यहोवा उनसे प्यार करता है, जो “धीरज धरते हुए फल पैदा करते हैं”
‘जो बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे, वे ऐसे लोग हैं . . . जो धीरज धरते हुए फल पैदा करते हैं।’—लूका 8:15.
1, 2. (क) वफादारी से प्रचार करनेवाले भाई-बहनों की मिसालों का हम पर क्या असर होता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) यीशु ने “अपने इलाके” में प्रचार करने के बारे में क्या कहा? (फुटनोट देखिए।)
सरजीओ और ओलिन्डा अमरीका में रहनेवाला एक पायनियर जोड़ा है। उनकी उम्र 80 के ऊपर है। हाल ही में उनकी टाँगें जवाब देने लगी हैं और उनके लिए चलना-फिरना मुश्किल हो गया है। लेकिन जैसे ही सुबह के सात बजते हैं, वे अपने घर से निकल पड़ते हैं और एक चौक पर जाते हैं जहाँ बहुत चहल-पहल होती है। वहाँ वे एक बस स्टॉप के पास खड़े होकर आने-जानेवालों को बाइबल के प्रकाशन देते हैं। ज़्यादातर लोग उन पर ध्यान नहीं देते, फिर भी सरजीओ और ओलिन्डा उसी जगह खड़े रहते हैं और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट होती है। जब दोपहर हो जाती है, तो वे घर की तरफ धीरे-धीरे चलने लगते हैं। अगली सुबह वे फिर सात बजे उसी बस स्टॉप पर नज़र आते हैं। वे हफ्ते के छ: दिन ऐसा करते हैं और सालों से उनका यही दस्तूर रहा है।
2 सरजीओ और ओलिन्डा की तरह ऐसे कई भाई-बहन हैं जो अपने इलाके में प्रचार करते तो हैं, लेकिन उन्हें कुछ खास नतीजे नहीं मिलते। फिर भी वे इस काम में लगे रहते हैं। हो सकता है, आपका प्रचार का इलाका भी ऐसा ही हो। अगर हाँ, तो हम दिल से आपकी तारीफ करना चाहते हैं कि आप इन मुश्किल हालात में भी प्रचार काम में लगे हुए हैं।a आपकी मिसाल देखकर बहुत-से भाई-बहनों का हौसला बढ़ता है, उनका भी जो सालों से सच्चाई में हैं। ध्यान दीजिए कि कुछ सर्किट निगरानों का क्या कहना है, “जब मैं वफादार भाई-बहनों के साथ प्रचार करता हूँ, तो मेरे अंदर जोश भर आता है।” “उनकी वफादारी देखकर मुझे बढ़ावा मिलता है कि मैं हार न मानूँ और हिम्मत के साथ प्रचार करता रहूँ।” “उनकी मिसाल मेरे दिल को छू जाती है।”
3. हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे और क्यों?
3 इस लेख में हम तीन सवालों पर चर्चा करेंगे: हम क्यों कभी-कभी निराश हो सकते हैं? फल पैदा करने का क्या मतलब है? हम किस तरह धीरज धरते हुए फल पैदा कर सकते हैं? इन सवालों के जवाब जानने से हम प्रचार का वह काम करते रहेंगे जो यीशु ने हमें दिया है।
हम क्यों निराश हो जाते हैं?
4. (क) यहूदियों का रवैया देखकर पौलुस को कैसा लगा? (ख) पौलुस ने ऐसा क्यों महसूस किया?
