वह संदेश जिसका ऐलान हमें हर हाल में करना चाहिए
यहोवा ने हमें एक ज़िम्मेदारी और एक महान काम भी सौंपा है। यहोवा ने कहा: “तुम ही मेरे साक्षी हो, . . . मैं ही ईश्वर हूं।” (यशा. 43:12, 13) हम सिर्फ परमेश्वर पर विश्वास करनेवाले नहीं हैं, बल्कि साक्षी हैं जो परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे उसके वचन की अहम सच्चाइयों के बारे में सभी लोगों को गवाही देते हैं। आज यहोवा ने हमें कौन-सा संदेश देने का काम सौंपा है? यह संदेश यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह और मसीहाई राज्य के बारे में है।
“परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर”
मसीही युग शुरू होने से बहुत समय पहले, यहोवा ने वफादार पुरुष, इब्राहीम को एक ऐसे इंतज़ाम के बारे में बताया जिसके ज़रिए “पृथ्वी की सारी जातियां” खुद को धन्य मानेंगी। (उत्प. 22:18) उसने सुलैमान को भी एक ऐसी ज़रूरी माँग लिखने की प्रेरणा दी जिसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी हर इंसान पर है: “परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है।” (सभो. 12:13) लेकिन सभी देशों के लोग, इन बातों के बारे में कैसे जान पाएँगे?
हालाँकि हर ज़माने में ऐसे लोग रहे हैं, जो परमेश्वर के वचन पर विश्वास रखते थे, मगर बाइबल बताती है कि संसार-भर की सभी जातियों तक सुसमाचार पहुँचाने के लिए बड़े ज़ोरों से गवाही देने का काम “प्रभु के दिन” में ही होना था। यह दिन सन् 1914 में शुरू हुआ। (प्रका. 1:10) प्रकाशितवाक्य 14:6, 7 में भविष्यवाणी की गयी है कि “प्रभु के दिन” में, स्वर्गदूतों की निगरानी में “हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को” संदेश सुनाया जाएगा। उन्हें उकसाया जाएगा: “परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है, और उसका भजन करो, जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।” परमेश्वर की यह मरज़ी है कि यह संदेश लोगों तक पहुँचाया जाए। और इस काम में हिस्सा लेने का गौरव, हमें मिला है।
“सच्चा परमेश्वर।” “तुम मेरे साक्षी हो,” यह ऐलान यहोवा ने ऐसे हालात में किया जब इस विषय पर विवाद चल रहा था कि सच्चा परमेश्वर कौन है। (यशा. 43:10) जो संदेश लोगों तक पहुँचाना है, वह यह नहीं है कि लोगों का अपना एक धर्म होना चाहिए और उन्हें किसी परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए। इसके बजाय, उनके लिए यह सीखना ज़रूरी है कि स्वर्ग और पृथ्वी का बनानेवाला सिर्फ एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। (यशा. 45:5, 18, 21, 22; यूह. 17:3) सिर्फ सच्चा परमेश्वर ही हमारे भविष्य के बारे में ठीक-ठीक बता सकता है। हमें लोगों को यह बताने का सुनहरा मौका मिला है कि यहोवा का वचन बीते समय में पूरा हुआ है और इसी आधार पर हम भरोसा कर सकते हैं कि भविष्य के बारे में उसके सभी वादे भी ज़रूर पूरे होंगे।—यहो. 23:14; यशा. 55:10, 11.
यह सच है कि हम जिन लोगों को गवाही देते हैं, उनमें से ज़्यादातर जन दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं या किसी भी ईश्वर को नहीं मानते। ऐसे में अगर हम चाहते हैं कि लोग हमारी बात सुनें, तो हमें ऐसे विषयों पर बातचीत शुरू करनी चाहिए जिनमें उन्हें भी दिलचस्पी हो। प्रेरितों 17:22-31 में दर्ज़ की गयी मिसाल से हम सीख सकते हैं कि यह कैसे किया जा सकता है। गौर कीजिए कि हालाँकि पौलुस ने व्यवहार-कुशलता के साथ बात की, फिर भी उसने यह स्पष्ट बताया कि सभी लोगों को उस परमेश्वर को जवाब देना है जिसने आकाश और धरती को बनाया है।
परमेश्वर के नाम का ऐलान करना। सच्चे परमेश्वर की पहचान उसके नाम से कराइए। यहोवा को अपना नाम प्यारा है। (निर्ग. 3:15; यशा. 42:8) वह चाहता है कि लोग उसके नाम को जानें। उसने अपने गौरवशाली नाम को बाइबल में 7,000 से भी ज़्यादा बार लिखवाया है। लोगों को इस नाम के बारे में बताने की ज़िम्मेदारी हमारी है।—व्यव. 4:35.
