यूहन्ना के मुताबिक खुशी का संदेश
1 बहुत पहले, जब परमेश्वर ने किसी भी चीज़ की सृष्टि नहीं की थी, तब वचन परमेश्वर के साथ था और वचन ईश्वरीय था।* 2 यही शुरूआत में परमेश्वर के साथ था। 3 सारी चीज़ें उसी के ज़रिए वजूद में आयीं और एक भी चीज़ ऐसी नहीं जो उसके बिना वजूद में आयी हो।
4 उसके ज़रिए जो कुछ वजूद में आया वह जीवन था। और वह जीवन इंसानों के लिए रौशनी था। 5 यह रौशनी अंधेरे में चमक रही है, लेकिन अंधेरा उस पर हावी न हो सका।
6 परमेश्वर की तरफ से भेजा हुआ एक आदमी आया: उसका नाम यूहन्ना था। 7 यह आदमी गवाह बनकर आया, ताकि उस रौशनी के बारे में गवाही दे और इस तरह उसके ज़रिए सब किस्म के लोग यकीन करें। 8 यूहन्ना खुद वह रौशनी नहीं था, मगर उस रौशनी की गवाही देने आया था।
9 वह सच्ची रौशनी जो सब किस्म के इंसानों को रौशनी देती है, बहुत जल्द दुनिया में आनेवाली थी। 10 वचन दुनिया में था और दुनिया उसके ज़रिए वजूद में आयी, मगर दुनिया ने उसे नहीं जाना। 11 वह अपने घर आया, मगर उसके अपने ही लोगों ने उसे न अपनाया। 12 मगर, जितनों ने उसे स्वीकार किया, उन्हें उसने परमेश्वर के बच्चे होने का अधिकार दिया क्योंकि उन्होंने दिखाया था कि उन्हें उसके नाम पर विश्वास है। 13 वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न ही किसी इंसान की मरज़ी से बल्कि परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक पैदा हुए।
14 वचन इंसान बना और हमारे बीच रहा और हमने उसका तेज देखा, ऐसा तेज जैसा एक पिता के इकलौते बेटे का होता है और वह महा-कृपा और सच्चाई से भरपूर था। 15 (यूहन्ना ने उसके बारे में गवाही दी, हाँ, असल में, उसी ने यह पुकार लगायी और कहा: “जो मेरे पीछे आ रहा है वह मेरे आगे निकल गया है, क्योंकि वह मुझसे पहले से वजूद में था।”) 16 हम सबने उससे भरपूर महा-कृपा पायी, क्योंकि वह खुद महा-कृपा से भरपूर है। 17 क्योंकि परमेश्वर ने हमें मूसा के ज़रिए कानून दिया था, मगर वह यीशु मसीह के ज़रिए महा-कृपा और सच्चाई वजूद में लाया। 18 किसी भी इंसान ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा। इकलौता बेटा जो ईश्वरीय है और जो पिता के सबसे करीब है,* उसी ने पिता के बारे में समझाया है।
19 यूहन्ना ने यह गवाही तब दी जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उसके पास यह पूछने के लिए भेजा, “तू कौन है?” 20 उसने जवाब देने से इनकार न किया, बल्कि मान लिया: “मैं मसीह* नहीं हूँ।” 21 फिर उन्होंने पूछा: “तो फिर क्या तू एलिय्याह है?” उसने कहा: “नहीं।” “क्या तू वह भविष्यवक्ता है जिसे आना था?” उसने जवाब दिया: “नहीं, मैं वह नहीं हूँ!” 22 तब उन्होंने पूछा: “फिर तू कौन है? हमें बता ताकि हम अपने भेजनेवालों को जवाब दे सकें। तू अपने बारे में क्या कहता है?” 23 यूहन्ना ने कहा: “मैं वह आवाज़ हूँ जो वीराने में पुकार लगा रही है, ‘यहोवा* का मार्ग सीधा करो,’ ठीक जैसा यशायाह भविष्यवक्ता ने कहा है।” 24 जो यूहन्ना के पास आए थे उन्हें फरीसियों ने भेजा था। 25 इसलिए उन्होंने सवाल किया: “अगर तू मसीह नहीं है, न ही एलिय्याह है, न ही वह भविष्यवक्ता है, तो फिर तू बपतिस्मा* क्यों देता है?” 26 यूहन्ना ने जवाब दिया: “मैं पानी में बपतिस्मा देता हूँ। मगर तुम्हारे बीच एक ऐसा शख्स खड़ा है जिसे तुम नहीं जानते, 27 यानी वह जो मेरे पीछे आ रहा है, और मैं उसकी जूतियों के फीते खोलने के भी लायक नहीं।” 28 ये सारी बातें यरदन के पार बैतनिय्याह* में हुईं, जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
29 अगले दिन जब उसने यीशु को अपनी तरफ आते देखा, तो कहा: “देखो, परमेश्वर का मेम्ना जो दुनिया का पाप दूर ले जाता है! 30 यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा था, जो मेरे पीछे आ रहा है वह मेरे आगे निकल गया है, क्योंकि वह मुझसे पहले से वजूद में था। 31 मैं भी उसके बारे में नहीं जानता था। मगर मैं इसी वजह से पानी में बपतिस्मा देता हुआ आया कि वह इस्राएल पर ज़ाहिर हो सके।” 32 यूहन्ना ने यह भी गवाही दी: “मैंने पवित्र शक्ति को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा और वह उस पर ठहर गयी। 33 मैं भी उसके बारे में नहीं जानता था, मगर जिसने मुझे पानी में बपतिस्मा देने के लिए भेजा उसी ने मुझे बताया, ‘जिस किसी पर तू पवित्र शक्ति को उतरते और ठहरते देखे, यही है वह जो पवित्र शक्ति से बपतिस्मा देता है।’ 34 मैंने यह देखा है और मैंने गवाही दी है कि यही परमेश्वर का बेटा है।”
35 अगले दिन फिर, यूहन्ना अपने दो चेलों के साथ खड़ा था। 36 जब उसने यीशु को वहाँ से गुज़रते देखा तो कहा: “देखो, परमेश्वर का मेम्ना!” 37 तब वे दोनों चेले उसकी बात सुनकर यीशु के पीछे-पीछे गए। 38 तब यीशु ने मुड़कर उन्हें पीछे आते देखा और उनसे पूछा: “तुम क्या चाहते हो?” उन्होंने कहा: “रब्बी, (जिसका मतलब है, गुरु) तू कहाँ ठहरा हुआ है?” 39 यीशु ने उनसे कहा: “आओ और चलकर देख लो।” तब वे उसके साथ गए और देखा कि वह कहाँ ठहरा हुआ है और वे उस दिन उसी के यहाँ ठहरे। यह दिन का करीब दसवाँ घंटा* था। 40 यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे जानेवाले इन दो जनों में से एक का नाम अन्द्रियास था जो शमौन पतरस का भाई था। 41 अगले दिन, अन्द्रियास सबसे पहले अपने सगे भाई शमौन से मिला और उससे कहा: “हमें मसीहा मिल गया है।” (जिसका मतलब है, अभिषिक्त जन)। 42 अन्द्रियास उसे यीशु के पास ले गया। जब यीशु ने शमौन को देखा, तो कहा: “तू यूहन्ना का बेटा शमौन है। तुझे कैफा पुकारा जाएगा” (जिसका यूनानी भाषा में अनुवाद पतरस है)।
43 अगले दिन, यीशु गलील जाना चाहता था। तब वह फिलिप्पुस से मिला और उससे कहा: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” 44 फिलिप्पुस बैतसैदा का रहनेवाला था, जो अन्द्रियास और पतरस का भी शहर था। 45 फिलिप्पुस ने नतनएल को ढूँढ़कर उससे कहा: “हमें वह मिल गया है जिसके बारे में मूसा ने कानून में और भविष्यवक्ताओं ने अपने लेखों में लिखा था। वह नासरत का रहनेवाला यीशु है, जो यूसुफ का बेटा है।” 46 मगर नतनएल ने उससे कहा: “भला नासरत से भी कुछ अच्छा निकल सकता है?” फिलिप्पुस ने उससे कहा: “आ और देख ले।” 47 यीशु ने नतनएल को अपनी तरफ आते देखा और उसके बारे में कहा: “देखो, यह एक सच्चा इस्राएली है जिसमें कोई कपट नहीं।” 48 तब नतनएल ने उससे कहा: “तू मुझे कैसे जानता है?” यीशु ने जवाब में कहा: “फिलिप्पुस के बुलाने से भी पहले, जिस वक्त तू अंजीर के पेड़ के नीचे था, मैंने तुझे देख लिया था।” 49 नतनएल ने उसे जवाब दिया: “गुरु, तू परमेश्वर का बेटा है, तू इस्राएल का राजा है।” 50 यीशु ने जवाब में कहा: “क्या तू ने इसलिए यकीन किया कि मैंने तुझे उस वक्त देखने की बात कही जब तू अंजीर के पेड़ के नीचे था? तू इससे भी बड़े-बड़े काम देखेगा।” 51 यीशु ने यह भी कहा: “मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ, तुम स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को इंसान के बेटे के पास नीचे आते और ऊपर जाते देखोगे।”
2 फिर तीसरे दिन गलील के काना नाम कस्बे में एक शादी की दावत थी और यीशु की माँ वहाँ थी। 2 यीशु और उसके चेलों को भी शादी की इस दावत के लिए न्यौता दिया गया था।
3 जब वहाँ दाख-मदिरा कम पड़ गयी, तो यीशु की माँ ने उससे कहा: “उनके पास दाख-मदिरा नहीं है।” 4 मगर यीशु ने उससे कहा: “हे स्त्री, मुझे तुझसे क्या काम? मेरा वक्त अब तक नहीं आया है।” 5 उसकी माँ ने सेवा करनेवालों से कहा: “वह तुमसे जो कुछ कहे, वही करना।” 6 वहाँ पत्थर के छः मटके रखे थे, जैसा यहूदियों के शुद्धिकरण नियमों के मुताबिक ज़रूरी था। हर मटके में चवालीस से छियासठ लीटर* पानी समा सकता था। 7 यीशु ने उनसे कहा: “मटकों को पानी से भर दो।” तब उन्होंने मटके मुँह तक लबालब भर दिए। 8 फिर उसने कहा: “अब इसमें से थोड़ा लेकर दावत के इंतज़ाम की देख-रेख करनेवाले के पास ले जाओ।” तब वे ले गए। 9 दावत के इंतज़ाम की देख-रेख करनेवाले ने वह पानी चखा, जो दाख-मदिरा में बदल चुका था। मगर वह नहीं जानता था कि यह मदिरा कहाँ से आयी, जबकि सेवा करनेवाले जानते थे जिन्होंने मटके से पानी निकाला था। तब देख-रेख करनेवाले ने दूल्हे को बुलाया 10 और उससे कहा: “हर कोई बढ़िया दाख-मदिरा पहले निकालता है और जब लोग पीकर धुत्त हो जाते हैं, तो हल्की दाख-मदिरा देता है। मगर तू ने अब तक इस बेहतरीन दाख-मदिरा को अलग रखा हुआ है।” 11 इस तरह यीशु ने गलील के काना नाम कस्बे में पहला चमत्कार किया और अपनी शक्ति ज़ाहिर की। और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया।
12 इसके बाद, यीशु, उसकी माँ, उसके भाई और चेले कफरनहूम गए, मगर वहाँ ज़्यादा दिन नहीं ठहरे।
13 यहूदियों का फसह का त्योहार पास था और यीशु यरूशलेम गया। 14 उसने वहाँ मंदिर में, मवेशियों और भेड़ों और कबूतरों की बिक्री करनेवालों को और पैसे बदलनेवाले सौदागरों को अपनी-अपनी गद्दियों पर बैठा देखा। 15 तब उसने रस्सियों का एक कोड़ा बनाया और उन सभी को उनकी भेड़ों और उनके मवेशियों के साथ मंदिर से बाहर खदेड़ दिया। उसने सौदागरों के सिक्के बिखरा दिए और उनकी मेज़ें पलट दीं। 16 उसने कबूतर बेचनेवालों से कहा: “यह सब लेकर यहाँ से निकल जाओ! मेरे पिता के घर को बाज़ार मत बनाओ!” 17 तब उसके चेलों को याद आया कि यह लिखा है: “तेरे घर के लिए जोश की आग मुझे भस्म कर देगी।”
18 यह देखकर यहूदियों ने उससे कहा: “तू किस अधिकार से यह सब कर रहा है, इसके लिए तू हमें कौन-सा चमत्कार दिखाएगा?” 19 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “इस मंदिर को गिरा दो और मैं तीन दिन के अंदर इसे खड़ा कर दूँगा।” 20 तब यहूदी कहने लगे: “यह मंदिर बनाने में छियालिस साल लगे थे, और तू इसे तीन दिन में खड़ा करेगा?” 21 मगर मंदिर से उसका मतलब था, उसका अपना शरीर। 22 जब उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया, तो उसके चेलों को याद आया कि वह यह बात कहा करता था। और उन्होंने शास्त्र का और यीशु की बात का यकीन किया।
23 जब वह फसह के त्योहार के वक्त यरूशलेम में था, तो बहुत-से लोगों ने उसके चमत्कार देखकर जो वह कर रहा था, उसके नाम पर विश्वास किया। 24 मगर यीशु ने खुद को उनके भरोसे नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सबको जानता था। 25 उसे इंसान के बारे में किसी की गवाही की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि वह खुद जानता था कि एक इंसान अंदर से कैसा है।
3 नीकुदेमुस नाम का एक फरीसी, जो यहूदियों का एक धर्म-अधिकारी था, 2 रात के वक्त यीशु के पास आया और उससे कहा: “रब्बी, हम जानते हैं कि तू परमेश्वर की तरफ से आया शिक्षक है। इसलिए कि तू जो ये चमत्कार दिखाता है, वह कोई भी इंसान तब तक नहीं कर सकता, जब तक कि परमेश्वर उसके साथ न हो।” 3 यीशु ने उसे जवाब दिया: “मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ कि जब तक कोई दोबारा पैदा न हो, वह परमेश्वर का राज नहीं देख सकता।” 4 नीकुदेमुस ने कहा: “एक इंसान बड़ा होकर दोबारा कैसे पैदा हो सकता है? क्या वह वापस अपनी माँ के गर्भ में जाकर दोबारा पैदा हो सकता है?” 5 यीशु ने उसे जवाब दिया: “मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई पानी और पवित्र शक्ति से पैदा न हो, तब तक वह परमेश्वर के राज में दाखिल नहीं हो सकता। 6 जो शरीर से पैदा हुआ है, वह शारीरिक है और जो पवित्र शक्ति से पैदा हुआ है, वह स्वर्गीय है। 7 मैंने तुझे जो बताया है कि तुम लोगों के लिए दोबारा पैदा होना ज़रूरी है, इस बात पर ताज्जुब मत कर। 8 हवा* जहाँ चाहे वहाँ बहती है और तू हवा चलने की आवाज़ सुनता है, मगर तू नहीं जानता कि यह कहाँ से आती है और कहाँ जा रही है। ऐसा ही वह है जो पवित्र शक्ति से पैदा हुआ है।”
9 जवाब में नीकुदेमुस ने उससे कहा: “यह सब कैसे हो सकता है?” 10 यीशु ने जवाब दिया: “क्या तू इस्राएलियों का एक धर्म-गुरु है, फिर भी ये बातें नहीं जानता? 11 मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, हम जो जानते हैं उसी के बारे में बताते हैं और हमने जो देखा है उसी की गवाही देते हैं, मगर तुम लोग हमारी गवाही कबूल नहीं करते। 12 अगर मैंने तुम्हें धरती की बातें बतायी हैं और फिर भी तुमने यकीन नहीं किया, तो अगर मैं तुम्हें स्वर्ग की बातें बताऊँ, तो तुम कैसे यकीन करोगे? 13 इतना ही नहीं, कोई भी इंसान स्वर्ग नहीं चढ़ा, मगर इंसान का बेटा है जो स्वर्ग से उतरा है। 14 ठीक जैसे मूसा ने वीराने में उस साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी तरह इंसान के बेटे को भी ऊँचे पर चढ़ाया जाना है 15 ताकि हर कोई जो उस पर यकीन करे वह हमेशा की ज़िंदगी पाए।
16 क्योंकि परमेश्वर ने दुनिया से इतना ज़्यादा प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास दिखाता है, वह नाश न किया जाए बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए। 17 परमेश्वर ने अपने बेटे को दुनिया में इसलिए नहीं भेजा कि वह दुनिया को सज़ा सुनाए, मगर इसलिए कि दुनिया उसके ज़रिए उद्धार पाए। 18 जो उस पर विश्वास दिखाता है, उस पर सज़ा नहीं हुई। जो उस पर विश्वास नहीं दिखाता, उस पर पहले ही सज़ा हो चुकी है, क्योंकि उसने परमेश्वर के इकलौते बेटे के नाम पर विश्वास नहीं दिखाया। 19 सज़ा का आधार यह है कि रौशनी दुनिया में आयी, मगर लोगों ने रौशनी के बजाय अंधकार से प्यार किया, क्योंकि उनके काम दुष्ट थे। 20 जो बुरे कामों में लगा रहता है, वह रौशनी से नफरत करता है और रौशनी में नहीं आता ताकि यह ज़ाहिर न हो जाए कि उसके काम गलत हैं। 21 मगर जो सही काम करता है वह रौशनी में आता है, ताकि उसके काम ज़ाहिर हों कि उसने ये काम परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक किए हैं।”
22 इन बातों के बाद, यीशु और उसके चेले यहूदिया के इलाके में गए और उसने वहाँ उनके साथ कुछ वक्त बिताया और लोगों को बपतिस्मा दिया। 23 मगर यूहन्ना भी सालिम के पास एनोन नाम की एक जगह में बपतिस्मा दे रहा था, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था और लोग आते रहे और बपतिस्मा लेते रहे। 24 उस वक्त तक यूहन्ना को जेल में नहीं डाला गया था।
25 तब शुद्ध किए जाने के रिवाज़ को लेकर किसी यहूदी के साथ यूहन्ना के चेलों की बहस छिड़ गयी। 26 फिर यूहन्ना के चेले उसके पास आए और उससे कहा: “गुरु, वह आदमी जो यरदन के उस पार तेरे साथ था, जिसके बारे में तू ने गवाही दी थी, देख, वह बपतिस्मा दे रहा है और सब उसके पास जा रहे हैं।” 27 जवाब में यूहन्ना ने कहा: “जब तक एक इंसान को स्वर्ग से न दिया जाए, तब तक वह एक भी चीज़ हासिल नहीं कर सकता। 28 तुम खुद इस बात के गवाह हो कि मैंने कहा था, मैं मसीह नहीं हूँ, मगर मुझे उसके आगे भेजा गया है। 29 जिसके पास दुल्हन है वही दूल्हा है। मगर जब दूल्हे का दोस्त खड़ा होता है और दूल्हे को बात करते सुनता है, तो उसकी आवाज़ सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। इसलिए मेरी यह खुशी पूरी की गयी है। 30 मसीह को अब बढ़ते जाना है, मगर मुझे घटते जाना है।”
31 जो ऊपर से आता है वह बाकी सबके ऊपर है। जो धरती से है, वह धरती का होता है और धरती की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह बाकी सबके ऊपर है। 32 उसने जो देखा और सुना है, उसकी वह गवाही देता है, मगर कोई आदमी उसकी गवाही नहीं मानता। 33 जिसने उसकी गवाही मान ली है उसने इस बात पर अपनी मुहर लगायी है कि परमेश्वर सच्चा है। 34 इसलिए कि परमेश्वर ने जिसे भेजा है, वह परमेश्वर की बातें बताता है, क्योंकि वह नाप-नापकर पवित्र शक्ति नहीं देता। 35 पिता बेटे से प्यार करता है और उसने सबकुछ उसके हाथों में सौंप दिया है। 36 जो बेटे पर विश्वास दिखाता है, हमेशा की ज़िंदगी उसकी है। जो बेटे की आज्ञा नहीं मानता वह ज़िंदगी नहीं पाएगा, बल्कि परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है।
