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    प्रहरीदुर्ग—2003 | सितंबर 15
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      “अपने आप में जीवन” रखने का क्या मतलब है?

      बाइबल, यीशु मसीह के बारे में कहती है कि वह “अपने आप में जीवन” रखता है और उसके चेलों के बारे में कहती है कि ‘उनमें जीवन’ है। (यूहन्‍ना 5:26; 6:53) मगर इन दोनों आयतों का मतलब अलग है।

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    प्रहरीदुर्ग—2003 | सितंबर 15
    • करीब एक साल बाद, यीशु ने अपने सुननेवालों से कहा: “मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लोहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता, और मेरा लोहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा।” (यूहन्‍ना 6:53, 54) इस आयत में यीशु के शब्दों से ज़ाहिर होता है कि “तुम में जीवन” रखने का मतलब “अनन्त जीवन” पाना है। “तुम में जीवन,” कुछ इसी तरह के शब्द, यूनानी शास्त्र की दूसरी आयतों में भी पाए जाते हैं। इसकी दो मिसालें हैं, “अपने में नमक रखो” और ‘उन्होंने अपने आप में उचित दण्ड पाया।’ (मरकुस 9:50; रोमियों 1:27, NHT, फुटनोट) इन शब्दों का मतलब यह नहीं है कि एक इंसान के पास किसी को नमक देने या दंड देने का अधिकार है। इसके बजाय, इनका मतलब है, ऐसे गुणों का खुद उस इंसान के अंदर पूरी तरह या भरपूर रूप से मौजूद होना। इसलिए कहा जा सकता है कि यूहन्‍ना 6:53 में बताए गए शब्द, “तुम में जीवन” का मतलब है, सही मायनों में भरपूर ज़िंदगी पाना।

      जब यीशु ने चेलों से अपने आप में जीवन रखने की बात कही, तो उसने अपने मांस और लहू का भी ज़िक्र किया। आगे चलकर, जब उसने प्रभु के संध्या भोज की शुरूआत की, तब उसने दोबारा अपने मांस और लहू का ज़िक्र किया। इस बार उसने अपने चेलों को, जो नयी वाचा के भागीदार होते, निशानियों के तौर पर दी गयी अखमीरी रोटी और दाखमधु को खाने-पीने की आज्ञा दी। क्या इसका मतलब यह है कि ऐसी भरपूर ज़िंदगी सिर्फ, परमेश्‍वर यहोवा के साथ नयी वाचा में बँधे अभिषिक्‍त मसीहियों को ही मिलेगी? जी नहीं। गौर कीजिए कि जिन दो मौकों पर यीशु ने लहू और मांस का ज़िक्र किया उनके बीच एक साल का फासला था। और जिन लोगों ने यूहन्‍ना 6:53, 54 में दर्ज़ यीशु के शब्दों को सुना, उन्हें इस सालाना पर्व के बारे में कोई जानकारी नहीं थी जिसमें अखमीरी रोटी और दाखमधु, मसीह के शरीर और लहू की निशानियाँ होतीं।

      यूहन्‍ना अध्याय 6 में यीशु ने पहले अपने शरीर की तुलना मन्‍ना से की और कहा: “तुम्हारे बापदादों ने जंगल में मन्‍ना खाया और मर गए। यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उस में से खाए और न मरे। जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा।” यीशु का शरीर और लहू, सचमुच के मन्‍ना से कहीं बढ़कर थे। वह कैसे? यीशु ने अपना शरीर “जगत के जीवन” की खातिर दे दिया और इस तरह सबके लिए हमेशा की ज़िंदगी पाना मुमकिन किया।a इसलिए यूहन्‍ना 6:53 में यीशु ने “तुम में जीवन” होने की जो बात कही, वह उन सभी लोगों पर लागू होती है जो अनंत जीवन पाएँगे, फिर चाहे वे स्वर्ग में पाएँ या इस धरती पर।—यूहन्‍ना 6:48-51.

      मसीह के चेले कब अपने आप में जीवन पाते या भरपूर ज़िंदगी हासिल करते हैं? राज्य के अभिषिक्‍त वारिसों को ऐसी ज़िंदगी उनकी मौत के बाद मिलती है जब वे स्वर्ग में पुनरुत्थान पाकर अमर आत्मिक प्राणी बन जाते हैं। (1 कुरिन्थियों 15:52, 53; 1 यूहन्‍ना 3:2) यीशु की ‘अन्य भेड़ों’ को भरपूर ज़िंदगी उसके हज़ार साल के राज के आखिर में मिलेगी। तब तक वे परखे जाएँगे, वफादार साबित होंगे और धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए धर्मी ठहराए जाएँगे।—यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 20:5, 7-10.

      [फुटनोट]

      a वीराने में इस्राएलियों के साथ-साथ “मिली जुली हुई एक भीड़” को भी ज़िंदा रहने के लिए मन्‍ना की ज़रूरत थी। (निर्गमन 12:37, 38; 16:13-18) उसी तरह हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए सभी मसीहियों को, फिर चाहे वे अभिषिक्‍त हों या नहीं, स्वर्गीय मन्‍ना से फायदा उठाने की ज़रूरत है। इसके लिए उन्हें अपना यह विश्‍वास ज़ाहिर करना होगा कि यीशु के बलिदान किए गए लहू और शरीर में उनका उद्धार करने की ताकत है।—फरवरी 1, 1989 की प्रहरीदुर्ग के पेज 30-1 देखिए।

      [पेज 31 पर तसवीरें]

      सभी सच्चे मसीही ‘अपने में जीवन’ रख सकते हैं

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