सभी इंसानों का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वे यहोवा का नाम जानें और विश्वास के साथ उसे पुकारें। (योए. 2:32; मला. 3:16; 2 थिस्स. 1:8) लेकिन आज ज़्यादातर लोग यहोवा को नहीं जानते। यहाँ तक कि भारी तादाद में लोग जो दावा करते हैं कि वे बाइबल में बताए परमेश्वर की ही उपासना करते हैं, असल में वे उसे नहीं जानते। हालाँकि उनके पास बाइबल है और वे उसे पढ़ते भी हैं, मगर फिर भी उन्हें परमेश्वर का नाम नहीं मालूम क्योंकि आज के ज़्यादातर बाइबल अनुवादों में से यह नाम निकाल दिया गया है। यहोवा के नाम के बारे में वे सिर्फ इतना ही जानते हैं कि उनके धर्म-गुरुओं ने उन्हें यह नाम ज़बान पर लाने से मना किया है।
हम, लोगों को परमेश्वर के नाम से कैसे वाकिफ करा सकते हैं? ऐसा करने का सबसे असरदार तरीका है, सीधे बाइबल से उन्हें यह नाम दिखाना—हो सके तो उनकी अपनी बाइबल से। कुछ अनुवादों में यह नाम हज़ारों बार इस्तेमाल किया गया है। कुछ अनुवादों में यह सिर्फ भजन 83:18 या निर्गमन 6:3-6 में, या फिर निर्गमन 3:14, 15, या 6:3 के लिए फुटनोट में पाया जाता है। जहाँ मूल पाठ में परमेश्वर का अपना नाम था, कई अनुवादों में वहाँ “प्रभु” और “परमेश्वर” जैसी उपाधियाँ इस्तेमाल की गयी हैं और इन्हें बड़े या मोटे अक्षरों में लिखा गया है। अगर किसी नए अनुवाद में कहीं पर भी परमेश्वर का नाम नहीं आता, तो आपको बाइबल का कोई पुराना अनुवाद इस्तेमाल करके समझाना होगा कि यहोवा का नाम बाइबल से निकाल दिया गया है। कुछ देशों में इस नाम का ज़िक्र भजनों में या किसी इमारत पर की गयी नक्काशी में मिलता है, इसलिए वह दिखाकर भी आप उस नाम से लोगों को वाकिफ करा सकते हैं।
यहाँ तक कि जो लोग दूसरे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, उन्हें भी अच्छी तरह समझाने के लिए हम बाइबल से यिर्मयाह 10:10-13 पढ़कर सुना सकते हैं। इन आयतों में न सिर्फ यहोवा का नाम बताया गया है, बल्कि यह भी साफ-साफ समझाया गया है कि यहोवा किस तरह का परमेश्वर है।
ईसाईजगत की तरह सिर्फ “परमेश्वर” और “प्रभु” जैसी उपाधियों का इस्तेमाल करके लोगों से यहोवा नाम मत छिपाएँ। इसका मतलब यह नहीं कि आपको हर किसी से बातचीत शुरू करते समय यहोवा के नाम का ज़िक्र करना चाहिए। कुछ लोगों के मन में पहले से गलत धारणा होने की वजह से यहोवा का नाम सुनते ही वे बातचीत रोक सकते हैं। इसलिए पहले बातचीत के लिए अच्छी नींव डालिए और फिर परमेश्वर का नाम बेझिझक इस्तेमाल कीजिए।
यह बात गौर करने लायक है कि बाइबल में कुल मिलाकर जितनी बार “प्रभु” और “परमेश्वर” जैसी उपाधियाँ इस्तेमाल हुई हैं, उनसे भी ज़्यादा बार यहोवा का नाम इस्तेमाल हुआ है। यह सच है कि बाइबल के लेखकों ने परमेश्वर के नाम का ज़िक्र हर वाक्य में नहीं किया है। उन्होंने इस नाम का इस्तेमाल उन सभी जगहों में बड़े आदर के साथ किया जहाँ उन्हें यह सहज और ठीक लगा। यह हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है जिस पर हमें चलना चाहिए।
यह नाम धारण करनेवाली हस्ती। परमेश्वर का अपना एक नाम है, यही अपने आप में एक बहुत बड़ी, बहुत गहरी सच्चाई है, लेकिन उसे जानने की यह तो बस शुरूआत ही है।
यहोवा से प्यार करने और विश्वास के साथ उसे पुकारने के लिए लोगों को यह जानने की ज़रूरत है कि वह किस तरह का परमेश्वर है। जब यहोवा ने सीनै पर्वत पर मूसा को अपना नाम बताया, तो उसने न सिर्फ “यहोवा” नाम दोहराया बल्कि अपने कुछ बेमिसाल गुणों के बारे में भी बताया। (निर्ग. 34:6, 7) हमें भी दूसरों को परमेश्वर के नाम के साथ-साथ उसके गुणों के बारे में बताना चाहिए।
आप जब किसी नए व्यक्ति को साक्षी देते हैं, या कलीसिया में भाषण देते हैं, तो राज्य की आशीषों के बारे में बताते वक्त यह भी बताइए कि इनसे हम उस परमेश्वर के बारे में क्या सीखते हैं, जिसने ये वादे किए हैं। यहोवा की आज्ञाओं के बारे में बताते समय, इस बात पर ज़ोर दीजिए कि इनसे उसकी बुद्धि और प्रेम कैसे ज़ाहिर होते हैं। यह स्पष्ट बताइए कि यहोवा की माँगें हमारे लिए बोझ नहीं बल्कि ये हमारे फायदे के लिए दी गयी हैं। (यशा. 48:17, 18; मीका 6:8) बताइए कि जब भी यहोवा ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया, तो इससे किस तरह उसकी शख्सियत, उसके स्तरों और उसके उद्देश्य के बारे में कुछ-न-कुछ ज़ाहिर हुआ। इस बात की तरफ उनका ध्यान दिलाइए कि यहोवा अपने अलग-अलग गुण दिखाने में कैसे सही ताल-मेल रखता है। खुद आप यहोवा के बारे में कैसा महसूस करते हैं, यह लोगों को बताइए। यहोवा के लिए आपका प्यार देखकर दूसरों में भी उसके लिए ऐसा ही प्यार जागेगा।
आज हम लोगों को जो ज़रूरी संदेश देते हैं, उसके मुताबिक सभी लोगों को परमेश्वर का भय मानना चाहिए। हम जो कहते हैं, उससे हमें ऐसा ईश्वरीय भय पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए। इस भय का मतलब है, यहोवा के लिए गहरी श्रद्धा और विस्मय की भावना होना। (भज. 89:7) परमेश्वर का भय मानने का यह भी मतलब है कि हम हमेशा याद रखें कि यहोवा सबसे बड़ा न्यायी है और उसकी मंज़ूरी पाने पर ही हमारा भविष्य टिका हुआ है। (लूका 12:5; रोमि. 14:12) इसलिए, भय मानने के साथ-साथ हम परमेश्वर से बेहद प्यार भी करते हैं, और इसी वजह से हमारे अंदर उसे खुश करने की ज़बरदस्त इच्छा पैदा होती है। (व्यव. 10:12, 13) परमेश्वर का भय हमें बुराई से घृणा करने, उसकी आज्ञाओं को मानने और पूरे दिल से उसकी उपासना करने की भी प्रेरणा देता है। (व्यव. 5:29; 1 इति. 28:9; नीति. 8:13) यह हमें परमेश्वर की सेवा करने के साथ-साथ संसार की चीज़ों से लगाव रखने से बचाता है।—1 यूह. 2:15-17.
