बाइबल का दृष्टिकोण
क्या घमंड करना गलत है?
पुरानी कहावत है कि सात महापापों में से पहला महापाप घमंड है। लेकिन आज अनेक लोग मानते हैं कि यह विचार बहुत ही पुराना है। आज २१वीं सदी की दहलीज़ पर घमंड को पाप नहीं बल्कि एक खूबी समझा जाता है।
लेकिन, जब बाइबल घमंड की बात करती है तो आम तौर पर इसे अच्छा नहीं बताया जाता। बाइबल की नीतिवचन नामक पुस्तक में ही कई हवाले हैं जो घमंड को बुरा बताते हैं। उदाहरण के लिए, नीतिवचन ८:१३ कहता है: “घमण्ड, अहंकार और बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से भी मैं बैर रखती हूं।” नीतिवचन १६:५ कहता है: “सब मन के घमण्डियों से यहोवा घृणा करता है।” और आयत १८ चिताती है: “विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।”
नुकसान पहुँचानेवाला घमंड
बाइबल में जिस किस्म के घमंड की निंदा की गयी है उसे अत्यधिक आत्म-गौरव और अपने कौशल, सौंदर्य, धन, शिक्षा, पद इत्यादि के बारे में श्रेष्ठता की अनुचित भावना की परिभाषा दी जा सकती है। यह नफरत-भरे बर्ताव, शेखी, गुस्ताखी या अहंकार के रूप में सामने आ सकता है। जो अपने आपको ज़रूरत से ज़्यादा समझता है वह शायद ज़रूरी सलाह को मानने से इनकार करे; गलती मानकर माफी माँगने, अपनी बात वापस लेने और हार मानने को राज़ी न हो; या दूसरे की किसी बात का नाहक बुरा मान जाता हो।
घमंडी हमेशा हठ करता है कि जैसा वह कहता है वैसा ही किया जाए वरना कुछ भी न किया जाए। तो फिर यह समझना मुश्किल नहीं कि ऐसी मनोवृत्ति के कारण वह क्यों अकसर दूसरों के साथ किसी-न-किसी तरह का झगड़ा कर बैठता है। अपनी जाति या देश पर घमंड के कारण अनगिनत युद्ध हुए हैं और बहुत खून बहा है। बाइबल के अनुसार, घमंड के कारण ही परमेश्वर के एक आत्मिक पुत्र ने विद्रोह किया और अपने आपको शैतान अर्थात इब्लीस बना लिया। मसीही प्राचीनों में ज़रूरी योग्यताओं के बारे में पौलुस ने सलाह दी: “नया चेला न हो, ऐसा न हो, कि अभिमान करके शैतान का सा दण्ड पाए।” (१ तीमुथियुस ३:६. यहेजकेल २८:१३-१७ से तुलना कीजिए।) यदि घमंड के नतीजे ये हैं तो यह हैरानी की बात नहीं कि परमेश्वर इसकी निंदा करता है। लेकिन आप शायद पूछें, ‘क्या ऐसी स्थितियाँ नहीं जब घमंड करना उचित हो?’
क्या उचित घमंड भी होता है?
मसीही यूनानी शास्त्र में, क्रिया काफ्खाओमॆ को “घमंड करना, आनंदित होना, गर्व करना” अनुवादित किया गया है और इसे नकारात्मक और सकारात्मक दोनों अर्थ में इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण के लिए, पौलुस कहता है कि “परमेश्वर की महिमा की आशा में हम आनन्दित होते हैं।” वह यह सलाह भी देता है: “परन्तु जो घमण्ड करे, वह प्रभु पर घमण्ड करे।” (रोमियों ५:२, NHT; २ कुरिन्थियों १०:१७) इसका अर्थ है कि हम यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर उस पर घमंड करें। यह एक ऐसी भावना है जो हमें उसके भले नाम और प्रतिष्ठा के कारण आनंद मनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
उदाहरण के लिए: यदि भले नाम पर कलंक लगाया जाए तो क्या उसे मिटाने की कोशिश करना गलत है? जी नहीं। यदि लोग आपके परिवार के सदस्यों के बारे में या जिनसे आप प्रेम करते हैं और जिनका आप आदर करते हैं उनके बारे में झूठी बातें कहें तो क्या आपको गुस्सा नहीं आएगा और आप उनकी तरफ से सफाई देने की कोशिश नहीं करेंगे? “बड़े धन से अच्छा नाम अधिक चाहने योग्य हैं,” बाइबल कहती है। (नीतिवचन २२:१) एक बार सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मिस्र के एक घमंडी फिरौन से कहा: “मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं।” (निर्गमन ९:१६) सो परमेश्वर अपने अच्छे नाम और प्रतिष्ठा पर घमंड करता है और उसके लिए उसे धुन रहती है। हमें भी अपने अच्छे नाम और प्रतिष्ठा का बचाव करने में दिलचस्पी हो सकती है लेकिन ज़रूरी नहीं कि हम झूठे और स्वार्थी घमंड के कारण ही ऐसा करते हैं।—नीतिवचन १६:१८.
