प्रेषितों के काम
1 प्यारे थियुफिलुस, जब से यीशु ने सेवा करनी शुरू की तब से उसने जो-जो किया और सिखाया, वह सब मैंने अपनी पहली किताब में लिखा है। 2 उसमें उस वक्त तक का ब्यौरा है जब यीशु ने अपने चुने हुए प्रेषितों* को पवित्र शक्ति के ज़रिए हिदायतें दीं और इसके बाद उसे स्वर्ग उठा लिया गया। 3 अपनी मौत तक दुःख उठाने के बाद, उसने कितने ही ठोस सबूत देकर इन्हीं चेलों पर यह ज़ाहिर किया कि वह जी उठा है। वह चालीस दिन तक उन्हें दिखायी देता रहा और उन्हें परमेश्वर के राज के बारे में बताता रहा। 4 और चेलों से मुलाकात के दौरान, यीशु ने उन्हें यह आज्ञा दी: “यरूशलेम छोड़कर मत जाना। पिता ने जिस बात का वादा किया है और जिसके बारे में तुमने मुझसे सुना है, उस वादे के पूरा होने का वहीं इंतज़ार करते रहना, 5 क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा* दिया था, मगर अब से कुछ दिन बाद तुम पवित्र शक्ति से बपतिस्मा पाओगे।”
6 जब चेले इकट्ठा हुए, तो उससे पूछने लगे: “प्रभु, क्या तू इसी वक्त इस्राएल के राज को फिर से बहाल करने जा रहा है?” 7 उसने उनसे कहा: “उन समयों या ठहराए हुए दिनों की जानकारी पाने की तुम्हें ज़रूरत नहीं। ये समय या दिन कौन-से होंगे, इन्हें तय करना पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है; 8 लेकिन जब तुम पर पवित्र शक्ति* आएगी, तो तुम ताकत पाओगे, और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया देश में यहाँ तक कि दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।” 9 और जब वह ये बातें कह चुका, तो उनके देखते-देखते वह ऊपर उठा लिया गया और एक बादल ने उसे उनकी नज़रों से छिपा लिया। 10 जब वह जा रहा था, तब वे आकाश की तरफ ताक रहे थे। तभी अचानक सफेद कपड़े पहने दो आदमी उनके पास आ खड़े हुए, 11 और उन्होंने कहा: “हे गलीली पुरुषो, तुम यहाँ खड़े, आकाश की तरफ क्यों ताक रहे हो? यह यीशु, जो तुम्हारे पास से आकाश में उठा लिया गया है, वह इसी ढंग से आएगा जैसे तुमने उसे आकाश में जाते देखा है।”
12 फिर वे उस पहाड़ से, जिसे जैतून पहाड़ कहा जाता है, यरूशलेम लौट आए। यह पहाड़ यरूशलेम के पास है और सब्त के दिन की यात्रा* की दूरी पर है। 13 यरूशलेम शहर पहुँचकर चेले ऊपर के उस कमरे में गए, जहाँ वे ठहरे हुए थे। ये चेले थे पतरस, यूहन्ना और याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस और थोमा, बरतुलमै और मत्ती, हलफई का बेटा याकूब और जोशीला शमौन और याकूब का बेटा यहूदा। 14 ये सब एक मन से प्रार्थना में लगे हुए थे। और उनके साथ कुछ स्त्रियाँ, यीशु के भाई और उसकी माँ मरियम भी थी।
15 इन्हीं दिनों की बात है, जब करीब एक सौ बीस चेले जमा थे, तब पतरस खड़ा हुआ और वहाँ मौजूद सभी भाई-बहनों से कहने लगा: 16 “प्यारे भाइयो, परमेश्वर की पवित्र शक्ति ने दाविद के मुँह से यहूदा के बारे में पहले से जो भविष्यवाणी की थी, उस वचन का पूरा होना ज़रूरी था। यहूदा, यीशु के गिरफ्तार करनेवालों को उसके ठिकाने तक ले गया। 17 उसकी गिनती हमारे साथ होती थी और उसने हमारी तरह सेवा में हिस्सा भी लिया था। 18 (इसी आदमी ने अपनी बेईमानी की कमाई से एक ज़मीन खरीदी। वह सिर के बल गिरा और बड़ी आवाज़ के साथ बीच में से फट गया और उसकी सारी अँतड़ियाँ बाहर निकल आयीं।* 19 यरूशलेम के सभी रहनेवालों को भी ये सारी बातें पता चलीं, इसलिए उनकी भाषा में वह ज़मीन हकलदमा यानी खून की ज़मीन कहलायी।) 20 क्योंकि भजनों की किताब में लिखा है, ‘उसका घर उजड़ जाए और उसमें रहनेवाला कोई न हो’ और ‘उसका निगरानी का पद दूसरा ले ले।’ 21 इसलिए यह ज़रूरी है कि यहूदा की जगह कोई और ले। प्रभु यीशु ने जितने समय सेवा की और हमारे बीच रहा,* 22 यानी यूहन्ना से बपतिस्मा पाने के वक्त से लेकर उस दिन तक जिस दिन वह हमारे बीच से उठा लिया गया, उतने समय के दौरान हमारे साथ इकट्ठा होनेवाले आदमियों में से कोई एक यीशु के मरे हुओं में से जी उठने* का गवाह बन जाए।”
