बाइबल की किताब नंबर 22—श्रेष्ठगीत
लेखक: सुलैमान
लिखने की जगह: यरूशलेम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु.पू. 1020
“दुनिया वह दिन देखने के काबिल न थी, जिस दिन इस्राएल को यह लाजवाब गीत दिया गया।” यह बात पहली सदी के एक यहूदी धर्म-गुरु अकीबा ने श्रेष्ठगीत की तारीफ में कही थी।a इस किताब का शीर्षक इसके इन शुरूआती शब्दों से लिया गया है: “श्रेष्ठगीत जो सुलैमान का है।” इब्रानी भाषा में इसके शीर्षक का शब्द-ब-शब्द अनुवाद है “गीतों का गीत,” जो दिखाता है कि यह गीत श्रेष्ठता में सर्वोत्तम है। यह गीतों का कोई संग्रह नहीं है, बल्कि एक ही गीत है, “ऐसा गीत जो हर तरह से मुकम्मल है, और अब तक दुनिया में रचे गए गीतों में सबसे बेमिसाल।”b
2 इस किताब की शुरूआत से पता चलता है कि यरूशलेम का राजा सुलैमान इसका गीतकार था। इस बेमिसाल इब्रानी कविता की रचना करने के लिए सुलैमान हर तरह से काबिल था। (1 राजा 4:32) यह एक आदर्श कविता है जिसका गहरा अर्थ है और जिसमें खूबसूरती का बखान सुनहरे शब्दों से किया गया है। इसमें पूरब का जो माहौल पेश किया गया है, उसे अगर पढ़नेवाला मन की आँखों से देख सके तो वह इस गीत के बोल और अच्छी तरह समझ पाएगा। (श्रेष्ठ. 4:11, 13; 5:11; 7:4) यह गीत बड़े ही अनोखे मौके पर लिखा गया था। महान राजा सुलैमान जिसकी बुद्धि और ताकत का कोई मुकाबला नहीं था और जिसके धन और ऐश्वर्य की चमक-दमक देखकर शीबा की रानी भी तारीफ करने से खुद को रोक न पायी थी, वही वैभवशाली राजा सुलैमान गाँव की एक सीधी-सादी शूलेम्मिन लड़की का दिल न जीत सका, जिससे वह प्यार करने लगा था। वह लड़की एक चरवाहे से प्यार करती थी और उसका प्यार इतना अटल था कि राजा को हार माननी पड़ी। इसलिए, इस किताब को ‘सुलैमान के अधूरे प्यार का गीत’ कहना ज़्यादा सही होगा। यहोवा परमेश्वर ने उसे यह गीत लिखने को इसलिए प्रेरित किया ताकि आनेवाले युगों में बाइबल पढ़नेवाले इससे फायदा पा सकें। उसने यह गीत यरूशलेम में लिखा था, शायद सा.यु.पू. 1020 के आस-पास, जब मंदिर को बने कुछ साल बीत चुके थे। जिस वक्त सुलैमान ने यह गीत लिखा, तब तक उसकी “साठ रानियां और अस्सी रखेलियां” थीं, जबकि उसकी हुकूमत के आखिर में ‘उसकी सात सौ रानियां और तीन सौ रखेलियां हो गईं थीं।’—श्रेष्ठ. 6:8; 1 राजा 11:3.
3 श्रेष्ठगीत किताब बाइबल के संग्रह का हिस्सा है या नहीं, इस बारे में पुराने ज़माने में कभी कोई सवाल नहीं उठा। इसे मसीही युग के बहुत पहले से इब्रानी संग्रह का एक बेहद ज़रूरी और ईश्वर-प्रेरित हिस्सा माना जाता था। यह किताब यूनानी सेप्टुआजेंट में भी शामिल की गयी थी। जोसीफस ने भी पवित्र किताबों की अपनी सूची में इसे शामिल किया था। इस वजह से, यह साबित करने के लिए कि श्रेष्ठगीत बाइबल संग्रह का एक हिस्सा है, वही सबूत पेश किए जा सकते हैं जो इब्रानी शास्त्र की दूसरी किताबों के लिए आम तौर पर दिए जाते हैं।
4 लेकिन, कुछ लोगों ने इस किताब के बाइबल संग्रह में होने पर सवाल उठाया है, क्योंकि इस किताब के इब्रानी पाठ में परमेश्वर का ज़िक्र कहीं नहीं आता। लेकिन परमेश्वर का ज़िक्र न होने का मतलब यह नहीं कि यह किताब बाइबल संग्रह में शामिल नहीं की जा सकती, ठीक जैसे एक किताब में “परमेश्वर” शब्द का होना उसे बाइबल संग्रह का हिस्सा नहीं बना देता। देखा जाए तो परमेश्वर का नाम अध्याय 8 की आयत 6 (NHT) में मौजूद है, जहाँ प्रेम को ‘यहोवा की लपटें’ कहा गया है। यह किताब बेशक उन किताबों में से एक है, जिन्हें सच करार देते हुए यीशु मसीह ने कहा था: “तुम पवित्रशास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है।” (यूह. 5:39) यही नहीं, इस किताब में एक-दूसरे के लिए सच्चे प्यार की बड़े ज़बरदस्त शब्दों में बहुत ही सुंदर तसवीर पेश की गयी है, ऐसा प्यार आध्यात्मिक मायने में मसीह और उसकी “दुल्हिन” के बीच है, इस वजह से बाइबल के संग्रह में श्रेष्ठगीत किताब की अपनी एक खास जगह है।—प्रका. 19:7, 8; 21:9.
