अपने साहित्य का अच्छा इस्तेमाल कीजिए
1. यहोवा के इंतज़ामों की कदर करने में हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
जब यीशु ने चमत्कार कर एक बड़ी भीड़ को खाना खिलाया, तब बचा हुआ खाना उसने इकट्ठा करवा लिया। (मत्ती 14:19-21) इस तरह उसने यहोवा के इंतज़ाम की कदर की और हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी कि हम भी यहोवा के उन इंतज़ामों का, जो वह ‘विश्वासयोग्य प्रबंधक’ के ज़रिए मुहैया कराता है, अच्छा इस्तेमाल करके यह ‘दिखाएँ कि हम एहसानमंद हैं।’—लूका 12:42; कुलु. 3:15; मत्ती 24:45-47.
2. पत्रिकाओं का ढेर न लगे, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं?
2 पत्रिकाएँ: पत्रिकाओं का आसानी से ढेर लग सकता है। अगर हमारे पास हर महीने पत्रिकाएँ बच जाती हैं, तो हमें अपना कोटा कम करा देना चाहिए। मगर जिन पत्रिकाओं का ढेर लग गया है उनका क्या करें? वे पत्रिकाएँ अब भी अहमियत रखती हैं। ऐसी पत्रिकाओं को असरदार तरीके से बाँटने में सेवा अध्यक्ष या कोई और प्राचीन हमारी मदद कर सकता है।
3, 4. जब हम राज्य-घर से साहित्य लेते हैं, तो हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
3 दूसरे साहित्य: जब किसी महीने की साहित्य पेशकश बदलती है, तो राज्य-घर से उसकी कॉपियाँ लेने से पहले देख लीजिए कि कहीं उसकी कॉपियाँ आपके घर में हैं तो नहीं। काउंटर से सिर्फ उतनी कॉपियाँ लीजिए, जितनी आप हफ्ते-भर में पेश कर सकते हैं। और खत्म होने के बाद, अगले हफ्ते दोबारा लीजिए।
4 खुद के इस्तेमाल के लिए उतने साहित्य की गुज़ारिश कीजिए, जितनों की आपको वाकई ज़रूरत है। अपनी कॉपी में दी जगह पर अपना नाम लिखिए, ताकि वह जल्दी गुम न हो। अगर आपके पास सी-डी रॉम पर वॉचटावर लाइब्रेरी है और आपने पत्रिकाओं की निजी कॉपियाँ सँभालकर रखी हैं, तो उनका अच्छा इस्तेमाल कीजिए।
5. अपने साहित्य दूसरों को देते वक्त हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
5 साहित्य बाँटना: हमारी कोशिश रहती है कि हम अपने साहित्य सिर्फ उन्हें दें, जो सच्ची दिलचस्पी दिखाते हैं। जहाँ तक इन अनमोल साहित्य के खर्च की बात है, तो याद रखिए कि इसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी पहले हमारी बनती है। और हाँ, जब आप दिलचस्पी दिखानेवालों को साहित्य देते हैं, तो आप बेझिझक उन्हें बताइए कि पूरी दुनिया में हो रहे काम में वे भी दान देकर अपना सहयोग दे सकते हैं।
6. हम अपने साहित्य को बेशकीमती क्यों समझते हैं? ऐसा नज़रिया हमें क्या करने के लिए उभारता है?
6 हालाँकि यीशु ने चमत्कार कर लोगों का पेट भरा, मगर ज़्यादातर उसने लोगों की आध्यात्मिक भूख मिटायी। यीशु ने कहा: “इंसान सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रह सकता, बल्कि उसे यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन से ज़िंदा रहना है।” (मत्ती 4:4) हमारे साहित्य में बाइबल की वे अनमोल सच्चाइयाँ हैं, जिनकी बदौलत लोग हमेशा की ज़िंदगी पा सकते हैं। (यूह. 17:3) जी हाँ, ऐसे बेशकीमती साहित्य को हम फिज़ूल नहीं जाने देंगे!