परमेश्वर का नाम—एक “दृढ़ गढ़” है। जो लोग सही मायनों में यहोवा को जान लेते हैं, उन्हें बड़ी सुरक्षा मिलती है। यहोवा, उनकी हिफाज़त सिर्फ इसलिए नहीं करता कि वे उसका नाम इस्तेमाल करते हैं या उसके कुछ गुण मुँहज़बानी बता सकते हैं। बल्कि इसकी वजह यह है कि वे यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं। ऐसे लोगों के बारे में नीतिवचन 18:10 (NHT) कहता है: “यहोवा का नाम एक दृढ़ गढ़ है; धर्मी उस में भागकर सुरक्षित रहता है।”
जब भी मौका मिले, यहोवा पर भरोसा रखने का दूसरों को बढ़ावा दीजिए। (भज. 37:3; नीति. 3:5, 6) यहोवा पर ऐसा भरोसा रखना दिखाएगा कि हमें उस पर और उसके वादों पर विश्वास है। (इब्रा. 11:6) जो लोग यह जानकर ‘[यहोवा] का नाम लेते हैं’ कि वही सारे विश्व का महाराजाधिराज है, और उसके मार्गों से प्रेम करते हैं और पूरे दिल से मानते हैं कि सच्चा उद्धार सिर्फ वही दिला सकता है, ऐसे लोगों से परमेश्वर का वचन यह पक्का वादा करता है कि उनका उद्धार ज़रूर होगा। (रोमि. 10:13, 14) जब आप दूसरों को सिखाते हैं, तो उन्हें अपनी ज़िंदगी के हर दायरे में ऐसा ही विश्वास कायम करने में मदद दीजिए।
आज बहुत-से लोग, समस्याओं के ऐसे बवंडर में फँसे हैं कि उससे बाहर निकलने का उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझता। इसलिए उन्हें उकसाइए कि वे यहोवा के मार्गों के बारे में सीखें, उस पर भरोसा रखें और जो सीखते हैं, उस पर अमल करें। (भज. 25:5) उन्हें बढ़ावा दीजिए कि वे मन लगाकर परमेश्वर से मदद के लिए बिनती करें और उसकी आशीषों के लिए उसका धन्यवाद करें। (फिलि. 4:6, 7) जब वे सिर्फ बाइबल से पढ़कर नहीं बल्कि अपनी ज़िंदगी में यहोवा के वादों को पूरा होते देखकर, उसे करीब से जानने लगेंगे, तो वे खुद यह महसूस करेंगे कि यहोवा और उसके नाम की महानता को सही मायनों में समझने से कैसे उनकी सच्ची हिफाज़त होती है।—भज. 34:8; यिर्म. 17:7, 8.
लोगों को यह समझाने के हर मौके का अच्छा इस्तेमाल कीजिए कि सच्चे परमेश्वर, यहोवा का भय मानने और उसकी आज्ञाओं का पालन करने में क्यों अक्लमंदी है।
‘यीशु की गवाही देना’
पुनरुत्थान के बाद और स्वर्ग लौटने से पहले, यीशु मसीह ने अपने चेलों को ये हिदायतें दीं: “तुम . . . पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” (प्रेरि. 1:8) हमारे ज़माने के परमेश्वर के वफादार सेवकों के बारे में यूँ कहा गया है कि वे “यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं।” (प्रका. 12:17) गवाही देने का यह काम आप कितनी लगन के साथ करते हैं?
