बाइबल की किताब नंबर 25—विलापगीत
लेखक: यिर्मयाह
लिखने की जगह: यरूशलेम के पास
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 607
विलापगीत! ईश्वर-प्रेरित शास्त्र की इस किताब को बिलकुल सही नाम दिया गया है। इसमें ऐसे विलापगीत दिए हैं जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के इतिहास की उस सबसे मनहूस घड़ी पर गहरा दुःख प्रगट करते हैं, जब बाबुल के राजा, नबूकदनेस्सर ने सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम का विनाश किया था। इब्रानी में, इस किताब का नाम इसके पहले शब्द, एहखाह! से पड़ा है, जिसका मतलब है, “कैसे!” यूनानी सेप्टुआजेंट के अनुवादकों ने इस किताब का नाम थ्रेनॉई रखा जिसका मतलब है, “शोकगीत; विलाप।” बाबेलोनी तलमुद में इसे कीनोथ कहा गया है जिसका मतलब है, “शोकगीत।” लातिनी भाषा में जेरोम ने इस किताब को लामेंटेशोनेस नाम दिया जिसका मतलब है, विलाप करना। इसलिए हिंदी में इस किताब का नाम विलापगीत अनुवाद किया गया है।
2 बाइबल के बहुत-से अनुवादों में, विलापगीत यिर्मयाह के बाद आता है। मगर इब्रानी संग्रह में यह किताब, आम तौर पर हगियोग्राफा या ‘लेख’ के तहत श्रेष्ठगीत, रूत, सभोपदेशक और एस्तेर की किताबों के साथ आती है।a इन पाँच किताबों को पाँच मेघ्घिलोथ (खर्रे) कहा जाता है। विलापगीत की किताब, आजकल की कुछ इब्रानी बाइबलों में रूत और सभोपदेशक के बीच या सभोपदेशक और एस्तेर के बीच आती है। लेकिन कहा जाता है कि प्राचीन इब्रानी बाइबलों में यह किताब, यिर्मयाह के बाद आती है और यही क्रम आज हमारी बाइबलों में पाया जाता है।
3 इस किताब में इसके लेखक का नाम नहीं बताया गया है। मगर इसमें कोई शक नहीं कि यिर्मयाह ही इसका लेखक है। यूनानी सेप्टुआजेंट में विलापगीत की प्रस्तावना में यह लिखा है: “और जब यरूशलेम को उजाड़ दिया गया और इस्राएलियों को बंदी बनाकर ले जाया गया, तो उसके बाद यिर्मयाह बैठकर रोने लगा और उसने इस विलापगीत के साथ यरूशलेम पर विलाप करते हुए कहा।” जेरोम के मुताबिक ये शब्द झूठे थे, इसलिए उसने अपने अनुवाद से इन्हें निकाल दिया। लेकिन यहूदियों का मानना है कि यिर्मयाह ने ही विलापगीत को लिखा था और बाइबल के कई अनुवाद और दूसरी किताबें भी इस बात को पुख्ता करती हैं। जैसे, सीरियाई भाषा में इब्रानी शास्त्र, लातिनी वल्गेट, जोनाथन का टारगम, और बाबेलोनी तलमुद।
4 कुछ आलोचकों ने यह साबित करने की कोशिश की है कि यिर्मयाह ने विलापगीत नहीं लिखा था। लेकिन, इस बारे में अ कॉमेन्ट्री ऑन द होली बाइबल कहती है कि “अध्याय 2 और 4 में यरूशलेम के बारे में जो सजीव वर्णन दिए हैं, उन्हें ज़रूर किसी ऐसे व्यक्ति ने लिखा होगा जिसने सबकुछ अपनी आँखों के सामने होते देखा था। उसी तरह, पूरी कविता में हमदर्दी की जो भावना झलकती है और एक भविष्यवक्ता का जो लहज़ा नज़र आता है, उनसे और कविताओं की शैली, शब्दों के चुनाव और उनमें दिए विचारों से भी साबित होता है कि इस किताब को ज़रूर यिर्मयाह ने ही लिखा होगा।”b विलापगीत और यिर्मयाह की कई आयतों में एक-जैसे शब्द पाए जाते हैं। जैसे, गहरे दुःख के कारण ‘आंखों से जल (आंसुओं) की धारा बहना’ (विला. 1:16; 2:11; 3:48, 49; यिर्म. 9:1; 13:17; 14:17) और घृणा के वे शब्द जो भविष्यवक्ताओं और याजकों के भ्रष्टाचार पर प्रकट किए गए थे। (विला. 2:14; 4:13, 14; यिर्म. 2:34; 5:30, 31; 14:13, 14) यिर्मयाह 8:18-22 और यिर्म 14:17, 18 की आयतें दिखाती हैं कि यिर्मयाह, विलापगीत के दर्द-भरे गीत लिखने के काबिल था।
5 माना जाता है कि इस किताब को सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम के विनाश के तुरंत बाद लिखा गया था। उस वक्त शहर की घेराबंदी और उसके खाक में मिल जाने का खौफनाक मंज़र अभी-भी यिर्मयाह की आँखों के सामने छाया हुआ था। किताब में वह अपनी बेबसी और दर्द का खुलकर बयान करता है।
