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उत्पत्ति का सारांश

      • दीना का बलात्कार (1-12)

      • याकूब के बेटों की चाल (13-31)

उत्पत्ति 34:1

फुटनोट

  • *

    या “को देखने।”

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इंडैक्स

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    प्रहरीदुर्ग,

    8/1/2001, पेज 20-21

    2/1/1997, पेज 30

उत्पत्ति 34:2

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    प्यार के लायक, पेज 123-124

    परमेश्‍वर का प्यार, पेज 118-119

उत्पत्ति 34:3

फुटनोट

  • *

    शा., “उस लड़की के दिल से बात की।”

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फुटनोट

  • *

    या “तुम्हारी वजह से मुझे बिरादरी से निकाल दिया जाएगा।”

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    1/15/2004, पेज 28

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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
उत्पत्ति 34:1-31

उत्पत्ति

34 याकूब की बेटी दीना, जो लिआ से पैदा हुई थी,+ कनान देश की जवान लड़कियों+ के साथ वक्‍त बिताने* के लिए उनके यहाँ जाया करती थी। 2 वहाँ शेकेम की नज़र उस पर पड़ी, जो हिव्वी लोगों+ के एक प्रधान हमोर का बेटा था। एक दिन ऐसा हुआ कि शेकेम ने दीना को पकड़ लिया और उसका बलात्कार करके उसे भ्रष्ट कर डाला। 3 इसके बाद, उसे याकूब की इस जवान बेटी से प्यार हो गया, वह उसे अपने दिलो-दिमाग से निकाल नहीं पा रहा था। उसने दीना से मीठी-मीठी बातें करके उसका दिल जीतने की कोशिश की।* 4 आखिरकार उसने अपने पिता हमोर+ से कहा, “तू किसी तरह इस लड़की से मेरी शादी करा दे।”

5 इस बीच याकूब को पता चला कि शेकेम ने उसकी बेटी दीना को भ्रष्ट कर दिया है। मगर उसने इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहा। वह अपने बेटों के आने का इंतज़ार करने लगा जो उसकी भेड़-बकरियाँ लेकर मैदान गए हुए थे। 6 बाद में शेकेम का पिता हमोर याकूब से बात करने उसके पास आया। 7 उधर जब याकूब के बेटों को दीना के बारे में खबर मिली, तो वे फौरन मैदान से घर आए। उन्हें यह बात बहुत बुरी लगी और वे क्रोध से भर गए, क्योंकि शेकेम ने याकूब की बेटी का बलात्कार करके बहुत दुष्ट काम किया था+ और इसराएल का घोर अपमान किया था।+

8 जब हमोर याकूब के यहाँ आया तो उसने याकूब और उसके बेटों से कहा, “मेरा बेटा शेकेम तुम्हारी बेटी दीना को बहुत चाहता है। इसलिए मैं तुम लोगों से बिनती करता हूँ कि अपनी बेटी की शादी मेरे बेटे से करा दो 9 और हमारी जाति से रिश्‍तेदारी कर लो। तुम लोग अपनी बेटियाँ हमें देना और हम अपनी बेटियाँ तुम्हें देंगे।+ 10 तुम हमारे यहाँ रह सकते हो, हमारा पूरा इलाका तुम्हारे सामने पड़ा है। तुम जहाँ चाहो बस जाओ, व्यापार करो और अपनी धन-संपत्ति बढ़ाओ।” 11 शेकेम ने दीना के पिता और उसके भाइयों से कहा, “तुम जो माँगोगे मैं देने को तैयार हूँ। बस मेहरबानी करके हाँ कह दो। 12 तुम महर की रकम जितनी चाहे बढ़ा दो, तोहफे में जो चाहे माँग लो।+ सिर्फ अपनी लड़की की शादी मुझसे करा दो।”