कई लोग सच्चे दिल से कहते हैं कि वे यीशु को मानते हैं, मगर उन्हें यह बिलकुल भी नहीं मालूम कि इस धरती पर आने से पहले वह अस्तित्त्व में था। वे नहीं समझते कि इस धरती पर, यीशु सचमुच एक इंसान के रूप में जीया। यीशु, परमेश्वर का पुत्र है, वे इसका मतलब नहीं जानते। परमेश्वर के उद्देश्य के पूरा होने में यीशु की क्या भूमिका है, इस बारे में उन्हें कुछ मालूम नहीं। वे इस बात से भी बेखबर हैं कि यीशु आज क्या कर रहा है और न ही उन्हें यह एहसास है कि वह भविष्य में जो करने जा रहा है, उसका उनकी ज़िंदगी पर ज़बरदस्त असर पड़ेगा। यहाँ तक कि वे शायद इस गलतफहमी के शिकार हों कि यहोवा के साक्षी, यीशु को नहीं मानते। इसलिए इन सारी बातों के बारे में उन्हें सच्चाई बताने का हमें बढ़िया मौका मिला है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह नहीं मानते कि बाइबल में बताया गया यीशु नाम का कोई इंसान सचमुच में जीया भी था। कइयों की नज़र में तो वह सिर्फ एक महान पुरुष था। बहुत-से लोग यह मानने से इनकार कर देते हैं कि वह परमेश्वर का बेटा है। ऐसे लोगों को “यीशु की गवाही देने” के लिए हमें काफी लगन, धीरज और व्यवहार-कुशलता की ज़रूरत होगी।
सुननेवाले की चाहे जो भी धारणाएँ हों, एक बात तो तय है कि अगर वे हमेशा की ज़िंदगी पाना चाहते हैं, जिसका इंतज़ाम परमेश्वर ने किया है, तो उन्हें यीशु मसीह का ज्ञान लेना होगा। (यूह. 17:3) परमेश्वर ने अपनी यह इच्छा साफ ज़ाहिर की है कि जितने लोग जीवित हैं, उन सभी को खुलेआम ‘स्वीकार करना है, “यीशु मसीह ही प्रभु है”’ (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) और उन्हें उसके अधिकार के अधीन रहना होगा। (फिलि. 2:9-11) इसलिए जब हमारी मुलाकात ऐसे लोगों से होती है, जो यीशु के बारे में कट्टर और गलत धारणाएँ रखते हैं या जो उसको बिलकुल भी नहीं मानते हैं, तो हम इस मसले को यूँ ही टाल नहीं सकते। कुछ मामलों में, हम पहली मुलाकात में ही यीशु मसीह के बारे में बेझिझक बात कर सकते हैं, मगर दूसरे मामलों में हमें सोच-समझकर बोलने की ज़रूरत पड़ सकती है ताकि लोग, यीशु के बारे में जो सही है वही सोचें। हम इस विषय के दूसरे पहलुओं के बारे में बताने की भी सोच सकते हैं ताकि आगे की मुलाकातों में उनके साथ बातचीत जारी रख सकें। लेकिन जब तक वे हमारे साथ बाइबल अध्ययन नहीं करेंगे, तब तक उन्हें हर बात समझाना या पूरी-पूरी जानकारी देना नामुमकिन होगा।—1 तीमु. 2:3-7.
परमेश्वर के उद्देश्य में यीशु की अहम भूमिका। हमें लोगों को यह समझाना है कि यीशु ही “मार्ग” है और ‘बिना उसके द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।’ (यूह. 14:6) इसलिए यीशु पर विश्वास करना ज़रूरी है, तभी जाकर हम परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता कायम कर पाएँगे। जब तक एक इंसान यह नहीं समझ लेता कि यहोवा ने अपने पहिलौठे पुत्र को कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है, तब तक उसके लिए बाइबल की समझ पाना नामुमकिन है। ऐसा क्यों? क्योंकि यहोवा ने अपने सभी उद्देश्यों को पूरा करने में अपने इस पुत्र को एक खास भूमिका अदा करने के लिए ठहराया है। (कुलु. 1:17-20) यही सच्चाई, बाइबल की सारी भविष्यवाणियों की बुनियाद है। (प्रका. 19:10) यीशु मसीह ही वह शख्स है जिसके ज़रिए ऐसी हर समस्या का हल किया जाएगा, जो शैतान की बगावत और आदम के पाप की वजह से उठी है।—इब्रा. 2:5-9, 14, 15.
मसीह की भूमिका के लिए कदरदानी पैदा करने के लिए एक इंसान को यह समझना होगा कि हम सब बहुत बदतर हालात में फँसे हैं और इससे बाहर निकलना हमारे बस के बाहर है। हम सभी पाप में जन्मे हैं जिस वजह से ज़िंदगी भर, कई तरीकों से इसका हम पर असर होता है। और आज नहीं तो कल, हमें इसका अंजाम यानी मौत हासिल होगी। (रोमि. 3:23; 5:12) जिन लोगों को आप गवाही देते हैं, उन्हें इस सच्चाई के बारे में तर्क देकर समझाइए। फिर बताइए कि यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान के ज़रिए यहोवा ने ऐसे लोगों के लिए पाप और मौत से छुटकारा पाने का प्यार भरा इंतज़ाम किया है जो इस बलिदान पर विश्वास करते हैं। (मर. 10:45; इब्रा. 2:9) इस इंतज़ाम ने इंसानों के लिए सिद्ध और हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खोल दिया है। (यूह. 3:16, 36) इस रास्ते के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। (प्रेरि. 4:12) किसी को गवाही देते वक्त या कलीसिया में भाषण के ज़रिए सिखाते वक्त, सिर्फ ये सच्चाइयाँ बताना काफी नहीं है। प्यार और धीरज से अपने सुननेवालों के दिल में हमारे उद्धारकर्ता, मसीह के लिए एहसानमंदी की भावना पैदा कीजिए। अगर एक इंसान के दिल में इस इंतज़ाम के लिए कदरदानी है, तो इसका उसके रवैए, चालचलन और ज़िंदगी के लक्ष्यों पर बहुत भारी असर पड़ेगा।—2 कुरि. 5:14, 15.
