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  • यहोवा की भेड़ों की देखभाल करनेवाले ‘मनुष्यों में दान’
    प्रहरीदुर्ग—1999 | जून 1
    • जब किसी ‘सुधार’ की ज़रूरत हो

      ८. हमें कई बार किन-किन बातों में सुधार करनी पड़ती है?

      ८ पहली ज़िम्मेदारी। जैसे पौलुस कहता है कि ‘मनुष्यों में दान’ को इसलिए दिया गया है ताकि “पवित्र लोग सिद्ध हो [सुधारे] जाएं।” (इफिसियों ४:१२) यहाँ पर जिस यूनानी संज्ञा का अनुवाद “सिद्ध” किया गया है, उसका मतलब है किसी चीज़ को “सुधारना और सही-सही बिठाना।” असिद्ध होने की वज़ह से हम सभी को कई बार अपने सोच-विचार, अपनी मनोवृत्ति या अपने चालचलन को “सुधारना” पड़ता है और उसे परमेश्‍वर के सोच-विचार और उसके उद्देश्‍यों के अनुसार “सही-सही बिठाना” पड़ता है। और हमारे लिए प्रेम की खातिर यहोवा ने हमें ‘मनुष्यों में दान’ दिए हैं जो ऐसा करने में हमारी मदद करते हैं। मगर, वे हमारी मदद कैसे करते हैं?

      ९. एक प्राचीन गलती करनेवाले व्यक्‍ति को सुधरने में कैसे मदद कर सकता है?

      ९ अगर कभी किसी प्राचीन से कहा जाए कि वह एक ऐसे व्यक्‍ति की मदद करे जिसने कोई गलती की है, और अनजाने में किसी ‘अपराध में पड़’ गया है, तो वह उसकी मदद कैसे कर सकता है? गलतियों ६:१ (नयी हिन्दी बाइबल) कहता है कि ऐसे व्यक्‍ति को “नम्रतापूर्वक सुधारो।” सो, जब प्राचीन ऐसे व्यक्‍ति को सुधारने के लिए कोई सलाह देता है, तो उसे डाँटना नहीं चाहिए या कठोर शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उसे सलाह देकर व्यक्‍ति को ‘डराना’ नहीं चाहिए, इसके बजाय उसका हौसला बढ़ाना चाहिए। (२ कुरिन्थियों १०:९. अय्यूब ३३:७ से तुलना कीजिए।) हो सकता है कि गलती करके वह व्यक्‍ति पहले से ही बहुत शर्मिंदा हो, इसलिए प्रेमी चरवाहे को उसे और दुखी नहीं करना चाहिए। और जब गलती करनेवाला व्यक्‍ति जानता है कि प्राचीन उसे इसीलिए सलाह या ताड़ना दे रहा है क्योंकि वह उससे प्यार करता है तो इसकी ज़्यादा गुंजाइश है कि वह अपने सोच-विचार या चाल-चलन को सुधारेगा और संभल जाएगा। इसलिए प्राचीनों को ऐसी सलाह या ताड़ना प्यार की खातिर और प्यार से देनी चाहिए।—२ तीमुथियुस ४:२.

      १०. दूसरों को सुधारने में क्या-क्या शामिल है?

      १० जब यहोवा ने हमें सुधारने के लिए ‘मनुष्यों में दान’ दिए, तो वह चाहता था कि प्राचीन कलीसिया को आध्यात्मिकता में मज़बूत करें और कलीसिया में एक अच्छी मिसाल बन कर रहें। (१ कुरिन्थियों १६:१७, १८; फिलिप्पियों ३:१७) लेकिन दूसरों को सुधारने का मतलब सिर्फ इतना ही नहीं है कि गुमराह हो रहे व्यक्‍ति को सही राह दिखाना, बल्कि उन्हें वफादार मसीहियों की भी मदद करनी चाहिए ताकि वे सही राह पर चलते रहें।a आज वफादार मसीहियों की ज़िंदगी में इतनी सारी मुसीबतें और परेशानियाँ आती हैं कि कई मसीही बिलकुल निराश हो जाते हैं। इसलिए उन्हें सही रास्ते पर चलते रहने के लिए हौसले और हिम्मत की ज़रूरत है। दूसरों को यह समझने के लिए प्यार-भरी मदद की ज़रूरत हो कि परमेश्‍वर उनके बारे में क्या सोचता है। उदाहरण के लिए, शायद कुछ वफादार मसीहियों के दिल में ऐसे विचार घर कर गए हों कि वे किसी लायक नहीं हैं, किसी को उनकी ज़रूरत नहीं है। ऐसे “हताश” लोगों को लगे कि यहोवा उन्हें फिर कभी प्यार नहीं कर सकता और चाहे परमेश्‍वर की सेवा में वे जितनी भी मेहनत करें, वह उसे कभी कबूल नहीं करेगा, कभी पसंद नहीं करेगा। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) लेकिन, ऐसे “हताश” लोगों को यह समझना होगा कि परमेश्‍वर अपने उपासकों के बारे में ऐसा बिलकुल भी नहीं सोचता।

