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“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” सच्चा और फायदेमंद (2 इतिहास–यशायाह)
bsi06 पेज 19-24

बाइबल की किताब नंबर 20—नीतिवचन

किसने कहे थे: सुलैमान, आगूर, लमूएल

लिखने की जगह: यरूशलेम

लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु.पू. 717

सामान्य युग पूर्व 1037 में जब दाऊद का बेटा सुलैमान इस्राएल का राजा बना, तो उसने यहोवा से उसे “बुद्धि और ज्ञान” देने की बिनती की ताकि वह “इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके।” यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे ‘ज्ञान, बुद्धि और विवेक से भरा मन’ दिया। (2 इति. 1:10-12; 1 राजा 3:12; 4:30, 31) यहोवा से ऐसी आशीष पाकर सुलैमान ने “तीन हज़ार नीतिवचन कहे” थे। (1 राजा 4:32) इनमें से कुछ बुद्धि की बातें बाइबल की नीतिवचन नाम की किताब में दर्ज़ की गयीं। ‘परमेश्‍वर ने सुलैमान के मन में बुद्धि की बातें डाली थीं,’ इसलिए नीतिवचन का अध्ययन करते वक्‍त हम यहोवा परमेश्‍वर की बुद्धि का अध्ययन कर रहे होते हैं। (1 राजा 10:23, 24) इन नीतिवचनों में ऐसी सच्चाइयाँ हैं जो कभी पुरानी नहीं पड़तीं। ये आज भी उतने ही कारगर हैं जितने तब थे जब ये कहे गए थे।

2 परमेश्‍वर की तरफ से ऐसा मार्गदर्शन देने के लिए सुलैमान का राज, बिलकुल सही वक्‍त था। कहा जाता था कि सुलैमान ‘यहोवा के सिंहासन पर विराजमान’ था। इस्राएल में परमेश्‍वर के निर्देशन से चलनेवाली यह सरकार कामयाबी की बुलंदियों पर थी और सुलैमान को परमेश्‍वर की तरफ से “राजकीय ऐश्‍वर्य” और बड़ी शानो-शौकत हासिल हुई थी। (1 इति. 29:23, 25) यह वक्‍त अमन-चैन का था और किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। (1 राजा 4:20-25) लेकिन, परमेश्‍वर के निर्देशन से चलनेवाली इस हुकूमत में भी इंसानी असिद्धता की वजह से लोगों की अपनी परेशानियाँ और दिक्कतें थीं। इसलिए यह लाज़मी ही था कि लोग अपनी समस्याएँ बुद्धिमान राजा सुलैमान के पास ले आते थे ताकि वह उन्हें सुलझाने में उनकी मदद करे। (1 राजा 3:16-28) इस तरह के मुकद्दमों में अपना फैसला सुनाते वक्‍त, सुलैमान ने कई कहावतें कहीं जो रोज़-ब-रोज़ की ज़िंदगी में उठनेवाले अलग-अलग हालात पर लागू होती हैं। चंद शब्दों में कही गयी ये लाजवाब कहावतें, उन लोगों के लिए कीमती खज़ाना हैं जो परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक जीना चाहते हैं।

3 बाइबल यह नहीं कहती कि सुलैमान ने ये नीतिवचन लिखे थे। लेकिन यह बताती है कि सुलैमान ने नीतिवचन ‘कहे थे’ और यह भी कि ‘उसने खोजबीन की, और बहुत से नीतिवचन क्रम में संजोए।’ (1 राजा 4:32; सभो. 12:9, NHT) इससे पता चलता है कि सुलैमान चाहता था कि ये नीतिवचन सुरक्षित रखे जाएँ ताकि आगे भी इन्हें इस्तेमाल किया जा सके। दाऊद और सुलैमान के दरबारियों में सरकारी मंत्री या सेक्रेट्री भी हुआ करते थे। (2 शमू. 20:25; 2 राजा 12:10) यह हम नहीं जानते कि सुलैमान के इन मंत्रियों ने उसके नीतिवचनों को लिखा और इकट्ठा किया था या नहीं। मगर सुलैमान जैसे काबिल राजा के बोल बहुत कीमती माने जाते होंगे और ज़रूर उन्हें लिखा भी जाता होगा। माना जाता है कि नीतिवचन की यह किताब, अलग-अलग संग्रहों से इकट्ठे किए गए नीतिवचनों से बनी है।

