15 ‘शापित है वह इंसान जो मूरत तराशता है+ या धातु की मूरत* बनाता है+ और उसे छिपाकर रखता है, क्योंकि कारीगर* के हाथ की ऐसी रचना यहोवा की नज़र में घिनौनी है।’+ (तब जवाब में सब लोग कहेंगे, ‘आमीन!’*)
29 हम परमेश्वर के बच्चे हैं+ इसलिए हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर सोने या चाँदी या पत्थर जैसा है, या इंसान की कल्पना और कला से गढ़ी गयी किसी चीज़ जैसा है।+