11 आँसू बहाते-बहाते मेरी आँखें थक गयी हैं।+
मेरे अंदर मरोड़ पड़ रही है।
मेरे लोगों की बेटी गिर गयी है,
नन्हे-मुन्ने और दूध-पीते बच्चे कसबे के चौकों पर बेहोश हो रहे हैं,+
इस वजह से मेरा कलेजा ज़मीन पर उँडेल दिया गया है।+
ל [लामेध ]
12 जब वे शहर के चौकों में घायल लोगों की तरह होश खोने लगते हैं,
अपनी-अपनी माँ की गोद में दम तोड़ रहे हैं,
तो कराहते हुए कहते हैं, “अनाज और दाख-मदिरा कहाँ है!”+