अध्याय 16
शांत और संतुलित
यह आम बात है कि जब कोई भाषण देने के लिए स्टेज पर जाता है, तो उसका दिल धड़-धड़ करने लगता है। ऐसा अकसर उनके साथ होता है जिन्होंने बहुत कम भाषण दिए हैं। एक भाई या बहन को प्रचार में शुरू के एक-दो घरों में बात करते वक्त भी थोड़ी-बहुत घबराहट महसूस हो सकती है। जब यिर्मयाह को भविष्यवक्ता का काम सौंपा गया, तो उसने कहा था: “देख, मैं तो बोलना ही नहीं जानता, क्योंकि मैं लड़का ही हूं।” (यिर्म. 1:5, 6) यहोवा ने यिर्मयाह की मदद की और वह आपकी भी मदद करेगा। उसकी मदद से कुछ वक्त बाद, आप शांत और संतुलित होकर बात किया करेंगे।
जो वक्ता, शांत और संतुलित होता है, उसका खुद पर काबू होता है। उसका संतुलन उसके अंगों के भावों से पता चलता है। उसके खड़े होने का अंदाज़ मौके के मुताबिक बिलकुल सहज होता है। वह अपने भाव ज़ाहिर करने के लिए हाथों का इस्तेमाल करता है। उसकी आवाज़ में भावनाएँ होती हैं और उसकी ज़बान पूरी तरह उसके काबू में होती है।
अगर आपको लगता है कि ऊपर बतायी बातों के मुताबिक आप शांत और संतुलित नहीं है, तो निराश मत होइए। आप सुधार कर सकते हैं। कैसे? सबसे पहले आइए गौर करें कि एक भाषण देनेवाले को घबराहट क्यों हो सकती है और वह शांत और संतुलित होकर बात क्यों नहीं कर सकता। यह समस्या शारीरिक हो सकती है।
जब आपके सामने कोई काम करने की चुनौती होती है और आप उसे अच्छी तरह करना चाहते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि आप कामयाब होंगे भी या नहीं, तो आपको चिंता सताने लगती है। इस चिंता की वजह से आपका दिमाग शरीर को यह सूचना देता है कि वह ज़्यादा ऐड्रिनलाइन हार्मोन पैदा करे। इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है, साँस लेने की रफ्तार बदल जाती है, पसीना आने लगता है, हाथ-पैर लड़खड़ाने लगते हैं, यहाँ तक कि आवाज़ भी काँपने लगती है। दरअसल यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि आपका शरीर पहले से ज़्यादा ऊर्जा पैदा करना शुरू कर देता है ताकि इस समस्या का सामना करने के लिए आपके पास भरपूर ताकत हो। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती होती है, इस ढेर सारी ऊर्जा को सही तरीके से इस्तेमाल करना। यानी उसे सही तरह सोचने और जोश भरा भाषण देने में खर्च करना।
चिंता को कैसे कम किया जाए। चिंता तो सभी को महसूस होती है। मगर शांत और संतुलित रहने के लिए आपको अपनी चिंता थोड़ी कम करनी होगी और ठंडे दिमाग से और गरिमा के साथ हालात का सामना करना होगा। यह कैसे हो सकता है?
पूरी तैयारी कीजिए। अपना भाषण तैयार करने में वक्त लगाइए। खुद से पूछिए कि मुझे अपना विषय अच्छी तरह समझ में आया है या नहीं। अगर आप ऐसा भाषण पेश कर रहे हैं जिसके मुद्दे आपको चुनने हैं, तो यह ध्यान में रखना अच्छा होगा कि उस विषय के बारे में आपके सुननेवाले पहले से कितना जानते हैं और आप भाषण से क्या हासिल करना चाहते हैं। इस तरह आप वह जानकारी चुन पाएँगे जो सबसे ज़्यादा फायदेमंद होगी। अगर शुरू-शुरू में आपको यह सब करना मुश्किल