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“उन्हें देखकर तड़प उठा”मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
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अध्याय 15
“उन्हें देखकर तड़प उठा”
“प्रभु, हमारी आँखें ठीक हो जाएँ”
1-3. (क) जब दो भिखारी यीशु से मदद के लिए गुज़ारिश करते हैं, तो यीशु क्या करता है? (ख) “तड़प उठा,” इन शब्दों का क्या मतलब है? (फुटनोट देखिए।)
दो अंधे आदमी यरीहो शहर के बाहर सड़क के किनारे बैठे हैं। वे हर दिन वहाँ आते हैं और जिस जगह से ज़्यादातर लोग गुज़रते हैं, वहाँ बैठ जाते और भीख माँगते हैं। लेकिन आज उनके साथ कुछ ऐसा होनेवाला है, जिससे उनकी ज़िंदगी की कायापलट हो जाएगी।
2 अचानक वे भिखारी शोरगुल सुनते हैं। वे देख नहीं सकते कि क्या हो रहा है, इसलिए उनमें से एक लोगों से पूछता है कि आखिर बात क्या है। लोग उसे बताते हैं कि “यीशु नासरी यहाँ से गुज़र रहा है!” यीशु आखिरी बार यरूशलेम जा रहा है। लेकिन वह अकेला नहीं है। उसके पीछे भारी तादाद में लोग भी चले आ रहे हैं। जब भिखारियों को पता चलता है कि यीशु वहाँ से गुज़र रहा है, तो वे चिल्लाने लगते हैं: “हे प्रभु, दाविद के वंशज, हम पर दया कर!” लोग उन पर गुस्सा करते हैं और उनसे चुप रहने को कहते हैं, मगर भिखारी चुप नहीं होते। वे किसी भी तरह यीशु के पास जाना चाहते हैं।
3 यीशु भीड़ के शोरगुल में भी उन भिखारियों की पुकार सुन लेता है। वह क्या करेगा? क्या वह उन पर ध्यान देगा? उसे कई बातों की चिंता खाए जा रही है। धरती पर उसका जीवन बस खत्म होनेवाला है, करीब एक हफ्ता ही बचा है। वह जानता है कि यरूशलेम में उसे बुरी तरह तड़पाया जाएगा और बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाएगा। इन सब चिंताओं के बावजूद वह उन भिखारियों की निरंतर पुकार को अनसुना नहीं करता। वह रुक जाता है और उन भिखारियों को उसके पास लाने के लिए कहता है। पास आने पर भिखारी उससे मिन्नत करते हैं: “प्रभु, हमारी आँखें ठीक हो जाएँ।” उन्हें ‘देखकर यीशु तड़प उठता है,’ वह उनकी आँखें छूता है और वे देखने लगते हैं।a बिना देर किए वे भिखारी उसके पीछे हो लेते हैं।—लूका 18:35-43; मत्ती 20:29-34.
4. यीशु ने यह भविष्यवाणी कैसे पूरी की कि वह “कंगाल . . . पर तरस खाएगा”?
4 यह पहली या अकेली घटना नहीं थी, जब यीशु ने करुणा दिखायी। यीशु ने और भी कई मौकों पर और अलग-अलग हालात में करुणा दिखायी। बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि वह “कंगाल . . . पर तरस खाएगा।” (भजन 72:13) यीशु ने इन शब्दों को सच साबित किया। वह दूसरों की भावनाओं को समझता था। वह लोगों की मदद करने के लिए पहल करता था। करुणा की भावना ही उसे उभारती थी कि वह लोगों को प्रचार करे। आइए देखें कि खुशखबरी की किताबों से कैसे पता चलता है कि यीशु की बातों और कामों से कोमल करुणा साफ झलकती थी और गौर करें कि हम कैसे उसके जैसी करुणा दिखा सकते हैं।
दूसरों की भावनाओं का खयाल रखना
5, 6. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यीशु को दूसरों से हमदर्दी थी?
5 यीशु को दूसरों से हमदर्दी थी। वह लोगों की तकलीफ समझता था और उनसे पूरी सहानुभूति रखता था। हालाँकि वह उनके जैसे हालात से नहीं गुज़रा, लेकिन वह उनका दर्द अपने दिल में महसूस कर सकता था। (इब्रानियों 4:15) जब उसने एक ऐसी स्त्री को चंगा किया, जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी, तो उसने उसकी बीमारी को “दर्दनाक बीमारी” कहा। इस तरह उसने माना कि बीमारी की वजह से वह स्त्री बहुत पीड़ा और परेशानी से गुज़र रही है। (मरकुस 5:25-34) लाज़र की मौत पर जब यीशु ने मरियम और उसके साथ दूसरे लोगों को रोते देखा, तो उनका दुख देखकर उसका दिल भर आया। वह जानता था कि वह लाज़र को ज़िंदा करनेवाला है, लेकिन वह खुद को रोक नहीं सका और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।—यूहन्ना 11:33, 35.
6 एक दूसरे मौके पर, एक कोढ़ी यीशु के पास आया और गिड़गिड़ाने लगा: “अगर तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” यीशु एक सिद्ध इंसान था, वह कभी बीमार नहीं हुआ था। क्या वह उस कोढ़ी का दर्द समझ सकता था? हाँ, बाइबल बताती है कि वह उसे देखकर “तड़प उठा।” (मरकुस 1:40-42) फिर उसने एक अनोखा काम किया। वह जानता था कि कानून के मुताबिक कोढ़ियों को अशुद्ध माना जाता है और उन्हें दूसरों के साथ घुलने-मिलने की इजाज़त नहीं है। (लैव्यव्यवस्था 13:45, 46) यीशु बिना छुए भी इस आदमी को ठीक कर सकता था। (मत्ती 8:5-13) फिर भी उसने अपना हाथ बढ़ाया और कोढ़ी को छूकर कहा: “मैं चाहता हूँ। शुद्ध हो जा।” तुरंत ही कोढ़ी की बीमारी ठीक हो गयी। यीशु ने कितने बेहतरीन ढंग से प्यार और हमदर्दी दिखायी!
“एक-दूसरे का दर्द महसूस” कीजिए
7. क्या बात हमें हमदर्दी पैदा करने में मदद कर सकती है? हम यह गुण कैसे दिखा सकते हैं?
