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ज़िंदगी सँवार देती है बाइबल

एक स्त्री जो हीरों की तस्करी करती थी और काम की जगह पर चोरी करती थी, उसे किस बात ने एक ईमानदार इंसान बनने में मदद दी? एक स्त्री जिसने दो बार आत्म-हत्या करने की कोशिश की थी, उसे किस बात ने ज़िंदगी का मकसद पाने में मदद दी? एक आदमी जो शराब और ड्रग्स का नशा करता था, उसे अपनी बुरी लत छोड़ने की ताकत कहाँ से मिली? आइए सुनते हैं उनकी कहानी उन्हीं की ज़ुबानी।

परिचय

नाम: मारग्रेट डेबार्न

उम्र: 45

देश: बोत्सवाना

उसका अतीत: तस्करी और चोरी करती थी

मेरा बीता कल: मेरे पिताजी दरअसल जर्मनी के थे, लेकिन वे दक्षिण-पश्‍चिम अफ्रीका (जो आज नामीबिया है) के नागरिक बन गए। माँ, दक्षिण अफ्रीका के बोत्सवाना की मांगोलोगा जाति की थीं। मेरा जन्म नामीबिया के गोबाबिस नाम के कसबे में हुआ था।

सन्‌ 1970 के दशक में नामीबिया पर दक्षिण अफ्रीका की सरकार का काफी दबदबा था। इस सरकार ने यहाँ के सभी कसबों और गाँवों में रंग-भेद के नियमों को सख्ती से लागू किया। इस वजह से मेरे माता-पिता को मजबूरन अलग होना पड़ा, क्योंकि वे अलग-अलग देश से थे। माँ हम बच्चों को लेकर बोत्सवाना में गान्सी नाम के पठारी इलाके में जाकर रहने लगी।

मैं 1979 में बोत्सवाना के लोबात्से नाम के कसबे में जाकर रहने लगी। वहाँ एक पति-पत्नी ने मुझे गोद लिया और मैंने उनके यहाँ रहकर अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की। बाद में मुझे गाड़ियों की मरम्मत करनेवाले एक गराज में क्लर्क की नौकरी मिल गयी। बचपन से मेरा मानना था कि परमेश्‍वर इंसानों का पेट नहीं पालता। अगर अपने लिए और परिवार के लिए रोटी-कपड़ा चाहिए, तो हमें ही कुछ करना होगा, फिर चाहे इसके लिए हम ईमानदारी का रास्ता इख्तियार करें या बेईमानी का।

मुझे अपनी नौकरी की जगह पर काफी ज़िम्मेदारी दी गयी थी, इसलिए मैंने मौके का फायदा उठाया। मैं अपने मालिक से नज़रें बचाकर गाड़ियों के पुरज़े चुरा लेती थी। जब भी रात को हमारे यहाँ से कोई ट्रेन गुज़रती, तो मैं और मेरे साथी ट्रेन में चढ़ जाते और हमें जो भी हाथ लगता चुरा लेते थे। इसके अलावा मैं हीरे, सोने और ताँबे की तस्करी भी करने लगी। मैं ड्रग्स लेने लगी, बहुत खूँखार हो गयी और कई लड़कों के साथ मेरी दोस्ती थी।

लेकिन 1993 में मैं चोरी करती हुई पकड़ी गयी और मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। फिर वे सभी जिन्हें मैं अपना दोस्त समझती थी, मुझसे दूर-दूर रहने लगे, क्योंकि उन्हें डर था कि मेरे साथ रहने से वे भी फँस जाएँगे। उनकी इस हरकत से मुझे बहुत ठेस लगी और मैंने फैसला किया कि आइंदा मैं कभी किसी पर भरोसा नहीं करूँगी।

बाइबल ने किस तरह मेरी ज़िंदगी सँवार दी: सन्‌ 1994 में मेरी मुलाकात टिम और वर्जीनिया नाम के दो यहोवा के साक्षियों से हुई, जो मिशनरी थे। तब मैं एक दूसरी जगह पर नौकरी करती थी। वे मुझे दोपहर के खाने के वक्‍त बाइबल के बारे में सिखाने के लिए मेरी नौकरी की जगह आया करते थे। कुछ समय बाद, जब मुझे लगा कि मैं उन पर भरोसा कर सकती हूँ, तो मैंने उन्हें बाइबल अध्ययन के लिए मेरे घर आने की इजाज़त दी।

