मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2024 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
1-7 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 57-59
यहोवा विरोधियों की कोशिशें नाकाम कर देता है
“दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में”
14 स्तिफनुस ने अपने दुश्मनों के हाथों मरने से पहले निडर होकर गवाही दी थी। (प्रेषि. 6:5; 7:54-60) उसके बाद जब मसीहियों पर “बहुत ज़ुल्म” होने लगे, तो प्रेषितों को छोड़ बाकी सभी चेले यहूदिया और सामरिया में तितर-बितर हो गए। लेकिन इससे गवाही देने का काम नहीं रुका। फिलिप्पुस ने सामरिया में “मसीह के बारे में प्रचार” किया और उसे बढ़िया नतीजे मिले। (प्रेषि. 8:1-8, 14, 15, 25) इसके अलावा, बाइबल में लिखा है, “स्तिफनुस के कत्ल के बाद जब भाइयों पर ज़ुल्म होने लगे और वे तितर-बितर हो गए, तो वे फीनीके, कुप्रुस और अंताकिया तक पहुँच गए। मगर उन्होंने यहूदियों के अलावा किसी और को परमेश्वर का संदेश नहीं सुनाया। लेकिन उनमें से कुछ चेले जो कुप्रुस और कुरेने के थे, वे अंताकिया आए और यूनानी बोलनेवाले लोगों को प्रभु यीशु की खुशखबरी सुनाने लगे।” (प्रेषि. 11:19, 20) देखा जाए तो ज़ुल्मों की वजह से खुशखबरी दूर-दूर के इलाकों तक फैलती गयी।
15 आज हमारे दिनों में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। सन् 1950 के दशक में भूतपूर्व सोवियत संघ के हज़ारों भाइयों को साइबेरिया भेज दिया गया। वहाँ उन्हें दूर-दूर के इलाकों में तितर-बितर कर दिया गया। मगर इसका अच्छा नतीजा निकला। साक्षियों को जहाँ-जहाँ भेजा गया वहाँ वे खुशखबरी सुनाते गए। इस तरह साइबेरिया के बहुत बड़े इलाके में खुशखबरी फैल गयी। अगर सरकार साक्षियों को उन इलाकों में नहीं भेजती तो वे खुद कभी वहाँ नहीं जा सकते थे क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वे 10,000 किलोमीटर का लंबा सफर तय करके वहाँ जाते। लेकिन खुद सरकार ने ही साक्षियों को मुफ्त में साइबेरिया भेज दिया! एक भाई ने कहा, “सरकारी अधिकारियों की वजह से ही साइबेरिया के हज़ारों नेकदिल लोगों ने सच्चाई सीखी।”
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“अटल बनो, डटे रहो”
16 अपना दिल “अटल” या मज़बूत कीजिए। जब राजा दाविद ने एक भजन में यह कहा, “हे परमेश्वर, मेरा दिल अटल है,” तो वह शायद कह रहा था कि चाहे जो हो जाए, यहोवा के लिए उसका प्यार कभी कम नहीं होगा। (भज. 57:7) हमारा दिल भी अटल हो सकता है और हम यहोवा पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। (भजन 112:7 पढ़िए।) ज़रा भाई बॉब के उदाहरण पर फिर से गौर कीजिए। जब डॉक्टर ने उनसे कहा कि ऑपरेशन के दौरान वे खून पास में रखेंगे, क्योंकि हो सकता है इसकी ज़रूरत पड़े, तो ध्यान दीजिए क्या हुआ। उन्होंने तुरंत डॉक्टर से कहा कि अगर वे खून चढ़ाने की ज़रा भी सोच रहे हैं, तो वे एक पल भी वहाँ नहीं रुकेंगे। बाद में भाई बॉब ने कहा, “मुझे अपने फैसले पर ज़रा भी शक नहीं था। मेरे साथ चाहे जो भी होता, मुझे कोई चिंता नहीं थी।”
17 भाई बॉब इसलिए अटल रह पाए, क्योंकि उन्होंने अस्पताल जाने से बहुत पहले ही सोच लिया था कि वे अपने फैसले पर डटे रहेंगे। वे ऐसा कैसे कर पाए? पहली बात, वे यहोवा को खुश करना चाहते थे। दूसरी, उन्होंने बाइबल की वे आयतें और हमारे उन प्रकाशनों का अच्छी तरह अध्ययन किया जिनमें समझाया गया है कि जीवन और खून पवित्र हैं। तीसरी, उन्हें यकीन था कि यहोवा की हिदायतें मानने से ना सिर्फ आज उनका भला होगा, बल्कि भविष्य में भी उन्हें आशीषें मिलेंगी। आज हमारे सामने भी चाहे जैसी भी मुश्किलें आएँ, हमारा दिल भी अटल हो सकता है।
8-14 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 60-62
यहोवा हमारी हिफाज़त करता है और मज़बूत खड़े रहने में मदद करता है
इंसाइट-2 पेज 1118 पै 7
मीनार
लाक्षणिक मतलब: जो लोग यहोवा पर विश्वास करते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं, वे बहुत सुरक्षित महसूस करते हैं। जैसा दाविद ने अपने गीत में यहोवा के बारे में लिखा, “तू मेरा गढ़ है, एक मज़बूत मीनार है जो दुश्मन से मेरी हिफाज़त करती है।” (भज 61:3) जो यहोवा के नाम का मतलब समझते हैं, उस पर भरोसा रखते हैं और जो उसके नाम से जाने जाते हैं और उसकी बतायी राह पर चलते हैं, उन्हें किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं। बाइबल में लिखा है, “यहोवा का नाम एक मज़बूत मीनार है, जिसमें भागकर नेक जन हिफाज़त पाता है।”—नीत 18:10. 1शम 17:45-47 से तुलना करें।
इंसाइट-2 पेज 1084 पै 8
तंबू