23 इसलिए उन्होंने दो चेलों का नाम आगे रखा। पहला था यूसुफ जो बर-सबा और युसतुस भी कहलाता है और दूसरा मत्तियाह। 24 इनके लिए चेलों ने परमेश्वर से यह प्रार्थना की: “हे यहोवा,* तू जो सबके दिलों को जानता है, हम पर ज़ाहिर कर कि तू ने इन दो आदमियों में से किसे चुना है, 25 ताकि वह इस सेवा और प्रेषित-पद को हासिल करे जिसे ठुकराकर यहूदा ने अपनी राह इख्तियार की।” 26 तब उन्होंने उनके नाम पर चिट्ठियाँ डालीं और चिट्ठी मत्तियाह के नाम निकली; और वह उन ग्यारह प्रेषितों के साथ गिना गया।
2 पिन्तेकुस्त के त्योहार के दिन, जब वे सब एक ही घर में इकट्ठा थे, 2 तभी अचानक आकाश से साँय-साँय करती तेज़ आँधी जैसी आवाज़ हुई और इससे सारा घर जिसमें वे बैठे थे, गूँज उठा। 3 और उन्हें आग की लपटें दिखायी दीं जो जीभ जैसी थीं और ये अलग-अलग बँट गयीं और उनमें से हरेक के ऊपर एक-एक जा ठहरी। 4 तब वे सभी पवित्र शक्ति से भर गए और जैसा पवित्र शक्ति उन्हें बोलने के काबिल कर रही थी, वे अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे।
5 उस वक्त, दुनिया के हर देश से आए यहूदी भक्त यरूशलेम में थे। 6 इसलिए जब यह आवाज़ सुनायी दी, तो भीड़-की-भीड़ इकट्ठी हो गयी और वे सब हैरान थे, क्योंकि हर किसी को चेलों के मुँह से अपनी ही भाषा सुनायी दे रही थी। 7 लोग सचमुच बड़े ताज्जुब में थे और वे कहने लगे: “कमाल हो गया! ये जो बोल रहे हैं, क्या ये सब गलीली नहीं? 8 फिर कैसे हम में से हरेक को अपनी ही मातृ-भाषा सुनायी दे रही है, जिसे हम जन्म से सुनते आए हैं? 9 हम तो पारथी और मादी और एलामी हैं, और मेसोपोटामिया, यहूदिया और कप्पदूकिया, पुन्तुस और एशिया* ज़िले के रहनेवाले हैं, 10 और फ्रूगिया, पमफूलिया और मिस्र से और लिबिया के हिस्सों से हैं जो कुरेने की तरफ है, और रोम से आए मुसाफिर हैं। हम सब यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवालों में से हैं। 11 साथ ही हम में क्रेती और अरबी लोग भी हैं। फिर भी हम सब इन लोगों को हमारी अपनी भाषा में परमेश्वर के शानदार कामों का बखान करते हुए सुन रहे हैं।” 12 वाकई, सब लोग चकित थे और बड़ी उलझन में एक-दूसरे से कहने लगे: “यह जो हो रहा है, इसका क्या मतलब है?” 13 मगर कुछ और लोग चेलों की खिल्ली उड़ाने लगे और कहने लगे: “ये तो नयी दाख-मदिरा के नशे में हैं।”
14 तब पतरस उन ग्यारहों के साथ खड़ा हुआ और वहाँ मौजूद लोगों से बुलंद आवाज़ में यह कहने लगा: “हे यहूदिया के लोगो और यरूशलेम के सब रहनेवालो, तुम कान लगाकर मेरी बात सुनो और समझ लो। 15 जैसा तुम सोच रहे हो, ये लोग नशे में नहीं हैं, क्योंकि अभी सुबह का तीसरा घंटा* ही हुआ है। 16 इसके बजाय, यह वही हो रहा है जिसकी भविष्यवाणी योएल भविष्यवक्ता ने की थी: 17 ‘परमेश्वर कहता है, “आखिरी दिनों में मैं हर तरह के इंसान पर अपनी पवित्र शक्ति उंडेलूँगा, और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे और तुम्हारे बुज़ुर्ग खास तरह के सपने देखेंगे; 18 यहाँ तक कि उन दिनों मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी अपनी पवित्र शक्ति उंडेलूँगा और वे भविष्यवाणी करेंगे। 19 और मैं ऊपर आकाश में आश्चर्य के काम और नीचे धरती पर चमत्कार दिखाऊँगा: खून और आग और धूँए का बादल। 20 यहोवा के महान और महिमा से भरे दिन के आने से पहले सूरज अंधियारा हो जाएगा और चाँद खून जैसा लाल हो जाएगा। 21 और जो कोई यहोवा का नाम पुकारेगा, वह उद्धार पाएगा।”’
22 हे इस्राएलियो, मेरी यह बात सुनो: यीशु नासरी वह इंसान था जो परमेश्वर का भेजा हुआ था। परमेश्वर ने यह ज़ाहिर करने के लिए उसके ज़रिए तुम्हारे बीच बड़े-बड़े शक्तिशाली और आश्चर्य के काम और चमत्कार किए, जैसा कि तुम खुद भी जानते हो। 23 इस आदमी को, परमेश्वर की तय मरज़ी और भविष्य के ज्ञान के मुताबिक तुम्हारे हवाले किया गया। उसे तुमने दुष्टों के हाथों सौंपा और सूली पर चढ़ाकर मार डाला। 24 मगर परमेश्वर ने उसे ज़िंदा कर मौत के बंधनों से आज़ाद किया, क्योंकि यह नामुमकिन था कि वह मौत के बंधनों में इसी तरह जकड़ा रहे। 25 इसलिए कि दाविद ने उसके बारे में यूँ भविष्यवाणी की, ‘यहोवा हर पल मेरी आँखों के सामने था, क्योंकि वह मेरी दायीं तरफ है, मैं कभी न डगमगाऊँगा। 26 इस वजह से मेरा दिल खुशी से भर गया और मेरी जीभ बड़े हर्ष से बोल उठी। यहाँ तक कि मैं आशा में रहूँगा।* 27 क्योंकि तू मुझे कब्र* में न छोड़ेगा, न ही तू अपने वफादार जन को सड़ने देगा। 28 तू ने जीवन का मार्ग मुझे बताया है, तेरी मेहरबानी की नज़र मुझे खुशी से भर देगी।’
