आज़ादी से मसीही समर्पण के अनुसार जीना
“जहां कहीं प्रभु [यहोवा] का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।” —२ कुरिन्थियों ३:१७.
१. यहोवा के साक्षी किस को समर्पित हैं, और वे कानूनी एजॆंसियों का इस्तेमाल क्यों करते हैं?
यहोवा के साक्षी मानते हैं कि उनका धर्म हमेशा-हमेशा तक बना रहेगा। इसीलिए वे अनंतकाल तक “आत्मा और सच्चाई से” परमेश्वर की सेवा करने की आस लगाते हैं। (यूहन्ना ४:२३, २४) स्वतंत्र नैतिक व्यक्तियों के तौर पर, इन मसीहियों ने यहोवा परमेश्वर के प्रति बिनाशर्त समर्पण किया है और उसके अनुसार जीने का पक्का फैसला किया है। ऐसा करने के लिए वे परमेश्वर के वचन और उसकी पवित्र आत्मा पर निर्भर करते हैं। ऐसे साक्षी परमेश्वर द्वारा दी गयी स्वतंत्रता में पूरे दिल से अपने मसीही समर्पण के मार्ग से लगे रहते हैं, और सरकारी “प्रधान अधिकारियों” की भूमिका का सही आदर करते हैं और कानूनी माध्यमों और प्रबंधों का उचित इस्तेमाल करते हैं। (रोमियों १३:१; याकूब १:२५) मिसाल के तौर पर, साक्षी वॉच टावर संस्था को एक कानूनी माध्यम के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, ताकि वे संगी मनुष्यों की मदद करने का काम कर पाएँ, खासकर आध्यात्मिक तरीक़ों से। यह संस्था काफी देशों में, कई कानूनी माध्यमों में से एक है। लेकिन साक्षी परमेश्वर को समर्पित हैं, किसी कानूनी एजॆंसी को नहीं, और यहोवा के प्रति उनका समर्पण हमेशा के लिए बना रहेगा।
२. यहोवा के साक्षी वॉच टावर संस्था और ऐसी ही कानूनी एजॆंसियों की इतनी कदर क्यों करते हैं?
२ परमेश्वर के प्रति समर्पित सेवकों के तौर पर, यहोवा के साक्षी यीशु के निर्देश को मानने के लिए बाध्य हैं कि ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और उन्हें सिखाओ।’ (मत्ती २८:१९, २०) यह काम इस रीति-व्यवस्था के अंत तक चलता रहेगा, क्योंकि यीशु ने भी कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती २४:३, १४) हर साल वॉच टावर संस्था के और ऐसे ही कानूनी माध्यमों के प्रिंटिंग प्लांट्स दुनिया भर में किए जानेवाले प्रचार कार्य में इस्तेमाल के लिए यहोवा के साक्षियों को करोड़ों बाइबलें, पुस्तकें, ब्रोशर, और पत्रिकाएँ सप्लाई करते हैं। इसलिए ये कानूनी माध्यम परमेश्वर के समर्पित सेवकों की मदद करने में बहुमूल्य हैं ताकि वे परमेश्वर के प्रति अपने समर्पण के अनुसार जी सकें।
३. यहोवा के साक्षी पहले शब्द “संस्था” को किस मायने में इस्तेमाल करते थे?
३ कुछ लोग शायद बहस करें कि जिस तरह साक्षी वॉच टावर संस्था—या कई बार सिर्फ़ “संस्था”—के बारे में बात करते हैं, उससे ऐसा लगता है कि वे उसे एक कानूनी माध्यम से बढ़कर समझते हैं। क्या वे उसे उपासना की बातों पर अंतिम अधिकार नहीं समझते? पुस्तक यहोवा के साक्षी—परमेश्वर के राज्य के उद्घोषक (अंग्रेज़ी) इस बात को स्पष्ट करती है और समझाती है: “जब दी वॉचटावर [जून १, १९३८] ने ‘संस्था’ का ज़िक्र किया, तो इसका मतलब सिर्फ एक कानूनी माध्यम ही नहीं था, बल्कि अभिषिक्त मसीहियों का निकाय था, जिनसे वह कानूनी एजॆंसी बनी थी और जो उसे इस्तेमाल करते थे।”a सो उस अभिव्यक्ति ने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को सूचित किया। (मत्ती २४:४५) इसी मायने में साक्षी आम तौर पर शब्द “संस्था” का इस्तेमाल करते थे। बेशक, कानूनी कार्पोरेशन और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास,” इन पदों को अदल-बदलकर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। वॉच टावर संस्था के संचालकों को निर्वाचित किया जाता है, जबकि ‘विश्वासयोग्य दास’ बननेवाले साक्षियों को यहोवा की पवित्र आत्मा द्वारा अभिषिक्त किया जाता है।
४. (क) कई साक्षी गलतफहमियों से दूर रहने के लिए कैसे बातें करते हैं? (ख) शब्दावली के बारे में हमें संतुलित क्यों होना चाहिए?
