आपकी खूबी कहीं आपकी खामी न बन जाए
टाइटैनिक! कहा जाता था कि यह दुनिया का सबसे बड़ा जहाज़ है। इस आलीशान जहाज़ के डूबने की बात कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था। क्यों? क्योंकि इसके नीचे का हिस्सा फौलाद की तरह मज़बूत था जिसमें १६ अलग-अलग खाने थे। अगर कुछ खानों में पानी भर भी जाता, तौभी यह जहाज़ तैरता रह सकता था। इसीलिये सन् १९१२, में जब यह ज़हाज पहली बार यात्रा के लिये निकला तब जितनी लाइफ़ बोटों की ज़रूरत थी उससे सिर्फ आधी ही ली गईं। मगर इस पहली यात्रा में ही लोगों की सब उम्मीदों पर पानी फिर गया। यह जहाज़ समुद्र में तैरते एक बर्फ के पहाड़ से जा टकराया और डूब गया। इसमें सवार १,५०० से भी ज़्यादा लोग अपनी जान गवाँ बैठे!
प्राचीन यरूशलेम का राजा उज्जिय्याह परमेश्वर का सेवक था और उसका भय मानता था। वह एक बहादुर और कुशल सेनापति भी था। यहोवा की मदद से उसने एक के बाद एक अपने कई दुश्मनों पर जीत हासिल की थी, इसलिए “उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अद्भुत सहायता यहाँ तक मिली कि वह सामर्थी हो गया।” लेकिन इसके बाद “उसका मन फूल उठा; और उस ने ... अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया।” इसी घमंड की वज़ह से उसे कोढ़ हो गया।—२ इतिहास २६:१५-२१; नीतिवचन १६:१८.
ऊपर बताई गयी दोनों घटनाएँ हमें सिखाती हैं कि अगर हम अपनी किसी खूबी का बुद्धिमानी और नम्रता से इस्तेमाल न करें और अपनी हद भूल जाएँ तो यही खूबी आसानी से हमारी खामी बन सकती है। यहाँ तक कि हमें नुकसान भी पहुँचा सकती है। क्या यह सोचनेवाली बात नहीं है? जी हाँ, क्योंकि हम सभी के पास कोई ना कोई खूबी या प्रतिभा ज़रूर होती है और हम सभी चाहते हैं कि हम अपनी इस खूबी पर फख्र कर सकें और इससे न सिर्फ दूसरों का भला हो बल्कि हमारे सिरजनहार की महिमा हो। तो हमें ध्यान देना चाहिए कि हम अपनी खूबी का कैसे इस्तेमाल करते हैं। जो प्रतिभा या खूबी हममें है वह परमेश्वर की देन है, हमें बेशक उसका इस्तेमाल करना चाहिए मगर सही तरीके से, ताकि यह हमेशा बरकरार रहे और हमारे लिए फायदेमंद और मूल्यवान साबित हो।
मिसाल के तौर पर, मेहनती होना एक खूबी है। लेकिन, अगर हम अपने काम को ही पूजा समझने लगें तो यह हमारी कमज़ोरी बन सकता है। इसी तरह सतर्क होना भी एक खूबी है क्योंकि सतर्क इंसान आसानी से किसी के बहकावे में नहीं आता। लेकिन कई बार वह इतनी सतर्कता बरतता है कि नुकसान उठाने के डर से कोई फैसला ही नहीं कर पाता। काम करने और करवाने में माहिर होना भी एक खूबी है, लेकिन जल्द-से-जल्द काम करवाने की खातिर अगर एक इंसान दूसरों की भावनाओं को नज़रअंदाज़ करके उनके साथ मशीन जैसा बर्ताव करता है तो इससे किसी को भी खुशी नहीं मिल सकती। और नतीजा यह होगा कि उसके नीचे काम करनेवाले उससे चिढ़ने लगेंगे। ऐसे माहौल में काम करने से कभी खुशी नहीं मिलती। इसलिए अब ज़रा कुछ समय के लिए आप अपनी खूबियों के बारे में सोचिए। क्या आप इनका सही इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या इससे दूसरों को फायदा हो रहा है? और सबसे अहम बात है, क्या आप अपनी खूबियों का इस्तेमाल यहोवा को महिमा देने के लिए कर रहे हैं, जो ‘हर एक अच्छे वरदान’ का देनेवाला है? (याकूब १:१७) आइये हम कुछ और मिसालों पर गौर करें जो यह दिखाती हैं कि अगर हम अपनी खूबी या अपनी काबिलीयत का सही इस्तेमाल न करें तो यह कैसे न सिर्फ हमारी कमज़ोरी बन सकती है बल्कि हमें नुकसान भी पहुँचा सकती है।
