड़ी बातों पर भी ध्यान देना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि राज्य घर के इस्तेमाल की घोषणा सभा में की जानी चाहिए या नहीं।

      10. अगर कानूनी शादी करना ज़रूरी होता है, तो इसका भाषण पर क्या असर पड़ेगा?

      10 शादी में भाषण देनेवाला प्राचीन, स्नेह और गरिमा के साथ भाषण देने और आध्यात्मिक तौर पर हाज़िर लोगों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करेगा। अगर जोड़ा कानूनी शादी कर चुका है, तो प्राचीन अपने भाषण में बताएगा कि देश के कानून के मुताबिक उनकी शादी हो चुकी है। अगर जोड़े ने कानूनी शादी के वक्‍त शादी की शपथ नहीं ली थी, तो वे भाषण के दौरान ऐसा कर सकते हैं।c लेकिन अगर कानूनी शादी के वक्‍त उन्होंने शपथ ले ली थी, मगर फिर भी वे यहोवा और कलीसिया के सामने यह शपथ लेना चाहते हैं, तो वे ऐसा कर सकते हैं। उन्हें शपथ के शब्दों को भूतकाल में दोहराना चाहिए, ताकि हाज़िर लोगों को पता चल जाए कि उन्हें पति-पत्नी के नाते कुछ वक्‍त पहले ‘जोड़ा गया’ है और वे शादी की शपथ ले चुके हैं।—मत्ती 19:6; 22:21.

      11. कुछ जगहों पर शादी करने के लिए एक जोड़े को क्या करना होता है, और इससे शादी के भाषण पर क्या असर पड़ता है?

      11 कुछ जगहों पर कानून ऐसी कोई माँग नहीं करता कि जोड़ा, कोई रस्म निभाकर शादी करे। यहाँ तक कि उन्हें किसी सरकारी रजिस्ट्रार से अपनी शादी करवाने की भी ज़रूरत नहीं है। शादी करने के लिए उन्हें सिर्फ एक फॉर्म भरना पड़ता है और उस पर दस्तखत करके किसी अधिकारी को देना पड़ता है। इसके बाद उस फॉर्म को सरकारी रिकॉर्ड में रख दिया जाता है। इस तरह, वे समाज की नज़र में पति-पत्नी कहलाते हैं और फॉर्म पर दस्तखत करने की तारीख उनकी शादी की तारीख ठहरती है। जैसा पहले बताया गया था, यह जोड़ा एक प्रौढ़ मसीही भाई को रजिस्ट्रेशन के फौरन बाद, राज्य घर में शादी का भाषण देने के लिए कह सकता है। यह भाई अपने भाषण में मेहमानों को बताएगा कि यह जोड़ा अभी-अभी रजिस्ट्रेशन करके शादी कर चुका है। शादी की शपथ के सिलसिले में जो कदम उठाए जाने हैं, वे पैराग्राफ 10 और उसके फुटनोट के मुताबिक होने चाहिए। राज्य घर में हाज़िर सभी इस जोड़े की खुशी में शरीक होंगे और परमेश्‍वर के वचन से दी जानेवाली सलाहों से फायदा पाएँगे।—श्रेष्ठगीत 3:11.

      रिवाज़ के मुताबिक शादी और कानूनी शादी

      12. रिवाज़ के मुताबिक शादी करने का क्या मतलब है, और इस तरह शादी करनेवालों को क्या बढ़ावा दिया जाता है?

      12 कुछ देशों में लड़का-लड़की, रिवाज़ (या कबीले के कानूनों) के मुताबिक शादी करते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि दो लोग बगैर शादी के एक-साथ रहने लगते हैं। और ना ही हम ऐसी शादी (कॉमन-लॉ मैरिज) की बात कर रहे हैं, जिसमें स्त्री-पुरुष आपस में तय कर लेते हैं कि वे एक-साथ रहेंगे। इस इंतज़ाम को कुछ इलाकों में जायज़ ठहराया जाता है, मगर कुछ इलाकों में इसे शादी नहीं माना जाता है।d मगर हम बात कर रहे हैं ऐसे विवाह की, जिसमें उन रिवाज़ों के मुताबिक शादी की जाती है जिसे कानून और समाज दोनों मान्यता देते हैं। इस तरह की शादी में वधू-मूल्य देना या लेना शामिल हो सकता है, जिसके बाद ही जोड़ा कानूनन और बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक पति-पत्नी कहलाता है। सरकार ऐसी शादियों को कानूनी तौर पर जायज़ ठहराती है। इसके बाद, अकसर ऐसी शादियों को रजिस्टर करना मुमकिन होता है, और तब जाकर शादीशुदा जोड़े को सरकार से शादी का सर्टिफिकेट मिलता है। शादी रजिस्टर करवाने के बाद कोई उनकी शादी की मान्यता पर उँगली नहीं उठा सकता। और अगर पति गुज़र जाता है, तो उसकी जायदाद पर पत्नी और बच्चे का जो हक है, उसे कोई नहीं छीन सकता। इसलिए कलीसिया, रिवाज़ के मुताबिक शादी करनेवालों को बढ़ावा देती है कि वे अपनी शादी जल्द-से-जल्द रजिस्टर करवाएँ। दिलचस्पी की बात है कि मूसा की कानून-व्यवस्था के तहत, शादियों और बच्चों के जन्म को रिकॉर्ड किया जाता था।—मत्ती 1:1-16.

      13. रिवाज़ के मुताबिक शादी करने के बाद, शादी का भाषण देने का क्या मकसद होगा?

      13 इस तरह रिवाज़ के मुताबिक शादी करने के बाद, एक जोड़ा कानूनन पति-पत्नी कहलाता है। जैसा कि पहले बताया गया है, जो मसीही इस तरीके से शादी करते हैं, वे राज्य घर में शादी का भाषण रखने का चुनाव कर सकते हैं और साथ में शादी की शपथ भी ले सकते हैं। अगर ऐसा किया जाता है, तो भाषण देनेवाला भाई मेहमानों को बताएगा कि देश के कानून के मुताबिक, इस जोड़े की शादी हो चुकी है। इस तरह का भाषण सिर्फ एक ही बार दिया जाना चाहिए। यानी इस मामले में रिवाज़ के मुताबिक शादी, जिसे कानून मान्यता देता है, और बाइबल से दिया जानेवाला शादी का भाषण सिर्फ एक ही बार होता है। अगर शादी के बाद भाषण जितनी जल्दी रखा जाए, हो सके तो उसी दिन, तो इससे समाज में उस मसीही शादी को आदर की बात समझी जाएगी।

      14. ऐसे देशों में मसीही क्या कर सकते हैं, जहाँ रिवाज़ के मुताबिक शादी करना और कानूनी शादी करना, दोनों इंतज़ाम जायज़ हैं?

      14 कुछ देशों में जहाँ सरकार, रिवाज़ के मुताबिक की गयी शादियों को कानूनी मान्यता देती है, वहाँ पर एक और इंतज़ाम है। वह है कानूनी शादी का। यह शादी आम तौर पर एक सरकारी अधिकारी की मौजूदगी में की जाती है। इसमें शादी की शपथ लेना और रजिस्ट्री पर दस्तखत करना शामिल होता है। कुछ मसीही, रिवाज़ के मुताबिक शादी करने के बजाय कानूनी शादी करना पसंद करते हैं। लेकिन क्योंकि कानून दोनों इंतज़ामों को जायज़ ठहराती है, इसलिए मसीहियों के लिए इनमें से किसी एक तरीके से शादी करना काफी है। पैराग्राफ 9 और 10 में शादी के भाषण और शपथ के बारे में जो जानकारी दी गयी है, वह कानूनी शादी के लिए भी लागू होती है। ज़रूरी बात यह नहीं कि एक जोड़ा किस तरीके से शादी करता है, मगर यह है कि उनकी शादी, परमेश्‍वर और इंसान, दोनों की नज़र में आदर की बात समझी जाए।—लूका 20:25; 1 पतरस 2:13, 14.