४ गलतफहमियों से बचने के लिए, यहोवा के साक्षी इस बारे में होशियारी बरतने की कोशिश करते हैं कि वे खुद को कैसे व्यक्त करते हैं। यह कहने के बजाय कि “संस्था यह सिखाती है,” कई साक्षी यूँ कहना पसंद करते हैं जैसे “बाइबल कहती है” या “बाइबल से मैं यह समझता हूँ।” इस तरह हर साक्षी ने बाइबल शिक्षाओं को क़बूल करने में जो व्यक्तिगत फैसला किया है वे उस पर ज़ोर देते हैं। साथ ही यह झूठी छाप छोड़ने से दूर रहते हैं कि साक्षी किसी तरह से एक धार्मिक पंथ की आज्ञाओं के प्रति बाध्य हैं। बेशक, शब्दावली के बारे में सुझावों को वाद-विवाद का विषय नहीं बनना चाहिए। आखिर, शब्दावली का इस्तेमाल सिर्फ इतना है कि वह गलतफहमियों से हमें दूर रखती है। मसीही संतुलन की ज़रूरत है। बाइबल हमें सलाह देती है कि “शब्दों पर तर्क-वितर्क न किया करें।” (२ तीमुथियुस २:१४, १५) शास्त्र भी यह सिद्धांत बताता है: “तुम भी यदि जीभ से साफ साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है, वह क्योंकर समझा जाएगा?”—१ कुरिन्थियों १४:९.
परमेश्वर की आत्मा नियमों की ज़रूरत को कम करती है
५. पहला कुरिन्थियों १०:२३ को किस तरह समझा जाना चाहिए?
५ प्रेरित पौलुस ने कहा: “सब वस्तुएं . . . उचित तो हैं, परन्तु सब लाभ की नहीं।” उसने आगे कहा: “सब वस्तुएं . . . उचित तो हैं, परन्तु सब वस्तुओं से उन्नति नहीं।” (१ कुरिन्थियों १०:२३) ज़ाहिर है कि पौलुस के कहने का मतलब यह नहीं था कि परमेश्वर का वचन जिन बातों की निंदा करता है उन्हें करना उचित है। प्राचीन इस्राएल को दिए गए कुछ ६०० नियमों की तुलना में, मसीही के जीवन को नियंत्रित करनेवाली सुनिश्चित आज्ञाएँ सिर्फ कुछ ही हैं। इसलिए, कई बातों को मनुष्य के विवेक पर छोड़ दिया जाता है। जिस व्यक्ति ने यहोवा को समर्पण किया है, उसे वह आज़ादी मिलती है जो परमेश्वर की आत्मा के मार्गदर्शन का नतीजा है। सच्चाई को अपनाने के बाद, एक मसीही बाइबल द्वारा प्रशिक्षित अपने विवेक की बात मानता है और पवित्र आत्मा द्वारा परमेश्वर के मार्गदर्शन पर निर्भर करता है। यह समर्पित मसीही को इस बात को निर्धारित करने में मदद करता है कि कौन-सी बात “उन्नति” करेगी और खुद के और दूसरों के “लाभ की” होगी। उसे एहसास है कि जो फैसले वह करेगा, उन फैसलों का परमेश्वर के साथ उसके रिश्ते पर असर होगा, जिसके प्रति वह समर्पित है।
६. मसीही सभाओं में, हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमने सच्चाई को अपना लिया है?