4 क्या आप कभी यह देखकर निराश हुए हैं कि आपके इलाके में लोग राज का संदेश नहीं सुन रहे हैं? तब तो आप प्रेषित पौलुस की भावनाओं को अच्छी तरह समझ पाएँगे। उसने करीब 30 साल तक प्रचार किया और मसीही बनने में कई लोगों की मदद की। (प्रेषि. 14:21; 2 कुरिं. 3:2, 3) मगर उसके अपने ही राष्ट्र के लोगों यानी यहूदियों ने उसकी बात नहीं सुनी और कुछ ने तो उस पर ज़ुल्म भी ढाए। (प्रेषि. 14:19; 17:1, 4, 5, 13) उनका यह रवैया देखकर पौलुस को कैसा लगा? उसने कहा, “मुझे गहरा दुख है और मेरे दिल में ऐसा दर्द उठता है जो थमने का नाम नहीं लेता।” (रोमि. 9:1-3) पौलुस ने ऐसा क्यों महसूस किया? क्योंकि उसे प्रचार काम से गहरा लगाव था और यहूदियों की सच्ची परवाह थी। इसलिए उसे दुख हुआ कि उन्होंने परमेश्वर की दया ठुकरा दी।
5. (क) क्या बात हमें प्रचार करने के लिए उभारती है? (ख) हम किस वजह से कभी-कभी निराश हो जाते हैं?
5 पौलुस की तरह हम भी प्रचार करते हैं क्योंकि हमें लोगों की परवाह है और हम उनकी मदद करना चाहते हैं। (मत्ती 22:39; 1 कुरिं. 11:1) हमने खुद अनुभव किया है कि यहोवा की सेवा करना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है और हम दूसरों को बताना चाहते हैं कि उनकी ज़िंदगी भी सँवर सकती है! इसलिए हम उन्हें बढ़ावा देते हैं कि वे यहोवा और उसके मकसद के बारे में सीखें। यह ऐसा है मानो हम एक खूबसूरत तोहफा लेकर जाते हैं और उनसे बिनती करते हैं कि वे इसे कबूल कर लें। जब लोग यह तोहफा ठुकरा देते हैं, तो पौलुस की तरह हमें भी दर्द होता है। ऐसा महसूस करना गलत नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि हममें विश्वास की कमी है बल्कि यह दिखाता है कि हम लोगों से सच्चा प्यार करते हैं। यही प्यार हमें उभारता है कि हम निराशा के बावजूद प्रचार करते रहें। हम शायद एलेना की बात से सहमत हों जिसे पायनियर सेवा करते हुए 25 से भी ज़्यादा साल हो गए हैं। वह कहती है, “प्रचार करना मेरे लिए आसान नहीं, फिर भी सभी कामों से ज़्यादा मुझे यही काम करना पसंद है।”
फल पैदा करने का क्या मतलब है?
6. अब हम किस सवाल पर चर्चा करेंगे?
6 हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हम जहाँ भी प्रचार करें, हम अपनी सेवा में कामयाब हो सकते हैं? इस अहम सवाल का जवाब जानने के लिए आइए यीशु की दो मिसालों पर ध्यान दें जिनमें उसने ‘फल देने’ की बात की थी। (मत्ती 13:23) सबसे पहले हम अंगूर की बेल की मिसाल पर गौर करेंगे।
7. (क) यीशु की मिसाल में “बागबान,” “अंगूर की बेल” और “डालियाँ” किन्हें दर्शाते हैं? (ख) अब हम किस सवाल का जवाब देखेंगे?
7 यूहन्ना 15:1-5, 8 पढ़िए। इस मिसाल में यीशु ने समझाया कि वह “अंगूर की बेल” है, उसके चेले “डालियाँ” हैं और यहोवा “बागबान” है।b फिर यीशु ने अपने प्रेषितों से कहा, “मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल पैदा करते रहो और यह साबित करो कि तुम मेरे चेले हो।” तो क्या फल पैदा करने का मतलब चेले बनाना है? यीशु ने सीधे शब्दों में नहीं बताया कि फल क्या है। लेकिन उसने एक सुराग दिया जिससे हमें इस सवाल का जवाब मिलता है।
8. (क) यीशु की मिसाल में ‘फल देने’ का मतलब चेला बनाना क्यों नहीं है? (ख) यहोवा जब हमें कुछ करने को कहता है, तो हम क्या भरोसा रख सकते हैं?
