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    गवाही दो, पेज 173-174

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  • *

    प्रेषि 21:8 या, “एक मिशनरी” जो खुशखबरी का प्रचार करता है।

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    गवाही दो, पेज 176-177

    प्रहरीदुर्ग,

    7/15/1999, पेज 25

    12/1/1992, पेज 10

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  • खोजबीन गाइड

    गवाही दो, पेज 176-177

    प्रहरीदुर्ग,

    7/15/1999, पेज 25

    2/1/1991, पेज 13

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    गवाही दो, पेज 177

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    गवाही दो, पेज 177-178, 189

    प्रहरीदुर्ग,

    2/1/1991, पेज 13-14

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    गवाही दो, पेज 178

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  • खोजबीन गाइड

    गवाही दो, पेज 178

    प्रहरीदुर्ग,

    5/15/2008, पेज 32

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    गवाही दो, पेज 178

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  • खोजबीन गाइड

    गवाही दो, पेज 112, 181

    प्रहरीदुर्ग,

    5/15/1997, पेज 16-17

प्रेषितों 21:19

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  • खोजबीन गाइड

    गवाही दो, पेज 182

प्रेषितों 21:20

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  • खोजबीन गाइड

    गवाही दो, पेज 182-183

    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2003, पेज 23-24

    10/15/2002, पेज 30

प्रेषितों 21:21

फुटनोट

  • *

    प्रेषि 21:21 या, “सच्ची उपासना से मुँह मोड़ लेने।”

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    गवाही दो, पेज 182, 183-185

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    9/2016, पेज 15

    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2003, पेज 24

प्रेषितों 21:23

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    गवाही दो, पेज 184-185

    प्रहरीदुर्ग,

    2/1/1991, पेज 13

प्रेषितों 21:24

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    10/2023, पेज 10

    गवाही दो, पेज 184-185

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    10/2018, पेज 24-25

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    9/2016, पेज 15

    प्रहरीदुर्ग,

    3/15/2003, पेज 24

    6/15/2000, पेज 14

    2/1/1991, पेज 13

प्रेषितों 21:28

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2001, पेज 22-23

    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (1थिस्स-प्रका), पेज 13

प्रेषितों 21:29

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2001, पेज 22-23

प्रेषितों 21:30

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    3/2020, पेज 31

प्रेषितों 21:31

फुटनोट

  • *

    प्रेषि 21:31 या, “सहस्रपति,” जिसकी कमान के नीचे एक हज़ार सैनिक होते थे।

प्रेषितों 21:33

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    12/15/2001, पेज 21

    2/1/1991, पेज 13-14

प्रेषितों 21:36

फुटनोट

  • *

    प्रेषि 21:36 शाब्दिक, “इसे दूर करो!”

प्रेषितों 21:37

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/2011, पेज 5

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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
प्रेषितों 21:1-40

प्रेषितों

21 हमने भारी दिल से उनसे विदा ली और अपनी समुद्री यात्रा शुरू की। हम बड़ी तेज़ी से सीधे कोस द्वीप पहुँचे, फिर दूसरे दिन रुदुस द्वीप आए और वहाँ से पतरा बंदरगाह। 2 वहाँ हमें एक जहाज़ मिला जो सीधे समुद्र पार फीनीके जा रहा था, हम उस पर सवार होकर वहाँ से रवाना हुए। 3 रास्ते में हमें कुप्रुस द्वीप दिखायी दिया जो हमारी बायीं तरफ था। उसे पीछे छोड़ते हुए हम सीरिया की तरफ बढ़ते गए और सोर के बंदरगाह पहुँचकर वहाँ जहाज़ से उतरे, क्योंकि वहाँ जहाज़ का माल उतारा जाना था। 4 वहाँ हमने ढूँढ़कर पता लगाया कि चेले कहाँ रहते हैं और हम सात दिन तक उन्हीं के यहाँ ठहरे। मगर पवित्र शक्‍ति ने जो ज़ाहिर किया था उसकी वजह से चेलों ने पौलुस से बार-बार कहा कि वह यरूशलेम में कदम न रखे। 5 जब वहाँ ठहरने के दिन पूरे हुए, तो हम वहाँ से निकले और अपने सफर पर चल पड़े; मगर सारे भाई, स्त्रियों और बच्चों के साथ हमें शहर के बाहर तक विदा करने आए। और समुद्र के किनारे हमने घुटने टेककर प्रार्थना की 6 और एक-दूसरे को अलविदा कहने के बाद हम अपने जहाज़ पर चढ़ गए और वे अपने घरों को लौट गए।

