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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

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सभोपदेशक का सारांश

      • सबकुछ व्यर्थ है (1-11)

        • पृथ्वी हमेशा कायम रहती है (4)

        • प्राकृतिक चक्र चलते रहते हैं (5-7)

        • दुनिया में कुछ भी नया नहीं होता (9)

      • इंसान की बुद्धि सीमित है (12-18)

        • हवा को पकड़ने जैसा है (14)

सभोपदेशक 1:1

फुटनोट

  • *

    या “सभा बुलानेवाले; लोगों को इकट्ठा करनेवाले।”

संबंधित आयतें

  • +1रा 2:12; 2इत 9:30
  • +1रा 8:1, 22

सभोपदेशक 1:2

संबंधित आयतें

  • +भज 39:5; रोम 8:20

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 8

    6/1/1999, पेज 24

सभोपदेशक 1:3

फुटनोट

  • *

    शा., “सूरज के नीचे।”

संबंधित आयतें

  • +सभ 2:11; मत 16:26; यूह 6:27

सभोपदेशक 1:4

संबंधित आयतें

  • +भज 78:69; 104:5; 119:90

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए, लेख 70

    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए),

    अंक 2 2021 पेज 4

सभोपदेशक 1:5

संबंधित आयतें

  • +उत 8:22; भज 19:6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए, लेख 82

सभोपदेशक 1:7

फुटनोट

  • *

    या “सर्दियों में बहनेवाली या किसी और मौसम में बहनेवाली नदियाँ।”

संबंधित आयतें

  • +अय 38:8, 10
  • +अय 36:27, 28; यश 55:10; आम 5:8

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    यहोवा के करीब, पेज 52-53

    प्रहरीदुर्ग,

    4/1/2009, पेज 25-27

    2/15/1998, पेज 6

सभोपदेशक 1:8

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 8

सभोपदेशक 1:9

फुटनोट

  • *

    शा., “सूरज के नीचे।”

संबंधित आयतें

  • +उत 8:22; सभ 1:4

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/1/1987, पेज 28

सभोपदेशक 1:11

संबंधित आयतें

  • +सभ 2:16; 9:5; यश 40:6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/1997, पेज 9

सभोपदेशक 1:12

संबंधित आयतें

  • +1रा 11:42; सभ 1:1

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  • खोजबीन गाइड

    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (2इति–यशा), पेज 25

सभोपदेशक 1:13

संबंधित आयतें

  • +1रा 4:29, 30; सभ 8:16

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/1997, पेज 13-14

सभोपदेशक 1:14

संबंधित आयतें

  • +भज 39:5, 6; सभ 2:11, 18, 26; लूक 12:15

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    4/15/2008, पेज 21

    2/15/1997, पेज 18

सभोपदेशक 1:15

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    11/1/2006, पेज 9

    5/1/1999, पेज 28-29

    2/15/1997, पेज 9

सभोपदेशक 1:16

संबंधित आयतें

  • +सभ 2:9
  • +1रा 3:28; 4:29-31; 2इत 1:10-12

सभोपदेशक 1:17

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सभोपदेशक 1:18

संबंधित आयतें

  • +सभ 2:15; 12:12

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/1997, पेज 9

    8/1/1993, पेज 20

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

सभो. 1:11रा 2:12; 2इत 9:30
सभो. 1:11रा 8:1, 22
सभो. 1:2भज 39:5; रोम 8:20
सभो. 1:3सभ 2:11; मत 16:26; यूह 6:27
सभो. 1:4भज 78:69; 104:5; 119:90
सभो. 1:5उत 8:22; भज 19:6
सभो. 1:7अय 38:8, 10
सभो. 1:7अय 36:27, 28; यश 55:10; आम 5:8
सभो. 1:9उत 8:22; सभ 1:4
सभो. 1:11सभ 2:16; 9:5; यश 40:6
सभो. 1:121रा 11:42; सभ 1:1
सभो. 1:131रा 4:29, 30; सभ 8:16
सभो. 1:14भज 39:5, 6; सभ 2:11, 18, 26; लूक 12:15
सभो. 1:16सभ 2:9
सभो. 1:161रा 3:28; 4:29-31; 2इत 1:10-12
सभो. 1:17सभ 2:2, 3, 12; 7:25
सभो. 1:18सभ 2:15; 12:12
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
सभोपदेशक 1:1-18

सभोपदेशक

1 दाविद के बेटे, यरूशलेम के राजा,+ उपदेशक*+ के वचन:

 2 वह कहता है, “व्यर्थ है! व्यर्थ है!

सबकुछ व्यर्थ है!”+

 3 दुनिया में* इंसान कड़ी मेहनत करता है,

लेकिन अपनी मेहनत का उसे क्या मिलता है?+

 4 एक पीढ़ी जाती है और दूसरी पीढ़ी आती है,

लेकिन पृथ्वी हमेशा कायम रहती है।+

 5 सूरज उगता है और फिर डूबता है,

भागा-भागा वहीं लौट जाता है जहाँ से उसे दोबारा उगना है।+

 6 हवा दक्षिण में बहती है फिर घूमकर उत्तर में आती है,

इस तरह वह चक्कर काटती रहती है।

 7 सारी नदियाँ* सागर में जा मिलती हैं, फिर भी सागर नहीं भरता,+

नदियाँ वापस अपनी जगह लौट जाती हैं और फिर से बहने लगती हैं।+

 8 सब बातें थका देनेवाली हैं,

इनका बखान कोई नहीं कर सकता,

इन्हें देखकर आँखें नहीं भरतीं,

इनके बारे में सुनकर कान नहीं थकते।

 9 जो हो चुका है वह फिर होगा,

जो किया जा चुका है वह फिर किया जाएगा,

दुनिया में* कुछ भी नया नहीं होता।+

10 क्या ऐसा कुछ है जिसके बारे में कहा जा सके, “देखो! यह कुछ नया है”?

वह तो बरसों पहले वजूद में था,

हमारे ज़माने से भी पहले मौजूद था।

11 बीते समय के लोगों को कोई याद नहीं रखता,

न ही उनके बाद आनेवालों को कोई याद रखेगा

और न ही उन्हें आनेवाली पीढ़ियाँ याद रखेंगी।+

12 मैं उपदेशक, यरूशलेम से इसराएल पर राज करता हूँ।+ 13 आसमान के नीचे जो कुछ होता है, उसका अध्ययन करने और बुद्धि से उसकी खोज करने में मैंने जी-जान लगा दी।+ यह बड़ा दुख देनेवाला काम है जो परमेश्‍वर ने इंसानों को दिया है और जिसमें वे लगे रहते हैं।

14 जब मैंने वे सारे काम देखे जो सूरज के नीचे किए जाते हैं,

तो क्या देखा, सबकुछ व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।+

15 जो टेढ़ा है उसे सीधा नहीं किया जा सकता

और जो है ही नहीं, उसे गिना नहीं जा सकता।

16 फिर मैंने मन-ही-मन कहा, “मैंने बहुत बुद्धि हासिल की है। मुझसे पहले यरूशलेम में शायद ही किसी ने इतनी बुद्धि पायी हो।+ ज्ञान और बुद्धि से काम लेना मैंने अच्छी तरह सीख लिया है।”+ 17 मैंने बुद्धि, पागलपन और मूर्खता को जानने में जी-जान लगा दी+ और पाया कि यह भी हवा को पकड़ने जैसा है।

18 जितनी ज़्यादा बुद्धि हासिल करो, उतनी ही निराशा होती है।

इसलिए जो अपना ज्ञान बढ़ाता है, वह अपना दुख भी बढ़ाता है।+

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