4 नीतिवचन की किताब को पाँच हिस्सों में बाँटा जा सकता है। वे हैं: (1) अध्याय 1-9, जिसकी शुरूआत इन शब्दों से होती है: “दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन”; (2) अध्याय 10-24, जिन्हें “सुलैमान के नीतिवचन” कहा गया है; (3) अध्याय 25-29, जिसकी शुरूआत यूँ होती है: “सुलैमान के नीतिवचन ये भी हैं; जिन्हें यहूदा के राजा हिजकिय्याह के जनों ने नकल की थी”; (4) अध्याय 30, जिसके बारे में लिखा है “याके के पुत्र आगूर के प्रभावशाली वचन”; और (5) अध्याय 31 जिसमें “लमूएल राजा के प्रभावशाली वचन, जो उसकी माता ने उसे सिखाए” लिखे हैं। इस तरह हम कह सकते हैं कि ज़्यादातर नीतिवचन सुलैमान ने ही कहे थे। आगूर और लमूएल कौन थे, इस बारे में कोई पक्की जानकारी नहीं है। कुछ टीकाकार कहते हैं कि लमूएल शायद सुलैमान का ही दूसरा नाम था।

5 इस किताब के नीतिवचनों को कब लिखा और इकट्ठा किया गया था? बेशक, इसका ज़्यादातर हिस्सा सुलैमान की हुकूमत (सा.यु.पू. 1037-998) के दौरान, उसके सही राह से भटकने से पहले ही लिखा गया था। आगूर और लमूएल कौन थे, इस बारे में पक्की जानकारी न होने की वजह से, यह बताना मुमकिन नहीं कि उनके कहे नीतिवचन कब लिखे गए थे। नीतिवचनों का एक संग्रह राजा हिजकिय्याह की हुकूमत (सा.यु.पू. 745-717) के दौरान इकट्ठा किया गया था, इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि उसकी हुकूमत से पहले इस किताब के संग्रह को अंतिम रूप दिया गया हो। क्या आखिर के दो भाग भी राजा हिजकिय्याह की निगरानी में ही इकट्ठे किए गए थे? इसका एक बढ़िया जवाब हमें न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्‌—विद रॆफ्रेंसिस में नीतिवचन 31:31 के एक फुटनोट में मिलता है। फुटनोट कहता है: “यहाँ इब्रानी पाठ की कुछ कॉपियों में तीन अक्षर दिखायी देते हैं, चेथ, ज़ायिन, कोफ (חזק)। ये अक्षर राजा हिजकिय्याह के दस्तखत हैं। जब शास्त्री, शास्त्र के किसी भाग की नकल बनाते थे, तो यह दिखाने के लिए कि उनका काम पूरा हो गया है, राजा दस्तखत करता था।”

6 इब्रानी भाषा की बाइबलों में यह किताब पहले मिशलेह नाम से जानी जाती थी। यह इस किताब का पहला शब्द था, जिसका मतलब है “नीतिवचन।” मिशलेह शब्द बहुवचन है और इब्रानी संज्ञा मशाल का दूसरा रूप है। माना जाता है कि यह संज्ञा जिस मूल शब्द से निकली है उसका मतलब है “. . के जैसा होना” या “समान होना।” इन शब्दों से बहुत अच्छी तरह पता चलता है कि इस किताब में क्या है। नीतिवचन ऐसी छोटी मगर ज़बरदस्त कहावतें हैं जो एक-जैसी दो चीज़ों के बारे में बताती हैं या उनकी समानताओं की तुलना करती हैं। ये लोगों को गहराई से सोचने के लिए उकसाते हैं। नीतिवचन छोटे होने की वजह से इन्हें समझना आसान होता है और ये बड़े दिलचस्प होते हैं। इस रूप में इनको समझना, याद रखना और दूसरों को सिखाना आसान है। इनका पैगाम भुलाए नहीं भूलता।

