मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
4-10 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | सपन्याह 1–हाग्गै 2
“यहोवा के क्रोध के दिन से पहले उसकी खोज करो”
यहोवा के क्रोध के दिन से पहले उसे ढूँढ़िए
5 आप शायद कहें: ‘मैं अपना समर्पण करके बपतिस्मा ले चुका हूँ, और यहोवा का साक्षी बन गया हूँ। तो क्या मैंने ये सारी माँगे पूरी नहीं कर ली हैं?’ सच तो यह है कि यहोवा को सिर्फ समर्पण कर देना ही काफी नहीं है। इस्राएल जाति भी एक समर्पित जाति थी। मगर सपन्याह के दिनों में यहूदा के लोग अपने समर्पण के मुताबिक नहीं जी रहे थे। नतीजा क्या हुआ? आखिर में जाकर, परमेश्वर ने पूरी जाति को ठुकरा दिया। आज ‘यहोवा को ढ़ूंढ़ने’ का मतलब है, यहोवा के साथ एक नज़दीकी रिश्ता बनाना और उसे कायम रखना। ऐसा हमें पृथ्वी पर उसके संगठन के साथ-साथ चलते हुए करना हैं। ‘यहोवा को ढूँढ़ने’ का यह भी मतलब है कि हम हर मामले में यहोवा के नज़रिए को जानने की कोशिश करें और देखें कि फलाना काम करने से यहोवा को कैसा महसूस होगा। यहोवा को ढूँढ़ने के लिए ज़रूरी है कि हम उसके वचन का ध्यान से अध्ययन करें, उस पर मनन करें, और उसकी सलाहों को अपने जीवन में लागू करें। यहोवा को ढूँढ़ने के लिए यह भी आवश्यक है कि हम मन लगाकर यहोवा से प्रार्थना करके उससे मार्गदर्शन माँगें, और पवित्र आत्मा द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलें। ऐसा करने पर हम यहोवा के और करीब जाएँगे, और हमें ‘सारे मन, सारे जीव, सारी शक्ति के साथ’ यहोवा की सेवा करने की प्रेरणा मिलेगी।—व्यवस्थाविवरण 6:5; गलतियों 5:22-25; फिलिप्पियों 4:6, 7; प्रकाशितवाक्य 4:11.
6 सपन्याह 2:3 के अनुसार दूसरी माँग है: “धर्म को ढ़ूंढ़ो।” हममें से ज़्यादातर लोगों ने अपनी ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी तबदीलियाँ की थीं ताकि हम मसीही बपतिस्मा लेने के योग्य बन सकें। मगर अब हमें ज़िंदगी भर यहोवा के धार्मिक स्तरों पर लगातार चलते रहने की ज़रूरत है। कुछ भाई-बहन बपतिस्मा के बाद कुछ समय तक परमेश्वर के धार्मिक स्तरों पर चले तो सही, मगर धीरे-धीरे वे इस संसार की मलिनता से दूषित हो गए। माना कि आज धर्म को ढूँढ़ना इतना आसान नहीं है, क्योंकि हम ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिन्हें लैंगिक अनैतिकता, झूठ बोलने और दूसरे गलत काम करने में कोई बुराई नज़र नहीं आती। हमारे अंदर भी इस दुष्ट संसार के लोगों के रंग में रंगने और उनकी वाह-वाही पाने की इच्छा पैदा हो सकती है। लेकिन अगर यहोवा को खुश करने का हमारा इरादा मज़बूत हो तो हम ऐसी हर इच्छा पर काबू पा सकते हैं। याद कीजिए कि यहोवा ने यहूदा को इसीलिए ठुकरा दिया था क्योंकि उसके लोग अपने आस-पास की जातियों के भक्तिहीन लोगों के रंग में रंग गए थे। इसलिए आइए हम दुनिया की नकल करने के बजाय “परमेश्वर के सदृश्य” बने, और ‘नया मनुष्यत्व’ बढ़ाते रहें जो “परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।”—इफिसियों 4:24; 5:1.
