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उत्पत्ति का सारांश

      • बिल्हा से दान और नप्ताली (1-8)

      • जिल्पा से गाद और आशेर (9-13)

      • लिआ से इस्साकार और जबूलून (14-21)

      • राहेल से यूसुफ (22-24)

      • याकूब के जानवर बढ़ गए (25-43)

उत्पत्ति 30:2

फुटनोट

  • *

    या “तुझे गर्भ के फल से दूर रखा है।”

उत्पत्ति 30:3

फुटनोट

  • *

    शा., “मेरे घुटनों पर जनेगी।”

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फुटनोट

  • *

    मतलब “न्यायी।”

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फुटनोट

  • *

    मतलब “मेरी कुश्‍ती।”

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    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 3/2020, पेज 8

    प्रहरीदुर्ग,

    8/1/2002, पेज 29-30

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फुटनोट

  • *

    मतलब “कमाल होना।”

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फुटनोट

  • *

    मतलब “सुखी; खुशी।”

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फुटनोट

  • *

    यह आलू की जाति की एक जड़ी-बूटी है। माना जाता था कि इसका फल खाने से स्त्रियों में गर्भधारण की क्षमता बढ़ती है।

संबंधित आयतें

  • +उत 29:32

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    1/15/2004, पेज 28

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फुटनोट

  • *

    या “एक मज़दूर की मज़दूरी।”

  • *

    मतलब “वह मज़दूरी है।”

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फुटनोट

  • *

    मतलब “बरदाश्‍त।”

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फुटनोट

  • *

    यह योसिप्याह नाम का छोटा रूप है जिसका मतलब है, “याह जोड़ दे (या बढ़ाए)।”

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फुटनोट

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    या “सबूतों से।”

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    10/15/2003, पेज 30

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फुटनोट

  • *

    या “ईमानदारी।”

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    10/15/2003, पेज 30

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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
उत्पत्ति 30:1-43

उत्पत्ति

30 जब राहेल ने देखा कि अब तक उसका एक भी बच्चा नहीं हुआ, तो वह अपनी बहन से जलने लगी। वह याकूब से कहने लगी, “मुझे भी बच्चे दे, वरना मैं मर जाऊँगी।” 2 यह सुनकर याकूब राहेल पर भड़क उठा और उसने कहा, “जब परमेश्‍वर ने तेरी कोख बंद कर रखी है* तो तू मुझे क्यों दोष दे रही है? क्या मैं परमेश्‍वर हूँ?” 3 तब राहेल ने कहा, “मैं तुझे अपनी दासी बिल्हा+ देती हूँ, तू उसके साथ सो ताकि वह मेरे लिए बच्चे जने* और मैं भी माँ कहलाऊँ।” 4 तब राहेल ने याकूब को अपनी दासी बिल्हा दी ताकि वह उसकी पत्नी बने। फिर याकूब ने उसके साथ संबंध रखे।+ 5 बिल्हा गर्भवती हुई और कुछ समय बाद उसने याकूब को एक बेटा दिया। 6 तब राहेल ने कहा, “परमेश्‍वर ने न्यायी बनकर मेरा इंसाफ किया है। उसने मेरी दुआ सुन ली और मुझे एक बेटा दिया।” इसलिए उसने उस लड़के का नाम दान*+ रखा। 7 राहेल की दासी बिल्हा एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने याकूब को एक और बेटा दिया। 8 तब राहेल ने कहा, “मैंने अपनी बहन से कुश्‍ती लड़ने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया और आखिरकार मैं जीत गयी!” इसलिए उसने इस बच्चे का नाम नप्ताली*+ रखा।

9 जब लिआ ने देखा कि उसके बच्चे होने बंद हो गए हैं, तो उसने भी याकूब को अपनी दासी जिल्पा दी ताकि वह उसकी पत्नी बने।+ 10 और लिआ की दासी जिल्पा ने याकूब को एक बेटा दिया। 11 इस पर लिआ ने कहा, “यह तो कमाल हो गया!” उसने इस लड़के का नाम गाद*+ रखा। 12 इसके बाद लिआ की दासी जिल्पा ने याकूब को एक और बेटा दिया। 13 तब लिआ ने कहा, “आज मेरी खुशी की सीमा नहीं! अब से ज़रूर औरतें मुझे सुखी कहा करेंगी।”+ इसलिए उसने इस लड़के का नाम आशेर*+ रखा।