4 जब प्रभु को पता चला कि फरीसियों ने यह बात सुनी है कि यीशु, यूहन्ना से ज़्यादा चेले बना रहा है और उन्हें बपतिस्मा दे रहा है 2 (हालाँकि यीशु खुद बपतिस्मा नहीं देता था, बल्कि उसके चेले देते थे), 3 तो वह यहूदिया छोड़कर फिर से गलील चला गया। 4 मगर उसे सामरिया से होकर जाना ज़रूरी था। 5 रास्ते में वह सामरिया के सूखार नाम के एक शहर पहुँचा। यह शहर उस ज़मीन के पास था जो याकूब ने अपने बेटे यूसुफ को दी थी। 6 दरअसल याकूब का कुआँ वहीं था और यीशु सफर से थका-माँदा उस कुएँ के पास बैठा था। यह दिन का करीब छठा घंटा* था।
7 वहाँ सामरिया की एक स्त्री पानी भरने आयी। तब यीशु ने उससे कहा: “मुझे पानी पिला।” 8 (उसके चेले खाना खरीदने शहर गए हुए थे।) 9 उस सामरी स्त्री ने उससे कहा: “यह कैसी बात है कि तू एक यहूदी होकर मुझसे पानी माँगता है, जबकि मैं एक सामरी स्त्री हूँ?” (क्योंकि यहूदी, सामरियों से कोई नाता नहीं रखते।) 10 जवाब में यीशु ने कहा: “अगर तू यह जानती कि परमेश्वर का मुफ्त वरदान क्या है और वह कौन है जो तुझसे कह रहा है कि ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती और वह तुझे जीवन देनेवाला पानी देता।” 11 तब स्त्री ने कहा: “तेरे पास तो पानी निकालने के लिए कोई बर्तन तक नहीं है और कुआँ भी गहरा है। फिर तेरे पास यह जीवन देनेवाला पानी कहाँ से आया? 12 क्या तू हमारे पुरखे याकूब से भी महान है, जिसने हमें यह कुआँ दिया और जिसमें से खुद उसने साथ ही उसके बेटों और मवेशियों ने पीया था?” 13 जवाब में यीशु ने कहा: “हर कोई जो यह पानी पीता है वह फिर प्यासा होगा। 14 मगर जो कोई वह पानी पीता है, जो मैं उसे दूँगा वह फिर कभी-भी प्यासा नहीं होगा। मगर जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसके अंदर पानी का एक सोता बन जाएगा और हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए उमड़ता रहेगा।” 15 तब स्त्री ने कहा: “मुझे वह पानी दे ताकि मैं प्यासी न रहूँ, न ही मुझे पानी भरने के लिए बार-बार यहाँ आना पड़े।”
16 उसने स्त्री से कहा: “जा और अपने पति को लेकर यहाँ आ।” 17 जवाब में स्त्री ने कहा: “मेरा कोई पति नहीं है।” यीशु ने उससे कहा: “यह तू ने सही कहा कि ‘मेरा कोई पति नहीं।’ 18 क्योंकि तेरे पाँच पति हो चुके हैं, और अब तू जिस आदमी के साथ रहती है वह भी तेरा पति नहीं है। यह तू ने बिलकुल सच कहा।” 19 तब स्त्री ने उससे कहा: “प्रभु, मुझे लगता है कि तू कोई भविष्यवक्ता है। 20 हमारे पुरखों ने इस पहाड़ पर उपासना की थी, मगर तुम लोग कहते हो कि यरूशलेम वह जगह है जहाँ एक इंसान को उपासना करनी चाहिए।” 21 यीशु ने उससे कहा: “हे स्त्री, मेरा यकीन कर, वह घड़ी आ रही है जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर, न ही यरूशलेम में पिता की उपासना करोगे। 22 तुम ज्ञान के बिना उपासना करते हो, मगर हम ज्ञान के साथ उपासना करते हैं, क्योंकि परमेश्वर ने उद्धार का ज्ञान यहूदियों के ज़रिए दिया है। 23 मगर वह वक्त आ रहा है और अभी भी है, जब सच्चे उपासक पिता की उपासना उसकी पवित्र शक्ति से और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि वाकई पिता ऐसे लोगों को ढूँढ़ता है जो इसी तरह उसकी उपासना करते हैं। 24 परमेश्वर आत्मा* है और ज़रूरी है कि जो उसकी उपासना करते हैं, वे पवित्र शक्ति और सच्चाई से उसकी उपासना करें।” 25 तब उस स्त्री ने उससे कहा: “मैं जानती हूँ कि मसीहा आनेवाला है जो अभिषिक्त कहलाता है। जब कभी वह आएगा तो हमें सारी बातें खुलकर समझाएगा।” 26 यीशु ने उससे कहा: “मैं जो तुझसे बात कर रहा हूँ, वही हूँ।”
27 तब तक उसके चेले लौट आए और वे ताज्जुब करने लगे क्योंकि वह एक स्त्री से बात कर रहा था। हाँ, किसी ने उससे यह नहीं पूछा, “तू क्या चाहता है?” या “तू इस स्त्री से क्यों बात कर रहा है?” 28 तब वह स्त्री अपना पानी का घड़ा वहीं छोड़ शहर चली गयी और लोगों से कहा: 29 “यहाँ आओ, उस आदमी को देखो जिसने वह सबकुछ बता दिया जो मैंने किया है। कहीं यही तो मसीह नहीं?” 30 लोग शहर से निकलकर उसके पास आने लगे।
31 इस दौरान, चेले उससे गुज़ारिश करते रहे: “गुरु, खाना खा ले।” 32 मगर उसने उनसे कहा: “मेरे पास खाने के लिए ऐसा खाना है जिसके बारे में तुम नहीं जानते।” 33 तब चेले एक-दूसरे से कहने लगे: “कोई उसके खाने के लिए कुछ ले तो नहीं आया था?” 34 यीशु ने उनसे कहा: “मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ और उसका काम पूरा करूँ। 35 तुम कहते हो न कि फसल की कटाई के लिए अभी चार महीने बाकी हैं? देखो! मैं तुमसे कहता हूँ: अपनी आँखें उठाओ और खेतों पर नज़र डालो कि वे कटाई के लिए पक चुके हैं। 36 कटाई करनेवाला मज़दूरी पा रहा है और हमेशा की ज़िंदगी के लिए फल बटोर रहा है, जिससे कि बोनेवाला और कटाई करनेवाला दोनों मिलकर खुशी मनाएँ। 37 इस मायने में वाकई यह कहावत सच है कि बोता कोई और है, काटता कोई और। 38 मैंने तुम्हें उस फसल की कटाई करने भेजा जिसके लिए तुमने मेहनत न की थी। दूसरों ने कड़ी मेहनत की और तुम उनकी मेहनत का फल पा रहे हो।”
39 उस शहर के बहुत-से सामरियों ने उस पर विश्वास किया क्योंकि उस स्त्री ने यह कहते हुए गवाही दी थी: “उसने वह सबकुछ बता दिया जो मैंने किया है।” 40 इसलिए जब सामरिया के लोग यीशु के पास आए, तो उससे उनके यहाँ ठहरने की गुज़ारिश करने लगे। तब वह दो दिन उनके यहाँ ठहरा। 41 नतीजा यह हुआ कि और भी बहुतों ने उसकी बातें सुनकर यकीन किया 42 और वे स्त्री से कहने लगे: “अब हम सिर्फ तेरी बात सुनने की वजह से नहीं बल्कि इसलिए यकीन करते हैं कि हमने खुद सुन लिया है और हमने जान लिया है कि यह आदमी वाकई दुनिया का उद्धारकर्त्ता है।”
43 दो दिन बाद यीशु उस जगह को छोड़कर गलील के लिए निकल पड़ा। 44 मगर उसने खुद यह गवाही दी कि एक भविष्यवक्ता अपने देश में आदर नहीं पाता। 45 जब वह गलील पहुँचा तो वहाँ के लोगों ने उसका स्वागत किया क्योंकि उन्होंने वे सारे काम देखे थे जो उसने त्योहार के वक्त यरूशलेम में किए थे। वे लोग भी त्योहार के लिए वहाँ गए थे।
46 फिर यीशु गलील के काना नाम कसबे में आया, जहाँ उसने पानी को दाख-मदिरा बनाया था। वहाँ राजा का एक कर्मचारी था, जिसका बेटा कफरनहूम में बीमार था। 47 जब इस आदमी ने सुना कि यीशु यहूदिया से गलील आ गया है, तो वह उसके पास गया और उससे बिनती करने लगा कि वह आए और उसके बेटे को चंगा करे, क्योंकि उसका बेटा मरने पर था। 48 लेकिन यीशु ने उससे कहा: “जब तक तुम लोग चमत्कार और आश्चर्य के काम न देख लो, तब तक तुम हरगिज़ यकीन न करोगे।” 49 राजा के कर्मचारी ने उससे कहा: “प्रभु, इससे पहले कि मेरा बच्चा मर जाए, मेरे साथ चल।” 50 यीशु ने उससे कहा: “जा, तेरा बेटा ज़िंदा है।” उस आदमी ने यीशु की बात पर यकीन किया और अपनी राह चला गया। 51 जब वह रास्ते में ही था, तो उसके दास उससे मिले और कहा कि उसका लड़का ठीक हो गया है। 52 इसलिए वह उनसे पूछने लगा कि लड़का किस वक्त ठीक हुआ। उन्होंने जवाब दिया: “कल सातवें घंटे* में उसका बुखार उतर गया।” 53 तब पिता जान गया कि यह वही घड़ी थी जब यीशु ने उससे कहा था: “तेरा बेटा ज़िंदा है।” और उसने और उसके पूरे घराने ने यीशु पर यकीन किया। 54 यीशु का यह दूसरा चमत्कार था जो उसने यहूदिया से गलील आने पर किया था।
5 इसके बाद, यहूदियों का एक त्योहार आया और यीशु यरूशलेम गया। 2 यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुंड है जो इब्रानी भाषा में बेतहसदा कहलाता है। उस कुंड के चारों तरफ खंभोंवाला बरामदा है। 3 इस बरामदे में बड़ी तादाद में बीमार, अंधे, लंगड़े और अपंग लोग पड़े हुए थे। 4* —— 5 वहाँ एक आदमी था जो अड़तीस साल से बीमार था। 6 यीशु ने इस आदमी को पड़ा हुआ देखकर और यह जानकर कि वह एक लंबे अरसे से बीमार चल रहा है, उससे पूछा: “क्या तू ठीक होना चाहता है?” 7 उस बीमार आदमी ने जवाब दिया: “साहब, मेरे साथ कोई आदमी नहीं जो मुझे उस वक्त कुंड में उतारे जब पानी हिलाया जाता है। इससे पहले कि मैं पहुँचूं कोई दूसरा मेरे आगे पानी में उतर जाता है।” 8 यीशु ने उससे कहा: “उठ, अपना बिस्तर उठा और चल-फिर।” 9 वह आदमी उसी वक्त ठीक हो गया और उसने अपना बिस्तर उठाया और चलने-फिरने लगा।
वह सब्त* का दिन था। 10 इसलिए यहूदी उस आदमी से जो ठीक हो गया था, कहने लगे: “आज सब्त है और आज के दिन तेरे लिए बिस्तर उठाना कानून के हिसाब से सही नहीं है।” 11 मगर उसने जवाब दिया: “जिसने मुझे ठीक किया है उसी ने मुझसे कहा, ‘अपना बिस्तर उठा और चल-फिर।’ ” 12 उन्होंने पूछा: “वह कौन आदमी है जिसने तुझसे कहा कि ‘इसे उठा और चल-फिर’?” 13 मगर जो ठीक हुआ था, वह नहीं जानता था कि उसे ठीक करनेवाला कौन था, क्योंकि भीड़ की वजह से यीशु वहाँ से चला गया था।
14 इन बातों के बाद, यीशु मंदिर में उस आदमी से मिला और उससे कहा: “देख, अब तू ठीक हो चुका है। इसलिए आगे पाप मत करना, कहीं ऐसा न हो कि तेरे साथ इससे भी बुरा हो।” 15 तब उस आदमी ने जाकर यहूदियों को बता दिया कि वह यीशु था जिसने उसे ठीक किया था। 16 इस वजह से यहूदी धर्मगुरु, यीशु को सताने लगे, क्योंकि वह सब्त के दौरान यह सब कर रहा था। 17 मगर इसके जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता आ रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।” 18 इस वजह से यहूदी उसे मार डालने की और भी ज़्यादा फिराक में लग गए, क्योंकि उनके हिसाब से वह न सिर्फ सब्त का कानून तोड़ रहा था, बल्कि परमेश्वर को अपना पिता कहकर खुद को परमेश्वर के बराबर ठहरा रहा था।
19 इसलिए जवाब में यीशु उनसे कहने लगा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, बेटा अपनी पहल पर कुछ भी नहीं कर सकता, मगर सिर्फ वही करता है जो पिता को करते हुए देखता है। इसलिए कि पिता जो कुछ करता है, बेटा भी उसी तरीके से वे काम करता है। 20 पिता को बेटे से गहरा लगाव है और वह खुद जो करता है वह सब बेटे को भी दिखाता है और वह इनसे भी बड़े-बड़े काम उसे दिखाएगा ताकि तुम ताज्जुब करो। 21 जैसे पिता मरे हुओं को ज़िंदा करता है और उन्हें जीवन देता है, ठीक वैसे ही बेटा भी जिन्हें चाहता है उन्हें जीवन देता है। 22 पिता खुद किसी का भी न्याय नहीं करता, बल्कि उसने न्याय करने की सारी ज़िम्मेदारी बेटे को सौंप दी है, 23 ताकि जैसे वे पिता का आदर करते हैं वैसे ही सभी बेटे का भी आदर करें। जो बेटे का आदर नहीं करता, वह पिता का आदर नहीं करता जिसने उसे भेजा है। 24 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जो मेरे वचन सुनता है और मेरे भेजनेवाले का यकीन करता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाता है और उस पर सज़ा का हुक्म नहीं होता बल्कि वह मौत को पार कर ज़िंदगी में दाखिल हो गया है।
25 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, वह वक्त आ रहा है और अब भी है जब मरे हुए, परमेश्वर के बेटे की आवाज़ सुनेंगे और जिन्होंने उसकी बात मानी है वे जीएँगे। 26 इसलिए कि ठीक जैसे पिता के पास जीवन देने की शक्ति है, वैसे ही उसने अपने बेटे को भी जीवन देने की शक्ति दी है। 27 और उसने उसे न्याय करने का अधिकार दिया है, क्योंकि वह इंसान का बेटा है। 28 इस बात पर ताज्जुब मत करो, क्योंकि वह वक्त आ रहा है जब वे सभी जो स्मारक कब्रों में हैं उसकी आवाज़ सुनेंगे 29 और बाहर निकल आएँगे। जिन्होंने अच्छे काम किए हैं उनका जी उठना जीवन पाने के लिए होगा और जो दुष्ट कामों में लगे रहे, उनका जी उठना सज़ा पाने के लिए होगा। 30 मैं अपनी पहल पर एक भी काम नहीं कर सकता। मगर ठीक जैसा पिता से सुनता हूँ वैसा ही न्याय करता हूँ। मैं जो न्याय करता हूँ वह सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी नहीं बल्कि उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता हूँ जिसने मुझे भेजा है।
31 अगर मैं अकेला ही अपने बारे में गवाही दूँ, तो मेरी गवाही सच नहीं है। 32 एक और है जो मेरे बारे में गवाही देता है और मैं जानता हूँ कि वह मेरे बारे में जो गवाही देता है, वह सच्ची है। 33 तुमने यूहन्ना के पास आदमी भेजे और उसने मेरे बारे में सच्चाई की गवाही दी। 34 फिर भी, मैं इंसानों की गवाही मंज़ूर नहीं करता, मगर मैं ये बातें इसलिए कहता हूँ ताकि तुम उद्धार पा सको। 35 वह आदमी एक जलता और जगमगाता दीपक था और तुम थोड़े वक्त के लिए उसकी रौशनी में बड़ी खुशी मनाने के लिए तैयार थे। 36 मगर मेरे पास वह गवाही है जो यूहन्ना की गवाही से भी बढ़कर है। जो काम मेरे पिता ने मुझे पूरे करने के लिए सौंपे हैं, यानी जो काम मैं कर रहा हूँ, वही मेरे बारे में गवाही देते हैं कि मुझे पिता ने भेजा है। 37 साथ ही पिता ने भी, जिसने मुझे भेजा है, खुद मेरे बारे में गवाही दी है। तुमने न तो कभी उसकी आवाज़ सुनी, न ही कभी उसका रूप देखा 38 और उसका वचन तुम्हारे दिलों में कायम नहीं रहता, क्योंकि तुम उसी का यकीन नहीं करते जिसे पिता ने भेजा है।
39 तुम पवित्रशास्त्र में खोजबीन करते हो, क्योंकि तुम सोचते हो कि इसके ज़रिए तुम्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। यही शास्त्र मेरे बारे में गवाही देता है। 40 फिर भी तुम मेरे पास नहीं आना चाहते कि तुम ज़िंदगी पा सको। 41 मैं इंसानों से अपनी बड़ाई नहीं चाहता। 42 मगर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम्हारे अंदर परमेश्वर के लिए प्यार नहीं है। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ, मगर तुम मुझे स्वीकार नहीं करते। अगर कोई और अपने ही नाम से आता तो तुम उसे स्वीकार कर लेते। 44 तुम मेरा यकीन कर भी कैसे सकते हो, क्योंकि तुम इंसानों की बड़ाई करते हो और उनसे अपनी बड़ाई करवाते हो और वह बड़ाई पाना नहीं चाहते जो एकमात्र परमेश्वर से मिलती है? 45 यह मत सोचो कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा। क्योंकि तुम पर दोष लगानेवाला एक है, यानी मूसा जिस पर तुमने आशा रखी है। 46 दरअसल, अगर तुमने मूसा का यकीन किया होता तो मेरा भी यकीन करते, इसलिए कि उसने मेरे बारे में लिखा था। 47 लेकिन जब तुम उसके लेखों का यकीन नहीं करते, तो भला मेरी बातों का यकीन कैसे करोगे?”
6 इन बातों के बाद, यीशु गलील या तिबिरियास झील* के उस पार चला गया। 2 मगर एक बड़ी भीड़ उसके पीछे-पीछे गयी, क्योंकि लोग उन चमत्कारों को देख रहे थे जो वह बीमारों के लिए कर रहा था। 3 तब यीशु एक पहाड़ पर चढ़ गया, और अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा हुआ था। 4 तब यहूदियों का फसह का त्योहार पास था। 5 जब यीशु ने नज़र उठाकर देखा कि एक बड़ी भीड़ उसकी तरफ चली आ रही है, तो उसने फिलिप्पुस से कहा: “हम इनके खाने के लिए रोटियाँ कहाँ से खरीदें?” 6 मगर वह उसे परखने के लिए यह बात कह रहा था, क्योंकि वह जानता था कि वह खुद क्या करने जा रहा है। 7 फिलिप्पुस ने उसे जवाब दिया: “दो सौ दीनार की रोटियाँ भी इन सबके लिए पूरी नहीं पड़ेंगी कि हरेक को थोड़ा-थोड़ा भी मिल सके।” 8 तब यीशु के एक चेले, अन्द्रियास ने जो शमौन पतरस का भाई था, उससे कहा: 9 “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ हैं। मगर इतनी बड़ी भीड़ के लिए इससे क्या होगा?”