कुछ ही समय के अंदर मैं समझ गयी कि परमेश्‍वर को खुश करने के लिए मुझे अपने तौर-तरीके बदलने पड़ेंगे। जैसे, 1 कुरिन्थियों 6:9, 10 से मैंने जाना कि “न वेश्‍यागामी, . . . न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देनेवाले, न अन्धेर करनेवाले परमेश्‍वर के राज्य के वारिस होंगे।” एक-एक करके मैंने अपनी बुरी आदतों से पीछा छुड़ाया। मैंने चोरी करना छोड़ दिया। मैं बरसों से जिस गिरोह का हिस्सा थी, उससे मैंने नाता तोड़ लिया। फिर यहोवा की मदद से मैंने हिम्मत जुटाकर उन सभी लड़कों से नाता तोड़ दिया, जिनसे मेरी दोस्ती थी।

मुझे क्या फायदा हुआ: मैंने बहुत कोशिश करके अपने गुस्से पर काबू पाना सीखा है। जब मेरे बच्चों से कोई गलती हो जाती है, तो मैं उन पर पहले की तरह चिल्लाती नहीं हूँ। (इफिसियों 4:31) मैं उनके साथ शांति से बात करके मामले को सुलझाने की कोशिश करती हूँ। इस तरह बातचीत करने का हमें अच्छा नतीजा मिलता है और परिवार में एक-दूसरे के साथ रिश्‍ता मज़बूत होता है।

जो लोग एक वक्‍त मेरे दोस्त हुआ करते थे, वे और यहाँ तक कि मेरे पड़ोसी भी अब मुझ पर भरोसा करने लगे हैं। मैंने नौकरी की जगह ईमानदार होने का नाम कमाया है। मुझ पर भरोसा किया जाता है कि मैं सामान और पैसे के लेन-देन में कोई हेरा-फेरी नहीं करती। इसलिए मैं अपने परिवार के लिए रोज़ी-रोटी कमाती हूँ। साथ ही, दूसरों को बाइबल के बारे में सिखाने में काफी समय बिताती हूँ। नीतिवचन 10:22 में जो लिखा है, उससे मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि “धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साथ दुःख नहीं मिलाता।”

परिचय

नाम: ग्लोरीया एलीसारारास डे चोपराना

उम्र: 37

देश: मेक्सिको

उसका अतीत: उसने आत्म-हत्या करने की कोशिश की

मेरा बीता कल: मैं मेक्सिको देश के नौकालपान में पली-बढ़ी थी, जो कारोबार के लिहाज़ से एक फलता-फूलता इलाका था। बचपन से ही मैं बहुत ज़िद्दी थी और किसी की बात नहीं सुनती थी। मुझे पार्टियों में जाने का बहुत शौक था। बारह साल की उम्र में मैंने सिगरेट पीनी शुरू कर दी, फिर चौदह साल में शराब पीना और सोलह साल में ड्रग्स लेना। फिर कुछ साल बाद मैं घर छोड़कर अपने परिवार से अलग रहने लगी। मेरे ज़्यादातर दोस्त ऐसे परिवारों से थे, जहाँ उन्हें कोई प्यार नहीं मिलता था, या तो उन्हें गालियाँ दी जातीं या फिर मारा-पीटा जाता था। मुझे जीने का कोई मकसद नज़र नहीं आ रहा था और मैं इतनी निराश हो चुकी थी कि मैंने दो बार आत्म-हत्या करने की कोशिश की।