7 सपन्याह 2:3 के मुताबिक यहोवा के क्रोध के दिन से बचने की तीसरी माँग है, ‘नम्रता को ढ़ूंढ़ना।’ हर दिन हमें ऐसे स्त्री, पुरुष और जवानों के साथ उठना-बैठना पड़ता है जिनमें नम्रता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। उनकी नज़र में विनम्र इंसान बुज़दिल होता है। वे सोचते हैं कि सिर्फ कमज़ोर लोग ही दूसरों के अधीन रहते हैं। इसलिए वे दूसरों से हद-से-ज़्यादा की माँग करते हैं, अपनी बात पर अड़े रहते हैं और स्वार्थी बने रहते हैं। वे समझते हैं कि किसी भी कीमत पर उन्हें अपना “हक” मिलना ही चाहिए और हर काम उनकी पसंद के मुताबिक होना चाहिए। अगर हम भी उनकी तरह बनने लगे तो यह कितने दुःख की बात होगी! इसलिए यही समय है कि हम ‘नम्रता को ढूँढ़ें।’ मगर कैसे? परमेश्वर के अधीन रहें, दीन होकर उसका अनुशासन स्वीकार करें और उसकी इच्छा के मुताबिक खुद को ढालें।
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नहूम, हबक्कूक और सपन्याह किताबों की झलकियाँ
1:8. सपन्याह के दिनों में कुछ लोग आस-पास की जातियों की मंज़ूरी पाने के लिए “परदेश के वस्त्र पहिना करते” थे। उसी तरह, आज अगर यहोवा के उपासक भी संसार के रंग में रंगने की कोशिश करें, तो यह कितनी बड़ी बेवकूफी होगी!
हाग्गै और जकर्याह किताबों की झलकियाँ
2:9 (NW)—किन मायनों में परमेश्वर के ‘बाद के भवन की महिमा, पहले भवन की महिमा से बड़ी’ थी? परमेश्वर के बाद के भवन की महिमा कम-से-कम तीन मायनों में पहले भवन की महिमा से बड़ी थी। एक, सुलैमान का बनाया आलीशान मंदिर सिर्फ 420 साल तक खड़ा रहा (यानी सा.यु.पू. 1027 से 607 तक), जबकि ‘बाद का भवन’ 580 से भी ज़्यादा सालों तक खड़ा रहा (यानी सा.यु.पू. 515 में उसके दोबारा बनाए जाने से लेकर सा.यु. 70 में उसके नाश तक)। दूसरा, ‘बाद के भवन’ में मसीहा यानी यीशु मसीह ने लोगों को सिखाया था। और तीसरा, पहले मंदिर के मुकाबले ‘बाद के भवन’ में ज़्यादा लोग परमेश्वर की उपासना के लिए आए थे।—प्रेरितों 2:1-11.
11-17 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | जकरयाह 1-8
“‘वे एक यहूदी के कपड़े का छोर पकड़ लेंगे’”
‘अब तुम परमेश्वर के लोग हो’
14 सदियों पहले, दो नबियों ने भविष्यवाणी की थी कि इस अंत के समय में बहुत-से लोग यहोवा के चुने हुए लोगों के साथ मिलकर उसकी उपासना करेंगे। यशायाह नबी ने कहा था: “बहुत देशों के लोग आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा।” (यशा. 2:2, 3) उसी तरह, जकर्याह नबी ने भी भविष्यवाणी की थी: “बहुत से देशों के वरन सामर्थी जातियों के लोग यरूशलेम में सेनाओं के यहोवा को ढ़ूंढ़ने और यहोवा से बिनती करने के लिये आएंगे।” जकर्याह नबी ने उन्हें “दस मनुष्य” के रूप में दर्शाया, जो “भांति भांति की भाषा बोलनेवाली सब जातियों में से” निकलेंगे। उसने कहा कि वे आत्मिक इसराएल के साथ मिलकर परमेश्वर की उपासना करेंगे और कहेंगे: “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।”—जक. 8:20-23.