बाइबल की कई आयतों में “तंबू” शब्द का एक और मतलब है। एक व्यक्ति का तंबू उसके लिए आराम करने और बुरे मौसम से बचने की जगह होती थी। (उत 18:1) पुराने ज़माने में जब मेहमान-नवाज़ी दिखाने के लिए किसी को अपने तंबू में बुलाया जाता था, तो उसकी देखभाल और उसका आदर-सत्कार किया जाता था। इसलिए जब प्रकाशितवाक्य 7:15 में लिखा है कि बड़ी भीड़ के लोगों पर ‘परमेश्वर अपना तंबू तानेगा,’ तो इसका मतलब है कि वह उनकी देखभाल करेगा और उन्हें सुरक्षित रखेगा। (भज 61:3, 4) यशायाह ने बताया कि परमेश्वर की पत्नी, यानी सिय्योन को अपने होनेवाले बच्चों के लिए क्या-क्या तैयारियाँ करनी हैं। यहोवा उससे कहता है, “अपने तंबू को बड़ा कर, अपने आलीशान डेरे का कपड़ा फैला।” (यश 54:2) इसलिए वह बच्चों के लिए सुरक्षित जगह को और बड़ा करती है।
परमेश्वर के नियम हमारे फायदे के लिए हैं
14 परमेश्वर के नियम कभी नहीं बदलते। आज के इस मुश्किलों से भरे समय में, यहोवा हमारे लिए एक मज़बूत चट्टान की तरह है। वह अनादिकाल से अनन्तकाल तक है। (भजन 90:2) अपने बारे में उसने कहा: “मैं यहोवा बदलता नहीं।” (मलाकी 3:6) बाइबल में दर्ज़ परमेश्वर के नियम अटल हैं। वे इंसान की बदलती विचार धाराओं की तरह नहीं हैं, जो दलदल की तरह स्थिर नहीं रहते। (याकूब 1:17) मिसाल के लिए, कई सालों तक, मनोवैज्ञानिकों ने यह सलाह दी कि माँ-बाप को बच्चों के साथ सख्ती नहीं बरतनी चाहिए, मगर बाद में कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपनी राय बदल दी और कबूल किया कि उनकी वह सलाह गलत थी। इस मामले में संसार के स्तर और सिद्धांत हमेशा बदलते रहते हैं, मानो वे हवा के थपेड़ों से कभी इधर तो कभी उधर भटकते रहते हैं। लेकिन यहोवा का वचन हमेशा अटल है। सदियों से बाइबल ने यह सलाह दी है कि बच्चों की परवरिश कैसे प्यार से की जानी चाहिए। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।” (इफिसियों 6:4) यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि हम यहोवा के स्तरों पर भरोसा रख सकते हैं; वे कभी नहीं बदलेंगे!
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भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
62:11. परमेश्वर को शक्ति के लिए किसी बाहरी स्रोत पर निर्भर करने की ज़रूरत नहीं है। वह खुद शक्ति का स्रोत है। जी हाँ, “सामर्थ्य परमेश्वर [ही] का है।”
15-21 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 63-65
“तेरा अटल प्यार जीवन से कहीं ज़्यादा अनमोल है”
प्र01 10/15 पेज 15-16 पै 17-18
परमेश्वर के प्रेम से हमें कौन अलग कर सकता है?
17 आप परमेश्वर के प्रेम की कितनी कदर करते हैं? क्या आप भी दाऊद की तरह महसूस करते हैं, जिसने लिखा था: “क्योंकि तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है, मैं तेरी प्रशंसा करूंगा। इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊंगा”। (भजन 63:3, 4) क्या इस दुनिया में ऐसी कोई चीज़ है जो परमेश्वर के प्रेम और उसकी सच्ची दोस्ती से वाकई ज़्यादा कीमती हो? मिसाल के लिए, परमेश्वर के साथ एक नज़दीकी रिश्ता होने पर जो मन की शांति और खुशी मिलती है, उसे छोड़कर क्या पैसा कमाने की धुन में लग जाना ज़्यादा बेहतर होगा? (लूका 12:15) कुछ मसीहियों के सामने यह चुनाव पेश किया गया कि उन्हें यहोवा चाहिए या ज़िंदगी चाहिए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नात्ज़ी यातना शिविरों में बहुत-से यहोवा के साक्षियों के साथ यही हुआ। तब उनमें बस कुछ को छोड़, हमारे सभी मसीही भाई-बहनों ने परमेश्वर के प्रेम में बने रहने का चुनाव किया और इसके लिए वे अपनी जान की बाज़ी तक लगाने को तैयार थे। जो लोग इस तरह परमेश्वर के वफादार रहते हुए उसके प्रेम में बने रहते हैं, वे यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा। यह एक ऐसी चीज़ है जो संसार हमें कभी नहीं दे सकता। (मरकुस 8:34-36) लेकिन हमेशा की ज़िंदगी के अलावा, परमेश्वर हमें और भी बहुत कुछ देनेवाला है।
18 हालाँकि यहोवा के बिना हमेशा ज़िंदा रहना मुमकिन नहीं है मगर फिर भी कल्पना कीजिए कि अगर हमें उसके बगैर जीना पड़े तो वह ज़िंदगी कितनी उबाऊ लगेगी। सिरजनहार के बिना ज़िंदगी में कोई मकसद नहीं होगा, हम खालीपन महसूस करेंगे। यहोवा ने इन अंतिम दिनों में भी अपने लोगों को ऐसा काम दिया है जिससे उन्हें संतोष मिलता है। इसलिए हम भरोसा रख सकते हैं कि अपने उद्देश्यों को पूरा करनेवाला महान परमेश्वर, यहोवा जब हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा, तब ज़िंदगी और भी मज़ेदार होगी, साथ ही सीखने और करने के लिए हमारे पास काफी अच्छी बातें होंगी। (सभोपदेशक 3:11) आनेवाले हज़ारों सालों के दौरान, हम चाहे जितनी भी नयी-नयी बातें सीखें, मगर हम ‘परमेश्वर के धन और बुद्धि और ज्ञान की गहराई’ को कभी-भी पूरी तरह नहीं समझ पाएँगे।—रोमियों 11:33, हिन्दुस्तानी बाइबल।
“हर बात के लिए धन्यवाद” दीजिए
हमें खासकर यहोवा का एहसान मानना चाहिए। शायद कभी-कभी हम सोचते हों कि उसने हमें बेशुमार आशीषें दी हैं और अब भी दे रहा है। (व्यव. 8:17, 18; प्रेषि. 14:17) उसने हमें और हमारे अज़ीज़ों को जो आशीषें दी हैं, उनके बारे में गहराई से सोचिए। जब हम ऐसा करते हैं, तो सृष्टिकर्ता के लिए हमारी कदर बढ़ जाती है। इसके अलावा, हम यह भी समझ पाते हैं कि वह हमसे कितना प्यार करता है और हमारी परवाह करता है।—1 यूह. 4:9.