६ एक साक्षी मसीही सभाओं में टिप्पणियाँ करने के द्वारा ज़ाहिर करता है कि उसने सच्चाई को अपनाया है। पहले-पहल तो, जिस साहित्य का अध्ययन किया जा रहा है वह शायद उस में से पढ़कर सुनाए। लेकिन, वक्त के गुज़रते वह बाइबल शिक्षाओं को अपने शब्दों में बताने की हद तक प्रगति करेगा। इस तरह, वह इस बात का सबूत देता है कि वह अपनी सोचने की क्षमता को विकसित कर रहा है, और दूसरों ने जो कहा है उसे बस दोहरा नहीं रहा। विचारों को अपने शब्दों में ढालने से और सच्चाई के सही-सही शब्दों को दिलकश तरीके से व्यक्त करने से उसे खुशी मिलेगी और यह दिखाएगा कि उसे अपनी बातों पर निश्चय है।—सभोपदेशक १२:१०. रोमियों १४:५ख से तुलना कीजिए।
७. यहोवा के सेवकों ने कौन-से फैसले अपनी मर्ज़ी से किए हैं?
७ यहोवा के साक्षी परमेश्वर के लिए और अपने संगी मनुष्यों के लिए प्यार से प्रेरित होते हैं। (मत्ती २२:३६-४०) यह सच है कि वे भाइयों के एक विश्वव्यापी समूह के तौर पर मसीह-समान प्रेम में करीबी से बंधे हैं। (कुलुस्सियों ३:१४; १ पतरस ५:९) लेकिन एक स्वतंत्र नैतिक व्यक्ति के तौर पर, हरेक व्यक्ति ने परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार की घोषणा करने, राजनैतिक रूप से किसी का पक्ष न लेने, लहू और कुछ तरह के मनोरंजन से दूर रहने, और बाइबल स्तरों के अनुसार जीने का फैसला खुद किया है। इन फैसलों को उन पर थोपा नहीं गया है। ये वो फैसले हैं जो ऐसी जीवन-शैली का भाग हैं जिसे भावी साक्षी मसीही समर्पण का कदम उठाने से पहले अपनी मर्ज़ी से चुनते हैं।
शासी निकाय को जवाबदेह?
८. किस बात को समझाया जाना ज़रूरी है?
८ बाइबल साफ-साफ दिखाती है कि सच्चे मसीही परमेश्वर की सेवा मजबूरी में आकर नहीं करते। वह कहती है: “प्रभु [यहोवा] तो आत्मा है: और जहां कहीं प्रभु का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।” (२ कुरिन्थियों ३:१७) लेकिन इस सच्चाई का “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और उसके ‘शासी निकाय’ के साथ कैसे मेल बिठाया जा सकता है?—मत्ती २४:४५-४७.
९, १०. (क) मुखियापन का सिद्धांत मसीही कलीसिया में कैसे लागू होता है? (ख) पहली-सदी मसीही कलीसिया में मुखियापन के सिद्धांत के पालन करने से कौन-सी ज़रूरत आन पड़ी?
९ इस सवाल का जवाब देने के लिए, हमें मुखियापन के शास्त्रीय सिद्धांत को ध्यान में रखना चाहिए। (१ कुरिन्थियों ११:३) इफिसियों ५:२१-२४ में, मसीह की पहचान ‘कलीसिया के सिर’ के तौर पर करायी गयी है। वह कलीसिया मसीह के “अधीन” है। यहोवा के साक्षी समझते हैं कि विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास यीशु के आत्मिक भाइयों से बना है। (इब्रानियों २:१०-१३) इस विश्वासयोग्य दास वर्ग को परमेश्वर के लोगों को ‘समय पर आत्मिक भोजन’ देने के लिए नियुक्त किया गया है। अंत के इस समय में, मसीह ने इस दास को “अपने नौकर चाकरों पर” नियुक्त किया है। इसलिए उसका पद एक मसीही होने का दावा करनेवाले हर व्यक्ति के इज़्ज़त का हक़दार है।
१० मुखियापन का मकसद ही है एकता बनाए रखना और इस बात का निश्चय करना कि “सारी बातें सभ्यता और क्रमानुसार की जाएं।” (१ कुरिन्थियों १४:४०) पहली सदी में ऐसा करने के लिए, विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग में से कई अभिषिक्त मसीहियों को इस पूरे समूह का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। इसके बाद की घटनाओं ने साबित किया कि पहली सदी के इस शासी निकाय द्वारा की गयी देखरेख को यहोवा ने मंज़ूर किया था और उस पर आशीष भी दी थी। पहली सदी के मसीहियों ने खुशी-खुशी इस इंतज़ाम को कबूल किया। जी हाँ, यहाँ तक कि उन्होंने उसका स्वागत किया और जो अच्छे फल उस इंतज़ाम से मिले, उनके लिए वे एहसानमंद थे।—प्रेरितों १५:१-३२.
