अध्याय 17
माइक्रोफोन का इस्तेमाल
हमारे मसीही भाई-बहन कलीसिया की सभाओं में हाज़िर होने के लिए काफी वक्त देते हैं और बड़ा यत्न करते हैं। इसलिए सभाओं में जो बताया जाता है, उससे उन्हें तभी फायदा होगा जब वे हर बात को साफ-साफ सुन सकें।
प्राचीन इस्राएल में आवाज़ बढ़ानेवाले बिजली के उपकरण नहीं थे। इस्राएल जाति के वादा किए देश में कदम रखने से पहले, मूसा ने मोआब की तराई में पूरी जाति से बात की थी। वहाँ जमा लाखों लोग, मूसा की बात कैसे सुन पाए होंगे? हो सकता है कि मूसा ने अपना संदेश आगे तक भेजने के लिए इस्राएलियों की छावनी में थोड़े-थोड़े फासले पर एक-एक आदमी को खड़ा किया था। जब मूसा कुछ बोलता था, तो पहला आदमी उसे दोहराता होगा, उसे सुनकर उससे आगेवाला और फिर उससे आगेवाला वही शब्द दोहराता होगा। इस तरह मूसा की बात शब्द-ब-शब्द छावनी के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँच जाती होगी। (व्यव. 1:1; 31:1) बाद में, जब इस्राएलियों ने यरदन नदी के पश्चिमी इलाकों पर कब्ज़ा करना शुरू किया ही था, तब यहोशू ने पूरी जाति को एबाल और गिरिज्जीम पर्वत के सामने इकट्ठा किया और लेवी उन दोनों पर्वतों के बीच की घाटी में खड़े थे। वहाँ मौजूद सभी ने परमेश्वर की आशीषों और शापों के बारे में सुना और फिर जवाब में ‘आमीन’ भी कहा। (यहो. 8:33-35) मुमकिन है कि इस मौके पर भी भीड़ के आखिरी सिरे तक परमेश्वर की बातें पहुँचाने के लिए कुछ लोगों को अलग-अलग फासलों पर खड़ा किया गया हो। मगर इसके अलावा, लोगों को सुनने में इसलिए भी आसानी हुई थी क्योंकि वह इलाका इस तरीके का था जहाँ आवाज़ गूँजती थी।
उस घटना के करीब 1,500 साल बाद, जब बहुत “बड़ी भीड़” यीशु की सुनने के लिए गलील सागर के पास इकट्ठी हुई, तो यीशु एक नाव पर बैठकर किनारे से हट गया और उनसे बात करने लगा। (मर. 4:1, 2) यीशु ने नाव पर चढ़कर क्यों बात की? सबूत दिखाते हैं कि पानी की समतल सतह के ऊपर से इंसान की आवाज़ बहुत दूर-दूर तक साफ सुनायी देती है।
बीसवीं सदी के शुरूआती सालों तक माइक्रोफोन जैसे बिजली के उपकरण नहीं थे, इसलिए भीड़ में कितने लोग भाषण को सुन पाएँगे यह इस पर निर्भर करता था कि बोलनेवाले की आवाज़ कितनी दमदार है और कितनी दूर तक सुनायी दे सकती है। मगर सन् 1920 के बाद से, यहोवा के सेवक अपने अधिवेशनों में आवाज़ बढ़ाने के लिए बिजली के उपकरण इस्तेमाल करने लगे।
आवाज़ बढ़ाने के उपकरण। ऐसे उपकरण, एक वक्ता के बात करने के अंदाज़ और स्वर को बरकरार रखते हुए, उसकी आवाज़ को कई गुना बढ़ा सकते हैं। भाषण देनेवाले को चिल्लाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, लोगों को भी भाषण सुनने के लिए अपने कानों पर ज़ोर नहीं देना पड़ता, बल्कि वे आसानी से भाषण देनेवाले की बातों पर ध्यान दे पाते थे।
यहोवा के साक्षियों के अधिवेशनों और सम्मेलनों में, आवाज़ बढ़ाने के अच्छे उपकरणों का इंतज़ाम करने पर काफी ध्यान दिया गया है। इसके अलावा, बहुत-से किंगडम हॉलों में भी आवाज़ बढ़ाने के उपकरण इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि भाषण देनेवालों, सभा चलानेवालों या स्टेज से पढ़नेवालों की आवाज़ सबको सुनायी दे। और कुछ कलीसियाओं की सभाओं में, भाई-बहनों के जवाब देने के लिए भी माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया जाता है। अगर आपकी कलीसिया में ऐसे उपकरण मौजूद हैं, तो उन्हें अच्छी तरह इस्तेमाल करना सीखिए।