अपनी दिमागी काबिलीयत को कमज़ोरी मत बनाइए
तेज़ दिमाग होना वाकई हमारे लिए एक आशीष है। लेकिन खबरदार! यह आशीष एक शाप भी बन सकती है। क्योंकि जब कोई हमारी बुद्धि का बढ़ा-चढ़ाकर बखान करता है और तारीफों के पुल बाँधता है तब हम अपनी बुद्धि पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा करने लगते हैं। एक और खतरा यह भी होता है कि हम सिर्फ बहुत ज़्यादा ज्ञानी बनने के लिए ही परमेश्वर के वचन को और उसके बारे में समझानेंवाली किताबों को पढ़ते हैं और यह भूल जाते हैं कि इनका हमारी ज़िंदगी से कोई वास्ता है या नहीं।
जब हम अपनी बुद्धि पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा करने लगते हैं तो यह अलग-अलग तरीकों से ज़ाहिर हो सकता है। मिसाल के तौर पर अगर किसी भाई का दिमाग बहुत ही तेज़ है, तो हो सकता है कि जब उसे कोई पब्लिक टॉक मिले या थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल में उसका कोई भाग हो, तो वह उसकी तैयारी एकदम ऐन मौके पर करे और पवित्र आत्मा के लिए परमेश्वर से प्रार्थना भी न करे। इसके बजाय, वह अपने दिमागी ज्ञान और सोचने की काबिलीयत पर हद से ज़्यादा भरोसा करता है। उसकी काबिलीयत कुछ समय तक उसकी लापरवाही पर परदा ज़रूर डाल सकती है, मगर परमेश्वर की आशीष के बिना वह आध्यात्मिक रूप से धीरे-धीरे कमज़ोर होता जाएगा, यहाँ तक कि वह दिन भी आ सकता है जब आध्यात्मिक रूप से उसकी मौत ही हो जाए। तो देखिए, इतनी अच्छी प्रतिभा कितनी बुरी तरह बरबाद हो जाती है!—नीतिवचन ३:५, ६; याकूब ३:१.
जब कोई बहुत ज़्यादा ज्ञानी बनने के लिए ही परमेश्वर के वचन और उसे समझानेवाली किताबों को पढ़ता है तो ऐसे ज्ञान से ‘घमण्ड उत्पन्न होता है।’ एक इंसान अपने घमंड में मानो गुब्बारे की तरह फूल जाता है और इससे मसीही प्रेम और भाईचारे में ज़रा भी ‘उन्नति नहीं हो पाती।’ (१ कुरिन्थियों ८:१; गलातियों ५:२६) दूसरी तरफ, जो आध्यात्मिक व्यक्ति होता है वह खुद चाहे कितना ही अकलमंद क्यों ना हो, फिर भी वह हमेशा परमेश्वर की पवित्र आत्मा के लिए प्रार्थना करता है और उसी पर पूरा भरोसा रखता है, ना कि अपने दिमागी ज्ञान पर। इसलिए जैसे-जैसे वह प्यार, नम्रता, ज्ञान और बुद्धि में आगे बढ़ता है वैसे-वैसे उसकी काबिलीयत में और भी निखार आता है।—कुलुस्सियों १:९, १०.
अपनी काबिलीयत की वज़ह से अगर हम घमंड के नशे में चूर होकर खुद को बड़ा समझने लगें तो यही काबिलीयत हमारी कमज़ोरी बन सकती है और हमें मुँह की खानी पड़ सकती है। एक काबिल इंसान और उसकी सराहना करनेवाले इस बात को भूल जाते हैं कि यहोवा ‘ऐसे लोगों पर दृष्टि नहीं करता, जो अपनी ही दृष्टि में बुद्धिमान बनते हैं,’ फिर भले ही वे कितने ही काबिल क्यों न हों। (अय्यूब ३७:२४) परमेश्वर का वचन कहता है कि “नम्र लोगों में बुद्धि होती है।” (नीतिवचन ११:२) प्रेरित पौलुस जो खुद बहुत बुद्धिमान और शिक्षित था, उसने कुरिन्थियों से कहा, “हे भाइयो, जब मैं . . . तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। ... मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा। और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।”—१ कुरिन्थियों २:१-५.