यहोवा की सृष्टि और उसके वचन पर मनन करते रहिए
7 पढ़ना हमारे लिए आसान हो सकता है, जबकि पढ़ी हुई बातों पर मनन करने में काफी मेहनत लगती है। और असिद्ध होने की वजह से हमारा मन हमेशा ऐसे कामों की तरफ दौड़ता है जो आसान होते हैं या जिनमें कम मेहनत लगती है। इसलिए ऐसे वक्त पर मनन करना सबसे अच्छा होता है जब आप थके हुए न हों और आपके आस-पास का माहौल भी शांत हो। भजनहार दाविद रात में अपने बिस्तर पर मनन किया करता था। (भज. 63:6) यीशु जो सिद्ध था, वह भी मनन करने और प्रार्थना करने के लिए शांत जगह पर जाता था।—लूका 6:12.
यीशु की तरह प्यार से सिखाइए
6 हमारी ज़िंदगी में जो बातें अहमियत रखती हैं, अकसर हम उनके बारे में बात करना पसंद करते हैं। और उस वक्त हमारे चेहरे पर जो खुशी खिलती है और हमारे हाव-भाव में जो जोश नज़र आता है, उसे दूसरे साफ देख पाते हैं। यह बात तब भी सच होती है जब हम उस व्यक्ति के बारे में बात करते हैं जो हमारे दिल के करीब हो। आम तौर पर हम उसके बारे में दूसरों को बताने के लिए बेताब रहते हैं। हम उसकी तारीफ करते नहीं थकते, उसे सम्मान देते हैं और अगर कोई उसके खिलाफ कुछ कहता है, तो हम फौरन उसकी पैरवी करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं ताकि दूसरे भी उसे और उसके गुणों को पसंद करें।
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प्र07 11/15 पेज 15 पै 6, अँग्रेज़ी
क्या आपसे दूसरों को ताज़गी मिलती है?
एक इमारत गिराना आसान है, पर उसे खड़े करने में बहुत मेहनत लगती है। यही बात हमारी बोली के बारे में भी सच है। हम सब अपरिपूर्ण हैं, इसलिए हमसे कई बार गलतियाँ हो जाती हैं। राजा सुलैमान ने भी कहा, “धरती पर ऐसा कोई नेक इंसान नहीं, जो हमेशा अच्छे काम करता है और कभी पाप नहीं करता।” (सभोपदेशक 7:20) हमें दूसरों की गलतियाँ बहुत जल्दी नज़र आ जाती हैं और शायद हम उन्हें कुछ बुरा-भला कह दें। (भजन 64:2-4) लेकिन अगर हम अपनी बातों से दूसरों का हौसला बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें मेहनत करनी होगी और बातचीत करने की अपनी कला निखारनी होगी।
22-28 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 66-68
यहोवा हर दिन हमारा बोझ उठाता है
यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब कैसे देता है?
15 यहोवा हमेशा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब शानदार तरीके से नहीं देता, पर देता ज़रूर है। वह जानता है कि उसके वफादार रहने के लिए हमें क्या चाहिए और हमें ठीक वही देता है। तो हमेशा इस बात पर ध्यान दीजिए कि यहोवा किस तरह आपकी प्रार्थनाओं का जवाब दे रहा है। योको नाम की एक बहन को लगा कि यहोवा उनकी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं दे रहा है। तब उन्होंने एक कॉपी में वे बातें लिखनी शुरू कर दीं जिनके बारे में वे प्रार्थना कर रही थीं। फिर कुछ समय बाद जब उन्होंने अपनी कॉपी देखी, तो उन्हें एहसास हुआ कि यहोवा ने उनकी ज़्यादातर प्रार्थनाओं का जवाब दे दिया है और कुछ ऐसी प्रार्थनाओं का भी जिनके बारे में वे खुद भी भूल गयी थीं। हमें भी समय-समय पर इस बारे में सोचना चाहिए कि यहोवा किस तरह हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दे रहा है।—भज. 66:19, 20.
अकेले बच्चों की परवरिश करनेवालों के लिए लिहाज़ दिखाइए
यहोवा ने अपनी शक्ति के ज़रिए कुछ पवित्र गीत और भजन लिखवाए थे, ताकि उसकी उपासना के वक्त इसराएली उन्हें गा सकें। ज़रा सोचिए, प्राचीन इसराएल में विधवाओं और अनाथों को इनसे कितना हौसला और सुकून मिलता होगा, जब वे इन्हें गाते वक्त यहोवा को “पिता” और “न्यायी” कहकर पुकारते होंगे। (भजन 68:5; 146:9) हम भी अकेले बच्चों की परवरिश करनेवालों से हौसला बढ़ानेवाली बातें कह सकते हैं, जिसे वे बरसों-बरस बाद भी याद रखेंगे। रूत पिछले बीस सालों से अकेले बच्चों की परवरिश कर रही है मगर आज भी वह एक अनुभवी पिता की कही बात याद करती है। जिसने कहा था, “शाबाश! तुम अपने बेटों की परवरिश बहुत अच्छी तरह कर रही हो। ऐसे ही करती रहना।” रूत कहती है, “उसकी बात मेरे ज़हन में घर कर गयी।” सच, “मधुर वचन . . . जीवन का वृक्ष” होते हैं और ये वचन अकेले बच्चों की परवरिश करनेवालों में इस कदर जान फूँक सकते हैं जिसका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। (नीतिवचन 15:4, NHT) क्या आप किसी बात के लिए उनकी दिल से तारीफ कर सकते हैं?
अनाथों का पिता
‘परमेश्वर अपने पवित्र धाम में अनाथों का पिता है।’ (भजन 68:5) ईश्वर-प्रेरणा से लिखे ये शब्द हमें उसके और भी करीब लाते हैं। इससे हम सीखते हैं कि उसे लाचार और बेसहारा लोगों की बहुत फिक्र है और वह उनकी ज़रूरतों का पूरा खयाल रखता है। उसे अनाथ बच्चों की परवाह है, इसका सबूत हमें इसराएलियों को दिए कानून से मिलता है। आइए निर्गमन 22:22-24 देखें, जहाँ “अनाथ बालक” का सबसे पहला ज़िक्र मिलता है।
यहोवा आपको कामयाबी दिला रहा है!
