“दीनता से कमर बान्धे रहो”
“परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।”—१ पतरस ५:५.
१, २. कौन-से दो गुणों का इंसानों के व्यवहार पर बहुत गहरा असर होता है?
परमेश्वर के वचन में दो खास तरह के गुणों के बारे में बताया गया है। इन दोनों का इंसानों के व्यवहार पर बहुत गहरा असर होता है। एक है “दीनता।” (१ पतरस ५:५) एक शब्दकोश के मुताबिक, “दीनता” का मतलब है “स्वभाव में नम्र; बिना गुरूर और अहंकारवाला।” इसलिए, दीनता के लिए दूसरा शब्द है नम्रता, और परमेश्वर की नज़र में दीनता एक बहुत ही अच्छा गुण है।
२ दूसरा गुण है घमंड जो इसके बिलकुल उलट है। घमंड का मतलब है “हद से ज़्यादा स्वाभिमान,” और “दूसरों को नीचा समझना”। घमंडी व्यक्ति स्वार्थी होता है और वह बस खुद को संतुष्ट करने के लिए धन-दौलत और दूसरी बातों के पीछे पड़ा रहता है। वह इसका ज़रा भी लिहाज़ नहीं करता कि उसके कामों का दूसरों पर कितना बुरा असर हो सकता है। बाइबल में बताया गया है कि आखिर में इसका अंजाम क्या होता है: “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” बाइबल बताती है कि इसकी वज़ह से “लोग अपने पड़ोसी से जलन” रखने लगते हैं। लेकिन यह सब “व्यर्थ” है, क्योंकि मरने पर वह कुछ भी ‘अपने हाथ में नहीं ले जा सकेगा।’—सभोपदेशक ४:४; ५:१५; ८:९.
दुनिया भर में फैली मनोवृत्ति
३. खासकर कैसी मनोवृत्ति आज दुनिया भर में फैली हुई है?
३ इन दोनों में से कौन-सा गुण दुनिया में दिखाई देता है? खासकर कैसी मनोवृत्ति आज दुनिया भर में फैली हुई है? वर्ल्ड मिलिटरी एण्ड सोशल एक्सपॆंडिचर्स १९९६ में कहा गया है: “आज २०वीं सदी में चारों तरफ जितनी घिनौनी . . . हिंसा फैली हुई है, उतनी पहले किसी सदी में नहीं थी।” इस सदी में अलग-अलग दलों द्वारा कुर्सी की छीना-झपटी में और अलग-अलग कंपनियों द्वारा पैसे की होड़ में, साथ ही राष्ट्रीय, धार्मिक और जातीय लड़ाइयों में दस करोड़ से ज़्यादा लोग मौत के शिकार हो चुके हैं। आज एक आम इंसान भी बेहद स्वार्थी हो गया है। इस बारे में अखबार, शिकागो ट्रिब्यून ने कहा: “बात-बेबात पर लड़ाई-झगड़ा, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, तलाक, दारूबाज़ी, एड्स, जवान लोगों की आत्महत्या, नशीले पदार्थों की लत, गैंगवार, बलात्कार, नाजायज़ लैंगिक संबंध, गर्भपात, अश्लीलता, . . . झूठ बोलना, धोखा देना, राजनीति में भ्रष्टाचार, ये सारी बातें आज हमारे समाज को अंदर से खोखला कर रही हैं। . . . आज सही और गलत के बीच कोई फर्क नहीं रहा।” इसलिए, पत्रिका यूएन क्रॉनिकल चेतावनी देती है: “आज समाज टूटकर बिखर रहा है।”
४, ५. आज की दुनिया की विचारधारा के बारे में बाइबल में कैसे भविष्यवाणी की गयी थी?
४ आज, तमाम दुनिया की जो हालत है, उसके बारे में बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी, और वह आज हू-ब-हू पूरी हो रही है: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी . . . होंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१-४.
