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दुःख-तकलीफ सहनेवालों को दिलासाप्रहरीदुर्ग—2003 | जनवरी 1
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परमेश्वर ने इंसानों को इसलिए नहीं बनाया था कि वे दुःख-तकलीफों की चक्की में पिसते रहें, बल्कि उसने पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा को एक सिद्ध मन और शरीर दिया था। उसने उनके लिए एक सुंदर बागीचे की रचना की जो उनका घर था और उन्हें एक ज़रूरी काम सौंपा जिसे पूरा करने पर उन्हें खुशी और संतुष्टि मिलती। (उत्पत्ति 1:27, 28, 31; 2:8) मगर हाँ, उनकी खुशी तब तक ही बरकरार रहती जब तक वे इस बात को मानकर चलते कि हुकूमत करने और अच्छे-बुरे का फैसला करने का अधिकार सिर्फ परमेश्वर को है। ‘भले या बुरे के ज्ञान का वृक्ष,’ परमेश्वर की आज्ञा को दर्शाता था। (उत्पत्ति 2:17) आदम और हव्वा उस पेड़ का फल न खाने की परमेश्वर की आज्ञा मानकर यह दिखा सकते थे कि वे परमेश्वर के अधीन रहना चाहते हैं।a
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दुःख-तकलीफ सहनेवालों को दिलासाप्रहरीदुर्ग—2003 | जनवरी 1
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a द जेरूसलेम बाइबल में, उत्पत्ति 2:17 का फुटनोट कहता है, “भले और बुरे के ज्ञान” का मतलब “क्या अच्छा है और क्या बुरा . . . उसका फैसला करने और उसके मुताबिक जीने का हक है। यह एक दावा है कि उन्हें परमेश्वर से पूरी तरह आज़ाद होकर जीने का हक है। इस हक का इस्तेमाल करके इंसान यह कबूल करने से इनकार करता है कि उसे परमेश्वर ने बनाया है।” फुटनोट आगे बताता है: “पहला पाप दरअसल परमेश्वर की हुकूमत के खिलाफ एक चुनौती था।”
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