      ११. प्राचीन ऐसे लोगों की मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं जिन्हें लगता है कि किसी को उनकी ज़रूरत नहीं है?

      ११ सो प्राचीनो, ऐसे लोगों की मदद करने के लिए आप क्या कर सकते हैं जिन्हें लगता है कि वे किसी लायक नहीं हैं, किसी को उनकी ज़रूरत नहीं है? उनकी मदद करने के लिए शास्त्रवचनों से उन्हें समझाइए कि यहोवा अपने हर सेवक की चिंता करता है, और इसका मतलब यही है कि यहोवा उनसे भी बेहद प्यार करता है और उनकी बहुत परवाह करता है। (लूका १२:६, ७, २४) उन्हें यह भी समझने में मदद कीजिए कि खुद यहोवा ने उन्हें अपनी ओर ‘खींचा’ है ताकि वे उसकी सेवा करें। सो यह साफ है कि यहोवा ने ज़रूर उनमें कुछ अच्छा देखा है, और वह उन्हें बहुत अनमोल समझता है। (यूहन्‍ना ६:४४) उन्हें बताइए कि यहोवा के पहले के कई वफादार सेवक उनकी तरह ही महसूस करते थे। जैसे भविष्यवक्‍ता एलिय्याह एक बार इतना हताश हो गया था कि वह मर जाना चाहता था। (१ राजा १९:१-४) और पहली सदी के कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों का ‘मन उन्हें दोष’ देता था। (१ यूहन्‍ना ३:१९, २०) सो, इन लोगों को यह जानकर भी तसल्ली मिलेगी कि बाइबल के ज़माने के वफादार सेवक भी ‘हमारे ही जैसी भावना रखनेवाले’ मनुष्य थे। (याकूब ५:१७, NW) आप इन हताश लोगों के साथ प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! के कुछ खास लेखों की चर्चा करके इनका हौसला बढ़ा सकते हैं। इस तरह, जब आप प्यार से इनका हौसला बढ़ाने के लिए मेहनत करते हैं, तब परमेश्‍वर आपको इसका फल ज़रूर देगा, क्योंकि उसी ने आपको ‘मनुष्यों में दान’ ठहराया है।—इब्रानियों ६:१०.

  • यहोवा की भेड़ों की देखभाल करनेवाले ‘मनुष्यों में दान’
    प्रहरीदुर्ग—1999 | जून 1
    • झुंड की ‘उन्‍नति करना’

      १२. “मसीह की देह उन्‍नति पाए” इन शब्दों का मतलब क्या है, और झुंड की उन्‍नति करने का राज़ क्या है?

      १२ ‘मनुष्यों में दान’ की दूसरी ज़िम्मेदारी है यह देखना कि “मसीह की देह उन्‍नति पाए।” (इफिसियों ४:१२) यहाँ पर पौलुस “उन्‍नति” के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल करता है, वह निर्माण-कार्य से जुड़ा हुआ शब्द है, और “मसीह की देह” का मतलब है अभिषिक्‍त मसीही कलीसिया के सदस्य। (१ कुरिन्थियों १२:२७; इफिसियों ५:२३, २९, ३०) सो प्राचीनों को अपने भाइयों की मदद करनी चाहिए ताकि वे आध्यात्मिकता में बढ़ते जाएँ और मज़बूत होते जाएँ। उनका उद्देश्‍य है झुंड को ‘बनाना, न कि बिगाड़ना।’ (२ कुरिन्थियों १०:८) और उन्‍नति का राज़ है प्रेम, क्योंकि “प्रेम से उन्‍नति होती है।”—१ कुरिन्थियों ८:१.

