4इसलिए मैं जो प्रभु का चेला होने के नाते कैदी हूँ,+ तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम्हारा चालचलन उस बुलावे के योग्य हो+ जो तुम्हें दिया गया है। 2 नम्रता,+ कोमलता और सब्र के साथ+ प्यार से एक-दूसरे की सहते रहो,+
14 और भाइयो, हम तुम्हें बढ़ावा देते हैं कि जो मनमानी करते हैं उन्हें चेतावनी दो,*+ जो मायूस* हैं उन्हें अपनी बातों से तसल्ली दो, कमज़ोरों को सहारा दो और सबके साथ सब्र से पेश आओ।+