कुछ बुनियादी बातें। उपकरणों का सही ढंग से इस्तेमाल करने के लिए इन बातों को ध्यान में रखिए: (1) आम तौर पर माइक्रोफोन, आपके मुँह से करीब चार से छः इंच की दूरी पर होना चाहिए। अगर माइक मुँह के एकदम पास होगा, तो आपकी आवाज़ फटने लगेगी और आपके बोल साफ समझ नहीं आएँगे। दूसरी तरफ, अगर माइक बहुत दूर होगा, तो आपकी आवाज़ सुनायी नहीं देगी। (2) माइक्रोफोन ठीक आपके मुँह के सामने होना चाहिए, दाएँ या बाएँ नहीं। अगर आप दायीं या बायीं तरफ सिर घुमाते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि सिर्फ तभी बोलें जब आपका मुँह सीधा माइक्रोफोन के सामने हो। (3) आम बातचीत से थोड़ा ऊँचा और दम लगाकर बोलिए। मगर चिल्लाने की ज़रूरत नहीं है। माइक्रोफोन से आपकी आवाज़ हॉल के कोने-कोने तक आसानी से सुनायी दे सकती है। (4) अगर आपको गला साफ करने के लिए खँखारने की ज़रूरत पड़े, या जब अचानक आपको खाँसी या छींक आने लगे, तो मुँह को माइक्रोफोन से परे फेर लीजिए।
भाषण देते वक्त। जब आप स्टेज पर पहुँचते हैं, तो आम तौर पर एक भाई आपके कद के हिसाब से माइक्रोफोन ऊपर या नीचे करता है। जब वह माइक ठीक कर रहा हो, तब आराम से सीधे खड़े रहिए और आपका चेहरा सामने लोगों की तरफ होना चाहिए। स्पीकर स्टैंड पर अपने नोट्स् इस तरह रखिए जिससे माइक आपकी नज़रों और नोट्स् के बीच में न आए।
जब आप बोलना शुरू करें, तो लाउडस्पीकर से निकलनेवाली अपनी आवाज़ को सुनने की कोशिश कीजिए। क्या आवाज़ बहुत तेज़ निकल रही है या क्या कुछ शब्द पढ़ने से माइक से फट्-फट् जैसी आवाज़ सुनायी पड़ती है? अगर ऐसा है, तो आपको एक-दो इंच पीछे हटने की ज़रूरत है। जब आप सिर नीचे करके अपने नोट्स् देखते हैं, तो याद रखिए कि आपको तभी बोलना या पढ़ना चाहिए जब आपका मुँह माइक्रोफोन की सीध में हो या उसके थोड़ा ऊपर हो, मगर नीचे कभी नहीं होना चाहिए।
स्टेज से पढ़ते वक्त। बाइबल या दूसरे प्रकाशन को ऊपर उठाकर पढ़ना अच्छा होता है ताकि आपका चेहरा सुननेवालों की तरफ हो। ज़्यादातर माइक्रोफोन आपके एकदम सामने होता है, इसलिए जिस किताब या साहित्य से आप पढ़ रहे हैं, उसे हल्का-सा माइक के एक तरफ थामने की ज़रूरत होगी। अगर आप साहित्य को माइक की दायीं तरफ रखते हैं, तो आपको अपना सिर हल्का-सा बायीं तरफ करना होगा, और अगर साहित्य माइक की बायीं तरफ है, तो आपको सिर हल्का-सा दायीं तरफ करना होगा। इस तरह दोनों ही मामलों में जब आप पढ़ेंगे, तो आपकी आवाज़ सीधे माइक्रोफोन में जाएगी।
ज़्यादातर भाई जो प्रहरीदुर्ग अध्ययन के दौरान पढ़ते हैं, वे खड़े होते हैं और एकदम सीधे खड़े किए गए माइक्रोफोन पर बोलते हैं। माइक्रोफोन को इस तरह खड़ा करने की वजह से वे आसानी से साँस ले पाते हैं, साथ ही ज़्यादा भावनाओं के साथ पढ़ पाते हैं। यह कभी मत भूलिए कि पैराग्राफों की पढ़ाई, सभाओं का एक बड़ा हिस्सा है। इसलिए सुननेवालों को इससे कितना फायदा होगा, यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि जो पढ़ा जा रहा है, वह लोगों को ठीक-ठीक और साफ सुनायी दे।
