बाइबल की किताब नंबर 16—नहेमायाह
लेखक: नहेमायाह
लिखने की जगह: यरूशलेम
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 443 के बाद
कब से कब तक का ब्यौरा: सा.यु.पू. 456–443 के बाद तक
नहेमायाह नाम का मतलब है, “याह तसल्ली देता है।” नहेमायाह फारस के राजा अर्तक्षत्र (लॉन्गिमेनस) का यहूदी सेवक था। वह राजा के लिए पिलानेहारे का काम करता था। यह ओहदा सिर्फ ऐसे शख्स को दिया जाता था जो भरोसेमंद हो। इसे पाना बड़ी इज़्ज़त की बात थी। कई लोग इस ओहदे को पाने की ख्वाहिश रखते थे, क्योंकि इसकी बदौलत वे राजा से उस वक्त मिल सकते थे जब उसका मिज़ाज अच्छा होता और वह उन पर मेहरबान होकर उन्हें मुँह माँगी मुराद दे सकता था। मगर, नहेमायाह उन वफादार यहूदी बंधुओं में से था जिनके लिए दुनिया की किसी भी चीज़ से बढ़कर, यरूशलेम “बड़े से बड़े आनन्द” का कारण था। (भज. 137:5, 6) नहेमायाह के दिलो-दिमाग पर बस एक ही बात छायी हुई थी, यहोवा की उपासना की बहाली। उसमें ओहदे या दौलत की चाहत नहीं थी।
2 सामान्य युग पूर्व 456 में उन “बचे हुए” यहूदियों की हालत ठीक नहीं थी जो बाबुल की “बन्धुआई से छूटकर” यरूशलेम लौट आए थे। (नहे. 1:3) एक तो शहर की दीवारें मलबे का ढेर बनी हुई थीं और ऊपर से दुश्मन हर वक्त आस-पास मँडरा रहे थे। यहूदी उनकी आँखों में काँटे की तरह खटकते थे। यह सब देखकर नहेमायाह बहुत दुःखी था। लेकिन, अब यहोवा का ठहराया हुआ वह समय आ पहुँचा था कि यरूशलेम की शहरपनाह के बारे में कुछ किया जाए। दुश्मन चाहे कुछ भी कर लें, यरूशलेम और उसकी हिफाज़त करनेवाली शहरपनाह ज़रूर बनकर खड़ी होती। क्योंकि यह काम उस भविष्यवाणी की शुरूआत की निशानी था, जो यहोवा ने मसीहा के आने के बारे में दानिय्येल नबी को दी थी। (दानि. 9:24-27) इसलिए, यहोवा ने घटनाओं को एक नया रुख दिया और अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए अपने वफादार और जोशीले सेवक नहेमायाह को इस्तेमाल किया।
3 बेशक, नहेमायाह नाम की किताब का लिखनेवाला खुद नहेमायाह ही है। इस किताब के शुरूआती शब्द, “हकल्याह के पुत्र नहेमायाह के वचन,” और लिखते वक्त उत्तम पुरुष का इस्तेमाल साफ दिखाता है कि इसे नहेमायाह ने ही लिखा था। (नहे. 1:1) शुरू-शुरू में, एज्रा और नहेमायाह की किताबें एक ही किताब थीं और उसका नाम था, एज्रा। बाद में, यहूदियों ने इस किताब को पहला एज्रा और दूसरा एज्रा नाम देकर दो भागों में बाँट दिया। फिर कुछ और वक्त बाद दूसरा एज्रा को नहेमायाह नाम दिया गया। एज्रा की किताब के आखिर में और नहेमायाह की शुरूआत में जो घटनाएँ दर्ज़ हैं, उनके बीच करीब 12 साल का अंतर है। नहेमायाह की किताब में सा.यु.पू. 456 के आखिर से सा.यु.पू. 443 के बाद तक के समय का ब्यौरा दिया गया है।—1:1; 5:14; 13:6.