14 गेहूँ की कटाई का मौसम था। एक दिन रूबेन+ जब मैदान में चल रहा था तो उसे कुछ दूदाफल* मिले। उसने ये फल लाकर अपनी माँ लिआ को दिए। फिर राहेल ने लिआ से कहा, “क्या तू मुझे अपने बेटे के लाए कुछ दूदाफल देगी?” 15 लिआ ने कहा, “तू मेरे पति को पहले ही ले चुकी है,+ क्या यह कम है जो अब तेरी नज़र मेरे बेटे के लाए दूदाफलों पर है?” जवाब में राहेल ने कहा, “अच्छा तो ऐसा कर, आज की रात तू मेरे पति के साथ सो जा, बस बदले में अपने बेटे के लाए कुछ दूदाफल मुझे दे दे।”

16 शाम को जब याकूब खेत से लौट रहा था, तो लिआ उससे मिलने गयी और कहने लगी, “आज तू मेरे साथ सोएगा, क्योंकि मैंने तुझे अपने बेटे के दूदाफल के बदले किराए पर लिया है। हाँ, मैंने तेरे लिए किराए का दाम चुकाया है।” इसलिए उस रात याकूब, लिआ के साथ सोया। 17 परमेश्‍वर ने लिआ की प्रार्थना सुनकर उसका जवाब दिया और वह गर्भवती हुई और उसने याकूब को पाँचवाँ बेटा दिया। 18 लिआ ने कहा, “मैंने अपने पति को दासी दी थी, इसलिए परमेश्‍वर ने मुझे मेरी मज़दूरी* दी है।” इसलिए लिआ ने अपने इस बेटे का नाम इस्साकार*+ रखा। 19 लिआ एक बार फिर गर्भवती हुई और उसने याकूब को छठा बेटा दिया।+ 20 लिआ ने कहा, “परमेश्‍वर ने मुझे बढ़िया तोहफा दिया है, अब तो मेरा पति मुझे नज़रअंदाज़ नहीं करेगा। मैंने उसे छ:-छ: बेटे दिए हैं,+ इसलिए वह मुझे ज़रूर बरदाश्‍त करेगा।”+ उसने इस लड़के का नाम जबूलून*+ रखा। 21 बाद में लिआ की एक बेटी भी हुई जिसका नाम उसने दीना+ रखा।

22 आखिरकार परमेश्‍वर ने राहेल की हालत पर ध्यान दिया। उसने राहेल की दुआ सुन ली और उसकी कोख खोल दी।+ 23 वह गर्भवती हुई और उसका एक बेटा हुआ। तब उसने कहा, “देखो, परमेश्‍वर ने मेरी बदनामी दूर कर दी!”+ 24 इसलिए राहेल ने अपने बेटे का नाम यूसुफ*+ रखा और कहा, “यहोवा ने मुझे एक और बेटा दिया है।”

25 जब राहेल ने यूसुफ को जन्म दिया तो उसके कुछ ही समय बाद याकूब ने लाबान से कहा, “अब मैं तुझसे विदा लेना चाहता हूँ ताकि मैं अपने घर और अपने देश लौट जाऊँ।+ 26 मुझे मेरी पत्नियाँ और मेरे बच्चे दे दे जिनके लिए मैंने तेरे यहाँ काम किया। तू अच्छी तरह जानता है कि मैंने तेरी कैसी सेवा की।”+ 27 तब लाबान ने उससे कहा, “मैं तुझसे बिनती करता हूँ, तू मत जा, मेरे साथ ही रह। मैंने शकुन विचारकर* जाना है कि तेरी वजह से ही यहोवा मुझे इतनी आशीषें दे रहा है।” 28 उसने याकूब से यह भी कहा, “तू मज़दूरी में जो भी माँगेगा, मैं देने को तैयार हूँ।”+ 29 याकूब ने उससे कहा, “तू जानता है कि तेरे यहाँ सेवा करने में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी। और मैंने तेरी भेड़-बकरियों की कितनी अच्छी देखभाल की।+ 30 मेरे आने से पहले तेरे पास बहुत कम जानवर थे, मगर जब से मैं आया यहोवा ने तुझे कितनी आशीषें दीं, तेरी भेड़-बकरियों की गिनती दिन-ब-दिन बढ़ती गयी। अब अगर सारी ज़िंदगी मैं तेरी सेवा करता रहा तो अपने परिवार के बारे में कब सोचूँगा?”+