15 भजन 40:5 पढ़िए। कई लोगों को पहाड़ों पर चढ़ना पसंद है। पहाड़ चढ़ते वक्त वे चोटी पर तो पहुँचना चाहते ही हैं, पर वे बीच-बीच में रुककर आस-पास के सुंदर नज़ारों का भी मज़ा लेते हैं। उसी तरह आप जल्द-से-जल्द अपनी मुश्किलें पार करना चाहते होंगे। पर उनसे गुज़रते वक्त समय-समय पर इस बारे में भी सोचिए कि यहोवा किस तरह आपकी मदद कर रहा है, कैसे आपको कामयाबी दिला रहा है। आप चाहें तो हर दिन के आखिर में इन सवालों के बारे में सोच सकते हैं: ‘आज यहोवा ने किस तरह मुझे आशीष दी? मेरी मुश्किल खत्म तो नहीं हुई है, पर यहोवा कैसे इसे सहने में मेरी मदद कर रहा है?’ कोशिश कीजिए कि आप कम-से-कम एक आशीष के बारे में सोचें, जिससे पता चलता है कि आप कामयाब हुए हैं।
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भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ
68:18 (बुल्के बाइबिल)—ये ‘मनुष्य’ कौन हैं जिन्हें “शुल्क-स्वरूप ग्रहण किया” गया है? ये उन लोगों में से कुछ पुरुष थे जिन्हें वादा-ए-मुल्क के नाश के बाद, बंदी बनाकर ले गए थे। इन पुरुषों को बाद में लेवियों की मदद करने का काम सौंपा गया था।—एज्रा 8:20.
29 जुलाई–4 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 69
यीशु की ज़िंदगी में जो कुछ हुआ, वह पहले से भजन 69 में बताया गया था
उन्होंने मसीहा के आने की आस लगायी
17 बिना किसी कारण मसीहा से नफरत की जाएगी। (भज. 69:4) प्रेषित यूहन्ना ने यीशु के शब्दों का हवाला देते हुए कहा: “अगर मैंने उनके बीच ये काम न किए होते, तो उनमें कोई पाप न होता। मगर अब उन्होंने मेरे काम देखे हैं और मुझसे और मेरे पिता, दोनों से नफरत की है। मगर यह इसलिए हुआ कि उनके कानून में लिखी यह बात पूरी हो सके: ‘उन्होंने बेवजह मुझसे नफरत की।’” (यूह. 15:24, 25) अकसर शब्द “कानून” पूरे शास्त्र को दर्शाता है। (यूह. 10:34; 12:34) खुशखबरी की किताबें साबित करती हैं कि यीशु से नफरत की गयी और खासकर यहूदी धर्म गुरुओं ने ऐसा किया। इसके अलावा मसीह ने कहा: “दुनिया के पास तुमसे नफरत करने की कोई वजह नहीं है, मगर यह मुझसे नफरत करती है, क्योंकि मैं इसके बारे में गवाही देता हूँ कि इसके काम दुष्ट हैं।”—यूह. 7:7.
सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो
7 एक मौके पर यीशु ने परमेश्वर की सेवा के लिए बड़े ज़बरदस्त तरीके से अपना जोश दिखाया। यह तब की बात है, जब यीशु ने अपनी सेवा शुरू ही की थी। ईसवी सन् 30 के फसह का पर्व था। वह और उसके चेले यरूशलेम आए और उन्होंने मंदिर में “मवेशियों और भेड़ों और कबूतरों की बिक्री करनेवालों को और पैसे बदलनेवाले सौदागरों को अपनी-अपनी गद्दियों” पर बैठे देखा। तब यीशु ने क्या किया और इसका उसके चेलों पर क्या असर हुआ?—यूहन्ना 2:13-17 पढ़िए।
8 उस दिन यीशु ने जो कहा और किया, उससे चेलों को दाविद की यह भविष्यवाणी याद आयी: “मैं तेरे भवन के निमित्त जलते जलते भस्म हुआ।” (भज. 69:9) उन्हें क्यों वह भविष्यवाणी याद आयी? क्योंकि जिस इंसान के दिल में ऐसी आग जलती हो, वही खतरनाक और जोखिम भरा काम कर सकता है, जैसा यीशु ने किया था। मंदिर में धोखाधड़ी से किए जानेवाले उस धंधे के पीछे और किसी का नहीं, बल्कि शास्त्रियों, फरीसियों और मंदिर के दूसरे अधिकारियों का हाथ था। उनकी पोल खोलकर यीशु ने दरअसल धर्म के ठेकेदारों से दुश्मनी मोल ले ली। इसलिए जब चेलों ने उसे ऐसा करते देखा, तो उन्हें यीशु का ‘परमेश्वर के घर’ या सच्ची उपासना के लिए “जोश” साफ नज़र आया। लेकिन जोश का मतलब क्या है? किसी काम को बेहद ज़रूरी समझने या उसके लिए जोश होने में क्या अंतर है?
सज95 10/22 पेज 31 पै 4, अँग्रेज़ी
अगर किसी का दिल दर्द से भरा है, तो क्या इससे उसकी मौत हो सकती है?
कुछ लोग मानते हैं कि यीशु की मौत की एक वजह यह थी कि उसका दिल बहुत बेचैन था और वह बड़े तनाव में था, ठीक जैसे भविष्यवाणी में लिखा था, “घोर अपमान सहते-सहते मेरा दिल टूट गया है, अब यह घाव भर नहीं सकता।” (भजन 69:20) क्या यीशु के साथ सच में ऐसा हुआ था? हो सकता है, क्योंकि अपनी मौत से ठीक पहले यीशु बहुत दर्द में था। उसे ना सिर्फ बुरी तरह मारा-पीटा गया था बल्कि वह अंदर से भी बहुत परेशान था। (मत्ती 27:46; लूका 22:44; इब्रानियों 5:7) एक और बात पर गौर कीजिए। यीशु के मरने के तुरंत बाद जब एक सैनिक ने अपना भाला उसकी पसलियों में भोंका, तो “खून और पानी” बहने लगा। ऐसा तब हो सकता है जब गहरे दुख की वजह से दिल फट जाता है या खून की कोई बड़ी नस फट जाती है। ऐसे में खून, छाती या पेरीकार्डियम में इकट्ठा हो जाता है। (पेरीकार्डियम, दिल के चारों ओर की झिल्ली है जिसमें एक द्रव्य भरा होता है।) इनमें से किसी पर भी अगर भाला भोंका जाए, तो “खून और पानी” जैसा कुछ निकलेगा।—यूहन्ना 19:34.