4 नहेमायाह की किताब ईश्वर-प्रेरित शास्त्र का एक हिस्सा है और इसकी बाकी किताबों से पूरी तरह मेल खाती है। इसमें मूसा की व्यवस्था का ज़िक्र कई बार आता है, जैसे ये मामले: विदेशियों के साथ शादी का रिश्ता (व्यव. 7:3; नहे. 10:30), उधार देना (लैव्य. 25:35-38; व्यव. 15:7-11; नहे. 5:2-11), और झोपड़ियों का पर्व (व्यव. 31:10-13; नहे. 8:14-18)। इसके अलावा, यह किताब बताती है कि दानिय्येल की यह भविष्यवाणी कब पूरी होना शुरू हुई कि यरूशलेम शहर फिर से बसाया जाएगा, मगर “कष्ट के समय में” और विरोध करनेवालों के बीच।—दानि. 9:25.
5 नहेमायाह यरूशलेम की शहरपनाह को फिर से बनाने के लिए वहाँ सा.यु.पू. 455 में आया था। इस तारीख के बारे में क्या कहा जा सकता है? यूनान, फारस और बाबुल के इतिहास के भरोसेमंद सूत्रों से पता चलता है कि सा.यु.पू. 475 में अर्तक्षत्र राजगद्दी पर विराजमान हुआ था और सा.यु.पू. 474 उसके शासन का पहला साल था।a इस हिसाब से उसकी हुकूमत का 20वाँ साल सा.यु.पू. 455 होगा। नहेमायाह 2:1-8 से पता चलता है कि उस साल के वसंत में, यहूदियों के निसान महीने में, राजा के पिलानेहारे नहेमायाह को राजा से इजाज़त मिली कि वह यरूशलेम जाकर शहरपनाह और फाटकों को फिर से बनाने और नगर को बसाने का काम कर सकता है। दानिय्येल की भविष्यवाणी में बताया गया था कि “यरूशलेम के फिर बसाने की आज्ञा के निकलने से लेकर अभिषिक्त प्रधान के समय तक” सालों के 69 सप्ताह, यानी 483 साल बीतेंगे। गौर करने लायक बात है कि यह भविष्यवाणी बिलकुल सही वक्त पर यानी सा.यु. 29 में पूरी हुई जब यीशु का अभिषेक किया गया। दुनिया के इतिहास और बाइबल के इतिहास, दोनों के मुताबिक, यीशु का अभिषेक उसी साल हुआ था।b (दानि. 9:24-27; लूका 3:1-3, 23) जी हाँ, नहेमायाह और लूका की किताबों में दानिय्येल की भविष्यवाणी के पूरा होने के बारे में जिस लाजवाब तरीके से बताया गया है, उससे पता चलता है कि सच्ची भविष्यवाणी करनेवाला और उसे पूरा करनेवाला कोई और नहीं बल्कि यहोवा परमेश्वर है! नहेमायाह की किताब वाकई ईश्वर-प्रेरित शास्त्र का एक हिस्सा है।
क्यों फायदेमंद है
16 सच्ची उपासना से प्यार करनेवाले सभी लोगों को नहेमायाह की भक्ति से प्रेरणा पानी चाहिए। उसने राजा के पिलानेहारे होने का बड़ा ओहदा छोड़ दिया ताकि यहोवा के लोगों के बीच एक नम्र अध्यक्ष का काम कर सके। उसने वह पैसा और चीज़ें लेने से भी इनकार कर दिया जिसे पाने का दरअसल उसका हक बनता था और उसने दौलत के पीछे भागने के फंदे की कड़े शब्दों में निंदा की। पूरे देश के लिए नहेमायाह का यही पैगाम था कि यहोवा की उपासना पूरे जोश के साथ करो और उसे कायम रखने के लिए जी-जान से मेहनत करो। (5:14, 15; 13:10-13) नहेमायाह हमारे लिए एक ऐसे शख्स की बेहतरीन मिसाल है जिसने कभी अपने स्वार्थ के लिए कुछ नहीं किया, हमेशा समझ से काम लिया, वह जोशीला था, और उसने धार्मिकता के लिए निडर होकर काम किया, फिर चाहे कितने ही खतरे सामने क्यों न खड़े हों। (4:14, 19, 20; 6:3, 15) उसमें परमेश्वर के लिए सही किस्म का भय था और वह अपने संगी सेवकों का विश्वास मज़बूत करना चाहता था। (13:14; 8:9) उसने पूरे जोशो-खरोश से यहोवा की व्यवस्था पर अमल किया, खासकर उन मामलों में जिनका ताल्लुक सच्ची उपासना से और दूसरे देशों से संबंध तोड़ने से था। जैसे अन्यजाति के लोगों के साथ शादी के रिश्ते को खत्म करना।—13:8, 23-29.