31 तब लाबान ने उससे कहा, “बता मैं तुझे क्या दूँ?” याकूब ने कहा, “मैं तुझसे कुछ नहीं चाहता! बस तू मेरी एक बात मान ले, तो मैं तेरी भेड़-बकरियों को चराने और उनकी हिफाज़त करने का काम करता रहूँगा।+ 32 आज हम दोनों जाकर तेरे पूरे झुंड का मुआयना करते हैं। फिर तू अपने झुंड में से धब्बेदार और चितकबरी भेड़ों को, गहरे भूरे रंग के मेढ़ों को और धब्बेदार और चितकबरी बकरियों को अलग कर लेना। और आगे चलकर जो भी धब्बेदार, चितकबरे और गहरे भूरे रंग के बच्चे पैदा होंगे, सिर्फ उन्हीं को मैं मज़दूरी में लूँगा।+ 33 अगर किसी दिन तू मेरी मज़दूरी की भेड़-बकरियाँ देखने आया तो तू मेरी नेकी* का सबूत साफ देख सकेगा। मेरे उन जानवरों में तुझे चितकबरी या धब्बेदार बकरियों और गहरे भूरे रंग के मेढ़ों के अलावा कोई और भेड़-बकरी नहीं मिलेगी। अगर मिली तो वह चोरी की समझी जाएगी।”

34 तब लाबान ने कहा, “ठीक है! तूने जैसा कहा हम वैसा ही करते हैं।”+ 35 फिर उसी दिन लाबान ने अपने झुंड में से सभी चितकबरे और धारीदार बकरे, चितकबरी और धब्बेदार बकरियाँ, यहाँ तक कि वे भी जिन पर ज़रा-सा सफेद दाग था और गहरे भूरे रंग के मेढ़े, सब अलग करके अपने बेटों को दिए कि वे उनकी देखभाल करें। 36 अब लाबान के पास जो भेड़-बकरियाँ बच गयी थीं वे उसने याकूब को दीं और याकूब इनकी देखरेख का काम करने लगा। लाबान ने अपने झुंड और याकूब के झुंड के बीच तीन दिन के सफर की दूरी रखी।

37 फिर याकूब ने सिलाजीत, बादाम और चिनार पेड़ की हरी डालियाँ लीं और उन्हें कहीं-कहीं इस तरह छीला कि उनके अंदर की सफेदी, धब्बों के रूप में दिखायी देने लगी। 38 इसके बाद उसने ये छिली हुई छड़ियाँ पानी की हौदियों में खड़ी कर दीं ताकि जब भेड़-बकरियाँ वहाँ पानी पीने आएँ तो इनके सामने सहवास करें।

39 फिर ऐसा हुआ कि भेड़-बकरियाँ उन छड़ियों के सामने सहवास करतीं। वे गाभिन होतीं और उनसे धारीदार, धब्बेदार और चितकबरे बच्चे पैदा होते। 40 याकूब ने इन बच्चों को झुंड की उन बाकी भेड़-बकरियों से अलग किया जो लाबान के हिस्से की थीं। और उसने लाबान की भेड़-बकरियों का मुँह धारीदार और गहरे भूरे रंग के जानवरों की तरफ मोड़ा। फिर उसने अपनी भेड़-बकरियों को अलग किया ताकि वे उन भेड़-बकरियों में न मिलें जो लाबान की थीं। 41 जब भी मोटी-ताज़ी भेड़-बकरियों के सहवास का समय आता तो याकूब पानी की हौदियों में छड़ियाँ खड़ी कर देता था ताकि उन छड़ियों के सामने वे सहवास करें। 42 लेकिन जो भेड़-बकरियाँ कमज़ोर थीं उनके सामने वह छड़ियाँ नहीं रखता था। इसलिए लाबान के हिस्से में कमज़ोर भेड़-बकरियाँ ही आतीं जबकि याकूब की भेड़-बकरियाँ मोटी-ताज़ी होतीं।+

43 इस तरह याकूब बहुत अमीर हो गया और उसके पास बहुत-से दास-दासियाँ, भेड़-बकरियाँ, ऊँट और गधे हो गए।+

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