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बाइबल का दृष्टिकोण

निराशा का सामना कैसे करें

हर इंसान की ज़िंदगी में कभी-न-कभी ऐसा वक्‍त ज़रूर आता है जब वह निराश हो जाता है। लेकिन कई बार वह इस कदर टूट जाता है कि मौत के सिवाय उसे और कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।

बाइबल दिखाती है कि परमेश्‍वर के वफादार सेवकों को भी निराशा घेर सकती है। कई बार ज़िंदगी की मुश्‍किलों से लड़ते-लड़ते वे उम्मीद खो बैठते हैं। मिसाल के तौर पर एलिय्याह और अय्यूब को ही लीजिए। परमेश्‍वर के साथ उनका बहुत गहरा और मज़बूत रिश्‍ता था। एलिय्याह को मारने के लिए जब दुष्ट रानी ईज़ेबेल हाथ धोकर पीछे पड़ गई थी तो वह अपनी जान बचाकर भागा। इस तरह भागते रहने से वह इतना तंग आ चुका था कि उसने यहोवा से “अपनी मृत्यु मांगी।” (1 राजा 19:1-4) धर्मी अय्यूब पर भी एक-के-बाद मुसीबतों का पहाड़ टूटता गया। उसे अपने दस बच्चों की मौत का सदमा बर्दाश्‍त करना पड़ा। इतना ही नहीं खुद उसे सिर से लेकर पाँव तक एक घिनौनी बीमारी हो गई। (अय्यूब 1:13-19; 2:7, 8) अय्यूब की हालत इतनी खराब हो गई थी कि उसने निराश होकर कहा: “जीवित रहने से . . . मुझे मर जाना ज्यादा पसन्द है।” (अय्यूब 7:15; ईज़ी-टू-रीड वर्शन) परमेश्‍वर के इन सेवकों को निराशा ने इस कदर घेर लिया था कि उनके लिए जीना भी दुशवार हो गया था।

हम भी कई बार ज़िंदगी से मायूस हो जाते हैं। इसकी कई वज़ह हो सकती हैं। ढलती उम्र, जीवन-साथी की मौत का गम, गरीबी या तनाव। या कुछ लोगों को किसी खतरनाक हादसे की यादें भुलाए नहीं भूलतीं। कुछ लोगों के परिवार की नैया मुसीबत के भँवर में डूब रही है और उन्हें बचने का कोई रास्ता नहीं सूझता। एक आदमी कहता है, “आप इतने निराश हो जाते हैं कि खुद को इस दुनिया पर बोझ समझने लगते हैं। आप सोचते हैं कि आपके मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़नेवाला। इस तरह के अकेलेपन का बोझ बर्दाश्‍त से बाहर हो जाता है।”

कुछ लोगों के हालात सुधर जाते हैं और उन्हें राहत मिल जाती है। लेकिन तब क्या जब हमारी मुसीबतों या मुश्‍किल हालातों से कोई छुटकारा ही न हो? क्या ऐसे में बाइबल हमारी मदद कर सकती है?

बाइबल आपकी मदद कर सकती है

मुसीबत के वक्‍त में एलिय्याह और अय्यूब को किसने बचाया था? यहोवा ने। क्योंकि उसके पास ऐसा करने की न सिर्फ काबिलीयत है बल्कि ताकत भी है। (1 राजा 19:10-12; अय्यूब 42:1-6) यह जानकर हमें कितना सुकून मिलता है कि मुसीबत के वक्‍त हम यहोवा की पनाह में जा सकते हैं। बाइबल कहती है, “परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक।” (भजन 46:1; 55:22) बुरे हालात चाहे हमें कितना ही निराश क्यों न कर दें, लेकिन यहोवा वादा करता है कि वह अपने धर्ममय दहिने हाथ से हमें सँभाल लेगा। (यशायाह 41:10) यहोवा से मदद पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

बाइबल कहती है कि हमें प्रार्थना करनी चाहिए तब ‘परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, हमारे हृदय और हमारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।’ (फिलिप्पियों 4:6, 7) निराशा की वज़ह से शायद हमें चारों तरफ अंधेरा नज़र आये और कोई रास्ता न सूझे। लेकिन अगर हम ‘प्रार्थना में नित्य लगे रहें’ तो यहोवा हमारे हृदय और मन की रक्षा ज़रूर करेगा और हमें निराशा से लड़ने की ताकत भी देगा।—रोमियों 12:12; यशायाह 40:28-31; 2 कुरिन्थियों 1:3, 4; फिलिप्पियों 4:13.

