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सजग होइए!—2025
g25 अंक 1 पेज 4-5
तसवीरें: 1. एक औरत बाज़ार में टमाटर चुन रही है। 2. वह सब्ज़ीवाली को पैसे दे रही है।

महँगाई आसमान छू रही है

हकीकत कबूल कीजिए

जब चीज़ों के दाम धीरे-धीरे बढ़ते हैं, तो शायद हमें ज़्यादा फर्क ना पड़े। खासकर अगर हमारी कमाई भी बढ़ रही है, तो शायद हमें उतनी चिंता ना हो। लेकिन जब चीज़ों के दाम तेज़ी से बढ़ते हैं और हमारी कमाई वैसे-की-वैसी रहती है, तब हम चिंता में पड़ जाते हैं। और जब हम पर परिवार की ज़िम्मेदारी होती है, तो हमारा तनाव बढ़ जाता है।

यह एक हकीकत है कि हम महँगाई को बढ़ने से रोक नहीं सकते। अगर हम यह हकीकत मान लें तो इसमें हमारा ही भला होगा।

ऐसा करना क्यों ज़रूरी है?

जो लोग यह कबूल करते हैं कि वे बढ़ती महँगाई को रोक नहीं सकते, . . .

  • वे शांत रह पाते हैं। और जब वे शांत रहते हैं तो वे अच्छी तरह सोच पाते हैं और सही फैसले ले पाते हैं।

  • वे लापरवाह नहीं होते। जैसे, वे बिजली, पानी, गैस वगैरह के बिल वक्‍त पर चुकाते हैं और फालतू के खर्चे नहीं करते।

  • वे पैसों को लेकर परिवार से झगड़ा नहीं करते।

  • वे अपने रहन-सहन में फेरबदल करने के लिए तैयार रहते हैं। उन्हें पता रहता है कि किन चीज़ों पर खर्च करना है और किन पर नहीं।

आप यह कैसे कर सकते हैं?

फेरबदल कीजिए। जब चीज़ों के दाम तेज़ी से बढ़ते जाते हैं, तब समझदारी इसी में होगी कि हम अपने खर्चे कम कर दें। कुछ लोग इतना कमाते नहीं जितना उड़ाते हैं। वे अपनी हैसियत से बढ़कर ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने की कोशिश करते हैं। यह ऐसा है मानो वे एक तेज़ बहती नदी में उल्टी दिशा में तैरने की कोशिश कर रहे हों। इससे वे कुछ हासिल नहीं कर पाएँगे, बस थक जाएँगे। अगर आपका परिवार है तो आप शायद उनकी ज़रूरतें पूरी करने की चिंता करें। और यह चिंता करना जायज़ है। पर याद रखिए, आपके परिवार को सबसे ज़्यादा आपकी ज़रूरत है। इसलिए उन पर ध्यान दीजिए, उनके साथ वक्‍त बिताइए और उन्हें प्यार ज़ाहिर कीजिए।

“तुममें ऐसा कौन है जो चिंता करके एक पल के लिए भी अपनी ज़िंदगी बढ़ा सके?”—लूका 12:25.

“अगले दिन की चिंता कभी न करना क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की परेशानियाँ काफी हैं।”—मत्ती 6:34.

अपनी हैसियत से बढ़कर ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने की कोशिश करना, तेज़ बहती नदी में उल्टी दिशा में तैरने जैसा है

फैज़ीलीया।

‘शास्त्र में पहले से ही बताया गया था कि “संकटों से भरा ऐसा वक्‍त आएगा जिसका सामना करना मुश्‍किल होगा।” (2 तीमुथियुस 3:1) हम आज उस वक्‍त में जी रहे हैं। इसलिए जब पैसों की तंगी होती है और सब चीज़ों के दाम बढ़ जाते हैं, तो मुझे हैरानी नहीं होती बल्कि मैं समझ से काम लेती हूँ। मैं कोशिश करती हूँ कि मैं बेकार की चीज़ों पर खर्चा ना करूँ।’—फैज़ीलीया, अज़रबाइजान।

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