११. आज के शासी निकाय को किस नज़र से देखा जाना चाहिए?
११ ऐसा इंतज़ाम आज भी अहमियत रखता है। आज, यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय दस अभिषिक्त मसीहियों से बना है। निकाय के इन सभी सदस्यों के पास दशकों का मसीही तज़ुर्बा है। वे यहोवा के साक्षियों को आध्यात्मिक निर्देश देते हैं, ठीक जैसे पहली सदी का शासी निकाय दिया करता था। (प्रेरितों १६:४) शुरुआती मसीहियों की तरह, उपासना के मामलों पर बाइबल-आधारित निर्देश और मार्गदर्शन के लिए साक्षी खुशी से शासी निकाय के प्रौढ़ भाइयों की ओर देखते हैं। हालाँकि अपने संगी मसीहियों की तरह, शासी निकाय के सदस्य भी यहोवा और मसीह के दास हैं, फिर भी बाइबल हमसे कहती है: “अपने अगुवों की मानो; और उन के आधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”—इब्रानियों १३:१७.
१२. हर मसीही को किस को लेखा देना है?
१२ शास्त्र शासी निकाय को देखरेख का जो पद देता है, क्या उसका मतलब यह है कि यहोवा के हर साक्षी को अपने कामों के लिए उसे लेखा देना पड़ेगा? अगर रोम के मसीहियों को लिखे पौलुस के शब्द देखें, तो नहीं: “तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे। . . . हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा।”—रोमियों १४:१०-१२.
१३. यहोवा के साक्षी अपने प्रचार के काम की रिपोर्ट क्यों करते हैं?
१३ तो फिर, क्या यह सच नहीं कि हर साक्षी को अपने प्रचार के काम की रिपोर्ट देनी पड़ती है? हाँ यह सच है, लेकिन इसके उद्देश्य को साक्षियों के एक हैंडबुक में बिलकुल साफ-साफ शब्दों में समझाया गया है। उसमें लिखा है: “यीशु मसीह के शुरुआती अनुयायियों ने प्रचार के काम की प्रगति की रिपोर्टों में काफी दिलचस्पी दिखायी। (मरकुस ६:३०) और जैसे-जैसे काम बढ़ता गया, आँकड़ेवार रिपोर्टें रखी गयीं, और सुसमाचार प्रचार का काम करनेवालों के लाजवाब अनुभव भी साथ रखे गए। . . . (प्रेरितों २:५-११, ४१, ४७; ६:७; १:१५; ४:४) . . . जो-जो हो रहा था उनकी रिपोर्टें सुनने से काम करनेवाले उन वफादार मसीहियों का हौसला कितना बढ़ा होगा! . . . उसी तरह, आज का यहोवा का संगठन मत्ती २४:१४ की पूर्ति में जो काम किया जा रहा है उसका सही-सही रिकॉर्ड रखने की कोशिश करता है।”
१४, १५. (क) दूसरा कुरिन्थियों १:२४ शासी निकाय पर कैसे लागू होता है? (ख) हर मसीही को व्यक्तिगत फैसले किस आधार पर करने चाहिए, और किस सच्चाई को समझते हुए?