8 यीशु ने अपने पिता के बारे में कहा, “हर वह डाली जो फल नहीं देती, उसे वह काट देता है।” इसका मतलब फल पैदा करना बहुत ज़रूरी है। (मत्ती 13:23; 21:43) लेकिन यहाँ फल पैदा करने की जो बात की जा रही है, उसका मतलब चेले बनाना नहीं हो सकता। (मत्ती 28:19) वह क्यों? कुछ मसीही ऐसे इलाकों में प्रचार करते हैं जहाँ लोग बिलकुल नहीं सुनते और इस वजह से वे चेले नहीं बना पाते। तो क्या इसका मतलब यह है कि वे फल न देनेवाली डालियों की तरह हैं? बिलकुल नहीं! हम किसी को भी ज़बरदस्ती चेला नहीं बना सकते। यहोवा प्यार करनेवाला परमेश्वर है और हमें कभी कुछ ऐसा करने के लिए नहीं कहेगा जो हमारे बस में न हो।—व्यव. 30:11-14.
9. (क) फल पैदा करने का क्या मतलब है? (ख) अब हम किस मिसाल पर ध्यान देंगे?
9 तो फिर, फल पैदा करने का क्या मतलब है? यह एक ऐसा काम है जिसे करना यहोवा के सभी सेवकों के बस में है। कौन-सा काम? परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाना।c (मत्ती 24:14) यह बात यीशु की दूसरी मिसाल से साफ पता चलती है। आइए बीज बोनेवाले की मिसाल पर ध्यान दें।
10. (क) यीशु की मिसाल में बीज और मिट्टी किन बातों को दर्शाते हैं? (ख) गेहूँ से कौन-सा फल पैदा होता है?
10 लूका 8:5-8, 11-15 पढ़िए। यीशु ने समझाया कि बीज, “परमेश्वर का वचन” यानी उसके राज का संदेश है। मिट्टी एक इंसान के दिल को दर्शाती है। बीज बोनेवाले की मिसाल में जो बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरा उसने जड़ पकड़ी, उसमें अंकुर फूटे और उससे “100 गुना फल पैदा हुआ।” गेहूँ के पौधे की बात लीजिए। उसमें जो फल लगते हैं वे दरअसल बीज ही होते हैं। यीशु की मिसाल में एक बीज से जो पौधा उगता है, उसमें 100 बीज पैदा होते हैं। इससे हम अपनी सेवा के बारे में क्या सीखते हैं?
हम किस तरह “धीरज धरते हुए फल पैदा” करते हैं? (पैराग्राफ 11 देखिए)
11. (क) बीज बोनेवाले की मिसाल से हम अपनी सेवा के बारे में क्या सीखते हैं? (ख) हम नए बीज कैसे पैदा करते हैं?
11 जब हमारे माता-पिता ने या दूसरे साक्षियों ने हमें परमेश्वर का वचन सिखाया, तो उन्होंने मानो बढ़िया मिट्टी में बीज बोया था। उन्हें यह देखकर कितनी खुशी हुई कि हमने वचन को कबूल किया। हमारे दिल में वह बीज बढ़ने लगा और फल पैदा करने लगा। जैसा कि हमने देखा, गेहूँ के पौधे में जो फल लगते हैं वे दरअसल बीज ही होते हैं। उसी तरह हम जो फल पैदा करते हैं, वे नए चेले नहीं बल्कि नए बीज हैं।d हम नए बीज कैसे पैदा करते हैं? जब-जब हम लोगों को राज का संदेश सुनाते हैं, तो हम बीज छितराने का काम करते हैं। हमारे दिल में जो बीज बोया गया था उसे मानो हम कई गुना बढ़ाकर फैला रहे हैं। (लूका 6:45; 8:1) इसलिए अगर हम परमेश्वर के राज के बारे में प्रचार करते रहेंगे, तो हम दरअसल ‘धीरज धरते हुए फल पैदा कर रहे होंगे।’
12. (क) अंगूर की बेल और बीज बोनेवाले की मिसालों से हम क्या सीखते हैं? (ख) इस बात से आप कैसा महसूस करते हैं?
