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  • सांत्वना के लिए यहोवा की ओर देखिए
    प्रहरीदुर्ग—1996 | नवंबर 1
    • १४. (क) अपनी मृत्यु की पहली रात को यीशु ने कौन-सी प्रतिज्ञा की? (ख) यदि हमें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की सांत्वना से पूरी तरह लाभ प्राप्त करना है तो क्या बात ज़रूरी है?

      १४ अपनी मृत्यु की पहली रात को, यीशु ने अपने विश्‍वासी प्रेरितों को स्पष्ट रूप से बताया कि वह जल्द ही उनको छोड़कर अपने पिता के पास लौटेगा। इस बात से उन्हें कष्ट और दुःख हुआ। (यूहन्‍ना १३:३३, ३६; १४:२७-३१) जारी सांत्वना की उनकी ज़रूरत को समझते हुए, यीशु ने प्रतिज्ञा की: “मैं पिता से बिनती करूंगा, और वह तुम्हें एक और सहायक [“सांत्वना देनेवाला,” NW, फुटनोट] देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे।” (यूहन्‍ना १४:१६) यीशु ने यहाँ परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की ओर संकेत किया, जिसे उसके शिष्यों पर उसके पुनरुत्थान के ५० दिन बाद उंडेल दिया गया था।a अन्य बातों के अलावा, परमेश्‍वर की आत्मा ने उन्हें उनकी परीक्षाओं में सांत्वना दी और परमेश्‍वर की इच्छा करना जारी रखने के लिए उन्हें मज़बूत किया। (प्रेरितों ४:३१) लेकिन, ऐसी सहायता को स्वतः प्राप्त होनेवाली सहायता नहीं समझा जाना चाहिए। इससे पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए, प्रत्येक मसीही को सांत्वनादायक सहायता के लिए प्रार्थना करना जारी रखना चाहिए जो परमेश्‍वर अपनी पवित्र आत्मा के माध्यम से देता है।—लूका ११:१३.

  • सांत्वना के लिए यहोवा की ओर देखिए
    प्रहरीदुर्ग—1996 | नवंबर 1
    • a प्रथम-शताब्दी मसीहियों पर परमेश्‍वर की आत्मा की एक मुख्य कार्यवाही थी उन्हें परमेश्‍वर के दत्तक आत्मिक पुत्रों और यीशु के भाइयों के तौर पर अभिषिक्‍त करना। (२ कुरिन्थियों १:२१, २२) यह केवल मसीह के १,४४,००० शिष्यों के लिए अलग रखा गया है। (प्रकाशितवाक्य १४:१, ३) आज अधिकांश मसीहियों को कृपापूर्वक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन की आशा दी गयी है। यद्यपि वे अभिषिक्‍त नहीं हैं, उन्हें भी परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा की सहायता और सांत्वना मिलती है।

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