      शादीशुदा ज़िंदगी में आदर बनाए रखिए

      15, 16. शादी के हर पहलू में आदर कैसे दिखाया जाना चाहिए?

      15 जब एक फारसी राजा की शादीशुदा ज़िंदगी में समस्या उठी, तो ममूकान नाम के उसके खास सलाहकार ने उसे एक फरमान जारी करने की सलाह दी, ताकि दूसरे शादीशुदा जोड़ों को ऐसी समस्या का सामना न करना पड़े। वह फरमान था: ‘सब पत्नियां अपने अपने पति का आदरमान करें।’ (एस्तेर 1:20) आज अपने पति का आदर करने के लिए मसीही पत्नी को किसी राजा से फरमान पाने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह खुद अपनी मरज़ी से अपने पति का आदर करना चाहती है। उसी तरह, मसीही पति भी ‘अपनी पत्नी का आदर करता है’ और उसकी प्रशंसा करता है। (1 पतरस 3:7; नीतिवचन 31:11, 30) शादीशुदा ज़िंदगी में आदर दिखाने के लिए कई साल रुकने की ज़रूरत नहीं है। उसे शुरू से ही ज़ाहिर किया जाना चाहिए, जी हाँ, शादी के दिन से ही।

      16 शादी के दिन, सिर्फ दूल्हा-दुलहन को ही आदर से पेश नहीं आना चाहिए। शादी का भाषण अगर एक मसीही प्राचीन दे रहा है, तो उसके भाषण में भी आदर झलकना चाहिए। भाषण, शादी के जोड़े को ध्यान में रखकर दिया जाना चाहिए। यह भाषण एक तरह से शादी के बंधन में बँधनेवाले जोड़े का आदर करता है, इसलिए प्राचीन को अपने भाषण में हँसी-मज़ाक नहीं करना चाहिए और ना ही उसमें कथा-कहानियाँ या “दुनियावी बुद्धि” शामिल करनी चाहिए। उसे दूल्हे या दुलहन की ज़ाती ज़िंदगी से जुड़ी ऐसी कोई भी बात नहीं बतानी चाहिए जिससे जोड़े और सुननेवालों को शर्मिंदगी महसूस हो। इसके बजाय, उसे स्नेह के साथ भाषण देने और सबका हौसला बढ़ाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। उसे लोगों का ध्यान, विवाह का बंधन रचनेवाले परमेश्‍वर पर और उसकी बेहतरीन सलाहों पर खींचना चाहिए। जी हाँ, जब प्राचीन अपने भाषण से मौके की गरिमा बनाए रखेगा, तो इससे यहोवा परमेश्‍वर की महिमा होगी।

      17. मसीहियों को अपनी शादी के मामले में देश के कानूनों का आदर क्यों करना चाहिए?

      17 आपने गौर किया होगा कि इस लेख में कानूनी तौर पर शादी करने के बारे में बहुत सारी जानकारी दी गयी हैं। कुछ बातें शायद आपके इलाके में सीधे-सीधे लागू न हों। फिर भी, हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यहोवा के साक्षियों की शादियाँ, कैसर की माँगों, यानी देश के कानून के मुताबिक हों। (लूका 20:25) पौलुस ने हमें उकसाया: “हर एक का हक्क चुकाया करो, जिसे कर चाहिए, उसे कर दो; जिसे महसूल चाहिए, उसे महसूल दो; . . . जिस का आदर करना चाहिए उसका आदर करो।” (रोमियों 13:7) जी हाँ, यह बिलकुल सही है कि मसीही अपने शादी के दिन से ही इंसानी सरकार और उसके कानूनों का आदर करें, जिसे परमेश्‍वर ने हम पर अधिकारी ठहराया है।

      18. शादी का एक और पहलू क्या है जिस पर ध्यान देना ज़रूरी है, और इस विषय पर ज़्यादा जानकारी हम कहाँ पा सकते हैं?

      18 कई मसीही, शादी के बाद दावत रखते हैं। याद कीजिए कि लेख की शुरूआत में हमने पढ़ा कि यीशु भी ऐसी ही एक दावत में हाज़िर था। अगर दूल्हा-दुलहन ऐसी दावत रखते हैं, तो फिर बाइबल की कौन-सी सलाह उनकी मदद कर सकती है, ताकि इस दावत से भी परमेश्‍वर की महिमा हो और उनका और मसीही कलीसिया का नाम खराब न हो? अगला लेख इसी विषय पर चर्चा करेगा।e (w06 10/15)

  • अपनी ज़िंदगी में विश्‍वास का सबूत दीजिए
    प्रहरीदुर्ग—2006 | नवंबर 1
    • अपनी ज़िंदगी में विश्‍वास का सबूत दीजिए

      “विश्‍वास . . . यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।”—याकूब 2:17.

      1. शुरू के मसीहियों ने विश्‍वास और कामों, दोनों पर क्यों ध्यान दिया?

      शुरू के मसीहियों ने जिस तरीके से अपनी ज़िंदगी बितायी, उससे उन्होंने अपने विश्‍वास का सबूत दिया था। शिष्य याकूब ने सभी मसीहियों को उकसाते हुए कहा: “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं।” फिर उसने आगे कहा: “जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्‍वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।” (याकूब 1:22; 2:26) उसके ये शब्द लिखने के करीब 35 साल बाद, कई मसीही अपने सही कामों से लगातार अपने विश्‍वास का सबूत दे रहे थे। मगर अफसोस, कुछ मसीही ऐसा नहीं कर रहे थे। जैसे, यीशु ने स्मुरना की कलीसिया की तो तारीफ की, मगर सरदीस की कलीसिया के कई मसीहियों से उसने कहा: “मैं तेरे कामों को जानता हूं, कि तू जीवता तो कहलाता है, पर, है मरा हुआ।”—प्रकाशितवाक्य 2:8-11; 3:1.

      2. मसीहियों को खुद से अपने विश्‍वास के बारे में कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

      2 इसलिए यीशु ने सरदीस के मसीहियों को और उन सभी को भी जो आगे चलकर उसके इन शब्दों को पढ़ते, बढ़ावा दिया कि वे सच्चाई के लिए पहले जैसा प्यार दिखाएँ और आध्यात्मिक मायने में जागते रहें। (प्रकाशितवाक्य 3:2, 3) हममें से हरेक जन खुद से पूछ सकता है: ‘मेरे अपने कामों से क्या ज़ाहिर होता है? क्या ये साफ दिखाते हैं कि मैं अपने विश्‍वास का सबूत देने में अपना भरसक कर रहा हूँ, यहाँ तक कि ज़िंदगी के उन दायरों में भी जिनका प्रचार और कलीसिया की सभाओं के साथ कोई सीधा ताल्लुक नहीं?’ (लूका 16:10) वैसे तो इसमें कई बातें शामिल हैं, लेकिन फिलहाल हम सिर्फ एक पर चर्चा करेंगे। वह है पार्टियाँ, जिनमें शादी की दावतें भी शामिल हैं।

      छोटी-मोटी पार्टियाँ

      3. पार्टियों में शरीक होने के बारे में बाइबल क्या कहती है?