१४ शासी निकाय एक प्यार भरा इंतज़ाम है और विश्वास की नकल करने लायक मिसाल है। (फिलिप्पियों ३:१७; इब्रानियों १३:७) एक नमूने के तौर पर मसीह से लगे रहने और उसका पालन करने की वज़ह से वे पौलुस के सुर में सुर मिला सकते हैं: “यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं क्योंकि तुम [अपने] विश्वास ही से स्थिर रहते हो।” (२ कुरिन्थियों १:२४) दुनिया के रुख को देखकर शासी निकाय बाइबल सलाह को मानने के फायदों पर ध्यान खींचता है, बाइबल के नियमों और सिद्धांतों को लागू करने के बारे में सुझाव देता है, छिपे हुए खतरों से आगाह करता है, और ‘सहकर्मियों’ को ज़रूरी हौसला देता है। इस तरह वह अपने मसीही भंडारी का काम करता है, उनकी खुशी बनाए रखने में उनकी मदद करता है, और उन्हें विश्वास में मज़बूत करता है ताकि वे स्थिर खड़े रह सकें।—१ कुरिन्थियों ४:१, २; तीतुस १:७-९.
१५ अगर एक साक्षी शासी निकाय द्वारा दी गयी बाइबल सलाह के आधार पर फैसले करता है, तो वह अपनी मर्ज़ी से ऐसा करता है क्योंकि बाइबल के उसके अध्ययन ने उसे यकीन दिलाया है कि यही सही रास्ता है। हर साक्षी परमेश्वर के अपने वचन द्वारा प्रभावित होता है कि शासी निकाय द्वारा दी गयी ठोस शास्त्रीय सलाह को लागू करे। वह ऐसा पूरी तरह से समझते हुए करता है कि वह जो फैसले करता है उनका परमेश्वर के साथ उसके अपने रिश्ते पर असर पड़ेगा, जिसको वह समर्पित है।—१ थिस्सलुनीकियों २:१३.
विद्यार्थी और सैनिक
१६. हालाँकि आचरण के बारे में फैसले एक व्यक्तिगत बात है, फिर भी क्यों कुछ लोगों को बहिष्कृत किया जाता है?
१६ लेकिन अगर आचरण के बारे में फैसले करना एक व्यक्तिगत बात है, तो कुछ यहोवा के साक्षियों को बहिष्कृत क्यों किया जाता है? कोई भी अपनी मन-मर्ज़ी से यह तय नहीं करता है कि कोई खास पाप करने पर बहिष्करण ज़रूरी है। इसके बजाय, शास्त्रीय रूप से यह कदम उठाना सिर्फ तब ज़रूरी हो जाता है जब कलीसिया का एक सदस्य अपश्चातापी रूप से गंभीर पाप करता रहता है। वे ऐसे पाप हैं जिन्हें पहला कुरिन्थियों के ५वें अध्याय में बताया गया है। सो, जबकि एक मसीही को व्यभिचार के लिए बहिष्कृत किया जाए, यह सिर्फ तब होता है जब वह व्यक्ति प्रेममय चरवाहों की आध्यात्मिक सहायता कबूल करने से इंकार करता है। इस मसीही प्रथा का पालन करनेवाले यहोवा के साक्षी अकेले नहीं हैं। धर्म का विश्वकोश (अंग्रेज़ी) कहता है: “कोई भी समाज ऐसे सदस्यों से अपनी हिफाज़त करने का अधिकार रखता है जो उनके स्तरों का पालन नहीं करते और जो जन-हित के लिए खतरा हों। धर्म के बारे में कहें तो इस अधिकार को अकसर इस मान्यता के साथ लागू किया जाता है कि किसी आज्ञा के उल्लंघन के नतीजे [यानी जातिबाहर किए जाने] का असर परमेश्वर के सामने हमारी स्थिति पर पड़ता है।”
१७, १८. बहिष्करण की उचितता को कैसे सचित्रित किया जा सकता है?
