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अध्याय 32

यकीन के साथ बोलना

आपको क्या करने की ज़रूरत है?

आपके बात करने के तरीके से आपका यह यकीन ज़ाहिर होना चाहिए कि आप जो कह रहे हैं, वह बिलकुल सच और बेहद ज़रूरी भी है।

इसकी क्या अहमियत है?

आपका पक्का विश्‍वास देखकर दूसरों को आपकी बातों पर ध्यान देने का और उसके मुताबिक कोई कदम उठाने का बढ़ावा मिलेगा।

जब कोई पूरे यकीन के साथ बोलता है, तो दूसरे समझ जाते हैं कि वह जो कह रहा है, उस पर उसे पूरा-पूरा विश्‍वास है। प्रेरित पौलुस, प्रचार में ऐसे ही यकीन के साथ बात करता था। थिस्सलुनीके के जो लोग मसीही बन गए थे, उनको उसने लिखा: “हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में बरन . . . बड़े निश्‍चय के साथ पहुंचा है।” (1 थिस्स. 1:5) पौलुस का यह निश्‍चय, यह यकीन, न सिर्फ उसके बोलने के अंदाज़ से बल्कि उसके जीने के तरीके से भी ज़ाहिर होता था। उसी तरह जब हम बाइबल की सच्चाइयाँ सिखाते हैं, तो यह ज़ाहिर होना चाहिए कि हमें उन पर पक्का यकीन है।

यकीन के साथ बोलने और किसी बात पर अड़े रहने, झूठा दावा करने या अक्खड़ होने के बीच फर्क है। दरअसल जब एक इंसान, परमेश्‍वर के वचन में लिखी बातें यकीन के साथ बताता है, तो दूसरे देख सकते हैं कि उसका विश्‍वास कितना मज़बूत है।—इब्रा. 11:1.

यकीन के साथ बोलने के मौके। प्रचार में लोगों को साक्षी देते वक्‍त, पूरे यकीन के साथ बोलना ज़रूरी है। अकसर लोग आपके संदेश पर जितना ध्यान देते हैं, उतना ही वे आपके बात करने के तरीके पर भी गौर करते हैं। वे महसूस कर सकते हैं कि आप उन्हें जो बता रहे हैं, उस पर आपको सचमुच यकीन है या नहीं। शब्दों से ज़्यादा आपका यकीन बड़े ही ज़बरदस्त ढंग से उन्हें यह एहसास दिलाएगा कि आप उन्हें एक बेहद ज़रूरी संदेश दे रहे हैं।

जब हम अपने मसीही भाई-बहनों के सामने कोई भाग पेश करते हैं, तब भी हमें यकीन के साथ बात करने की ज़रूरत है। प्रेरित पतरस ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से अपनी पहली पत्री इसलिए लिखी ताकि वह अपने भाइयों को ‘प्रोत्साहित करे और इस बात की साक्षी दे कि यही परमेश्‍वर का सच्चा अनुग्रह है।’ उसने भाइयों से मिन्‍नत की कि इसी अनुग्रह में “दृढ़ बने रहो।” (1 पत. 5:12, NHT) प्रेरित पौलुस ने भी रोम की कलीसिया को लिखी पत्री में पूरे यकीन के साथ अपनी बात कही और इसका उन पर काफी अच्छा असर पड़ा। पौलुस ने लिखा: “मैं निश्‍चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्‍वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” (रोमि. 8:38, 39) पौलुस ने बहुत ही बढ़िया तरीके से समझाया कि दूसरों को प्रचार करने की अहमियत कितनी बड़ी है और उसने जिस तरह जोश के साथ प्रचार किया उससे यह साफ ज़ाहिर हुआ कि खुद उसे इस बात का एहसास था कि यह काम कितना ज़रूरी है। (प्रेरि. 20:18-21; रोमि. 10:9, 13-15) आज जब मसीही प्राचीन, परमेश्‍वर के वचन से सिखाते हैं, तो यह ज़ाहिर होना चाहिए कि उन्हें अपनी बात पर पूरा यकीन है।

माता-पिता जब अपने बच्चों के साथ अध्ययन करते हैं या दूसरे मौकों पर उनके साथ आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करते हैं, तब उन्हें यकीन के साथ अपनी बात कहनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि माता-पिता खुद अपने दिल में, परमेश्‍वर और उसके मार्गों के लिए गहरा लगाव पैदा करें। तभी वे उनके बारे में पूरे दिल से और यकीन के साथ बच्चों को बता सकेंगे, क्योंकि “जो मन में भरा है वही . . . मुंह पर आता है।” (लूका 6:45; व्यव. 6:5-7) ऐसा यकीन होने पर माता-पिता, बच्चों के सामने “निष्कपट विश्‍वास” की मिसाल भी कायम करेंगे।—2 तीमु. 1:5.