10 यीशु ने कहा: “लोगों को खाने के लिए बिठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। इसलिए लोग वहाँ आराम से बैठ गए। इनमें आदमियों की गिनती करीब पाँच हज़ार थी। 11 तब यीशु ने वे रोटियाँ लीं और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद, बैठे हुए लोगों में बाँट दीं। उसी तरह उसने छोटी मछलियाँ भी, जिसे जितनी चाहिए थीं, बाँट दीं। 12 जब उन्होंने भरपेट खा लिया, तो उसने चेलों से कहा: “जो टुकड़े बच गए हैं, उन्हें इकट्ठा कर लो, ताकि कुछ भी फेंका न जाए।” 13 इसलिए जौ की पाँच रोटियों के जितने टुकड़े खानेवालों ने बचा दिए थे, वे उन्होंने इकट्ठे किए, जिनसे बारह टोकरियाँ भर गयीं।
14 इसलिए जब लोगों ने उसके चमत्कार देखे, तो वे कहने लगे: “यह ज़रूर वही भविष्यवक्ता है जिसके दुनिया में आने की भविष्यवाणी की गयी थी।” 15 इसलिए यीशु यह जानते हुए कि वे उसे ज़बरदस्ती राजा बनाने के लिए पकड़ने आ रहे हैं, फिर से पहाड़ पर अकेला चला गया।
16 जब शाम हुई तो उसके चेले झील के किनारे गए। 17 वे एक नाव पर चढ़कर झील के उस पार कफरनहूम के लिए रवाना हो गए। इस वक्त अंधेरा हो गया था और यीशु तब तक उनके पास नहीं पहुँचा था। 18 साथ ही, आँधी की वजह से झील में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं। 19 लेकिन जब चेले करीब पाँच-छः किलोमीटर* तक नाव खे चुके थे, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते हुए नाव की तरफ आते देखा। यह देखकर वे डर के मारे थरथराने लगे। 20 मगर यीशु ने उनसे कहा: “डरो मत, मैं ही हूँ!” 21 इसलिए वे उसे नाव में चढ़ाने के लिए तैयार हो गए और जल्द ही नाव उस जगह किनारे जा लगी जहाँ वे जाने की कोशिश कर रहे थे।
22 अगले दिन, झील के उस पार खड़ी भीड़ ने देखा कि वहाँ एक छोटी नाव को छोड़ और कोई नाव नहीं है और यीशु अपने चेलों के साथ नाव पर नहीं गया बल्कि सिर्फ चेले वहाँ से चले गए हैं। 23 लेकिन तब तिबिरियास से कुछ नाव उस जगह के पास आयीं जहाँ उन्होंने वे रोटियाँ खायी थीं जो प्रभु ने प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद उन्हें दी थीं। 24 इसलिए जब भीड़ ने देखा कि वहाँ न तो यीशु न ही उसके चेले मौजूद हैं, तो वे अपनी छोटी नावों में सवार होकर यीशु को ढूँढ़ने के लिए कफरनहूम आ गए।
25 जब उन्होंने उसे झील के इस पार देखा तो उससे कहा: “गुरु, तू यहाँ कब आया?” 26 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ रहे हो कि तुमने चमत्कार देखे थे बल्कि इसलिए कि तुमने रोटियाँ खायी थीं और अपनी भूख मिटायी थी। 27 उस खाने के लिए काम मत करो जो मिट जाता है, बल्कि उस खाने के लिए काम करो जो कायम रहता है और हमेशा की ज़िंदगी देता है, जो खाना तुम्हें इंसान का बेटा देगा। क्योंकि पिता यानी परमेश्वर ने भी उसी बेटे पर अपनी मंज़ूरी की मुहर लगायी है।”
28 इसलिए उन्होंने उससे कहा: “हम परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए क्या काम करें?” 29 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए तुम उस पर विश्वास दिखाओ जिसे उसने भेजा है।” 30 तब उन्होंने कहा: “फिर तू हमें क्या चमत्कार दिखानेवाला है कि हम देखें और तेरा यकीन करें? तू कौन-सा काम करने जा रहा है? 31 हमारे बापदादों ने तो वीराने में मन्ना खाया था, ठीक जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी।’” 32 इस पर यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें स्वर्ग की रोटी नहीं दी थी, मगर मेरा पिता ज़रूर तुम्हें स्वर्ग की सच्ची रोटी देता है। 33 इसलिए कि वह परमेश्वर की रोटी है जो स्वर्ग से नीचे आता है और दुनिया को जीवन देता है।” 34 तब लोगों ने कहा: “प्रभु, हमें यह रोटी हमेशा दिया कर।”
35 यीशु ने उनसे कहा: “मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ। जो मेरे पास आता है वह फिर कभी भूखा नहीं होगा, और जो मुझमें विश्वास दिखाता है वह कभी-भी प्यासा नहीं होगा। 36 मगर जैसा मैं पहले तुम्हें बता चुका हूँ कि तुम मुझे देखने पर भी मेरा यकीन नहीं करते। 37 हर कोई जिसे पिता ने मुझे दिया है, मेरे पास आएगा और जो मेरे पास आता है मैं उसे हरगिज़ खुद से दूर नहीं करूँगा। 38 क्योंकि मैं अपनी मरज़ी नहीं बल्कि उसकी मरज़ी पूरी करने स्वर्ग से नीचे आया हूँ जिसने मुझे भेजा है। 39 जिसने मुझे भेजा है, उसकी मरज़ी यह है कि उसने जितनों को मुझे दिया है, उनमें से एक को भी न खोऊँ, बल्कि आखिरी दिन में उसे जी उठाऊँ। 40 मेरे पिता की मरज़ी यह है कि जो कोई बेटे को देखता है और उसमें विश्वास दिखाता है उसे हमेशा की ज़िंदगी मिले और मैं उसे आखिरी दिन में जी उठाऊँगा।”
41 इसलिए यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे क्योंकि उसने कहा था: “मैं वह रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे उतरी है।” 42 वे कहने लगे: “क्या यह यूसुफ का बेटा यीशु नहीं जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो फिर यह अब क्यों कहता है कि ‘मैं स्वर्ग से नीचे आया हूँ’?” 43 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “आपस में कुड़कुड़ाना बंद करो। 44 कोई भी इंसान मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे मेरे पास खींच न लाए। और मैं उसे आखिरी दिन में जी उठाऊँगा। 45 भविष्यवक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘वे सब यहोवा के सिखाए हुए होंगे।’ हर कोई जिसने पिता से सुना है और सीखा है, वह मेरे पास आता है। 46 किसी इंसान ने पिता को कभी नहीं देखा है सिवा मेरे, मैं जो परमेश्वर की तरफ से आया हूँ। सिर्फ मैंने पिता को देखा है। 47 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जो मुझ पर यकीन करता है, हमेशा की ज़िंदगी उसकी है।
48 मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ। 49 तुम्हारे बापदादों ने वीराने में मन्ना खाया था और फिर भी मर गए। 50 मगर जो कोई उस रोटी से खाता है जो स्वर्ग से उतरी है, वह नहीं मरेगा। 51 मैं वह जीवित रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है। अगर कोई इस रोटी में से खाता है तो वह हमेशा तक ज़िंदा रहेगा। और दरअसल जो रोटी मैं दूँगा वह मेरा शरीर है जो मैं दुनिया के जीवन की खातिर देता हूँ।”
52 इसलिए यहूदी आपस में एक-दूसरे से तकरार करने लगे: “यह आदमी भला कैसे अपना शरीर हमें खाने के लिए दे सकता है?” 53 तब यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जब तक तुम इंसान के बेटे का माँस न खाओ और उसका लहू न पीओ, तुममें जीवन नहीं। 54 जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे लहू में से पीता है, हमेशा की ज़िंदगी उसकी है, और मैं आखिरी दिन उसे जी उठाऊँगा। 55 इसलिए कि मेरा शरीर असली खाना है और मेरा लहू पीने की असली चीज़ है। 56 जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे लहू में से पीता है, वह मेरे साथ एकता में बना रहता है और मैं उसके साथ एकता में बना रहता हूँ। 57 ठीक जैसे जीवित पिता ने मुझे भेजा है और मैं पिता की वजह से जीता हूँ, वैसे ही जो मुझमें से खाता है वह भी मेरी वजह से जीएगा। 58 यह वह रोटी है जो स्वर्ग से नीचे उतरी है। यह वैसी नहीं जैसी तुम्हारे बापदादों ने खायी और फिर भी मर गए। जो इस रोटी में से खाता है, वह हमेशा जीता रहेगा।” 59 ये बातें उसने कफरनहूम में उस वक्त कही थीं जब वह एक जन-सभा में सिखा रहा था।
60 इसलिए जब उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुना तो वे कहने लगे: “यह बात कितनी घिनौनी है, भला कौन इसे सुन सकता है?” 61 मगर यीशु ने मन में यह जानते हुए कि उसके चेले इस बारे में कुड़कुड़ा रहे हैं, उनसे कहा: “क्या तुम्हें इस बात से ठेस पहुँची है? 62 तो फिर तब क्या होगा जब तुम इंसान के बेटे को वहाँ ऊपर जाता देखो जहाँ वह पहले था? 63 परमेश्वर की पवित्र शक्ति है जो ज़िंदगी देती है, शरीर किसी काम का नहीं। जो बातें मैंने तुमसे कही हैं, वे परमेश्वर की पवित्र शक्ति से हैं और ज़िंदगी देती हैं। 64 मगर तुम में से कुछ ऐसे हैं जो मेरी बात पर यकीन नहीं करते।” इसलिए कि यीशु शुरूआत से जानता था कि वे कौन हैं जो यकीन नहीं करते और वह कौन है जो उसे धोखे से पकड़वाएगा। 65 तब वह उनसे कहने लगा: “इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि कोई भी तब तक मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि पिता उसे इजाज़त न दे।”
66 इस वजह से उसके बहुत-से चेलों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया और वापस उन कामों में लग गए जिन्हें वे पीछे छोड़ आए थे। 67 इसलिए यीशु ने उन बारहों से कहा: “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” 68 शमौन पतरस ने जवाब दिया: “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं। 69 हमने यकीन किया है और जाना है कि तू परमेश्वर का पवित्र जन है।” 70 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “मैंने तुम बारहों को चुना था न? मगर तुम में से एक बदनाम करनेवाला* है।” 71 दरअसल वह शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदा की बात कर रहा था, क्योंकि वही था जो उन बारहों में से एक होते हुए भी उसे धोखे से पकड़वानेवाला था।
7 इन बातों के बाद, यीशु ने गलील का दौरा करना जारी रखा, इसलिए कि वह यहूदिया नहीं जाना चाहता था क्योंकि यहूदी उसे मार डालने की ताक में थे। 2 यहूदियों का मंडपों का त्योहार पास था। 3 इसलिए यीशु के भाइयों ने उससे कहा: “यहाँ से निकलकर यहूदिया जा, ताकि तेरे सभी चेले उन कामों को देख सकें जो तू करता है। 4 इसलिए कि कोई भी इंसान जो चाहता है कि सब लोग उसे जानें, वह छिपकर काम नहीं करता। अगर तू ये काम करता है, तो खुद को दुनिया के सामने ज़ाहिर कर।” 5 दरअसल, उसके भाई उस पर विश्वास नहीं दिखाते थे। 6 इसलिए यीशु ने उनसे कहा: “मेरे लिए तय वक्त अभी तक नहीं आया है, मगर तुम्हारा वक्त तो हमेशा है। 7 दुनिया के पास तुमसे नफरत करने की कोई वजह नहीं है, मगर यह मुझसे नफरत करती है, क्योंकि मैं इसके बारे में गवाही देता हूँ कि इसके काम दुष्ट हैं। 8 तुम त्योहार के लिए जाओ। मैं इस त्योहार के लिए अभी नहीं जा रहा, क्योंकि मेरे लिए तय वक्त अभी पूरी तरह नहीं आया है।” 9 उनसे यह कहने के बाद, वह गलील में ही रहा।
10 मगर जब उसके भाई त्योहार के लिए चले गए तो उसके बाद वह खुद भी गया। लेकिन वह सरेआम नहीं बल्कि छिपकर गया। 11 इसलिए त्योहार के दौरान यहूदी यह कहते हुए उसे ढूँढ़ने लगे: “वह आदमी कहाँ है?” 12 लोगों के बीच उसे लेकर बहुत-सी दबी-दबी बातें हो रही थीं। कुछ कहते थे: “वह अच्छा आदमी है।” दूसरे कहते थे: “नहीं, वह अच्छा आदमी नहीं है, बल्कि लोगों को गुमराह करता है।” 13 मगर यहूदियों के डर से कोई भी सरेआम उसके बारे में बात नहीं करता था।
14 जब त्योहार के आधे दिन बीत चुके थे, तो यीशु मंदिर में गया और सिखाने लगा। 15 इसलिए यहूदी ताज्जुब करने लगे और कहने लगे: “इस आदमी को इतना ज्ञान और शिक्षा कहाँ से मिली, जबकि इसने धर्मगुरुओं के स्कूलों में पढ़ाई नहीं की है?” 16 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है। 17 अगर कोई उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता है, तो वह इस शिक्षा के बारे में जान जाएगा। वह जान जाएगा कि यह परमेश्वर की तरफ से है या मैं अपने विचार सिखा रहा हूँ। 18 जो अपने विचार सिखाता है, वह अपनी ही बड़ाई चाहता है। मगर वह जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वह सच्चा है और उसमें झूठ नहीं। 19 मूसा ने तुम्हें कानून दिया था न? लेकिन तुममें से एक भी उस कानून पर नहीं चलता। तुम मुझे क्यों मार डालना चाहते हो?” 20 भीड़ ने उसे जवाब दिया: “तेरे अंदर दुष्ट स्वर्गदूत है। कौन तुझे मार डालना चाहता है?” 21 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “मैंने बस एक काम किया और तुम सब ताज्जुब कर रहे हो। 22 इसलिए इस बात पर गौर करो, मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी थी (वह आज्ञा मूसा के वक्त से नहीं, बल्कि हमारे बापदादों के वक्त से थी), और तुम सब्त के दिन भी आदमी का खतना करते हो। 23 अगर एक आदमी का सब्त के दिन इसलिए खतना किया जाता है कि मूसा के कानून की आज्ञा न टूटे, तो क्या तुम इस बात को लेकर मुझ पर आग-बबूला हो रहे हो कि मैंने सब्त के दिन एक इंसान को पूरी तरह तंदुरुस्त किया है? 24 इंसान की सूरत देखकर न्याय करना बंद करो, बल्कि सच्चाई से न्याय करो।”
25 इसलिए यरूशलेम के कुछ रहनेवाले कहने लगे: “यह वही आदमी है न जिसे वे मार डालना चाहते हैं? 26 फिर भी देखो! वह लोगों के सामने खुल्लमखुल्ला बातें कर रहा है और वे उसे कुछ भी नहीं कहते। कहीं ऐसा तो नहीं कि धर्म-अधिकारियों को पक्के तौर पर मालूम हो गया है कि यही मसीह है? 27 मगर दूसरी तरफ, हम जानते हैं कि यह आदमी कहाँ का है। लेकिन जब मसीह आएगा तो कोई नहीं जान पाएगा कि वह कहाँ का है।” 28 इसलिए यीशु ने मंदिर में सिखाते वक्त ज़ोर से पुकारकर कहा: “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी मरज़ी से नहीं आया, बल्कि जिसने मुझे भेजा है वह सचमुच वजूद में है, और तुम उसे नहीं जानते। 29 मगर मैं उसे जानता हूँ, क्योंकि मैं उसका भेजा हुआ प्रतिनिधि हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” 30 तब वे उसे किसी तरह पकड़ने का मौका ढूँढ़ने लगे, मगर किसी ने भी उस पर हाथ नहीं डाले क्योंकि उसके लिए तय किया हुआ वक्त अभी तक नहीं आया था। 31 फिर भी, भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया और यह कहने लगे: “इस आदमी ने इतने चमत्कार दिखाए हैं, जितने कि मसीह आने पर दिखाता।”
32 फरीसियों ने सुना कि भीड़ के लोग उसके बारे में ये बातें बुदबुदा रहे हैं। तब प्रधान याजकों और फरीसियों ने पहरेदार भेजे ताकि वे यीशु को पकड़ सकें। 33 तब यीशु ने कहा: “जिसने मुझे भेजा है उसके पास जाने से पहले मैं तुम्हारे साथ थोड़ा वक्त और रहूँगा। 34 तुम मुझे ढूँढ़ोगे मगर नहीं पाओगे, और जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 35 इसलिए यहूदी आपस में कहने लगे: “यह आदमी कहाँ जाना चाहता है जिससे हम उसे ढूँढ़ न सकेंगे? यह उन यहूदियों के पास तो नहीं जाना चाहता जो यूनानियों के बीच तित्तर-बित्तर होकर रहते हैं? कहीं यह यूनानियों को तो नहीं सिखाना चाहता? 36 इस बात का क्या मतलब है जो उसने कही, ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे मगर नहीं पाओगे और जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’ ?”
