अध्याय 41
दूसरों के लिए समझने में आसान
जब आप बात करते हैं, तो सिर्फ जानकारी मत दीजिए; बल्कि कोशिश कीजिए कि आप जो कह रहे हैं, वह सुननेवालों की समझ में आए। इस तरह आप अपनी बात असरदार तरीके से कह पाएँगे, फिर चाहे आप कलीसिया के लोगों से बात कर रहे हों या दुनियावी लोगों से।
लोगों को समझ आने लायक बात करने के लिए कई पहलुओं को ध्यान में रखना ज़रूरी है। उनमें से कुछ पहलुओं पर अध्याय 26, “तर्क के मुताबिक सिलसिलेवार जानकारी” में चर्चा की गयी है। दूसरे कुछ पहलुओं पर अध्याय 30, “दूसरों में दिलचस्पी लेना” में चर्चा की गयी है। इस अध्याय में, हम और भी कुछ पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
सरल शब्द, आसान तरीका। सरल शब्द और छोटे-छोटे वाक्य, बातचीत को असरदार बनाने में काफी मददगार होते हैं। यीशु का पहाड़ी उपदेश, एक ऐसे भाषण की बेहतरीन मिसाल है जिसे सभी लोग बड़ी आसानी-से समझ सकते हैं, फिर चाहे वे किसी भी किस्म के लोग हों, या वे चाहे कहीं भी रहते हों। यीशु ने उस उपदेश में जो विचार बताए, वे शायद लोगों के लिए नए हों। लेकिन फिर भी, वे यीशु की कही बातों को समझ सकते थे, क्योंकि उसने उन विषयों पर बात की, जिनमें हम सभी को दिलचस्पी है: कैसे खुश रहें, दूसरों के साथ कैसे मधुर रिश्ते कायम करें, चिंताओं का सामना कैसे करें और ज़िंदगी को सार्थक कैसे बनाएँ। इतना ही नहीं, यीशु ने अपने विचार इतने सरल शब्दों में कहे कि आम इंसान भी उन्हें आसानी से समझ सकता था। (मत्ती, अध्या. 5-7) बेशक, बाइबल में छोटे-बड़े और अलग-अलग किस्म के वाक्यों के ढेरों उदाहरण दर्ज़ हैं। बात करने में आपका मकसद होना चाहिए कि अपने विचार इस तरह कहें कि वे सुननेवालों को साफ-साफ और आसानी से समझ आएँ।
जब आप किसी मुश्किल विषय पर चर्चा करते हैं, तब भी एक सरल तरीके से जानकारी पेश करने से, बात समझाने में आसानी होगी। आप अपने भाषण को सरल कैसे बना सकते हैं? सुननेवालों को ढेर सारी गैर-ज़रूरी जानकारी मत दीजिए। आप जो जानकारी पेश करने जा रहे हैं, उसे ऐसे क्रम में बिठाइए कि आपके मुख्य मुद्दों को वह पूरा करे। भाषण की खास आयतों का ध्यान से चुनाव कीजिए। फटाफट एक आयत के बाद दूसरी आयत बताने के बजाय, आयतों को पढ़िए और उन पर चर्चा कीजिए। इतने ढेर सारे शब्दों का इस्तेमाल न करें जिससे वह विचार ही छिप जाए जो आप बता रहे हैं।
किसी को बाइबल सिखाते वक्त भी इन्हीं सिद्धांतों पर अमल कीजिए। बाइबल विद्यार्थी को हर छोटी-छोटी बात समझाने के बजाय सिर्फ खास विचारों को ठीक-ठीक समझने में उसकी मदद कीजिए। बाकी छोटी-मोटी बातें वह बाद में, निजी अध्ययन और कलीसिया की सभाओं से सीख सकता है।
जानकारी को सरल तरीके से पेश करने के लिए, अच्छी तैयारी करना ज़रूरी है। दूसरों को साफ-साफ समझाने के लिए, पहले खुद आपको अपना विषय अच्छी तरह समझना होगा। जब आप किसी बात को अच्छी तरह समझते हैं, तो दूसरों को वही बात समझाते वक्त आप कारण देकर बता पाएँगे कि ऐसा क्यों है। इतना ही नहीं, आप जो कुछ समझाएँगे वह आपके अपने शब्दों में होगा।