किसी भी अच्छे रिश्ते में आदर होना बहुत ज़रूरी है। जब अपने साथियों पर से हमारा विश्वास उठ जाता है तो हमारे सामाजिक संबंधों और व्यापार के लेन-देन पर असर पड़ता है। उसी तरह, यदि किसी साझेदारी या पार्टनरशिप में एक साथी कोई ऐसा काम करे जिससे उसकी या उसके साथियों की खुलेआम बदनामी हो तो वह साझेदारी टूट सकती है। लक्ष्य चाहे जो भी हों, उन तक पहुँचने के लिए प्रतिष्ठा बनाए रखना ज़रूरी है। यह एक कारण है कि क्यों मसीही कलीसिया के ओवरसियरों का बाहरवालों में “सुनाम” होना चाहिए। (१ तीमुथियुस ३:७) ऐसा नहीं कि वे घमंड से अपने को बहुत बड़ा समझते हैं, वे तो अच्छा नाम इसलिए चाहते हैं क्योंकि उनके लिए योग्य रीति से और गरिमा के साथ परमेश्वर का सुसमाचार सुनाना ज़रूरी है। और यदि बाहरवालों की नज़रों में एक सेवक की कोई इज़्ज़त न हो तो उसकी कौन सुनेगा?
अपनी कामयाबियों पर घमंड करने के बारे में क्या? उदाहरण के लिए, जब बच्चा स्कूल में अच्छा काम करता है तो उससे माता-पिता को खुशी मिलती है। और ऐसी सफलता से संतुष्टि पाना गलत भी नहीं है। थिस्सलुनीकिया के संगी मसीहियों को लिखते समय, पौलुस ने बताया कि उनकी सफलताओं से उसे भी खुशी मिलती है: “हे भाइयो, तुम्हारे विषय में हमें हर समय परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, और यह उचित भी है इसलिये कि तुम्हारा विश्वास बहुत बढ़ता जाता है, और तुम सब का प्रेम आपस में बहुत ही होता जाता है। यहां तक कि हम आप परमेश्वर की कलीसिया में तुम्हारे विषय में घमण्ड करते हैं, कि जितने उपद्रव और क्लेश तुम सहते हो, उन सब में तुम्हारा धीरज और विश्वास प्रगट होता है।” (तिरछे टाइप हमारे।) (२ थिस्सलुनीकियों १:३, ४) जी हाँ, अपने प्रियजनों की सफलताओं पर खुश होना तो स्वाभाविक है। तो फिर, कौन-सी बात गलत किस्म के घमंड और सही किस्म के घमंड के बीच अंतर दिखाती है?
अपनी नेकनामी को बनाये रखना और सफल होने की कोशिश करना और फिर सफलता मिलने पर खुश होना गलत नहीं है। लेकिन अभिमान, अक्खड़पन और अपने या दूसरों के बारे में डींग मारना ऐसी बातें हैं जिनकी परमेश्वर निंदा करता है। यदि कोई “गर्व” करने लगे या ‘जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर अपने आप को समझने’ लगे, तो यह सचमुच बहुत दुःख की बात होगी। मसीहियों के पास यहोवा परमेश्वर पर और उसने हमारे लिए जो कुछ किया है उस पर घमंड करने के अलावा किसी और व्यक्ति या वस्तु पर घमंड करने की कोई गुंजाइश नहीं। (१ कुरिन्थियों ४:६, ७; रोमियों १२:३) भविष्यवक्ता यिर्मयाह हमारे लिए एक उत्तम सिद्धांत देता है: “जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता है, कि मैं ही वह यहोवा हूं, जो पृथ्वी पर करुणा, न्याय और धर्म के काम करता है।”—यिर्मयाह ९:२४.
[पेज 20 पर तसवीर]
“पोप इनोसॆंट १०वाँ,” Don Diego Rodríguez de Silva Velázquez द्वारा
[चित्र का श्रेय]
Scala/Art Resource, NY