7 फिर हम सोर से निकले और समुद्री रास्ते से पतुलिमयिस शहर के बंदरगाह पहुँचे। वहाँ हम भाइयों से मिले और एक दिन उनके साथ रहे। 8 अगले दिन हम वहाँ से निकलकर कैसरिया पहुँचे और प्रचारक* फिलिप्पुस के घर गए। फिलिप्पुस उन सात योग्य पुरुषों में से एक था जिनका अच्छा नाम था, और हम उसके यहाँ ठहरे। 9 इस आदमी की चार कुँवारी बेटियाँ थीं जो भविष्यवाणी करती थीं। 10 फिर जब हम वहाँ काफी दिन रहे, तो यहूदिया से अगबुस नाम का एक भविष्यवक्‍ता वहाँ आया 11 वह हमारे पास आया और उसने पौलुस का कमर-बंध लिया और उससे अपने हाथ-पैर बाँधकर कहा: “पवित्र शक्‍ति यह कहती है, ‘जिस आदमी का यह कमर-बंध है, उसे यहूदी इसी तरीके से यरूशलेम में बाँधेंगे और दूसरी जातियों के लोगों के हवाले कर देंगे।’” 12 जब हमने यह सुना, तो हम और उस जगह के लोग भी पौलुस से मिन्‍नतें करने लगे कि वह यरूशलेम न जाए। 13 इस पर पौलुस ने जवाब दिया: “तुम यह क्या कर रहे हो, तुम क्यों रो-रोकर मेरा दिल कमज़ोर कर रहे हो? यकीन मानो, मैं प्रभु यीशु के नाम की खातिर यरूशलेम में न सिर्फ बंदी होने के लिए बल्कि मारे जाने के लिए भी तैयार हूँ।” 14 जब वह अपनी बात से न टला, तो हम यह कहकर चुप हो गए: “यहोवा की मरज़ी पूरी हो।”

15 उन दिनों के बाद हमने सफर की तैयारी की और यरूशलेम जाने के लिए निकल पड़े। 16 कैसरिया में से कुछ चेले भी हमारे संग हो लिए कि हमें कुप्रुस के मनासोन के घर ले जाएँ जिसके यहाँ हमें ठहरना था। वह शुरू के चेलों में से एक था। 17 जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो भाइयों ने खुशी-खुशी हमारा स्वागत किया। 18 मगर अगले दिन पौलुस हमारे साथ याकूब से मिलने गया और सभी बुज़ुर्ग वहाँ मौजूद थे। 19 पौलुस ने उन्हें नमस्कार किया और उन सभी कामों का ब्यौरा देने लगा, जो परमेश्‍वर ने उसकी सेवा के ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच किए थे।

20 यह सुनकर वे परमेश्‍वर की महिमा करने लगे और उन्होंने पौलुस से कहा: “भाई, तू देख रहा है कि यहूदियों में हज़ारों ने विश्‍वास किया है। उन सब में मूसा का कानून मानने का जोश है। 21 मगर उन्होंने तेरे बारे में ये अफवाहें सुनी हैं कि तू दूसरी जातियों के बीच रहनेवाले सब यहूदियों को परमेश्‍वर की उन शिक्षाओं के खिलाफ बगावत करना* सिखा रहा है जो उसने हमें मूसा के ज़रिए सौंपी थीं। तू उनसे कहता है कि न तो अपने बच्चों का खतना करें न ही सदियों से चले आ रहे उन रिवाज़ों को मानें जिनका सख्ती से पालन किया जाता है। 22 अब इस बारे में क्या किया जाए? चाहे कुछ भी हो, लोगों को तो पता चल ही जाएगा कि तू यहाँ आया हुआ है। 23 इसलिए हम जो तुझसे कह रहे हैं वह कर: हमारे यहाँ चार आदमी ऐसे हैं जिन्होंने मन्‍नत मानी है। 24 तू इन आदमियों को साथ ले जा और उनके साथ जैसा मूसा के कानून में बताया गया है उसके मुताबिक खुद को शुद्ध कर और उनका खर्च उठा कि वे अपना सिर मुंड़ाएँ। ऐसा करने से हर कोई जान लेगा कि तेरे बारे में उन्होंने जो अफवाहें सुनी थीं वे सच नहीं हैं, बल्कि तू मूसा के कानून को मानता है और उसके मुताबिक ठीक चाल चलता है। 25 जहाँ तक दूसरी जातियों के विश्‍वासियों की बात है, हमने अपना फैसला उन्हें लिख भेजा है कि वे मूरतों के आगे बलि की हुई चीज़ों से, साथ ही लहू से और गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से और व्यभिचार से हमेशा दूर रहें।”