यह सच है कि यीशु ने एक ही बार अपना जीवन बलिदान किया था। (इब्रा. 9:28) मगर अब वह महायाजक की हैसियत से दिन-रात सेवा कर रहा है। दूसरों को समझने में मदद कीजिए कि इसके क्या मायने हैं। क्या उनके आस-पास के लोगों के बुरे व्यवहार की वजह से उन्हें तनाव, निराशा, दुःख या समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है? अगर हाँ, तो उन्हें बताइए कि यीशु जब इस धरती पर एक इंसान के रूप में जीया, तब उसने भी यह सब कुछ सहा था। हम पर क्या बीत रही है, यह वह अच्छी तरह जानता है। असिद्ध होने की वजह से क्या हमें यहोवा की दया की ज़रूरत महसूस होती है? अगर हम यीशु के बलिदान के आधार पर परमेश्वर से अपने पापों की माफी माँगें, तो यीशु ‘पिता के पास हमारे एक सहायक’ के तौर पर काम करता है। हम पर रहम खाते हुए वह ‘हमारे लिये निवेदन करता है।’ (1 यूह. 2:1, 2; रोमि. 8:34) यीशु के बलिदान और महायाजक के तौर पर उसकी सेवा की बदौलत, हम सही वक्त पर मदद पाने के लिए यहोवा के “अनुग्रह के सिंहासन” के पास आ पाते हैं। (इब्रा. 4:15, 16) महायाजक होने के नाते, यीशु हमारी जिस तरह मदद करता है, उसकी वजह से हम असिद्ध होने के बावजूद परमेश्वर की सेवा शुद्ध विवेक के साथ कर पाते हैं।—इब्रा. 9:13, 14.
इसके अलावा, परमेश्वर ने यीशु को मसीही कलीसिया का सिर ठहराया है, इसलिए उसके हाथ में बहुत बड़ा अधिकार है। (मत्ती 28:18; इफि. 1:22, 23) यह अधिकार रखते हुए वह परमेश्वर की मरज़ी के हिसाब से कलीसिया को ज़रूरी हिदायतें देता है। इसलिए दूसरों को सिखाते वक्त, उन्हें समझाइए कि कलीसिया का सिर कोई इंसान नहीं, बल्कि यीशु मसीह है। (मत्ती 23:10) जब आप दिलचस्पी रखनेवालों से पहली बार मिलते हैं, तो उन्हें उस इलाके की सभाओं में आने का न्यौता दीजिए, जहाँ हम “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से मिलनेवाले साहित्य की मदद से बाइबल का अध्ययन करते हैं। उन्हें न सिर्फ यह समझाइए कि “दास” कौन है, बल्कि यह भी कि स्वामी कौन है ताकि उन्हें यह एहसास हो कि यीशु ही मुखिया है। (मत्ती 24:45-47) प्राचीनों से उनकी मुलाकात कराइए और बताइए कि इन भाइयों को बाइबल की क्या-क्या माँगें पूरी करनी होती हैं। (1 तीमु. 3:1-7; तीतु. 1:5-9) यह स्पष्ट कीजिए कि कलीसिया, प्राचीनों की जागीर नहीं है बल्कि प्राचीन, यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलने में हमारी मदद करते हैं। (प्रेरि. 20:28; इफि. 4:16; 1 पत. 5:2, 3) दिलचस्पी रखनेवाले इन लोगों को समझने में मदद दीजिए कि मसीह की निगरानी में पूरी दुनिया में एक व्यवस्थित संगठन काम कर रहा है।
सुसमाचार की किताबों से हम जानते हैं कि अपनी मौत से कुछ ही समय पहले जब यीशु ने यरूशलेम में कदम रखा, तब उसके शिष्यों ने यह कहकर उसकी महिमा की कि वह ‘प्रभु के नाम से आनेवाला राजा है’! (लूका 19:38) जैसे-जैसे लोग बाइबल का और गहरा अध्ययन करते हैं, वैसे-वैसे वे सीखते हैं कि यहोवा ने अब यीशु को शासन करने का अधिकार सौंपा है और इसका सभी जातियों के लोगों पर असर पड़ेगा। (दानि. 7:13, 14) जब आप कलीसिया में भाषण देते हैं या किसी के साथ अध्ययन करते हैं, तो सुननेवालों को यह समझने में मदद दीजिए कि यीशु की हुकूमत हमारे लिए क्या मायने रखनी चाहिए।
इस बात पर ज़ोर दीजिए कि क्या हमारे जीने के तरीके से ज़ाहिर होता है कि हम सचमुच में यीशु मसीह को अपना राजा मानते हैं या नहीं, और हम खुशी-खुशी उसके शासन के अधीन हैं कि नहीं। राजा के तौर पर अभिषिक्त होने के बाद, यीशु ने अपने चेलों को जो काम दिया उस पर ज़ोर दीजिए। (मत्ती 24:14; 28:18-20) बताइए कि अद्भुत परामर्श देनेवाले, यीशु ने किन चीज़ों को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देने के बारे में कहा। (यशा. 9:6, 7, नयी हिन्दी बाइबिल; मत्ती 6:19-34) उस भावना की तरफ ध्यान दिलाइए जिसके बारे में, शांति के शासक ने कहा कि उसके चेले दिखाएँगे। (मत्ती 20:25-27; यूह. 13:35) मगर ध्यान रहे, कहीं आप किसी के बारे में गलत राय न कायम कर लें कि क्या वह परमेश्वर की सेवा में उतना कर रहा है, जितना उसे करना चाहिए। इसके बजाय, उसे यह जाँच करने का बढ़ावा दीजिए कि क्या उसके कामों से यह साबित होता है कि वह मसीह की हुकूमत के अधीन हैं। ऐसा करते वक्त, खुद कबूल कीजिए कि आपको भी वही करने की ज़रूरत है।
मसीह की बुनियाद डालना। बाइबल बताती है कि किसी को मसीही चेला बनाना, इमारत बनाने के बराबर है जिसकी बुनियाद यीशु मसीह है। (1 कुरि. 3:10-15) चेले बनाने के लिए, लोगों को यीशु के बारे में वह सब सिखाइए जो बाइबल में है। सावधान रहें कि कहीं वे आपके चेले न बन जाएँ। (1 कुरि. 3:4-7) उनका ध्यान यीशु मसीह की तरफ खींचिए।