7 इस किताब में बहुत ही दिलचस्प तरीके से विचार ज़ाहिर किए गए हैं। यह इब्रानी भाषा की काव्य शैली में लिखी गयी है। ज़्यादातर कविताओं में एक अर्थ रखनेवाले दो अलग-अलग विचार दिए गए हैं। इनकी पंक्‍तियों के आखिरी शब्द लयबद्ध या एक ही स्वर के शब्द नहीं हैं, बल्कि इनकी दोनों लाइनों में एक-जैसे विचार बताए हैं। इस तरह विचारों की लयबद्धता की वजह से ये कविताएँ बड़ी खूबसूरत और ज़बरदस्त सीख देनेवाली हैं। कुछ कविताओं में दो ऐसी बातें कही गयी हैं जो एक-दूसरे से मिलती हैं और कुछ में एक-दूसरे के बिलकुल उलटी बात कही गयी है। ऐसी तुलना इसलिए की गयी है ताकि विचारों को और खुलकर समझाया जा सके और उनका मतलब सही-सही बताया जा सके। एक-जैसे विचार ज़ाहिर करनेवाले नीतिवचनों की मिसालें नीतिवचन 11:25; 16:18; और 18:15 में पायी जाती हैं। और दो बिलकुल उलटे विचार ज़ाहिर करने की मिसालें नीतिवचन 10:7, 30; 12:25; 13:25; और 15:8 में पायी जा सकती हैं। ज़्यादातर नीतिवचन इसी किस्म के हैं। लिखने का एक और तरीका किताब के बिलकुल आखिर में पाया जाता है। (नीति. 31:10-31) जैसे कई भजन अक्षरबद्ध शैली में लिखे गए हैं, उसी तरह नीतिवचन 31 की ये 22 आयतें इब्रानी भाषा में इस तरह लिखी गयी थीं कि हर आयत इब्रानी वर्णमाला के क्रम के मुताबिक एक-एक अक्षर से शुरू हो। लिखने की यह शैली इतनी अनूठी और खूबसूरत है कि प्राचीन लेखों में यह शैली कहीं और नहीं पायी जाती।

8 नीतिवचन की किताब सच्ची है यह इस बात से भी दिखायी देता है कि पहली सदी के मसीहियों ने चालचलन के बारे में नियम बताने के लिए इस किताब का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। ऐसा लगता है कि याकूब, नीतिवचन की किताब का अच्छा जानकार था, इसलिए उसने इस किताब के बुनियादी उसूलों की मदद से मसीही चालचलन के बारे में बढ़िया सलाह दी। (नीतिवचन 14:29; 17:27 की तुलना याकूब 1:19, 20 से; नीतिवचन 3:34 की तुलना याकूब 4:6 से; नीतिवचन 27:1 की तुलना याकूब 4:13, 14 से कीजिए।) और बाइबल के इन भागों में तो नीतिवचन की किताब से सीधे-सीधे हवाले दिए गए हैं: रोमियों 12:20—नीतिवचन 25:21, 22; इब्रानियों 12:5, 6—नीतिवचन 3:11, 12; 2 पतरस 2:22—नीतिवचन 26:11.

9 इसके अलावा, नीतिवचन की किताब यह भी सबूत देती है कि यह बाइबल के बाकी हिस्से से पूरी तरह मेल खाती है, और इस तरह यह “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” का एक हिस्सा है। इस किताब की तुलना जब मूसा की व्यवस्था, यीशु की शिक्षाओं और यीशु के चेलों और प्रेरितों के लेखों से की जाती है, तो इनमें बताए विचारों की एकता हमें हैरत में डाल देती है। (नीतिवचन 10:16—1 कुरिन्थियों 15:58 और गलतियों 6:8, 9; नीतिवचन 12:25—मत्ती 6:25; नीतिवचन 20:20—निर्गमन 20:12 और मत्ती 15:4 देखिए।) यहाँ तक कि जब यह किताब ऐसी बातों का ज़िक्र करती है कि धरती को इंसानों के रहने के लिए कैसे तैयार किया गया था, तो उसमें भी इस किताब के लेखक और बाइबल के दूसरे लेखकों के विचारों में एकता दिखायी देती है।—नीति. 3:19, 20; उत्प. 1:6, 7; अय्यू. 38:4-11; भज. 104:5-9.