५ आज की दुनिया की विचारधारा का यह कितना सही वर्णन है। आज की दुनिया में स्वार्थ की भावना इतनी फैल चुकी है कि आज सबसे बड़ा शब्द है ‘मैं,’ और सिर्फ ‘मैं।’ यह भावना सिर्फ दो इंसानों के बीच ही नहीं, मगर दो देशों के बीच भी दिखायी देती है। जैसे खेल-कूद की ही बात ले लीजिए। हर खिलाड़ी पहला नंबर पाना चाहता है, और वह इसकी परवाह नहीं करता कि इससे दूसरे के शरीर या उसके मन को कितनी चोट पहुँचती है। स्वार्थ की यही भावना बच्चों में भी पैदा की जाती है, जो उनमें बड़े होने के बाद भी बनी रहती है। इसकी वज़ह से लोगों में “बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट” जैसे बुरे गुण आ जाते हैं।—गलतियों ५:१९-२१.
६. आज स्वार्थ के पीछे कौन है, और यहोवा को इस भावना के बारे में कैसा लगता है?
६ बाइबल दिखाती है कि आज की दुनिया में स्वार्थ के पीछे वही है “जो इब्लीस और शैतान कहलाता है, और सारे संसार का भरमानेवाला है।” इन कठिन अंतिम दिनों में शैतान लोगों पर जो असर डाल रहा है, उसके बारे में बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी: “हे पृथ्वी . . . तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” (प्रकाशितवाक्य १२:९-१२) इसलिए यह जानते हुए कि उनका थोड़ा ही समय बाकी है, शैतान और उसकी संगी दुष्टात्मा अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सभी इंसानों के मन में स्वार्थ की भावना कूट-कूटकर भर दें। लेकिन यहोवा को इस भावना के बारे में कैसा लगता है? उसका वचन, बाइबल कहती है: “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है।”—नीतिवचन १६:५.
यहोवा दीन लोगों के साथ है
७. यहोवा दीन लोगों के लिए क्या करता है और वह उन्हें किस बात की शिक्षा देता है?
७ दूसरी तरफ, बाइबल बताती है कि यहोवा उन लोगों को आशीष देता है जो मन के दीन हैं। इसीलिए राजा दाऊद ने यहोवा के लिए भजन गाया: “दीन लोगों को तो तू बचाता है, परन्तु अभिमानियों पर दृष्टि करके उन्हें नीचा करता है।” (२ शमूएल २२:१, २८) इसीलिए बाइबल हमें यह सलाह देती है: “हे पृथ्वी के सब नम्र लोगों, . . . धर्म को ढूंढ़ो, नम्रता को ढूंढ़ो; सम्भव है तुम यहोवा के क्रोध के दिन में शरण पाओ।” (सपन्याह २:३) आज जो लोग नम्रता से यहोवा को ढूँढ़ते हैं, यहोवा उन्हें एक ऐसी भावना पैदा करना सिखा रहा है जो इस दुनिया से बिलकुल अलग है। “नम्र लोगों को वह अपने मार्ग की शिक्षा देता है।” (भजन २५:९, NHT; यशायाह ५४:१३) और वह मार्ग है प्रेम का मार्ग। यह ऐसा निस्वार्थ प्रेम है जो इसलिए किया जाना चाहिए क्योंकि परमेश्वर की नज़रों में ऐसा करना सही है। और बाइबल कहती है यह निस्वार्थ प्रेम “अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं . . . अपनी भलाई नहीं चाहता।” (१ कुरिन्थियों १३:१-८) और यही प्रेम दीनता या नम्रता में भी झलकता है।
८, ९. (क) सच्चे प्यार का उगम कौन है? (ख) यीशु की तरह प्यार और नम्रता दिखाना क्यों ज़रूरी है?