7 मसीहियों के नाते, हमसे कहा गया है कि हमदर्दी दिखाने में हम यीशु की मिसाल पर चलें। बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है, “एक-दूसरे का दर्द महसूस करो।”b (1 पतरस 3:8) जो लोग लंबे समय से किसी बीमारी या निराशा का शिकार हैं, उनकी भावनाओं को समझ पाना आसान नहीं होता। खास तौर पर तब जब हम इस तरह की बीमारी से न गुज़रे हों। लेकिन याद रखिए, ऐसा नहीं कि हम किसी से हमदर्दी तभी रख सकते हैं, जब हम उसके जैसे हालात से गुज़रे हों। यीशु ने बीमार लोगों के लिए हमदर्दी दिखायी, जबकि वह खुद कभी बीमार नहीं हुआ था। तो फिर हम कैसे हमदर्दी पैदा कर सकते हैं? जब पीड़ा से गुज़र रहे लोग आपको अपने दिल की बातें और भावनाओं के बारे में बताते हैं, तो सब्र के साथ उनकी बात सुनिए। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘अगर मैं उनकी जगह होता, तो मैं कैसा महसूस करता?’ (1 कुरिंथियों 12:26) अगर हम दूसरों का दर्द समझने की अपनी काबिलीयत बढ़ाएँ, तो हम “जो मायूस हैं, उन्हें अपनी बातों से तसल्ली” दे पाएँगे। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14) कभी-कभी हमदर्दी सिर्फ बातों से ही नहीं, आँसुओं से भी ज़ाहिर की जा सकती है। रोमियों 12:15 कहता है: “रोनेवालों के साथ रोओ।”
8, 9. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह दूसरों की भावनाओं का खयाल रखता है?
8 यीशु हमेशा दूसरों का खयाल रखता था और वह हमेशा उनके साथ इस तरह पेश आता था जिससे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे। ज़रा उस घटना को याद कीजिए जब यीशु के पास एक ऐसे आदमी को लाया गया जो बहरा था और ठीक से बोल नहीं पाता था। शायद यीशु ने भाँप लिया कि यह आदमी भीड़ के सामने थोड़ा हिचकिचा रहा है। इसलिए उसने एक ऐसा काम किया जो वह दूसरों को चंगा करते वक्त नहीं करता था। “यीशु उस आदमी को भीड़ से दूर, अलग ले गया।” वहाँ अकेले में और लोगों की घूरती निगाहों से दूर यीशु ने उस आदमी को ठीक किया।—मरकुस 7:31-35.
9 यीशु ने ऐसी ही परवाह तब भी दिखायी जब लोग उसके पास एक अंधे आदमी को लाए और उससे गुज़ारिश की कि वह उसे ठीक कर दे। यीशु ने “उस अंधे आदमी का हाथ पकड़ा और उसे गाँव के बाहर ले गया।” फिर उसने धीरे-धीरे उस आदमी को चंगा किया। ऐसा करने की वजह से शायद उस आदमी का दिमाग और आँखें सूरज की रौशनी में आस-पास की एक-से-बढ़कर-एक चीज़ों को देखने के लिए आहिस्ता-आहिस्ता ढल सकीं। (मरकुस 8:22-26) सचमुच, यीशु को लोगों का कितना खयाल था!
10. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम दूसरों की भावनाओं का खयाल रखते हैं?
10 यीशु के चेले होने के नाते हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम दूसरों की भावनाओं का खयाल रखें। इसलिए हम सोच-समझकर बोलते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि बिना सोचे-समझे ज़बान का इस्तेमाल करने से दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है। (नीतिवचन 12:18; 18:21) मसीही हमेशा दूसरों की भावनाओं का खयाल रखते हैं। इसलिए कड़वे बोल बोलना, दूसरों की बुराई करना, चोट पहुँचानेवाली बातें कहना उन्हें शोभा नहीं देता। (इफिसियों 4:31) प्राचीनो, आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप दूसरों की भावनाओं का खयाल रखते हैं? जब आप किसी को सलाह देते हैं, तो हमेशा दया दिखाइए। इस तरह आप उसकी गरिमा बनाए रखेंगे। (गलातियों 6:1) माता-पिताओ, आप अपने बच्चों की भावनाओं का कैसे खयाल रख सकते हैं? उन्हें कभी भी ऐसे ताड़ना मत दीजिए जिससे उन्हें दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़े।—कुलुस्सियों 3:21.
दूसरों की मदद करने में पहल कीजिए
11, 12. बाइबल की कौन-सी घटनाएँ दिखाती हैं कि यीशु सिर्फ तभी करुणा नहीं दिखाता था, जब लोग उससे मदद माँगते थे?
11 यीशु सिर्फ तभी करुणा नहीं दिखाता था, जब लोग उससे मदद माँगते थे। करुणा ऐसा गुण नहीं, जो सिर्फ दिल में होता है, यह कामों से दिखाया जाता है और दूसरों की मदद करने के लिए उकसाता है। यीशु में कोमल करुणा थी, इसी वजह से वह लोगों की मदद करने के लिए पहल करता था। उदाहरण के लिए, जब बहुत बड़ी भीड़ तीन दिन तक यीशु के साथ रही और उनके पास खाने को कुछ भी नहीं था, तो किसी को यीशु से यह कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि लोग भूखे हैं या वह लोगों की भूख मिटाने के लिए कुछ करे। बाइबल बताती है: “यीशु ने अपने चेलों को पास बुलाया और कहा: ‘इस भीड़ को देखकर मुझे तरस आता है, क्योंकि इन्हें मेरे साथ रहते हुए तीन दिन बीत चुके हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं इन्हें भूखा नहीं भेजना चाहता। कहीं वे रास्ते में ही पस्त न हो जाएँ।’” फिर उसने अपनी मरज़ी से चमत्कार करके भीड़ को खाना खिलाया।—मत्ती 15:32-38.
12 एक और वाकये पर गौर कीजिए। ईसवी सन् 31 का समय था, यीशु नाईन शहर की तरफ जा रहा था कि उसने एक दर्दनाक मंज़र देखा। शहर से एक मैयत निकल रही थी, जो शायद पास की पहाड़ियों पर बनी कब्रों की तरफ जा रही थी। लोग ‘एक विधवा के इकलौते बेटे को’ दफनाने जा रहे थे। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस वक्त उस माँ के दिल पर क्या बीत रही होगी? वह अपने इकलौते बेटे को दफनाने जा रही थी। वह अपने पति को पहले ही खो चुकी थी। अब उसका अपना कोई नहीं था, जिसके साथ वह अपना गम बाँट सकती। मैयत में काफी सारे लोग थे, लेकिन यीशु “की नज़र” उस विधवा पर पड़ी, जिसका इकलौता बेटा मर गया था। उसे देखकर यीशु का दिल दुखी हो गया, जी हाँ “वह तड़प उठा।” किसी को उससे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी। उसके दिल में जो करुणा थी, उसने उसे आगे बढ़कर मदद करने के लिए उकसाया। इसलिए “उसने पास आकर अर्थी को छूआ” और उस लड़के को दोबारा ज़िंदा कर दिया। फिर क्या हुआ? यीशु ने उस लड़के से यह नहीं कहा कि वह उसके पीछे चल रही भीड़ में शामिल हो जाए। इसके बजाय, यीशु ने “उसे उसकी माँ को सौंप दिया” और दोबारा एक परिवार बना दिया। इस तरह यीशु ने खयाल रखा कि वह विधवा बेसहारा न हो जाए।—लूका 7:11-15.