क्यों फायदेमंद है
16 इस प्रेमगीत में कौन-से सबक सिखाए गए हैं, जिससे परमेश्वर का एक भक्त आज फायदा पा सकता है? यह किताब साफ दिखाती है कि परमेश्वर के सिद्धांतों को मानने में विश्वासयोग्यता, वफादारी और खराई बनाए रखना कितना ज़रूरी है। यह गीत सिखाता है कि एक सच्चे प्रेमी की अच्छाई और उसकी मासूमियत कितनी खूबसूरत होती है। यह सिखाती है कि सच्चे प्यार में इतना दम होता है कि कोई उसे हरा नहीं सकता, मिटा नहीं सकता, खरीद नहीं सकता। जब जवान मसीही लड़कों और लड़कियों, साथ ही पति-पत्नी के सामने गलत काम करने की आज़माइशें आती हैं, तब खराई की इस बेहतरीन मिसाल पर ध्यान देने से उन्हें अपनी खराई बनाए रखने में काफी मदद मिल सकती है।
17 मगर यह ईश्वर-प्रेरित गीत पूरी मसीही कलीसिया के लिए भी बहुत फायदेमंद है। पहली सदी के मसीही इसे ईश्वर-प्रेरित पवित्रशास्त्र का एक हिस्सा मानते थे। उनमें से एक था, प्रेरित पौलुस जिसने लिखा: “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (रोमि. 15:4) पौलुस ने यह भी लिखा: “मैं तुम्हारे विषय में ईश्वरीय धुन लगाए रहता हूं, इसलिये कि मैं ने एक ही पुरुष से तुम्हारी बात लगाई है, कि तुम्हें पवित्र कुंवारी की नाईं मसीह को सौंप दूं।” यह बात शायद पौलुस ने उस शूलेम्मी लड़की को ही ध्यान में रखकर लिखी होगी जो सिर्फ चरवाहे से प्यार करती थी। पौलुस ने यह भी लिखा कि जैसे एक पति अपनी पत्नी से प्यार करता है, वैसे ही मसीह, अपनी कलीसिया से प्यार करता है। (2 कुरि. 11:2; इफि. 5:23-27) यीशु मसीह, अपनी कलीसिया का न सिर्फ अच्छा चरवाहा है, बल्कि उनका राजा भी है। वह अपने अभिषिक्त चेलों को यकीन दिलाता है कि वे स्वर्ग में उसके साथ ‘ब्याहे’ जाने की उम्मीद कर सकते हैं और इस तरह ऐसी खुशी पाने की आस लगा सकते हैं जो बयान से बाहर है।—प्रका. 19:9; यूह. 10:11.
18 जी हाँ, मसीह यीशु के ये अभिषिक्त चेले, शूलेम्मी लड़की की मिसाल से काफी कुछ सीख सकते हैं। उन्हें भी अपने प्यार में वफादारी निभानी चाहिए, दुनिया की दौलत की चमक-दमक के फंदे में नहीं फँसना चाहिए, और खराई बनाए रखते हुए सँभले रहना चाहिए ताकि वे उस दिन को देख सकें जब उन्हें इनाम दिया जाएगा। उन्होंने अपना मन स्वर्ग की आत्मिक बातों पर लगाया है और वे ‘पहले राज्य की खोज करते’ हैं। उनका चरवाहा, यीशु मसीह उनके लिए जो प्यार दिखाता है उसे वे खुशी से कबूल करते हैं। उन्हें यह जानकर बेहद खुशी होती है कि उनका यह अज़ीज़ प्रेमी चाहे उन्हें दिखायी न देता हो, फिर भी उनके बहुत करीब है और उन्हें हिम्मत दिला रहा है कि वे संसार को जीत लें। अगर उन्हें अपने चरवाहे और राजा से ऐसा प्यार है जो ‘यहोवा की लपटों’ जैसा ज्वलंत है और कभी बुझ नहीं सकता, तो वे उसके संगी वारिसों के नाते, स्वर्ग में महिमा से भरपूर राज्य में उसके साथ जा मिलेंगे। इस तरह याह का नाम पवित्र किया जाएगा!—मत्ती 6:33; यूह. 16:33.
[फुटनोट]
a यहूदियों का मिशनाह (यादायिम 3:5)।
b क्लार्क की कॉमेंट्री, भाग 3, पेज 841.