इंसाइट-2 पेज 650
ज़हरीला पौधा
मसीहा के बारे में भविष्यवाणी की गयी थी कि उसे खाने के लिए “एक ज़हरीला पौधा” दिया जाएगा। (भज 69:21, फु.) यह भविष्यवाणी तब पूरी हुई जब यीशु को काठ पर ठोंक दिए जाने से पहले पित्त मिली दाख-मदिरा दी गयी। यह दाख-मदिरा शायद इसलिए दी गयी ताकि उसका दर्द कम हो जाए। लेकिन यीशु ने उसे पीने से मना कर दिया। मत्ती ने “पित्त” के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया, वह उस शब्द से मेल खाता है जो भजन 69:21 में ‘ज़हरीले पौधे’ के लिए इस्तेमाल किया गया। (मत 27:34) लेकिन मरकुस ने उसी किस्से के बारे में लिखते वक्त “गंधरस” कहा। (मर 15:23) इससे पता चलता है कि “ज़हरीला पौधा” गंधरस हो सकता है। लेकिन यह भी हो सकता है कि यीशु को जो दाख-मदिरा दी गयी, उसमें “पित्त” और “गंधरस,” दोनों मिले हों।
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वफादार हाथों को उठाकर प्रार्थना करें
11 कई लोग हमेशा सिर्फ कुछ माँगने के लिए ही प्रार्थना करते हैं। लेकिन अगर हम यहोवा परमेश्वर से प्यार करते हैं तो हमें अकेले में और सभाओ में प्रार्थना करते वक्त उसका धन्यवाद और उसकी स्तुति भी करनी चाहिए। पौलुस ने लिखा: “किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों 4:6, 7) जी हाँ, निवेदन और बिनती के अलावा, हमें यहोवा की आशीषों के लिए भी उसका धन्यवाद करना चाहिए, चाहे ये आध्यात्मिक आशीषें हों या भौतिक। (नीतिवचन 10:22, NW) भजनहार गाता है: “परमेश्वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, और परमप्रधान के लिये अपनी मन्नतें पूरी कर।” (भजन 50:14) और दाऊद के एक गीत में मन को छू लेनेवाले प्रार्थना के ये शब्द भी थे: “मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूंगा, और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूंगा।” (भजन 69:30) क्या हमें भी अकेले में और सभाओं में सबके सामने प्रार्थना करते वक्त ऐसा ही नहीं करना चाहिए?
5-11 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 70-72
‘अगली पीढ़ी को परमेश्वर की शक्ति’ के बारे में बताइए
जवानो—अपनी ज्ञानेन्द्रियों को पक्का कीजिए!
17 शैतान के फंदों से बचे रहने के लिए, आप जवानों को हमेशा होशियार रहना होगा, साथ ही आपको बहुत हिम्मत भी दिखानी होगी। कभी-कभी तो आपको दूसरे जवानों से ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से खुद को अलग दिखाना होगा। भजनहार दाऊद ने प्रार्थना की: “हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं, बचपन से मेरा आधार तू है। हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं।” (भजन 71:5, 17) हम जानते हैं कि दाऊद बहुत ही हिम्मतवाला था। लेकिन यह हिम्मत उसमें कब आयी? जवानी में! गोलियत के साथ उसके जाने-माने मुकाबले से भी पहले, दाऊद ने अपने पिता की भेड़-बकरियों की रक्षा करते वक्त बड़ी हिम्मत दिखायी थी। कैसे? उसने एक बार एक शेर को और फिर एक रीछनी को मार डाला था। (1 शमूएल 17:34-37) लेकिन, दाऊद ने अपनी बहादुरी के लिए हमेशा यहोवा की बड़ाई की और कहा कि ‘बचपन से उसका आधार वही है।’ दाऊद यहोवा को हमेशा अपना सहारा समझता था और इसीलिए वह हर मुसीबत को झेल सका। सो, अगर आप भी यहोवा को अपना सहारा मानते हैं, तो वह आपको “संसार पर जय प्राप्त” करने के लिए हिम्मत और ताकत देगा।—1 यूहन्ना 5:4.
सज04 10/8 पेज 23 पै 3, अँग्रेज़ी
हमें बुज़ुर्गों के साथ कैसे पेश आना चाहिए?
एक भजन के लेखक ने प्रार्थना की, “जब मेरी उम्र ढल जाए तो तू मुझे दरकिनार न कर देना, जब मेरी ताकत जवाब दे जाए तो मुझे त्याग न देना।” (भजन 71:9) यहोवा अपने वफादार सेवकों को कभी ‘दरकिनार नहीं’ करता, फिर चाहे उन्हें लगे कि अब वे किसी काम के नहीं रहे। भजन के लेखक को भी इस बात का पूरा यकीन था। उसने ऐसा महसूस नहीं किया कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है। वह बस यह बताना चाह रहा था कि जैसे-जैसे उसकी उम्र ढल रही है, उसे यहोवा पर और भी निर्भर रहने की ज़रूरत है। जब यहोवा के सेवक इस तरह वफादार रहते हैं, तो वह भी उनकी पूरी ज़िंदगी मदद करता रहता है। (भजन 18:25) और ऐसा अकसर वह अपने दूसरे सेवकों के ज़रिए करता है।
विपत्ति के दिन आने से पहले यहोवा की सेवा कीजिए
4 अगर आपको सालों का तजुरबा है, तो खुद से यह ज़रूरी सवाल पूछिए, ‘जब तक मुझमें थोड़ी-बहुत ताकत है, मैं अपनी ज़िंदगी में क्या करूँगा?’ एक अनुभवी मसीही होने के नाते आपके पास कुछ ऐसे मौके हैं, जो दूसरों के पास नहीं हैं। मिसाल के लिए, आप जवानों को वे बातें सिखा सकते हैं, जो आपने इतने लंबे समय के दौरान यहोवा से सीखी हैं। यहोवा की सेवा में आपको जो अनुभव मिले हैं, उन्हें दूसरों के साथ बाँटकर आप उनका हौसला बढ़ा सकते हैं। राजा दाविद ने यहोवा से प्रार्थना की थी कि उसे ऐसा करने के मौके मिलें। उसने लिखा: “हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है . . . हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भज. 71:17, 18.
5 आपने सालों के दौरान जो बुद्धि हासिल की है, उसे आप दूसरों के साथ कैसे बाँट सकते हैं? क्या आप कुछ जवानों को अपने घर बुला सकते हैं, ताकि वे हौसला बढ़ानेवाली संगति का आनंद उठा सकें? क्या आप उन्हें अपने साथ प्रचार में ले जा सकते हैं, ताकि वे देख सकें कि आप यहोवा की सेवा में कितने खुश हैं? पुराने ज़माने के एलीहू ने कहा: “जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुद्धि सिखाएं।” (अय्यू. 32:7) प्रेषित पौलुस ने अनुभवी मसीही स्त्रियों को बढ़ावा दिया कि वे अपनी बातों और मिसाल से दूसरों का हौसला बढ़ाएँ। उसने लिखा: ‘बुज़ुर्ग बहनें अच्छी बातों की सिखानेवाली हों।’—तीतु. 2:3.