अगर बुनियाद मज़बूत होगी, तो विद्यार्थी समझ पाएँगे कि मसीह हमारे लिए एक आदर्श दे गया है ताकि हम ‘उसके पद-चिन्हों पर चलें।’ (1 पत. 2:21, NHT) उस बुनियाद पर आगे काम करने के लिए विद्यार्थियों को सुसमाचार की किताबें पढ़ने के लिए उकसाइए। समझाइए कि उन्हें इन किताबों को सिर्फ यह समझकर नहीं पढ़ना है कि इनमें इतिहास की सच्ची घटनाएँ दर्ज़ हैं, बल्कि इसलिए कि इनमें एक आदर्श दिया गया है जिसके मुताबिक हमें चलना है। उन्हें यीशु के स्वभाव और उसके गुणों पर ध्यान देना और उसकी मिसाल पर चलना सिखाइए। उन्हें इस बात पर ध्यान देने के लिए उकसाइए कि यीशु अपने पिता के बारे में कैसा महसूस करता था, प्रलोभन और परीक्षाएँ आने पर उसने क्या किया, उसने कैसे दिखाया कि वह परमेश्वर के अधीन है, और अलग-अलग हालात में वह इंसानों के साथ किस तरह पेश आया। इस बात पर ज़ोर दीजिए कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी किस काम में लगा दी। जब एक विद्यार्थी यह सब समझेगा, तब वह ज़िंदगी के फैसले करते वक्त और परीक्षाओं का सामना करते वक्त खुद से पूछ पाएगा: ‘अगर मेरी जगह यीशु होता, तो वह क्या करता? मैं जो करने जा रहा हूँ, उससे क्या यह ज़ाहिर होगा कि यीशु ने मेरी खातिर जो किया उसके लिए मैं एहसानमंद हूँ?’
जब आप कलीसिया के सामने बात करते हैं, तब यह मत मान लीजिए कि सारे भाई तो यीशु पर विश्वास करते ही हैं, तो उसकी तरफ उनका खास ध्यान दिलाने की कोई ज़रूरत नहीं। दरअसल आप यीशु के बारे में जो बताएँगे, उससे भाइयों का विश्वास और भी मज़बूत होगा। जब आप सभाओं के बारे में बात करते हैं, तो समझाइए कि इनका यीशु की भूमिका के साथ क्या संबंध है, जो कलीसिया का मुखिया है। जब आप प्रचार काम के बारे में चर्चा करते हैं, तो बताइए कि यीशु ने अपनी सेवा में कैसा जोश दिखाया था। साथ ही यह समझाइए कि हमारा प्रचार काम वह ज़रिया है जिससे राजा मसीह, लोगों को इकट्ठा कर रहा है ताकि वे बचकर नयी दुनिया में जा सकें।
इन सारी बातों से साफ ज़ाहिर है कि यीशु के बारे में सिर्फ बुनियादी बातें सीखना काफी नहीं। सही मायनों में मसीही बनने के लिए, लोगों को उस पर विश्वास करना होगा और सच्चे दिल से उससे प्यार करना होगा। और यह प्यार, उन्हें वफादारी से उसकी हर आज्ञा को मानने के लिए उकसाएगा। (यूह. 14:15, 21) यह प्यार लोगों को इस काबिल बनाएगा कि वे मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी अपने विश्वास में मज़बूत बने रहें, सारी ज़िंदगी यीशु के नक्शे-कदम पर चलते रहें, और खुद को ऐसे प्रौढ़ मसीही साबित करें जो मज़बूती से “जड़ पकड़ के और बुनियाद” पर खड़े हैं। (इफि. 3:17, हिन्दुस्तानी बाइबल) इस तरह, वे अपने जीने के तरीके से यीशु मसीह के पिता और परमेश्वर, यहोवा की महिमा करेंगे।
“राज्य का यह सुसमाचार”
यीशु ने अपनी उपस्थिति और जगत के अंत की निशानी का ब्यौरा देते हुए यह भविष्यवाणी की: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.
दरअसल यह सुसमाचार क्या है जिसे दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाया जाना है? यह सुसमाचार उस राज्य के बारे में है, जिसके लिए यीशु ने हमें परमेश्वर से यह प्रार्थना करनी सिखायी: “तेरा राज्य आए।” (मत्ती 6:10) प्रकाशितवाक्य 11:15 कहता है कि यह “राज्य हमारे प्रभु [यहोवा] का, और उसके मसीह का” है, क्योंकि राज करने का अधिकार सिर्फ यहोवा देता है और उसने मसीह को राजा बनाकर उसके हाथों में यह अधिकार सौंपा है। लेकिन, गौर कीजिए कि हमारे दिनों में जिस संदेश के प्रचार किए जाने के बारे में यीशु ने बताया था, वह उस संदेश से भी बढ़कर है जिसका प्रचार यीशु के चेलों ने पहली सदी में किया था। उन्होंने लोगों से कहा: “परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है।” (लूका 10:9) उस वक्त यीशु जिसे राजा होने के लिए अभिषिक्त किया गया था, वह उनके बीच मौजूद था। लेकिन जैसे मत्ती 24:14 में दर्ज़ है, यीशु ने भविष्यवाणी की कि परमेश्वर के उद्देश्य को आगे बढ़ानेवाली एक और अहम घटना के बारे में संसार भर में घोषणा की जाएगी।
इस घटना का दर्शन भविष्यवक्ता दानिय्येल को दिया गया था। उसने देखा कि “मनुष्य के सन्तान सा कोई” यानी यीशु मसीह, “अति प्राचीन” यानी यहोवा परमेश्वर से “ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य” पा रहा है जिससे “देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों[गे]।” (दानि. 7:13, 14) पूरे विश्व के लिए खास मायने रखनेवाली यह घटना, सन् 1914 में घटी। उस घटना के बाद, इब्लीस और उसके पिशाचों को धरती पर फेंक दिया गया। (प्रका. 12:7-10) तब से इस पुराने संसार के अंतिम दिन शुरू हो गए। लेकिन इससे पहले कि यह संसार पूरी तरह मिटा दिया जाए, संसार भर में ऐलान किया जा रहा है कि यहोवा का मसीहाई राजा, अब अपनी स्वर्गीय राजगद्दी से शासन कर रहा है। यह खबर, हर किसी को दी जा रही है। वे इस संदेश को कबूल करते हैं या नहीं, उससे ज़ाहिर होता है कि “मनुष्यों के राज्य” में परमप्रधान शासक की तरफ उनका रवैया कैसा है।—दानि. 4:32.
