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“परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है”‘परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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7, 8. स्वर्गदूत की बात का प्रेषितों पर क्या असर हुआ होगा? हमें खुद से कौन-सा सवाल पूछना चाहिए?
7 प्रेषित जेल में अपने मुकदमे की सुनवाई का इंतज़ार कर रहे हैं। वे शायद सोच रहे होंगे कि अब उन्हें अपने विश्वास की खातिर मरना पड़ेगा। (मत्ती 24:9) लेकिन रात को अचानक एक ऐसी घटना घटती है जिसकी वे उम्मीद नहीं करते। ‘यहोवा का एक स्वर्गदूत जेल के दरवाज़े खोल देता है।’b (प्रेषि. 5:19) फिर स्वर्गदूत उन्हें साफ-साफ कहता है, “जाकर मंदिर में लोगों को जीवन का संदेश सुनाते रहो।” (प्रेषि. 5:20) बेशक स्वर्गदूत की यह बात सुनकर प्रेषितों को यकीन हो जाता है कि वे जो कर रहे हैं, बिलकुल सही कर रहे हैं। साथ ही, उनका इरादा और पक्का हो जाता है कि चाहे जो हो जाए वे प्रचार काम में डटे रहेंगे। इसलिए “सुबह होते ही” प्रेषित पूरे विश्वास और हिम्मत के साथ ‘मंदिर में जाते हैं और सिखाने लगते हैं।’—प्रेषि. 5:21.
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“परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है”‘परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही दो’
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b प्रेषितों की किताब में तकरीबन 20 बार स्वर्गदूतों का सीधे-सीधे ज़िक्र किया गया है। पहला ज़िक्र प्रेषितों 5:19 में है। इससे पहले प्रेषितों 1:10 में भी स्वर्गदूतों की बात की गयी है मगर वहाँ उन्हें स्वर्गदूत नहीं बल्कि ‘सफेद कपड़े पहने आदमी’ कहा गया है।
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