      3 जब हमें मेहमाननवाज़ मसीही पार्टी में बुलाते हैं, तो हमें खुशी होती है। और क्यों न हो, आखिर हमारा परमेश्‍वर, यहोवा “आनंदित परमेश्‍वर” जो है और वह चाहता है कि उसके सेवक आनंद मनाएँ। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) उसी ने सुलैमान के ज़रिए बाइबल में यह सच्चाई दर्ज़ करवायी: “मैं ने आनन्द को सराहा, क्योंकि सूर्य के नीचे मनुष्य के लिये खाने-पीने और आनन्द करने को छोड़ और कुछ भी अच्छा नहीं, क्योंकि यही उसके जीवन भर . . . उसके परिश्रम में उसके संग बना रहेगा।” (सभोपदेशक 3:1, 4, 13; 8:15) ऐसा आनंद उस वक्‍त लिया जा सकता है, जब पूरा परिवार साथ बैठकर खाना खाता है या फिर तब जब कुछ सच्चे उपासक मिलकर छोटी-मोटी पार्टियाँ रखते हैं।—अय्यूब 1:4, 5, 18; लूका 10:38-42; 14:12-14.

      4. जो शख्स पार्टी का इंतज़ाम करता है, उसे किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

      4 अगर आप ऐसी पार्टी रखने की सोच रहे हैं और अगर इसकी पूरी ज़िम्मेदारी आप पर है, तो आपको पहले से, बहुत सोच-समझकर योजना बनानी चाहिए। ऐसा करना उस वक्‍त भी ज़रूरी है जब आप सिर्फ कुछ गिने-चुने भाई-बहनों को खाने पर और गप्पे मारने के लिए बुलाते हैं। (रोमियों 12:13) आपको ध्यान रखना चाहिए कि “सारी बातें सभ्यता” से भी हों और ‘ऊपर से आनेवाले ज्ञान’ या बुद्धि के मुताबिक भी। (1 कुरिन्थियों 14:40; याकूब 3:17) प्रेरित पौलुस ने लिखा: “तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिये करो। तुम [किसी] के लिये ठोकर के कारण [न] बनो।” (1 कुरिन्थियों 10:31, 32) पार्टी का इंतज़ाम करते वक्‍त, हमें किन पहलुओं पर खास ध्यान देने की ज़रूरत है? इस सवाल पर पहले से गौर करने से हम यह पक्का कर पाएँगे कि हम और हमारे मेहमान जो कुछ करें, उससे हमारा विश्‍वास ज़ाहिर हो।—रोमियों 12:2.

      पार्टी कैसी होगी?

      5. पार्टी में शराब रखने और संगीत बजाने के बारे में मेज़बानों को क्यों सोच-समझकर फैसला करना चाहिए?

      5 कई मेज़बान खुद को इस उलझन में पाते हैं कि पार्टी में शराब रखें या न रखें। दरअसल, ऐसे मौकों को खुशनुमा बनाने के लिए शराब की ज़रूरत नहीं होती। याद कीजिए कि जब यीशु का उपदेश सुनने के लिए लोगों की एक बड़ी भीड़ आयी थी, तब उसने चमत्कार करके उन्हें रोटी और मछली खिलायी थी। बाइबल यह नहीं कहती कि उसने चमत्कार करके उन्हें दाखमधु भी पिलाया, हालाँकि हम जानते हैं कि वह ऐसा करने की काबिलीयत रखता था। (मत्ती 14:14-21) फिर भी, अगर आप पार्टी में शराब देने का फैसला करते हैं, तो उसे सही मात्रा में दीजिए। साथ ही, जो शराब नहीं पीते, उनके लिए कुछ शरबत वगैरह का इंतज़ाम कीजिए। (1 तीमुथियुस 3:2, 3, 8; 5:23; 1 पतरस 4:3) इसके अलावा, ध्यान रखिए कि किसी पर भी ऐसा शराब पीने का दबाव न डाला जाए, जो उन्हें “सर्प की नाईं” डस सकता है। (नीतिवचन 23:29-32) संगीत या गाने-बजाने के बारे में क्या? अगर आपकी पार्टी में संगीत होगा, तो बेशक आपको ध्यान से ऐसे गाने चुनने चाहिए जिनकी न सिर्फ धुनें अच्छी हों, बल्कि बोल भी अच्छे हों। (कुलुस्सियों 3:8; याकूब 1:21) बहुत-से मसीहियों ने पाया है कि ऐसे मौकों पर किंगडम मेलडीज़ लगाने या फिर मिलकर राज्य गीत गाने से माहौल में रौनक आ जाती है। (इफिसियों 5:19, 20) और हाँ, संगीत की आवाज़ भी धीमी रखिए, ताकि न सिर्फ हाज़िर लोगों को आपस में बातचीत करने में आसानी हो, बल्कि पड़ोसियों को भी तकलीफ न हो।—मत्ती 7:12.

      6. पार्टी में होनेवाली बातचीत या दूसरे कामों में मेज़बान कैसे दिखा सकता है कि वह विश्‍वास के मुताबिक जीता है?

      6 पार्टियों में मसीही कई तरह के विषयों पर चर्चा कर सकते हैं, कुछ जानकारी पढ़कर सुना सकते हैं, या फिर कुछ दिलचस्प अनुभव बता सकते हैं। लेकिन अगर एक मेज़बान जान जाए कि ऐसे मौके पर बातचीत मसीही स्तरों की हद से बाहर जा रहा है, तो वह बड़ी कुशलता के साथ बातचीत का रुख वापस अच्छे विषयों की तरफ मोड़ सकता है। उसे इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि एक ही इंसान बोलता न रहे, जिससे दूसरों को कुछ कहने का मौका ही न मिले। अगर वह ऐसा होते हुए देखता है, तो वह समझ-बूझ के साथ बीच में टोक सकता है और दूसरों को भी चर्चा में शामिल कर सकता है। यहाँ तक कि मेज़बान, बच्चों और जवानों को अपनी बात कहने के लिए भी बोल सकता है, या फिर एक ऐसा विषय चुन सकता है जिसमें सभी अपनी-अपनी राय ज़ाहिर कर सकें। ऐसा करने से बच्चे-बूढ़े सभी पार्टी का लुत्फ उठा पाएँगे। एक मेज़बान होने के नाते अगर आप पार्टी में बुद्धि और व्यवहार-कुशलता से काम लें, तो आपकी “कोमलता” या समझदारी, सभी मेहमानों पर ‘प्रगट होगी।’ (फिलिप्पियों 4:5) वे भाँप पाएँगे कि आप अपने विश्‍वास के मुताबिक जीते हैं और ज़िंदगी के हर पहलू में इसका आप पर असर है।

      शादी का समारोह और दावत

      7. शादी के समारोह और दावतों की योजना बनाने में खास मेहनत की ज़रूरत क्यों पड़ती है?

      7 खुशियाँ मनाने का एक खास मौका होता है, मसीही शादियाँ। पुराने ज़माने के परमेश्‍वर के सेवक, यहाँ तक कि यीशु और उसके चेले भी ऐसे खुशी के मौकों में शरीक हुए थे और उन्होंने दावत का मज़ा भी उठाया था। (उत्पत्ति 29:21, 22; यूहन्‍ना 2:1, 2) मगर हाल के समय में हुए वाकये दिखाते हैं कि शादी-ब्याह के इंतज़ाम की योजना बनाने में एक मसीही को खास मेहनत करने की ज़रूरत है। तब कहीं जाकर वह ज़ाहिर कर पाएगा कि उसने समझदारी से काम लिया है और मसीही स्तरों के मुताबिक संयम रखा है। फिर भी, शादियाँ ज़िंदगी के आम पहलू हैं, जिनमें एक मसीही को अपने विश्‍वास का सबूत देने का मौका मिलता है।

      8, 9. कई शादियों के दस्तूर कैसे दिखाते हैं कि 1 यूहन्‍ना 2:16, 17 में लिखी बात एकदम सच है?