यह सच है कि इस घटना के अलावा, और भी बहुत-सी घटनाएँ घटनेवाली हैं। आज भी हम यह प्रार्थना करते हैं: “तेरा राज्य आए।” लेकिन हम मन में ऐसा नहीं सोचते कि राज्य, भविष्य में कभी स्थापित होगा। बल्कि हम इस इरादे से प्रार्थना करते हैं कि स्वर्ग का राज्य, दानिय्येल 2:44 और प्रकाशितवाक्य 21:2-4 जैसी भविष्यवाणियों को पूरा करने के लिए सख्त कार्यवाही करेगा। राज्य, धरती को एक फिरदौस में बदल देगा और फिरदौस ऐसे लोगों से आबाद होगा जो परमेश्वर से और दूसरे इंसानों से प्यार करते हैं। “राज्य का यह सुसमाचार” सुनाते वक्त, हम भविष्य में मिलनेवाली इन आशीषों के बारे में बताते हैं। इसके अलावा, हम पूरे भरोसे के साथ लोगों को यह भी बताते हैं कि यहोवा अपने बेटे को शासन करने का पूरा अधिकार सौंप चुका है। क्या आप, लोगों को राज्य के बारे में गवाही देते वक्त, इस सुसमाचार पर ज़ोर देते हैं?
राज्य के बारे समझाना। परमेश्वर के राज्य की घोषणा करने की ज़िम्मेदारी को हम कैसे पूरा कर सकते हैं? हम, लोगों की दिलचस्पी जगाने के लिए, तरह-तरह के विषयों पर बातचीत शुरू कर सकते हैं, लेकिन हमें जल्द ही उन पर यह ज़ाहिर करना चाहिए कि हमारा संदेश, परमेश्वर के राज्य के बारे में है।
इस काम का एक अहम पहलू है, बाइबल से उन आयतों को पढ़कर सुनाना या उनका हवाला देना जिनमें राज्य का ज़िक्र है। राज्य के बारे में बताते वक्त, लोगों को साफ-साफ समझा दीजिए कि राज्य का मतलब क्या है। सिर्फ यह कहना काफी नहीं होगा कि परमेश्वर का राज्य एक सरकार है। किसी अनदेखी चीज़ को सरकार मानना कुछ लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है। आप कई तरीकों से उनके साथ तर्क कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप बता सकते हैं कि हम हवा को नहीं देख सकते, फिर भी यह हम पर ज़बरदस्त असर करती है। उसी तरह हम उस शख्स को नहीं देख सकते जो हवा पर काबू रखता है, लेकिन यह ज़ाहिर है कि वह शख्स बड़ा शक्तिशाली है। बाइबल कहती है कि वह “सनातन राजा” है। (1 तीमु. 1:17) या फिर आप एक ऐसे बड़े देश का उदाहरण दे सकते हैं जिसके ज़्यादातर लोग न तो कभी राजधानी गए हैं, न ही उन्होंने अपने शासक को आमने-सामने देखा है। वे तो बस इन्हें टी.वी. में देखते हैं या फिर इनके बारे में अखबारों में पढ़ते हैं। उसी तरह, बाइबल जो 2,200 से ज़्यादा भाषाओं में प्रकाशित की गयी है, हमें परमेश्वर के राज्य के बारे में बताती है। यह हमें बताती है कि राज करने का अधिकार किसे सौंपा गया है और राज्य क्या कर रहा है। प्रहरीदुर्ग पत्रिका कई भाषाओं में छापी जाती है और यह ऐसा माध्यम है जो “यहोवा के राज्य की घोषणा करता है।” और यही बात इस पत्रिका के ठीक पहले पेज पर देखी जा सकती है।
राज्य का मतलब समझाने के लिए, आप कुछ ऐसी बातों का ज़िक्र कर सकते हैं, जिन्हें पाने की उम्मीद वे सरकारों से करते हैं: जैसे आर्थिक सुरक्षा, शांति, अपराध का अंत, सभी जातियों के साथ समान व्यवहार, शिक्षा और स्वास्थ्य। समझाइए कि सिर्फ परमेश्वर के राज्य के ज़रिए ही इंसान की ये सारी इच्छाएँ और दूसरी सभी नेक इच्छाएँ हर तरह से पूरी हो सकेंगी।—भज. 145:16.
लोगों में यीशु मसीह के राज्य की प्रजा बनने की चाहत पैदा कीजिए। यीशु के उन चमत्कारों के बारे में बताइए, जिनसे एक झलक मिलती है कि स्वर्गीय राजा की हैसियत से वह क्या-क्या करनेवाला है। यीशु के मनभावने गुणों के बारे में बार-बार बात कीजिए। (मत्ती 8:2, 3; 11:28-30) समझाइए कि उसने हमारी खातिर अपनी जान कुरबान कर दी और उसके बाद परमेश्वर ने उसे ज़िंदा करके स्वर्ग में अमर जीवन दिया। और अब वह स्वर्ग से ही राजा की हैसियत से हुकूमत कर रहा है।—प्रेरि. 2:29-35.
