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संकट के समय में पौलुस की जीतप्रहरीदुर्ग—1999 | मई 1
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तूफान में फँसे हुए जब १४वीं रात हुई तो मल्लाह पानी की थाह लेकर हैरान रह गये—पानी सिर्फ २० पुरसा गहरा है।a थोड़ा आगे बढ़कर वे फिर से थाह लेते हैं। अब पानी सिर्फ १५ पुरसा गहरा है। ज़मीन करीब है! लेकिन इस खुशखबरी के साथ-साथ एक मुश्किल भी है। रात को छिछले पानी में हचकोले खाकर जहाज़ पथरीली जगहों से टकरा सकता है और तहस-नहस हो सकता है। बुद्धिमानी दिखाते हुए मल्लाह लंगर डाल देते हैं। कुछ मल्लाह पानी में डोंगी उतारकर उसमें जाना चाहते हैं और समुद्र का जोखिम उठाना चाहते हैं।b लेकिन पौलुस उन्हें रोकता है। वह सूबेदार और सिपाहियों से कहता है: “यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम नहीं बच सकते।” सूबेदार पौलुस की बात मान लेता है और अब सभी २७६ यात्री बड़ी बेचैनी से भोर का इंतज़ार करते हैं।—प्रेरितों २७:२७-३२.
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संकट के समय में पौलुस की जीतप्रहरीदुर्ग—1999 | मई 1
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b डोंगी एक छोटी नाव हुआ करती थी जिसे किनारे तक आने के लिए तब इस्तेमाल किया जाता था जब जहाज़ को तट से थोड़ी दूरी पर खड़ा किया जाता था। लगता है कि मल्लाह अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें दूसरों की परवाह नहीं थी जिन्हें जहाज़ को सँभालने के बारे में कुछ खास नहीं पता था।
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