ज़रूरतमंदों की मदद के लिए पहल कीजिए
13. दूसरों की मदद करने में पहल करने के मामले में हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
13 हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? यह सच है कि हम चमत्कार करके लोगों को खाना नहीं दे सकते, न ही मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा कर सकते हैं। लेकिन हम यीशु की मिसाल पर चलकर ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने की पहल ज़रूर कर सकते हैं। शायद हमारे किसी संगी विश्वासी को पैसे का भारी नुकसान हुआ हो या उसकी नौकरी छूट गयी हो। (1 यूहन्ना 3:17) हो सकता है किसी विधवा बहन के मकान में कुछ ज़रूरी मरम्मत करनी हो। (याकूब 1:27) शायद किसी परिवार में एक जन की मौत हो गयी हो और उन्हें दिलासा देने या कुछ मदद की ज़रूरत हो। (1 थिस्सलुनीकियों 5:11) जो सचमुच ज़रूरत में हैं, उनकी मदद करने के लिए हमें इंतज़ार नहीं करना चाहिए कि जब कोई आकर हमसे कहेगा तभी हम कुछ करेंगे। (नीतिवचन 3:27) हममें जो करुणा है, वह हमें उकसाएगी कि अपने हालात के मुताबिक हमसे जितना हो सके हम दूसरों की मदद करें। हम यह कभी न भूलें कि एक छोटी-सी मदद या दिल से बोले दिलासा के दो मीठे शब्दों से भी ज़ाहिर होता है कि हमारे दिल में दूसरों के लिए करुणा है।—कुलुस्सियों 3:12.
करुणा ने उसे प्रचार करने के लिए उभारा
14. यीशु ने खुशखबरी का प्रचार करने के काम को इतनी अहमियत क्यों दी?
14 जैसा कि हमने इस किताब के भाग 2 में देखा था, यीशु ने खुशखबरी का प्रचार करने में एक उम्दा मिसाल रखी। उसने कहा: “मुझे . . . परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनानी है, क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) उसने इस काम को इतनी अहमियत क्यों दी? सबसे बड़ी वजह यह थी कि उसे परमेश्वर से प्यार था। लेकिन इसकी एक और वजह भी थी। उसके दिल में लोगों के लिए करुणा थी, इसलिए उसने उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कदम उठाया। देखा जाए तो उसने कई तरीकों से करुणा दिखायी, लेकिन सबसे बड़ा तरीका था लोगों की आध्यात्मिक भूख मिटाना। आइए दो घटनाओं पर गौर करें जो दिखाती हैं कि यीशु जिन लोगों को प्रचार करता था, उन्हें वह किस नज़र से देखता था। इससे हमें यह जाँचने में मदद मिलेगी कि हम क्यों प्रचार काम में हिस्सा लेते हैं।
15, 16. उन दो घटनाओं के बारे में बताइए जिनसे पता चलता है कि यीशु उन लोगों को किस नज़र से देखता था, जिन्हें वह प्रचार करता था।
15 यीशु को प्रचार काम करते करीब दो साल हो गए थे, वह इस काम में जी-जान से लगा हुआ था। ईसवी सन् 31 में उसने प्रचार काम को और बढ़ाया, वह गलील के “सब शहरों और गाँवों का दौरा करने निकला।” लोगों की हालत देखकर उसका दिल रो पड़ा। इस बारे में प्रेषित मत्ती ने लिखा: “जब उसने भीड़ को देखा तो वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।” (मत्ती 9:35, 36) यीशु को आम लोगों के लिए हमदर्दी थी। वह अच्छी तरह जानता था कि उनकी आध्यात्मिक हालत कितनी खराब है। उसे मालूम था कि जिन्हें उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है, यानी धर्म-गुरु ही उनके साथ बुरा सलूक कर रहे हैं और उनका खयाल नहीं रख रहे हैं। लोगों के लिए गहरी करुणा होने की वजह से यीशु ने उन तक आशा का संदेश पहुँचाने में जी-तोड़ मेहनत की। उन्हें परमेश्वर के राज की खुशखबरी की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।
16 कुछ महीनों बाद, ईसवी सन् 32 में फसह के पर्व से पहले भी कुछ ऐसी ही घटना घटी। यीशु अपने प्रेषितों के साथ नाव से गलील झील की दूसरी तरफ जा रहा था, ताकि वे कहीं एकांत में आराम कर सकें। लेकिन लोगों की भीड़ झील के किनारे दौड़ते हुए उनसे पहले ही झील की दूसरी तरफ पहुँच गयी। यह देखकर यीशु ने क्या किया? “जब यीशु नाव से उतरा तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी और उन्हें देखकर वह तड़प उठा, क्योंकि वे उन भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो। और वह उन्हें बहुत-सी बातें सिखाने लगा।” (मरकुस 6:31-34) यीशु एक बार फिर लोगों को देखकर “तड़प उठा” क्योंकि उनकी आध्यात्मिक हालत बहुत खराब थी। वे “उन भेड़ों की तरह थे जिनका कोई चरवाहा न हो।” उनकी देखभाल करने और उन्हें सच्चाई सिखाने के लिए कोई नहीं था। वे आध्यात्मिक तौर पर भूखे मर रहे थे। यीशु ने फर्ज़ समझकर नहीं, करुणा की वजह से उन्हें प्रचार किया।
प्रचार करते वक्त करुणा दिखाइए
17, 18. (क) क्या बात हमें लोगों को प्रचार करने के लिए उकसाती है? (ख) हम कैसे दूसरों के लिए अपने दिल में करुणा पैदा कर सकते हैं?