खासकर जब आपके विश्‍वास पर सवाल उठाया जाता है, तब आपको यकीन के साथ बात करने की ज़रूरत है। हो सकता है जब आप किसी त्योहार या समारोह में हिस्सा नहीं लेते, तो आपके स्कूल का कोई साथी, टीचर या साथ काम करनेवाला ताज्जुब करे। ऐसे में अगर आप अच्छी दलीलें देकर दृढ़-विश्‍वास के साथ उसे जवाब देंगे, तो शायद वह बाइबल पर आधारित आपके फैसले को स्वीकार करेगा। दूसरी तरफ, अगर कोई आपको बेईमानी करने, ड्रग्स लेने या अनैतिक लैंगिक संबंध रखने जैसे गलत कामों के लिए लुभाता है, तो आपको क्या करना चाहिए? ऐसे में आपको उसे साफ-साफ बताना चाहिए कि किसी भी हाल में आपको वह काम करना गवारा नहीं होगा और वह चाहे कितना भी ज़ोर लगा ले, आप अपना फैसला बदलनेवाले नहीं हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि आप उसकी पेशकश को ठुकराते वक्‍त पूरे यकीन के साथ बोलें। जब पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ को अनैतिक संबंध रखने के लिए फुसलाया, तो यूसुफ ने साफ इनकार करते हुए कहा: “मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्‍वर का अपराधी क्योंकर बनूं?” मगर जब वह स्त्री अपनी ज़िद्द पर अड़ी रही, तो यूसुफ भागकर उस घर से बाहर निकल गया।—उत्प. 39:9, 12.

यकीन कैसे ज़ाहिर किया जाता है। आप जिस तरह के शब्द इस्तेमाल करते हैं, उनसे काफी हद तक आपका यकीन ज़ाहिर होता है। अकसर यीशु, कोई खास बात बताने से पहले कहता था: “मैं तुझ से सच सच कहता हूं।” (यूह. 3:3, 5, 11; 5:19, 24, 25) पौलुस ने अपनी बात पर विश्‍वास ज़ाहिर करने के लिए ऐसे शब्द इस्तेमाल किए जैसे: “मुझ को यक़ीन है,” “मैं जानता हूं, और प्रभु यीशु से मुझे निश्‍चय हुआ है” और “मैं सच कहता हूं, झूठ नहीं बोलता।” (रोमि. 8:38, हिन्दुस्तानी बाइबल; 14:14; 1 तीमु. 2:7) यहोवा ने भी अपने वचन के पूरा होने पर यकीन दिलाने के लिए, कभी-कभी अपने भविष्यवक्‍ताओं को इस तरह के ज़बरदस्त वाक्य कहने के लिए प्रेरित किया: “वह निश्‍चय पूरी होगी।” (हब. 2:3) इन भविष्यवाणियों के बारे में बात करते वक्‍त आप भी ऐसे ही ज़ोरदार शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर आप खुद पर नहीं बल्कि यहोवा पर भरोसा रखेंगे और दूसरों से आदर के साथ बात करेंगे, तो आप भी ऐसे शब्द इस्तेमाल करेंगे जिनसे ज़ाहिर होगा कि आपको पक्का यकीन है और आपका विश्‍वास वाकई मज़बूत है।

यकीन, एक और तरीके से ज़ाहिर होता है, जब आप उत्साह के साथ और जोश से बात करते हैं। इसमें आपके हाव-भाव, चेहरे के भाव और आपके शरीर की मुद्रा, सभी अपना-अपना काम करते हैं, हालाँकि हर किसी का अंदाज़ अपना-अपना होता है। भले ही आप स्वभाव से शर्मीले हों या बहुत धीमा बोलते हों, लेकिन अगर आपको पूरा यकीन है कि आप जो कह रहे हैं वह सही है और उसके बारे में दूसरों को भी जानने की ज़रूरत है, तो आपका दृढ़-विश्‍वास ज़रूर दिखायी देगा।