      8 बहुत-से लोग, जो परमेश्‍वर के सिद्धांतों को न तो जानते हैं और ना ही इनके मुताबिक चलना चाहते हैं, वे शादी को एक अलग ही नज़रिए से देखते हैं। उन्हें लगता है कि इस मौके पर हद पार करने में कोई हर्ज़ नहीं, या फिर सभी कर रहे हैं तो वे भी ऐसा कर सकते हैं। यूरोप की एक पत्रिका में, एक नयी-नवेली दुलहन ने बताया कि उसकी शादी कैसे “शाही” ठाठ-बाट के साथ हुई थी। उसने कहा: ‘हम एक आलीशान बग्घी में थे, जिन्हें खींचने के लिए चार घोड़े थे। फिर हमारे पीछे और भी कई बग्घियाँ थीं जिन्हें 12 घोड़े खींच रहे थे। एक में बैंड-बाजेवाले भी थे जो पूरे रास्ते संगीत बजा रहे थे। और दावत की तो बस पूछो ही मत! एक-से-बढ़कर-एक लज़ीज़ खाना परोसा गया था और कमाल का संगीत बज रहा था। सारा इंतज़ाम लाजवाब था! मैं एक दिन के लिए रानी बनना चाहती थी और मेरी यह हसरत पूरी हुई।’

      9 हालाँकि अलग-अलग जगह पर शादी करने का दस्तूर एक-जैसा नहीं होता, मगर इस स्त्री की भावना साफ दिखाती है कि प्रेरित यूहन्‍ना की लिखी यह बात एकदम सच है: “जो कुछ संसार में है, अर्थात्‌ शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।” क्या आप कभी एक ऐसे प्रौढ़ मसीही जोड़े की कल्पना कर सकते हैं जो चाहता हो कि उनकी शादी भी “शाही” ठाठ-बाट से हो, साथ ही जिसमें शानदार दावत हो? नहीं ना। इसके बजाय, उनकी शादी की योजनाओं से साफ झलकना चाहिए कि उन्होंने इस सलाह को माना है: “जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।”—1 यूहन्‍ना 2:16, 17.

      10. (क) बिना ज़्यादा धूमधाम के शादी रखने के लिए, योजना बनाना क्यों ज़रूरी है? (ख) दोस्तों-रिश्‍तेदारों को न्यौता देने के सिलसिले में फैसला कैसे लिया जाना चाहिए?

      10 इस मामले में मसीही जोड़ों को न सिर्फ समझ से काम लेना चाहिए, बल्कि कारगर कदम भी उठाने चाहिए। इसमें बाइबल उनकी मदद कर सकती है। यह सच है कि शादी का दिन उनकी ज़िंदगी का एक बेहद खास दिन होता है, मगर वे जानते हैं कि यह तो उनकी शादी-शुदा ज़िंदगी की बस एक शुरूआत है और उनके आगे हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा है। उनके लिए यह ज़रूरी नहीं कि वे अपनी शादी में एक बड़ी और आलीशान दावत रखें। लेकिन अगर वे दावत रखने का चुनाव करते हैं, तो उन्हें पहले से न सिर्फ पार्टी का सारा खर्च जोड़ लेना चाहिए, बल्कि पार्टी कैसी होगी इस बारे में भी सोच लेना चाहिए। (लूका 14:28) बाइबल के मुताबिक, शादी के बाद की उनकी मसीही ज़िंदगी में पति मुखिया होगा। (1 कुरिन्थियों 11:3; इफिसियों 5:22, 23) तो यह लाज़िमी है कि शादी की दावत का पूरा इंतज़ाम करने की खास ज़िम्मेदारी दूल्हे की है। बेशक, वह अपनी होनेवाली पत्नी का लिहाज़ करते हुए उसके साथ कई मामलों पर सलाह-मशविरा करेगा, जैसे वे शादी के लिए कितने मेहमानों को न्यौता दे सकते हैं। हो सकता है, सभी दोस्तों-रिश्‍तेदारों को न्यौता देना उनके लिए मुमकिन न हो, या फिर ऐसा करना कारगर न हो। ऐसे में, उन्हें सोच-समझकर और हद में रहकर फैसले करने चाहिए। जोड़े को इस बात का भरोसा होना चाहिए कि अगर वे कुछ संगी मसीहियों को न्यौता नहीं दे पाते, तो ये मसीही उनके हालात को समझेंगे और बुरा नहीं मानेंगे।—सभोपदेशक 7:9.

      ‘भोज का प्रधान’

      11. शादी में “भोज के प्रधान” की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?

      11 अगर एक जोड़ा अपनी शादी की खुशी मनाने के लिए दावत रखने का फैसला करता है, तो वे मौके की गरिमा बनाए रखने के लिए क्या कर सकते हैं? यहोवा के साक्षियों ने कई सालों से अपनी शादी में एक पहलू शामिल किया है, क्योंकि उन्होंने पाया है कि ऐसा करना बुद्धिमानी है। इस पहलू का ज़िक्र काना की उस शादी में किया गया था, जिसमें यीशु हाज़िर हुआ था। वह पहलू है, ‘भोज का प्रधान,’ जो बेशक एक ज़िम्मेदार संगी उपासक था। (यूहन्‍ना 2:9, 10) उसी तरह, बुद्धि से काम लेनेवाला दूल्हा, एक आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ मसीही भाई को भोज के प्रधान की ज़िम्मेदारी सौंपेगा। भोज के प्रधान का यह फर्ज़ बनता है कि वह पहले दूल्हे की ख्वाहिशें और पसंद-नापसंद जान ले और फिर उन्हीं के मुताबिक, शादी की दावत से पहले और उसके दौरान सब काम करे।

      12. दूल्हे को शराब देने के बारे में किन बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है?

      12 जैसे कि हमने पैराग्राफ 5 में चर्चा की, कुछ जोड़े अपनी शादी की दावत में शराब न देने का चुनाव करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि कहीं कोई हद-से-ज़्यादा शराब न पी ले, और ऐसा कोई कदम न उठा ले, जिससे उस मौके की खुशी भंग हो जाए और शादी को कामयाब बनाने की उनकी सारी मेहनत पर पानी फिर जाए। (रोमियों 13:13; 1 कुरिन्थियों 5:11) दूसरी तरफ, अगर एक जोड़ा अपनी शादी की दावत में शराब रखने का चुनाव करता है, तो दूल्हे को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि शराब ठीक मात्रा में बाँटी जाए। गौर कीजिए कि काना की जिस शादी में यीशु हाज़िर हुआ था, उसमें मेहमानों को दाखरस दिया गया था और यीशु ने भी एकदम बढ़िया किस्म के दाखरस का इंतज़ाम किया था। दिलचस्पी की बात है कि भोज के प्रधान ने दूल्हे से कहा: “हर एक मनुष्य पहिले अच्छा दाखरस देता है और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तू ने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।” (यूहन्‍ना 2:10) इसमें शक नहीं कि बढ़िया किस्म के दाखरस का इंतज़ाम करके यीशु पियक्कड़पन को बढ़ावा नहीं दे रहा था, क्योंकि वह खुद इसके सख्त खिलाफ था। (लूका 12:45, 46) जब प्रधान ने बढ़िया किस्म के दाखरस पर अपनी हैरानी ज़ाहिर की, तब उसने यह भी कहा कि उसने कई शादियों में मेहमानों को शराब के नशे में धुत्त होते देखा है। (प्रेरितों 2:15; 1 थिस्सलुनीकियों 5:7) इसलिए दूल्हे को और जिस भरोसेमंद मसीही को वह भोज का प्रधान ठहराता है, उसे इस बात का पूरा-पूरा ख्याल रखना चाहिए कि सभी हाज़िर लोग इस साफ हिदायत को मानें: “दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपन होता है।”—इफिसियों 5:18; नीतिवचन 20:1; होशे 4:11.

