39 फिर वह थोड़ा आगे गया और मुँह के बल गिरकर यह प्रार्थना करने लगा,+ “मेरे पिता, अगर हो सके तो यह प्याला+ मेरे सामने से हटा दे। फिर भी मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”+
36 उसने कहा, “हे अब्बा,* हे पिता,+ तेरे लिए सबकुछ मुमकिन है। यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर फिर भी जो मैं चाहता हूँ वह नहीं, बल्कि वही हो जो तू चाहता है।”+
30 मैं अपनी पहल पर एक भी काम नहीं कर सकता। मगर ठीक जैसा पिता से सुनता हूँ वैसा ही न्याय करता हूँ।+ मैं जो न्याय करता हूँ वह सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी नहीं बल्कि उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता हूँ जिसने मुझे भेजा है।+