29 इसलिए भाइयो, मैं कुलपिता दाविद के बारे में बेझिझक तुमसे यह कह सकता हूँ कि वह मरा भी और उसे दफनाया भी गया और उसकी कब्र आज के दिन तक हमारे बीच मौजूद है। 30 लेकिन वह एक भविष्यवक्ता था और जानता था कि परमेश्वर ने शपथ खाकर उससे वादा किया है कि वह उसकी संतानों* में से एक को उसकी गद्दी पर बिठाएगा, 31 इसलिए उसने होनेवाली बातों को पहले से देखकर मसीह* के जी उठने के बारे में बताया कि उसे न तो कब्र में छोड़ा जाएगा, न ही उसके शरीर को सड़ने दिया जाएगा। 32 इसी यीशु को परमेश्वर ने जी उठाया है जिस सच्चाई के हम सब गवाह हैं। 33 उसे परमेश्वर की दायीं तरफ सबसे ऊँचा पद दिया गया है और वादे के मुताबिक उसने पिता से पवित्र शक्ति* पायी है। यही शक्ति उसने हम पर उंडेली है और इसी को तुम काम करता हुआ देख और सुन रहे हो। 34 दरअसल दाविद स्वर्ग नहीं गया, मगर वह खुद कहता है, ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा: “मेरी दायीं तरफ बैठ, 35 जब तक कि मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पाँवों के नीचे न कर दूँ।”’* 36 इसलिए इस्राएल का सारा घराना हर हाल में यह जान ले कि परमेश्वर ने इसी यीशु को प्रभु और मसीह दोनों ठहराया है, जिसे तुमने सूली पर चढ़ाकर मार डाला।”
37 जब उन्होंने यह सुना तो उनका दिल उन्हें बेहद कचोटने लगा, और उन्होंने पतरस और बाकी प्रेषितों से कहा: “भाइयो, अब हम क्या करें?” 38 पतरस ने उनसे कहा: “पश्चाताप करो, और तुममें से हरेक अपने पापों की माफी के लिए यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले और तब तुम पवित्र शक्ति का मुफ्त वरदान पाओगे। 39 क्योंकि यह वादा तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिए और दूर-दूर के उन तमाम लोगों के लिए है जिनको हमारा परमेश्वर यहोवा अपने पास बुलाएगा।” 40 और उसने कई और बातें कहते हुए अच्छी तरह गवाही दी और उन्हें उकसाता रहा: “इस टेढ़ी पीढ़ी से बचकर उद्धार पाओ।” 41 इसलिए जितनों ने पूरे दिल से उसके वचन को माना, उन सभी ने बपतिस्मा लिया और उस दिन करीब तीन हज़ार लोग, चेलों में शामिल हो गए। 42 और वे सब एक मन से प्रेषितों से शिक्षा पाने में लगे रहे और उनका जो कुछ था वे उसे आपस में बाँटा करते, साथ-साथ खाना खाते और प्रार्थना में लगे रहते थे।
43 हर इंसान पर भय छाने लगा और प्रेषितों के ज़रिए बहुत-से आश्चर्य के काम और चमत्कार होने लगे। 44 जितने विश्वासी बने, उनके पास जो कुछ था उसमें सभी का साझा हुआ करता था। 45 वे अपना सामान और अपनी जायदाद बेच देते थे और मिलनेवाली रकम को सबमें, यानी जैसी जिसकी ज़रूरत होती थी, बाँट देते थे। 46 और वे हर दिन एक मन से मंदिर में हाज़िर रहते और एक-दूसरे के घरों में जाकर खाना खाते और बड़े आनंद और मन की सीधाई से साथ-साथ भोजन करते थे। 47 और वे परमेश्वर का गुणगान करते थे और सब लोगों में उनका अच्छा नाम था। यहोवा हर दिन और भी ज़्यादा लोगों को उनमें शामिल करता रहा, जिन्हें वह उद्धार दिला रहा था।
3 पतरस और यूहन्ना, नौवें घंटे* के करीब यानी प्रार्थना के वक्त मंदिर जा रहे थे, 2 और तभी लोग, जन्म के एक लंगड़े को ला रहे थे। वे उसे हर रोज़ मंदिर के उस फाटक के पास बिठा दिया करते थे जिसका नाम ‘सुंदर फाटक’ था, ताकि वह मंदिर में जानेवालों से भीख* माँग सके। 3 जब उसने देखा कि पतरस और यूहन्ना मंदिर के अंदर जा रहे हैं, तो वह उनसे भीख माँगने लगा। 4 तब पतरस ने यूहन्ना के साथ उसकी तरफ गौर से देखा और उससे कहा: “हमारी तरफ देख।” 5 वह उनसे कुछ पाने की उम्मीद में उन्हें ताकने लगा। 6 मगर पतरस ने कहा: “सोना-चाँदी तो मेरे पास नहीं है, मगर जो मेरे पास है वह तुझे दे रहा हूँ: यीशु मसीह नासरी के नाम से मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो और चल-फिर।” 7 पतरस ने उसका दायाँ हाथ पकड़कर उसे उठाया। उसी घड़ी उस आदमी के पैरों के तलवे और टखनों की हड्डियाँ मज़बूत हो गयीं 8 और वह उछलकर खड़ा हो गया और चलने-फिरने लगा, और वह चलते, उछलते-कूदते और परमेश्वर की बड़ाई करते हुए उनके साथ मंदिर में गया। 9 और जब वह चल-फिर रहा था और परमेश्वर की बड़ाई कर रहा था तब सब लोगों की नज़र उस पर पड़ी। 10 इतना ही नहीं, वे पहचान गए कि यह वही आदमी है जो मंदिर के ‘सुंदर फाटक’ के पास बैठा भीख माँगा करता था, और जो कुछ उसके साथ हुआ था उसे देखकर उन्हें बड़ी हैरानी हुई और वे अपार खुशी से भर गए।