उन शब्दों के बारे में समझाइए जो दूसरों के लिए नए हैं। आपकी बात आसानी से समझ आए, इसके लिए कभी-कभी आपको उन शब्दों का मतलब समझाने की ज़रूरत पड़ सकती है, जो आपके सुननेवालों के लिए बिलकुल नए हैं। यह मत सोचिए कि आपके सुननेवाले सबकुछ जानते हैं, लेकिन उन्हें बुद्धू भी मत समझिए। आपने बाइबल का अध्ययन किया है, इसलिए आप शायद ऐसे शब्द इस्तेमाल करें जो दूसरों को अजीब लगते हैं। अगर आप “शेष वर्ग,” “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास,” “अन्य भेड़” और “बड़ी भीड़” जैसे शब्द इस्तेमाल करें और उनके बारे में कुछ न समझाएँ, तो जो साक्षी नहीं हैं वे समझ नहीं पाएँगे कि ये शब्द लोगों के समूहों के नाम हैं। (रोमि. 11:5; मत्ती 24:45; यूह. 10:16, NW; प्रका. 7:9) उसी तरह, जो लोग यहोवा के साक्षियों के संगठन से वाकिफ नहीं हैं, वे “प्रकाशक,” “पायनियर,” “सर्किट ओवरसियर” और “स्मारक” जैसे शब्दों को नहीं समझ पाएँगे।
बाइबल के उन शब्दों का भी मतलब समझाने की ज़रूरत पड़ सकती है जिनका साक्षियों के अलावा और लोग भी इस्तेमाल करते हैं। बहुत-से लोग “अरमगिदोन” का मतलब परमाणु युद्ध समझते हैं। वे सोचते हैं कि “परमेश्वर के राज्य” का मतलब एक सरकार नहीं बल्कि इंसान के दिल की हालत है या स्वर्ग है। “प्राण” शब्द सुनकर शायद उनके मन में यह खयाल आए कि यह इंसान की अमर आत्मा है जो उसके मरने के बाद, शरीर से निकल जाती है। लाखों लोगों को यह सिखाया गया है कि “पवित्र आत्मा” एक व्यक्ति है और त्रियेक का हिस्सा है। बाइबल के नैतिक नियमों का ठुकराया जाना आज इतना आम हो गया है कि लोगों को शायद यह समझाने की ज़रूरत पड़े कि बाइबल की इस बात, “व्यभिचार से बचे रहो” का क्या मतलब है।—1 कुरि. 6:18.
जो लोग बाइबल को नियमित तौर पर नहीं पढ़ते, उनके सामने अगर आप “इब्राहीम,” “पौलुस” या “लूका” जैसे लोगों का ज़िक्र करेंगे, तो उन्हें शायद मालूम नहीं होगा कि ये कौन लोग थे। आपको शायद उनके बारे में यह भी बताना पड़े कि फलाँ इंसान, प्राचीन इस्राएल का कुलपिता था, यीशु मसीह का प्रेरित था या बाइबल का एक लेखक था।
हमारे समय के लोगों को उन आयतों को भी समझने में मदद की ज़रूरत है जिनमें पुराने ज़माने के माप या रीति-रिवाज़ों का ज़िक्र है। उदाहरण के लिए, अगर हम कहें कि नूह का बनाया जहाज़ 300 हाथ लंबा, 50 हाथ चौड़ा और 30 हाथ ऊँचा था, तो वे शायद ठीक से समझ न पाएँ। (उत्प. 6:15) लेकिन अगर आप लोगों को जानी-पहचानी जगह की माप के मुताबिक समझाएँगे, तो वे जहाज़ के आकार के बारे में फौरन समझ जाएँगे।