12 अंगूर की बेल और बीज बोनेवाले की मिसालों से हमने क्या सीखा? यही कि ‘फल पैदा करना’ इस बात पर निर्भर नहीं करता कि लोग हमारा संदेश सुनेंगे या नहीं बल्कि इस बात पर करता है कि हम प्रचार करते रहेंगे या नहीं। पौलुस ने भी यही बात कही जब उसने बताया, “हर कोई अपनी मेहनत का इनाम पाएगा।” (1 कुरिं. 3:8) यहोवा हमें अपनी मेहनत के हिसाब से इनाम देता है न कि इस बात के लिए कि सच्चाई सीखने में हमने कितने लोगों की मदद की है। मटिल्डा जो 20 साल से पायनियर सेवा कर रही है, कहती है, “मुझे यह जानकर दिलासा मिलता है कि यहोवा हमारी मेहनत के लिए हमें आशीषें देता है।”
हम धीरज धरते हुए फल कैसे पैदा कर सकते हैं?
13, 14. रोमियों 10:1, 2 के मुताबिक पौलुस किन वजहों से यहूदियों को प्रचार करता रहा?
13 हम किस तरह “धीरज धरते हुए फल पैदा” कर सकते हैं? आइए पौलुस की मिसाल को करीब से जाँचें। जैसा कि हमने देखा, जब यहूदियों ने राज का संदेश कबूल करने से इनकार कर दिया, तो पौलुस निराश हो गया। फिर भी उसने उन्हें गवाही देना बंद नहीं किया। उसने बताया कि वह उन यहूदियों के बारे में कैसा महसूस करता है। उसने कहा, “मैं दिल से यही चाहता हूँ और इसराएलियों के लिए परमेश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि वे उद्धार पाएँ। इसलिए कि मैं उनके बारे में गवाही देता हूँ कि उनमें परमेश्वर की सेवा के लिए जोश तो है, मगर सही ज्ञान के मुताबिक नहीं।” (रोमि. 10:1, 2) पौलुस ने क्यों यहूदियों को प्रचार करना बंद नहीं किया?
14 उसने खुद इसकी वजह बतायीं। पहली वजह, वह “दिल से यही चाहता” था कि यहूदी उद्धार पाएँ। (रोमि. 11:13, 14) दूसरी वजह, उसने ‘उनके लिए परमेश्वर से प्रार्थना’ की और मिन्नत की कि राज का संदेश कबूल करने में परमेश्वर हरेक यहूदी की मदद करे। तीसरी वजह, उसने देखा कि “उनमें परमेश्वर की सेवा के लिए जोश” है। पौलुस अपने अनुभव से जानता था कि अगर ये यहूदी, मसीह के चेले बनें, तो वे यहोवा की सेवा भी इसी जोश से करेंगे। उसे यकीन था कि वे आगे चलकर यहोवा के अच्छे सेवक बन सकते हैं।
15. हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? कुछ उदाहरण दीजिए।
15 हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? एक, हममें इच्छा होनी चाहिए कि हम ऐसे लोगों को ढूँढ़ें, “जो हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते” हैं। दो, हमें यहोवा से मिन्नत करनी चाहिए कि नेकदिल लोग हमारे संदेश पर ध्यान दें। (प्रेषि. 13:48; 16:14) सिलवाना जो 30 साल से पायनियर सेवा कर रही है, कहती है, “हर घर में बात करने से पहले मैं यहोवा से प्रार्थना करती हूँ कि मैं सही नज़रिया रख पाऊँ।” इसके अलावा, हमें यह भी प्रार्थना करनी चाहिए कि इस काम में स्वर्गदूत हमारी मदद करें। (मत्ती 10:11-13; प्रका. 14:6) रौबर्ट जिसे पायनियर सेवा करते हुए 30 से भी ज़्यादा साल हो चुके हैं, कहता है, “स्वर्गदूत अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे इलाके में लोगों की ज़िंदगी में क्या चल रहा है। उनके साथ मिलकर काम करना कितनी रोमांचक बात है!” तीन, हमें यह देखने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या कोई व्यक्ति यहोवा का सेवक बन सकता है। कार्ल नाम का एक प्राचीन जिसे बपतिस्मा लिए 50 से भी ज़्यादा साल हो गए हैं, कहता है, “मैं एक व्यक्ति के चेहरे, उसकी मुस्कुराहट, उसके सवाल, ऐसी हर छोटी बात से भाँपने की कोशिश करता हूँ कि क्या वह नेकदिल है।” अगर हम इन बातों के मुताबिक काम करें, तो हम भी पौलुस की तरह “धीरज धरते हुए फल पैदा” करेंगे।
“अपना हाथ मत रोक”
16, 17. (क) सभोपदेशक 11:6 से हम क्या सीख सकते हैं? (ख) हमारे प्रचार काम का देखनेवालों पर क्या असर होता है?