11 जब वह आदमी पतरस और यूहन्ना को थामे हुए था तब वहाँ मौजूद सारे लोग उनके पास उस जगह दौड़े आए जिसे सुलैमान का बरामदा कहा जाता है और उनके होश उड़े हुए थे। 12 जब पतरस ने यह देखा, तो उसने लोगों से कहा: “हे इस्राएल के लोगो, तुम इस पर क्यों इतना ताज्जुब कर रहे हो? तुम हमें ऐसे क्यों देख रहे हो मानो हमने अपनी ही शक्ति या ईश्वरीय भक्ति से इसे चलने-फिरने के काबिल बनाया हो? 13 अब्राहम, इसहाक, याकूब और हमारे बापदादों के परमेश्वर ने अपने सेवक, यीशु की महिमा की है, जिसे तुमने, हाँ तुम्हीं ने पकड़वाया। तुमने पीलातुस* के सामने उसे ठुकरा दिया, जबकि पीलातुस ने उसे छोड़ने का फैसला किया था। 14 हाँ, तुमने उस पवित्र और नेक इंसान को ठुकरा दिया और उसके बदले अपने लिए एक हत्यारे को माँग लिया। 15 जबकि तुमने जीवन दिलानेवाले खास नुमाइंदे को मार डाला। मगर परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जी उठाया है और इस सच्चाई के हम गवाह हैं। 16 इसलिए उसके नाम से, हाँ उसके नाम पर हमारे विश्वास से, इस आदमी को बल मिला है जिसे तुम देख रहे हो और जानते भी हो। यीशु पर हमारे विश्वास ने ही तुम सबके सामने इस आदमी को पूरी तरह तंदुरुस्त किया है। 17 मैं जानता हूँ भाइयो कि तुमने जो किया वह सब अनजाने में किया, और यही तुम्हारे धर्म-अधिकारियों ने भी किया। 18 मगर इस तरह परमेश्वर ने वे बातें पूरी कीं जो उसने सारे भविष्यवक्ताओं के मुँह से पहले से बता दी थीं कि उसका मसीह दुःख उठाएगा।
19 इसलिए पश्चाताप करो और पलटकर लौट आओ ताकि तुम्हारे पाप मिटाए जाएँ और यहोवा के पास से तुम्हारे लिए ताज़गी के दिन आएँ, 20 और वह तुम्हारे लिए ठहराए गए मसीह यानी यीशु को भेजे। 21 उसका तब तक स्वर्ग में रहना ज़रूरी है जब तक कि उन सब बातों को बहाल करने का वक्त न आ जाए, जिनके बारे में परमेश्वर ने बीते ज़माने के अपने पवित्र भविष्यवक्ताओं के मुँह से कहा था। 22 दरअसल, मूसा ने कहा था, ‘यहोवा परमेश्वर तुम्हारे भाइयों के बीच में से तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यवक्ता खड़ा करेगा। जो कुछ वह तुमसे कहे, उन सब बातों को तुम सुनना। 23 और जो कोई उस भविष्यवक्ता की बात पर ध्यान नहीं देगा, परमेश्वर उसे लोगों के बीच से मिटा देगा।’ 24 और सभी भविष्यवक्ताओं ने, हाँ, शमूएल से लेकर जितने भी भविष्यवक्ताओं ने भविष्यवाणी की, उन सभी ने इन दिनों के बारे में साफ-साफ ऐलान किया था। 25 तुम भविष्यवक्ताओं के वंशज और उस करार के वारिस हो जो परमेश्वर ने तुम्हारे बापदादों के साथ किया था, जिसने अब्राहम से यह कहा था, ‘तेरे वंश से पृथ्वी के सभी परिवार आशीष पाएँगे।’ 26 परमेश्वर ने अपने सेवक को खड़ा कर सबसे पहले तुम्हारे पास भेजा ताकि तुम में से हरेक को उसके दुष्ट कामों से फेरकर तुम्हें आशीष दे।”
4 जब ये दोनों, लोगों को ये बातें बता रहे थे, तभी प्रधान याजक और मंदिर के पहरेदारों का सरदार और सदूकी वहाँ आ धमके। 2 वे इस बात से चिढ़ गए थे कि पतरस और यूहन्ना लोगों को सिखा रहे हैं और यीशु की मिसाल दे-देकर मरे हुओं के जी उठने का सरेआम ऐलान कर रहे हैं। 3 और उन्होंने पतरस और यूहन्ना को पकड़ लिया और शाम हो जाने की वजह से उन्हें अगले दिन तक हिरासत में रखा। 4 मगर जिन लोगों ने वह भाषण सुना था, उनमें से बहुतों ने विश्वास किया और चेलों में आदमियों की गिनती करीब पाँच हज़ार तक पहुँच गयी।
5 अगले दिन यरूशलेम में यहूदियों के धर्म-अधिकारी, बुज़ुर्ग और शास्त्री* जमा हुए। 6 (उनमें प्रधान याजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकंदर भी थे, यहाँ तक कि प्रधान याजक के सभी भाई-बंधु वहाँ मौजूद थे) 7 उन्होंने पतरस और यूहन्ना को अपने बीच खड़ा कर उनसे पूछताछ करनी शुरू की: “तुमने किस अधिकार से या किसके नाम से यह काम किया है?” 8 तब पतरस ने परमेश्वर की पवित्र शक्ति से भरकर उनसे कहा:
“धर्म-अधिकारियो और बुज़ुर्गो सुनो, 9 अगर आज के दिन इस अपाहिज आदमी का भला करने की वजह से हमसे पूछताछ की जा रही है कि हमने किसका नाम लेकर इसे ठीक किया है,* 10 तो तुम सब और इस्राएल के सभी लोग यह जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से, जिसे तुमने सूली पर ठोंक दिया था, मगर जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से ज़िंदा किया, उसी के नाम से यह आदमी यहाँ तुम्हारे सामने भला-चंगा खड़ा है। 11 यीशु ही ‘वह पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने बेकार समझा और वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है।’ 12 यह भी जान लो कि किसी और के ज़रिए उद्धार नहीं है, क्योंकि परमेश्वर ने हमें उद्धार दिलाने के लिए धरती पर इंसानों में कोई और नाम नहीं चुना।”
13 जब उन्होंने देखा कि पतरस और यूहन्ना कैसे बेधड़क होकर बोल रहे हैं, और यह जाना कि ये कम पढ़े-लिखे, मामूली आदमी हैं, तो वे ताज्जुब करने लगे। फिर वे जान गए कि ये लोग यीशु के साथ रहा करते थे। 14 यह देखते हुए कि वह आदमी जिसे पतरस और यूहन्ना ने ठीक किया था, उनके साथ ही खड़ा है, उनके पास उनके खिलाफ कहने के लिए कुछ न रहा। 15 इसलिए उन्होंने पतरस और यूहन्ना को महासभा* के भवन से बाहर जाने का हुक्म दिया और फिर वे आपस में एक-दूसरे से मशविरा करने लगे, 16 और कहने लगे: “हम इन आदमियों के साथ क्या करें? क्योंकि वाकई इनके हाथों एक बड़ा चमत्कार हुआ है, जिसे यरूशलेम के सब रहनेवालों ने देखा है; और हम इसे झुठला नहीं सकते। 17 फिर भी यह बात और लोगों में दूर-दूर तक न फैले, इसलिए आओ हम इन्हें धमकाएँ कि वे इस नाम को लेकर फिर कभी किसी से बात न करें।”
18 तब उन्होंने उनको बुलाकर सख्ती से कहा कि वे यीशु के नाम को लेकर कहीं कोई बात न करें और न ही कोई शिक्षा दें। 19 मगर पतरस और यूहन्ना ने उन्हें जवाब दिया: “क्या परमेश्वर की नज़र में यह सही होगा कि हम उसकी बात मानने के बजाय तुम्हारी सुनें, तुम खुद फैसला करो। 20 मगर जहाँ तक हमारी बात है, हम उन बातों के बारे में बोलना नहीं छोड़ सकते जो हमने देखी और सुनी हैं।” 21 उन्होंने पतरस और यूहन्ना को एक बार फिर धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि उन्हें सज़ा देने की कोई वजह न मिली। साथ ही अधिकारियों को लोगों का भी डर था, क्योंकि जो कुछ हुआ था, उसे लेकर वे सभी परमेश्वर की महिमा कर रहे थे; 22 और जो आदमी इस चमत्कार से चंगा हुआ था, उसकी उम्र चालीस साल से ज़्यादा थी।
23 वहाँ से छूटकर पतरस और यूहन्ना अपने लोगों के पास गए और उन सारी बातों की उन्हें खबर दी जो प्रधान याजकों और बुज़ुर्गों ने उनसे कही थीं। 24 यह सुनने के बाद उन सभी ने एक मन होकर ऊँची आवाज़ में परमेश्वर से यह बिनती की:
“हे सारे जहान के महाराजा और मालिक, तू ही ने आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उनमें की सब चीज़ों को बनाया है, 25 और तू ने पवित्र शक्ति के ज़रिए हमारे पुरखे, अपने सेवक दाविद के मुँह से कहलवाया, ‘राष्ट्रों में खलबली क्यों मची हुई है और लोग क्यों खोखली बातों के बारे में बड़बड़ा रहे हैं? 26 यहोवा और उसके अभिषिक्त जन* के खिलाफ इस पृथ्वी के राजा खड़े हुए और अधिकारियों ने मिलकर उनके खिलाफ मोर्चा बाँधा है।’ 27 और सचमुच ऐसा ही हुआ। राजा हेरोदेस* और पुन्तियुस पीलातुस दोनों, गैर-यहूदियों और इस्राएल की जनता के साथ मिलकर इस शहर में तेरे पवित्र सेवक यीशु के खिलाफ इकट्ठा हुए, जिसका तू ने अभिषेक किया, 28 ताकि उसके साथ वह सब करें जो तेरी शक्ति और तेरी इच्छा ने पहले से ठहराया था। 29 और अब हे यहोवा, उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने दासों को यह वरदान दे कि वे पूरी तरह निडर होकर तेरा वचन सुनाते रहें, 30 जबकि तू अपना हाथ बढ़ाकर चंगाई करता रहे और तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम के ज़रिए चमत्कार और आश्चर्य के काम होते रहें।”
31 और जब वे गिड़गिड़ाकर मिन्नत कर चुके, तो वह जगह जहाँ वे इकट्ठा थे, काँप उठी; और वे सब-के-सब पवित्र शक्ति से भर गए और निडर होकर परमेश्वर का वचन सुनाने लगे।