37 फिर त्योहार के आखिरी दिन जो सबसे खास दिन होता है, यीशु खड़ा हुआ और उसने पुकारकर कहा: “अगर कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पानी पीए। 38 जो मुझमें विश्वास करता है, ‘उसके दिल की गहराइयों से जीवन देनेवाले पानी की धाराएँ बहेंगी,’ जैसा शास्त्र में भी कहा गया है। ” 39 यह बात उसने पवित्र शक्ति के बारे में कही जो यीशु पर विश्वास करनेवालों को मिलनेवाली थी। इसलिए कि तब तक उन्होंने पवित्र शक्ति नहीं पायी थी, क्योंकि तब तक यीशु को महिमा नहीं मिली थी। 40 इसलिए भीड़ के कुछ लोगों ने जब ये बातें सुनीं, तो वे कहने लगे: “यह वाकई वह भविष्यवक्ता है जो आनेवाला था।” 41 दूसरे कह रहे थे: “यही मसीह है।” मगर कुछ और कह रहे थे: “मसीह असल में गलील से नहीं आनेवाला। 42 क्या शास्त्र यह नहीं कहता कि मसीह दाविद के वंश से और उस बेतलेहेम गाँव से आएगा जहाँ दाविद रहा करता था?” 43 इसलिए यीशु की वजह से भीड़ में फूट पड़ गयी। 44 उनमें से कुछ उसे पकड़ना चाहते थे, फिर भी किसी ने उस पर हाथ न डाले।
45 इसलिए जब पहरेदार, प्रधान याजकों और फरीसियों के पास खाली हाथ लौट आए, तो उन्होंने उनसे पूछा: “तुम उसे पकड़कर क्यों नहीं लाए?” 46 पहरेदारों ने उन्हें जवाब दिया: “आज तक किसी भी इंसान ने इस तरह बात नहीं की जिस तरह वह करता है।” 47 तब फरीसियों ने उनसे कहा: “क्या तुम भी गुमराह हो गए? 48 क्या धर्म-अधिकारियों और फरीसियों में से एक ने भी उस पर विश्वास किया है? 49 मगर ये लोग जो कानून की रत्ती भर भी समझ नहीं रखते, शापित लोग हैं।” 50 तब नीकुदेमुस ने जो इन धर्म-अधिकारियों में से एक था और पहले यीशु के पास आया था, उनसे कहा: 51 “हमारा कानून तब तक एक आदमी को दोषी नहीं ठहराता जब तक कि पहले उसकी सुन न ले और यह जान न ले कि वह क्या कर रहा है। क्या ऐसा नहीं है?” 52 जवाब में उन्होंने नीकुदेमुस से कहा: “कहीं तू भी तो गलील का नहीं? शास्त्र में ढूँढ़ और देख कि कोई भी भविष्यवक्ता गलील से नहीं आएगा।”*
कोडेक्स साइनाइटिकस, कोडेक्स वैटिकेनस और साइनाइटिक सिरियक कोडेक्स हस्तलिपियों में 7:53 से 8:11 तक की आयतें नहीं हैं। (अलग-अलग यूनानी पाठ और अनुवादों में थोड़े-बहुत अंतर के साथ) इन आयतों में यूँ लिखा है:
53 इसलिए वे अपने-अपने घर लौट गए।
8 मगर यीशु जैतून पहाड़ पर चला गया। 2 लेकिन, सुबह होने पर वह फिर मंदिर में आया और सब लोग उसके पास आने लगे। वह बैठ गया और उन्हें सिखाने लगा। 3 तब शास्त्री और फरीसी एक स्त्री को ले आए जो किसी गैर-आदमी के साथ व्यभिचार करते पकड़ी गयी थी। उन्होंने उस स्त्री को बीच में खड़ा करने के बाद 4 यीशु से कहा: “हे गुरु, यह स्त्री किसी गैर-आदमी के साथ संभोग करते पकड़ी गयी है। 5 मूसा ने कानून में हमें यह बताया है कि ऐसी स्त्रियों को पत्थरवाह कर मार डालना चाहिए। तू इस बारे में क्या कहता है?” 6 बेशक, उन्होंने यह बात उसकी परीक्षा करने के लिए कही थी, ताकि उन्हें उस पर इलज़ाम लगाने की कोई वजह मिल जाए। मगर यीशु झुककर उंगली से ज़मीन पर कुछ लिखने लगा। 7 मगर जब वे उससे पूछते ही रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा: “तुममें से जो पापी न हो, वह सबसे पहले इसे पत्थर मारे।” 8 और यह कहकर वह फिर से झुककर ज़मीन पर लिखता रहा। 9 मगर उसकी यह बात सुनकर, बड़ों से लेकर छोटों तक, एक-एक कर सभी वहाँ से जाने लगे और वह अकेला रह गया और वह स्त्री भी रह गयी जो उनके बीच खड़ी थी। 10 तब यीशु ने सीधे होकर उस स्त्री से कहा: “हे स्त्री, वे लोग कहाँ गए? क्या किसी ने भी तुझे सज़ा के लायक नहीं ठहराया?” 11 स्त्री ने कहा: “नहीं साहब, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा: “न ही मैं तुझे सज़ा के लायक ठहराऊँगा। चली जा, लेकिन फिर से पाप में न लग जाना।”
12 इसलिए यीशु ने फिर लोगों से बात की और कहा: “मैं दुनिया की रौशनी हूँ। जो मेरे पीछे चलता है वह हरगिज़ अंधकार में न चलेगा, मगर ज़िंदगी की रौशनी उसके पास होगी।” 13 इसलिए फरीसियों ने उससे कहा: “तू खुद अपने बारे में गवाही देता है, इसलिए तेरी गवाही सच्ची नहीं है।” 14 जवाब में यीशु ने उनसे कहा: “अगर मैं अपने बारे में खुद गवाही देता हूँ, तो भी मेरी गवाही सच्ची है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। मगर तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। 15 तुम इंसानी नज़रिए से न्याय करते हो, मगर मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16 और अगर न्याय करता भी हूँ, तो मेरा न्याय सच्चा है, क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ बल्कि पिता मेरे साथ है जिसने मुझे भेजा है। 17 साथ ही तुम्हारे अपने कानून में यह लिखा है: ‘दो लोगों की गवाही सच्ची मानी जाए।’ 18 एक मैं खुद हूँ जो अपने बारे में गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता है जिसने मुझे भेजा है, वह मेरे बारे में गवाही देता है।” 19 इसलिए वे उससे कहने लगे: “कहाँ है तेरा पिता?” यीशु ने जवाब दिया: “तुम न तो मुझे, न ही मेरे पिता को जानते हो। अगर तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।” 20 ये बातें उसने मंदिर में सिखाते वक्त खज़ाने के भवन के अहाते में कही थीं। मगर किसी ने उसे नहीं पकड़ा, क्योंकि उसका वक्त अभी नहीं आया था।
21 यीशु ने एक बार फिर उनसे कहा: “मैं जा रहा हूँ और तुम मुझे ढूँढ़ोगे, मगर फिर भी अपनी पापी हालत में मरोगे। जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 22 इसलिए यहूदी कहने लगे: “क्या यह खुद को मार डालेगा? क्योंकि यह कहता है: ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’ ” 23 इसलिए वह उनसे कहने लगा: “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ। तुम इस दुनिया के हो, मैं इस दुनिया का नहीं। 24 इसलिए मैंने तुमसे कहा कि तुम अपनी पापी हालत में मरोगे। क्योंकि अगर तुम इस बात पर यकीन नहीं करते कि मैं वही हूँ तो तुम अपनी पापी हालत में मरोगे।” 25 तब वे उससे कहने लगे: “तू है कौन?” यीशु ने उनसे कहा: “आखिर मैं तुमसे अब तक बात कर ही क्यों रहा हूँ, जबकि तुम्हें मेरी बात समझ ही नहीं आती? 26 तुम्हारे बारे में मुझे बहुत-सी बातें कहनी हैं, साथ ही बहुत-से मामलों का न्याय करना है। सच तो यह है कि जिसने मुझे भेजा है वह सच्चा है और जो बातें मैंने उससे सुनीं, वही मैं दुनिया में बता रहा हूँ।” 27 वे समझ न सके कि यीशु उनसे पिता के बारे में बात कर रहा है। 28 इसलिए यीशु ने कहा: “जब एक बार तुम इंसान के बेटे को ऊँचे पर चढ़ा चुके होगे, तो तुम जान लोगे कि मैं वही हूँ और मैं अपनी पहल पर कुछ भी नहीं करता, बल्कि जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ। 29 जिसने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं हमेशा वही करता हूँ जिससे वह खुश होता है।” 30 जब वह ये बातें बोल रहा था, तो बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
31 तब यीशु उन यहूदियों से जिन्होंने उस पर यकीन किया था, कहने लगा: “अगर तुम मेरी शिक्षा में बने रहते हो, तो तुम सचमुच मेरे चेले हो। 32 तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।” 33 उन्होंने उसे जवाब दिया: “हम अब्राहम के वंशज हैं और कभी-भी किसी के गुलाम नहीं रहे। तो फिर तू कैसे कहता है कि ‘तुम आज़ाद हो जाओगे।’?” 34 यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, हर कोई जो पाप करता है वह पाप का गुलाम है। 35 और गुलाम घर में हमेशा नहीं रहता, मगर बेटा हमेशा तक रहता है। 36 इसलिए अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करे, तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे। 37 मैं जानता हूँ कि तुम अब्राहम के वंशज हो, मगर तुम मुझे मार डालने की ताक में हो, क्योंकि मेरी बातें तुम्हारे दिलों में जड़ नहीं पकड़तीं। 38 मैंने अपने पिता के यहाँ जो देखा है मैं वही कहता हूँ। जबकि तुम वही करते हो जो तुमने अपने पिता से सुना है।” 39 यहूदियों ने उसे जवाब दिया: “हमारा पिता तो अब्राहम है।” यीशु ने उनसे कहा: “अगर तुम अब्राहम के वंशज हो, तो अब्राहम के जैसे काम करो। 40 मगर तुम मुझे, एक ऐसे इंसान को मार डालने की ताक में हो, जिसने तुम्हें वह सच्चाई बतायी है जो मैंने परमेश्वर से सुनी है। अब्राहम ने तो ऐसा नहीं किया था। 41 तुम अपने पिता जैसे काम करते हो।” उन्होंने कहा: “हम व्यभिचार से पैदा नहीं हुए। हमारा एक ही पिता है, परमेश्वर।”
42 यीशु ने उनसे कहा: “अगर परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्यार करते, क्योंकि मैं परमेश्वर की तरफ से भेजा गया हूँ और यहाँ हूँ। मैं अपनी मरज़ी से नहीं आया, बल्कि उसी ने मुझे भेजा है। 43 क्या वजह है कि मैं जो बोल रहा हूँ वह तुम नहीं जानते? इसलिए कि तुम मेरी बातों को स्वीकार नहीं कर सकते। 44 तुम अपने पिता शैतान से हो और अपने पिता की ख्वाहिशों को पूरा करना चाहते हो। वह शुरूआत से ही हत्यारा है और सच्चाई में टिका न रहा, क्योंकि सच्चाई उसमें है ही नहीं। जब वह झूठ बोलता है तो अपनी फितरत के मुताबिक ही बोलता है, क्योंकि वह झूठा है और झूठ का पिता है। 45 दूसरी तरफ, क्योंकि मैं तुम्हें सच्चाई बताता हूँ, तुम मेरा यकीन नहीं करते। 46 तुममें से कौन है जो यह साबित करे कि मैं पापी हूँ? और अगर मैं सच बोल रहा हूँ, तो फिर तुम मेरा यकीन क्यों नहीं करते? 47 जो परमेश्वर की तरफ से है वह परमेश्वर की बातें सुनता है। तुम इसीलिए मेरी बात नहीं सुनते, क्योंकि तुम परमेश्वर की तरफ से नहीं हो।”
48 जवाब में यहूदियों ने उससे कहा: “क्या हम सही नहीं कहते कि तू एक सामरी है और तेरे अंदर एक दुष्ट स्वर्गदूत है?” 49 यीशु ने जवाब दिया: “मेरे अंदर कोई दुष्ट स्वर्गदूत नहीं, मगर मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो। 50 मैं अपने लिए महिमा नहीं चाहता, मगर एक है जो मेरे लिए यह चाहता है और वही न्यायी है। 51 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, अगर कोई मेरे वचन पर चलता है, तो वह कभी-भी मौत का मुँह न देखेगा।” 52 यहूदियों ने उससे कहा: “अब हम जान गए हैं कि तेरे अंदर एक दुष्ट स्वर्गदूत है। अब्राहम मर गया और भविष्यवक्ता भी मर गए। मगर तू कहता है, ‘अगर कोई मेरे वचनों पर चलता है, तो वह कभी-भी मौत का स्वाद न चखेगा।’ 53 क्या तू हमारे पिता अब्राहम से भी बढ़कर है? वह तो मर गया और भविष्यवक्ता भी मर गए। तू कौन होने का दावा करता है?” 54 यीशु ने जवाब दिया: “अगर मैं अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ भी नहीं। मगर मेरा पिता है जो मेरी महिमा करता है, वही जिसके बारे में तुम कहते हो कि वह तुम्हारा परमेश्वर है 55 और फिर भी तुमने उसे नहीं जाना है। मगर मैं उसे जानता हूँ। और अगर मैं यह कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारे जैसा ठहरूँगा, यानी एक झूठा। मगर मैं उसे जानता हूँ और उसके वचन पर चलता हूँ। 56 तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बेहद खुश था और उसने उसे देखा भी और बहुत खुश हुआ।” 57 इसलिए यहूदियों ने उससे कहा: “तू अब तक पचास साल का भी नहीं हुआ और फिर भी तू ने अब्राहम को देखा है?” 58 यीशु ने उनसे कहा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, इससे पहले कि अब्राहम वजूद में आया, मेरा वजूद रहा है।” 59 इस पर उन्होंने यीशु को मारने के लिए पत्थर उठा लिए। मगर वह छिप गया और मंदिर से बाहर निकल गया।
9 जब यीशु जा रहा था, तो उसने एक आदमी को देखा जो जन्म से अंधा था। 2 तब चेलों ने उससे पूछा: “गुरु,* किसने पाप किया कि यह अंधा पैदा हुआ। इसने या इसके माता-पिता ने?” 3 यीशु ने जवाब दिया: “न तो इस आदमी ने पाप किया, न इसके माता-पिता ने, मगर यह इसलिए था कि इसके मामले में परमेश्वर के काम ज़ाहिर हों। 4 जिसने मुझे भेजा है उसके काम हमें दिन रहते ही कर लेने चाहिए। वह रात आ रही है जब कोई आदमी काम न कर सकेगा। 5 जब तक मैं दुनिया में हूँ, मैं दुनिया की रौशनी हूँ।” 6 ये बातें कहने के बाद, उसने ज़मीन पर थूका और थूक से मिट्टी सानकर लेप बनाया और उस अंधे की आँखों पर लगाया 7 और उससे कहा: “जा और जाकर सिलोम के कुंड में धो ले” (सिलोम का मतलब है, ‘भेजा हुआ’)। उसने जाकर धोया और देखता हुआ लौटा।
8 इसलिए उस आदमी के पड़ोसी और वे लोग जो उसे पहले भीख माँगते देखा करते थे, कहने लगे: “क्या यह वही आदमी नहीं, जो पहले बैठकर भीख माँगा करता था?” 9 कुछ कहते थे: “यह वही है।” दूसरे कहते थे: “नहीं, नहीं, यह वह नहीं है, मगर उसी के जैसा दिखता है।” वह आदमी कहता था: “मैं वही हूँ।” 10 तब वे उससे पूछने लगे: “फिर, तेरी आँखों की रौशनी कैसे लौट आयी?” 11 उसने जवाब दिया: “यीशु नाम के आदमी ने मिट्टी सानकर मेरी आँखों पर लगायी और मुझसे कहा, ‘जाकर सिलोम में धो ले।’ मैं गया और अपनी आँखें धोयीं और देखने लगा।” 12 इस पर वे उससे पूछने लगे: “कहाँ है वह आदमी?” उसने कहा: “मैं नहीं जानता।”
13 तब वे लोग उस आदमी को, जो पहले अंधा था फरीसियों के पास ले गए। 14 इत्तफाक से, जिस दिन यीशु ने मिट्टी का लेप लगाकर उसकी आँखें खोली थीं, वह सब्त का दिन था। 15 इसलिए, अब फरीसी भी उस आदमी से पूछताछ करने लगे कि उसने आँखों की रौशनी कैसे पायी। उस आदमी ने कहा: “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी का लेप लगाया और मैंने धोया और देखने लगा।” 16 इसलिए कुछ फरीसियों ने कहा: “वह आदमी परमेश्वर की तरफ से नहीं है, क्योंकि वह सब्त को नहीं मानता।” मगर दूसरे कहने लगे: “एक पापी भला इस तरह के चमत्कार कैसे कर सकता है?” इसलिए उनके बीच फूट पड़ गयी। 17 तब उन्होंने उस अंधे से फिर कहा: “उसने तेरी आँखें खोली हैं, तू उसके बारे में क्या कहता है?” उस आदमी ने कहा: “उसे परमेश्वर ने भेजा है।”
18 मगर, जब तक यहूदियों ने उस आदमी के माता-पिता को न बुला लिया, तब तक इस बात का यकीन नहीं किया कि वह पहले अंधा था और अब उसने आँखों की रौशनी पायी है। 19 उन्होंने उसके माता-पिता से पूछा: “क्या यह तुम्हारा बेटा है जिसके बारे में तुम कहते हो कि यह अंधा पैदा हुआ था? तो फिर, अब यह देखने कैसे लगा?” 20 जवाब में उसके माता-पिता ने कहा: “हमें मालूम है कि यह हमारा बेटा है और यह अंधा पैदा हुआ था। 21 मगर हमें यह नहीं मालूम कि अब यह कैसे देखने लगा है या किसने इसकी आँखों की रौशनी लौटायी है। तुम उसी से पूछ लो। वह बालिग है। उसे खुद अपने बारे में बताना चाहिए।” 22 उसके माता-पिता ने ये बातें इसलिए कहीं क्योंकि वे यहूदी धर्म-अधिकारियों से डरते थे, इसलिए कि यहूदी पहले से तय कर चुके थे कि अगर कोई यीशु को मसीह मानता है, तो उसे सभा-घर से बेदखल कर दिया जाए। 23 इसी वजह से उसके माता-पिता ने कहा था: “वह बालिग है। उसी से पूछो।”
24 तब उन्होंने उस आदमी को जो पहले अंधा था, दूसरी बार बुलाया और उससे कहा: “परमेश्वर को हाज़िर जानकर, सच-सच बोल। क्योंकि हम जानते हैं कि वह आदमी पापी है।” 25 उसने जवाब दिया: “वह पापी है या नहीं यह तो मैं नहीं जानता। मैं तो बस इतना जानता हूँ कि मैं पहले अंधा था, मगर अब देखता हूँ।” 26 इसलिए उन्होंने उससे पूछा: “उसने तेरे साथ क्या किया? उसने तेरी आँखें कैसे खोलीं?” 27 उसने उन्हें जवाब दिया: “मैं तो तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ, मगर तुमने मेरी बात नहीं सुनी। फिर तुम दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? कहीं तुम भी तो उसके चेले नहीं बनना चाहते?” 28 इस पर वे उसे बुरा-भला कहने लगे: “तू ही उसका चेला है, मगर हम तो मूसा के चेले हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें की थीं, मगर इस आदमी के बारे में हम नहीं जानते कि यह कहाँ से आया है।” 30 जवाब में उस आदमी ने उनसे कहा: “यह तो वाकई कमाल की बात है कि तुम नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है और फिर भी उसने मेरी आँखें खोल दीं। 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता, लेकिन अगर कोई उसका डर मानता हो और उसकी मरज़ी पूरी करता हो, तो वह उसकी सुनता है। 32 दुनिया की शुरूआत से यह बात कभी सुनने में नहीं आयी कि किसी ने जन्म के अंधे को आँखों की रौशनी दी हो। 33 अगर यह आदमी परमेश्वर की तरफ से नहीं होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता था।” 34 उन्होंने जवाब में उससे कहा: “तू पूरा-का-पूरा पापों में जन्मा है और फिर भी तू हमें सिखाने चला है?” और उन्होंने उसे बेदखल कर दिया!
35 यीशु ने सुना कि उन्होंने उस आदमी को निकालकर बाहर कर दिया है। उससे मिलने पर यीशु ने कहा: “क्या तू इंसान के बेटे पर विश्वास करता है?” 36 उस आदमी ने जवाब दिया: “साहब, वह कौन है ताकि मैं उस पर विश्वास कर सकूँ?” 37 यीशु ने उससे कहा: “तू ने उसे देखा है। दरअसल वही तुझसे बात कर रहा है।” 38 तब उसने कहा: “प्रभु, मैं विश्वास करता हूँ,” और उसने झुककर यीशु को प्रणाम किया। 39 तब यीशु ने कहा: “मैं दुनिया में यह न्याय करने आया हूँ: कि जो नहीं देखते हैं वे देखें, और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएँ।” 40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने यह सुनकर उससे कहा: “क्या हम भी अंधे हैं?” 41 यीशु ने उनसे कहा: “अगर तुम अंधे होते, तो तुममें कोई पाप न होता। मगर अब तुम कहते हो, ‘हम देखते हैं,’ इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।”
10 “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जो दरवाज़े से भेड़शाला में नहीं आता मगर किसी और जगह से चढ़कर आता है, वह एक चोर और लुटेरा है। 2 मगर जो दरवाज़े से आता है, वह भेड़ों का चरवाहा है। 3 दरबान उसके लिए दरवाज़ा खोलता है और भेड़ें उसकी आवाज़ सुनती हैं। वह अपनी भेड़ों को नाम ले-लेकर बुलाता और उन्हें बाहर ले जाता है। 4 जब चरवाहा अपनी सब भेड़ों को बाहर ले आता है, तो वह उनके आगे-आगे चलता है और भेड़ें उसके पीछे-पीछे चलती हैं, क्योंकि वे उसकी आवाज़ पहचानती हैं। 5 वे किसी अजनबी के पीछे हरगिज़ नहीं जाएँगी बल्कि उससे दूर भागेंगी, क्योंकि वे अजनबियों की आवाज़ नहीं पहचानतीं।” 6 यीशु ने उन्हें यह तुलना बतायी, मगर वे नहीं जानते थे कि वह जो बातें उनसे कह रहा है उसका क्या मतलब है।
7 इसलिए यीशु ने एक बार फिर कहा: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि मैं भेड़ों के लिए दरवाज़ा हूँ। 8 जितने भी ढोंगी मेरी जगह लेने आए वे सब-के-सब चोर और लुटेरे हैं। मगर भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी। 9 मैं दरवाज़ा हूँ, जो कोई मुझसे होकर जाता है वह उद्धार पाएगा और अंदर-बाहर आया-जाया करेगा और चरागाह पाएगा। 10 चोर सिर्फ चोरी करने, हत्या करने और तबाह करने आता है। मगर मैं इसलिए आया हूँ कि वे जीवन पाएँ और बहुतायत में पाएँ। 11 बेहतरीन चरवाहा मैं हूँ। बेहतरीन चरवाहा भेड़ों की खातिर अपनी जान दे देता है। 12 लेकिन मज़दूरी पर रखा गया आदमी, चरवाहा नहीं है और भेड़ें उसकी अपनी नहीं होतीं। जब वह भेड़िए को आता देखता है, तो भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, (और भेड़िया, भेड़ों पर झपट पड़ता है और उन्हें तित्तर-बित्तर कर देता है) 13 क्योंकि वह आदमी, मज़दूरी पर रखा गया है और उसे भेड़ों की परवाह नहीं होती। 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ, और मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं, 15 ठीक जैसे पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ। मैं अपनी भेड़ों की खातिर अपनी जान देता हूँ।
16 मेरी दूसरी भेड़ें भी हैं जो इस भेड़शाला की नहीं, मुझे उन्हें भी लाना है। वे मेरी आवाज़ सुनेंगी और तब एक झुंड और एक चरवाहा होगा। 17 पिता इसीलिए मुझसे प्यार करता है क्योंकि मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर से पाऊँ। 18 कोई भी इंसान मुझसे मेरी जान नहीं छीनता, मगर मैं खुद अपनी मरज़ी से इसे देता हूँ। मुझे इसे देने का अधिकार है और इसे दोबारा पाने का भी अधिकार है। इसकी आज्ञा मुझे अपने पिता से मिली है।”
19 इन बातों को लेकर यहूदियों में एक बार फिर फूट पड़ गयी। 20 उनमें से बहुत-से कह रहे थे: “इसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया हुआ है और यह पागल है। तुम इसकी क्यों सुनते हो?” 21 दूसरे कहते थे: “ये बातें किसी ऐसे आदमी की नहीं जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया हो। क्या कोई दुष्ट स्वर्गदूत अंधों की आँखें खोल सकता है?”