10 इस किताब के ईश्‍वर-प्रेरित होने का एक और सबूत यह है कि इसमें विज्ञान से जुड़ी जो बातें लिखी हैं वे सौ-फीसदी सच हैं, फिर चाहे ये रसायन, चिकित्सा या सेहत के बारे में ही क्यों न हों। नीतिवचन 25:20 शायद तेज़ाब और सज्जी या सिरके के बीच होनेवाली प्रतिक्रिया की बात कर रहा है। नीतिवचन 31:4, 5 विज्ञान की इस खोज से सहमत है कि शराब के नशे में इंसान ठीक-ठीक नहीं सोच सकता। बहुत-से डॉक्टर और पौष्टिक आहार की सलाह देनेवाले मानते हैं कि शहद या मधु सेहत के लिए अच्छा है। यह बात हमें इस नीतिवचन की याद दिलाती है: “हे मेरे पुत्र तू मधु खा, क्योंकि वह अच्छा है।” (नीति. 24:13) आज डॉक्टर कहते हैं कि मरीज़ों के मन की हालत का उनकी सेहत पर काफी असर होता है, मगर नीतिवचन की किताब ने यह बात सदियों पहले ही बता दी थी कि “मन का आनन्द अच्छी औषधि है।”—17:22; 15:17.

11 वाकई, नीतिवचन की किताब इंसान की हर ज़रूरत और हालात के बारे में सलाह देती है। इसलिए एक किताब नीतिवचन के बारे में कहती है: “ज़िंदगी का ऐसा कोई रिश्‍ता नहीं है जिसके बारे में यह मुनासिब सलाह न देती हो, ऐसा कोई भला गुण नहीं है जिसका यह बढ़ावा न देती हो, ऐसा कोई बुरा गुण नहीं है जिसका यह खंडन न करती हो। नीतिवचन की किताब में इंसान के व्यवहार के हर पहलू के बारे में परमेश्‍वर की सलाह दी गयी है, . . . इसे पढ़ने पर ऐसा लगता है मानो इंसान अपने बनानेवाले और न्यायी के सामने हाज़िर रहकर उससे नसीहत पा रहा हो . . . इंसानी रिश्‍तों का हर पहलू इस प्राचीन किताब में पाया जा सकता है; और हालाँकि यह तीन हज़ार साल पहले लिखी गयी थी, फिर भी यह इतनी सच्ची और स्वाभाविक है कि ऐसा लगता है जैसे आज की जीती-जागती मिसालों से सबक लेकर इसमें लिखे गए हों।”—स्मिथ का बाइबल का शब्दकोश (अँग्रेज़ी), सन्‌ 1890, भाग 3, पेज 2616.

क्यों फायदेमंद है

19 नीतिवचन किस मकसद से लिखे गए थे, यह शुरू की इन आयतों में बताया गया है: “इनके द्वारा पढ़नेवाला बुद्धि और शिक्षा प्राप्त करे, और समझ की बातें समझे, और काम करने में प्रवीणता, और धर्म, न्याय और सीधाई की शिक्षा पाए; कि भोलों को चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक मिले।” (1:2-4) नीतिवचन का यही मकसद है कि हमें फायदा पहुँचे। इसलिए यह किताब ज्ञान, बुद्धि और समझ पर ज़ोर देती है, क्योंकि इनमें से हरेक गुण हमारे लिए खास तरीके से फायदेमंद है।

20 (1) ज्ञान की इंसान को सख्त ज़रूरत है, क्योंकि अज्ञानता के अंधकार में रहना इंसान के लिए ठीक नहीं। जब तक एक इंसान के दिल में यहोवा के लिए भय न हो, तब तक वह सही ज्ञान हासिल नहीं कर सकता, क्योंकि ज्ञान की शुरूआत इसी भय से होती है। उम्दा किस्म के सोने या कुंदन से बढ़कर ज्ञान को पाने की चाहत होनी चाहिए। क्यों? ज्ञान से धर्मियों का बचाव होता है; यह हमें उतावली में आकर पाप करने से रोकता है। यह कितना ज़रूरी है कि हम ज्ञान की खोज करें, इसे हासिल करें! यह वाकई बहुत कीमती है! इसलिए हमसे कहा गया है कि “कान लगाकर बुद्धिमानों के वचन सुन, और मेरी ज्ञान की बातों की ओर मन लगा।”—22:17; 1:7; 8:10; 11:9; 18:15; 19:2; 20:15.