“हम तुम्हारे संग चलेंगे”
4 अगर आज धरती पर मौजूद सभी अभिषिक्त मसीहियों के नाम जानना मुमकिन नहीं है, तो फिर ‘दूसरी भेड़’ के लोग उनके “संग” कैसे जा सकते हैं? बाइबल में लिखा है कि “दस मनुष्य, एक यहूदी पुरुष के वस्त्र की छोर को यह कहकर पकड़ लेंगे, ‘हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।’” हालाँकि बाइबल यहाँ एक यहूदी पुरुष की बात करती है, लेकिन शब्द “तुम्हारे” से पता चलता है कि एक से ज़्यादा लोगों की बात की गयी है। इसका मतलब है कि यहूदी पुरुष किसी एक व्यक्ति को नहीं, बल्कि अभिषिक्त मसीहियों के पूरे समूह को दर्शाता है। यह बात दूसरी भेड़ के लोग अच्छी तरह जानते हैं और वे इस समूह के साथ मिलकर यहोवा की सेवा करते हैं। उन्हें न तो इस समूह के हर सदस्य का नाम जानने की ज़रूरत है और न उनमें से हर एक के पीछे चलने की ज़रूरत है। हमारा अगुवा यीशु है और बाइबल कहती है कि हमें सिर्फ उसके पीछे चलना चाहिए।—मत्ती 23:10.
“जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं”
14 यीशु के मुताबिक जो उसके भाइयों का वफादारी से साथ निभाता है, वह मानो यीशु का साथ निभाता है। (मत्ती 25:40 पढ़िए।) तो अब सवाल है कि धरती पर जीने की आशा रखनेवाले किस तरह मसीह के अभिषिक्त भाइयों का साथ दे सकते हैं? सबसे पहला और अहम तरीका है, राज के प्रचार काम में उनका हाथ बँटाकर। (मत्ती 24:14; यूह. 14:12) धरती पर अभिषिक्त जनों की गिनती घटती जा रही है, जबकि अन्य भेड़ के लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसलिए जब ये लोग गवाही देने में हिस्सा लेते हैं और कुछ पूरे समय के प्रचारक बनकर ऐसा करते हैं, तब उस मायने में वे चेला बनाने के काम में अभिषिक्त भाइयों का साथ देते हैं। (मत्ती 28:19, 20) हम इस बात को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि कई तरीकों से रुपए-पैसे दान में देकर भी प्रचार काम में सहयोग दिया जा सकता है।
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जकरयाह के दर्शनों से आप क्या सीखते हैं?
18 इस दर्शन ने यहूदियों को यह एहसास दिलाया कि उनका भी फर्ज़ है कि वे यहोवा की उपासना को शुद्ध बनाए रखें। उन्हें किसी भी तरह की बुराई बरदाश्त नहीं करनी चाहिए। आज यहोवा ने हमें भी उसके शुद्ध संगठन का एक हिस्सा बनाया है, जहाँ हमें उसका प्यार और हिफाज़त मिलती है। इस संगठन को शुद्ध बनाए रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। इसलिए हमारे बीच किसी भी तरह की बुराई के लिए कोई जगह नहीं।
रथ और ताज आपकी हिफाज़त करते हैं
7 बाइबल में पहाड़ सरकारों और हुकूमतों को दर्शाते हैं। जकरयाह ने जो पहाड़ देखे, वे दानियेल की भविष्यवाणी में बताए दो पहाड़ों से मिलते-जुलते हैं। एक पहाड़, सारे जहान पर यहोवा की हुकूमत को दर्शाता है, जो सदा कायम रहती है। दूसरा पहाड़, मसीहाई राज को दर्शाता है जिसका राजा यीशु है। (दानि. 2:35, 45) सन् 1914 के पतझड़ में यीशु राजा बना और तब से ये दोनों पहाड़ मिलकर धरती के लिए परमेश्वर का मकसद पूरा करने में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं।
