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  • धीरज—मसीहियों के लिए अत्यावश्‍यक
    प्रहरीदुर्ग—1993 | सितंबर 1
    • १७. (क) यीशु ने कौन-सी परीक्षाओं में धीरज धरा? (ख) यीशु ने जो तीव्र कष्ट सहा, उसे संभवतः किस तथ्य से देखा जा सकता है? (फुटनोट देखिए.)

      १७ बाइबल हम से आग्रह करती है कि हम यीशु की ओर “ताकते रहें” और ‘उस पर ध्यान करें।’ उसने कौन-सी परीक्षाओं में धीरज धरा? कुछ तो दूसरों के पाप और अपरिपूर्णता के कारण थीं। यीशु ने न केवल ‘पापियों के वाद-विवाद’ में बल्कि उन समस्याओं में भी धीरज धरा जो उसके शिष्यों के बीच उठीं, जिनमें सम्मिलित थे उनके निरंतर विवाद कि कौन सर्वश्रेष्ठ था। इससे भी अधिक, उसने विश्‍वास की एक अद्वितीय परीक्षा का सामना किया। उसने “क्रूस [यातना स्तंभ, NW] का दुख सहा।” (इब्रानियों १२:१-३; लूका ९:४६; २२:२४) उस मानसिक और शारीरिक कष्ट की कल्पना करना भी कठिन है जो सूलारोपण की पीड़ा और एक ईश-निंदक के तौर पर मारे जाने की बदनामी में सम्मिलित था।a

      १८. प्रेरित पौलुस के अनुसार, किन दो बातों ने यीशु को कायम रखा?

      १८ किस बात ने यीशु को अंत तक धीरज धरने के लिए समर्थ किया? प्रेरित पौलुस दो बातों का ज़िक्र करता है जिन्होंने यीशु को कायम रखा: “प्रार्थनाएं और बिनती” और साथ ही ‘वह आनन्द जो उसके आगे धरा था।’ यीशु, परमेश्‍वर का परिपूर्ण पुत्र सहायता माँगने के लिए लज्जित नहीं था। उसने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर” प्रार्थना की। (इब्रानियों ५:७; १२:२) ख़ासकर जब उसकी परम परीक्षा निकट आ रही थी, उसने शक्‍ति के लिए बार-बार और गम्भीर रीति से प्रार्थना करना आवश्‍यक समझा। (लूका २२:३९-४४) यीशु की प्रार्थनाओं के उत्तर में, यहोवा ने परीक्षा को दूर नहीं किया, लेकिन उसने यीशु को उस परीक्षा में धीरज धरने की शक्‍ति दी। यीशु ने इसलिए भी सहन किया क्योंकि उसने उस यातना स्तंभ के आगे अपने पुरस्कार को देखा—यहोवा के नाम के पवित्रीकरण को योग देने और मानव परिवार को मृत्यु से छुड़ाने में उसे जो आनन्द मिलता।—मत्ती ६:९; २०:२८.

  • धीरज—मसीहियों के लिए अत्यावश्‍यक
    प्रहरीदुर्ग—1993 | सितंबर 1
    • २० कभी-कभी हमें आँसुओं के साथ सहन करना पड़ेगा। यीशु के लिए यातना स्तंभ की पीड़ा ख़ुद में आनन्द मनाने का एक कारण नहीं थी। इसके बजाय, आनन्द उस पुरस्कार में था जो उस के आगे धरा हुआ था। हमारे मामले में यह आशा करना यथार्थवादी नहीं कि हम परीक्षा का सामना करते समय हमेशा हँसमुख और आनन्दित महसूस करेंगे। (इब्रानियों १२:११ से तुलना कीजिए.) फिर भी, आगे पुरस्कार की ओर देखते हुए, हम शायद अत्यधिक कष्टदायी परिस्थितियों का सामना करते हुए भी ‘इन को पूरे आनन्द की बात समझ’ सकेंगे। (याकूब १:२-४; प्रेरितों ५:४१) महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हम दृढ़ रहें—चाहे यह आँसुओं के साथ ही क्यों न हो। आखिर, यीशु ने यह तो नहीं कहा, ‘जो सबसे कम आँसू बहाएगा, उसी का उद्धार होगा’ बल्कि, “जो अंत तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मत्ती २४:१३.

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