      13. अगर एक जोड़ा अपनी शादी की दावत में संगीत बजाने का चुनाव करता है तो उन्हें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए, और क्यों?

      13 दूसरी पार्टियों की तरह, अगर शादी की दावत में भी संगीत बजाया जाता है, तो उसकी आवाज़ पर लगातार ध्यान रखा जाना चाहिए। संगीत की आवाज़ इतनी तेज़ नहीं होनी चाहिए कि लोगों को एक-दूसरे की बात सुनने में तकलीफ हो। एक मसीही प्राचीन ने कहा: “जैसे-जैसे शाम ढलती है, लोग और भी जोश के साथ बात करने लगते हैं या नाच-गाना शुरू हो जाता है। ऐसे में, कभी-कभार संगीत की आवाज़ तेज़ हो जाती है। जो संगीत शुरू-शुरू में धीमी आवाज़ से शुरू हुआ था, वही संगीत कुछ वक्‍त बाद इतना तेज़ हो जाता है कि लोगों का आपस में बात करना मुश्‍किल हो जाता है। दरअसल, शादी की दावत अपने भाई-बहनों के साथ मेल-जोल रखने का एक बढ़िया मौका होता है। इसलिए यह बड़े अफसोस की बात होगी, अगर तेज़ संगीत की वजह से भाई-बहन इस मौके का मज़ा न ले पाएँ!” इसलिए ऐसे समय में भी, दूल्हे और भोज के प्रधान को ज़िम्मेदाराना तरीके से पेश आना चाहिए। चाहे गाने-बजानेवाले किराए पर लाए गए हों या नहीं, दूल्हे और प्रधान को उनके हाथों यह ज़िम्मा नहीं सौंप देना चाहिए कि किस तरह के संगीत बजाए जाएँ और उसकी आवाज़ कितनी रखें। पौलुस ने लिखा: “वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो।” (कुलुस्सियों 3:17) शादी खत्म होने के बाद, जब सभी मेहमान अपने-अपने घर लौट जाएँगे, तो क्या वे संगीत के बारे में याद करके यह कह सकेंगे कि हाँ, जोड़े ने शादी के किसी भी पहलू में यीशु के नाम पर आँच नहीं आने दी? उन्हें ऐसा ही महसूस होना चाहिए।

      14. मसीहियों के लिए शादी की कौन-सी बातें, मीठी यादें बनकर रह जाती हैं?

      14 जी हाँ, जिन शादियों में सारे काम तरतीब से होते हैं, वही शादियाँ हमेशा याद रहती हैं। ऐडम और एडीटा, जिनकी शादी को 30 साल हो गए हैं, वे एक शादी के बारे में याद करके कहते हैं: “मसीहियों की शादी में जैसा समाँ होना चाहिए, वैसा ही समाँ हमने वहाँ महसूस किया था। यहोवा की स्तुति में गीत गाए जा रहे थे। साथ ही, मनोरंजन के दूसरे अच्छे कार्यक्रम भी रखे गए थे। नाच-गाने और संगीत को ज़्यादा अहमियत नहीं दी गयी थी। माहौल काफी खुशनुमा और हौसला बढ़ानेवाला था। सारा इंतज़ाम बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक था।” वाकई, दूल्हा-दुलहन जिस तरीके से अपनी शादी की योजना बनाते हैं, उससे वे अपने विश्‍वास का सबूत दे सकते हैं।

      शादी के तोहफे

      15. शादी का तोहफा देने के सिलसिले में बाइबल की किस सलाह पर अमल किया जा सकता है?

      15 कई देशों में, दोस्तों-रिश्‍तेदारों का दूल्हा-दुलहन को शादी के तोहफे देना आम बात है। अगर आप किसी को शादी का तोहफा देने की सोच रहे हैं, तो आपको क्या बात मन में रखनी चाहिए? प्रेरित यूहन्‍ना की बात को याद कीजिए, जिसने ‘जीविका के घमंड’ यानी अपनी धन-संपत्ति का बढ़-चढ़कर दिखावा करने के बारे में लिखा था। उसने यह नहीं कहा कि ऐसा दिखावा वे मसीही करते हैं जो अपने कामों से अपने विश्‍वास का सबूत देते हैं, बल्कि उसने बताया कि ऐसा दिखावा उस “संसार” में पाया जाता है जो ‘मिटता जा रहा है।’ (1 यूहन्‍ना 2:16, 17) ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखी यूहन्‍ना की इस बात को ध्यान में रखते हुए, क्या नए शादीशुदा जोड़े को हर तोहफा देनेवाले का नाम ऐलान करना चाहिए? मकिदुनिया और अखाया के मसीहियों ने यरूशलेम के भाइयों की खातिर दान दिया था, मगर बाइबल यह नहीं बताती है कि उनके नाम ऐलान किए गए थे। (रोमियों 15:26) वैसे ही, तोहफा देनेवाले कई मसीही अपनी पहचान नहीं देना चाहते हैं क्योंकि वे बेवजह दूसरों की नज़र में नहीं आना चाहते। इस सिलसिले में, मत्ती 6:1-4 में दी यीशु की सलाह पर गौर कीजिए।

      16. नए शादीशुदा जोड़े, शादी के तोहफे कबूल करने के मामले में दूसरों को ठेस पहुँचाने से कैसे दूर रह सकते हैं?

      16 तोहफे देनेवालों के नाम ऐलान करने से दूसरों में ‘होड़ लगाने’ की भावना भड़क सकती है कि किसका तोहफा सबसे अच्छा या महँगा है। इसलिए नया शादीशुदा मसीही जोड़ा बुद्धि से काम लेते हुए, तोहफे देनेवालों के नाम ऐलान नहीं करेगा, ताकि ऐसे लोगों को शर्मिंदा महसूस न हो जिनकी शायद कुछ भी देने की हैसियत नहीं। (गलतियों 5:26, NW; 6:10) माना कि दूल्हा-दुलहन का यह जानना गलत नहीं कि फलाँ तोहफा किसने दिया है। यह वे तोहफे के साथ मिलनेवाले कार्ड से जान सकते हैं। मगर उन्हें यह कार्ड सबके सामने पढ़कर नहीं सुनाना चाहिए। जी हाँ, तोहफे खरीदने, देने या कबूल करने जैसे निजी मामलों में भी हम अपने विश्‍वास का सबूत दे सकते हैं।a

      17. अपने विश्‍वास और कामों के बारे में मसीहियों का क्या लक्ष्य होना चाहिए?

