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उत्पत्ति का सारांश

      • याकूब को पद्दन-अराम भेजा गया (1-9)

      • बेतेल में याकूब का सपना (10-22)

        • परमेश्‍वर ने याकूब से वादा पक्का किया (13-15)

उत्पत्ति 28:1

संबंधित आयतें

  • +उत 24:34, 37; निर्ग 34:15, 16; 1रा 11:1-3; 2कुर 6:14

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    7/15/1995, पेज 13

उत्पत्ति 28:2

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  • +उत 29:16

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  • +उत 17:5; 46:15, 19; 1इत 2:1, 2

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  • +उत 25:20
  • +उत 24:29

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  • +उत 28:1; 2कुर 6:14

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  • +उत 27:43

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  • +उत 11:31; 27:43

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  • +उत 28:18, 19

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  • +यूह 1:51; इब्र 1:7, 14

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2004, पेज 28

    10/15/2003, पेज 28-29

उत्पत्ति 28:13

फुटनोट

  • *

    शा., “बीज।”

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  • +उत 26:24, 25
  • +उत 12:7; 28:4; भज 105:9-11

उत्पत्ति 28:14

फुटनोट

  • *

    शा., “बीज।”

  • *

    शा., “बीज।”

  • *

    इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

संबंधित आयतें

  • +उत 13:14, 16; 1रा 4:20
  • +उत 18:18; 22:15, 18

उत्पत्ति 28:15

संबंधित आयतें

  • +उत 35:6
  • +उत 31:3; गि 23:19; यह 23:14; इब्र 6:18

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2013, पेज 20-21

उत्पत्ति 28:17

संबंधित आयतें

  • +भज 47:2
  • +उत 35:1

उत्पत्ति 28:18

संबंधित आयतें

  • +उत 31:13

उत्पत्ति 28:19

फुटनोट

  • *

    मतलब “परमेश्‍वर का घर।”

संबंधित आयतें

  • +उत 35:6; यह 16:1, 2

उत्पत्ति 28:22

संबंधित आयतें

  • +उत 35:1

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

उत्प. 28:1उत 24:34, 37; निर्ग 34:15, 16; 1रा 11:1-3; 2कुर 6:14
उत्प. 28:2उत 29:16
उत्प. 28:3उत 17:5; 46:15, 19; 1इत 2:1, 2
उत्प. 28:4उत 12:2, 3
उत्प. 28:4उत 12:7; 15:13; 17:1, 8; इब्र 11:9
उत्प. 28:5उत 25:20
उत्प. 28:5उत 24:29
उत्प. 28:6उत 28:1; 2कुर 6:14
उत्प. 28:7उत 27:43
उत्प. 28:8उत 27:46
उत्प. 28:9उत 36:2, 3
उत्प. 28:10उत 11:31; 27:43
उत्प. 28:11उत 28:18, 19
उत्प. 28:12यूह 1:51; इब्र 1:7, 14
उत्प. 28:13उत 26:24, 25
उत्प. 28:13उत 12:7; 28:4; भज 105:9-11
उत्प. 28:14उत 13:14, 16; 1रा 4:20
उत्प. 28:14उत 18:18; 22:15, 18
उत्प. 28:15उत 35:6
उत्प. 28:15उत 31:3; गि 23:19; यह 23:14; इब्र 6:18
उत्प. 28:17भज 47:2
उत्प. 28:17उत 35:1
उत्प. 28:18उत 31:13
उत्प. 28:19उत 35:6; यह 16:1, 2
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
उत्पत्ति 28:1-22

उत्पत्ति

28 इसलिए इसहाक ने याकूब को बुलाकर उसे आशीर्वाद दिया और उसे यह आज्ञा दी: “तू कनान देश की किसी लड़की से शादी मत करना।+ 2 इसके बजाय, तू अपने नाना बतूएल के घर पद्दन-अराम जा और अपने मामा लाबान की किसी बेटी+ से शादी कर। 3 सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर तुझे आशीष देगा जिससे तू फूलेगा-फलेगा और तेरी बहुत-सी संतान होंगी। और तेरे वंशजों से कई गोत्रों की एक बहुत बड़ी मंडली बनेगी।+ 4 और जो आशीष उसने अब्राहम को दी थी+ वही आशीष तुझे और तेरे वंश को देगा और तू इस देश पर अधिकार करेगा जहाँ तू परदेसी बनकर रह रहा है और जो उसने अब्राहम को दिया था।”+