8 पहाड़ ताँबे के क्यों हैं? ताँबा बहुत कीमती और चमकदार धातु है। यहोवा ने पवित्र डेरे और बाद में यरूशलेम के मंदिर के निर्माण में ताँबा इस्तेमाल करने के लिए कहा था। (निर्ग. 27:1-3; 1 राजा 7:13-16) दर्शन में पहाड़ ताँबे के इसलिए बताए गए हैं क्योंकि यहोवा की हुकूमत और मसीहाई राज सब हुकूमतों से बढ़कर हैं। इन दोनों हुकूमतों से सब इंसानों को हिफाज़त और ढेरों आशीषें मिलेंगी।
18-24 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | जकरयाह 9-14
“‘पहाड़ों के बीच बनी उस घाटी’ में रहिए”
यहोवा की घाटी में बने रहकर हिफाज़त पाइए
10 भविष्यवाणी के मुताबिक जब जैतून का पर्वत फटता है और आधा उत्तर की तरफ और आधा दक्षिण की तरफ हो जाता है, तब यहोवा के पाँव दोनों पर्वतों पर बने रहते हैं। ऐसा होने पर यहोवा के पाँवों के नीचे “एक गहरी घाटी” बन जाती है। यह घाटी परमेश्वर से मिलनेवाली हिफाज़त को दर्शाती है। जैसे दो पहाड़ों के बीच घाटी में लोग सुरक्षित रहते हैं, वैसे ही यहोवा के सेवक उसकी हुकूमत और मसीहाई राज के अधीन सुरक्षित महसूस करते हैं। यहोवा इस बात का पूरा ध्यान रखेगा कि सच्ची उपासना कभी खत्म न हो। लेकिन जैतून का पर्वत कब फटता है? सन् 1914 में, जब अन्य जातियों का तय समय खत्म होता है और मसीहाई राज कायम होता है। भविष्यवाणी आगे कहती है, “और तब तुम मेरे पर्वतों की घाटी में भाग जाओगे।” (जक. 14:5, एन. डब्ल्यू.) तो फिर सच्चे उपासक कब उस घाटी की तरफ भागना शुरू करते हैं?
यहोवा की घाटी में बने रहकर हिफाज़त पाइए
13 अगर हम यहोवा से लिपटे रहें और सच्चाई में मज़बूती से खड़े रहें, तो वह और उसका बेटा ज़रूर हमारी हिफाज़ात करेंगे। परमेश्वर कभी किसी ताकत या इंसान को यह मौका नहीं देगा कि वह ‘हमें उसके हाथ से छीन ले।’ (यूह. 10:28, 29) यहोवा हमें हर तरह की मदद देने के लिए तैयार है ताकि हम सारे जहान के महाराजा और मालिक के नाते उसकी आज्ञा मान सकें और मसीह के राज की वफादार प्रजा बने रहें। बहुत जल्द महा-संकट आनेवाला है और उस दौरान हमें यहोवा की मदद की और भी ज़रूरत होगी, इसलिए आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम उसकी घाटी में बने रहें।
यहोवा की घाटी में बने रहकर हिफाज़त पाइए
15 परमेश्वर के संग्राम के दिन, उन लोगों का क्या होगा जो “गहरी घाटी” की हिफाज़त में नहीं होंगे? उन पर “उजियाला न” चमकेगा, यानी परमेश्वर की मंज़ूरी उन पर न होगी। परमेश्वर के युद्ध के दिन ‘घोड़े, खच्चर, ऊंट और गदहे वरन सभी पशु’ जो राष्ट्रों के हथियारों को दर्शाते हैं, वे भी किसी काम के नहीं रहेंगे। यहोवा दुश्मनों पर विपत्तियाँ और “बीमारी” भी लाएगा। हम यह तो नहीं जानते कि उन्हें सचमुच कोई बीमारी लगेगी या नहीं, मगर इतना ज़रूर जानते हैं कि उनकी एक न चलेगी। उस दिन ‘उनकी आँखें और उनकी जीभ सड़ जाएँगी’ यानी वे हमारा कोई नुकसान नहीं कर पाएँगे और परमेश्वर के खिलाफ एक लब्ज़ भी नहीं बोल पाएँगे। (जक. 14:6, 7, 12, 15) शैतान की तरफ एक विशाल सेना होगी, फिर भी धरती का ऐसा कोई कोना न होगा जहाँ शैतान के लोग परमेश्वर के विनाश से बच सकें। (प्रका. 19:19-21) “उस समय यहोवा के मारे हुओं की लोथें पृथ्वी की एक छोर से दूसरी छोर तक पड़ी रहेंगी।”—यिर्म. 25:32, 33.