      17 अपने विश्‍वास का सबूत देने में सिर्फ नैतिक रूप से शुद्ध ज़िंदगी जीना, मसीही सभाओं में हाज़िर होना और प्रचार में हिस्सा लेना ही शामिल नहीं। आइए, हम इस बात को भी ध्यान में रखें कि हमारा विश्‍वास ऐसा हो जो हमारी ज़िंदगी के हर पहलू पर असर करे। जी हाँ, हम ज़िंदगी के हर दायरे में, जिसमें ऊपर बताए मौके भी शामिल हैं, अपना हर काम ‘पूरा करके,’ अपना विश्‍वास ज़ाहिर कर सकते हैं।—प्रकाशितवाक्य 3:2.

      18. यूहन्‍ना 13:17 में लिखे शब्द मसीही शादियों और दावतों के मामले में कैसे सच साबित हो सकते हैं?

      18 यीशु ने अपने वफादार प्रेरितों के पाँव धोकर, जो कि छोटे दर्जे का काम समझा जाता है, उनके लिए एक अच्छी मिसाल कायम की। इसके बाद उसने उनसे कहा: “तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।” (यूहन्‍ना 13:4-17) आज, हम जहाँ रहते हैं, वहाँ शायद घर आए मेहमानों के पाँव धोने का रिवाज़ न हो और ना ही ऐसा करने की ज़रूरत पड़े। मगर जैसे हमने इस लेख में चर्चा की, ज़िंदगी के ऐसे और भी कई पहलू हैं, जिनमें हम दूसरों के साथ प्यार और लिहाज़ के साथ पेश आकर अपने विश्‍वास का सबूत दे सकते हैं, जैसे कि पार्टियाँ और शादियाँ। जी हाँ, चाहे हम दूल्हा-दुलहन हों या फिर मेहमान, आइए हम शादी के समारोह और उसके बाद होनेवाली दावत में अपने कामों के ज़रिए अपने विश्‍वास का सबूत दें। (w06 10/15)

      [फुटनोट]

      a शादी के समारोह और दावत के दूसरे पहलुओं की चर्चा अगले लेख में की गयी है, जिसका शीर्षक है: “अपने शादी के दिन की खुशी और गरिमा बढ़ाइए।”

      आप क्या जवाब देंगे?

      आप इन मामलों में अपने विश्‍वास का सबूत कैसे दे सकते हैं:

      • पार्टी का इंतज़ाम करते वक्‍त।

      • शादी या दावत की योजना बनाते वक्‍त।

      • शादी का तोहफा देते या कबूल करते वक्‍त।

      [पेज 17 पर तसवीर]

      सिर्फ गिने-चुने लोगों को न्यौता देते वक्‍त भी, ‘ऊपर से आनेवाले ज्ञान’ या बुद्धि के मुताबिक फैसले कीजिए

  • अपने शादी के दिन की खुशी और गरिमा बढ़ाइए
    प्रहरीदुर्ग—2006 | नवंबर 1
    • अपने शादी के दिन की खुशी और गरिमा बढ़ाइए

      गॉर्डन नाम के एक मसीही की शादी को 60 साल बीत चुके हैं। वह कहता है: “मेरी शादी का दिन, मेरी ज़िंदगी का सबसे खास और खुशियों भरा दिन था।” आखिर वह क्या बात है, जिससे गॉर्डन जैसे सच्चे मसीहियों के लिए शादी का दिन, उनकी ज़िंदगी का सबसे खास दिन बन जाता है? यह वह दिन होता है जब एक दूल्हा या दुलहन उन दो व्यक्‍तियों के सामने पवित्र शपथ लेते हैं, जिनसे वे दिलो-जान से प्यार करते हैं। वे हैं, उसका होनेवाला पति या पत्नी और यहोवा परमेश्‍वर। (मत्ती 22:37; इफिसियों 5:22-29) जी हाँ, जब दो मसीही शादी करने की सोचते हैं, तो वे न सिर्फ शादी के दिन को खुशियों से भरना चाहते हैं, बल्कि शादी की शुरूआत करनेवाले परमेश्‍वर का भी आदर करना चाहते हैं।—उत्पत्ति 2:18-24; मत्ती 19:5, 6.

      एक दूल्हा खुशी के मौके की गरिमा कैसे बढ़ा सकता है? दुलहन अपने पति और यहोवा का आदर करने के लिए क्या कर सकती है? शादी में हाज़िर नाते-रिश्‍तेदार और दूसरे मेहमान, खुशी के इस मौके को और भी हसीन कैसे बना सकते हैं? बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर गौर करने से हमें इन सवालों के जवाब जानने में मदद मिलेगी। और उन सिद्धांतों पर अमल करने से हम ऐसी समस्याओं से बचेंगे जिनसे इस खास मौके की अहमियत घट सकती हैं।

      किसकी ज़िम्मेदारी है?

      कई देशों में, यहोवा का एक साक्षी, सरकार की तरफ से दूल्हा-दुलहन की शादी करवाता है। लेकिन अगर एक देश का कानून माँग करता है कि शादी की रस्म को शादी करवानेवाले एक मजिस्ट्रेट को ही पूरी करनी चाहिए, तब भी शादी का जोड़ा बाइबल पर आधारित भाषण का इंतज़ाम कर सकता है। आम तौर पर इस भाषण में, दूल्हे से कहा जाता है कि वह परिवार का मुखिया होने की उस ज़िम्मेदारी के बारे गहराई से सोचे, जो परमेश्‍वर ने पतियों को दी है। (1 कुरिन्थियों 11:3) तो इसका मतलब यह हुआ कि शादी के सारे इंतज़ाम करने की खास ज़िम्मेदारी भी दूल्हे की ही होती है। बेशक उसे शादी के समारोह और उसके बाद की दावत का पूरा बंदोबस्त पहले से करना चाहिए। मगर यह सब करना दूल्हे के लिए एक चुनौती बन सकती है। वह क्यों?

      इसकी एक वजह यह है कि दुलहन या दूल्हा-दुलहन के रिश्‍तेदार, दूल्हे पर अपनी-अपनी मरज़ी के मुताबिक शादी की योजना बनाने का दबाव डाल सकते हैं। रोडॉलफो, जिसने कई लोगों की शादियाँ करवायी हैं, कहता है: “कभी-कभी दूल्हे पर रिश्‍तेदारों का काफी दबाव आता है, खासकर तब जब वे शादी की दावत का खर्च उठाने में मदद दे रहे होते हैं। शादी के समारोह और दावत में क्या-क्या किया जाना चाहिए, इस बारे में वे शायद अपनी राय थोपने की कोशिश करें। इससे दूल्हे का अनादर होता है, क्योंकि बाइबल के मुताबिक इस मौके की सारी ज़िम्मेदारी उसी की होती है।”

      मैक्स, जो पिछले 35 से भी ज़्यादा सालों से शादियाँ करवाता आया है, कहता है: “मैंने कई जगहों पर एक चलन देखा है कि शादी के सारे इंतज़ामों का फैसला दुलहन करती है और दूल्हे को कुछ भी कहने का मौका तक नहीं दिया जाता।” डेविड ने भी कई शादियाँ करवायी हैं। वह कहता है: “दूल्हे को शायद ऐसे बड़े-बड़े समारोह में अगुवाई करने की आदत न हो, इसलिए शादी की ज़्यादातर तैयारियों में वे शामिल होना पसंद नहीं करते।” ऐसे में दूल्हा किस तरह अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा सकता है?