21 (2) बुद्धि का मतलब है, यहोवा की महिमा के लिए ज्ञान का सही इस्तेमाल करने की काबिलीयत और इस किस्म की बुद्धि सबमें “श्रेष्ठ है।” बुद्धि को हासिल कीजिए। इसका देनेवाला यहोवा है। जीवनदायी बुद्धि की शुरूआत यहोवा परमेश्‍वर को जानने और उसका भय मानने से होती है—यही बुद्धि पाने का राज़ है। इसलिए, इंसान का नहीं, परमेश्‍वर का भय मानिए। बुद्धि का साक्षात्‌ रूप पुकार लगाता है और सबसे गुज़ारिश करता है कि वे अपने तौर-तरीके बदलें। बुद्धि सड़कों पर ज़ोर से पुकारती है। जिन्हें तजुरबा नहीं है, और जो मूर्ख हैं, उन सभी को यहोवा पुकारकर कहता है कि वे अपनी गलत राह से फिरें और बुद्धि की रोटी खाएँ। ऐसा करने से वे यहोवा का भय मानते हुए आनंद मनाएँगे, फिर चाहे उनके पास थोड़ा ही क्यों न हो। बुद्धि पाने से कई आशीषें मिलती हैं, बुद्धि बहुत फायदेमंद है। बुद्धि और ज्ञान के बिना सोचने-समझने की काबिलीयत बढ़ाना मुमकिन नहीं। यह काबिलीयत ऐसी है जो हमारी हिफाज़त करेगी। जैसे मधु से फायदा होता है और यह मन को भाता है, वैसे ही बुद्धि भी है। यह सोने से भी कीमती है; यह जीवन का वृक्ष है। बुद्धि के बिना इंसान मिट जाता है, क्योंकि बुद्धि ही जीवन को कायम रखती है; यह ज़िंदगी है।—4:7; 1:7, 20-23; 2:6, 7, 10, 11; 3:13-18, 21-26; 8:1-36; 9:1-6, 10; 10:8; 13:14; 15:16, 24; 16:16, 20-24; 24:13, 14.

22 (3) ज्ञान और बुद्धि के अलावा समझ का होना भी निहायत ज़रूरी है; इसलिए “जो कुछ भी तू प्राप्त करे, समझ को अवश्‍य प्राप्त कर।” समझ, किसी चीज़ को इसके अलग-अलग पहलुओं के साथ देख सकने की काबिलीयत है; इसका मतलब परख-शक्‍ति है, जिसमें हमेशा यह देखा जाता है कि परमेश्‍वर की मरज़ी क्या है, क्योंकि इंसान अपनी समझ के सहारे नहीं जी सकता। अगर एक शख्स यहोवा के विरोध में काम करता है, तो उसके लिए समझ या परख-शक्‍ति पाना हरगिज़ मुमकिन नहीं! समझ को अपना बनाने के लिए, हमें जी-जान से उसकी खोज करनी चाहिए, मानो हम कोई छिपा हुआ खज़ाना ढूँढ़ रहे हों। समझ हासिल करने के लिए ज़रूरी है कि हमारे अंदर ज्ञान हो। समझदार इंसान जब ज्ञान की खोज करता है तो उसे अपनी मेहनत का फल मिलता है और बुद्धि उसके पास रहती है। वह इस दुनिया के बेहिसाब फंदों से बचा रहता है। मसलन, वह उन अनगिनत बुरे लोगों के बहकावे में नहीं आता जो शायद उसे अपने साथ अंधकार के रास्ते पर ले जाने के लिए फुसलाने की कोशिश करें। वाकई, हमें यहोवा परमेश्‍वर का कितना शुक्र मानना चाहिए, जो जीवनदायी ज्ञान, बुद्धि और समझ का दाता है!—4:7, NHT; 2:3, 4; 3:5; 15:14; 17:24; 19:8; 21:30.