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अध्ययन लेख ब्रोशर 07 पेज 25 पै 9-10
तेरी हानि के लिए बनाया कोई भी हथियार सफल न होगा
9 जकर्याह की भविष्यवाणी बताती है कि क्यों राष्ट्र-राष्ट्र के लोग सच्चे मसीहियों का विरोध करते हैं। गौर कीजिए कि जकर्याह 12:3 (NHT) क्या कहता है: “उस दिन ऐसा होगा कि मैं यरूशलेम को सब जातियों के लिए एक भारी पत्थर बना दूंगा।” यह भविष्यवाणी किस यरूशलेम की तरफ इशारा करती है? “स्वर्गीय यरूशलेम” यानी स्वर्गीय राज्य की तरफ, जिसमें राज करने के लिए अभिषिक्त मसीहियों को बुलाया गया है। (इब्रानियों 12:22) मसीहाई राज्य के इन वारिसों में से कुछ अब भी धरती पर मौजूद हैं। वे और उनके ‘अन्य भेड़’ के साथी, लोगों से गुज़ारिश कर रहे हैं कि अभी भी वक्त है, परमेश्वर की हुकूमत के अधीन हो जाइए। (यूहन्ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 11:15) यह न्यौता पाकर राष्ट्रों ने कैसा रवैया दिखाया है? और आज यहोवा अपने सच्चे उपासकों की किस तरह से मदद करता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए, आइए जकर्याह के अध्याय 12 की जाँच करें। ऐसा करने से, हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर के अभिषिक्त जनों और उनके समर्पित साथियों के खिलाफ उठनेवाला “कोई भी हथियार सफल न होगा।”
10 जकर्याह 12:3 बताता है कि राष्ट्र “गम्भीर रूप से घायल” (NHT) होते हैं। वह कैसे? परमेश्वर ने यह आज्ञा दी है कि राज्य के सुसमाचार का हर हाल में प्रचार किया जाए। यहोवा के साक्षी इस आज्ञा को बड़ी गंभीरता से लेते हैं। वे ऐलान करते हैं कि सिर्फ परमेश्वर का राज्य ही इंसान की सारी दुःख-तकलीफों को दूर करेगा। लेकिन यह पैगाम राष्ट्रों के लिए “एक भारी पत्थर” बन गया है। वे राज्य प्रचारकों के काम में खलल पैदा करने के ज़रिए इस पत्थर को रास्ते से हटाने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसा करने से वे “गम्भीर रूप से घायल” हुए हैं। यहाँ तक कि उन्हें अपमान के साथ-साथ हार का मुँह देखना पड़ा है। वे उन सच्चे उपासकों को खामोश नहीं कर सकते, जो इस संसार के अंत से पहले, परमेश्वर के मसीहाई राज्य का “सनातन सुसमाचार” सुनाने को एक सम्मान समझते हैं। (प्रकाशितवाक्य 14:6) एक अफ्रीकी देश में, जब एक जेल के पहरेदार ने साक्षियों पर हुए अत्याचार को देखा, तो उसने उनके विरोधियों से कुछ इस तरह कहा: ‘इन लोगों पर ज़ुल्म ढाकर आप खाहमखाह अपना वक्त बरबाद कर रहे हैं। ये लोग समझौता करनेवाले नहीं। इनकी गिनती बढ़ती ही चली जाएगी।’
अध्ययन लेख ब्रोशर 07 पेज 27 पै 13
तेरी हानि के लिए बनाया कोई भी हथियार सफल न होगा
13 जकर्याह 12:7, 8 पढ़िए। प्राचीन इस्राएल में, तंबुओं का होना एक आम नज़ारा था। इनमें कभी-कभी चरवाहे या खेतों में काम करनेवाले मज़दूर रहा करते थे। इसलिए यरूशलेम नगर पर अगर कोई दुश्मन देश हमला करता, तो सबसे पहले यही लोग उनके हमलों के शिकार होते। और इनको ही सबसे पहले हिफाज़त की ज़रूरत पड़ती। शब्द “यहूदा के तम्बुओं” से ज़ाहिर होता है कि आज हमारे समय में, बचे हुए अभिषिक्त जन लाक्षणिक तौर पर खुले मैदान में हैं, न कि गढ़वाले नगरों में। वहाँ वे निडरता से मसीहाई राज्य की पैरवी करते हैं। सेनाओं का यहोवा सबसे “पहिले यहूदा के तम्बुओं” को बचाएगा, क्योंकि ये सीधे-सीधे शैतान के निशाने पर हैं।
25-31 दिसंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | मलाकी 1-4
“क्या आपके शादी के रिश्ते को देखकर यहोवा खुश है?”