      बातचीत से खुशी बढ़ती है

      अगर एक दूल्हा, शादी की तैयारी करने की अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभाना चाहता है, तो यह ज़रूरी है कि वह शादी के इंतज़ाम में शामिल सभी लोगों के साथ खुलकर बातचीत करे। बाइबल साफ-साफ कहती है: “बिना परामर्श के योजनायें विफल होती है।” (नीतिवचन 15:22, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसलिए अगर एक दूल्हा अपनी होनेवाली पत्नी, दोनों परिवारों और दूसरे ऐसे लोगों के साथ शादी की तैयारियों के सिलसिले में चर्चा करे, जो उसे बाइबल से बढ़िया सलाह दे सकते हैं, तो उसकी योजनाओं के विफल होने की गुंजाइश काफी हद तक कम हो सकती है।

      जी हाँ, शादी करनेवाले जोड़े को सबसे पहले आपस में शादी की सारी योजनाओं और गुंजाइशों की चर्चा कर लेनी चाहिए। क्यों? इसका जवाब जानने के लिए, आइवन और उसकी पत्नी, डेलविन की बातें सुनिए। इन दोनों की परवरिश एकदम अलग-अलग माहौल में हुई थी, फिर भी वे कई सालों से खुशी-खुशी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी बिता रहे हैं। आइवन अपनी शादी की योजनाओं को याद करते हुए कहता है: “मैंने शादी धूमधाम से करने की पक्की योजना बना ली थी। जैसे, मैं अपनी शादी की दावत में अपने सभी दोस्तों को बुलाऊँगा, शादी का एक केक बनवाऊँगा और मेरी दुलहन शादी के दिन सफेद गाऊन पहनेगी। मगर डेलविन ने तो कुछ और ही सोच रखा था। वह चाहती थी कि हमारी शादी बिलकुल सीधे-सादे ढंग से हो, यहाँ तक कि केक भी न हो। यही नहीं, वह सफेद गाऊन के बजाय, सादे कपड़े पहनना चाहती थी।”

      इस जोड़े ने अपनी समस्या का हल कैसे निकाला? उन्होंने आपस में प्यार से और खुलकर बातचीत की। (नीतिवचन 12:18) आइवन आगे कहता है: “हमने शादी के बारे में, बाइबल पर आधारित लेखों का अध्ययन किया, जैसे अप्रैल 15, 1984 की प्रहरीदुर्ग पत्रिका (अँग्रेज़ी) में छपा लेख।a इस लेख से हमें शादी के मौके को परमेश्‍वर की नज़र से देखने में मदद मिली। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि हमारी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई है, हमें कई मामलों में समझौता करना पड़ा। हम दोनों ने अपने-अपने रवैए में फेरबदल किए।”

      आरेट और पैनी ने भी कुछ ऐसा ही किया। अपने शादी के दिन के बारे में आरेट कहता है: “शादी को लेकर हम दोनों की अलग-अलग ख्वाहिशें थीं, इसलिए पैनी और मैंने इस बारे में खुलकर चर्चा की। इसका नतीजा यह हुआ कि हमने ऐसे फैसले किए जिनसे हम दोनों खुश थे। हमने यहोवा से प्रार्थना की कि वह हमारी शादी के दिन पर आशीष दे। इतना ही नहीं, मैनें अपने और पैनी के माता-पिता से, साथ ही कलीसिया के दूसरे प्रौढ़ शादीशुदा जोड़ों से भी सलाह ली। उनके सुझाव काफी मददगार साबित हुए। नतीजा, हमारी शादी शानदार रही।”

      पहनावे और बनाव-श्रृंगार के मामले में गरिमा बनाए रखना

      ज़ाहिर है कि दूल्हा और दुलहन दोनों अपनी शादी के लिए खूब बन-ठनकर आना चाहते हैं। (भजन 45:8-15) वे शायद शादी के कपड़े खरीदने में काफी वक्‍त, मेहनत और पैसा लगाएँ। ऐसे में, बाइबल के कौन-से सिद्धांत उन्हें ऐसा पहनावा चुनने में मदद दे सकते हैं, जो उन पर जँचे भी और जिनसे गरिमा भी झलके?

      दुलहन के पहनावे को लीजिए। माना कि सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है, और देश-देश के पहनावे में फर्क भी होता है। मगर बाइबल पहनावे के बारे में जो सलाह देती है, वह सब पर लागू होती है। और बाइबल कहती है कि स्त्रियाँ “शालीनता और सादगी के साथ उचित वस्त्रों से अपने आप को सुसज्जित करें।” (NHT) यह सलाह मसीही स्त्रियों पर हर वक्‍त लागू होती है, बेशक शादी के वक्‍त भी। हकीकत तो यह है कि शादी के दिन को खुशी का माहौल बनाने के लिए “बहुमोल कपड़ों” की ज़रूरत नहीं पड़ती। (1 तीमुथियुस 2:9; 1 पतरस 3:3, 4) इस सलाह पर चलने से क्या ही संतोष मिलता है!

      डेविड, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था, कहता है: “शादी करनेवाले ज़्यादातर जोड़े बाइबल के सिद्धांतों को मानने की कोशिश करते हैं, जो कि काबिले-तारीफ है। मगर ऐसे भी मामले रहें हैं, जब दुलहन और उनकी सहेलियों ने बेहूदा किस्म के कपड़े पहने थे। उनके कपड़े के गले का कट बहुत ही नीचा था या फिर उनके गाऊन का कपड़ा बहुत ही पतला था।” एक प्रौढ़ मसीही प्राचीन, शादी से पहले दूल्हा-दुलहन से मुलाकात करता है और उन्हें उस मौके पर परमेश्‍वर का नज़रिया बनाए रखने का बढ़ावा देता है। कैसे? वह उनसे पूछता है कि वे दोनों शादी में जो कपड़े पहननेवाले हैं, क्या वे इतने शालीन हैं कि उन्हें मसीही सभाओं में पहना जा सके। यह सच है कि शादी का पहनावा, मसीही सभाओं में पहने जानेवाले कपड़ों से अलग होता है और कभी-कभी लोग शादी के लिए शायद ऐसे कपड़े पहनें, जो इलाके के रिवाज़ के मुताबिक हैं। मगर पहनावा चाहे जैसा भी हो, वह बाइबल के स्तरों के मुताबिक शालीन होना चाहिए और उससे गरिमा झलकनी चाहिए। भले ही दुनिया के कुछ लोगों को बाइबल के नैतिक स्तर सख्त लगें, मगर सच्चे मसीही इसे मानने में संतुष्ट हैं और संसार के रंग में रंगने से खुद को दूर रखते हैं।—रोमियों 12:2; 1 पतरस 4:4.

      पैनी कहती है: “मैंने और आरेट ने कपड़ों को या शादी की दावत को अहमियत नहीं दी, बल्कि अपना पूरा ध्यान शादी के समारोह पर लगाया जिसमें आध्यात्मिक बातों पर चर्चा हुई। वही शादी के दिन का सबसे ज़रूरी लम्हा था। उस दिन की जो खास बातें मुझे आज भी याद हैं, वह यह नहीं कि मैंने क्या पहना था या क्या खाया था, बल्कि यह कि मैंने वह पूरा दिन किन लोगों के साथ बिताया था और जिस आदमी को मैं प्यार करती हूँ, उसके साथ शादी करके मैं कितनी खुश थी।” जी हाँ, शादी करनेवाले मसीही जोड़ों को इन बातों को मन में रखकर योजना बनानी चाहिए।