ज़रूरी बातें समझाइए। सुननेवालों को किसी शब्द की सिर्फ सही परिभाषा देना शायद काफी न हो। एज्रा के दिनों में यरूशलेम में, व्यवस्था पढ़कर सुनाने के साथ-साथ उसे समझाया भी गया था। लोगों को व्यवस्था का अर्थ समझाने के लिए लेवियों ने न सिर्फ व्यवस्था समझायी बल्कि यह भी बताया कि वे अपने मौजूदा हालात में व्यवस्था पर कैसे अमल कर सकते हैं। (नहे. 8:8, 12) उसी तरह आप भी जिन आयतों को पढ़ते हैं, उनका अर्थ समझाइए और बताइए कि उन पर कैसे अमल किया जा सकता है।
यीशु ने अपनी मौत और पुनरुत्थान के बाद, अपने शिष्यों को समझाया कि उस समय में हाल की घटनाओं से, बाइबल की भविष्यवाणियाँ पूरी हुई थीं। उसने यह भी बताया कि उन घटनाओं को खुद अपनी आँखों से देखने के बाद उन पर क्या ज़िम्मेदारी आती है। (लूका 24:44-48) जब आप लोगों को समझाएँगे कि उन्होंने जो सीखा है, उसका उनकी ज़िंदगी पर क्या असर होना चाहिए, तो वे उनका मतलब और अच्छी तरह समझ पाएँगे।
इसमें दिल कैसे शामिल है। आप अपने विषय के बारे में चाहे जितना भी साफ-साफ समझाएँ, सामनेवाला उसे समझता है या नहीं, यह और भी कई बातों पर निर्भर करता है। अगर इंसान का दिल सुनने के लिए तैयार नहीं है, तो यह उसके लिए एक बाधा होती है जिससे वह बतायी जा रही बात का अर्थ नहीं समझ पाता। (मत्ती 13:13-15) जो लोग हर मामले को इंसानी नज़रिए से देखते हैं, उन्हें आध्यात्मिक बातें, मूर्खता लगती हैं। (1 कुरि. 2:14) जब एक इंसान आध्यात्मिक बातों के बारे में ऐसा रवैया दिखाता है, तो कम-से-कम उस वक्त के लिए, उसके साथ चर्चा को खत्म करना ठीक रहेगा।
लेकिन, कुछ लोगों का दिल इसलिए सुनने के लिए तैयार नहीं रहता, क्योंकि वे बहुत मुश्किल हालात से गुज़रे हैं। ऐसे लोगों को बाइबल की सच्चाई बताते रहने से, कुछ समय बाद शायद उनका मन सच्चाई को सुनने के लिए तैयार हो जाए। जब यीशु ने अपने प्रेरितों को बताया कि उसे कोड़े लगाए जाएँगे और उसे मार डाला जाएगा, तो वे उसकी बात समझ नहीं पाए। क्यों नहीं? उन्होंने कभी यह उम्मीद नहीं की थी कि यीशु के साथ ऐसा सलूक किया जाएगा, और वे हरगिज़ ऐसा चाहते भी नहीं थे। (लूका 18:31-34) लेकिन कुछ समय बाद, यीशु के 11 प्रेरितों ने उसकी बातों का मतलब समझ लिया और यीशु की सिखायी बातों के मुताबिक काम करके इसका सबूत दिया।
अच्छी मिसाल का असर। लोग न सिर्फ हमारी बातों से बल्कि हमारे व्यवहार से सच्चाई की समझ हासिल कर सकते हैं। बहुत-से लोगों को याद है कि वे जब पहली बार किंगडम हॉल आए थे, तो उन्होंने कैसा प्यार भरा माहौल देखा था जबकि उन्हें शायद ही याद हो कि वहाँ क्या सिखाया गया था। उसी तरह, प्रचार में हम जो खुशी ज़ाहिर करते हैं, उसे देखकर कई लोग बाइबल की सच्चाई सुनने के लिए तैयार हुए हैं। और जब कुछ लोगों ने देखा है कि यहोवा के सेवक, कैसे एक-दूसरे की परवाह करते हैं, खासकर मुसीबत की घड़ी में एक-दूसरे की मदद करते हैं, तो वे कहते हैं कि साक्षियों का धर्म ही सच्चा धर्म है। इसलिए लोगों को बाइबल की सच्चाई समझाने की कोशिश करते वक्त, ध्यान दीजिए कि आप किस तरीके से समझाते हैं और कैसी मिसाल रखते हैं।