17 यीशु के पीछे चलनेवालों के नाते क्या बात हमें लोगों को प्रचार करने के लिए उकसाती है? जैसा कि हमने इस किताब के अध्याय 9 में देखा था, हमें प्रचार करने और लोगों को चेला बनाने की आज्ञा दी गयी है, यह हमारी ज़िम्मेदारी है। (मत्ती 28:19, 20; 1 कुरिंथियों 9:16) लेकिन हमें इस काम को सिर्फ फर्ज़ समझकर नहीं करना चाहिए। इसे करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि हम यहोवा से प्यार करते हैं। दूसरी वजह है, उन लोगों के लिए करुणा जिनका विश्वास हमसे अलग है। (मरकुस 12:28-31) तो फिर हम कैसे दूसरों के लिए अपने दिल में करुणा पैदा कर सकते हैं?
18 यीशु ने लोगों को जिस नज़र से देखा, हमें भी उन्हें उसी नज़र से देखना चाहिए, यानी ‘उन भेड़ों की तरह जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।’ कल्पना कीजिए कि आपको एक मेम्ना मिलता है, जो भटक गया है। उसके पास कोई चरवाहा नहीं जो उसे हरी-हरी तराइयों में और पानी के पास ले जाए। वह नन्हा-सा मेम्ना भूखा और प्यासा है। क्या आपको उस पर तरस नहीं आएगा? क्या आप उसे चारा और पानी देने के लिए अपना भरसक नहीं करेंगे? उस मेम्ने की तुलना उन लोगों से की जा सकती है, जिन्हें अभी तक खुशखबरी के बारे में पता नहीं है। झूठे धार्मिक चरवाहों ने उन्हें यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया है। वे आध्यात्मिक तौर पर भूखे और प्यासे हैं। उनके पास भविष्य की कोई सच्ची आशा नहीं है। लेकिन हमारे पास वह चीज़ है जिसकी उन्हें ज़रूरत है, परमेश्वर के वचन में मिलनेवाला पोषण से भरा आध्यात्मिक भोजन और तरोताज़ा करनेवाला सच्चाई का पानी। (यशायाह 55:1, 2) जब हम अपने आस-पास के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों पर गौर करते हैं, तो हमें उन पर बहुत तरस आता है। अगर यीशु की तरह हमारे दिल में भी लोगों के लिए हमदर्दी होगी, तो हम उन्हें राज की आशा देने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे।
19. अगर एक बाइबल विद्यार्थी प्रचार काम में हिस्सा लेने के काबिल हो गया है, तो उसे बढ़ावा देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
19 दूसरे भी यीशु की मिसाल पर चलें, इसके लिए हम उनकी कैसे मदद कर सकते हैं? मान लीजिए हमारा एक बाइबल विद्यार्थी प्रचार काम में हिस्सा लेने के काबिल हो गया है और हम इसके लिए उसे बढ़ावा देना चाहते हैं। या हम एक ऐसे मसीही को प्रचार में फिर से पूरा हिस्सा लेने में मदद देना चाहते हैं जो सच्चाई में ठंडा पड़ गया है। हम ऐसे लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं? हमें अपनी बातें उन तक इस तरह पहुँचानी चाहिए जिससे वे बातें उनके दिल पर गहरा असर कर जाएँ। याद कीजिए कि लोगों को देखकर पहले तो यीशु “तड़प उठा” और फिर वह उन्हें सिखाने लगा। (मरकुस 6:34) इसलिए अगर हम उन्हें अपने दिल में करुणा पैदा करने में मदद दें, तो शायद उनका दिल भी उन्हें यीशु की तरह बनने और दूसरों को खुशखबरी सुनाने के लिए उकसाए। हम उनसे पूछ सकते हैं: ‘राज संदेश कबूल करने से आपकी ज़िंदगी कैसे बेहतर हुई है? तो क्या आपको नहीं लगता कि जिन लोगों को अभी तक यह संदेश नहीं मिला है, उन्हें भी खुशखबरी सुनाने की ज़रूरत है? उनकी मदद करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?’ लेकिन यह बात भी सच है कि एक इंसान प्रचार में हिस्सा लेने के लिए तभी आगे बढ़ता है, जब उसके दिल में परमेश्वर के लिए प्यार और उसकी सेवा करने का जज़्बा हो।
20. (क) यीशु का चेला होने में क्या बातें शामिल हैं? (ख) अगले अध्याय में हम किस बात पर गौर करेंगे?
20 यीशु का चेला होने का मतलब सिर्फ उसके शब्द दोहराना या उसके कामों की नकल करना नहीं है। हमें “मन का वैसा स्वभाव” भी पैदा करने की ज़रूरत है, जैसा मसीह में था। (फिलिप्पियों 2:5) हम कितने एहसानमंद हैं कि बाइबल हमें यीशु की बातों और कामों के पीछे छिपी उसकी भावनाओं और विचारों के बारे में बताती है! जब हम ‘मसीह के मन’ से वाकिफ होंगे तो हम और भी अच्छी तरह लोगों की भावनाओं का खयाल रख पाएँगे और उनके लिए दिल से करुणा दिखा पाएँगे। तब हम लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे जैसा यीशु करता था। (1 कुरिंथियों 2:16) अगले अध्याय में हम गौर करेंगे कि यीशु ने खास तौर से अपने चेलों के लिए कैसे अलग-अलग तरीकों से प्यार दिखाया।
a जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “तड़प उठा” किया गया है, उसे करुणा की भावना के लिए यूनानी भाषा में इस्तेमाल होनेवाले सबसे ज़बरदस्त शब्दों में से एक कहा गया है। एक किताब कहती है कि इस शब्द का मतलब “किसी की तकलीफ देखकर सिर्फ दर्द महसूस करना नहीं, बल्कि इसमें तकलीफ से गुज़र रहे इंसान को राहत पहुँचाने और उसकी तकलीफ दूर करने की गहरी इच्छा भी शामिल है।”
b जिस यूनानी विशेषण का अनुवाद “एक-दूसरे का दर्द महसूस करो” किया गया है, उसका शाब्दिक मतलब है “उसके साथ तकलीफ से गुज़रो।”
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‘यीशु उनसे आखिर तक प्यार करता रहा’मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले
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अध्याय 16
‘यीशु उनसे आखिर तक प्यार करता रहा’
1, 2. यीशु ने अपने प्रेषितों के साथ आखिरी शाम कैसे गुज़ारी? ये आखिरी लम्हें उसे इतने अज़ीज़ क्यों थे?