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इंसाइट-1 पेज 768
फरात नदी
इसराएल को दिए गए देश की सरहद: परमेश्वर ने अब्राहम के साथ करार किया था कि वह उसके वंशजों को वह देश देगा, “जो मिस्र की नदी से लेकर महानदी फरात तक फैला है।” (उत 15:18) बाद में उसने यह वादा इसराएल राष्ट्र के साथ दोहराया। (निर्ग 23:31; व्य 1:7, 8; 11:24; यह 1:4) पहला इतिहास 5:9 में बताया है कि दाविद के शासन से पहले, रूबेन के कुछ वंशज उस जगह तक जाकर बस गए थे, “जहाँ से फरात नदी के पासवाला वीराना शुरू होता” था। पर फरात नदी “गिलाद के पूरब” की तरफ करीब 800 किलोमीटर (500 मील) की दूरी पर है। (1इत 5:10) तो फिर इस आयत का मतलब हो सकता है कि रूबेन के वंशजों का इलाका फरात नदी तक नहीं फैला था। इसके बजाय, उनका इलाका ‘वीराने’ (सीरिया का रेगिस्तान) के एक कोने तक ही बढ़ा था और यह ‘वीराना’ फरात नदी तक फैला था। इसलिए मालूम पड़ता है कि परमेश्वर का वादा पूरी तरह से दाविद और सुलैमान के राज के दौरान पूरा हुआ। उस वक्त इसराएल देश में अरामी राज्य, सोबा भी शामिल था। और सबूत दिखाते हैं कि यह राज्य उत्तरी सीरिया में जो फरात नदी थी, वहाँ तक फैला था। (2शम 8:3; 1रा 4:21; 1इत 18:3-8; 2इत 9:26) फरात नदी बहुत खास और जानी-मानी थी, इसलिए इसे अकसर “महानदी” कहा जाता था।—यह 24:2, 15; भज 72:8.
12-18 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 73-74
अगर हमें दुनिया के लोगों से जलन होने लगे, तो क्या करें?
‘यहोवा उन्हें बचाता है जो निराश हैं’
14 अब आइए भजन 73 के रचयिता की बात करें। वह एक लेवी था और उस जगह सेवा करता था जहाँ यहोवा की उपासना की जाती थी। यह एक अनोखी आशीष थी। फिर भी वह एक वक्त पर बहुत निराश हो गया। वह दुष्ट और मगरूर लोगों को देखकर जलने लगा। ऐसा नहीं है कि वह भी उनकी तरह बुरे काम करना चाहता था। पर उसे यह देखकर जलन होने लगी कि इतने बुरे काम करने पर भी वे कैसे फल-फूल रहे हैं। (भज. 73:2-9, 11-14) उसे ऐसा लग रहा था कि उनकी ज़िंदगी में कोई कमी नहीं है, कोई दुख, कोई चिंता नहीं है। उन्हें देखकर भजन का वह रचयिता इतना निराश हो गया कि उसने कहा, “मैंने बेकार ही अपना मन शुद्ध बनाए रखा। अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अपने हाथ धोए।” अगर वह इसी तरह निराश रहता, तो यहोवा की उपासना करना छोड़ देता।
‘यहोवा उन्हें बचाता है जो निराश हैं’
15 भजन 73:16-19, 22-25 पढ़िए। इन आयतों के मुताबिक जब वह लेवी “परमेश्वर के शानदार भवन में गया,” तो वह सँभल पाया। वहाँ जब वह यहोवा की उपासना करनेवाले दूसरे लोगों से मिला, तो वह ठंडे दिमाग से सोच पाया और उसके मन को चैन मिला। और उसने प्रार्थना करके यहोवा को अपने मन की बात बतायी। तब उसे एहसास होने लगा कि उसकी सोच कितनी गलत थी और अगर वह यह सोच नहीं बदलेगा, तो यहोवा से दूर जा सकता है। वह यह भी समझ पाया कि दुष्ट लोग भले ही फलते-फूलते नज़र आते हैं, मगर असल में वे “फिसलनेवाली ज़मीन” पर खड़े हैं और उनका “बुरी तरह अंत” होगा। जब उसने यहोवा की सोच अपनायी, तो वह दुष्टों को देखकर जला नहीं, न ही निराश रहा। उसे शांति मिली और वह फिर से खुश रहने लगा। उसने कहा, “[यहोवा] मेरे साथ है तो मुझे धरती पर और किसी की ज़रूरत नहीं।”
16 हम क्या सीखते हैं? जो लोग बुरे काम करते हैं, वे शायद फलते-फूलते नज़र आएँ, लेकिन हमें उनसे जलना नहीं चाहिए। उनकी खुशी बस चंद दिनों की है और उन्हें हमेशा की ज़िंदगी नहीं मिलनेवाली। (सभो. 8:12, 13) उनसे जलने से हम निराश होंगे और हम यहोवा से भी दूर जा सकते हैं। अगर कभी आपको बुरे लोगों की खुशहाली देखकर जलन होने लगे, तो आप क्या कर सकते हैं? उस लेवी की तरह परमेश्वर की सलाह मानिए और उन लोगों की संगति करते रहिए जो यहोवा की मरज़ी पूरी करते हैं। अगर आप ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा यहोवा से प्यार करेंगे, तो आप सही मायनों में खुश रहेंगे। और आप उस राह पर बने रहेंगे जिस पर चलकर आपको “असली ज़िंदगी” मिलेगी।—1 तीमु. 6:19.
मूसा के विश्वास की मिसाल पर चलिए
5 आप “पाप का चंद दिनों का सुख भोगने” की ख्वाहिश को कैसे ठुकरा सकते हैं? कभी मत भूलिए कि पाप करने से मिलनेवाली खुशी बस थोड़े ही समय के लिए होती है। विश्वास आपको यह देखने में मदद देगा कि “यह दुनिया मिटती जा रही है और इसके साथ इसकी ख्वाहिशें भी मिट जाएँगी।” (1 यूह. 2:15-17) उन लोगों के भविष्य के बारे में मनन कीजिए, जो बिना पछतावा किए पाप करते रहते हैं। वे ‘फिसलनेवाले स्थानों में हैं, वे नाश हो गए हैं।’ (भज. 73:18, 19) जब आपमें पाप करने की इच्छा जागती है, तो खुद से पूछिए, ‘मैं अपने लिए किस तरह का भविष्य चाहता हूँ?’