मैं 19 साल की उम्र में मॉडलिंग करने लगी। मॉडल होने की वजह से अकसर राजनीति और मनोरंजन की हस्तियों के साथ मेरा उठना-बैठना होता था। बाद में, मैंने शादी की और मेरे बच्चे भी हुए। लेकिन घर पर मेरे पति की नहीं, बल्कि मेरी चलती थी और परिवार के सारे फैसले मैं ही लेती थी। सिगरेट और शराब पीना, दिन-रात पार्टियों में जाना, यह सब पहले की तरह चलता रहा। मैं गंदी भाषा बोलती थी और बेहूदा लतीफे सुनाने में मुझे बड़ा मज़ा आता था। और मैं बहुत गर्म-मिज़ाज़ की थी।

जिन लोगों के साथ मेरा मेल-जोल था, उनमें से ज़्यादातर की ज़िंदगी भी मेरी जैसी थी। उन्हें लगता था कि मेरे पास सबकुछ है। लेकिन हकीकत तो यह था कि मेरी ज़िंदगी बिलकुल सूनी और बेमानी थी।

बाइबल ने किस तरह मेरी ज़िंदगी सँवार दी: सन्‌ 1998 में मैंने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। बाइबल से मैंने सीखा कि ज़िंदगी का एक मकसद है। मैंने जाना कि यहोवा परमेश्‍वर धरती को एक फिरदौस यानी खूबसूरत बगीचे में तबदील करनेवाला है। और उस वक्‍त वह उन लोगों को दोबारा ज़िंदा करेगा, जो मर चुके हैं। मैंने यह भी सीखा कि मैं भी उस नयी दुनिया में खुशहाल ज़िंदगी पा सकती हूँ।

मैंने यह भी सीखा कि परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार दिखाने का तरीका है, उसकी आज्ञाएँ मानना। (1 यूहन्‍ना 5:3) शुरू-शुरू में ऐसा करना मुझे बहुत मुश्‍किल लगा, क्योंकि मैंने ज़िंदगी में कभी किसी का कहा नहीं माना था। लेकिन वक्‍त के गुज़रते मैंने मन-ही-मन कबूल किया कि मैं अपनी मरज़ी के मुताबिक जीवन नहीं बिता सकती। (यिर्मयाह 10:23) इसलिए मैंने यहोवा से बिनती की कि वह मुझे राह दिखाए। मैंने यहोवा से प्रार्थना की कि वह मुझे ज़िंदगी में बदलाव करने और उसके उसूलों के मुताबिक जीने में मदद दे। और बच्चों को सही परवरिश देने में भी मेरी मदद करे ताकि वे उन गलतियों को न दोहराएँ जो मैंने की थीं।

अपनी ज़िंदगी में सुधार करना मुझे बहुत कठिन लगा, फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने इफिसियों 4:22-24 में दी सलाह पर चलना शुरू किया। वहाँ लिखा है: “तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को . . . उतार डालो। . . . और नये मनुष्यत्व को पहिन लो, जो परमेश्‍वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।” नया मनुष्यत्व पहनने, यानी एक नयी शख्सियत पैदा करने के लिए मुझे अपनी गंदी आदतें छोड़नी पड़ीं, जैसे सिगरेट पीना। और मुझे गंदी भाषा छोड़कर साफ-सुथरी भाषा सीखनी पड़ी। ये सारे बदलाव करने में मुझे करीब तीन साल लगे। इसके बाद ही मैं यहोवा के एक साक्षी के तौर पर बपतिस्मा ले पायी।

साथ ही, मैं एक पत्नी और माँ होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों को गंभीरता से लेने लगी। मैंने 1 पतरस 3:1, 2 में दी सलाह को लागू करना शुरू किया: “हे पत्नियो, तुम भी अपने पति के आधीन रहो। इसलिये कि यदि इन में से कोई ऐसे हों जो वचन को न मानते हों, तौभी तुम्हारे भय सहित पवित्र चालचलन के द्वारा खिंच जाएं।”