मगर हम यकीन के साथ जो भी कहें, वह हमारे दिल से निकलना चाहिए। अगर लोगों को लगे कि हम दिल से नहीं बोल रहे हैं, बल्कि सिर्फ यकीन के साथ बोलने का ढोंग कर रहे हैं, तो वे शायद इस नतीजे पर पहुँचेंगे कि हमारा संदेश इतना ज़रूरी नहीं है। इसलिए सबसे ज़रूरी है, सहज रहना। अगर आप एक बड़े समूह के सामने बात कर रहे हैं, तो आपको शायद ज़ोर से और ज़्यादा दम लगाकर बोलने की ज़रूरत होगी। लेकिन आपकी कोशिश रहनी चाहिए, दिल से और सहजता से बात करना।

यकीन ज़ाहिर करने में मदद। यकीन के साथ बोलना इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी जानकारी के बारे में कैसा महसूस करते हैं, इसलिए अपने भाग की अच्छी तैयारी करना ज़रूरी है। किसी साहित्य से जानकारी निकालकर उसे यूँ ही दोहराना काफी नहीं। आपको चाहिए कि जानकारी को इतनी अच्छी तरह समझ लें कि आप उसे अपने शब्दों में दूसरों को बता सकें। आपको पूरा यकीन होना चाहिए कि आप जो बताने जा रहे हैं वह सच है और उससे सुननेवालों को फायदा होगा। इसका मतलब है कि अपने भाग की तैयारी करते वक्‍त, आपको यह भी सोचना होगा कि सुननेवालों के हालात क्या हैं, जिस विषय पर आप बात करेंगे उसके बारे में उन्हें कितनी जानकारी है और वे उसके बारे में कैसा महसूस करते होंगे।

जब हम प्रवाह के साथ अपना भाग पेश करेंगे, तो लोग आसानी से समझ पाएँगे कि हमें अपनी बात पर यकीन है। इसलिए, न सिर्फ अच्छी जानकारी इकट्ठी करने के लिए बल्कि उसे अच्छे ढंग से बताने के लिए भी मेहनत कीजिए। अपनी जानकारी के ऐसे मुद्दों पर खास ध्यान दीजिए जिन्हें आपको ज़्यादा उत्साह के साथ बताना है। ऐसा करने से, इन्हें बताते वक्‍त आपको बार-बार नोट्‌स्‌ देखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। इसके अलावा, अपनी कोशिशों को सफल बनाने के लिए यहोवा से प्रार्थना करना न भूलें। तब आप ‘हमारे परमेश्‍वर से साहस प्राप्त’ कर पाएँगे और इस तरह बोल पाएँगे जिससे आपका पूरा यकीन ज़ाहिर हो कि आपका संदेश सच है और बेहद ज़रूरी भी है।—1 थिस्स. 2:2.

यकीन कैसे ज़ाहिर करें

  • ऐसी भावनाओं के साथ बोलिए जो आपके विषय के मुताबिक सही लगें।

  • ऐसी भाषा इस्तेमाल कीजिए जिससे आपका यकीन ज़ाहिर हो।

  • अपनी जानकारी का तब तक अच्छी तरह अध्ययन कीजिए जब तक कि आप उसे ठीक-ठीक समझ नहीं जाते और उसे अपने शब्दों में बोल नहीं पाते। आपको पूरा-पूरा यकीन होना चाहिए कि आप जो बता रहे हैं, वह सच है और उससे आपके सुननेवालों को ज़रूर फायदा होगा।

अभ्यास: बाइबल में इन वृत्तांतों का अध्ययन कीजिए: निर्गमन 14:10-14; 2 राजा 5:1-3; दानिय्येल 3:13-18; प्रेरितों 2:22-36. इन आयतों में बताए मौकों पर, परमेश्‍वर के सेवकों ने अपना यकीन कैसे ज़ाहिर किया? उनके यकीन से बोलने की वजह क्या थी? आप भी ऐसे ही यकीन के साथ कैसे बोल सकते हैं?

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