जेहोवाज़ डे पेज 125-126 पै 4-5
परिवार में अपनी ज़िम्मेदारी निभाइए ताकि परमेश्वर खुश हो
4 ईसा पूर्व पाँचवीं सदी यानी मलाकी के दिनों में यहूदियों के बीच तलाक आम बात हो गयी थी। मलाकी ने यहूदी आदमियों से कहा, “तुमने अपनी जवानी की पत्नी के साथ विश्वासघात किया है और यहोवा इस बात का गवाह है।” यहूदी आदमी साज़िश रचते और अपनी पत्नियों को तलाक देते थे, इसलिए उनकी पत्नियाँ ‘आहें भर-भरकर रोती’ थीं, इतना कि मलाकी ने कहा कि यहोवा की वेदी मानो उनके आँसुओं से भीग गयी थी। याजक भी इतने भ्रष्ट थे कि वे उन आदमियों की दुष्टता को नज़रअंदाज़ कर रहे थे।—मलाकी 2:13, 14.
5 शादी के बंधन के बारे में यह गलत सोच देखकर यहोवा को कैसा लगा? यहोवा ने कहा, “मुझे तलाक से नफरत है।” (मलाकी 2:16; 3:6) उसने यह भी कहा, “मैं बदलता नहीं।” (मलाकी 2:16; 3:6) इससे हम क्या सीखते हैं? परमेश्वर ने इंसानों की शुरूआत में ही बताया था कि शादी एक अटूट बंधन है। (उत्पत्ति 2:18, 24) उसने मलाकी के दिनों में भी यही बात कही और आज भी उसका यही नज़रिया है। कुछ लोग बस इसलिए तलाक ले लेते हैं, क्योंकि वे अपने साथी से खुश नहीं हैं। वे तलाक को सही ठहराने के लिए चाहे जो भी वजह बताएँ, यहोवा उनके इरादे जानता है। (यिर्मयाह 17:9, 10) वह देख सकता है कि क्या कोई चालाकी से साज़िश करके या झूठ बोलकर तलाक दे रहा है। “सृष्टि में ऐसी एक भी चीज़ नहीं जो परमेश्वर की नज़र से छिपी हो बल्कि हमें जिसको हिसाब देना है उसकी आँखों के सामने सारी चीज़ें खुली और बेपरदा हैं।”—इब्रानियों 4:13.
यहोवा विश्वासघात से घृणा करता है
19 दूसरी तरफ, मलाकी एक अच्छी बात भी बताता है। उसके समय में कुछ ऐसे पुरुष थे जिन्होंने अपनी पत्नियों के साथ विश्वासघात नहीं किया था। इसलिए उन्हें ‘परमेश्वर की शेष पवित्र आत्मा’ मिली थी। (आयत 15, NW) खुशी की बात है कि आज परमेश्वर के संगठन में ऐसे पुरुष बड़ी तादाद में हैं जो ‘अपनी पत्नियों का आदर करते हैं।’ (1 पतरस 3:7) वे ना तो अपनी पत्नियों को मारते-पीटते हैं, ना ही उन्हें गालियाँ देते और उन पर तानें कसते हैं। वे उन पर नीच लैंगिक काम करने का ज़ोर नहीं डालते और ना ही दूसरी स्त्रियों के साथ इश्कबाज़ी करके या पोर्नोग्राफी का मज़ा लेकर अपनी पत्नियों का अपमान करते हैं। और यहोवा के संगठन में ऐसी मसीही पत्नियों की भी कमी नहीं, जो परमेश्वर और उसकी आज्ञाओं की वफादार रहती हैं। ये सारे स्त्री-पुरुष जानते हैं कि परमेश्वर किन बातों से नफरत करता है और वे उसके मुताबिक अपने सोच-विचारों को ढालते और काम करते हैं। आप भी उनकी तरह बनिए और “परमेश्वर की आज्ञा का पालन” करते हुए पवित्र आत्मा की आशीष पाइए।—प्रेरितों 5:29.