32 और विश्वास करनेवाले तमाम लोग एक दिल और एक जान थे, और उनमें से एक भी ऐसा न था जो अपनी संपत्ति को अपनी कहता हो; बल्कि सब चीज़ों में सबका साझा था। 33 साथ ही प्रेषित, प्रभु यीशु के मरे हुओं में से जी उठने के बारे में बड़े ज़बरदस्त ढंग से गवाही देते रहे; और उन सब पर परमेश्वर की अपार महा-कृपा बनी रही। 34 सच तो यह है कि उनमें ऐसा कोई भी न था जो तंगी में हो; क्योंकि जितनों के पास ज़मीन या घर थे, वे उन्हें बेच देते और बिक्री से मिलनेवाली रकम लाकर 35 प्रेषितों के पैरों पर रख देते थे। और फिर जिसकी जैसी ज़रूरत होती, उसके मुताबिक उनके बीच बाँट दिया जाता था। 36 यूसुफ, जिसे प्रेषितों ने बरनबास नाम दिया था, जिसका मतलब “दिलासे का बेटा” है, कुप्रुस का रहनेवाला लेवी था। 37 उसके पास ज़मीन का एक टुकड़ा था, जिसे उसने बेच दिया और रकम लाकर प्रेषितों के पैरों पर रख दी।
5 मगर, हनन्याह नाम के एक आदमी और उसकी पत्नी सफीरा ने अपनी कुछ संपत्ति बेची 2 और हनन्याह ने चोरी-छिपे उसकी कीमत का कुछ हिस्सा अपने पास रख लिया और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी। वह उस रकम का सिर्फ कुछ हिस्सा ले आया और प्रेषितों के पैरों पर लाकर रख दिया। 3 तब पतरस ने कहा: “हनन्याह, क्यों शैतान ने तुझे ऐसा ढीठ कर दिया है कि तू पवित्र शक्ति से झूठ बोले और ज़मीन की कीमत का कुछ हिस्सा चोरी से अपने पास रख ले? 4 जब तक वह तेरे पास थी, क्या वह तेरी न थी और बेचने के बाद भी क्या उसकी कीमत पर तेरा अधिकार न था? तो फिर क्यों तू ने अपने दिल में ऐसा काम करने की ठानी? तू ने इंसानों से नहीं, बल्कि परमेश्वर से झूठ बोला है।” 5 ये शब्द सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा और दम तोड़ दिया। और इस बारे में सुननेवाले हर किसी पर बड़ा भय छा गया। 6 फिर कुछ नौजवानों ने उठकर उसे कपड़े में लपेटा और उसे बाहर ले गए और दफना दिया।
7 अब करीब तीन घंटे बाद उसकी पत्नी आयी और उसे खबर न थी कि वहाँ क्या हो चुका है। 8 पतरस ने उससे कहा: “मुझे बता, क्या तुम दोनों ने अपनी ज़मीन इतने ही दाम में बेची थी?” उसने कहा: “हाँ, इतने में ही बेची थी।” 9 पतरस ने उससे कहा: “क्यों तुम दोनों ने आपस में एका कर लिया कि यहोवा की पवित्र शक्ति की परीक्षा लो? देख! तेरे पति को दफनानेवालों के कदम दरवाज़े तक आ पहुँचे हैं और वे तुझे भी उठाकर ले जाएँगे।” 10 उसी घड़ी वह उसके पैरों पर गिर पड़ी और मर गयी। जब वे नौजवान अंदर आए तो उन्होंने उसे मरा हुआ पाया और वे उसे उठाकर बाहर ले गए और उसके पति के बराबर उसे दफना दिया। 11 इस घटना से, पूरी मंडली* पर और इन बातों के बारे में सुननेवाले हर किसी पर बड़ा भय छा गया।
12 इतना ही नहीं, प्रेषितों के हाथों से लोगों के बीच बहुत से चमत्कार और आश्चर्य के काम होते रहे। वे सभी एक मन से सुलैमान के खंभोंवाले बरामदे में इकट्ठा हुआ करते थे। 13 सच है कि बाकियों में से किसी ने इतनी हिम्मत न की कि चेलों में जा मिले, फिर भी आम लोग चेलों की तारीफ करते थे। 14 और-तो-और, प्रभु पर विश्वास करनेवाले स्त्री-पुरुष बड़ी तादाद में उनमें शामिल होते रहे। 15 यहाँ तक कि वे बीमारों को बड़ी सड़कों पर लाकर बिछौनों और चारपाइयों पर लिटा देते थे, ताकि जब पतरस वहाँ से गुज़रे, तो कम-से-कम उसकी परछाईं ही उनमें से किसी पर पड़ जाए। 16 यही नहीं, यरूशलेम के आस-पास के शहरों से भारी तादाद में लोग वहाँ आते रहे और बीमारों और दुष्ट स्वर्गदूतों के सताए हुओं को लाते रहे और वे सब-के-सब ठीक किए जाते थे।
17 मगर महायाजक और वे सभी जो उसके साथ थे, यानी उस वक्त के सदूकी गुट के लोग, जलन से भरकर उठे और 18 उन्होंने प्रेषितों को पकड़ लिया और जेल में डाल दिया। 19 मगर रात के वक्त यहोवा के स्वर्गदूत ने जेल के दरवाज़े खोल दिए, और उन्हें बाहर लाकर उनसे कहा: 20 “अपनी राह लो, और मंदिर में खड़े होकर लोगों को हमेशा की ज़िंदगी के बारे में सब बातें बताते रहो।” 21 यह सुनने के बाद, वे सुबह होते ही मंदिर में गए और सिखाने लगे।