मुझे क्या फायदा हुआ: मैं यहोवा की बहुत एहसानमंद हूँ क्योंकि मैं अब ज़िंदगी का मकसद जान गयी हूँ। आज मेरी ज़िंदगी सँवर गयी है और मैं अपने बच्चों को अच्छी ट्रेनिंग दे पा रही हूँ। कभी-कभी जब मैं अपने अतीत के बारे में सोचती हूँ, तो मेरा दिल मुझे धिक्कारता है, मगर मैं जानती हूँ कि यहोवा मेरी भावनाओं को समझता है। (1 यूहन्‍ना 3:19, 20) इसमें कोई शक नहीं कि बाइबल के उसूलों के मुताबिक जीने की वजह से मैं कई मुसीबतों से बच पायी हूँ और मुझे मन की शांति मिली है।

परिचय

नाम: जेलसन कॉरेया डी ओलीवेरा

उम्र: 33

देश: ब्राज़ील

उसका अतीत: शराबी और ड्रग्स लेनेवाला

मेरा बीता कल: मैं ब्राज़ील के एक शहर बाज़ा में पैदा हुआ था, जो ब्राज़ील और यूरूग्वे की सीमा पर बसा है। इस शहर की आबादी करीब एक लाख थी। यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी और पशु-पालन था। मैं जिस ज़िले में पला-बढ़ा, वहाँ गरीबी बहुत थी और गुंडागर्दी और खून-खराबा आम था। और जहाँ तक जवानों की बात है, वे शराब और ड्रग्स के नशे में चूर रहते थे।

स्कूल छोड़ने के बाद, मैं शराब और गाँजा पीने लगा और हेवी मेटल संगीत (हद-से-ज़्यादा तेज़ बजनेवाला संगीत) सुनने लगा। मैं परमेश्‍वर को नहीं मानता था। क्योंकि मैं सोचता था कि अगर परमेश्‍वर होता, तो दुनिया में इतनी दुख-तकलीफें और गड़बड़ी नहीं होती।

मैं गिटार बजाता था और गीत भी लिखता था। गीत लिखने की प्रेरणा मुझे अकसर बाइबल की प्रकाशितवाक्य किताब से मिलती थी। मैंने अपनी संगीत की टोली से बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगायी थीं, मगर हम उतने कामयाब नहीं हुए। इसलिए अपनी निराशा पर काबू पाने के लिए मैं और भी ज़्यादा ड्रग्स लेने लगा। यह मेरी जान के लिए खतरा था, फिर भी मुझे इसकी कोई परवाह नहीं थी। मैं जिन गायकों को सिर-आँखों पर बिठाता था, जिनकी पूजा करता था, उनमें से ज़्यादातर की ज़िंदगी का अंत इसी तरह हुआ था।

जब भी मुझे ड्रग्स के लिए पैसे की ज़रूरत पड़ती, तो मैं नानी के पास जाता था जिसने मेरी परवरिश की थी। अगर वह पूछती कि मुझे किसलिए पैसा चाहिए, तो मैं झूठ बोलता था। इतना ही नहीं, मैं जादू-टोने में भी उलझने लगा। मैं खासकर काला जादू में दिलचस्पी लेने लगा, क्योंकि मैं सोचता था कि इससे मेरे गीतों में और भी निखार आ जाएगा।

बाइबल ने किस तरह मेरी ज़िंदगी सँवार दी: जब मैं बाइबल का अध्ययन करने लगा और यहोवा के साक्षियों की सभाओं में जाने लगा, तो ज़िंदगी के बारे में मेरा नज़रिया और मेरी फितरत बदलने लगी। धीरे-धीरे मेरे अंदर जीने की तमन्‍ना जाग उठी और मैं खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहता था। मैंने अपने लंबे-लंबे बाल कटवाने का फैसला किया, जो मैंने यह दिखाने के लिए बढ़ाए थे कि मैं ज़िंदगी से नाखुश हूँ और समाज के बंधन में रहना मुझे गवारा नहीं। बाइबल के अध्ययन से मैंने सीखा कि अगर मैं परमेश्‍वर को खुश करना चाहता हूँ, तो मुझे शराब, ड्रग्स और सिगरेट से तौबा करना पड़ेगा। मैंने यह भी समझा कि संगीत के मामले में मुझे अपनी पसंद बदलनी होगी।