6 विलापगीत की रचना में खासकर बाइबल विद्वान काफी दिलचस्पी लेते हैं। इसमें पाँच अध्याय यानी पाँच कविताएँ हैं। मूल भाषा में, पहले चार अध्याय अक्षरबद्ध कविताएँ हैं, यानी हर अध्याय में 22 आयतें हैं और हर आयत का पहला शब्द इब्रानी वर्णमाला के क्रम के मुताबिक एक-एक अक्षर से शुरू होता है। मगर तीसरे अध्याय में 66 आयतें हैं, इसलिए इसमें एक आयत के बजाय एक-साथ तीन आयतें इब्रानी वर्णमाला के एक-एक अक्षर से शुरू होती हैं। पाँचवीं कविता में 22 आयतें ज़रूर हैं, मगर यह अक्षरबद्ध कविता नहीं है।
7 विलापगीत इस बात पर गहरा शोक प्रकट करता है कि नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम को घेरकर, उस पर कब्ज़ा कर लिया और उसे मिट्टी में मिला दिया। यह किताब जिस लाजवाब तरीके से घटनाओं की जीती-जागती तसवीर पेश करती है और पढ़नेवालों में करुणा की भावना जगाती है, वैसा तरीका किसी और साहित्य में नहीं पाया जाता। अपने चारों तरफ की तबाही, तंगहाली और गड़बड़ी को देखकर लेखक का कलेजा छलनी हो जाता है और वह अपना दुःख शब्दों में बयान करता है। शहर पर अकाल, खून-खराबा और दूसरे खौफनाक हादसों का जो कहर टूटता है, वह इस वजह से है कि परमेश्वर अपने लोगों, भविष्यवक्ताओं और याजकों को उनके पापों की सज़ा देता है। लेकिन फिर भी परमेश्वर के लोगों को यह उम्मीद और विश्वास है कि वह उन्हें बहाल करेगा और इस बहाली के लिए वे उससे दुआ करते हैं।
क्यों फायदेमंद है
13 विलापगीत की किताब में यिर्मयाह, परमेश्वर पर अपना पूरा भरोसा ज़ाहिर करता है। यरूशलेम की बरबादी पर जब चारों तरफ मातम छाया हुआ है और किसी इंसान से दिलासा पाने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही है, तो ऐसे में यिर्मयाह इस विश्व के महान परमेश्वर, यहोवा से उद्धार पाने की आस लगाता है। विलापगीत से यहोवा के सभी सच्चे उपासकों को प्रेरणा मिलनी चाहिए कि वे उसकी आज्ञा मानें और उसकी तरफ अपनी खराई बनाए रखें। साथ ही, यह किताब उन लोगों को भी चेतावनी देती है, जो परमेश्वर के सबसे महान नाम और इस नाम के जो-जो मायने हैं, उसका अपमान करते हैं। इतिहास गवाह है कि ऐसा कोई दूसरा शहर नहीं था जिसकी तबाही पर इतनी दर्दनाक और दिल छू लेनेवाली भाषा में विलाप किया गया हो। वाकई यह जानना कितना फायदेमंद है कि परमेश्वर उन लोगों के साथ सख्ती से पेश आता है जो बागी और हठीले हैं और जिन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं होता।
14 विलापगीत इसलिए भी फायदेमंद है क्योंकि यह बताता है कि परमेश्वर की ढेर सारी चेतावनियाँ और भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुईं। (विला. 1:2—यिर्म. 30:14; विला. 2:15—यिर्म. 18:16; विला. 2:17—लैव्य. 26:17; विला. 2:20—व्यव. 28:53) यह भी गौर कीजिए कि विलापगीत, व्यवस्थाविवरण 28:63-65 के पूरा होने का साफ-साफ सबूत देता है। इसके अलावा, इस किताब में बाइबल के दूसरे हिस्सों से कई हवाले दिए गए हैं। (विला. 2:15—भज. 48:2; विला. 3:24—भज. 119:57) विलापगीत 1:5 और 3:42 के मुताबिक, लोगों पर विपत्ति उनके अपने अपराधों की वजह से आयी थी और इस बात को दानिय्येल 9:5-14 भी पुख्ता करता है।
15 यरूशलेम की बदहाली के बारे में पढ़कर वाकई कलेजा मुँह को आता है! इसके बावजूद, विलापगीत की किताब यह भरोसा दिलाती है कि यहोवा निरंतर प्रेम-कृपा और दया दिखाएगा और सिय्योन को याद करके उसे दोबारा बसाएगा। (विला. 3:31, 32; 4:22) इसमें “पहले-जैसे दिन” के आने की उम्मीद दी गयी है, यानी वैसे दिन जब यरूशलेम पर दाऊद और सुलैमान की हुकूमत हुआ करती थी। यहोवा ने दाऊद के साथ अनंतकाल के राज्य की जो वाचा बाँधी थी, वह आज भी बरकरार है। “उसकी दया अमर है। प्रति भोर वह नई होती रहती है।” यहोवा की यह दया उसके प्रेमियों पर बनी रहेगी और जब धार्मिकता का उसका राज्य आएगा, तब हर इंसान एहसान-भरे दिल से यह कहेगा: “यहोवा मेरा भाग है।”—5:21, बुल्के बाइबिल; 3:22-24.
[फुटनोट]
a पेज 32 पर दिया बक्स देखिए।
b सन् 1952, जे. आर. डमलो द्वारा संपादित, पेज 483.