संसार के लोग जिसे बुद्धिमानी या कामयाबी कहते हैं, एक सच्चे अकलमंद इंसान की नज़रों में वे सब बेकार हैं। ऐसा इंसान अपनी काबिलीयत को दूसरों से तारीफ पाने या दुनिया की धन-दौलत कमाने में नहीं लगाता, बल्कि वह अपनी ज़िंदगी और ऐसी काबिलीयत का इस्तेमाल परमेश्वर के लिए करता है जिसकी बदौलत उसे यह सब कुछ मिला है। (१ यूहन्ना २:१५-१७) वह हमेशा परमेश्वर की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहला स्थान देता है। इस तरह वह इंसान फल देनेवाले ‘उस वृक्ष के समान हो जाता है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है।’ और ‘जो कुछ वह करता है, उसमें वह सफल होता है’ क्योंकि वह यहोवा की आशीष पर भरोसा करता है ना कि अपनी काबिलीयत पर।—भजन १:१-३; मत्ती ६:३३.
सच्ची मसीहियत आपकी खूबियों में चार चाँद लगा देती है
सच्चे मसीही धर्म में तो इतनी खूबियाँ हैं कि इसकी तुलना सांसारिक तत्त्वज्ञान से करना सूरज को दीया दिखाने के बराबर है। सच्ची मसीहियत के सिद्धांतों पर चलने से इंसान बेहतर पति-पत्नी और अच्छे पड़ोसी बनते हैं। वे बढ़िया कर्मचारी बनकर अपनी ईमानदारी का सबूत देते हैं और दूसरों का आदर करते हैं। सबके साथ मेल-मिलाप से रहते हैं और मेहनत से काम करते हैं। (कुलुस्सियों ३:१८-२३) सच्ची मसीही कलीसिया में प्रचार करने और सिखाने की ट्रेनिंग दी जाती है इसलिए मसीही बड़ी कुशलता से दूसरों के साथ बातचीत कर पाते हैं। (१ तीमुथियुस ४:१३-१५) इसलिए इसमें ताज्जुब की बात नहीं कि ज़्यादातर लोग यहोवा के साक्षियों को नौकरी पर रखना पसंद करते हैं क्योंकि वे अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभाते हैं। और इसलिए अकसर उन्हें प्रोमोशन भी मिलती है। लेकिन यह भी हो सकता है कि मसीहियों की ये खूबियाँ उनकी कमज़ोरी बन जाए। वह कैसे? जब एक मसीही को प्रोमोशन मिलता है तो उसकी ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है, तब हो सकता है कि वह अपना सारा समय उसी ज़िम्मेदारी को निभाने में लगा दे। और अपना वो समय भी शायद वह काम में ही लगा दे, जो उसे अपने परिवार के साथ बिताना चाहिए। हो सकता है कि वह सभाओं में भी हमेशा हाज़िर न हो पाए। इसलिए एक मसीही को जब प्रोमोशन या अच्छा ऑफर मिलता है तो उसे इन बातों पर ध्यान देना चाहिए नहीं तो ये उसके लिए फँदा बन सकती हैं।
ऑस्ट्रेलिया का एक प्राचीन भाई जिसके बाल-बच्चे हैं, पहले एक कामयाब बिज़नसमैन था। लोग उसके बारे में कहते थे कि “उसमें ऐसी काबिलीयत है कि वह दुनिया की बेशुमार दौलत हासिल कर सकता है और बड़ा नाम कमा सकता है।” फिर भी वह इस दुनिया की धन-दौलत कमाने की अंधी दौड़ में शामिल नहीं हुआ। उसने कहा, “मैं यही चाहता हूँ कि मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा समय अपने परिवार के साथ और मसीही सेवकाई में गुज़ारूँ। इसलिए मेरी पत्नी और मैंने मिलकर यह फैसला किया कि जहाँ तक हो सके मैं अपना काम-काज कम कर दूँ। अगर मैं पूरे हफ्ते काम करने के बजाय कुछ ही दिन काम करके अपने परिवार की अच्छी तरह देख-भाल कर सकता हूँ तो क्यों न ऐसा करूँ?” इस प्राचीन ने देखा कि जब उसने अपनी ज़िन्दगी में सोच-समझकर कुछ बदलाव किए तो हफ्ते में सिर्फ तीन या चार दिन काम करके ही वह अपने परिवार को अच्छी तरह सँभाल सका। अब उसके पास और भी ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए वक्त था। कुछ समय बाद उसे असॆमब्ली हॉल कमेटी का सदस्य बनाया गया और ज़िला अधिवेशन में एडमिनिस्ट्रेशन का काम सौंपा गया। इस प्राचीन ने अपनी काबिलीयत का अकलमंदी से इस्तेमाल किया इसलिए आज वह अपने परिवार के साथ बहुत ही खुशी से ज़िंदगी बिता रहा है।