यरूशलेम में एक घर के ऊपरी कमरे में यीशु अपने प्रेषितों के साथ इकट्ठा हुआ है। उसे मालूम है कि यह उसके चेलों के साथ उसकी आखिरी शाम है। अब अपने पिता के पास उसके लौटने की घड़ी आ पहुँची है। उसे कुछ ही घंटों में गिरफ्तार कर लिया जाएगा और उसके विश्वास की ऐसी बड़ी परीक्षा होगी, जैसी पहले कभी नहीं हुई थी। मौत उसके सिर पर मँडरा रही है। लेकिन इसके बावजूद, उसे अपनी नहीं बल्कि अपने प्रेषितों की फिक्र है।
2 दरअसल, यीशु ने प्रेषितों को पहले से बता दिया है कि वह जल्द उन्हें छोड़कर चला जाएगा। लेकिन जाने से पहले वह उनके साथ अपना आखिरी बेशकीमती वक्त गुज़ारता है। वह प्रेषितों को कुछ अहम सबक सिखाता है ताकि आनेवाले मुश्किल दौर का वे सामना कर सकें और वफादार रह सकें। यीशु की बातें प्रेषितों का दिल छू लेती हैं क्योंकि यीशु ने पहले कभी यूँ खुलकर बात नहीं की थी। मगर यीशु को खुद से ज़्यादा अपने प्रेषितों की फिक्र क्यों थी? और उनके साथ ये आखिरी लम्हें उसे इतने अज़ीज़ क्यों थे? इसका जवाब एक शब्द में दिया जा सकता है और वह है, प्यार! जी हाँ, यीशु अपने प्रेषितों से बेइंतिहा प्यार करता था।
3. हम कैसे जानते हैं कि यीशु ने चेलों को प्यार दिखाने के लिए आखिरी शाम का इंतज़ार नहीं किया?
3 बरसों बाद प्रेषित यूहन्ना ने जब परमेश्वर की प्रेरणा से उस शाम हुई घटनाओं के बारे में लिखा, तब उसने शुरूआत कुछ इस तरह की: “फसह के त्योहार से पहले यीशु यह जानता था कि इस दुनिया को छोड़कर पिता के पास जाने की उसकी घड़ी आ पहुँची है। इसलिए दुनिया में जो उसके अपने थे जिनसे वह प्यार करता आया था, वह उनसे आखिर तक प्यार करता रहा।” (यूहन्ना 13:1) यीशु ने ‘अपनों’ की खातिर प्यार दिखाने के लिए उस आखिरी शाम का इंतज़ार नहीं किया। धरती पर सेवा के दौरान उसने छोटे-बड़े कई तरीकों से अपने चेलों को प्यार दिखाया। यीशु ने जिन तरीकों से उन्हें प्यार दिखाया, उनकी जाँच करना हमारे लिए अच्छा होगा। इससे हम उसके जैसा प्यार दिखा पाएँगे और खुद को उसके सच्चे चेले साबित कर पाएँगे।
सब्र दिखाया
4, 5. (क) यीशु को अपने चेलों के साथ पेश आते वक्त सब्र से काम लेना क्यों ज़रूरी था? (ख) गतसमनी के बाग में जब यीशु ने अपने तीन प्रेषितों को सोते पाया, तब उसने क्या किया?
4 प्यार और सब्र के गुण का आपस में गहरा नाता है। पहला कुरिंथियों 13:4 कहता है: ‘प्यार सहनशील होता है।’ और सहनशीलता में सब्र से दूसरों की सहना शामिल है। अपने चेलों के साथ पेश आते वक्त क्या यीशु को सब्र से काम लेने की ज़रूरत पड़ी? जी हाँ! जैसा हमने अध्याय 3 में देखा, प्रेषितों को नम्रता पैदा करने में काफी वक्त लगा। कई बार उनके बीच यह बहस छिड़ जाती थी कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। ऐसे में यीशु क्या करता था? क्या वह गुस्सा हो जाता या चिढ़ जाता था? बिलकुल नहीं, बल्कि वह सब्र दिखाते हुए उनके साथ तर्क करता। यहाँ तक कि अपनी मौत से पहले की शाम को जब प्रेषितों में “गरमा-गरम बहस छिड़ गयी,” तब भी यीशु ने अपना आपा नहीं खोया बल्कि प्यार से उन्हें समझाया।—लूका 22:24-30; मत्ती 20:20-28; मरकुस 9:33-37.
5 इसके बाद यीशु अपने 11 वफादार प्रेषितों के साथ गतसमनी के बाग में गया, जहाँ एक बार फिर उसके सब्र की परीक्षा हुई। वहाँ पहुँचने के बाद यीशु ने अपने 8 प्रेषितों को एक जगह रुकने को कहा और वह पतरस, याकूब और यूहन्ना को लेकर बाग में और अंदर चला गया। फिर उसने उनसे कहा: “मेरा जी बेहद दुःखी है, यहाँ तक कि मेरी मरने जैसी हालत है। यहीं ठहरो और मेरे साथ जागते रहो।” इसके बाद थोड़ा आगे जाकर वह गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने लगा। और बहुत देर तक प्रार्थना करने के बाद जब वह तीन प्रेषितों के पास लौटा तो उसने क्या देखा? इस नाज़ुक घड़ी में, जब उसके जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा होनेवाली थी, उसके प्रेषित सो रहे थे! ऐसी लापरवाही के लिए क्या यीशु ने उन्हें फटकारा? नहीं, बल्कि उसने सब्र से उन्हें समझाया। यीशु की कही बात से पता चलता है कि वह समझता था कि उसके प्रेषित तनाव से गुज़र रहे थे और उनकी क्या कमज़ोरियाँ थीं।a उसने कहा: “दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” इसके बाद यीशु ने उन्हें दो बार और सोते पाया, फिर भी उसने सब्र नहीं खोया।—मत्ती 26:36-46.