कोई भी बात आपको महिमा पाने से रोक न सके
3 भजनहार को पूरा यकीन था कि यहोवा उसे महिमा देगा। (भजन 73:23, 24 पढ़िए।) यहोवा उसकी आज्ञा माननेवालों को महिमा कैसे देता है? उन पर अपनी मंज़ूरी देकर और कई तरीकों से उन पर आशीषें बरसाकर। मिसाल के लिए, वह उन्हें यह समझने में मदद देता है कि उसकी मरज़ी क्या है। साथ ही, वह उन्हें अपने साथ एक करीबी रिश्ता बनाने का सम्मान भी देता है।—1 कुरिं. 2:7; याकू. 4:8.
4 यहोवा हमें खुशखबरी का प्रचार करने का सुअवसर देकर भी हमें महिमा से नवाज़ता है। (2 कुरिं. 4:1, 7) जब हम प्रचार काम में हिस्सा लेकर यहोवा की बड़ाई करते हैं और दूसरों को फायदा पहुँचाते हैं, तो हमें यहोवा से महिमा मिलती है, क्योंकि वह हमसे वादा करता है: “जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा।” (1 शमू. 2:30) ऐसे लोग यहोवा के साथ एक अच्छा नाम बना पाते हैं और मंडली के दूसरे सेवकों से भी तारीफ पाते हैं। इस तरह यहोवा उनका आदर करता है।—नीति. 11:16; 22:1.
5 जो लोग ‘यहोवा की बाट जोहते और उसके मार्ग पर बने रहते’ हैं, उनका भविष्य कैसा होगा? उनसे वादा किया गया है: “वह [यहोवा] तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।” (भज. 37:34) वाकई, उन्हें ऐसा सम्मान मिलेगा जिसकी तुलना किसी भी चीज़ से नहीं की जा सकती, वह है हमेशा की ज़िंदगी।—भज. 37:29.
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इंसाइट-2 पेज 240
लिव्यातान
भजन 74 में बताया गया है कि परमेश्वर अपने लोगों को बचाने के लिए क्या-क्या किया। आयत 13 और 14 में “समुंदर के विशाल जीवों” और “लिव्यातान” का ज़िक्र यह बताने के लिए किया गया है कि कैसे इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाया गया। शायद उनके सिर कुचलने की बात उस घटना को दर्शाती है, जब यहोवा ने फिरौन और उसकी सेना को हरा दिया था। इसलिए कुछ अनुवादों में “लिव्यातान के सिर” की जगह “फिरौन के शूरवीरों” के कुचले जाने की बात की गयी है। (यहे 29:3-5; 32:2 से तुलना करें।) यशायाह 27:1 में “लिव्यातान” एक ऐसे साम्राज्य या अंतर्राष्ट्रीय संगठन को दर्शाता है जिसे “साँप” या “अजगर” चला रहा है। (प्रक 12:9) यशायाह की यह भविष्यवाणी इसराएल राष्ट्र के बहाल होने के बारे में थी, इसलिए “लिव्यातान पर वार” करने का मतलब है कि यहोवा बैबिलोन का नाश करेगा। लेकिन आयत 12 और 13 में अश्शूर और मिस्र का भी ज़िक्र किया गया है। इसलिए ज़ाहिर है कि लिव्यातान एक ऐसे साम्राज्य या अंतर्राष्ट्रीय संगठन को दर्शाता है, जो यहोवा और उसके उपासकों का विरोध करता है।
19-25 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 75-77
हमें क्यों शेखी नहीं मारनी चाहिए?
क्या आप लोगों में फर्क देख पा रहे हैं?
4 यह बताने के बाद कि कई लोग खुद से प्यार करनेवाले और पैसे से प्यार करनेवाले होंगे, पौलुस ने यह भी कहा कि वे डींगें मारनेवाले, मगरूर और घमंड से फूले हुए होंगे। ऐसे लोगों को अपनी खूबसूरती, दौलत, काबिलीयत या ओहदे पर घमंड होता है और इस वजह से वे खुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं। वे हमेशा दूसरों से तारीफ पाने के भूखे होते हैं। एक विद्वान ने घमंडी इंसान के बारे में लिखा, “वह मन-ही-मन अपने लिए एक छोटा-सा मंदिर खड़ा करता है और उसमें अपनी ही मूरत रखकर उसकी पूजा करता है।” कुछ लोगों का कहना है कि घमंड ऐसा बुरा गुण है कि घमंडी लोग भी जब दूसरों में यह अवगुण देखते हैं, तो उनसे यह बरदाश्त नहीं होता।
5 बाइबल बताती है कि यहोवा ‘घमंड से चढ़ी आँखों’ से घिन करता है। उसे घमंड से सख्त नफरत है। (नीति. 6:16, 17) दरअसल घमंड एक इंसान को परमेश्वर से दूर ले जाता है। (भज. 10:4) घमंड करना शैतान की फितरत है। (1 तीमु. 3:6) दुख की बात है कि यहोवा के कुछ वफादार सेवक भी इसके शिकार हुए हैं। मिसाल के लिए, यहूदा का राजा उज्जियाह सालों से यहोवा का वफादार था। लेकिन बाइबल बताती है, “जैसे ही वह ताकतवर हो गया, उसका मन घमंड से फूल उठा और यह उसकी बरबादी का कारण बन गया। वह धूप की वेदी पर धूप जलाने के लिए यहोवा के मंदिर में घुस गया और ऐसा करके उसने अपने परमेश्वर यहोवा के साथ विश्वासघात किया।” वफादार राजा हिजकियाह भी कुछ समय के लिए घमंडी बन गया था।—2 इति. 26:16; 32:25, 26.
भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ
75:4, 5, 10—शब्द “सींग” का क्या मतलब है? जानवर का सबसे शक्तिशाली हथियार, उसका सींग होता है। इसलिए, शब्द “सींग” अधिकार या ताकत को दर्शाता है। यहोवा अपने लोगों के सींगों को ऊँचा करता है जिससे वे ऊपर उठाए जाते हैं, जबकि वह ‘दुष्टों के सींगों को काट डालता है।’ हमें खबरदार किया गया है कि हम ‘अपना सींग ऊँचा न करें,’ यानी हम घमंड से फूल न जाएँ। यहोवा लोगों को ऊपर उठाता है, इसलिए हमें यह मानकर चलना चाहिए कि कलीसिया में ज़िम्मेदारी का पद वही सौंपता है।—भजन 75:7.