13 तब याकूब के बेटों ने शेकेम और उसके पिता हमोर के साथ एक चाल चलने की सोची, क्योंकि शेकेम ने उनकी बहन दीना को भ्रष्ट कर दिया था। 14 उन्होंने शेकेम और उसके पिता हमोर से कहा, “हम अपनी बहन की शादी ऐसे आदमी से नहीं करा सकते जिसका खतना न हुआ हो।+ यह हमारे लिए बड़े अपमान की बात होगी। 15 हम सिर्फ इस शर्त पर तुम्हें अपनी बहन दे सकते हैं, तुम्हें और तुम्हारे सभी आदमियों को हमारी तरह अपना खतना करवाना होगा।+ 16 तभी हम अपनी बेटियाँ तुम्हें देंगे और तुम्हारी बेटियाँ लेंगे और तुम्हारे यहाँ आकर बस जाएँगे। फिर हम और तुम एक ही जाति के हो जाएँगे। 17 लेकिन अगर तुम हमारी बात नहीं मानोगे और खतना नहीं करवाओगे, तो हम अपनी बहन को लेकर यहाँ से चले जाएँगे।”

18 याकूब के बेटों की यह शर्त हमोर+ और उसके बेटे शेकेम+ को ठीक लगी। 19 और उस जवान ने बिना देर किए उनके कहे मुताबिक किया+ क्योंकि वह याकूब की बेटी को बहुत चाहता था। शेकेम अपने पिता के पूरे घराने का सबसे इज़्ज़तदार आदमी माना जाता था।

20 हमोर और शेकेम शहर के फाटक पर गए और उन्होंने अपने शहर के आदमियों से कहा,+ 21 “उन आदमियों ने कहा है कि वे हमारे साथ शांति बनाए रखना चाहते हैं। इसलिए क्यों न हम उन्हें अपने इलाके में आकर बसने दें और व्यापार करने दें? वैसे भी हमारा इलाका बहुत बड़ा है, जगह की कोई कमी नहीं होगी। हम उनकी बेटियाँ ब्याह सकते हैं और वे हमारी।+ 22 उन्होंने कहा है कि उन्हें हमारे यहाँ बस जाना मंज़ूर है और वे हमारे साथ मिलकर एक ही जाति के हो जाने के लिए तैयार हैं। बस उन्होंने एक शर्त रखी है, हमारे सभी आदमियों को उनकी तरह खतना करवाना होगा।+ 23 ज़रा सोचो, इससे हमें कितना फायदा होगा। उनकी जायदाद, दौलत, भेड़-बकरियाँ सबकुछ हमारा हो जाएगा। तो आओ हम उनकी शर्त मान लें ताकि वे हमारे यहाँ बस जाएँ।” 24 तब शहर के फाटक पर इकट्ठा सभी आदमियों ने हमोर और उसके बेटे शेकेम की बात मान ली और शहर के सभी आदमियों ने अपना खतना करवा लिया।

25 मगर खतना करवाने के तीसरे दिन जब उन आदमियों का दर्द से बुरा हाल था, याकूब के दो बेटे शिमोन और लेवी, जो दीना के भाई थे,+ तलवारें लेकर शहर के अंदर आए। वे इस तरह आए कि किसी को उन पर शक नहीं हुआ। और उन्होंने शहर के सभी आदमियों का कत्ल कर दिया।+ 26 उन्होंने हमोर और उसके बेटे शेकेम को भी तलवार से मार डाला और शेकेम के घर से दीना को लेकर निकल गए। 27 फिर याकूब के बाकी बेटे भी शहर में आए, जहाँ सभी आदमी मरे पड़े थे और उन्होंने शहर को लूट लिया, क्योंकि उनकी बहन को भ्रष्ट किया गया था।+ 28 वे उनकी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, गधे सब ले गए और शहर के अंदर और बाहर मैदान में जो कुछ था, सब लूटकर ले गए। 29 वे उनके घरों में घुसकर सारा माल उठा ले गए, उन्होंने एक भी चीज़ नहीं छोड़ी। वे उनकी औरतों और छोटे बच्चों को भी पकड़कर ले गए।

30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी+ से कहा, “तुमने मुझे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया!* अब यहाँ के कनानी और परिज्जी लोग मुझसे नफरत करने लगेंगे। वे सब एकजुट होकर मुझ पर हमला कर देंगे और मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा, उनके सामने हमारी गिनती ही क्या है? वे मुझे और मेरे घराने को खाक में मिला देंगे।” 31 मगर उन दोनों ने कहा, “कोई हमारी बहन के साथ वेश्‍याओं जैसा बरताव करे और हम चुप बैठे रहें?”

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