6. दूसरों के साथ अपने व्यवहार में हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
6 इस बात से वाकई हमारा हौसला बढ़ता है कि यीशु ने कभी अपने प्रेषितों से उम्मीद नहीं छोड़ी। यीशु का उनके साथ सब्र से पेश आना आखिरकार रंग लाया, क्योंकि इन वफादार प्रेषितों ने नम्रता और चौकस रहने की अहमियत बखूबी समझी। (1 पतरस 3:8; 4:7) यीशु की तरह हम भी दूसरों के साथ सब्र से कैसे पेश आ सकते हैं? और खासकर प्राचीनों के लिए यह गुण दिखाना ज़रूरी होता है। हो सकता है एक प्राचीन खुद अपनी चिंताओं से बेहद परेशान हो और ऐसे में संगी भाई-बहन उसके पास अपनी समस्या लेकर आएँ। या एक प्राचीन ने किसी प्रचारक को किसी मामले पर सलाह दी हो, पर वह उस पर अमल न कर रहा हो। लेकिन ऐसे में भी सब्र रखनेवाला प्राचीन हमेशा “कोमलता” से हिदायतें देगा और ‘झुंड के साथ कोमलता से पेश आएगा।’ (2 तीमुथियुस 2:24, 25; प्रेषितों 20:28, 29) इस मामले में माता-पिताओं को भी यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए, क्योंकि बच्चे कभी-कभी सलाह मानने या सुधार करने में देर करते हैं। प्यार और सब्र का गुण माता-पिताओं की मदद करेगा कि वे बच्चों को तालीम देते वक्त कभी हार न मानें। इस तरह सब्र दिखाने का उन्हें बेशक बहुत बड़ा इनाम मिलेगा!—भजन 127:3.
उनकी ज़रूरतों का खयाल रखा
7. यीशु ने किस तरह अपने चेलों की ज़रूरतें पूरी कीं?
7 प्यार दिखाने का एक तरीका है, बिना स्वार्थ के काम करना। (1 यूहन्ना 3:17, 18) प्यार “सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता।” (1 कुरिंथियों 13:5) प्यार होने की वजह से ही यीशु अपने चेलों की ज़रूरतों का खयाल रख सका। और अकसर चेलों के कहने से पहले ही वह उनकी ज़रूरतें पूरी कर देता। जैसे, एक बार जब यीशु ने देखा कि उसके चेले थक गए हैं, तब उसने उनसे कहा, “किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो।” (मरकुस 6:31) एक दूसरे मौके पर जब उसे एहसास हुआ कि उसके चेलों को भूख लगी है, तब उसने खुद उनके लिए भोजन का इंतज़ाम किया। उसने न सिर्फ अपने चेलों का बल्कि उन हज़ारों लोगों का भी पेट भरा, जो उसकी बातें सुनने आए थे।—मत्ती 14:19, 20; 15:35-37.
8, 9. (क) हमें कैसे पता चलता है कि यीशु ने अपने चेलों की आध्यात्मिक ज़रूरत समझी और पूरी भी की? (ख) जब यीशु को सूली पर लटकाया गया तब उसने कैसे ज़ाहिर किया कि उसे अपनी माँ की बहुत फिक्र है?
8 यीशु ने अपने चेलों की आध्यात्मिक ज़रूरत भी समझी और पूरी की। (मत्ती 4:4; 5:3) सिखाते वक्त उसने अकसर अपने चेलों पर खास ध्यान दिया। उसने पहाड़ी उपदेश खासकर अपने चेलों के फायदे के लिए दिया। (मत्ती 5:1, 2, 13-16) जब वह मिसालें देता था, तो “अपने चेलों को अकेले में उन सब बातों का मतलब समझाता था।” (मरकुस 4:34) यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह धरती पर ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास’ ठहराएगा ताकि आखिरी दिनों के दौरान उसके चेलों को आध्यात्मिक भोजन की कोई कमी न हो। यह विश्वासयोग्य दास, पवित्र शक्ति से अभिषिक्त यीशु के भाइयों के एक छोटे समूह से बना है। यह दास ईसवी सन् 1919 से लगातार ‘सही वक्त पर खाना देता’ आ रहा है।—मत्ती 24:45.
9 यीशु को अपनों की आध्यात्मिकता की कितनी परवाह थी, यह उस वक्त साफ ज़ाहिर हुआ जब उसे सूली पर लटकाया गया था। उस समय जो हुआ, उसे अपने मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। वह सूली पर दर्द के मारे तड़प रहा है। उसके हाथ-पैर पर कीले ठोंके गए हैं और उसके लिए एक-एक साँस लेना मुश्किल हो रहा है। क्योंकि साँस लेने के लिए उसे अपने पैरों पर ज़ोर डालकर खुद को उठाना पड़ता है। तब उसके शरीर के वज़न से कील से ठुके उसके पैर और भी चिर जाते होंगे। यही नहीं, उसकी पीठ जो पहले ही कोड़े खाकर बुरी तरह छिल चुकी थी, साँस लेते वक्त सूली से रगड़ खाती होगी और दर्द बर्दाश्त के बाहर हो जाता होगा। ऐसे में बात करना उसके लिए न सिर्फ मुश्किल रहा होगा बल्कि दर्दनाक भी, क्योंकि बात करने के लिए साँस लेना ज़रूरी होता है। लेकिन ऐसी हालत में भी उसने जो कहा उससे उसकी माँ मरियम के लिए उसका प्यार साफ नज़र आया। पास में खड़ी अपनी माँ और प्रेषित यूहन्ना को देखकर यीशु ने काफी ऊँची आवाज़ में कहा, जिससे आस-पास खड़े लोग भी सुन सके। उसने कहा: “हे स्त्री, देख! तेरा बेटा!” इसके बाद उसने यूहन्ना से कहा: “देख! तेरी माँ!” (यूहन्ना 19:26, 27) यीशु जानता था कि उसका वफादार प्रेषित उसकी माँ की न सिर्फ शारीरिक ज़रूरतों का बल्कि आध्यात्मिक ज़रूरतों का भी खयाल रखेगा।b
परवाह करनेवाले माँ-बाप धीरज दिखाते हैं और अपने बच्चों की ज़रूरतें पूरी करते हैं
10. माता-पिता किस तरह यीशु की मिसाल पर चलकर अपने बच्चों की ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं?
10 यीशु की इस मिसाल पर मनन करने से माता-पिताओं को बहुत फायदा हो सकता है। जो पिता अपने परिवार से वाकई प्यार करता है, वह उनकी शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करेगा। (1 तीमुथियुस 5:8) एक समझदार मुखिया अपने परिवार के साथ आराम करने और मनोरंजन करने के लिए वक्त निकालेगा। इससे भी बढ़कर मसीही माता-पिता अपने बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करेंगे। कैसे? वे नियमित तौर पर पारिवारिक बाइबल अध्ययन करेंगे और उनकी कोशिश रहेगी कि अध्ययन से बच्चों का हौसला बढ़े और उन्हें मज़ा भी आए। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) माता-पिता अपनी बातों और मिसाल से बच्चों को प्रचार में हिस्सा लेने की अहमियत समझाएँगे, साथ ही बताएँगे कि सभाओं के लिए तैयारी करना और उसमें हाज़िर होना उनके मसीही कामों का अहम हिस्सा है।—इब्रानियों 10:24, 25.