23 नीतिवचन की किताब हमारे फायदे के लिए लिखी गयी थी। इसी वजह से यह किताब बुद्धि से भरी ढेर सारी ईश्‍वर-प्रेरित सलाह देती है ताकि हम समझ हासिल करें और अपने दिल की हिफाज़त करें, क्योंकि “जीवन का मूल स्रोत वही है।” (4:23) इस पूरी किताब में जो बुद्धि-भरी सलाह दी गयी है, उसमें से कुछ चुनिंदा बातें यहाँ दी गयी हैं।

24 दुष्ट और धर्मी के बीच फर्क बताया गया: दुष्ट लोग अपने ही टेढ़े रास्तों में फँस जाएँगे और कोप के दिन उनका धन उन्हें नहीं बचाएगा। धर्मी, जीवन पाने की राह पर हैं और यहोवा उन्हें इनाम देगा।—2:21, 22; 10:6, 7, 9, 24, 25, 27-32; 11:3-7, 18-21, 23, 30, 31; 12:2, 3, 7, 28; 13:6, 9; 14:2, 11; 15:3, 8, 29; 29:16.

25 शुद्ध नैतिक उसूलों की ज़रूरत: सुलैमान बार-बार अनैतिकता से खबरदार करता है। व्यभिचारी पर मुसीबत आ पड़ेगी और वह बेइज़्ज़त होगा और उसकी बदनामी कभी न मिटने पाएगी। “चोरी का पानी” एक जवान को शायद मीठा लगे, मगर एक वेश्‍या मौत के गहरे गड्ढे में जा गिरती है और उसके जाल में फँसनेवाले मूर्खों को भी अपने साथ ले जाती है। जो लोग अनैतिकता की गहरी खाई में जा गिरते हैं यहोवा उनकी कड़ी निंदा करता है।—2:16-19; 5:1-23; 6:20-35; 7:4-27; 9:13-18; 22:14; 23:27, 28.

26 संयम बरतने की ज़रूरत: पियक्कड़पन और पेटूपन को गलत बताया गया है। परमेश्‍वर की मंज़ूरी चाहनेवाले हर शख्स को खाने-पीने में संयम बरतना चाहिए। (20:1; 21:17; 23:21, 29-35; 25:16; 31:4, 5) जो अपने गुस्से को काबू में रखते हैं उनमें परख-शक्‍ति होती है, वे एक नगर को जीतनेवाले वीर योद्धा से भी ताकतवर हैं। (14:17, 29; 15:1, 18; 16:32; 19:11; 25:15, 28; 29:11, 22) जलन और कुढ़न से दूर रहने के लिए भी संयम की बहुत ज़रूरत है, क्योंकि जलन से इंसान की हड्डियाँ सड़ जाती हैं।—14:30; 24:1; 27:4; 28:22.

27 ज़बान का समझदारी से और नासमझी से इस्तेमाल: टेढ़ी बात कहनेवाले, झूठी निंदा करनेवाले, झूठी गवाही देनेवाले और सच को झूठ बतानेवालों का पर्दाफाश हो जाएगा, क्योंकि यहोवा उनसे नफरत करता है। (4:24; 6:16-19; 11:13; 12:17, 22; 14:5, 25; 17:4; 19:5, 9; 20:17; 24:28; 25:18) जिसके मुँह से अच्छी बातें निकलती हैं, उसे जीवन मिलेगा; लेकिन मूर्ख के मुँह से निकलनेवाली बातें उसे बरबादी की खाई में गिरा देंगी। “जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं, और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा।” (18:21) झूठ, छल से भरी बातचीत, झूठी तारीफ और बिना सोचे-समझे जल्दबाज़ी में कुछ कह देने की निंदा की गयी है। सच बोलना और परमेश्‍वर का सम्मान करना ही बुद्धिमानी का मार्ग है।—10:11, 13, 14; 12:13, 14, 18, 19; 13:3; 14:3; 16:27-30; 17:27, 28; 18:6-8, 20; 26:28; 29:20; 31:26.

28 घमंड करने की बेवकूफी और नम्रता की ज़रूरत: घमंडी इंसान खुद को इतना ऊँचा दिखाता है जितना वह हकीकत में नहीं है, इसलिए वह औंधे मुँह गिरता है। जो मन में घमंडी हैं उनसे यहोवा घृणा करता है, मगर नम्र लोगों को बुद्धि, महिमा, धन और जीवन की आशीष देता है।—3:7; 11:2; 12:9; 13:10; 15:33; 16:5, 18, 19; 18:12; 21:4; 22:4; 26:12; 28:25, 26; 29:23.