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अध्ययन लेख ब्रोशर 07 पेज 29 पै 1
मलाकी किताब की झलकियाँ
1:10. मलाकी के दिनों के याजक इतने लालची थे कि मंदिर के फाटक बंद करने या वेदी पर आग जलाने जैसी छोटी-सी सेवा के लिए भी पैसे माँगते थे! इसलिए यहोवा ने उनके हाथों से भेंट ग्रहण नहीं की! आज हमें कभी-भी स्वार्थ की वजह से यहोवा की उपासना और प्रचार नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, यहोवा और लोगों के लिए निःस्वार्थ प्रेम ही हमें ऐसे काम करने को उकसाना चाहिए।—मत्ती 22:37-39; 2 कुरिन्थियों 11:7.
“देखो! मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ”
5 यीशु के यह मिसाल देने से सदियों पहले, यहोवा ने अपने नबी मलाकी को प्रेरित किया कि वह कुछ ऐसी घटनाओं के बारे में भविष्यवाणी करे, जिनके बारे में यीशु ने इस मिसाल में बताया था। (मलाकी 3:1-4 पढ़िए।) यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, मलाकी की भविष्यवाणी में बताया वह ‘दूत था जिसने मार्ग सुधारा,’ यानी रास्ता तैयार किया। (मत्ती 11:10, 11) जब वह ईसवी सन् 29 में आया, तब इसराएल राष्ट्र का न्याय बहुत करीब था। मलाकी की भविष्यवाणी में बताया दूसरा दूत, यानी ‘वाचा का दूत,’ यीशु था। यीशु ने यरूशलेम के मंदिर को दो बार शुद्ध किया। पहली बार, अपनी सेवा की शुरूआत में और दूसरी बार अपनी सेवा के आखिर में। (मत्ती 21:12, 13; यूह. 2:14-17) इसका मतलब है, यीशु ने मंदिर को शुद्ध करने का जो काम किया, वह कुछ वक्त तक चला।
6 मलाकी की भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर कैसे पूरी हुई? सन् 1914 से बहुत साल पहले, भाई चार्ल्स टेज़ रसल और उनके साथ काम करनेवाले भाइयों ने यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की तरह काम किया। उन्होंने बाइबल का अध्ययन किया ताकि वे बाइबल का सही ज्ञान पा सकें। इन ‘बाइबल विद्यार्थियों’ ने सिखाया कि मसीह के फिरौती बलिदान का असल मतलब क्या है, इस बात का परदाफाश किया कि नरक की शिक्षा झूठी है और ऐलान किया कि राष्ट्रों के लिए तय किया हुआ वक्त सन् 1914 में खत्म होगा। उस समय दूसरे बहुत-से धार्मिक समूह भी थे, जो मसीह के चेले होने का दम भरते थे। तो एक अहम सवाल उठता है कि आखिर इनमें से गेहूँ-समान लोग कौन थे? इस सवाल का जवाब देने के लिए यीशु ने सन् 1914 में आध्यात्मिक मंदिर (उपासना के लिए परमेश्वर का ठहराया इंतज़ाम) का मुआयना करना शुरू किया। आध्यात्मिक मंदिर का मुआयना करने और उसे शुद्ध करने का यह काम कुछ वक्त तक चला, यानी सन् 1914 से सन् 1919 की शुरूआत तक।