१७ यहोवा के साक्षी बाइबल के विद्यार्थी हैं। (यहोशू १:८; भजन १:२; प्रेरितों १७:११) शासी निकाय द्वारा दिए गए बाइबल शिक्षा के कार्यक्रम की तुलना शिक्षा बोर्ड द्वारा दिए गए स्कूल पाठ्यक्रम से की जा सकती है। हालाँकि जो बातें सिखायी जा रही हैं उनका उद्गम खुद बोर्ड नहीं है, लेकिन वह पाठ्यक्रम बनाता है, सिखाने का तरीका निर्धारित करता है, और ज़रूरी हिदायतें देता है। लेकिन अगर कोई विद्यार्थी इंस्टिट्यूशन की माँगों के अनुसार जीने से साफ इंकार कर देता है, दूसरे विद्यार्थियों के लिए मुश्किलात पैदा करता है, या स्कूल के नाम पर कीचड़ उछालता है, तो उसे स्कूल से निकाल दिया जा सकता है। स्कूल अधिकारियों के पास हक़ होता है कि सभी विद्यार्थियों की भलाई के लिए कोई कदम उठाए।
१८ विद्यार्थियों के अलावा, यहोवा के साक्षी यीशु मसीह के सैनिक हैं, जिन्हें ‘विश्वास की अच्छी लड़ाई लड़ने’ का निर्देश दिया गया है। (१ तीमुथियुस ६:१२; २ तीमुथियुस २:३) सो लाज़िमी है कि अगर एक व्यक्ति मसीही सैनिक को शोभा न देनेवाले चाल-चलन में बना रहता है, तो उसे शायद परमेश्वर की मंज़ूरी न मिले। चुनने की आज़ादी रखनेवाले एक व्यक्ति के तौर पर, एक मसीही सैनिक अपनी मन-मर्ज़ी से फैसले कर सकता है, लेकिन उसे अपने फैसलों के नतीजे को भी भुगतना पड़ेगा। पौलुस तर्क करता है: “जब कोई योद्धा लड़ाई पर जाता है, तो इसलिये कि अपने भरती करनेवाले को प्रसन्न करे, अपने आप को संसार के कामों में नहीं फंसाता। फिर अखाड़े में लड़नेवाला यदि विधि के अनुसार न लड़े तो मुकुट नहीं पाता।” (२ तीमुथियुस २:४, ५) प्रौढ़ मसीही, जिनमें शासी निकाय के सदस्य भी शामिल हैं, पूरी तरह से अपने अगुवे, यीशु मसीह के नियमों के अधीन रहते हैं और “विधि” का पालन करते हैं, ताकि वे हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी का इनाम पा सकें।—यूहन्ना १७:३; प्रकाशितवाक्य २:१०.
१९. मसीही समर्पण के बारे में सच्चाइयों की जाँच करने के बाद, हम किस बात का यकीन कर सकते हैं?
१९ क्या सच्चाइयाँ साबित नहीं करतीं कि यहोवा के साक्षी मनुष्यों के नहीं, बल्कि परमेश्वर के दास हैं? मसीह ने जिस स्वतंत्रता के लिए उन्हें स्वतंत्र किया, उसका मज़ा लेनेवाले समर्पित मसीहियों के तौर पर वे परमेश्वर की आत्मा को और उसके वचन को अपनी ज़िंदगी को नियंत्रित करने देते हैं, और वे परमेश्वर की कलीसिया में भाइयों के साथ एकता में उसकी सेवा करते हैं। (भजन १३३:१) इस बात के सबूत से हर अनिश्चितता मिट जानी चाहिए कि उनके बल का उद्गम कौन है। भजनहार के सुर में सुर मिलाकर वे गा सकते हैं: “यहोवा मेरा बल और मेरी ढाल है; उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहायता मिली है; इसलिये मेरा हृदय प्रफुल्लित है; और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूंगा।”—भजन २८:७.
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा १९९३ में प्रकाशित।
आपका जवाब क्या होगा?
◻ वॉच टावर संस्था और ऐसी ही कानूनी एजॆंसियाँ यहोवा के साक्षियों की मदद कैसे करती हैं?
◻ मसीहियों को यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय की भूमिका से कैसे फायदा होता है?
◻ यहोवा के लोग अपने प्रचार के काम की रिपोर्ट क्यों देते हैं?
◻ किन हालात में एक समर्पित मसीही का बहिष्करण उचित है?
[पेज 19 पर तसवीर]
पहली सदी के शासी निकाय ने धर्म-सिद्धांतों की एकता बनाए रखी
[पेज 23 पर तसवीर]
दुनिया-भर में यहोवा के साक्षी उस स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं, जिसके लिए मसीह ने उन्हें स्वतंत्र किया