जब मैं पहली बार यहोवा के साक्षियों की एक सभा में गया, तो मेरी नज़र वहाँ दीवार पर लिखी बाइबल की एक आयत पर गयी। वह आयत थी नीतिवचन 3:5, 6: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” मैंने इस आयत पर गहराई से सोचा तो मुझे यकीन हो गया कि अगर मैं यहोवा से मदद माँगूं, तो वह मुझे नए सिरे से ज़िंदगी जीने में ज़रूर मदद देगा।

लेकिन मेरे लिए अपने तौर-तरीके बदलना और नशे की लत छोड़ना, अपना हाथ काटने के बराबर था। (मत्ती 18:8, 9) मैं जानता था कि अपनी इन बुरी आदतों को एक-एक करके धीरे-धीरे छोड़ना मेरे लिए मुश्‍किल है, क्योंकि ये मेरे अंदर गहराई तक समा गयी थीं। इसलिए मैंने एक-साथ सारी बुरी आदतें छोड़ दीं। साथ ही, मैंने उन जगहों पर जाना और उन लोगों से मिलना-जुलना पूरी तरह बंद कर दिया, जो मुझे दोबारा बुराई की दलदल में खींच ले जाते।

मैं अपनी ज़िंदगी को सुधारने में दिन-ब-दिन जो तरक्की कर रहा था, उस पर मैं फख्र महसूस करता था, बजाय इसके कि उन पलों को याद करके मायूस हो जाऊँ जब मैं चूक जाता था। मैं जान गया कि अपने शरीर को शुद्ध रखना और साफ-सुथरा चाल-चलन बनाए रखना सम्मान की बात है और इससे मैं यहोवा की नज़र में एक भला इंसान ठहरूँगा। मैं यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना करता था ताकि मैं अपने बीते कल के बारे में ज़्यादा न सोचूँ, बल्कि हमेशा अपना ध्यान तरक्की करने पर लगाए रखूँ। यहोवा ने वाकई मेरी मदद की। हाँ, मैं कभी-कभी चूक जाता और ज़्यादा पी लेता था। मगर अगले दिन जब मेरा सिर नशे की वजह से भारी रहता था, तब भी मैं बाइबल सिखानेवाले साक्षी से कहता कि वह मेरे साथ अध्ययन ज़रूर करे।

बाइबल से मैंने यह सच्चाई सीखी कि परमेश्‍वर हममें से हरेक की परवाह करता है, वह बहुत जल्द झूठे धर्म को मिटानेवाला है और आज वह दुनिया-भर में सुसमाचार का प्रचार करवा रहा है। इन सारी बातों में मुझे तुक नज़र आया। (मत्ती 7:21-23; 24:14; 1 पतरस 5:6, 7) यह सब जानने के बाद मैंने परमेश्‍वर को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने का फैसला किया। मैं यह दिखाना चाहता था कि उसने मेरे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए मैं एहसानमंद हूँ।

मुझे क्या फायदा हुआ: आज मैं कह सकता हूँ कि मेरी ज़िंदगी को एक मकसद मिल गया है। (सभोपदेशक 12:13) एक वक्‍त था जब मैं अपने घर के लोगों पर बोझ था, मगर आज मैं उनकी मदद करने के काबिल हूँ। मैंने बाइबल से जो अच्छी-अच्छी बातें सीखीं, वह मैंने नानी को बतायीं। नानी ने भी अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया है। मेरे परिवार के और भी कई सदस्यों ने और मेरे एक दोस्त ने भी, जो पहले मेरी संगीत टोली में था, अपना जीवन यहोवा को समर्पित कर दिया है।

अब मैं शादीशुदा हूँ। मैं और मेरी पत्नी, अपना ज़्यादातर समय दूसरों को बाइबल सिखाने में लगाते हैं। मैंने अपने “सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा” रखना सीखा है। इस वजह से मैं कह सकता हूँ कि आज मेरी ज़िंदगी खुशियों से सराबोर है। (w09 2/1)

[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

“धीरे-धीरे मेरे अंदर जीने की तमन्‍ना जाग उठी और मैं खुशहाल ज़िंदगी जीना चाहता था”

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