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अनन्त जीवन के लिए उचित रीति से प्रवृत्त जनों की खोज करनाप्रहरीदुर्ग—1992 | मार्च 1
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२. एक व्यक्ति के लाक्षणिक हृदय में क्या बात जड़ पकड़े हुए है, और इस कारण इसके बारे में हम शास्त्रों में क्या पढ़ते हैं?
२ एक व्यक्ति एक निश्चित प्रबल अभिवृत्ति प्रदर्शित करता है। उसका एक विशेष मनोवृत्ति है जो उसके लाक्षणिक हृदय में जड़ पकड़े हुए है। (मत्ती १२:३४, ३५; १५:१८-२०) इस कारण, हम ऐसे व्यक्ति के बारे में पढ़ते हैं जिसका “दिल लड़ाई के लिए प्रवृत्त है।” (भजन ५५:२१, न्यू.व.) हमें बताया गया है कि “अत्यन्त क्रोध करनेवाला मनुष्य अपराधी भी होता है।” और हम पढ़ते हैं: “एक दूसरों को नाश करनेवाले साथी भी होते हैं, परन्तु ऐसा मित्र होता है जो भाई से अधिक मिला रहता है।” (नीतिवचन १८:२४; २९:२२) ख़ुशी की बात है कि अनेक व्यक्ति प्राचीन पिसिदिया के अन्ताकिया में कुछ अन्यजातिय जनों के समान सिद्ध हुए। यहोवा के उद्धार के प्रबन्ध के बारे में सुनकर वे “आनंदित हुए और यहोवा के वचन की बड़ाई करने लगे, और अनन्त जीवन के लिए जितने उचित रीति से प्रवृत्त थे विश्वासी बन गए।”—प्रेरितों १३:४४-४८, न्यू.व.
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अनन्त जीवन के लिए उचित रीति से प्रवृत्त जनों की खोज करनाप्रहरीदुर्ग—1992 | मार्च 1
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४ हृदय में शुद्ध व्यक्ति अन्दर से स्वच्छ हैं। उनकी क़दरदानी, स्नेह, आकांक्षा, और उद्देश्यों की शुद्धता है। (१ तीमुथियुस १:५) वे परमेश्वर को अब देखते हैं चूँकि वे यह निरीक्षण करते हैं कि परमेश्वर सत्यनिष्ठा रखनेवालों के प्रति कार्य करते हैं। (निर्गमन ३३:२०; अय्यूब १९:२६; ४२:५.) यूनानी शब्द से अनुवाद किया हुआ शब्द “देखना” का अर्थ “मन से देखना, महसूस करना, जानना” है। क्योंकि यीशु परमेश्वर के व्यक्तित्व को सिद्धता से प्रतिबिंबित करते थे, इस लिए उस व्यक्तित्व में सूक्ष्मदृष्टि का आनंद “हृदय में शुद्ध” मनुष्यों द्वारा उठाया जाता है जो मसीह और उनके पाप से प्रायश्चित करनेवाली बलिदान में विश्वास करते हैं, अपने पापों की क्षमा प्राप्त करते हैं, और परमेश्वर को स्वीकारयोग्य उपासना करने के क़ाबिल हैं। (यूहन्ना १४:७-९; इफिसियों १:७) अभिषिक्त जनों के ख़ातिर, परमेश्वर को देखने की पराकाष्ठा तब होती है जब वे स्वर्ग को पुनरूत्थित होते हैं जहाँ वे वास्तव में परमेश्वर और मसीह को देखते हैं। (२ कुरिन्थियों १:२१, २२; १ यूहन्ना ३:२) लेकिन परिशुद्ध ज्ञान और सच्ची उपासना से परमेश्वर को देखना उन सभी के लिए संभव है जो हृदय में शुद्ध हैं। (भजन २४:३, ४; १ यूहन्ना ३:६; ३ यूहन्ना ११) वे स्वर्ग में या परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त हैं।—लूका २३:४३; १ कुरिन्थियों १५:५०-५७; १ पतरस १:३-५.
५. सिर्फ़ कैसे एक व्यक्ति विश्वासी और यीशु मसीह का सच्चा अनुयायी बन सकता है?
५ वे लोग जो अनन्त जीवन के लिए उचित रूप से प्रवृत्त नहीं हैं, विश्वासी नहीं बनेंगे। उनके लिए विश्वास करना सम्भव नहीं। (२ थिस्सलुनीकियों ३:२) इसके अलावा, कोई भी व्यक्ति यीशु का सच्चा शिष्य नहीं बन सकता जब तक वह सिखाने योग्य न हो, और हृदय को जाँचनेवाले यहोवा, उस व्यक्ति को नज़दीक न लाए। (यूहन्ना ६:४१-४७) निस्संदेह, घर-घर के प्रचार में, यहोवा के गवाह पहले से किसी का भी न्याय नहीं करते हैं। वे हृदयों को नहीं पढ़ सकते परन्तु परिणाम को परमेश्वर के प्रेममय हाथों में छोड़ देते हैं।
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