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भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ
76:10—यह कैसे हो सकता है कि “मनुष्य की जलजलाहट” यहोवा की स्तुति का कारण होगा? जब यहोवा अपने सेवक पर, यानी हम पर इंसान की जलजलाहट आने देता है, तो इसका नतीजा अच्छा निकल सकता है। वह कैसे? हम पर जो मुश्किलें आती हैं, उनसे हम किसी-न-किसी तरीके से निखारे जाते हैं। यहोवा हम पर सिर्फ उतनी ही तकलीफें आने देता है, जितनी हमें तालीम पाने के लिए ज़रूरी हैं। (1 पतरस 5:10) ‘जो जलजलाहट रह जाती है, उसे परमेश्वर खुद रोकता है।’ लेकिन तब क्या, अगर हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़े? इससे भी यहोवा की स्तुति होती है, क्योंकि जब दूसरे देखते हैं कि हम मौत तक यहोवा के वफादार रहते हैं, तो वे भी परमेश्वर की महिमा करने लग सकते हैं।
26 अगस्त–1 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 78
इसराएलियों की तरह विश्वासघाती मत बनिए
“उन पहिले दिनों को स्मरण करो”—क्यों?
दुःख की बात है, इस्राएली बार-बार भूलने के पाप में पड़ गए। इसका परिणाम क्या हुआ? “वे बारबार ईश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे। उन्हों ने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था।” (भजन 78:41, 42) आख़िरकार, यहोवा की आज्ञाओं को भूलते रहने का परिणाम हुआ उन्हें अस्वीकार किया जाना।—मत्ती 21:42, 43.
भजनहार द्वारा एक उत्तम उदाहरण रखा गया जिसने लिखा: “मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्भुत कामों को स्मरण करूंगा। मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।” (भजन 77:11, 12) अतीत की निष्ठावान् सेवा और यहोवा के प्रेमपूर्ण कार्यों को यूँ मनन करते हुए याद करना हमें आवश्यक प्रेरणा, प्रोत्साहन और क़दरदानी देगा। साथ ही, ‘उन पहिले दिनों को स्मरण करना’ थकान को दूर करने का काम कर सकता है और हम जितना कर सकते हैं वह करने और वफ़ादारी से धीरज धरने के लिए हमें प्रेरित कर सकता है।
कुड़कुड़ाने से दूर रहिए
16 जब हम कुड़कुड़ाते हैं, तब हम अपना पूरा ध्यान खुद पर और अपनी तकलीफों पर लगा देते हैं, और यह बात भूल जाते हैं कि यहोवा के साक्षी होने के नाते हमें कितनी बढ़िया आशीषें मिली हैं। अगर हम अपने शिकायती रवैए पर काबू पाना चाहते हैं, तो हमें इन आशीषों को हमेशा याद करते रहना होगा। ये आशीषें क्या हैं? हममें से हरेक को यहोवा का नाम धारण करने का बड़ा सुअवसर मिला है। (यशायाह 43:10) हम उसके साथ एक करीबी रिश्ता कायम कर सकते हैं, और “प्रार्थना के सुननेवाले” यहोवा से किसी भी वक्त बात कर सकते हैं। (भजन 65:2; याकूब 4:8) हमारी ज़िंदगी को एक मकसद मिला है, क्योंकि हम विश्व की हुकूमत के मसले को समझते हैं और इस बात को याद रखते हैं कि परमेश्वर की तरफ अपनी खराई बनाए रखना हमारे लिए एक सम्मान है। (नीतिवचन 27:11) हमें राज्य का सुसमाचार सुनाने में बिना नागा हिस्सा लेने की भी आशीष मिली है। (मत्ती 24:14) और यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास करने से हमें शुद्ध विवेक मिला है। (यूहन्ना 3:16) ये आशीषें यहोवा के हर सेवक को मिलती हैं, फिर चाहे हमें ज़िंदगी में अलग-अलग हालात या मुश्किलों का सामना क्यों न करना पड़े।
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क्या यहोवा की भी भावनाएँ हैं?
भजनहार ने कहा, “उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया!” (आयत 40) अगली आयत बताती है, “वे बारबार ईश्वर की परीक्षा करते थे।” (आयत 41) इन आयतों से साफ पता चलता है कि बार-बार बगावत करना उनकी आदत बन चुकी थी। मिस्र से छूटने के कुछ समय बाद इसराएलियों ने ऐसा करना शुरू कर दिया था। वे परमेश्वर के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे और यह कहने लगे कि क्या परमेश्वर वाकई हमारी परवाह करता है और क्या वह ऐसा करना चाहता भी है। (गिनती 14:1-4) ‘उन्होंने कितनी ही बार उससे बलवा किया है’ इन शब्दों के मतलब को बाइबल अनुवादकों ने कुछ इस तरह बताया कि वे बार-बार परमेश्वर की बात मानना छोड़ देते। इसके बावजूद जब वे दिल से पश्चाताप करते, तो यहोवा उन पर दया करता और उन्हें माफ करता। लेकिन अपनी आदत के मुताबिक वे फिर से वैसा ही करने लगते। वे यहोवा से मुँह फेर लेते और बार-बार बगावत करते और ऐसा ही चलता रहता।—भजन 78:10-19, 38.
जब उसके चुने हुए लोगों ने हर बार बगावत की, तो यहोवा को कैसा लगा? आयत 40 बताती है कि उन्होंने “उसको उदास किया।” एक और अनुवाद बताता है कि उन्होंने “उसे दुखी होने की वजह दी।” बाइबल के एक अनुवाद मुताबिक इस बात का मतलब यह है कि “इसराएलियों ने ऐसे काम किए जिससे परमेश्वर को दुख हुआ, जैसे माता-पिता को तब होता है जब उनका बच्चा बात नहीं मानता और बगावत करता है।” जैसे बगावती बच्चा अपने माता-पिता को ठेस पहुँचाता है, वैसे ही बगावती इसराएलियों ने “इस्राएल के पवित्र को खेदित” किया।—आयत 41.
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भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ
78:24, 25, NHT—मन्ना को “स्वर्ग से अन्न” और “स्वर्गदूतों की रोटी” क्यों कहा गया है? इन शब्दों का यह मतलब नहीं कि मन्ना स्वर्गदूतों का भोजन था। मन्ना को “स्वर्ग से अन्न” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह स्वर्ग से गिरा था। (भजन 105:40) और इसे “स्वर्गदूतों की रोटी” शायद इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह भोजन परमेश्वर ने मुहैया कराया था, जो अपने स्वर्गदूतों के साथ स्वर्ग में रहता है। (भजन 11:4) या यह भी हो सकता है कि यहोवा ने इस्राएलियों को मन्ना देने के लिए स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया हो।