लगता है, तो एक तजुर्बेकार वक्ता के पास जाइए और उसे अपनी समस्या बताइए। उसकी मदद से आप जानकारी की ठीक-ठीक जाँच कर पाएँगे और जान पाएँगे कि आपके सुननेवालों की ज़रूरत क्या है। जब एक बार आपको यकीन हो जाता है कि आप जो पेश करने जा रहे हैं, उससे सुननेवालों को फायदा होगा और आपका विषय आपके दिमाग में अच्छी तरह बैठ चुका है, तो उसे बताने की आपकी ख्वाहिश इतनी ज़बरदस्त होगी कि आपकी भाषण देने की चिंता धीरे-धीरे कम होने लगेगी।
आप अपने भाषण की शुरूआत में क्या बोलेंगे, इस पर खास ध्यान दीजिए। आपको अच्छी तरह पता होना चाहिए कि आप शुरूआत में क्या कहने जा रहे हैं। और एक बार जब आप भाषण देना शुरू कर देंगे, तो धीरे-धीरे आपकी घबराहट अपने-आप दूर होती चली जाएगी।
प्रचार में जाने की तैयारी करने के लिए भी यही बुनियादी तरीके अपनाने होते हैं। सिर्फ इस बात पर ध्यान मत दीजिए कि आप किस विषय पर चर्चा करेंगे बल्कि इस पर भी कि आप किस तरह के लोगों को गवाही देने जा रहे हैं। फिर उसी के हिसाब से बहुत सोच-समझकर बातचीत शुरू करने की तैयारी कीजिए। जिन भाई-बहनों को प्रचार में अच्छा तजुर्बा है, उनसे भी मदद लीजिए।
आपको शायद लगे कि अगर आप अपने भाषण को मैन्यूस्क्रिप्ट के रूप में तैयार करेंगे, तो आप और भी शांत और संतुलित रहकर उसे पेश कर पाएँगे। मगर असल में, इससे हर बार आपकी चिंता बढ़ती जाएगी। यह सच है कि कुछ वक्ता लंबे-चौड़े नोट्स् इस्तेमाल करते हैं, तो दूसरे बहुत कम। मगर आपका ध्यान जमाने और आपकी चिंता कम करने के लिए कागज़ पर लिखे शब्द आपकी मदद नहीं करते, बल्कि आपके दिल में यह विश्वास आपकी मदद करता है कि आपने जो तैयार किया है, उससे सुननेवालों को वाकई फायदा होगा।
ऊँची आवाज़ में भाषण देने का अभ्यास कीजिए। इस तरह अभ्यास करना आपके मन में यह विश्वास पैदा करेगा कि आप अपने विचारों को शब्दों में बयान कर सकते हैं। जब आप अभ्यास करते हैं, तब कई बातें आपको याद हो जाती हैं और भाषण देते वक्त यही बातें आसानी से आपके ध्यान में आ सकती हैं। ऐसे अभ्यास कीजिए मानो आप सचमुच स्टेज पर से भाषण दे रहे हों। कल्पना कीजिए कि आपके सामने सुननेवाले बैठे हैं। आपको जिस तरह भी भाषण देना है, चाहे बैठकर या खड़े होकर, उसी तरह अभ्यास भी कीजिए।
यहोवा से मदद के लिए बिनती कीजिए। जब हम भाषण देने के लिए यहोवा से मदद माँगेंगे, तो क्या वह हमारी प्रार्थना सुनेगा? “हमें परमेश्वर पर पूर्ण भरोसा है कि यदि हम परमेश्वर से उसकी इच्छा के अनुसार कुछ मांगें तो वह हमारी प्रार्थना सुनता है।” (1 यूह. 5:14, नयी हिन्दी बाइबिल) अगर आपमें परमेश्वर का आदर करने की तमन्ना है और आप उसके वचन के ज़रिए लोगों की मदद करना चाहते हैं, तो वह आपकी प्रार्थना ज़रूर सुनेगा। इस यकीन से आपको भाषण देने के लिए काफी हिम्मत मिल सकती है। इसके अलावा, जब आप अपने अंदर आत्मा के फल पैदा करेंगे जैसे कि प्रेम, आनन्द, मेल, नम्रता, और संयम, तब आप ऐसा स्वभाव पैदा कर रहे होंगे जो शांत और संतुलित रहकर हालात का सामना करने के लिए ज़रूरी है।—गल. 5:22, 23.