      १३. हमदर्दी दिखाने का मतलब क्या है, और प्राचीनों को हमदर्दी जताना इतना ज़रूरी क्यों है?

      १३ झुंड की उन्‍नति के लिए प्राचीनों को जो प्रेम दिखाने की ज़रूरत है उसमें हमदर्दी भी होनी चाहिए। हमदर्दी दिखाने का मतलब है दूसरों के दुःखों में सहभागी होना, यानी उनकी तरह सोचना, उनकी भावनाओं को अपने दिल में महसूस करना और उनकी कमज़ोरियों को ध्यान में रखना। (१ पतरस ३:८) मगर प्राचीनों को हमदर्दी जताना इतना ज़रूरी क्यों है? सबसे पहली और सबसे बड़ी वज़ह तो यह है कि खुद यहोवा, जो ‘मनुष्यों में दान’ देता है, हमदर्दी जतानेवाला परमेश्‍वर है। जब उसके सेवक दुःख उठाते या तकलीफ में होते हैं, तो उसे भी दुःख होता है। (निर्गमन ३:७; यशायाह ६३:९) और वह अपने सेवकों की कमियों को बहुत अच्छी तरह जानता और समझता है। (भजन १०३:१४) तो फिर, प्राचीन हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं?

      १४. प्राचीन हमदर्दी कैसे दिखा सकते हैं?

      १४ जब कोई हताश व्यक्‍ति प्राचीनों के पास आकर बात करता है, तो वे उसकी बातों को ध्यान से सुनते हैं और उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं। वे यह भी समझने की कोशिश करते हैं कि उस भाई की परवरिश कौन-से हालात में हुई थी, उसके अभी के हालात कैसे हैं, उसका स्वभाव और व्यक्‍तित्व कैसा है। जब प्राचीन इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए उस व्यक्‍ति का बाइबल से हौसला बढ़ाएँगे और उसकी मदद करेंगे, तो वह बड़ी आसानी से इसे कबूल करेगा क्योंकि उसे एहसास होगा कि वे ऐसे चरवाहे हैं जो उसे सचमुच अच्छी तरह समझते हैं और दिल से उसकी चिंता करते हैं। (नीतिवचन १६:२३) हमदर्दी की वज़ह से प्राचीन अपने भाइयों की कमियों को और कमियों की वज़ह से पैदा होनेवाली भावनाओं को समझने की कोशिश करेगा। मिसाल के तौर पर, कुछ वफादार और जोशीले मसीही शायद खुद को बहुत कोसते होंगे क्योंकि वे परमेश्‍वर की उतनी सेवा नहीं कर पाते जितनी वे करना चाहते हैं। हो सकता है कि अब उनकी उम्र ढल गयी हो या उनकी सेहत अच्छी नहीं हो। या फिर किसी को अपनी सेवकाई को और भी बेहतर करने के लिए थोड़ी-बहुत मदद की ज़रूरत हो। (इब्रानियों ५:१२; ६:१) सो अगर हमदर्दी है तो प्राचीन ‘मनभावने शब्दों’ से उनका हौसला बढ़ा सकते हैं और उनकी उन्‍नति कर सकते हैं। (सभोपदेशक १२:१०) इस तरह, जब यहोवा की भेड़ों का हौसला बढ़ाया जाता है और उनकी उन्‍नति की जाती है, तो यहोवा के लिए उनका प्रेम उन्हें उकसाएगा कि वे पूरे दिल से और उनसे जितनी हो सके उतनी उसकी सेवा करें!

  • यहोवा की भेड़ों की देखभाल करनेवाले ‘मनुष्यों में दान’
    प्रहरीदुर्ग—1999 | जून 1
    • a ‘सुधार’ शब्द के लिए जो यूनानी क्रिया इस्तेमाल की गयी है, वही क्रिया यूनानी सेप्टुआजेंट वर्शन में भजन १७[१६]:५ में भी इस्तेमाल की गयी है। दाऊद हालाँकि यहोवा के पथों पर वफादारी से चल रहा था, फिर भी वह इस भजन में प्रार्थना करता है कि यहोवा अपने पथों पर उसके पाँव स्थिर करे।

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