26 तब पौलुस अगले दिन उन आदमियों को ले गया और मूसा के कानून के मुताबिक उनके साथ खुद को शुद्ध किया और मंदिर के अंदर यह बताने गया कि कानून के मुताबिक शुद्ध किए जाने के दिन कब पूरे होने हैं और कब उनमें से हरेक के लिए बलिदान चढ़ाए जाने चाहिए।

27 जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो एशिया से आए यहूदियों ने उसे मंदिर में देखा और भीड़ को भड़काकर उसे पकड़ लिया 28 और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे: “इस्राएल के लोगो, हमारी मदद करो! यही वह आदमी है जो हर कहीं, हर किसी को हमारे लोगों और मूसा के कानून और इस जगह के खिलाफ शिक्षा देता है। और-तो-और, यह यूनानियों को इस मंदिर में लाया है और इसने इस पवित्र जगह को दूषित कर दिया है।” 29 ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने पहले, इफिसुस के त्रुफिमुस को उसके साथ शहर में देखा था और उन्हें लगा कि पौलुस उसे मंदिर के अंदर ले आया था। 30 तब सारे शहर में हो-हल्ला होने लगा और लोग इकट्ठा होकर मंदिर की तरफ दौड़ पड़े। उन्होंने पौलुस को धर-दबोचा और उसे घसीटते हुए मंदिर के बाहर ले गए। उसी घड़ी दरवाज़े बंद कर दिए गए। 31 जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो रोमी पलटन के सेनापति* को खबर मिली कि सारे यरूशलेम में हाहाकार मचा हुआ है। 32 तब वह फौरन सैनिकों और सेना-अफसरों को लेकर नीचे उनके पास सरपट दौड़ा। जब यहूदियों ने सेनापति और उसके सैनिकों को देखा, तो पौलुस को पीटना बंद कर दिया।

33 तब सेनापति पास आया और पौलुस को पकड़कर सैनिकों को हुक्म दिया कि उसे दो ज़ंजीरों से बाँध दिया जाए। फिर वह पूछताछ करने लगा कि वह कौन है और उसने क्या किया है। 34 मगर भीड़ में कोई कुछ चिल्लाता तो कोई कुछ। जब वह इस हंगामे की वजह से पौलुस के बारे में ठीक-ठीक नहीं जान पाया, तो उसने हुक्म दिया कि पौलुस को सैनिकों के दुर्ग में लाया जाए। 35 मगर जब पौलुस सीढ़ियों पर पहुँचा, तो भीड़ ऐसी हिंसक हो उठी कि सैनिकों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। 36 क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई पीछे-पीछे आ रही थी: “इसे मार डालो!”*

37 जब सैनिक उसे अपने दुर्ग में ले जाने पर थे, तो पौलुस ने सेनापति से कहा: “क्या मुझे तुझसे कुछ कहने की इजाज़त है?” उसने कहा: “क्या तू यूनानी बोल सकता है? 38 क्या तू वह मिस्री नहीं जिसने कुछ दिन पहले बगावत की आग भड़कायी थी और चार हज़ार कटारबंद आदमियों को वीराने में ले गया था?” 39 तब पौलुस ने कहा: “मैं दरअसल एक यहूदी हूँ और किलिकिया के तरसुस शहर का नागरिक हूँ और वह कोई छोटा शहर नहीं है। इसलिए मैं तुझ से बिनती करता हूँ कि मुझे इन लोगों से बात करने की इजाज़त दे।” 40 उसके इजाज़त देने के बाद, पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े-खड़े अपने हाथ से लोगों को शांत होने का इशारा किया। जब चारों तरफ सन्‍नाटा छा गया, तो पौलुस इब्रानी भाषा में उनसे बात करने लगा और उसने कहा:

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