माफ करने के लिए तैयार रहिए
11. यीशु ने अपने चेलों को माफ करने के बारे में क्या सिखाया?
11 माफ करना प्यार दिखाने का एक पहलू है। (कुलुस्सियों 3:13, 14) पहला कुरिंथियों 13:5 कहता है कि प्यार “चोट का हिसाब नहीं रखता।” कई मौकों पर यीशु ने अपने चेलों को समझाया कि माफ करना बेहद ज़रूरी है। उसने चेलों से ‘सात बार तक’ नहीं, बल्कि सतहत्तर बार तक’ यानी अनगिनत बार माफ करने की गुज़ारिश की। (मत्ती 18:21, 22) उसने चेलों को सिखाया कि अगर पाप करनेवाले को ताड़ना दी जाती है और वह उसे कबूल कर सच्चा पश्चाताप दिखाता है तो उसे माफ कर देना चाहिए। (लूका 17:3, 4) यीशु ने इस बारे में सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें नहीं कीं, बल्कि उसने ऐसा करके भी दिखाया। वाकई यीशु कपटी फरीसियों से कितना अलग था! (मत्ती 23:2-4) आइए देखें कि यीशु ने किस तरह अपने उस दोस्त को माफ किया, जिसने ऐन वक्त पर उससे मुँह मोड़ लिया था।
12, 13. (क) यीशु की गिरफ्तारी की रात को किस तरह पतरस ने उससे मुँह मोड़ लिया? (ख) जी उठने के बाद यीशु के किस रवैए से यह ज़ाहिर हुआ कि उसने दूसरों को माफ करने के बारे में सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें ही नहीं कीं, बल्कि माफ करके भी दिखाया?
12 यीशु, प्रेषित पतरस का बहुत करीबी दोस्त था। हालाँकि पतरस कभी-कभी उतावला हो जाता था, पर वह स्वभाव से मिलनसार और प्रेमी था। यीशु ने पतरस की खूबियों को पहचाना और उसे कुछ खास ज़िम्मेदारियाँ दीं। याकूब और यूहन्ना के साथ-साथ पतरस भी कुछ ऐसे चमत्कारों का चश्मदीद गवाह था, जो बाकी प्रेषितों ने नहीं देखे थे। (मत्ती 17:1, 2; लूका 8:49-55) जैसे हमने पहले गौर किया, पतरस उन प्रेषितों में से था, जो रात के वक्त गतसमनी के बाग में यीशु के साथ अंदर तक गया था। लेकिन जब यीशु को धोखे से पकड़वाकर गिरफ्तार किया गया, तब पतरस और दूसरे प्रेषित यीशु को अकेला छोड़कर भाग खड़े हुए। हालाँकि बाद में, पतरस ने हिम्मत दिखायी और वह उस आँगन में गया, जहाँ यीशु पर गैर-कानूनी तौर पर मुकदमा चलाया जा रहा था। मगर वहाँ पतरस घबरा गया और उसने एक बड़ी गलती कर दी। उसने तीन बार झूठ बोलते हुए कहा कि वह यीशु को नहीं जानता! (मत्ती 26:69-75) तब यीशु ने पतरस के लिए कैसा रवैया दिखाया? अगर आपके किसी जिगरी दोस्त ने आपको इस तरह दगा दिया होता, तो आप उससे कैसे पेश आते?
13 यीशु पतरस को माफ करने के लिए तैयार था। वह जानता था कि पतरस पाप के बोझ तले दबा हुआ है। ज़ाहिर है, तभी तो पतरस “और सह न सका और फूट-फूटकर रोने लगा।” (मरकुस 14:72) इसलिए बाद में जब यीशु जी उठा, तब शायद पतरस को दिलासा देने और उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए वह खुद उससे मिला। (लूका 24:34; 1 कुरिंथियों 15:5) और फिर दो महीने भी नहीं हुए थे कि यीशु ने पतरस को यरूशलेम में पिन्तेकुस्त के दिन एक बड़ी भीड़ के सामने गवाही देने का मौका देकर उसे बड़ा सम्मान दिया। (प्रेषितों 2:14-40) और यह भी गौरतलब है कि यीशु ने उन प्रेषितों के खिलाफ भी कोई मलाल नहीं रखा, जो उसे गिरफ्तारी की रात अकेला छोड़कर भाग गए थे। इसके उलट, जी उठने के बाद यीशु ने उन्हें “मेरे भाइयों” कहकर बुलाया। (मत्ती 28:10) क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि यीशु ने दूसरों को माफ करने के बारे में सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें ही नहीं कीं, बल्कि माफ करके भी दिखाया।
14. हमें क्यों दूसरों को माफ करना सीखना चाहिए? और हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम माफ करने के लिए तैयार हैं?
14 यीशु के चेले होने के नाते हमें दूसरों को माफ करना सीखना चाहिए। क्यों? यीशु सिद्ध था, मगर हम और हमारे खिलाफ पाप करनेवाले सभी असिद्ध हैं। हम सभी गलतियाँ करते हैं, कभी अपनी बोली में तो कभी कामों में। (रोमियों 3:23; याकूब 3:2) जब दया दिखाने का वाजिब कारण होता है और हम दूसरों को माफ करते हैं तब हमें भी परमेश्वर से अपने पापों की माफी मिलती है। (मरकुस 11:25) पर हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमारे खिलाफ पाप करनेवालों को माफ करने के लिए हम तैयार रहते हैं? कई मामलों में, प्यार हमें उकसाएगा कि हम उनकी छोटी-मोटी गलतियों को नज़रअंदाज़ कर दें। (1 पतरस 4:8) अगर पाप करनेवाला सच्चे दिल से पछतावा दिखाता है, जैसे पतरस ने दिखाया था, तो हम बेशक यीशु के उदाहरण पर चलकर उसे माफ करने के लिए तैयार रहेंगे। उसके खिलाफ दिल में नाराज़गी पालने के बजाय हम बुद्धिमानी दिखाते हुए उसे माफ करेंगे। (इफिसियों 4:32) इससे न सिर्फ हम मंडली की शांति बरकरार रख पाएँगे बल्कि खुद अपने दिल और दिमाग की शांति बनाए रख सकेंगे।—1 पतरस 3:11.
अपना भरोसा ज़ाहिर किया
15. चेलों की खामियों के बावजूद यीशु ने उन पर भरोसा क्यों दिखाया?