      राज्य घर—मौके की गरिमा बढ़ाता है

      कई मसीही जोड़ों का अरमान होता है कि अगर इजाज़त मिले, तो उनकी शादी राज्य घर में हो। क्यों? एक जोड़ा इसकी वजह बताते हुए कहता है: “हमें इस बात का एहसास था कि शादी एक पवित्र बंधन है जिसका इंतज़ाम यहोवा ने किया है। इसलिए हमारी उपासना की जगह पर, यानी राज्य घर में शादी करने से हमें शुरू से ही इस बात को अपने मन में बिठाने में मदद मिली कि हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में यहोवा का होना निहायत ज़रूरी है। शादी का समारोह किसी और जगह पर रखने के बजाय, राज्य घर में रखने का एक और फायदा यह है कि हमारे जितने रिश्‍तेदार, जो सच्चाई में नहीं हैं, शादी के लिए आए, वे देख पाए कि यहोवा की उपासना हमारी ज़िंदगी में कितनी अहमियत रखती है।”

      अगर कलीसिया के प्राचीन, जिन पर राज्य घर के रखरखाव की ज़िम्मेदारी है, राज्य घर में शादी का समारोह रखने की इजाज़त देते हैं, तो जोड़े को चाहिए कि वह सजावट की योजना के बारे में उन्हें पहले से ही इत्तला कर दे। दूल्हे-दुलहन को ठान लेना चाहिए कि वे शादी के लिए वक्‍त पर आएँगे, क्योंकि यह एक तरीका है जिससे वे शादी में बुलाए मेहमानों के लिए आदर दिखा सकते हैं। साथ ही, वे इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहेंगे कि शादी में सारा काम गरिमा के साथ हो।b (1 कुरिन्थियों 14:40) इस तरह शादी में न तो कोई गड़बड़ी होगी, ना कोई शर्मनाक घटना घटेगी, जो अकसर दुनियावी शादियों में देखी जाती है।—1 यूहन्‍ना 2:15, 16.

      शादी में आए मेहमान भी दिखा सकते हैं कि वे शादी के बारे में यहोवा का नज़रिया रखते हैं। जैसे, वे इस बात की उम्मीद नहीं करेंगे कि यह शादी दूसरी मसीही शादियों से भी बढ़कर हो, मानो कोई होड़ लगी हो कि किसकी शादी सबसे धूम-धाम से होती है। प्रौढ़ मसीहियों को इस बात का भी एहसास रहता है कि ऐसे मौकों पर राज्य घर में बाइबल पर आधारित भाषण सुनने के लिए हाज़िर होना, दावत के लिए जाने या मेहमानों के साथ वक्‍त बिताने से ज़्यादा ज़रूरी और फायदेमंद है। और अगर हालात की वजह से, एक मसीही दोनों में से सिर्फ एक मौके पर ही हाज़िर हो सकता है, तो अच्छा होगा कि वह राज्य घर में भाषण सुनने का चुनाव करे। विलियम नाम का एक प्राचीन कहता है: “अगर मेहमान बिना वजह राज्य घर में शादी के भाषण के लिए हाज़िर नहीं होते, मगर बाद में दावत के लिए ज़रूर आते हैं, तो ऐसा करके वे यह दिखाते हैं कि उन्हें शादी की पवित्रता की कोई कदर नहीं। अगर हमें दावत के लिए न्यौता न भी मिले, तब भी हम राज्य घर में होनेवाले समारोह में हाज़िर हो सकते हैं। ऐसा करके हम दूल्हा-दुलहन को पूरा-पूरा साथ दे रहे होते हैं, और उनके उन रिश्‍तेदारों को भी अच्छी गवाही दे रहे होते हैं, जो सच्चाई में नहीं हैं।”

      खुशी जो शादी के बाद भी बरकरार रहती है

      आजकल कारोबार की दुनिया ने शादी के समारोह को अच्छा-खासा बिज़नेस बना लिया है। हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमरीका में एक आम शादी के लिए “22,000 डॉलर्स [यानी लगभग 10 लाख रुपए], या अमरीकी परिवार की [साल-भर की] औसतन आमदनी का आधा हिस्सा खर्च किया जाता है।” टी.वी.-फिल्मों में धूमधाम से होनेवाली शादियों की नकल करने के लिए, कई लोग शादी के लिए भारी कर्ज़ लेते हैं। और फिर नए दूल्हे-दुलहन को या उनके परिवारवालों को उस एक दिन का कर्ज़ चुकाने के लिए मुद्दतें लग जाती हैं। क्या इस तरह शादीशुदा ज़िंदगी की शुरूआत करना बुद्धिमानी है? दरअसल, सिर्फ वही लोग ऐसे कदम उठाने का चुनाव करते हैं, जो या तो बाइबल के सिद्धांतों से वाकिफ नहीं हैं या फिर जिन्हें इनकी कोई परवाह नहीं है। मगर सच्चे मसीहियों का रवैया उनसे कितना अलग है!

      कई मसीही जोड़ों ने अपने शादी के समारोह को छोटा रखा और अपनी हैसियत में रहकर ही पैसे खर्च किए। साथ ही, उन्होंने उस मौके पर परमेश्‍वर का नज़रिया बनाए रखा। यह सब करने की वजह से, वे अपना समय और साधन, परमेश्‍वर को किए अपने समर्पण के मुताबिक इस्तेमाल कर पाए हैं। (मत्ती 6:33) लॉइड और एलिग्ज़ैंड्रा की मिसाल पर गौर कीजिए, जो अपनी शादी के बाद 17 सालों से पूरे समय की सेवा कर रहे हैं। लॉइड कहता है: “कुछ लोगों ने शायद सोचा होगा कि हमारी शादी कुछ खास नहीं थी। मगर मैं और एलिग्ज़ैंड्रा उस इंतज़ाम से बहुत खुश थे। हमने तय किया था कि हम अपनी शादी के लिए भारी कर्ज़ा नहीं लेंगे जिसे बाद में चुकाना मुश्‍किल हो। इसके बजाय हमने उस दिन यहोवा के इस इंतज़ाम का आनंद मनाने का फैसला किया जो इंतज़ाम उसने दो इंसानों को खुशी देने के लिए किया है।”

      एलिग्ज़ैंड्रा कहती है: “हमारी शादी से पहले मैं पायनियर थी और धूमधाम से शादी करने की खातिर मैं यह सेवा नहीं छोड़ना चाहती थी। माना कि शादी का दिन, हमारी ज़िंदगी का एक बहुत ही खास दिन होता है, मगर यह हमारी शादीशुदा ज़िंदगी की बस एक शुरूआत होती है। हमने शादी की रस्म पर ज़्यादा ध्यान देने के बजाय शादीशुदा ज़िंदगी कैसे जीएँ, इस पर ज़्यादा ध्यान देने की सलाह मानी। ऐसा करने में हमने हमेशा यहोवा से मार्गदर्शन लिया है। इसलिए उसने हम पर अपनी ढेरों आशीषें बरसायी हैं।”c

      जी हाँ, आपके शादी का दिन आपकी ज़िंदगी का एक खास दिन है। उस दिन आप जो रवैया दिखाएँगे और जिस तरीके से पेश आएँगे, उससे आपकी शादीशुदा ज़िंदगी पर असर होगा। इसलिए मार्गदर्शन के लिए यहोवा पर भरोसा रखिए। (नीतिवचन 3:5, 6) शादी के समारोह की आध्यात्मिक बातों पर खास ध्यान दीजिए। परमेश्‍वर ने आप दोनों को जो ज़िम्मेदारी दी है, उसे पूरा करने के लिए एक-दूसरे का साथ दीजिए। ऐसा करके आप अपनी शादीशुदा ज़िंदगी के लिए एक ठोस बुनियाद डाल रहे होंगे। और यहोवा की आशीष से आपको ऐसी खुशी मिलेगी जो शादी के बाद भी बरकरार रहेगी।—नीतिवचन 18:22. (w06 10/15)

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