22 उस वक्त यरूशलेम में मंदिर के समर्पण का त्योहार चल रहा था। यह सर्दियों का मौसम था, 23 और यीशु मंदिर में सुलैमान के बरामदे में टहल रहा था। 24 तब यहूदियों ने उसे घेर लिया और उससे पूछने लगे: “तू और कब तक हमें दुविधा में रखेगा? अगर तू मसीह है तो साफ-साफ कह दे।” 25 यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “मैं तुमसे कह चुका, फिर भी तुम यकीन नहीं करते। मैं अपने पिता के नाम से जो काम करता हूँ वही काम मेरे बारे में गवाही देते हैं। 26 मगर तुम यकीन नहीं करते क्योंकि तुम में से एक भी मेरी भेड़ नहीं। 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं। 28 मैं उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देता हूँ, और उन्हें कभी-भी नाश न किया जाएगा, और कोई भी उन्हें मेरे हाथ से न छीनेगा। 29 मेरे पिता ने मुझे जो दिया है, वह बाकी सब चीज़ों से कहीं ज़्यादा कीमती है, और कोई भी उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता। 30 मेरे और पिता के बीच एकता है।”
31 एक बार फिर यहूदियों ने उसे पत्थरवाह करने के लिए पत्थर उठा लिए। 32 यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “मैंने तुम्हें पिता की तरफ से बहुत-से बढ़िया काम दिखाए। तुम उनमें से किन कामों के लिए मुझ पर पत्थरवाह करते हो?” 33 यहूदियों ने उसे जवाब दिया: “हम किसी बढ़िया काम के लिए नहीं बल्कि इसलिए तुझ पर पत्थरवाह कर रहे हैं क्योंकि तू परमेश्वर की तौहीन करता है। तू एक इंसान होकर खुद को एक ईश्वर का दर्जा देता है।” 34 यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “क्या तुम्हारे कानून में नहीं लिखा है, ‘मैंने कहा: “तुम ईश्वर हो।” ’ 35 तो अगर वह उन्हें ‘ईश्वर’ कहता है जिनके खिलाफ परमेश्वर का वचन पहुँचा था, और फिर भी शास्त्र को रद्द नहीं किया जा सकता, 36 तो तुम मुझसे, जिसे पिता ने पवित्र ठहराया है और दुनिया में भेजा है, यह कैसे कह सकते हो कि ‘तू परमेश्वर की तौहीन करता है’? इसलिए कि मैंने कहा, मैं परमेश्वर का बेटा हूँ? 37 अगर मैं अपने पिता के काम नहीं कर रहा, तो मेरा यकीन मत करो। 38 लेकिन अगर मैं अपने पिता के काम कर रहा हूँ तो चाहे तुम मुझ पर यकीन न करो, मगर उन कामों पर यकीन करो ताकि तुम जान सको और आगे भी और अच्छी तरह समझ सको कि पिता मेरे साथ एकता में है और मैं पिता के साथ एकता में हूँ।” 39 इसलिए उन्होंने एक बार फिर उसे पकड़ने की कोशिश की मगर वह उनके हाथ से निकल गया।
40 फिर वह यरदन के पार उस जगह चला गया जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वह वहीं रहा। 41 फिर बहुत-से लोग उसके पास आए और उसके बारे में कहने लगे: “यूहन्ना ने तो एक भी चमत्कार नहीं दिखाया, मगर उसने इस आदमी के बारे में जितनी बातें कही थीं, वे सब सच थीं।” 42 वहाँ बहुतों ने यीशु पर विश्वास किया।
11 बैतनिय्याह गाँव का रहनेवाला लाज़र नाम का एक आदमी बीमार था। इसी गाँव में उसकी बहनें, मारथा और मरियम भी रहती थीं। 2 दरअसल, यह वह मरियम थी जिसने प्रभु पर खुशबूदार तेल डालकर उसके पैरों को अपने बालों से पोंछा था। बीमार लाज़र इसी मरियम का भाई था। 3 इसलिए लाज़र की बहनों ने यीशु के लिए यह संदेशा भेजा: “प्रभु, आकर देख! जिससे तुझे गहरा लगाव है वह बीमार है।” 4 मगर जब यीशु ने यह सुना तो कहा: “इस बीमारी का अंजाम मौत नहीं, बल्कि परमेश्वर की बड़ाई है, ताकि इसके ज़रिए परमेश्वर के बेटे की बड़ाई हो सके।”
5 यीशु को मारथा और उसकी बहन और लाज़र से प्यार था। 6 मगर, जब उसने सुना कि लाज़र बीमार है, तो वह जिस जगह रुका था वहाँ दो दिन और ठहर गया। 7 इसके बाद उसने अपने चेलों से कहा: “आओ हम फिर से यहूदिया जाएँ।” 8 तब चेलों ने उससे कहा: “गुरु, अभी कुछ ही वक्त पहले यहूदिया के लोग तुझ पर पत्थरवाह करना चाहते थे, क्या तू फिर वहीं जाना चाहता है?” 9 यीशु ने जवाब दिया: “दिन की रौशनी क्या बारह घंटे नहीं होती? अगर कोई दिन की रौशनी में चलता है, तो वह किसी चीज़ से ठोकर नहीं खाता, क्योंकि वह इस दुनिया की रौशनी देखता है। 10 लेकिन अगर कोई रात में चलता है, तो वह ठोकर खाता है क्योंकि उसमें रौशनी नहीं है।”
11 ये बातें कहने के बाद यीशु ने उनसे कहा: “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है, लेकिन मैं उसे नींद से जगाने वहाँ जा रहा हूँ।” 12 इसलिए चेलों ने उससे कहा: “प्रभु, अगर वह सो गया है, तो ठीक हो जाएगा।” 13 मगर यीशु ने उसकी मौत के बारे में कहा था। लेकिन चेलों ने समझा कि वह नींद की वजह से सो जाने की बात कर रहा है। 14 इसलिए, यीशु ने उन्हें साफ-साफ बता दिया: “लाज़र मर चुका है 15 और मैं तुम्हारी वजह से खुश हूँ कि मैं वहाँ नहीं था, ताकि तुम यकीन करो। मगर अब आओ, हम उसके पास चलते हैं।” 16 इसलिए थोमा ने, जो जुड़वाँ* कहलाता था, अपने साथियों से कहा: “आओ हम भी उसके साथ चलें, ताकि उसके साथ अपनी जान दें।”
17 जब यीशु बैतनिय्याह पहुँचा, तो उसे पता चला कि लाज़र को कब्र में रखे चार दिन बीत चुके हैं। 18 बैतनिय्याह, यरूशलेम के पास, करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर था। 19 बहुत-से यहूदी, मारथा और मरियम को उनके भाई की मौत पर दिलासा देने आए थे। 20 जब मारथा ने सुना कि यीशु आ रहा है, तो वह उससे मिली। मगर मरियम घर में बैठी रही। 21 मारथा ने यीशु से कहा: “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता। 22 और मैं अब भी यह जानती हूँ कि तू परमेश्वर से जो कुछ माँगेगा, परमेश्वर तुझे दे देगा।” 23 यीशु ने उससे कहा: “तेरा भाई जी उठेगा।” 24 मारथा ने उससे कहा: “मैं जानती हूँ कि वह आखिरी दिन मरे हुओं में से जी उठेगा।” 25 यीशु ने उससे कहा: “मरे हुओं का जी उठना* और जीवन मैं ही हूँ। जो मुझमें विश्वास दिखाता है, वह चाहे मर जाए, तो भी जी उठेगा। 26 और हर कोई जो ज़िंदा है और मुझ पर विश्वास दिखाता है, वह कभी न मरेगा। क्या तू इस पर विश्वास करती है?” 27 उसने कहा: “हाँ प्रभु, मैंने विश्वास किया है कि तू ही परमेश्वर का बेटा मसीह है, जो दुनिया में आनेवाला था।” 28 यह कहने के बाद वह चली गयी और जाकर अपनी बहन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा: “गुरु आ चुका है और तुझे बुला रहा है।” 29 जब मरियम ने यह सुना तो वह फौरन उठी और उससे मिलने के लिए निकल पड़ी।
30 दरअसल, यीशु गाँव के अंदर नहीं आया था, मगर जहाँ मारथा उससे मिली थी वह अब भी वहीं पर था। 31 इसलिए जो यहूदी घर में मरियम के साथ थे और जो उसे दिलासा दे रहे थे, जब उन्होंने देखा कि वह उठकर जल्दी-जल्दी गयी है, तो यह सोचकर वे उसके पीछे-पीछे गए कि वह ज़रूर कब्र पर रोने जा रही होगी। 32 जब मरियम उस जगह आयी जहाँ यीशु था और उसकी नज़र यीशु पर पड़ी, तो वह यह कहते हुए उसके पैरों पर गिर पड़ी: “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” 33 इसलिए जब यीशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते देखा, तो उसका दिल भर आया और उसने गहरी आह* भरते हुए पूछा: 34 “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने कहा: “प्रभु, आ और देख ले।” 35 यीशु के आंसू बहने लगे। 36 इसलिए यहूदियों ने कहा: “देखो, यह उससे कितना गहरा लगाव रखता था!” 37 मगर कुछ ने कहा: “क्या यह आदमी जिसने अंधे की आँखें खोलीं, इतना भी न कर सका कि यह इंसान न मरता?”
38 तब यीशु ने फिर से गहरी आह भरी और कब्र के पास आया। यह असल में एक गुफा थी और इसके मुँह पर एक पत्थर रखा हुआ था। 39 यीशु ने कहा: “पत्थर को हटाओ।” जो मर गया था, उसकी बहन मारथा ने उससे कहा: “प्रभु, अब तक तो उसमें से दुर्गंध आती होगी, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो चुके हैं।” 40 यीशु ने उससे कहा: “क्या मैंने तुझसे यह न कहा था कि अगर तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा देखेगी?” 41 इसलिए उन्होंने पत्थर हटा दिया। तब यीशु ने आँखें उठाकर स्वर्ग की तरफ देखा और कहा: “पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने मेरी सुनी है। 42 मैं जानता था कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन यहाँ खड़ी भीड़ की वजह से मैंने ऐसा कहा ताकि ये यकीन कर सकें कि तू ने ही मुझे भेजा है।” 43 जब वह ये बातें कह चुका, तो उसने ऊँची आवाज़ में पुकारते हुए कहा: “लाज़र, बाहर आ जा!” 44 तब वह जो मर चुका था बाहर निकल आया। उसके पैर और हाथ कफन की पट्टियों में लिपटे हुए थे और उसका चेहरा कपड़े से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा: “इसे खोल दो और जाने दो।”
45 इसलिए बहुत-से यहूदियों ने जो मरियम के पास आए थे और जिन्होंने यीशु का यह काम देखा, उस पर विश्वास किया। 46 मगर दूसरे कुछ लोग फरीसियों के पास गए और जाकर उन्हें बता दिया कि यीशु ने क्या किया था। 47 इस पर प्रधान याजक और फरीसियों ने महा-सभा* को इकट्ठा किया और यह कहने लगे: “हम क्या करें क्योंकि यह आदमी तो बहुत-से चमत्कार करता है? 48 अगर हम उसे इसी तरह छोड़ दें, तो सभी लोग उस पर विश्वास करने लगेंगे और रोमी आकर हमसे हमारी जगह* और राष्ट्र दोनों छीन लेंगे।” 49 मगर उनमें से कैफा नाम के आदमी ने, जो उस साल का महायाजक था, उनसे कहा: “तुम कुछ नहीं जानते, 50 और यह नहीं सोचते कि यह तुम्हारे ही फायदे के लिए है कि एक आदमी सब लोगों की खातिर मरे, बजाय इसके कि सारा राष्ट्र नाश किया जाए।” 51 उसने यह बात अपनी तरफ से नहीं कही थी, बल्कि उस साल का महायाजक होने की वजह से उसने यह भविष्यवाणी की कि यीशु का पूरे राष्ट्र के लिए मरना तय था, 52 और सिर्फ उस राष्ट्र के लिए ही नहीं, बल्कि इसलिए कि परमेश्वर के सब बच्चों को, जो यहाँ-वहाँ तित्तर-बित्तर हैं इकट्ठा कर एक करे। 53 इसलिए उस दिन से वे यीशु को मार डालने की साज़िश करने लगे।
54 इस वजह से यीशु इसके बाद सरेआम यहूदियों के बीच नहीं घूमा, बल्कि वह उस जगह से निकलकर वीराने के पास के इलाके में इफ्राइम नाम के शहर चला गया और वहीं अपने चेलों के साथ रहा। 55 अब यहूदियों का फसह का त्योहार पास था और बहुत-से लोग फसह से पहले अपने-अपने इलाकों से निकलकर यरूशलेम गए ताकि खुद को मूसा के कानून के मुताबिक शुद्ध कर सकें। 56 इसलिए वे यीशु को ढूँढ़ने लगे और मंदिर के इलाके में खड़े होकर आपस में कहने लगे: “तुम्हें क्या लगता है? क्या वह त्योहार के लिए बिलकुल नहीं आएगा?” 57 और ऐसा था कि प्रधान याजकों और फरीसियों ने हुक्म दिया हुआ था कि अगर किसी को उसकी खबर मिले कि वह कहाँ है, तो वह आकर उन्हें बताए, ताकि वे उसे पकड़ सकें।
12 फिर फसह के त्योहार से छः दिन पहले यीशु बैतनिय्याह पहुँचा। लाज़र, जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जी उठाया था इसी बैतनिय्याह गाँव का रहनेवाला था। 2 वहाँ कुछ लोगों ने यीशु के लिए शाम का खाना किया और मारथा सेवा करने में लगी थी। जो लोग यीशु के साथ खाने बैठे थे, लाज़र भी उनमें से एक था। 3 तब मरियम ने करीब तीन सौ ग्राम* असली जटामाँसी का खुशबूदार तेल लिया जो बहुत ही कीमती था। उसने यीशु के पैरों पर यह तेल मला और अपने बालों से उन्हें पोंछा। वह सारा घर इस खुशबूदार तेल की सुगंध से महक उठा। 4 मगर यहूदा इस्करियोती ने, जो यीशु के चेलों में से एक था और उसे धोखे से पकड़वानेवाला था, कहा: 5 “इस खुशबूदार तेल को तीन सौ दीनार* में बेचकर इसका पैसा गरीबों को क्यों नहीं दिया गया?” 6 मगर यह उसने इस वजह से नहीं कहा था कि उसे गरीबों की चिंता थी, बल्कि इसलिए कहा था क्योंकि वह एक चोर था और उसके पास पैसों का बक्सा रहता था जिसमें से वह पैसे चुरा लेता था। 7 इसलिए यीशु ने मरियम के लिए कहा: “उसे रहने दो, ताकि वह मेरे दफनाए जाने के दिन की तैयारी के लिए यह दस्तूर पूरा करे। 8 क्योंकि गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे, मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।”
9 जब यहूदियों की बड़ी भीड़ को पता चला कि यीशु वहाँ है तो वे न सिर्फ उसके लिए बल्कि लाज़र को भी देखने वहाँ आए, जिसे उसने मरे हुओं में से जी उठाया था। 10 अब प्रधान याजकों ने सलाह की कि वे लाज़र को भी मार डालें, 11 क्योंकि उसकी वजह से बहुत-से यहूदी वहाँ जा रहे थे और यीशु पर विश्वास कर रहे थे।
12 अगले दिन त्योहार के लिए आए लोगों की बड़ी भीड़ ने जब सुना कि यीशु यरूशलेम आ रहा है, 13 तो वे खजूर की डालियाँ लिए उससे मिलने निकले। वे यह कहकर ज़ोर-ज़ोर से पुकार लगाने लगे: “बचा ले, हम तुझसे बिनती करते हैं! धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है और इस्राएल का राजा है!” 14 जब यीशु को गधे का एक बच्चा मिला, तो वह उस पर सवार हो गया, ठीक जैसा लिखा है: 15 “सिय्योन की बेटी, मत डर। देख! तेरा राजा गधे के बच्चे पर बैठा आ रहा है।” 16 शुरूआत में उसके चेलों ने इन बातों पर गौर नहीं किया, मगर जब यीशु ने महिमा पायी तब उन्होंने याद किया कि उसके बारे में ये बातें लिखी थीं और यीशु के लिए यह सब किया गया।
17 यीशु ने जिस वक्त लाज़र को कब्र से बाहर बुलाया था और उसे मरे हुओं में से जी उठाया था, उस वक्त जो लोग उसके साथ मौजूद थे वे इस बात की गवाही देते रहे। 18 इसलिए जब भीड़ ने सुना कि उसने यह चमत्कार किया था, तो वे भी उससे मिलने आए। 19 इसलिए फरीसी आपस में कहने लगे: “तुम देख रहे हो कि तुम कुछ भी नहीं कर पा रहे। देखो! सारी दुनिया उसके पीछे हो चली है।”
20 त्योहार के वक्त उपासना के लिए आनेवालों में कुछ यूनानी भी थे। 21 इसलिए ये फिलिप्पुस के पास आए जो गलील के बैतसैदा का रहनेवाला था और उससे यह कहते हुए गुज़ारिश करने लगे: “साहब, हम यीशु से मिलना चाहते हैं।” 22 फिलिप्पुस ने आकर अन्द्रियास को बताया। अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने आकर यीशु को बताया।
23 मगर यीशु ने उन्हें यह कहते हुए जवाब दिया: “वह घड़ी आ चुकी है जब इंसान का बेटा महिमा पाए। 24 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जब तक गेहूँ का एक दाना मिट्टी में गिरकर मर नहीं जाता तब तक वह सिर्फ एक ही दाना रहता है। लेकिन अगर वह मर जाता है तो फिर बहुत फल लाता है। 25 जिसे अपनी जान से लगाव है, वह इसे नाश करता है, मगर जो इस दुनिया में अपनी जान से नफरत करता है वह इसे हमेशा की ज़िंदगी के लिए बचाए रखेगा। 26 अगर कोई मेरी सेवा करना चाहता है, तो वह मेरे पीछे हो ले और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा। अगर कोई मेरी सेवा करेगा, तो पिता उसका आदर करेगा। 27 अब मैं और क्या कहूँ? मेरा जी बेचैन है। पिता, मुझे इस घड़ी से बचा ले। दरअसल, मैं इसी वजह से इस घड़ी तक पहुँचा हूँ। 28 पिता, अपने नाम की महिमा कर।” तब आकाश* से एक आवाज़ आयी: “मैंने इसकी महिमा की है और फिर से इसकी महिमा करूँगा।”
29 जब आस-पास खड़ी भीड़ ने यह आवाज़ सुनी, तो वे कहने लगे कि बादल गरजा है। दूसरे कहने लगे: “किसी स्वर्गदूत ने उससे बात की है।” 30 जवाब में यीशु ने कहा: “यह आवाज़ मेरी खातिर नहीं बल्कि तुम्हारी खातिर सुनायी दी है। 31 अब इस दुनिया का न्याय किया जा रहा है और इस दुनिया का राजा बाहर कर दिया जाएगा। 32 मगर, जहाँ तक मेरी बात है, जब मुझे धरती से ऊपर उठाया जाएगा, तो मैं सब तरह के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करूँगा।” 33 यह बात उसने दरअसल यह दिखाने के लिए कही कि वह कैसी मौत मरने पर था। 34 इस पर भीड़ ने उसे जवाब दिया: “हमने तो कानून में सुना है कि मसीह हमेशा तक रहेगा, फिर तू यह कैसे कहता है कि इंसान के बेटे को ऊपर उठाया जाना है? यह इंसान का बेटा कौन है?” 35 तब यीशु ने उनसे कहा: “रौशनी कुछ ही वक्त और तुम्हारे बीच में है। जब तक तुम्हारे पास रौशनी है, तब तक इसमें चलो ताकि अंधकार तुम पर हावी न हो। जो अंधकार में चलता है वह नहीं जानता कि वह कहाँ जा रहा है। 36 जिस दौरान रौशनी तुम्हारे पास है, उस दौरान रौशनी पर विश्वास दिखाओ ताकि तुममें रौशनी हो।”
यीशु ये बातें कहने के बाद चला गया और उनसे छिप गया।