29 आलस नहीं, मेहनत ज़रूरी: आलसी आदमी का वर्णन कई तरीकों से किया गया है। उसे चींटियों के पास जाकर सबक सीखना चाहिए और बुद्धिमान बनना चाहिए। मगर एक मेहनती इंसान के बारे में बताया गया है कि वह आबाद रहेगा!—1:32; 6:6-11; 10:4, 5, 26; 12:24; 13:4; 15:19; 18:9; 19:15, 24; 20:4, 13; 21:25, 26; 22:13; 24:30-34; 26:13-16; 31:24, 25.

30 सही किस्म की संगति: जो यहोवा का भय नहीं मानते उनके साथ संगति करना मूर्खता है। दुष्टों, बेवकूफों, गुस्सैल लोगों, झूठी कहानियाँ सुनानेवालों या पेटू लोगों की संगति ठीक नहीं है। इसलिए, बुद्धिमानों के साथ संगति कीजिए। आप और भी बुद्धिमान हो जाएँगे।—1:10-19; 4:14-19; 13:20; 14:7; 20:19; 22:24, 25; 28:7.

31 डाँट और सुधार की ज़रूरत: “यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है।” जो इस अनुशासन पर ध्यान देते हैं, वे आगे जाकर महिमा और जीवन पाएँगे। जो डाँट से बैर रखता है, उसे अपमान सहना पड़ेगा।—3:11, 12; 10:17; 12:1; 13:18; 15:5, 31-33; 17:10; 19:25; 29:1.

32 एक अच्छी पत्नी होने के बारे में सलाह: नीतिवचन में पत्नियों को बार-बार खबरदार किया गया है कि वे झगड़ालू न हों, और ऐसा कोई काम न करें जिससे परिवार की बदनामी हो। समझदार, काबिल और परमेश्‍वर का भय माननेवाली पत्नी के मुँह पर प्रेम और कृपा की बातें होती हैं; जिस किसी को ऐसी पत्नी मिलती है उस पर यहोवा का अनुग्रह होता है।—12:4; 18:22; 19:13, 14; 21:9, 19; 27:15, 16; 31:10-31.

33 बच्चों की परवरिश: बच्चों को बिना नागा परमेश्‍वर की आज्ञाएँ सिखाइए ताकि वे उन्हें ‘भूल न जाएँ।’ वे जब दूध-पीते बच्चे ही हों, तब से उन्हें यहोवा के बारे में सिखाइए। जब छड़ी का इस्तेमाल करना ज़रूरी हो तो बेझिझक इस्तेमाल करें। छड़ी से और डाँट से आप बच्चे के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं क्योंकि इससे वह बुद्धि पाएगा। जो लोग परमेश्‍वर के बताए तरीके से बच्चों की परवरिश करेंगे, उनके बच्चे बुद्धिमान होंगे और वे अपने माता-पिता के लिए गर्व और खुशी का कारण बनेंगे।—4:1-9; 13:24; 17:21; 22:6, 15; 23:13, 14, 22, 24, 25; 29:15, 17.

34 दूसरों की मदद करने की ज़िम्मेदारी: इस बात पर नीतिवचन की किताब में अकसर ज़ोर दिया गया है। बुद्धिमान को चाहिए कि दूसरों के फायदे के लिए अपना ज्ञान फैलाए। एक इंसान को कंगालों की मदद करने में भी दरियादिल होना चाहिए। ऐसा करके वह दरअसल यहोवा को उधार देता है जो इसे चुकाने की गारंटी देता है।—11:24-26; 15:7; 19:17; 24:11, 12; 28:27.

35 यहोवा पर भरोसा: नीतिवचन हमारी समस्याओं की जड़ तक पहुँचता है और सलाह देता है कि हम परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा रखें। हमें अपने हर काम में उसकी ओर देखना चाहिए। इंसान अपने लिए रास्ता खुद चुन सकता है, मगर यहोवा ही है जो उसके कदमों को सही दिशा में ले जा सकता है। यहोवा का नाम एक मज़बूत गढ़ है, जिसमें धर्मी भागकर शरण पाता है। यहोवा पर भरोसा रखिए और सही राह पाने के लिए उसके वचन का सहारा लीजिए।—3:1, 5, 6; 16:1-9; 18:10; 20:22; 28:25, 26; 30:5, 6.