16 अगर हमें ऐसा लगे भी कि कोई हमारी बात नहीं सुन रहा, तब भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे प्रचार काम का लोगों पर गहरा असर होता है। (सभोपदेशक 11:6 पढ़िए।) लोग हमें देखते हैं, वे गौर करते हैं कि हम साफ-सुथरे और सलीकेदार कपड़े पहनते हैं और सबके साथ प्यार और अदब से पेश आते हैं। इसका उन पर अच्छा असर हो सकता है और धीरे-धीरे वे शायद हमारे बारे में अपनी सोच बदलने लगे। सरजीओ और ओलिन्डा का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा।
17 सरजीओ कहता है, “एक बार हम बीमार हो गए और कुछ समय तक चौक में प्रचार करने नहीं जा सके। जब हम वहाँ वापस गए, तो आने-जानेवालों ने हमसे पूछा, ‘आप कहाँ थे? हमने आपको बहुत याद किया!’” ओलिन्डा मुस्कुराकर कहती है, “कुछ बस ड्राइवर दूर से हमें हैलो कहते थे, तो कुछ आवाज़ लगाकर हमसे कहते थे, ‘आप लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हो!’ वे आकर हमसे पत्रिकाएँ भी लेने लगे।” एक और मौके पर सरजीओ और ओलिन्डा को बहुत हैरानी हुई कि एक व्यक्ति ने कार्ट के पास आकर उन्हें फूलों का गुलदस्ता दिया और उनके काम के लिए शुक्रिया कहा।
18. आपने क्यों ठाना है कि आप “धीरज धरते हुए फल पैदा” करेंगे?
18 जब हम राज का बीज बोने से ‘अपना हाथ नहीं रोकेंगे,’ तो हम “सब राष्ट्रों को गवाही” देने में एक अहम भूमिका अदा कर रहे होंगे। (मत्ती 24:14) सबसे बढ़कर, हमें यहोवा की मंज़ूरी और सच्ची खुशी मिलेगी। जी हाँ, यहोवा उन सभी सेवकों से प्यार करता है जो “धीरज धरते हुए फल पैदा करते हैं।”
a यीशु ने भी कहा था कि उसके लिए “अपने इलाके” में प्रचार करना आसान नहीं था। उसकी यह बात खुशखबरी की चारों किताबों में दर्ज़ है।—मत्ती 13:57; मर. 6:4; लूका 4:24; यूह. 4:44.
b मिसाल में डालियाँ उन मसीहियों को दर्शाते हैं, जिन्हें स्वर्ग में जीवन मिलेगा। लेकिन मिसाल से मिलनेवाली सीख न सिर्फ उनके लिए है बल्कि परमेश्वर के सभी सेवकों के लिए है।
c ‘फल देने’ का मतलब “पवित्र शक्ति का फल” पैदा करना भी हो सकता है। लेकिन इस लेख और अगले लेख में हम “अपने होंठों का फल” चढ़ाने यानी परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाने पर चर्चा करेंगे।—गला. 5:22, 23; इब्रा. 13:15.
d दूसरे मौकों पर जब यीशु चेला बनाने के काम के बारे में समझा रहा था, तो उसने बोने और काटने के उदाहरण दिए।—मत्ती 9:37; यूह. 4:35-38.