37 उसने उनके सामने बहुत-से चमत्कार किए थे, इसके बावजूद वे उस पर विश्वास नहीं कर रहे थे। 38 इसलिए यशायाह भविष्यवक्ता का कहा यह वचन पूरा हुआ: “यहोवा, किसने हमारे संदेश पर विश्वास किया है? और यहोवा ने अपनी ताकत* किस पर ज़ाहिर की है?” 39 वे क्यों यकीन नहीं कर पाए, इसकी वजह बताते हुए यशायाह फिर कहता है: 40 “उसने उनकी आँखें अंधी कर दी हैं और उनके दिल कठोर कर दिए हैं ताकि वे कभी अपनी आँखों से न देख सकें और न ही अपने दिलों से समझें और पलट आएँ और मैं उन्हें चंगा करूँ।” 41 यशायाह ने ये बातें इसलिए कहीं क्योंकि उसने मसीह की महिमा देखी थी और उसके बारे में बताया था। 42 हालाँकि, धर्म-अधिकारियों में से भी बहुत-से ऐसे थे जिन्होंने असल में यीशु पर विश्वास तो किया, मगर फरीसियों के डर से वे खुलकर उसे स्वीकार नहीं करते थे ताकि ऐसा न हो कि उन्हें सभा-घर से बेदखल कर दिया जाए। 43 क्योंकि उन्हें परमेश्वर से मिलनेवाली महिमा से बढ़कर इंसानों से मिलनेवाली महिमा प्यारी थी।
44 मगर यीशु ने ज़ोर से पुकारकर कहा: “जो मुझ पर विश्वास करता है वह मुझ पर ही नहीं बल्कि उस पर भी विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है। 45 और जो मुझे देखता है वह उसे भी देखता है जिसने मुझे भेजा है। 46 मैं इस दुनिया में रौशनी बनकर आया हूँ ताकि हर कोई जो मुझ पर विश्वास करे वह अंधकार में न रहे। 47 लेकिन अगर कोई मेरी बातें सुनता है मगर उन्हें मानता नहीं, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराऊँगा क्योंकि मैं दुनिया को दोषी ठहराने नहीं बल्कि बचाने आया हूँ। 48 जो मुझे ठुकरा देता है और मेरे वचन स्वीकार नहीं करता, उसे दोषी ठहरानेवाला कोई और है। जो वचन मैंने कहा है वही उसे आखिरी दिन में दोषी ठहराएगा। 49 क्योंकि मैंने अपनी तरफ से बात नहीं की। मगर खुद पिता ने, जिसने मुझे भेजा है, उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि मैं क्या-क्या बताऊँ और क्या-क्या बोलूँ। 50 साथ ही, मैं जानता हूँ कि उसकी आज्ञा का मतलब हमेशा की ज़िंदगी है। इसलिए जो बातें मैं बोलता हूँ, वह ठीक वैसे ही बोलता हूँ जैसे पिता ने मुझे बताया है।”
13 फसह के त्योहार से पहले यीशु यह जानता था कि इस दुनिया को छोड़कर पिता के पास जाने की उसकी घड़ी आ पहुँची है। इसलिए दुनिया में जो उसके अपने थे जिनसे वह प्यार करता आया था, वह उनसे आखिर तक प्यार करता रहा। 2 जब शाम का खाना चल रहा था और शैतान,* शमौन के बेटे यहूदा इस्करियोती के दिल में यह बात पहले ही डाल चुका था कि वह यीशु को धोखे से पकड़वाए, 3 तब यीशु, यह जानते हुए कि पिता ने सबकुछ उसके हाथों में सौंप दिया है और वह परमेश्वर की तरफ से आया है और परमेश्वर के पास जा रहा है, 4 खाने की मेज़ से उठा और अपना चोगा उतारकर अलग रख दिया और तौलिया लेकर कमर से बाँध लिया। 5 इसके बाद उसने एक बरतन में पानी भरा और अपने चेलों के पैर धोने लगा और कमर पर बंधे तौलिये से पोंछने लगा। 6 जब वह शमौन पतरस के पास आया, तो पतरस ने उससे कहा: “प्रभु, क्या तू मेरे पैर धो रहा है?” 7 जवाब में यीशु ने उससे कहा: “मैं जो कर रहा हूँ उसे तू अभी नहीं समझता, मगर इन बातों के बाद तू समझेगा।” 8 पतरस ने उससे कहा: “तू मेरे पैर हरगिज़ न धोएगा।” यीशु ने उसे जवाब दिया: “अगर मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं।” 9 शमौन पतरस ने उससे कहा: “तो प्रभु, मेरे पैर ही नहीं, बल्कि मेरे हाथ और मेरा सिर भी धो दे।” 10 यीशु ने उससे कहा: “जो नहा चुका है उसे पैर के सिवा और कुछ धोने की ज़रूरत नहीं, बल्कि वह पूरी तरह शुद्ध है। तुम लोग शुद्ध हो, मगर सभी नहीं।” 11 दरअसल, वह जानता था कि वह शख्स कौन है जो उसे धोखे से पकड़वानेवाला है। इसीलिए उसने कहा था: “तुममें से सभी शुद्ध नहीं हैं।”
12 जब वह उनके पैर धो चुका और अपना चोगा पहनकर फिर से मेज़ से टेक लगाकर बैठ गया, तो उसने उनसे कहा: “क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है? 13 तुम मुझे ‘गुरु’ और ‘प्रभु’ पुकारते हो और तुम ठीक कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ। 14 इसलिए, अगर मैंने प्रभु और गुरु होते हुए भी तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक-दूसरे के पैर धोने चाहिए। 15 इसलिए कि मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है कि जैसे मैंने तुम्हारे साथ किया, वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए। 16 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न ही भेजा हुआ अपने भेजनेवाले से बड़ा होता है। 17 तुमने ये बातें जान ली हैं, इसलिए अगर तुम ऐसा करते हो तो सुखी हो तुम। 18 मैं तुम सबके बारे में बात नहीं कर रहा। जिन्हें मैंने चुना है उन्हें मैं जानता हूँ, मगर शास्त्र की इस बात का पूरा होना ज़रूरी है, ‘जो मेरी रोटी खाया करता था उसी ने मेरे खिलाफ लात उठाई है।’ 19 मैं अब से, यह सब होने से पहले ही तुम्हें बता रहा हूँ, ताकि जब ऐसा हो तो तुम यकीन कर सको कि मैं वही हूँ। 20 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, मैं जिस किसी को भेजता हूँ अगर एक इंसान उसे स्वीकार करता है तो वह मुझे भी स्वीकार करता है। जो मुझे स्वीकार करता है, वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।”
21 ये बातें कहने के बाद यीशु दुःख से बेहाल होने* लगा और उसने खुलकर कह दिया: “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, तुममें से एक मुझे धोखे से पकड़वाएगा।” 22 यह सुनकर चेले एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे, क्योंकि वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह किसके बारे में बात कर रहा है। 23 यीशु के सीने के पास उसका एक चेला टेक लगाए बैठा था, जिससे यीशु को प्यार था। 24 इसलिए शमौन पतरस ने सिर हिलाते हुए उस चेले से कहा: “बता, वह किसके बारे में ऐसा कह रहा है।” 25 इसलिए उस चेले ने पीछे यीशु की छाती की तरफ झुककर उससे पूछा: “प्रभु, वह कौन है?” 26 तब यीशु ने जवाब दिया: “जिसे मैं रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।” फिर उसने रोटी का टुकड़ा डुबोया और शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदा को दिया। 27 यहूदा के टुकड़ा लेने के बाद, शैतान ने उसके दिलो-दिमाग पर काम करना शुरू कर दिया। इसलिए यीशु ने उससे कहा: “जो तू कर रहा है, उसे फौरन कर।” 28 मगर, खाने की मेज़ पर जो बैठे थे उनमें से कोई न जानता था कि यीशु ने यहूदा से यह क्यों कहा। 29 कुछ तो यह सोच रहे थे कि यहूदा के पास पैसों का बक्सा रहता है, इसलिए यीशु उससे कह रहा है: “त्योहार के लिए हमें जिन चीज़ों की ज़रूरत है वे खरीद ले,” या यह कि उसे गरीबों को कुछ देना चाहिए। 30 इसलिए, रोटी का टुकड़ा लेने के बाद यहूदा फौरन वहाँ से चला गया। यह रात का वक्त था।
31 उसके चले जाने के बाद यीशु ने कहा: “अब इंसान के बेटे की महिमा हुई है और उसके ज़रिए परमेश्वर की महिमा हुई है। 32 परमेश्वर खुद उसकी महिमा करेगा और जल्द ऐसा करेगा। 33 प्यारे बच्चो, मैं थोड़ी देर और तुम्हारे साथ हूँ। तुम मुझे ढूँढ़ोगे और ठीक जैसे मैंने यहूदियों से कहा था, वही मैं अब तुमसे भी कह रहा हूँ, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’ 34 मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। 35 अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”
36 शमौन पतरस ने उससे कहा: “प्रभु, तू कहाँ जा रहा है?” यीशु ने जवाब दिया: “जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तू अभी मेरे पीछे नहीं आ सकता, मगर बाद में तू आएगा।” 37 पतरस ने उससे कहा: “प्रभु, मैं अभी तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तेरी खातिर अपनी जान भी दे दूँगा।” 38 यीशु ने जवाब दिया: “क्या तू मेरी खातिर अपनी जान देगा? मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, जब तक तू मुझे जानने से तीन बार इनकार न कर चुका होगा, तब तक मुर्गा हरगिज़ बाँग न देगा।
14 तुम्हारे दिल दुःख से बेहाल न हों। परमेश्वर पर विश्वास दिखाओ, मुझ पर भी विश्वास दिखाओ। 2 मेरे पिता के घर में रहने की बहुत-सी जगह हैं। अगर यह बात सच न होती, तो मैं तुमसे नहीं कहता। मगर यह बात सच है, क्योंकि मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जा रहा हूँ। 3 और जब मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँगा, तो मैं दोबारा आ रहा हूँ और तुम्हें अपने घर ले जाऊँगा ताकि जहाँ मैं हूँ वहीं तुम भी रह सको। 4 मैं जहाँ जा रहा हूँ, तुम वहाँ की राह जानते हो।”
5 थोमा ने उससे कहा: “प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जा रहा है। तो फिर हम वहाँ की राह कैसे जानें?”
6 यीशु ने उससे कहा: “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है। 7 अगर तुमने मुझे सचमुच जाना होता, तो तुम मेरे पिता को भी जानते। इस घड़ी से तुम उसे जानते हो और तुमने उसे देखा है।”
8 फिलिप्पुस ने उससे कहा: “प्रभु, हमें पिता दिखा दे और यही हमारे लिए काफी है।”
9 यीशु ने उससे कहा: “मैं इतने समय से तुम्हारे साथ हूँ और फिर भी, फिलिप्पुस तू मुझे नहीं जान पाया? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है। तो फिर तू क्यों कहता है, ‘हमें पिता दिखा दे’? 10 क्या तू यकीन नहीं करता कि मैं पिता के साथ एकता में हूँ और पिता मेरे साथ एकता में है? मैं जो बातें तुमसे कहता हूँ वे अपनी तरफ से नहीं कहता, बल्कि पिता है जो अपने काम कर रहा है और मेरे साथ एकता में रहता है। 11 मेरा यकीन करो कि मैं पिता के साथ एकता में हूँ और पिता मेरे साथ एकता में है। नहीं तो, जो काम मैंने किए हैं उन्हीं की वजह से मेरा यकीन करो। 12 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जो मुझ पर विश्वास दिखाता है, वह भी वे काम करेगा जो मैं करता हूँ और वह इनसे भी बड़े-बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ। 13 साथ ही, जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, मैं वह करूँगा ताकि बेटे के ज़रिए पिता महिमा पाए। 14 अगर तुम मेरे नाम से कुछ भी माँगोगे, तो मैं वह करूँगा।
15 अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे। 16 मैं पिता से बिनती करूँगा और वह तुम्हें एक और मददगार देगा जो हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा, 17 यानी सच्चाई की वह पवित्र शक्ति जो दुनिया को नहीं मिल सकती। क्योंकि दुनिया न तो परमेश्वर की इस पवित्र शक्ति को देखती है न ही इसे जानती है। तुम इसे जानते हो, क्योंकि यह तुम्हारे साथ रहती है और तुममें है। 18 मैं तुम्हें मातम की हालत में नहीं छोड़ूँगा। मैं तुम्हारे पास फिर आ रहा हूँ। 19 थोड़ी देर और है और फिर दुनिया मुझे नहीं देखेगी, मगर तुम मुझे देखोगे, क्योंकि मैं जीवित हूँ और तुम भी जीओगे। 20 उस दिन तुम जानोगे कि मैं अपने पिता के साथ एकता में हूँ और तुम मेरे साथ एकता में हो और मैं तुम्हारे साथ एकता में हूँ। 21 जिसके पास मेरी आज्ञाएँ हैं और जो उन्हें मानता है, वही है जो मुझसे प्यार करता है। जो मुझसे प्यार करता है उससे मेरा पिता प्यार करेगा और मैं उससे प्यार करूँगा और अपने आपको उस पर खुलकर ज़ाहिर करूँगा।”
22 यहूदा (इस्करियोती नहीं) ने उससे कहा: “प्रभु, ऐसा क्या हुआ है कि तू अपने आपको हम पर तो खुलकर ज़ाहिर करना चाहता है मगर दुनिया पर नहीं?”
23 जवाब में यीशु ने उससे कहा: “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा और मेरा पिता उससे प्यार करेगा। हम उसके पास आएँगे और उसके साथ निवास करेंगे। 24 जो मुझसे प्यार नहीं करता वह मेरे वचनों पर नहीं चलता। जो वचन तुम सुन रहे हो वह मेरा नहीं, बल्कि पिता का है जिसने मुझे भेजा है।
25 तुम्हारे साथ रहते हुए मैंने ये बातें तुम्हें बतायी हैं। 26 मगर वह मददगार, यानी पवित्र शक्ति* जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सारी बातें सिखाएगा और जितनी बातें मैंने तुम्हें बतायी हैं वे सब तुम्हें याद दिलाएगा। 27 मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, मैं तुम्हें अपनी शांति देता हूँ। मैं तुम्हें यह शांति इस तरीके से नहीं देता जैसे दुनिया देती है। तुम्हारे दिल दुःख से बेहाल न हों, न ही वे डर के मारे कमज़ोर पड़ें। 28 तुमने सुना कि मैंने तुमसे कहा था, मैं जा रहा हूँ और मैं फिर तुम्हारे पास वापस आ रहा हूँ। अगर तुम मुझसे प्यार करते, तो तुम खुशी मनाते कि मैं पिता के पास जा रहा हूँ, क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है। 29 और अब मैं तुम्हें ऐसा होने से पहले बता चुका हूँ, ताकि जब ऐसा हो तो तुम यकीन कर सको। 30 मैं अब इसके बाद तुमसे ज़्यादा बात नहीं करूँगा, क्योंकि इस दुनिया का राजा आ रहा है और मुझ पर उसका कोई ज़ोर नहीं चलता। 31 मगर ताकि दुनिया जान जाए कि मैं पिता से प्यार करता हूँ, इसलिए ठीक जैसे पिता ने मुझे आज्ञा दी है, मैं वैसे ही कर रहा हूँ। उठो, आओ हम यहाँ से चलें।
15 सच्ची बेल* मैं हूँ और मेरा पिता बागबान है। 2 मेरी हर वह डाली जो फल नहीं लाती, उसे वह काट देता है और ऐसी हर डाली जो फल लाती है, उसकी वह छँटाई करता है ताकि उसमें और ज़्यादा फल लगे। 3 मैंने तुमसे जो वचन कहा है उसकी वजह से तुम पहले ही शुद्ध हो। 4 मेरे साथ एकता में बने रहो और मैं तुम्हारे साथ एकता में रहूँगा। एक डाली तब तक फल लाती है जब तक वह बेल से जुड़ी रहती है। बेल से अलग होकर डाली अपने आप फल नहीं ला सकती। उसी तरह तुम भी अगर मेरे साथ एकता में न रहो, तो फल नहीं ला सकते। 5 मैं अंगूर की बेल हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मेरे साथ एकता में रहता है और जिसके साथ मैं एकता में रहता हूँ, वह बहुत फल लाता है, क्योंकि मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते। 6 अगर कोई मेरे साथ एकता में नहीं रहता, तो उसे ऐसे फेंक दिया जाता है जैसे एक डाली को फेंक दिया जाता है और वह सूख जाती है। लोग ऐसी डालियाँ बटोरकर आग में झोंक देते हैं और ये जला दी जाती हैं। 7 अगर तुम मेरे साथ एकता में रहो और मेरी बातें तुममें बनी रहें, तो तुम जो चाहते हो वह माँगो और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा। 8 मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल लाते रहो और यह साबित करो कि तुम मेरे चेले हो। 9 ठीक जैसे पिता ने मुझसे प्यार किया और मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम मेरे प्यार में बने रहो। 10 अगर तुम मेरी आज्ञाओं पर चलो तो मेरे प्यार में बने रहोगे, ठीक जिस तरह मैं पिता की आज्ञाओं पर चलता हूँ और उसके प्यार में बना रहता हूँ।
11 ये बातें मैंने तुमसे इसलिए कही हैं कि मेरी खुशी तुममें हो और तुम्हारी खुशी भरपूर हो जाए। 12 मेरी यह आज्ञा है कि तुम वैसे ही एक-दूसरे से प्यार करो जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है। 13 इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा कि वह अपने दोस्तों की खातिर अपनी जान दे दे। 14 मैं तुम्हें जो आज्ञा देता हूँ अगर तुम वह मानो तो तुम मेरे दोस्त हो। 15 मैं अब से तुम्हें दास नहीं कहता क्योंकि दास नहीं जानता कि उसका मालिक क्या करता है। लेकिन मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है वह सब तुम्हें बता दिया है। 16 तुमने मुझे नहीं चुना मगर मैंने तुम्हें चुना है, और इसलिए ठहराया है कि तुम बढ़ते जाओ और फल लाते रहो। तुम्हारा फल बना रहे ताकि तुम मेरे नाम से पिता से जो कुछ माँगो वह तुम्हें दे दे।