इस बात पर ज़ोर दीजिए कि आज परमेश्वर का राज्य, स्वर्ग से शासन कर रहा है। लेकिन ध्यान रहे कि ऐसे में ज़्यादातर लोग कह सकते हैं कि अगर परमेश्वर का राज्य शासन कर रहा है, तो हालात अच्छे होने के बजाय इतने बुरे क्यों हैं? इस बात को कबूल कीजिए और लोगों से पूछिए कि क्या वे जानते हैं, खुद यीशु मसीह ने क्या सबूत दिए थे जो दिखाते कि परमेश्वर का राज्य शासन कर रहा है। मत्ती के अध्याय 24, मरकुस के अध्याय 13, या लूका के अध्याय 21 में दिए कई पहलुओंवाले चिन्ह की कुछ खास बातों पर चर्चा कीजिए। फिर पूछिए कि स्वर्ग में मसीह के राजा बनने से पृथ्वी पर ऐसे हालात क्यों पैदा हुए। जवाब के लिए प्रकाशितवाक्य 12:7-10, 12 की तरफ उनका ध्यान दिलाइए।
आज परमेश्वर का राज्य क्या कर रहा है, इसका एक पक्का सबूत देने के लिए मत्ती 24:14 पढ़िए, फिर संसार भर में लोगों को बाइबल सिखाने के कार्यक्रम के बारे में बताइए। (यशा. 54:13) लोगों को उन अलग-अलग स्कूलों के बारे में बताइए जिनसे यहोवा के साक्षी फायदा पा रहे हैं। इन सभी स्कूलों में बाइबल पर आधारित शिक्षा दी जाती है और इसकी कोई फीस नहीं ली जाती। समझाइए कि 230 से भी ज़्यादा देशों में घर-घर जाकर प्रचार करने के अलावा, हम, लोगों और परिवारों को उनके घर पर मुफ्त बाइबल सिखाने की पेशकश करते हैं। क्या इंसानों की बनायी ऐसी कोई सरकार है जो न सिर्फ अपनी प्रजा को बल्कि सारे संसार के लोगों को सिखाने के लिए इतने बड़े पैमाने पर शिक्षा के कार्यक्रमों का इंतज़ाम करने के काबिल हो? लोगों को किंगडम हॉल आने, यहोवा के साक्षियों के सम्मेलनों और अधिवेशनों में हाज़िर होने का न्यौता दीजिए ताकि वे खुद अपनी आँखों से देख सकें कि बाइबल की शिक्षा, लोगों की ज़िंदगी पर कैसे असर कर रही है।—यशा. 2:2-4; 32:1, 17; यूह. 13:35.
लेकिन क्या घर-मालिक इस बात को समझेगा कि परमेश्वर का राज्य, उसकी ज़िंदगी पर क्या असर करता है? इस बात का एहसास दिलाने के लिए आप व्यवहार-कुशलता से उसे बता सकते हैं कि आप उसके यहाँ इसलिए आए हैं ताकि उसे परमेश्वर के राज्य की प्रजा बनने के मौके के बारे में बता सकें। लोग चाहें तो आज परमेश्वर के राज्य की प्रजा बनने का चुनाव कर सकते हैं। कैसे? परमेश्वर हमसे क्या माँग करता है, यह सीखकर और उन माँगों को अभी पूरा करने के ज़रिए।—व्यव. 30:19, 20; प्रका. 22:17.
राज्य को जीवन में पहला स्थान देने में दूसरों की मदद करना। राज्य का संदेश कबूल करने के बाद भी, एक इंसान के लिए कुछ फैसले करना ज़रूरी है। अपने जीवन में वह परमेश्वर के राज्य को कितनी अहमियत देगा? यीशु ने अपने चेलों को उकसाया: “पहले परमेश्वर के राज्य . . . की खोज में लगे रहो।” (मत्ती 6:33, NHT) ऐसा करने में हम अपने मसीही भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं? खुद एक अच्छी मिसाल कायम करने के ज़रिए और उन मौकों के बारे में चर्चा करने के ज़रिए जो हमारे लिए खुले हैं। कभी-कभी आप किसी भाई या बहन से पूछ सकते हैं कि क्या उसने इन-इन तरीकों से राज्य को पहला स्थान देने के बारे में सोचा है। और दूसरों ने यह कैसे किया, आप इसका अनुभव भी बता सकते हैं। आप बाइबल के वृत्तांतों के बारे में इस तरह बताइए जिससे उस भाई या बहन के दिल में यहोवा के लिए प्यार और भी गहरा हो जाए। इस बात पर ज़ोर दीजिए कि यह राज्य सचमुच की सरकार है। यह भी बताइए कि राज्य का ऐलान करना, वाकई कितना ज़रूरी काम है। हम लोगों का सबसे ज़्यादा भला तब करते हैं, जब हम उनके अंदर ज़रूरी कदम उठाने की इच्छा जगाते हैं, न कि उन्हें बताते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं कि आज हम सभी को जो ज़रूरी संदेश सुनाना है, वह खासकर यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह और राज्य के बारे में है। इनसे जुड़ी अहम सच्चाइयों पर गवाही के काम में, कलीसियाओं में और अपनी ज़िंदगी में हमें ज़ोर देना चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम यह साबित करते हैं कि हमें परमेश्वर की सेवा स्कूल से वाकई फायदा हो रहा है।