17 शुरू से आखिर तक, इस किताब में यह ज़ाहिर होता है कि नहेमायाह को यहोवा की व्यवस्था की अच्छी जानकारी थी और उसने इस जानकारी का बढ़िया इस्तेमाल किया। व्यवस्थाविवरण 30:1-4 में यहोवा ने जो वादा किया था, उसे ध्यान में रखकर नहेमायाह ने आशीष के लिए प्रार्थना की, क्योंकि उसे पक्का विश्वास था कि यहोवा उसे नहीं छोड़ेगा और अपनी वफादारी निभाएगा। (नहे. 1:8, 9) उसने कई सम्मेलनों का इंतज़ाम किया, खासकर यहूदियों को उन बातों से वाकिफ कराने के लिए जो पहले से लिखी गयी थीं। नहेमायाह और एज्रा, बड़ी लगन से परमेश्वर की व्यवस्था लोगों को पढ़कर सुनाते थे, और लोगों को उसके वचन समझाते थे और उस पर अमल करने में उनकी मदद भी करते थे।—8:8, 13-16; 13:1-3.
18 नहेमायाह का पूरा भरोसा यहोवा पर था और उसकी नम्र बिनतियाँ हमें उकसाती हैं कि उसकी तरह हम भी हर बात में यहोवा पर निर्भर रहने का नज़रिया पैदा करें। गौर कीजिए कि उसने कैसे अपनी प्रार्थनाओं में परमेश्वर की महिमा की, अपने लोगों के पाप कबूल किए और यह बिनती की कि यहोवा के नाम की महिमा हो। (1:4-11; 4:14; 6:14; 13:14, 29, 31) इस जोशीले अध्यक्ष ने परमेश्वर के लोगों के हौसले बुलंद किए। इस बात का सबूत यह है कि लोग उसकी बुद्धि से भरी सलाह पर फौरन अमल करते थे और उसके साथ मिलकर परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने से भरपूर खुशी पाते थे। वाकई उसकी मिसाल लोगों के अंदर जान डाल देती थी! लेकिन, एक बुद्धिमान अध्यक्ष की गैर-मौजूदगी में कितनी जल्दी पैसे का प्यार, भ्रष्टाचार और सरेआम झूठी उपासना करने जैसी बुराइयाँ लोगों में घुस आयीं! आज परमेश्वर के लोगों के बीच सेवा करनेवाले सभी अध्यक्षों को बीते ज़माने की इन घटनाओं से सीखकर, यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि वे जानदार, जोशीले और चौकन्ने रहकर अपने मसीही भाइयों की खातिर काम करें और सच्ची उपासना की राह में उनकी अगुवाई करते वक्त समझ के साथ और सख्ती से काम लें।
19 नहेमायाह ने दिखाया कि वह पूरी तरह परमेश्वर के वचन पर भरोसा करता है। वह न सिर्फ पूरे जोश के साथ शास्त्र से उपदेश देता था बल्कि उसने शास्त्र का इस्तेमाल करके वंशावलियों के मुताबिक विरासतें भी तय कीं और परमेश्वर के बहाल हुए लोगों के लिए याजकों और लेवियों की सेवाएँ शुरू करवायीं। (नहे. 1:8; 11:1–12:26; यहो. 14:1–21:45) इससे यहूदियों के शेष लोगों की बहुत हिम्मत बँधी होगी। परमेश्वर के इस वादे पर उनका विश्वास और भी मज़बूत हुआ होगा कि एक वंश आएगा और उसके राज्य में इससे भी बड़ी बहाली होगी। भविष्य में परमेश्वर के राज्य में होनेवाली बहाली की उम्मीद ही आज परमेश्वर के सेवकों में जोश भर देती है कि वे राज्य के काम को आगे बढ़ाने की जंग हिम्मत से लड़ते रहें और सारी धरती में सच्ची उपासना की पैरवी करने में लगे रहें।
[फुटनोट]
a इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 613-16.
b इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 2, पेज 899-901.