36 खुद को और दूसरों को सिखाने और अनुशासन देने के लिए नीतिवचन की किताब कितनी फायदेमंद है! इंसानी रिश्‍तों का शायद ही ऐसा कोई पहलू हो जिस पर सलाह न दी गयी हो। क्या कोई परमेश्‍वर का सेवक, अपने संगी उपासकों से खुद को अलग कर लेता है? (18:1) क्या कोई बड़े ओहदे पर बैठनेवाला, दोनों पक्षों की बात सुनने से पहले ही किसी मामले पर फैसला सुना देता है? (18:17) क्या कोई खतरनाक किस्म का मज़ाक करता है? (26:18, 19) क्या किसी में पक्षपात करने की कमज़ोरी है? (28:21) चाहे दुकान सँभालनेवाला व्यापारी हो, खेत में काम करनेवाला किसान हो, पति-पत्नी हों या बच्चे, हर किसी के लिए यहाँ बढ़िया सलाह मौजूद है। माता-पिताओं को समझाया गया है कि वे कैसे अपने बच्चों की मदद कर सकते हैं ताकि वे अपनी राह में छिपे फंदों को पहचान सकें। बुद्धिमान जन, ऐसे लोगों को सिखा सकते हैं जिन्हें कोई तजुरबा नहीं है। हम चाहे कहीं भी रहते हों नीतिवचन की किताब हमारे लिए बहुत कारगर है; इस किताब की हिदायतें और सलाह कभी पुरानी नहीं पड़तीं। अमरीकी शिक्षक विलियम लायन फेल्प्स ने एक बार कहा था: “नीतिवचन की किताब आज सुबह की अखबार से भी ताज़ा जानकारी देती है।”a नीतिवचन की किताब ताज़ा-तरीन और व्यावहारिक है, और सिखाने के लिए फायदेमंद है क्योंकि यह ईश्‍वर-प्रेरित है।

37 इस किताब में, गलतियों को सुधारने के लिए सलाह देनेवाले ज़्यादातर नीतिवचन सुलैमान ने कहे थे। ये बहुत फायदेमंद हैं, क्योंकि ये वचन लोगों को सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की तरफ लौट आने में मदद करते हैं। यीशु मसीह ने भी ऐसे ही वचन कहे थे। मत्ती 12:42 कहता है कि वह “सुलैमान से भी बड़ा” है।

38 हमें कितना एहसानमंद होना चाहिए कि ऐसी श्रेष्ठ बुद्धि रखनेवाले यीशु मसीह को यहोवा ने अपने राज्य का वंश चुना है! उसी का सिंहासन “धार्मिकता के कारण स्थिर होगा,” और शांति का ऐसा युग शुरू करेगा जो सुलैमान के राज से कहीं ज़्यादा शानदार होगा। जब उसकी हुकूमत आएगी, तो उसके बारे में कहा जाएगा: “राजा की रक्षा कृपा और सच्चाई के कारण होती है, और कृपा करने से उसकी गद्दी संभलती है।” तब हमेशा-हमेशा के लिए इंसान पर एक धर्मी सरकार का राज होगा, जिसके बारे में नीतिवचन यह भी कहता है: “जो राजा कंगालों का न्याय सच्चाई से चुकाता है, उसकी गद्दी सदैव स्थिर रहती है।” इस तरह, हमें यह जानकर खुशी मिलती है कि नीतिवचन की किताब न सिर्फ हमारी राहों को रोशन करती है ताकि हमें ज्ञान, बुद्धि, समझ और हमेशा की ज़िंदगी मिले, बल्कि इससे भी बढ़कर यह किताब दिखाती है कि सिर्फ यहोवा ही सच्ची बुद्धि देनेवाला है और वह अपने राज्य के वारिस, मसीह यीशु के ज़रिए हमें ऐसी बुद्धि देता है। नीतिवचन की किताब, परमेश्‍वर के राज्य के लिए हमारी कदरदानी को और बढ़ाती है और धार्मिकता के उन सिद्धांतों की समझ देती है जिनके मुताबिक यह राज्य आज हुकूमत कर रहा है।—नीति. 25:5, NHT; 16:12; 20:28; 29:14.

[फुटनोट]

a मसीही विश्‍वास का खज़ाना (अँग्रेज़ी) सन्‌ 1949, स्टूबर और क्लार्क द्वारा संपादित, पेज 48.

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