ज़िम्मेदारी उठाने के लिये सही नज़रिया
मसीही कलीसिया में भाइयों को ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए बढ़ावा दिया जाता है। बाइबल भी कहती है कि “जो अध्यक्ष [या सहायक सेवक] होना चाहता है, . . . वह भले काम की इच्छा करता है।” (१ तीमुथियुस ३:१) जैसे हमने पहले कहा, अगर हम अपनी काबिलीयत का बुद्धिमानी से इस्तेमाल न करें तो वह हमारी कमज़ोरी बन सकती है। उसी तरह अगर हम सोच-समझकर ज़िम्मेदारियाँ नहीं लें तो ये हमें नुकसान पहुँचा सकती हैं। एक मसीही को इतनी ज़िम्मेदारियाँ भी नहीं उठानी चाहिए कि यहोवा की सेवा में उसे खुशी ही न मिले। अपनी इच्छा से ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार रहना काबिल-ए-तारीफ ही नहीं, बल्कि ज़रूरी भी है। क्योंकि यहोवा ऐसे लोगों की निंदा करता है जो आलसी होते हैं। लेकिन हमें ज़िम्मेदारी उठाते वक्त हमेशा नम्रता और ‘विवेक’ से काम लेना चाहिए।—तीतुस २:१२, इज़ी-टू-रीड वर्शन; प्रकाशितवाक्य ३:१५, १६
यीशु बहुत ही नम्र था। वह लोगों की भावनाओं को समझता था और महसूस करता था इसलिए गरीब और कंगाल तक उसके पास आने से नहीं हिचकिचाते थे और उसकी संगति में चैन महसूस करते थे। उसी तरह, आज भी हमदर्दी दिखाना और परवाह करना जिन लोगों की खूबी होती है, ऐसों के साथ रहने से लोगों को चैन मिलता है। ऐसे प्राचीनों की सभी कदर करते हैं जो स्नेही और मिलनसार होते हैं, वे वाकई ‘मनुष्यों में दान’ हैं। वे ‘आंधी से और बौछार से छिपने का स्थान होते हैं, और निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया’ की तरह होते हैं।—इफिसियों ४:८; यशायाह ३२:२.
दूसरों की परवाह करना बहुत ज़रूरी है लेकिन यह भी ज़रूरी है कि एक प्राचीन इसके साथ-साथ अपनी पर्सनल स्टडी, प्रार्थना, मनन और प्रचार काम के लिए भी वक्त निकाले। अगर वह शादीशुदा है तो उसे अपने परिवार के सदस्यों की ज़्यादा परवाह करनी चाहिए ताकि वे ऐसा महसूस न करें कि उन्हें वक्त नहीं दिया जा रहा है।
काबिल और गुणवान स्त्रियाँ—एक शानदार आशीष
काबिल प्राचीनों की तरह जो स्त्रियाँ हमेशा आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी लेती हैं, वे यहोवा के संगठन के लिए वाकई बड़ी आशीष हैं। दूसरों के बारे में चिंता करना एक अच्छा गुण है और यहोवा भी ऐसे गुण की कदर करता है क्योंकि यह गुण उसकी नज़रों में बहुमूल्य है। प्रेरित पौलुस भी लिखता है कि ‘हर एक अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।’ (फिलिप्पियों २:४) आम तौर पर स्त्रियों में यह खूबी होती है कि वे स्वभाव से ही दूसरों की चिंता करती हैं। मगर ‘दूसरों के हित’ की चिंता करने की भी एक हद होती है, क्योंकि किसी भी मसीही भाई-बहन को ‘पराए काम में हाथ नहीं डालना’ चाहिए और ना ही उसे सिर्फ बातचीत के नाम पर दूसरों के बारे में झूठी और बेबुनियाद बातें फैलानी चाहिए।—१ पतरस ४:१५; १ तीमुथियुस ५:१३.