17 मैं तुम्हें इन बातों की आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। 18 अगर दुनिया तुमसे नफरत करती है, तो तुम यह जानते हो कि इसने तुमसे पहले मुझसे नफरत की है। 19 अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया जो उसका अपना है उसे पसंद करती। मगर क्योंकि तुम दुनिया के नहीं हो बल्कि मैंने तुम्हें दुनिया से चुन लिया है, इसलिए दुनिया तुमसे नफरत करती है। 20 मैंने जो बात तुमसे कही थी, उसे याद रखो। एक दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझ पर ज़ुल्म किया है, तो तुम पर भी ज़ुल्म करेंगे। अगर उन्होंने मेरी बात मानी है तो वे तुम्हारी भी मानेंगे। 21 मगर वे मेरे नाम की वजह से तुम्हारे खिलाफ यह सब करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते। 22 अगर मैं नहीं आता और उनसे बात नहीं करता तो उनमें पाप न होता। मगर अब उनके पास अपने पाप के लिए कोई बहाना नहीं है। 23 जो मुझसे नफरत करता है वह मेरे पिता से भी नफरत करता है। 24 मैंने उनके बीच वे काम किए जो किसी और ने नहीं किए थे। अगर मैंने उनके बीच ये काम न किए होते, तो उनमें कोई पाप न होता। मगर अब उन्होंने मेरे काम देखे हैं और मुझसे और मेरे पिता, दोनों से नफरत की है। 25 मगर यह इसलिए हुआ कि उनके कानून में लिखी यह बात पूरी हो सके: ‘उन्होंने बेवजह मुझसे नफरत की।’ 26 मैं स्वर्ग में अपने पिता के यहाँ से तुम्हारे पास एक मददगार भेजूँगा, यानी सच्चाई की पवित्र शक्ति, जो पिता से निकलती है। जब यह मददगार आएगा तो यह मेरे बारे में गवाही देगा। 27 फिर तुम्हें भी मेरे बारे में गवाही देनी है, क्योंकि तुम शुरू से मेरे साथ रहे हो।
16 मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं कि तुम डगमगा न जाओ। 2 लोग तुम्हें सभा-घर से बेदखल कर देंगे। दरअसल वह घड़ी आ रही है जब हर कोई जो तुम्हें मार डालेगा, यह सोचेगा कि उसने परमेश्वर की पवित्र सेवा की है। 3 मगर वे ये काम इसलिए करेंगे क्योंकि उन्होंने न तो पिता को जाना है, न ही मुझे। 4 फिर भी मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कहीं कि जब इनके होने का वक्त आए, तो तुम याद कर सको कि मैंने ये बातें तुम्हें बतायी थीं।
मगर मैंने ये बातें तुम्हें पहले नहीं बतायीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। 5 मगर अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जा रहा हूँ और फिर भी तुममें से कोई मुझसे यह नहीं पूछता कि ‘तू कहाँ जा रहा है?’ 6 मगर क्योंकि मैंने तुमसे ये बातें कही हैं इसलिए तुम्हारा दिल दुःख से भर गया है। 7 तौभी मैं तुमसे सच कह रहा हूँ, मैं तुम्हारे ही भले के लिए जा रहा हूँ। इसलिए कि अगर मैं न जाऊँ, तो वह मददगार हरगिज़ तुम्हारे पास नहीं आएगा। लेकिन अगर मैं जाता हूँ, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। 8 जब वह आएगा तो दुनिया को साफ-साफ दिखाएगा कि पाप क्या है और परमेश्वर के स्तर के मुताबिक सही क्या है और न्याय क्या है: 9 सबसे पहले पाप के बारे में, क्योंकि वे मुझ पर विश्वास नहीं दिखा रहे। 10 फिर सही क्या है इसके बारे में, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे अब और न देखोगे। 11 फिर न्याय के बारे में, क्योंकि इस दुनिया के राजा का न्याय किया गया है।
12 मुझे तुमसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, मगर इस वक्त तुम इन्हें समझ नहीं सकते। 13 लेकिन जब वह मददगार आएगा, यानी सच्चाई की पवित्र शक्ति, तो वह सच्चाई की पूरी समझ पाने में तुम्हारी मदद करेगा। इसलिए कि वह अपनी तरफ से नहीं बोलेगा, बल्कि जो बातें वह सुनता है वही बोलेगा और आनेवाली बातों के बारे में तुम्हें साफ-साफ बताएगा। 14 वह मेरी महिमा करेगा क्योंकि उसे मेरी तरफ से जो मिला है वही तुम्हें साफ-साफ बताएगा। 15 जो कुछ पिता का है वह सब मेरा है। इसीलिए मैंने कहा कि उस मददगार को मेरी तरफ से जो मिला है वही तुम्हें बताएगा। 16 अब से थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे।”
17 इसलिए उसके कुछ चेले एक-दूसरे से कहने लगे: “यह जो हमसे कह रहा है इसका क्या मतलब है कि ‘थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे’ और यह बात ‘क्योंकि मैं अपने पिता के पास जा रहा हूँ’?” 18 इसलिए वे कहने लगे: “यह जो कह रहा है ‘थोड़ी देर बाद,’ इसका क्या मतलब है? हम नहीं जानते कि यह किस बारे में बात कर रहा है।” 19 यीशु जानता था कि वे उससे सवाल पूछना चाहते हैं, इसलिए उसने चेलों से कहा: “क्या तुम एक-दूसरे से मेरी इस बात के बारे में पूछताछ कर रहे हो कि थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे? 20 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, तुम रोओगे और विलाप करोगे, मगर दुनिया खुशियाँ मनाएगी। तुम शोक करोगे मगर तुम्हारा शोक खुशी में बदल जाएगा। 21 एक स्त्री जब बच्चे को जन्म देनेवाली होती है, तो उसे दुःख होता है क्योंकि उसकी घड़ी आ पहुँची है। मगर जब वह बच्चे को जन्म दे देती है तो फिर उसे अपना दुःख-दर्द याद नहीं रहता क्योंकि उसे खुशी होती है कि एक इंसान दुनिया में पैदा हुआ है। 22 उसी तरह, तुम भी अभी शोक करते हो। मगर मैं तुमसे फिर मिलूँगा और तुम्हारे दिल खुशी से भर जाएँगे और कोई भी तुमसे तुम्हारी खुशी नहीं छीनेगा। 23 उस दिन तुम मुझसे कोई सवाल नहीं करोगे। मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, अगर तुम पिता से कुछ भी माँगोगे तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। 24 इस वक्त तक तुमने मेरे नाम से एक भी चीज़ नहीं माँगी है। माँगो और तुम पाओगे, ताकि तुम्हारी खुशी भरपूर हो जाए।
25 मैंने ये बातें तुमसे मिसालों में कही हैं। वह घड़ी आ रही है जब मैं तुमसे मिसालों में बात नहीं करूँगा, मगर पिता के बारे में तुम्हें साफ-साफ खबर दूँगा। 26 उस दिन तुम मेरे नाम से पिता से प्रार्थना कर सकोगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं हर बार तुम्हारे लिए पिता से बिनती करूँगा। 27 इसलिए कि पिता खुद तुमसे गहरा लगाव रखता है, क्योंकि तुम मुझसे गहरा लगाव रखते हो और तुमने यकीन किया है कि मैं पिता का भेजा प्रतिनिधि हूँ। 28 मैं पिता की तरफ से इस दुनिया में आया हूँ। और मैं दुनिया को छोड़कर पिता के पास जा रहा हूँ।”
29 उसके चेलों ने कहा: “देख! अब तू हमें साफ-साफ बता रहा है और मिसालें नहीं दे रहा। 30 अब हम जानते हैं कि तुझे सब बातें पता हैं और किसी को तुझसे सवाल करने की ज़रूरत नहीं। इससे हमें यकीन होता है कि तू परमेश्वर की तरफ से आया है।” 31 यीशु ने जवाब दिया: “क्या तुम अभी यकीन करते हो? 32 देखो! वह घड़ी आ रही है, दरअसल आ चुकी है, जब तुम में से हर कोई तित्तर-बित्तर होकर अपने-अपने घर चला जाएगा और तुम मुझे अकेला छोड़ दोगे। फिर भी मैं अकेला नहीं हूँ क्योंकि पिता मेरे साथ है। 33 मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं ताकि मेरे ज़रिए तुम शांति पा सको। दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल की है।”
17 यीशु ने ये बातें कहने के बाद, स्वर्ग की तरफ नज़रें उठायीं और कहा: “पिता, वह घड़ी आ गयी है। अपने बेटे की महिमा कर, ताकि तेरा बेटा तेरी महिमा कर सके, 2 क्योंकि तू ने उसे सब इंसानों पर अधिकार दिया है ताकि जितनों को तू ने उसे दिया है उन सबको वह हमेशा की ज़िंदगी दे सके। 3 हमेशा की ज़िंदगी पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर का और यीशु मसीह का, जिसे तू ने भेजा है, ज्ञान लेते रहें। 4 जो काम तू ने मुझे दिया है उसे पूरा कर मैंने धरती पर तेरी महिमा की है। 5 इसलिए अब हे पिता, मुझे अपने साथ वह महिमा दे, जो दुनिया के शुरू होने से पहले मेरी तेरे साथ थी।
6 मैंने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया है जिन्हें तू ने दुनिया में से मुझे दिया है। वे तेरे थे और तू ने उन्हें मुझे दिया है और उन्होंने तेरा वचन माना है। 7 वे जान गए हैं कि जो कुछ तू ने मुझे दिया है, वह सब तेरी तरफ से है। 8 क्योंकि जो बातें तू ने मुझे बतायी हैं वे मैंने उन तक पहुँचायी हैं। उन्होंने ये बातें स्वीकार की हैं और वे पक्के तौर पर जान गए हैं कि मैं तेरा प्रतिनिधि बनकर आया हूँ और उन्होंने यकीन किया है कि तू ने मुझे भेजा है। 9 मैं उनके लिए बिनती करता हूँ। मैं दुनिया के लिए बिनती नहीं करता, मगर उनके लिए करता हूँ जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं, 10 और मेरा सबकुछ तेरा है और जो तेरा है वह मेरा है, और उनके बीच मुझे आदर मिला है।
11 यही नहीं, अब से मैं इस दुनिया में नहीं रहूँगा मगर वे इसी दुनिया में हैं और मैं तेरे पास आ रहा हूँ। पवित्र पिता, अपने नाम की खातिर जो तू ने मुझे दिया है, उनकी देखभाल कर, ताकि वे भी एक हो सकें जैसे हम एक हैं। 12 जब मैं उनके साथ था, तो मैं तेरे नाम की खातिर जो तू ने मुझे दिया है, उनकी देखभाल किया करता था। मैंने उन्हें बचाए रखा और विनाश के बेटे को छोड़, उनमें से एक भी नाश नहीं हुआ है, ताकि शास्त्रवचन पूरा हो सके। 13 मगर अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ, और ये बातें मैं दुनिया में रहते हुए इसलिए कह रहा हूँ ताकि वे मेरी खुशी से भर जाएँ। 14 मैंने उन्हें तेरा वचन दिया है मगर दुनिया ने उनसे नफरत की है क्योंकि वे दुनिया के नहीं, ठीक जैसे मैं भी दुनिया का नहीं।
15 मैं तुझसे यह बिनती नहीं करता कि तू उन्हें दुनिया से निकाल ले, मगर यह कि उस दुष्ट की वजह से उनकी देखभाल कर। 16 वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ। 17 सच्चाई से उन्हें पवित्र कर। तेरा वचन सच्चा है। 18 ठीक जैसे तू ने मुझे दुनिया में भेजा है, वैसे ही मैंने भी उन्हें दुनिया में भेजा है। 19 और मैं उनकी खातिर खुद को पवित्र करता हूँ कि वे भी सच्चाई से पवित्र किए जाएँ।
20 मैं सिर्फ इन्हीं के लिए बिनती नहीं करता, मगर उनके लिए भी करता हूँ जो इनके वचन के ज़रिए मुझ पर विश्वास करते हैं, 21 ताकि वे सभी एक हो सकें। ठीक जैसे हे पिता, तू मेरे साथ एकता में है और मैं तेरे साथ एकता में हूँ। उसी तरह, वे भी हमारे साथ एकता में हो सकें जिससे दुनिया यकीन कर सके कि तू ने मुझे भेजा है। 22 मैंने उन्हें वह महिमा दी है जो तू ने मुझे दी थी, ताकि वे भी एक हों ठीक जैसे हम एक हैं। 23 मैं उनके साथ एकता में हूँ और तू मेरे साथ एकता में है, ताकि वे पूरी तरह से एक हों, जिससे कि दुनिया यह जाने कि तू ने मुझे भेजा है और तू ने उनसे भी वैसे ही प्यार किया है जैसे मुझसे किया है। 24 हे पिता, जिन्हें तू ने मुझे दिया है उनके बारे में मैं चाहता हूँ कि जहाँ मैं हूँ वे भी मेरे साथ हों, ताकि वे मेरे उस वैभव को देख सकें जो तू ने मुझे दिया है, क्योंकि तू ने दुनिया की शुरूआत के पहले से मुझसे प्यार किया है। 25 हे सच्चे पिता, दुनिया वाकई तुझे नहीं जान पायी है, मगर मैंने तुझे जाना है और इन्होंने भी जाना है कि तू ने मुझे भेजा है। 26 मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा ताकि जो प्यार तू ने मुझसे किया, वह उनमें भी हो और मैं उनके साथ एकता में रहूँ।”
18 ये बातें कहने के बाद, यीशु अपने चेलों के साथ किद्रोन घाटी पार कर उस जगह गया जहाँ एक बाग था। वह और उसके चेले बाग के अंदर गए। 2 उसे पकड़वानेवाले यहूदा को भी इस जगह का पता था, क्योंकि यीशु ने अपने चेलों के साथ वहाँ कई बार वक्त बिताया था। 3 इसलिए यहूदा, सैनिकों के दल और प्रधान याजकों और फरीसियों की तरफ से पहरेदारों को साथ लेकर वहाँ आया। वे अपने हाथों में मशालें और दीपक और हथियार लिए हुए थे। 4 यीशु जानता था कि उसके साथ क्या-क्या होनेवाला है, इसलिए उसने आगे आकर उनसे कहा: “तुम किसे ढूँढ़ रहे हो?” 5 उन्होंने जवाब दिया: “यीशु नासरी को।” यीशु ने उनसे कहा: “मैं वही हूँ।” उसे पकड़वानेवाला यहूदा भी उनके साथ खड़ा था।
6 मगर जब यीशु ने कहा: “मैं वही हूँ,” तो वे पीछे हट गए और ज़मीन पर गिर पड़े। 7 इसलिए यीशु ने उनसे दोबारा पूछा: “तुम किसे ढूँढ़ रहे हो?” उन्होंने कहा: “यीशु नासरी को।” 8 यीशु ने जवाब दिया: “मैं तुमसे कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ। अगर तुम मुझे ही ढूँढ़ रहे हो, तो इन्हें जाने दो,” 9 जिससे कि वह बात पूरी हो सके जो उसने कही थी: “जिन्हें तू ने मुझे दिया, मैंने उनमें से एक को भी नहीं खोया।”
10 शमौन पतरस के पास तलवार थी। इसलिए उसने तलवार निकालकर महायाजक के दास पर वार किया जिससे दास का दायाँ कान कट गया। उस दास का नाम मलखुस था। 11 मगर यीशु ने पतरस से कहा: “तलवार को उसकी म्यान में रख। पिता ने जो प्याला* मुझे दिया है, क्या मुझे हर हाल में उसे नहीं पीना चाहिए?”
12 तब सैनिकों के दल और सेनापति* और यहूदियों के भेजे हुए पहरेदारों ने यीशु को पकड़ लिया और उसे बाँध दिया। 13 वे उसे पहले हन्ना के पास ले गये, इसलिए कि वह उस साल के महायाजक कैफा का ससुर था। 14 दरअसल, वह कैफा ही था जिसने यहूदियों को यह सलाह दी थी कि यह उन्हीं के फायदे में है कि एक आदमी सब लोगों की खातिर मरे।
15 ऐसा हुआ कि शमौन पतरस और एक और चेला यीशु का पीछा करते हुए गए। यह चेला महायाजक की जान-पहचान का था और वह यीशु के साथ महायाजक के घर के आँगन में दाखिल हुआ। 16 मगर पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा था। इसलिए वह दूसरा चेला, जो महायाजक की जान-पहचान का था, बाहर गया और दरबान से बात की और पतरस को अंदर ले आया। 17 तब उस नौकरानी ने, जो दरबान थी, पतरस से कहा: “क्या तू भी इस आदमी के चेलों में से है?” उसने कहा: “नहीं, मैं नहीं हूँ।” 18 वहाँ आस-पास दास और पहरेदार खड़े थे, जो ठंड की वजह से लकड़ी के कोयले जलाकर वहाँ खड़े आग ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ खड़ा आग ताप रहा था।
19 तब प्रधान याजक ने यीशु से उसके चेलों और उसकी शिक्षा के बारे में पूछताछ की। 20 यीशु ने जवाब दिया: “मैंने दुनिया के सामने सरेआम बात की है। मैं हमेशा सभा-घर और मंदिर में सिखाया करता था, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठा होते हैं और मैंने कुछ भी छिपकर नहीं कहा। 21 तो फिर तू मुझसे क्यों पूछता है? उनसे पूछ जिन्होंने मेरी बातें सुनी हैं कि मैंने उनसे क्या कहा। देख! ये जानते हैं कि मैंने क्या कहा।” 22 जब उसने यह कहा, तो वहाँ खड़े पहरेदारों में से एक ने यीशु के मुँह पर थप्पड़ मारकर कहा: “क्या प्रधान याजक को जवाब देने का यह तरीका है?” 23 यीशु ने उसे जवाब दिया: “अगर मैंने कुछ गलत कहा, तो मुझे बता। लेकिन अगर मैंने सही कहा, तो तू मुझे क्यों मारता है?” 24 तब हन्ना ने उसे बँधा हुआ, महायाजक कैफा के पास भेज दिया।
25 शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था। तब लोगों ने उससे कहा: “क्या तू भी उसके चेलों में से एक नहीं?” उसने इनकार किया और कहा: “नहीं, मैं नहीं हूँ।” 26 तब महायाजक के एक दास ने, जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिसका कान पतरस ने काट दिया था, कहा: “क्या मैंने तुझे उसके साथ बाग में नहीं देखा था?” 27 मगर, पतरस ने फिर इनकार किया और फौरन एक मुर्गे ने बाँग दी।
28 तब वे यीशु को कैफा के यहाँ से राज्यपाल के महल ले गए। यह सुबह का वक्त था। मगर वे खुद राज्यपाल के महल के अंदर नहीं गए, ताकि वे दूषित न हो जाएँ और फसह का खाना खा सकें। 29 इसलिए पीलातुस* ने बाहर उनके पास आकर कहा: “तुम इस आदमी को किस इलज़ाम में मेरे पास लाए हो?” 30 जवाब में उन्होंने उससे कहा: “अगर यह आदमी गुनहगार न होता, तो हम इसे तेरे हवाले न करते।” 31 इसलिए पीलातुस ने उनसे कहा: “तुम्हीं इसे ले जाओ और अपने कानून के मुताबिक इसका न्याय करो।” यहूदियों ने उससे कहा: “कानून के हिसाब से हमें किसी को जान से मारने का अधिकार नहीं है।” 32 यह इसलिए हुआ कि यीशु का वचन पूरा हो सके जो उसने यह बताने के लिए कहा था कि उसके लिए कैसी मौत मरना तय है।
33 तब पीलातुस फिर से महल के अंदर गया और यीशु को बुलाकर उससे पूछा: “क्या तू यहूदियों का राजा है?” 34 यीशु ने जवाब दिया: “क्या तू यह अपनी तरफ से कह रहा है या क्या दूसरों ने तुझे मेरे बारे में बताया है?” 35 पीलातुस ने जवाब दिया: “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरे ही लोगों ने और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हवाले किया है। तू ने क्या किया है?” 36 यीशु ने जवाब दिया: “मेरा राज इस दुनिया का नहीं है। अगर मेरा राज इस दुनिया का होता तो मेरे सेवक लड़ते कि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाए। मगर, बात यह है कि मेरा राज इस दुनिया का नहीं।” 37 इसलिए पीलातुस ने उससे कहा: “तो क्या तू राजा है?” यीशु ने जवाब दिया: “तू खुद कह रहा है कि मैं एक राजा हूँ। मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इस दुनिया में आया हूँ कि सच्चाई की गवाही दूँ। हर कोई जो सच्चाई के पक्ष में है वह मेरी आवाज़ सुनता है।” 38 पीलातुस ने उससे कहा: “सच्चाई क्या है?”