5 फिर इसहाक ने याकूब को विदा किया और याकूब लाबान के घर पद्दन-अराम के लिए निकल पड़ा। लाबान, अरामी बतूएल का बेटा+ और याकूब और एसाव की माँ रिबका का भाई था।+

6 एसाव ने देखा कि इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद दिया और पद्दन-अराम भेजा ताकि वह वहाँ की किसी लड़की से शादी करे। एसाव ने गौर किया कि इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देते वक्‍त उसे यह आज्ञा दी: “तू कनान देश की किसी लड़की से शादी मत करना”+ 7 और याकूब अपने माँ-बाप की आज्ञा मानकर पद्दन-अराम के लिए रवाना हो गया।+ 8 यह सब देखकर एसाव को एहसास हुआ कि उसके पिता इसहाक को कनान की लड़कियों से कितनी घृणा है।+ 9 इसलिए वह अब्राहम के बेटे इश्‍माएल के यहाँ गया और उसने इश्‍माएल की बेटी महलत से शादी की जो नबायोत की बहन थी। इस तरह एसाव ने अपनी दो पत्नियों के अलावा एक और शादी की।+

10 याकूब बेरशेबा से निकला और हारान की तरफ बढ़ता गया।+ 11 सफर करते-करते वह एक जगह पहुँचा और उसने वहीं रात बिताने की सोची क्योंकि सूरज ढल गया था। उसने वहाँ से एक पत्थर लिया और उस पर सिर रखकर वहीं लेट गया।+ 12 फिर उसे एक सपना आया और उसने देखा कि धरती पर एक सीढ़ी थी जो इतनी लंबी थी कि वह ऊपर स्वर्ग तक पहुँच रही थी और परमेश्‍वर के स्वर्गदूत सीढ़ी पर चढ़ और उतर रहे थे।+ 13 फिर उसने देखा कि सीढ़ी के बिलकुल ऊपर यहोवा था। उसने याकूब से कहा,

“मैं तेरे दादा अब्राहम का और तेरे पिता इसहाक का परमेश्‍वर यहोवा हूँ।+ यह देश, जिसकी ज़मीन पर तू लेटा हुआ है, मैं तुझे और तेरे वंश* को दूँगा।+ 14 तेरा वंश* धूल के कणों की तरह अनगिनत हो जाएगा।+ तू उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्‍चिम, चारों दिशाओं में फैल जाएगा। तेरे और तेरे वंश* के ज़रिए धरती के सारे कुल ज़रूर आशीष पाएँगे।*+ 15 मैं तेरे साथ हूँ और जहाँ-जहाँ तू जाएगा मैं तेरी हिफाज़त करूँगा और एक दिन तुझे वापस इस देश में ले आऊँगा।+ मैं तेरा साथ कभी नहीं छोड़ूँगा और तुझसे जो वादा किया था उसे पूरा करूँगा।”+

16 तब याकूब नींद से जाग उठा और उसने कहा, “वाकई, इस जगह पर यहोवा मौजूद है और मैं यह बात नहीं जानता था।” 17 याकूब पर डर छा गया और उसने कहा, “यह कोई मामूली जगह नहीं है! यह पवित्र जगह है। यह परमेश्‍वर का घर ही हो सकता है।+ यही स्वर्ग का द्वार है।”+ 18 फिर याकूब सुबह जल्दी उठा और उसने वह पत्थर लिया जिस पर वह सिर रखकर सोया था। उसने उस पत्थर को एक यादगार के तौर पर खड़ा किया और उस पर तेल उँडेला।+ 19 उसने उस जगह का नाम बेतेल* रखा। लेकिन पहले उस शहर का नाम लूज था।+

20 फिर याकूब ने परमेश्‍वर से यह मन्‍नत मानी: “अगर तू हर कदम पर मेरा साथ दे, सफर में मेरी हिफाज़त करता रहे, मुझे खाने के लिए रोटी और पहनने के लिए कपड़े देता रहे 21 और अगर मैं सही-सलामत अपने पिता के घर लौट आया, तो हे यहोवा, मैं जान जाऊँगा कि तूने खुद को मेरा परमेश्‍वर साबित किया है। 22 और यह पत्थर जिसे मैंने यादगार के तौर पर खड़ा किया है, परमेश्‍वर का घर ठहरेगा।+ और मैं वादा करता हूँ कि तेरी दी हुई हर चीज़ का दसवाँ हिस्सा तुझे ज़रूर अर्पित करूँगा।”

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