८ इसी तरह का प्रेम पौलुस ने और पहली सदी के मसीहियों ने यीशु की शिक्षाओं से सीखा था। और यीशु ने वह प्रेम अपने पिता, यहोवा से सीखा था, जो सच्चे प्यार का उगम है क्योंकि बाइबल कहती है: “परमेश्वर प्रेम है।” (१ यूहन्ना ४:८) यीशु जानता था कि उसके पिता की यही इच्छा है कि वह प्रेम के रास्ते पर चले, और उसने ऐसा ही किया। (यूहन्ना ६:३८) इसीलिए यीशु के दिल में कुचले हुओं, गरीबों और पापियों के प्रति दया थी। (मत्ती ९:३६) उसने उन्हें कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” (तिरछे टाइप हमारे)—मत्ती ११:२८, २९.
९ यीशु की तरह, उसके शिष्यों को भी प्रेम और नम्रता दिखाना बहुत ही ज़रूरी था क्योंकि उसने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना १३:३५) और इस प्रेम की वज़ह से वे इस स्वार्थी दुनिया से बिलकुल अलग दिखायी देते। इसीलिए यीशु अपने शिष्यों के बारे में कह सका: “वे . . . संसार के नहीं।” (यूहन्ना १७:१४) जी हाँ, उनके चाल-चलन में शैतान की इस दुनिया का घमंड और स्वार्थ नहीं झलकता। इसके बजाय, वे यीशु की तरह प्रेम और नम्रता दिखाते हैं।
१०. यहोवा आज हमारे दिनों में नम्र लोगों को क्या कर रहा है?
१० बाइबल में पहले से ही बताया गया था कि इन अंतिम दिनों में नम्र लोगों को एक ऐसे विश्वव्यापी परिवार में इकट्ठा किया जाएगा जो प्यार और नम्रता की बुनियाद पर टिका होगा। सो, यहोवा के लोग एक बिलकुल ही अलग भावना यानी नम्रता दिखा रहे हैं, हालाँकि यह दुनिया दिन-ब-दिन घमंडी होती जा रही है। ऐसे दीन लोग कहते हैं: “आओ, हम यहोवा के पर्वत [उसकी ऊँची सच्ची उपासना] पर चढ़कर . . . जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।” (यशायाह २:२, ३) और यह विश्वव्यापी परिवार यहोवा के साक्षियों से बना है जो परमेश्वर के पथों पर चल रहे हैं। इस परिवार में ऐसी “बड़ी भीड़” भी शामिल है जिसकी संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और जो “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से . . . [है और], जिसे कोई गिन नहीं सकता।” (प्रकाशितवाक्य ७:९) आज इस बड़ी भीड़ में लाखों लोग हैं। लेकिन यहोवा उन्हें नम्र होना कैसे सिखा रहा है?
दीन होना सीखिए
११, १२. परमेश्वर के सेवक दीनता कैसे दिखाते हैं?
११ परमेश्वर की आत्मा उन लोगों पर काम करती है जो उसकी सुनते हैं। और यह उन्हें इस दुनिया की बुरी भावना पर विजय पाने और ऐसे फल पैदा करने में मदद करती है, जैसे: “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम।” (गलतियों ५:२२, २३) इन गुणों को पैदा करने के लिए, परमेश्वर के सेवकों को सलाह दी जाती है कि वे न ‘घमण्डी हों, न एक दूसरे को छेड़ें, और न एक दूसरे से डाह करें।’ (गलतियों ५:२६) उसी तरह, प्रेरित पौलुस ने कहा: ‘मैं तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।’—रोमियों १२:३.