फिर जब महायाजक और उसके साथी आए, तब उन्होंने महासभा* और इस्राएलियों के बुज़ुर्गों की सारी सभा को इकट्ठा किया और जेल से प्रेषितों को लाने के लिए पहरेदार भेजे। 22 मगर वहाँ जाने पर पहरेदारों ने उन्हें जेल में न पाया। इसलिए वे लौट आए और आकर यह खबर दी: 23 “हमने देखा कि जेलखाना पूरी सुरक्षा के साथ बंद है और दरवाज़ों पर पहरेदार भी तैनात हैं, मगर खोलने पर हमें अंदर कोई न मिला।” 24 जब मंदिर के पहरेदारों के सरदार और प्रधान याजकों ने यह सुना, तो इन बातों को लेकर वे बड़ी दुविधा में पड़ गए और उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था कि अब क्या होगा। 25 मगर एक आदमी ने आकर उन्हें यह खबर दी: “देखो! तुमने जिन आदमियों को जेल में डाला था, वे तो मंदिर में हैं और वहाँ खड़े होकर लोगों को सिखा रहे हैं।” 26 तब सरदार अपने पहरेदारों के साथ गया और उन्हें ले आया, मगर उनके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की, क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लोग उन पर पत्थरवाह न करने लगें।
27 वे उन्हें ले आए और महासभा के भवन में लाकर खड़ा कर दिया। और महायाजक ने उनसे सवाल पूछा: 28 “हमने तुम्हें कड़ा आदेश दिया था कि इस नाम से सिखाना बंद कर दो, मगर फिर भी देखो! तुमने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर दिया है और तुमने इस आदमी* का खून हमारे सिर पर थोपने की ठान ली है।” 29 जवाब में पतरस और दूसरे प्रेषितों ने कहा: “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा कर्तव्य है। 30 हमारे बापदादों के परमेश्वर ने उस यीशु को जी उठाया, जिसे तुमने सूली* पर लटकाकर घात किया था। 31 उसी को परमेश्वर ने खास नुमाइंदा और उद्धार करनेवाला ठहराकर और अपनी दायीं तरफ बिठाकर उसकी महिमा की है, ताकि इस्राएल को पश्चाताप और पापों की माफी दे। 32 और इन सब बातों के हम गवाह हैं और पवित्र शक्ति भी, जिसे परमेश्वर ने उन लोगों को दिया है जो उसे राजा जानकर उसकी आज्ञा मानते हैं।”
33 जब उन्होंने यह सुना, तो मानो उनके कलेजे में आग लग गयी और वे उनको खत्म कर देना चाहते थे। 34 मगर महासभा में एक आदमी उठ खड़ा हुआ। यह गमलीएल नाम का एक फरीसी था, जो मूसा के कानून का शिक्षक था और लोगों में उसकी बड़ी इज़्ज़त थी। उसने इन आदमियों को कुछ देर के लिए बाहर ले जाने का हुक्म दिया। 35 और गमलीएल ने उनसे कहा: “इस्राएल के लोगो, तुम इन आदमियों के साथ जो करना चाहते हो, उसके बारे में अच्छी तरह सोच लो। 36 मिसाल के लिए, कुछ वक्त पहले थियूदास यह कहते हुए उठ खड़ा हुआ था कि मैं भी कुछ हूँ, और कई आदमी, करीब चार सौ लोग उसके दल में शामिल हो गए थे। मगर वह मार डाला गया और जितने उसके माननेवाले थे, वे सब तित्तर-बित्तर हो गए। 37 उसके बाद, नाम लिखाई के दिनों में गलील का यहूदा उठ खड़ा हुआ और उसने लोगों को बहकाकर अपने पीछे कर लिया। मगर वह आदमी भी मिट गया और जो उसकी मानते थे वे भी यहाँ-वहाँ तित्तर-बित्तर हो गए। 38 इसलिए, मौजूदा हालात को देखते हुए, मैं तुमसे कहता हूँ, इन आदमियों के काम में दखल मत दो, पर इन्हें अपने हाल पर छोड़ दो। (क्योंकि अगर यह योजना या यह काम इंसानों की तरफ से है, तो यह मिट जाएगा, 39 लेकिन अगर यह परमेश्वर की तरफ से है, तो तुम इन्हें मिटा न सकोगे।) कहीं ऐसा न हो कि तुम असल में परमेश्वर से लड़नेवाले ठहरो।” 40 इस पर उन्होंने उसकी बात मान ली और प्रेषितों को बुलवाकर उन्हें पिटवाया और हुक्म दिया कि यीशु के नाम से बोलना बंद कर दें, और तब उन्हें जाने दिया।
41 इसलिए, वे महासभा के सामने से इस बात पर बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल दिए कि उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक तो समझा गया। 42 और वे बिना नागा हर दिन मंदिर में और घर-घर जाकर सिखाते रहे और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते रहे।