15 प्यार और भरोसे का भी आपस में गहरा नाता है। प्यार “सब बातों पर यकीन करता है।”c (1 कुरिंथियों 13:7) यीशु अपने चेलों से प्यार करता था इसलिए उनके असिद्ध होने के बावजूद उसने उन पर भरोसा दिखाया। यीशु को उन पर पूरा भरोसा था, उसे यकीन था कि उसके चेले यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी इच्छा पूरी करना चाहते हैं। उनकी गलतियों के बावजूद यीशु ने कभी उनके इरादों पर शक नहीं किया। मसलन, जब प्रेषित याकूब और यूहन्ना ने अपनी माँ के ज़रिए यह कहलवाया कि यीशु के राज में उन दोनों को दाएँ-बाएँ बिठाया जाए, तब भी यीशु ने उनकी वफादारी पर शक नहीं किया या उन्हें प्रेषित की ज़िम्मेदारी से खारिज नहीं किया।—मत्ती 20:20-28.
16, 17. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ सौंपीं?
16 यीशु ने अपने चेलों को अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ सौंपकर उन पर अपना भरोसा दिखाया। दो मौकों पर जब उसने चमत्कार करके ढेर सारी रोटियाँ बनायीं और भीड़ को खिलाया तब उसने चेलों को खाना बाँटने की ज़िम्मेदारी दी। (मत्ती 14:19; 15:36) आखिरी फसह मनाने के लिए यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यरूशलेम जाकर उसकी तैयारी करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। उन्होंने बड़े ध्यान से फसह के लिए सारी ज़रूरी चीज़ों का बंदोबस्त किया, जैसे मेम्ना, दाख-मदिरा, बिन खमीर की रोटी, कड़वा साग वगैरह। यह काम कोई मामूली काम नहीं था क्योंकि सही तरीके से फसह मनाना मूसा के कानून की एक माँग थी और यीशु को भी उस माँग को पूरा करना था। इसके अलावा, उसी शाम यीशु ने अपनी मौत की याद में एक स्मारक की शुरूआत की, जिसमें उसने दाखरस और अखमीरी रोटी का इस्तेमाल किया।—मत्ती 26:17-19; लूका 22:8, 13.
17 आगे चलकर यीशु ने अपने चेलों को और भी भारी ज़िम्मेदारी लेने के काबिल समझा। जैसा कि हमने देखा उसने इस धरती पर अपने अभिषिक्त चेलों के एक छोटे समूह को आध्यात्मिक भोजन देने की अहम ज़िम्मेदारी सौंपी। (लूका 12:42-44) यह भी याद कीजिए कि उसने अपने चेलों को प्रचार और चेले बनाने का भारी काम सौंपा है। (मत्ती 28:18-20) आज यीशु स्वर्ग में राज कर रहा है और भले ही वह हमें नज़र नहीं आता, मगर फिर भी उसने धरती पर मंडलियों की देखभाल के लिए आध्यात्मिक तौर पर काबिल ‘आदमियों को तोहफे’ के रूप में दिया है।—इफिसियों 4:8, 11, 12.
18-20. (क) हम मसीही भाई-बहनों पर अपना भरोसा और विश्वास कैसे दिखा सकते हैं? (ख) ज़िम्मेदारी सौंपने के बारे में हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (ग) हम अगले अध्याय में किस बात पर चर्चा करेंगे?
18 दूसरों के साथ पेश आते वक्त हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? मसीही भाई-बहनों पर भरोसा और विश्वास दिखाकर हम अपने प्यार का सबूत देते हैं। आइए याद रखें कि प्यार हमेशा भला सोचता है, बुरा नहीं। हो सकता है और ऐसा होगा भी कि समय-समय पर दूसरे हमें निराश कर दें, ऐसे में अगर हममें प्यार होगा, तो हम फौरन उनके इरादों पर शक नहीं करेंगे। (मत्ती 7:1, 2) अगर हम अपने भाइयों के बारे में सही नज़रिया रखेंगे, तब हम उनका हौसला बढ़ाने की सोचेंगे, उन्हें गिराने की नहीं।—1 थिस्सलुनीकियों 5:11.
19 ज़िम्मेदारी सौंपने के बारे में क्या हम यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? मंडली में जो भाई ज़िम्मेदारी के पद पर हैं उनके लिए यह फायदेमंद है कि वे दूसरों को उनकी काबिलीयत के मुताबिक सही काम सौंपें और भरोसा रखें कि वे उस ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाएँगे। इस तरह तजुरबेकार प्राचीन उन काबिल जवान भाइयों को ज़रूरी और अनमोल तालीम दे सकते हैं जो “ज़िम्मेदारी पाने की कोशिश में आगे” बढ़ रहे हैं। (1 तीमुथियुस 3:1; 2 तीमुथियुस 2:2) यह तालीम बहुत ही ज़रूरी है। आज यहोवा राज के काम में बढ़ोतरी ला रहा है और ज़िम्मेदारी को उठाने के लिए काबिल भाइयों की ज़रूरत है।—यशायाह 60:22.
20 यीशु ने दूसरों को प्यार दिखाने के लिए हमारे सामने एक बेहतरीन मिसाल रखी है। हम कई मायनों में यीशु के नक्शेकदम पर चल सकते हैं मगर सबसे ज़रूरी है उसके प्यार की मिसाल पर चलना। यीशु ने हमारे लिए अपनी जान देकर अपने प्यार का सबसे बड़ा सबूत दिया है। और अगले अध्याय में हम इसी बात पर चर्चा करेंगे।
a प्रेषितों के गहरी नींद में सोने की वजह सिर्फ उनकी थकावट नहीं थी। लूका की किताब में जहाँ इसी घटना का ब्यौरा दिया गया है, उसके 22:45 में बताया गया है कि उस समय “वे बेहद दुःख की वजह से पस्त हो चुके थे।”
b ऐसा लगता है कि मरियम उस समय तक विधवा हो चुकी थी और उसके दूसरे बच्चे अभी भी यीशु के चेले नहीं बने थे।—यूहन्ना 7:5.
c बेशक इसका मतलब यह नहीं कि प्यार अंधा या नासमझ होता है। दरअसल प्यार बेवजह किसी पर दोष नहीं लगाता, ना ही शक करता है। प्यार करनेवाला व्यक्ति जल्दबाज़ी में दूसरों के इरादों पर उंगली नहीं उठाता या उनके बारे में गलत राय कायम नहीं करता है।
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