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हमारी राज-सेवा—2012
km 4/12 पेज 3

दो पैसों का मोल

राज के कामों को सहयोग देने का एक अहम तरीका है, पूरी दुनिया में हो रहे प्रचार काम के लिए दान देना। लेकिन जब हमारी हालत तंग हो, तब क्या?

एक मौके पर यीशु ने देखा कि एक गरीब विधवा मंदिर के दान-पात्र में दो पैसे डाल रही है। उन दो पैसों की कीमत बहुत कम थी। मगर यहोवा के लिए उसके प्यार ने उसे उभारा कि वह “अपनी तंगी में से, जो कुछ उसके पास था यानी अपनी सारी जीविका” डाल दे। (मर. 12:41-44) यीशु का इस विधवा के बारे में ज़िक्र करना दिखाता है कि परमेश्‍वर की नज़र में उस विधवा के दान का बहुत मोल था। पहली सदी के मसीहियों ने दान देने की ज़िम्मेदारी को हलके तौर पर नहीं लिया, न ही यह सोचा कि दान देने का काम सिर्फ अमीर मसीहियों का है। प्रेषित पौलुस ने मकिदुनिया में रहनेवाले मसीहियों के बारे में कहा कि “अपनी घोर गरीबी के बावजूद” उन्होंने “गुज़ारिश की, यहाँ तक कि मिन्‍नतें कीं कि . . . दान करने का उन्हें भी सम्मान दिया जाए।”—2 कुरिं. 8:1-4.

इसलिए अगर हमारी हैसियत सिर्फ इतनी है कि हम ‘दो पैसों’ का दान दे सकते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है। जब हम दिल से दान देते हैं तो स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता बहुत खुश होता है क्योंकि बाइबल कहती है, “परमेश्‍वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”—2 कुरिं. 9:7.

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