सभाओं में जवाब देते वक्त। अगर आपकी कलीसिया में, सुननेवालों के साथ चर्चा के दौरान माइक्रोफोन इस्तेमाल किया जाता है, तो आपको इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि माइक होने के बावजूद साफ-साफ और थोड़ा ज़ोर से बोलना ज़रूरी है। जवाब देते वक्त अध्ययन की किताब-पत्रिका या अपनी बाइबल को अपने हाथ में उठाए रखने की कोशिश कीजिए। ऐसा करने से माइक पर बोलते वक्त आपको किताब देखने में आसानी होगी।
कुछ कलीसियाओं में माइक सँभालनेवाले भाइयों की ज़िम्मेदारी होती है कि जवाब देने के लिए जिस किसी का भी नाम लिया जाए वे उन तक माइक पहुँचाएँ। अगर आपकी कलीसिया में ऐसा होता है, तो जब आपका नाम लिया जाए, तब अपना हाथ ऊपर उठाए रखिए। इससे माइक सँभालनेवाले भाई को दिखायी देगा कि आप कहाँ बैठे हैं और वह जल्द-से-जल्द आप तक पहुँच पाएगा। अगर हाथ में पकड़नेवाला माइक है, तो हाथ बढ़ाकर उसे लेने के लिए तैयार रहिए। जब तक आप माइक को ठीक से पकड़कर सही जगह नहीं ले आते, तब तक बोलना शुरू मत कीजिए। और जवाब खत्म करने के बाद फौरन माइक लौटा दीजिए।
प्रदर्शन में हिस्सा लेते वक्त। प्रदर्शन में माइक्रोफोन का इस्तेमाल करने के लिए, पहले से सोच-समझकर तैयारी करने की खास ज़रूरत पड़ती है। अगर आप स्टैंडवाला माइक इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आपके दोनों हाथ खाली होते हैं जिससे आप आसानी से बाइबल और अपने नोट्स् सँभाल पाते हैं। हाथ में पकड़नेवाले माइक से आपको हाव-भाव करने और आगे-पीछे घूमने की ज़्यादा आज़ादी मिलती है, मगर प्रदर्शन में इसे पकड़ने के लिए आपको अपने साथी से कहना होगा। इस तरह, बाइबल का इस्तेमाल करने के लिए आपके हाथ खाली रहेंगे। आपको और आपके घर-मालिक को इसकी पहले से रिहर्सल करनी होगी ताकि आपका साथी जान सके कि उसे माइक किस तरह पकड़ना है। यह भी याद रखिए कि जब आप स्टेज पर हों, तो कभी-भी सभा को अपनी पीठ मत दिखाइए खासकर जब बोलने की बारी आपकी हो।
सेवा सभा के प्रदर्शनों में कई लोग हो सकते हैं और वे स्टेज पर इधर-उधर चल-फिर सकते हैं। ऐसे में एक-से-ज़्यादा माइक की ज़रूरत पड़ सकती है। ये सारे माइक्रोफोन पहले से ही स्टेज पर रखे जाने चाहिए, या प्रदर्शन में हिस्सा लेनेवाले जब स्टेज पर जाते हैं तब माइक्रोफोन उनके हाथ में दिए जाने चाहिए। सही वक्त और सही जगह पर माइक हो, इसके लिए पहले से बढ़िया इंतज़ाम की ज़रूरत पड़ती है। प्रदर्शन से पहले उसकी रिहर्सल करना अच्छा होगा, क्योंकि इसमें हिस्सा लेनेवालों को माइक का बढ़िया तरीके से इस्तेमाल करने की हिदायत देने का मौका मिलता है। अगर स्टेज पर रिहर्सल करना मुमकिन नहीं है, तो अच्छा होगा अगर आप माइक्रोफोन के आकार जैसी किसी चीज़ का इस्तेमाल करें ताकि माइक्रोफोन कैसे पकड़ा जाना चाहिए, इसका अभ्यास कर सकें । प्रदर्शन के बाद, हिस्सा लेनेवालों को हाथ में पकड़नेवाले माइक को आहिस्ते से रखना चाहिए, साथ ही उन्हें सँभलकर स्टेज से उतरना चाहिए कि कहीं दूसरे माइक के तार में उनका पैर उलझकर वे गिर ना पड़ें।
हमारी सभाओं का एक मुख्य उद्देश्य है, परमेश्वर के वचन पर चर्चा के ज़रिए एक-दूसरे को फायदा पहुँचाना। माइक्रोफोन इस्तेमाल करने पर ध्यान देना, इस उद्देश्य से गहरा ताल्लुक रखता है। (इब्रा. 10:24, 25) अगर हम अच्छी तरह से माइक्रोफोन का इस्तेमाल करना सीखेंगे, तो इस उद्देश्य को पूरा करने में हमारा भी योगदान होगा।