१२ बाइबल सच्चे मसीहियों को यह भी कहती है कि “विरोध या झूठी बढ़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को [परमेश्वर के अन्य सेवकों को] अपने से अच्छा समझो। हर एक अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करे।” (फिलिप्पियों २:३, ४) इसमें यह भी सलाह दी गई है: “कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, बरन औरों की।” (१ कुरिन्थियों १०:२४) जी हाँ, जब हममें प्रेम होगा तो हम एक-दूसरे के साथ निस्वार्थ भाव से बात करेंगे और निस्वार्थ रूप से काम करेंगे जिससे एक-दूसरे की “उन्नति” होगी। (१ कुरिन्थियों ८:१) साथ-ही प्रेम की वज़ह से सच्चे मसीही एक-दूसरे के साथ होड़ नहीं लगाएँगे बल्कि कंधे-से-कंधा मिलाते हुए काम करेंगे। सो, यहोवा के सेवकों के बीच स्वार्थ के लिए कोई जगह नहीं है।
१३. दीनता को क्यों खुद पैदा करना पड़ता है, और व्यक्ति इसे कैसे पैदा कर सकता है?
१३ लेकिन, हम जन्म से ही असिद्ध होते हैं। सो, हम दीनता का गुण लेकर पैदा नहीं होते। (भजन ५१:५) बल्कि इसे हमें खुद पैदा करना पड़ता है। ऐसा करना खासकर उन लोगों के लिए मुश्किल होता है जिन्होंने यहोवा के मार्ग को बचपन से नहीं, मगर बड़े होने के बाद सीखा है। बचपन से ही उनका व्यक्तित्व इस दुनिया के तौर-तरीकों से ढल चुका होता है। सो उन्हें अपने पिछले ‘चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को उतारना’ और फिर ‘नये मनुष्यत्व को पहिनना’ सीखना पड़ता है ‘जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।’ (इफिसियों ४:२२, २४) सो, परमेश्वर की मदद से सच्चे दिल के लोग उसकी यह माँग पूरी कर सकते हैं: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो।” (तिरछे टाइप हमारे)—कुलुस्सियों ३:१२.
१४. खुद को ऊँचा बनानेवालों के बारे में यीशु ने क्या कहा?
१४ यीशु के शिष्यों को भी दीनता पैदा करनी पड़ी थी। क्योंकि वे बड़े होने के बाद उसके शिष्य बने थे, इसलिए उनका व्यक्तित्व दुनियावी तौर-तरीकों से ढला था और इसलिए उनमें होड़ लगाने की भावना थी। जब दो शिष्यों की माँ ने चाहा कि उसके बेटों को बड़ा ओहदा मिले, तो यीशु ने जवाब दिया: “अन्य जातियों के हाकिम उन [लोगों] पर प्रभुता करते हैं; और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। परन्तु तुम में ऐसा न होगा; परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने। और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने। जैसे कि मनुष्य का पुत्र [यीशु], वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२०-२८) यीशु ने फिर उनसे कहा कि खुद को ऊँचा दिखाने के लिए कोई उपाधि पाने की लालसा न करो, क्योंकि “तुम सब भाई हो।”—मत्ती २३:८.
१५. अध्यक्ष बनने की अभिलाषा रखनेवाले भाई की कैसी मनोवृत्ति होनी चाहिए?
१५ यीशु के सच्चे शिष्यों को दूसरे मसीहियों का एक सेवक, या दास होना चाहिए। (गलतियों ५:१३) और यह खासकर उन लोगों के लिए ज़रूरी है जो कलीसिया में ओवरसियर के योग्य बनना चाहते हैं। उन्हें बड़ा बनने के लिए या अधिकार पाने के लिए कभी लड़ना नहीं चाहिए। और ‘जो लोग उन्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार जताने की बजाए, उन्हें झुंड के लिये आदर्श बनना चाहिए।’ (१ पतरस ५:३) एक व्यक्ति में स्वार्थ की भावना यही दिखाएगी कि वह ओवरसियर बनने के योग्य नहीं है। ऐसा व्यक्ति कलीसिया को ज़ख्मों के अलावा और कुछ नहीं दे सकता। हाँ, ‘अध्यक्ष बनने की अभिलाषा’ रखने में कोई गलती नहीं है। लेकिन हममें यह अभिलाषा दूसरे मसीहियों पर अधिकार जताने के लिए नहीं, बल्कि उनकी सेवा करने के लिए होनी चाहिए। ओवरसियर बनने का मतलब यह नहीं कि व्यक्ति को बड़ा पद या अधिकार मिल जाता है, क्योंकि ओवरसियर को कलीसिया का सबसे दीन व्यक्ति होना चाहिए।—१ तीमुथियुस ३:१, ६.