दूसरों की चिंता करने के अलावा स्त्रियों में और भी कई खूबियाँ होती हैं। मिसाल के तौर पर एक मसीही पत्नी का दिमाग अपने पति से तेज़ हो सकता है। मगर, एक “भली पत्नी” जो यहोवा का भय मानती है, वह अपने पति का आदर करेगी और अपनी काबिलीयत को उसकी मदद करने के लिये इस्तेमाल करेगी, और उसे कभी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करेगी। एक अकलमंद पति भी अपनी पत्नी से जलने या नाराज़ होने के बजाय, उसकी काबिलीयत की कदर करेगा और उससे खुश होगा। वह उसका हौसला बढ़ाएगा ताकि उसकी पत्नी अपनी काबिलीयत से घर-बार सँभाल सके और जिस तरह वह खुद ‘यहोवा का भय मानती’ है, यही बात बच्चों को भी सिखा सके। (नीतिवचन ३१:१०, २८-३०; उत्पत्ति २:१८) अपनी हदों को पहचाननेवाले ऐसे नम्र पति-पत्नियों की शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल होती है और इससे यहोवा को महिमा मिलती है।
ज़बरदस्त शख्सियत का सही इस्तेमाल
ज़बरदस्त शख्सियत के साथ अगर एक मसीही के पास नम्रता और शालीनता जैसे गुण हों और जब वह धार्मिकता के रास्ते पर चलते हुए यहोवा की दिलो-जान से सेवा करता हो तो ऐसी शख्सियत एक वरदान साबित हो सकती है। लेकिन यही वरदान अभिशाप हो सकता है जब इसका इस्तेमाल दूसरों को काबू में रखने के लिए और डरा-धमकाकर अपनी मर्ज़ी मनवाने के लिए किया जाए। अगर मसीही कलीसिया में ऐसे लोग मौजूद हों तो इससे कितना नुकसान हो सकता है! मसीही कलीसिया में ऐसा नहीं होना चाहिए कि भाई-बहन किसी के पास जाने से, बात करने से डर या झिझक महसूस करें और खासकर प्राचीनों को मिलनसार होना चाहिए ताकि भाई-बहन बेझिझक उनके पास जाकर बात कर सकें।—मत्ती २०:२५-२७.
इसी तरह जब प्राचीन आपस में मिलें तो ऐसा नहीं होना चाहिए कि उनमें से एक प्राचीन दूसरे की ज़बरदस्त शख्सियत की वज़ह से झेंप महसूस करे। इसके अलावा जब प्राचीनों की बैठक होती है तो कोई फैसला किसी की शख्सियत या काबिलीयत के प्रभाव में आकर नहीं किया जाना चाहिए बल्कि परमेश्वर की पवित्र आत्मा की मदद से ही फैसला किया जाना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर की पवित्र शक्ति किसी भी प्राचीन को प्रेरित कर सकती है, वह यह नहीं देखती कि उसकी उम्र कितनी है या वह अपनी बात कहने में कितना माहिर है। इसलिए ज़बरदस्त शख्सियत रखनेवाले प्राचीन अगर महसूस करें कि उन्हीं की राय सही है तौभी उन्हें दूसरों की बात मानना सीखना चाहिए और दूसरे प्राचीनों का ‘आदर करना’ चाहिए। (रोमियों १२:१०) अगर वे ऐसा करते हैं तो उनकी खूबी उनकी खामी नहीं बनेगी। सभोपदेशक ७:१६ हमारी भलाई के लिए ही हमें सावधान करता है कि “अपने को बहुत धर्मी न बना, और न अपने को अधिक बुद्धिमान बना; तू क्यों अपने ही नाश का कारण हो?”
‘हर एक अच्छे वरदान’ का देनेवाला यहोवा है, फिर भी वह अपनी सारी अद्भुत खूबियों का बिलकुल सही-सही इस्तेमाल करता है। (याकूब १:१७; व्यवस्थाविवरण ३२:४) वही हमारा शिक्षक भी है तो क्यों ना हम उससे सीखें! परमेश्वर ने जो खूबियाँ हमें दी हैं और हमारी जो भी काबिलीयत है, आइए हम उसका इस्तेमाल अकलमंदी, नम्रता और प्रेम के साथ करने की पूरी कोशिश करें और अपनी खूबियों में चार चाँद लगाएँ। तब हम दूसरों के लिए वाकई बड़ी आशीष साबित होंगे!
[पेज 27 पर तसवीरें]
आध्यात्मिक रूप से बढ़ने के लिए ध्यान से अध्ययन और प्रार्थना करना साथ ही यहोवा पर भरोसा रखना ज़रूरी है
[पेज 29 पर तसवीर]
दूसरों के हित की चिंता करना और अपनी हद का भी ख्याल रखना एक खूबी है
[पेज 26 पर चित्र का श्रेय]
Courtesy of The Mariners’ Museum, Newport News, VA