तजुर्बा हासिल कीजिए। आप प्रचार में जितना ज़्यादा जाएँगे, उतना ही आपका डर कम होता जाएगा। उसी तरह कलीसिया की सभाओं में आप जवाब देने में जितना ज़्यादा हिस्सा लेंगे, दूसरों के साथ बातचीत करना उतना ही आसान हो जाएगा। कलीसिया के सामने आपके हर भाषण के साथ आपकी चिंता कम होती जाएगी। क्या आप चाहेंगे कि आपको भाषण देने के और भी मौके मिलें? तो जब कोई विद्यार्थी अपना भाग पेश नहीं कर पाता, तब आप उसकी जगह भाषण देने के लिए खुद को पेश कीजिए।
ऊपर बताए कदम उठाने के बाद, उन लक्षणों को जानना फायदेमंद होगा जिन्हें देखकर साफ पता लगता है कि एक इंसान शांत और संतुलित है या नहीं। इन लक्षणों को पहचानने और इन पर काबू पाने से आप शांत रहकर और संतुलन के साथ बोल पाएँगे। ये लक्षण शरीर या आवाज़ में नज़र आते हैं।
शारीरिक लक्षण। आप शांत और संतुलित हैं या नहीं, यह आपके अंगों के भावों से, खासकर आप अपने हाथों को जिस तरह इस्तेमाल करते हैं उससे पता चलता है। सबसे पहले हाथों पर गौर कीजिए। पीछे की तरफ हाथ बाँधकर खड़े रहना, दोनों हाथों को शरीर से सटाए रखना या स्पीकर स्टैंड को कसकर पकड़ना; बार-बार हाथों को जेब के अंदर-बाहर करना, कोट के बटन बंद करना और खोलना, बिना मतलब के अपनी ठोड़ी, नाक, चश्मे को छूना; घड़ी, पेंसिल, अँगूठी, या कागज़ों को बार-बार उठाना; अचानक या अधूरे हाव-भाव करना—ये सभी इस बात की निशानियाँ हैं कि आप शांत और संतुलित नहीं हैं।
आत्म-विश्वास की कमी, इन बातों से भी ज़ाहिर हो सकती है जैसे: बार-बार पैर को आगे-पीछे करना, शरीर का कभी एक तरफ जाना तो कभी दूसरी तरफ, एकदम अकड़कर या तनकर खड़े होना, कंधे लटकाकर खड़े होना, बार-बार होठों पर जीभ फेरना, थूक सटकना, जल्दी-जल्दी साँस लेना।
ध्यान रखकर मेहनत करने से घबराहट के इन लक्षणों को कम किया जा सकता है। एक बार में सिर्फ एक लक्षण पर काबू पाने की कोशिश कीजिए। अपनी समस्या का पता लगाइए, और पहले से यह सोचकर रखिए कि आप उसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाएँगे। अगर आप कोशिश करेंगे, तो आपके अंगों के भावों से यह ज़ाहिर होगा कि आप शांत और संतुलित हैं।
आवाज़ में लक्षण। आवाज़ में घबराहट की निशानियाँ हैं, कुछ ज़्यादा ही ऊँची या काँपती हुई आवाज़ में बोलना। हो सकता है कि आप बार-बार खराशते हैं या तेज़-तेज़ बोलते हैं। अगर हम अपनी आवाज़ को काबू में करने के लिए मेहनत करें, तो इस समस्या और ऐसी ही आदतों को ठीक किया जा सकता है।
अगर आपको घबराहट महसूस हो रही है, तो स्टेज पर जाने से पहले कुछ देर रुककर गहरी साँसें लीजिए। अपने पूरे शरीर को तनाव-मुक्त करने की कोशिश कीजिए। अपनी घबराहट के बारे में चिंता करने के बजाय, यह सोचिए कि आपने जो भाषण तैयार किया है उसे आप सभा को क्यों सुनाना चाहते हैं। बोलना शुरू करने से पहले, कुछ पल के लिए सुननेवालों पर एक नज़र डालिए, फिर किसी हँस-मुख शख्स को देखकर मुस्कुराइए। धीरे-से शुरूआत कीजिए और फिर अपने भाषण में डूब जाइए।
क्या उम्मीद करें। यह उम्मीद मत कीजिए कि आपकी घबराहट पूरी तरह उड़न-छू हो जाएगी। बहुत-से वक्ता जो सालों से भाषण देते आए हैं, वे आज भी स्टेज पर जाने से पहले घबराहट महसूस करते हैं। मगर उन्होंने अपनी घबराहट को काबू करना सीख लिया है। एक भाषण देनेवाले ने कहा: “आज भी भाषण देने से पहले, घबराहट की वजह से मेरे पेट में गुड़-गुड़ होने लगती है, लेकिन स्टेज पर जाते-जाते मैं उस पर काबू पा लेता हूँ।”
अगर आप घबराहट के लक्षणों को दूर करने के लिए सच्ची कोशिश करेंगे, तो सुननेवाले जान पाएँगे कि आप एक शांत और संतुलित वक्ता हैं। आप शायद अभी-भी अंदर-ही-अंदर घबराते हैं, लेकिन लोग इस बात से बिलकुल बेखबर होते हैं।
याद रखिए कि ऐड्रिनलाइन हार्मोन के बढ़ने से आपमें घबराहट के लक्षण नज़र आते हैं, मगर इससे शरीर की ऊर्जा भी बढ़ती है। इस ऊर्जा को भावनाओं के साथ भाषण देने के लिए इस्तेमाल कीजिए।
इन सब बातों का अभ्यास करने के लिए स्टेज पर जाने तक का इंतज़ार मत कीजिए। अपनी रोज़ाना ज़िंदगी में शांत और संतुलित होने की कोशिश कीजिए, खुद पर काबू रखना और सही भावना के साथ बोलना सीखिए। ऐसा करने से आपको स्टेज पर और प्रचार में बोलने में बड़ी हिम्मत मिलेगी, और इन दोनों जगहों पर ऐसी हिम्मत की सख्त ज़रूरत होती है।