प्रार्थना करते वक्‍त हमें यहोवा से अपने दिल की बातें सीधे और साफ तरीके से कहनी चाहिए। यह सच है कि जैसा हम महसूस करते हैं उसे शब्दों में बयान कर पाना बहुत मुश्‍किल होता है। लेकिन हम यहोवा के सामने बेझिझक होकर यह बता सकते हैं कि हमारे ऊपर क्या बीत रही है और हमारी नज़रों में इस मुसीबत की वज़ह क्या है। हमें उससे बिनती करनी चाहिए कि वह हमें ऐसी ताकत दे ताकि हम हर दिन बुरे हालातों का सामना कर पाएँ। बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “[यहोवा] अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, और उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है।”—भजन 145:19.

एक बात का ख्याल रहे कि हमें एकांतवासी नहीं बन जाना चाहिए। (नीतिवचन 18:1) दूसरों की मदद करने से भी हमें अच्छा महसूस होगा। (नीतिवचन 19:17; लूका 6:38) मरियाa नाम की एक महिला को ही लीजिए, जो न सिर्फ कैंसर से जूझ रही थी बल्कि उसने एक साल के अंदर-अंदर अपने परिवार के आठ सदस्यों को मौत के मुँह में जाते देखा था। इसके बावजूद, मरिया ने हिम्मत नहीं हारी। वह बिस्तर पर लेटे रहने के बजाय हर सुबह हिम्मत करके उठ जाती है और रोज़मरा के काम में लग जाती। लगभग हर दिन वह दूसरों को बाइबल के बारे में सिखाने जाती और हर मसीही सभा में हाज़िर होती। घर लौटने पर मरिया की निराशा उसे दोबारा धर-दबोचती। फिर भी दूसरों की मदद करने से उसे जो खुशी मिलती है उससे वह अपनी निराशा से लड़ पायी है।

लेकिन अगर हमें प्रार्थना करना मुश्‍किल लगे और कोशिश करने पर भी हम अकेलेपन की भावना को दूर न कर पाएँ तब हम क्या कर सकते हैं? ऐसे में हमें दूसरों की मदद लेने की ज़रूरत है। बाइबल भी हमें सलाह देती है कि हमें “कलीसिया के प्राचीनों” के पास जाना चाहिए। (याकूब 5:13-16) एक आदमी जो काफी लंबे अरसे से निराशा से जूझता आ रहा है, उसका कहना है, “कभी-कभी किसी भरोसेमंद साथी के साथ बात कर लेने से आपके दिल का बोझ हलका हो सकता है और आपको चैन महसूस होगा। फिर आप ठंडे दिमाग से यह सोच पाएँगे कि समस्या का सामना कैसे किया जाए।” (नीतिवचन 17:17) लेकिन कई मामलों में हो सकता है कि यह मायूसी किसी बीमारी की वज़ह से हो, ऐसे में डॉक्टरों से इलाज करवाने की ज़रूरत पड़ सकती है।b—मत्ती 9:12.

माना कि समस्याओं का हल आसानी से नहीं मिलता, लेकिन एक बार यहोवा पर भरोसा करके तो देखिए। हमें उसकी मदद करने की ताकत को कभी भी कम नहीं समझना चाहिए। (2 कुरिन्थियों 4:8) प्रार्थना में लगे रहने, एकांतवास से बचे रहने, और प्राचीनों की मदद लेने से हम मायूसी से लड़ सकते हैं। बाइबल वादा करती है कि बहुत जल्द परमेश्‍वर हर तरह की निराशा को जड़ से खत्म कर देगा। मसीहियों का यह पक्का इरादा है कि परमेश्‍वर पर उनका विश्‍वास कभी नहीं डगमगाएगा और वे धीरज के साथ उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करेंगे जब “पहिली बातें स्मरण [में भी] न रहेंगी।”—यशायाह 65:17; प्रकाशितवाक्य 21:4.

[फुटनोट]

a यह उसका असली नाम नहीं है।

b सजग होइए! किसी खास किस्म के इलाज को बढ़ावा नहीं देती। हर मसीही की यह अपनी ज़िम्मेदारी है कि वह जो भी इलाज करवाता है वह बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ न हो। इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए अक्‍तूबर 15, 1988 प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 25-9 देखिए।

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