यह कहने के बाद, पीलातुस फिर बाहर यहूदियों के पास गया और उनसे कहा: “मैं उसमें कोई दोष नहीं पाता। 39 तुम्हारे दस्तूर के मुताबिक मुझे फसह के त्योहार पर तुम्हारी गुज़ारिश पर एक आदमी को कैद से रिहा करना चाहिए। तो क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के इस राजा को रिहा करूँ?” 40 तब वे फिर से चिल्लाए: “नहीं, इस आदमी को नहीं, बल्कि बरअब्बा को रिहा कर!” दरअसल, बरअब्बा एक डाकू था।
19 इसलिए तब पीलातुस यीशु को ले गया और उसे कोड़े लगवाए। 2 सैनिकों ने काँटों का एक ताज बनाकर उसके सिर पर रखा और उसे एक बैंजनी कपड़ा ओढ़ाया। 3 वे उसके पास आकर कहने लगे: “हे यहूदियों के राजा, यह दिन तुझे मुबारक हो!” साथ ही वे उसके मुँह पर थप्पड़ मारते थे। 4 पीलातुस एक बार फिर बाहर आया और लोगों से कहा: “देखो! मैं उसे बाहर लाता हूँ ताकि तुम जानो कि मैंने उसमें कोई दोष नहीं पाया।” 5 तब यीशु काँटों का ताज पहने और बैंजनी ओढ़ना ओढ़े बाहर आया। और पीलातुस ने उनसे कहा: “देखो! यह है वह आदमी!” 6 लेकिन जब प्रधान याजकों और पहरेदारों ने उसे देखा, तो वे चिल्लाने लगे: “इसे सूली पर चढ़ा दे! इसे सूली पर चढ़ा दे!” पीलातुस ने उनसे कहा: “तुम खुद ही इसे ले जाकर सूली पर चढ़ाओ, क्योंकि मैं इसमें कोई दोष नहीं पाता।” 7 यहूदियों ने उसे जवाब दिया: “हमारा एक कानून है और उस कानून के मुताबिक यह मौत की सज़ा के लायक है क्योंकि इसने खुद को परमेश्वर का बेटा बताया है।”
8 जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो वह और भी डर गया। 9 वह फिर से महल के अंदर गया और यीशु से पूछा: “तू कहाँ का है?” मगर यीशु ने उसे कोई जवाब न दिया। 10 इसलिए पीलातुस ने उससे कहा: “क्या तू मुझे जवाब नहीं देगा? क्या तुझे यह नहीं मालूम कि मेरे पास तुझे रिहा करने का भी अधिकार है और तुझे सूली पर चढ़ाने का भी?” 11 यीशु ने उसे जवाब दिया: “अगर तुझे यह अधिकार ऊपर से न दिया गया होता, तो तेरे पास मेरे खिलाफ कुछ भी करने का अधिकार न होता। इसीलिए जिस आदमी ने मुझे तेरे हवाले किया है, उसका पाप ज़्यादा बड़ा है।”
12 इस वजह से पीलातुस किसी तरह उसे रिहा करने की कोशिश करता रहा। मगर यहूदियों ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा: “अगर तू इस आदमी को रिहा करता है, तो तू सम्राट* का दोस्त नहीं। हर आदमी जो खुद को एक राजा बनाता है वह सम्राट के खिलाफ बोलता है।” 13 इसलिए ये बातें सुनने के बाद पीलातुस यीशु को बाहर लाया और एक न्याय-आसन पर यानी उस जगह बैठ गया जो पत्थर का चबूतरा कहलाता था। मगर इब्रानी में उसे गब्बता कहा जाता था। 14 यह फसह की तैयारी का दिन* था और दिन का करीब छठा घंटा* था। पीलातुस ने यहूदियों से कहा: “देखो! तुम्हारा राजा!” 15 लेकिन वे चिल्लाए: “इसका काम तमाम कर! इसका काम तमाम कर! इसे सूली पर चढ़ा दे!” पीलातुस ने उनसे कहा: “क्या मैं तुम्हारे राजा को सूली पर चढ़ा दूँ?” तब प्रधान याजकों ने जवाब दिया: “सम्राट को छोड़ हमारा कोई राजा नहीं।” 16 तब उसने यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिए उन्हें सौंप दिया।
तब सैनिकों ने यीशु को अपने कब्ज़े में ले लिया। 17 यीशु अपनी यातना की सूली* उठाए उस जगह तक गया जिसे खोपड़ी स्थान कहा जाता है, जो इब्रानी में गुलगुता कहलाता है। 18 वहाँ उन्होंने उसे सूली पर चढ़ा दिया और उसके साथ दो आदमियों को, एक को इस तरफ और दूसरे को उस तरफ सूली पर चढ़ाया और यीशु बीच में था। 19 पीलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर यातना की सूली पर लगवा दिया, जिस पर लिखा था: “यीशु नासरी, यहूदियों का राजा।” 20 इसलिए इस दोष-पत्र को बहुत-से यहूदियों ने पढ़ा, क्योंकि जिस जगह यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था वह जगह शहर के पास ही थी। इस दोष-पत्र पर इब्रानी, लातीनी और यूनानी भाषा में लिखा था। 21 लेकिन यहूदियों के प्रधान याजक पीलातुस से कहने लगे: “यह मत लिख: ‘यहूदियों का राजा’ मगर यह लिख कि उसने कहा, ‘मैं यहूदियों का राजा हूँ।’ ” 22 पीलातुस ने जवाब दिया: “मैंने जो लिखवा दिया सो लिखवा दिया।”
23 जब सैनिकों ने यीशु को सूली पर चढ़ा दिया, तो उन्होंने उसका ओढ़ना लिया और उसके चार टुकड़े कर आपस में बाँट लिए यानी हर सैनिक ने एक टुकड़ा ले लिया। फिर उन्होंने कुरता भी लिया। मगर कुरते में कोई जोड़ नहीं था, बल्कि यह ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था। 24 इसलिए उन्होंने एक-दूसरे से कहा: “हम इसे नहीं फाड़ते, बल्कि यह तय करने के लिए कि यह किसका होगा हम चिट्ठियाँ डालते हैं।” ऐसा इसलिए हुआ कि यह वचन पूरा हो: “उन्होंने मेरा ओढ़ना आपस में बाँट लिया और मेरे कुरते पर चिट्ठियाँ डालीं।” सैनिकों ने वाकई ऐसा ही किया।
25 यीशु की यातना की सूली के पास उसकी माँ, उसकी मौसी, क्लोपास की पत्नी मरियम और मरियम मगदलीनी खड़ी थीं। 26 इसलिए जब यीशु ने अपनी माँ को और उस चेले को जिससे वह बहुत प्यार करता था, पास खड़े देखा तो अपनी माँ से कहा: “हे स्त्री, देख! तेरा बेटा!” 27 इसके बाद यीशु ने उस चेले से कहा: “देख! तेरी माँ!” और वह चेला तब से मरियम को अपने घर ले आया।
28 इसके बाद, यीशु ने यह जानते हुए कि सबकुछ पूरा हो चुका है, इसलिए कि शास्त्र में लिखी बात पूरी हो, यह कहा: “मैं प्यासा हूँ।” 29 वहाँ खट्टी दाख-मदिरा से भरा एक बरतन रखा था। इसलिए उन्होंने खट्टी दाख-मदिरा में भिगोए हुए एक स्पंज को जूफे की डंडी पर रखा और उसके मुँह के पास किया। 30 जब यीशु ने वह खट्टी दाख-मदिरा ली तो कहा: “पूरा हुआ!” और सिर झुकाकर दम तोड़ दिया।
31 वह तैयारी का दिन था और इसलिए कि लाशें सब्त के दिन यातना की सूली पर लटकी न रहें (क्योंकि यह बड़ा सब्त था) यहूदियों ने पीलातुस से गुज़ारिश की कि अपराधियों की टाँगें तोड़ दी जाएँ और उनकी लाशें उतार ली जाएँ। 32 इसलिए सैनिकों ने आकर यीशु के साथ सूली पर चढ़ाए गए पहले आदमी की टाँगें तोड़ीं और फिर दूसरे की। 33 मगर जब उन्होंने यीशु के पास आकर देखा कि वह पहले ही मर चुका है, तो उसकी टाँगें नहीं तोड़ीं 34 फिर भी सैनिकों में से एक ने अपना भाला उसकी पसलियों के बीच भोंका और फौरन खून और पानी बह निकला। 35 जिसने यह सबकुछ अपनी आँखों से देखा उसने इसकी गवाही दी है और उसकी गवाही सच्ची है। वह खुद जानता है कि उसने जो कुछ कहा वह सच है, जिससे तुम भी यकीन करो। 36 दरअसल यह सब इसलिए हुआ ताकि शास्त्र में लिखी यह बात पूरी हो: “उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़ी जाएगी।” 37 फिर शास्त्र में एक और जगह लिखा है: “वे उसे देखेंगे जिसे उन्होंने बेधा है।”
38 इन बातों के बाद अरिमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का एक चेला था, मगर यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था, पीलातुस से गुज़ारिश की कि वह यीशु का शव ले जाना चाहता है। पीलातुस ने उसे इजाज़त दे दी। इसलिए यूसुफ आया और उसका शव अपने साथ ले गया। 39 नीकुदेमुस भी, जो पहली बार यीशु के पास रात के वक्त आया था, वह करीब तैंतीस किलो गंधरस और अगर का मिश्रण ले आया। 40 तब उन्होंने यीशु का शव लिया और यहूदियों के दफनाने की रीत के मुताबिक उसे इन खुशबूदार मसालों के साथ पट्टियों से लपेटा। 41 इत्तफाक से जिस जगह उसे सूली पर चढ़ाया गया था, वहीं एक बाग था और उसमें एक नयी कब्र थी जिसमें अब तक कोई शव नहीं रखा गया था। 42 इसलिए यहूदियों के त्योहार की तैयारी के दिन की वजह से, साथ ही उस कब्र के नज़दीक होने की वजह से उन्होंने यीशु को उस कब्र में रख दिया।
20 हफ्ते के पहले दिन बड़े सवेरे जब अंधेरा ही था, मरियम मगदलीनी कब्र पर आयी। उसने देखा कि कब्र पर रखा पत्थर पहले से हटा हुआ है। 2 इसलिए वह दौड़ी-दौड़ी शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास गयी जिससे यीशु को गहरा लगाव था, और उनसे कहा: “वे प्रभु को कब्र से निकालकर ले गए हैं और हम नहीं जानतीं कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है।”
3 तब पतरस और वह दूसरा चेला बाहर आए और कब्र की तरफ निकल पड़े। 4 जी हाँ, वे दोनों साथ-साथ भागने लगे, मगर दूसरा चेला पतरस से तेज़ दौड़ता हुआ आगे निकल गया और कब्र पर पहले पहुँच गया। 5 उसने झुककर अंदर झाँका तो पट्टियाँ पड़ी देखीं, मगर वह अंदर नहीं गया। 6 तब शमौन पतरस भी उसके पीछे-पीछे आ पहुँचा और कब्र के अंदर घुस गया। उसने वहाँ पट्टियाँ पड़ी देखीं, 7 और वह कपड़ा भी देखा जिससे यीशु का सिर लपेटा गया था। यह कपड़ा पट्टियों के साथ नहीं बल्कि एक तरफ लपेटा हुआ रखा था। 8 तब वह दूसरा चेला भी, जो कब्र पर पहले पहुँचा था, अंदर गया और उसने देखा और यकीन किया। 9 वे अब तक शास्त्र की यह बात नहीं समझे थे कि उसका मरे हुओं में से जी उठना ज़रूरी था। 10 तब ये चेले अपने घरों को लौट गए।
11 मगर मरियम रोती हुई कब्र के बाहर ही खड़ी रही। फिर जब उसने रोते-रोते झुककर कब्र के अंदर झाँका, 12 तो सफेद कपड़े पहने दो स्वर्गदूतों को उस जगह बैठा देखा। एक को उस जगह जहाँ यीशु का सिर था और दूसरे को जहाँ उसके पैर थे। 13 उन्होंने मरियम से कहा: “हे स्त्री, तू क्यों रो रही है?” उसने उनसे कहा: “वे मेरे प्रभु को ले गए हैं, और मैं नहीं जानती कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है।” 14 यह कहने के बाद जब वह मुड़ी तो उसने यीशु को खड़े देखा, मगर वह पहचान न सकी कि वह यीशु है। 15 यीशु ने उससे कहा: “हे स्त्री, तू क्यों रो रही है? तू किसे ढूँढ़ रही है?” मरियम ने उसे माली समझकर उससे कहा: “भाई, अगर तू उसे उठाकर ले गया है तो मुझे बता दे कि तू ने उसे कहाँ रखा है, और मैं उसे ले जाऊँगी।” 16 यीशु ने उससे कहा: “मरियम!” इस पर उसने घूमकर उससे इब्रानी में कहा: “रब्बोनी!” (जिसका मतलब है, “गुरु!”) 17 यीशु ने उससे कहा: “मुझसे लिपटी मत रह। इसलिए कि मैं अभी तक ऊपर पिता के पास नहीं गया। मगर जाकर मेरे भाइयों से कह: ‘मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।’” 18 मरियम मगदलीनी यह खबर लेकर चेलों के पास आयी: “मैंने प्रभु को देखा है!” उसने यह भी बताया कि यीशु ने उससे क्या-क्या बातें कहीं।
19 इसलिए उसी दिन यानी हफ्ते के पहले दिन, जब शाम का वक्त था, चेले यहूदियों के डर से दरवाज़े बंद किए घर के अंदर थे। लेकिन दरवाज़े बंद होने के बावजूद यीशु उनके बीच आ खड़ा हुआ, और उनसे कहा: “तुम्हें शांति मिले।” 20 यह कहने के बाद उसने उन्हें अपने दोनों हाथ और अपनी पसलियाँ दिखायीं। तब चेले प्रभु को देखकर बेहद खुश हुए। 21 यीशु ने एक बार फिर उनसे कहा: “तुम्हें शांति मिले। जैसे पिता ने मुझे भेजा है, मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।” 22 यह कहने के बाद उसने उन पर फूँका और उनसे कहा: “परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाओ। 23 अगर तुम किसी के पाप माफ करोगे, तो वे उनके लिए माफ कर दिए जाएँगे। तुम जिनका पाप माफ न करोगे, उनका पाप बना रहेगा।”
24 मगर जब यीशु आया था, तब थोमा जो उन बारहों में से एक था, और जुड़वाँ* कहलाता था, उस वक्त चेलों के बीच मौजूद नहीं था। 25 इसलिए दूसरे चेले उससे कहते थे: “हमने प्रभु को देखा है!” मगर थोमा ने उनसे कहा: “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के निशान न देख लूँ और उनमें अपनी उँगली न डालूँ और उसकी पसली में अपना हाथ डालकर देख न लूँ, तब तक हरगिज़ यकीन न करूँगा।”
26 ऐसा हुआ कि आठ दिन बाद चेले फिर से घर के अंदर थे और थोमा भी उनके साथ था। तब घर के दरवाज़े बंद होने के बावजूद यीशु उनके बीच आ खड़ा हुआ और उनसे कहा: “तुम्हें शांति मिले।” 27 इसके बाद उसने थोमा से कहा: “अपनी उँगली लगाकर मेरे हाथ देख, और अपना हाथ मेरी पसली में लगाकर देख, और अविश्वासी बनना छोड़ बल्कि विश्वासी बन।” 28 जवाब में थोमा ने उससे कहा: “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” 29 यीशु ने उससे कहा: “तू ने मुझे देखा है क्या इसीलिए यकीन करता है? सुखी हैं वे जिन्होंने देखा नहीं फिर भी यकीन करते हैं।”
30 सच तो यह है कि यीशु ने चेलों के सामने और भी बहुत-से चमत्कार किए जो इस खर्रे में नहीं लिखे गए। 31 मगर जो लिखे गए हैं वे इसलिए लिखे गए हैं ताकि तुम यकीन करो कि यीशु ही परमेश्वर का बेटा मसीह है और यकीन करने की वजह से तुम उसके नाम से ज़िंदगी पाओ।
21 इन बातों के बाद, एक बार फिर यीशु ने खुद को तिबिरियास झील के किनारे चेलों पर ज़ाहिर किया। उसने खुद को इस तरह ज़ाहिर किया। 2 ऐसा हुआ कि शमौन पतरस और थोमा जो जुड़वाँ कहलाता था और गलील के काना का नतनएल और जब्दी के बेटे और यीशु के दो और चेले एक-साथ थे। 3 तब शमौन पतरस ने उनसे कहा: “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ,” तो उन्होंने कहा: “हम भी तेरे साथ आ रहे हैं।” वे बाहर निकले और नाव पर सवार हो गए, मगर उस रात उनके हाथ कुछ न लगा।
4 जब सुबह होने लगी तब यीशु किनारे पर आकर खड़ा हो गया। मगर हाँ, चेलों ने उसे न पहचाना कि वह यीशु है। 5 तब यीशु ने उनसे कहा: “बच्चो, क्या तुम्हारे पास खाने के लिए कुछ है?” उन्होंने जवाब दिया: “नहीं!” 6 उसने उनसे कहा: “नाव की दायीं तरफ जाल डालो और तुम्हें कुछ मिलेगा।” तब उन्होंने जाल डाला, मगर उसे फिर खींच न पाए क्योंकि उसमें ढेरों मछलियाँ फँसी थीं। 7 इसलिए उस चेले ने, जिसे यीशु प्यार करता था, पतरस से कहा: “यह तो प्रभु है!” जब शमौन पतरस ने सुना कि यह प्रभु है तो उसने अपना कुरता पहन लिया क्योंकि वह अधनंगा था, और झील में कूद पड़ा। 8 मगर दूसरे चेले छोटी नाव में मछलियों से भरा जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से ज़्यादा दूर नहीं बल्कि करीब नब्बे मीटर की दूरी पर थे।
9 जब वे किनारे पर आए, तो उन्होंने देखा कि लकड़ी के कोयले की आग जली हुई है और उस पर मछलियाँ रखी हुई हैं और रोटी भी है। 10 यीशु ने उनसे कहा: “तुमने अभी-अभी जो मछलियाँ पकड़ी हैं उनमें से कुछ ले आओ।” 11 इसलिए शमौन पतरस नाव पर चढ़ा और मछलियों से भरा जाल खींच लाया, जिसमें एक सौ तिरपन बड़ी मछलियाँ फँसी थीं। मगर इतनी ज़्यादा मछलियाँ होने के बावजूद वह जाल फटा नहीं था। 12 यीशु ने उनसे कहा: “आओ, नाश्ता कर लो।” लेकिन चेलों में से किसी की भी यह पूछने की हिम्मत न हुई कि “तू कौन है?” क्योंकि वे जानते थे कि वह प्रभु ही है। 13 यीशु आया और रोटी लेकर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी दी। 14 यह तीसरी बार था जब यीशु मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दिखायी दिया।
15 जब वे नाश्ता कर चुके, तो यीशु ने शमौन पतरस से कहा: “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?” पतरस ने उससे कहा: “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मुझे तुझसे गहरा लगाव है।” यीशु ने उससे कहा: “मेरे मेम्नों को खिला।” 16 यीशु ने फिर दूसरी बार उससे कहा: “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझसे प्यार करता है?” पतरस ने उससे कहा: “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मुझे तुझसे गहरा लगाव है।” उसने उससे कहा: “चरवाहों की तरह मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।” 17 यीशु ने तीसरी बार उससे कहा: “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तुझे मुझसे गहरा लगाव है?” इस पर पतरस दुःखी हुआ कि उसने तीसरी बार उससे पूछा कि ‘क्या तुझे मुझसे गहरा लगाव है?’ इसलिए पतरस ने उससे कहा: “प्रभु, तू सबकुछ जानता है। तू यह भी जानता है कि मैं तुझसे गहरा लगाव रखता हूँ।” यीशु ने कहा: “मेरी छोटी भेड़ों को खिला। 18 मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, जब तू जवान था तो खुद अपनी कमर कसकर जहाँ चाहता वहाँ जाता था। मगर जब तू बूढ़ा होगा, तो तू अपने हाथ आगे बढ़ाएगा और कोई और आदमी तेरी कमर बाँधेगा और जहाँ तू नहीं चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।” 19 उसने ऐसा यह बताने के लिए कहा कि वह किस तरह की मौत मरकर परमेश्वर की महिमा करेगा। यह कहने के बाद यीशु ने उससे कहा: “मेरे पीछे चलना जारी रख।”
20 जब पतरस मुड़ा तो उस चेले को पीछे आते देखा जिसे यीशु प्यार करता था। यह वही चेला था जिसने शाम के खाने के वक्त यीशु के सीने के पास झुककर उससे पूछा था: “प्रभु, वह कौन है जो तुझे धोखे से पकड़वाएगा?” 21 जब पतरस की नज़र उस चेले पर पड़ी, तो उसने यीशु से पूछा: “प्रभु, इस आदमी का क्या होगा?” 22 यीशु ने उससे कहा: “अगर मेरी मरज़ी है कि यह मेरे आने तक रहे, तो तुझे इससे क्या? तू मेरे पीछे चलना जारी रख।” 23 इस वजह से, भाइयों में यह बात फैल गयी कि वह चेला नहीं मरेगा। मगर, यीशु ने उससे यह नहीं कहा कि वह न मरेगा बल्कि सिर्फ इतना कहा कि “अगर मेरी मरज़ी है कि यह मेरे आने तक रहे, तो तुझे इससे क्या?”
24 यह वही चेला है जो इन बातों की गवाही देता है और जिसने ये बातें लिखी हैं और हम जानते हैं कि वह जो गवाही देता है वह सच्ची है।
25 दरअसल, ऐसे और भी बहुत-से काम हैं जो यीशु ने किए थे। अगर कभी इनके बारे में पूरा ब्यौरा लिखा जाए, तो मैं समझता हूँ कि जो खर्रे लिखे जाते वे पूरी दुनिया में भी न समाते।
यूह 1:1 अतिरिक्त लेख 3 देखें।
यूह 1:18 शाब्दिक, “गोद में या सीने के पास सबसे करीब,” जिसका मतलब है सबसे अज़ीज़।
यूह 1:23 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्त लेख 2 देखें।
यूह 1:25 बपतिस्मे का मतलब किसी को पानी में पूरी तरह डुबकी देना है। यह एक धार्मिक रस्म है।
यूह 1:28 यह वह बैतनिय्याह नहीं जो यरूशलेम के पास था।
यूह 1:39 यानी, सूरज निकलने के वक्त से गिनें, तो “दसवाँ घंटा,” या शाम करीब 4 बजे।
यूह 2:6 शाब्दिक, “2 से 3 मेत्रेतेस।” एक मेत्रेतेस करीब 22 लीटर के बराबर होता था।
यूह 3:8 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
यूह 4:6 यानी, सूरज निकलने के वक्त से गिनें, तो “छठा घंटा,” या दोपहर करीब 12 बजे।
यूह 4:24 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
यूह 4:52 यानी, सूरज निकलने के वक्त से गिनें, तो “सातवाँ घंटा,” या दोपहर करीब एक बजे।
यूह 5:4 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।
यूह 5:9 यहूदियों के लिए हफ्ते का सातवाँ दिन सब्त हुआ करता था। यह दिन, आराम के लिए और परमेश्वर की बातों पर ध्यान देने के लिए अलग रखा गया था।
यूह 6:1 मत्ती 4:18 फुटनोट देखें।
यूह 6:19 शाब्दिक, “25 से 30 स्तादिया।” एक स्तादियोन करीब 185 मीटर के बराबर था।
यूह 6:70 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
यूह 9:2 शाब्दिक, “रब्बी।”
यूह 11:16 या, “दिदुमुस।”
यूह 11:25 या, “पुनरुत्थान।”
यूह 11:33 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
यूह 11:47 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
यूह 11:48 या, “मंदिर।”
यूह 12:3 शाब्दिक, “लित्रा।”
यूह 12:5 एक दीनार, एक दिन की मज़दूरी होती थी। तीन सौ दीनार करीब एक साल की मज़दूरी थी।
यूह 12:28 यहाँ इस्तेमाल हुए यूनानी शब्द का मतलब आकाश या स्वर्ग, दोनों हो सकता है।
यूह 12:38 शाब्दिक, “भुजा।”
यूह 13:2 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
यूह 13:21 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
यूह 14:26 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
यूह 15:1 शाब्दिक, “अंगूर की बेल।”
यूह 18:11 मत्ती 26:39 फुटनोट देखें।
यूह 18:12 यानी, वह सेनापति जिसकी कमान के नीचे एक हज़ार सैनिक होते थे।
यूह 18:29 मत्ती 27:2 फुटनोट देखें।
यूह 19:12 यूनानी में “कैसर।”
यूह 19:14 मत्ती 27:62 फुटनोट देखें।
यूह 19:14 मत्ती 20:5 पहला फुटनोट देखें।
यूह 19:17 अतिरिक्त लेख 6 देखें।
यूह 20:24 या, “दिदुमुस।”