१६. किन गुणों की वज़ह से बाइबल में दियुत्रिफेस की निंदा की गयी?
१६ प्रेरित यूहन्ना एक ऐसे व्यक्ति की ओर हमारा ध्यान खींचता है जिसका सोच-विचार गलत था। वह कहता है: “मैं ने मण्डली को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उन में बड़ा बनना चाहता है, . . . [हमसे आदर के साथ कुछ] ग्रहण नहीं करता।” यह आदमी खुद को बड़ा बनाने के लिए दूसरों का निरादर करता था। लेकिन, परमेश्वर की पवित्र आत्मा ने यूहन्ना को उकसाया कि दियुत्रिफेस के स्वार्थ की जो निंदा की गयी थी, उसे वह बाइबल में दर्ज करे।—३ यूहन्ना ९, १०.
सही सोच-विचार
१७. पतरस, पौलुस और बरनबास ने दीनता कैसे दिखायी?
१७ बाइबल में सही सोच-विचार दिखानेवालों की, यानी दीनता दिखानेवालों की कई मिसाल हैं। जब पतरस कुरनेलियुस के घर पहुँचा, तो उसने पतरस के “पांवों पड़के [उसे] प्रणाम किया।” लेकिन पतरस इस तरह की इज़्ज़त नहीं चाहता था इसलिए उसने “उसे उठाकर कहा, खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य हूं।” (प्रेरितों १०:२५, २६) जब पौलुस और बरनबास लुस्त्रा में थे, तब पौलुस ने एक आदमी को ठीक किया जो जन्म से लंगड़ा था। यह देखकर भीड़ कहने लगी कि ये प्रेरित साक्षात् भगवान हैं। मगर पौलुस और बरनबास ने “अपने कपड़े फाड़े, और भीड़ में लपक गए, और पुकारकर कहने लगे; हे लोगो तुम क्या करते हो? हम भी तो तुम्हारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य हैं।” (प्रेरितों १४:८-१५) ये सारी बातें दिखाती हैं कि ये नम्र मसीही, इंसानों से महिमा पाना नहीं चाहते थे।
१८. एक ताकतवर स्वर्गदूत ने नम्रता दिखाते हुए यूहन्ना से क्या कहा?
१८ प्रेरित यूहन्ना को “यीशु मसीह का प्रकाशितवाक्य” एक स्वर्गदूत के ज़रिए दिया गया था। (प्रकाशितवाक्य १:१) उस स्वर्गदूत की ताकत देखकर यूहन्ना यकीनन दंग रह गया होगा, क्योंकि एक बार एक स्वर्गदूत ने एक रात में १,८५,००० अश्शूरियों को मार गिराया था। (२ राजा १९:३५) फिर यूहन्ना कहता है: “जब मैं ने सुना, और देखा, तो जो स्वर्गदूत मुझे ये बातें दिखाता था, मैं उसके पांवों पर दण्डवत करने के लिये गिर पड़ा। और उस ने मुझ से कहा, देख, ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा और तेरे भाई . . . का संगी दास हूं; परमेश्वर ही को दण्डवत कर।” (प्रकाशितवाक्य २२:८, ९) उस ताकतवर स्वर्गदूत ने कितनी दीनता दिखायी!
१९, २०. रोम के विजयी सेनापतियों के घमंड और यीशु की दीनता के बीच फर्क बताइए।
१९ यीशु मसीह ने दीनता दिखाने में एक बेहतरीन मिसाल कायम की। वह परमेश्वर का एकलौता बेटा था, जो आगे चलकर स्वर्ग में परमेश्वर के राज्य का राजा बनता। लेकिन, जब वह लोगों के पास उस राज्य के राजा की हैसियत से आया, तो वह रोम के विजयी सेनापतियों की तरह नहीं आया। क्योंकि उन सेनापतियों के लिए लंबा जलूस निकाला जाता था और ये सेनापति रथों पर सवार होते थे, जो सोने और हाथी-दाँत की बनी चीज़ों से सजे होते थे। इन रथों को सफेद घोड़े, या हाथी, शेर, बाघ खींचते थे। उस जलूस में गीत गानेवाले होते थे जो विजय गीत गाते हुए जाते थे, इसके साथ-साथ युद्ध के नज़ारोंवाली झाँकियाँ भी निकाली जातीं थीं और गाड़ियों पर लूटा हुआ माल भी सजाया होता था। उस जलूस में बंदी बनाए गए राजा, राजकुमार और सेनापति और उनके परिवार भी होते, जिन्हें अकसर बेइज़्ज़ती करने के लिए नंगा करके खड़ा किया जाता था। उन जलूसों में सभी लोग घमंड के नशे में चूर होते थे।
२० यीशु मसीह उन सेनापतियों की तरह बिलकुल भी नहीं आया था। वह अपने बारे में इस भविष्यवाणी को नम्रता से पूरा करने के लिए तैयार था: “तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मीं और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर . . . चढ़ा हुआ आएगा।” जी हाँ, वह नम्रता के साथ एक गदहे पर सवार होकर आया, न कि किसी जलूस में रथ पर सवार होकर, जिन्हें शेर या घोड़े जैसे जानवरों द्वारा खींचा जाता था। (जकर्याह ९:९; मत्ती २१:४, ५) नम्र लोग कितने खुश हैं कि यीशु ही नयी दुनिया का यहोवा द्वारा ठहराया हुआ राजा होगा, क्योंकि वह सचमुच दीन, नम्र, प्रेमी, करुणामय और दयालु है!—यशायाह ९:६, ७; फिलिप्पियों २:५-८.
२१. दीनता का मतलब क्या नहीं है?
२१ खुद यीशु मसीह, पतरस, पौलुस और बाइबल के ज़माने के दूसरे आदमी औरतें दीन थे। सो, इसका मतलब यह है कि नम्रता कोई कमज़ोरी नहीं है। इसके बजाय यह उनकी खूबी थी, क्योंकि ये लोग बहुत ही साहसी और जोशीले थे। उन्होंने बड़ी हिम्मत और विश्वास से कड़ी-से-कड़ी सताहटों को झेला था। (इब्रानियों ११ अध्याय) आज जब यहोवा के सेवक इस तरह दीनता दिखाते हैं, तो यह भी उनकी एक खूबी है, क्योंकि परमेश्वर सिर्फ उन्हीं लोगों को पवित्र आत्मा देता है जो दीन हैं। इसलिए हमसे कहा गया है: “तुम सब के सब एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बान्धे रहो, क्योंकि परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है। इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए।”—१ पतरस ५:५, ६; २ कुरिन्थियों ४:७.
२२. अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?
२२ दीनता में एक और गुण शामिल है जिसे परमेश्वर के सेवकों को दिखाना चाहिए। इससे कलीसिया में प्रेम और सहयोग काफी बढ़ता है। असल में इस गुण का दीनता से बहुत करीब का संबंध है। अगले लेख में इसी गुण पर चर्चा की जाएगी।
आइए दोहराएँ
◻ इस दुनिया के सोच-विचार के बारे में बताइए।
◻ यहोवा कैसे उन लोगों को आशीष देता है जो दीन हैं?
◻ दीनता को क्यों पैदा करना पड़ता है?
◻ बाइबल में ऐसे किन लोगों की मिसाल है जिन्होंने दीनता दिखायी थी?
[पेज 15 पर तसवीर]
स्वर्गदूत ने यूहन्ना से कहा: ‘ऐसा मत कर; क्योंकि मैं तेरा संगी दास हूं’