6 उन दिनों चेलों की गिनती बढ़ती जा रही थी। तब ऐसा हुआ कि यूनानी बोलनेवाले यहूदी चेले, इब्रानी बोलनेवाले यहूदी चेलों के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे, क्योंकि रोज़ के खाने के बँटवारे में यूनानी बोलनेवाली विधवाओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा था। 2 तब उन बारहों ने सभी चेलों को अपने पास बुलाकर कहा: “यह ठीक नहीं कि हम प्रेषित, परमेश्वर का वचन सिखाना छोड़कर खाना परोसने के काम में लग जाएँ। 3 इसलिए भाइयो, अपने बीच से सात ऐसे योग्य पुरुष चुनो जिनका तुम्हारे बीच अच्छा नाम हो, और जो पवित्र शक्ति और बुद्धि से भरपूर हों, ताकि हम उन्हें इस ज़रूरी काम की देखरेख के लिए ठहराएँ। 4 मगर हम प्रार्थना करने और वचन सिखाने की सेवा में लगे रहेंगे।” 5 यह बात सबको अच्छी लगी और उन्होंने स्तिफनुस को चुना, जो विश्वास और पवित्र शक्ति से भरपूर था। उसके अलावा, उन्होंने फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और निकुलाउस को भी चुना। निकुलाउस, अंताकिया का रहनेवाला था और उसने यहूदी धर्म अपनाया था। 6 और चेलों ने इन सातों को प्रेषितों के सामने पेश किया, जिन्होंने प्रार्थना करने के बाद, उन पर अपने हाथ रखकर उन्हें इस काम के लिए नियुक्त किया।
7 और परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलों की गिनती बड़ी तेज़ी से बढ़ती चली गयी; और बड़ी तादाद में याजक भी विश्वासी बन गए।
8 स्तिफनुस पर परमेश्वर की बड़ी कृपा थी। वह परमेश्वर की शक्ति से भरपूर था और लोगों के बीच बड़े-बड़े आश्चर्य के काम और चमत्कार कर रहा था। 9 मगर तब आज़ाद गुलामों का सभा-घर कहलानेवाले दल के कुछ आदमी और इनके साथ कुरेने, सिकंदरिया, किलिकिया और एशिया के लोग मिलकर स्तिफनुस के खिलाफ खड़े हो गए और उससे झगड़ने लगे। 10 मगर स्तिफनुस जिस बुद्धि और परमेश्वर की पवित्र शक्ति के साथ बोल रहा था, उसका वे सामना नहीं कर पाए। 11 तब उन्होंने चोरी-छिपे कुछ आदमियों को फुसलाया कि वे लोगों में यह बात फैलाएँ: “हमने इसे मूसा और परमेश्वर के खिलाफ निंदा की बातें कहते सुना है।” 12 और उन्होंने जनता को और बुज़ुर्गों और शास्त्रियों को भड़काया और अचानक स्तिफनुस पर धावा बोल दिया और उसे जबरन खींचकर महासभा* के सामने ले गए। 13 और वे झूठे गवाहों को सामने लाए, जिन्होंने कहा: “यह आदमी हमारे पवित्र मंदिर और परमेश्वर के कानून के खिलाफ बोलना नहीं छोड़ता। 14 जैसे, हमने इसे यह कहते सुना है कि यीशु नासरी इस मंदिर को ढा देगा और उन रीतियों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।”
15 जब महासभा में बैठे सब लोगों ने स्तिफनुस पर नज़र डाली, तो देखा कि उसका चेहरा ऐसा दिखायी दे रहा है जैसे किसी स्वर्गदूत का हो।
7 तब महायाजक ने उससे पूछा: “क्या ये बातें सच हैं?” 2 स्तिफनुस ने जवाब में कहा: “भाइयो और पिता-समान बुज़ुर्गो, सुनो। हमारा पुरखा अब्राहम, हारान शहर में बसने से पहले जब मेसोपोटामिया के इलाके में रहता था, तब महिमा से भरपूर परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया 3 और उससे कहा, ‘अपने देश और अपने रिश्तेदारों के बीच से निकलकर उस देश को चला जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।’ 4 तब अब्राहम कसदियों के उस देश से निकला और जाकर हारान में रहने लगा। और उसके पिता की मौत के बाद, परमेश्वर उसे वहाँ से निकालकर इस देश में रहने के लिए लाया जहाँ अब तुम रहते हो। 5 मगर फिर भी परमेश्वर ने उस वक्त अब्राहम को इस देश में कोई ज़मीन नहीं दी, यहाँ तक कि पैर रखने तक की ज़मीन भी नहीं। मगर परमेश्वर ने उससे वादा किया कि वह यह देश उसे और उसके बाद उसके वंश को विरासत के तौर पर देगा। जबकि उस वक्त तक अब्राहम की कोई औलाद नहीं थी। 6 और परमेश्वर ने यह भी कहा कि अब्राहम के वंशज एक पराए देश में परदेसी होकर रहेंगे और उस देश के लोग उन्हें गुलाम बना लेंगे और चार सौ साल तक उन्हें सताएँगे। 7 परमेश्वर ने आगे कहा, ‘और जिस देश की वे गुलामी करेंगे उसको मैं सज़ा दूँगा और यह सब होने के बाद वे वहाँ से निकल आएँगे और इस जगह मेरी पवित्र सेवा करेंगे।’
8 परमेश्वर ने अब्राहम के साथ खतने का करार भी किया। फिर अब्राहम, इसहाक का पिता बना और आठवें दिन उसका खतना किया और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह बेटे पैदा हुए जो कुलपिता बने। 9 ये कुलपिता अपने भाई यूसुफ से जलने लगे और उसे मिस्रियों को बेच दिया। मगर परमेश्वर यूसुफ के साथ था, 10 और परमेश्वर ने उसे उसकी सारी मुसीबतों से छुटकारा दिलाया और ऐसा किया कि मिस्र के राजा फिरौन की नज़र में वह बुद्धिमान ठहरा और उसने फिरौन का दिल जीत लिया। और फिरौन ने उसे सारे मिस्र और अपने पूरे घराने का अधिकारी ठहराया। 11 मगर फिर, पूरे मिस्र और कनान देश में अकाल पड़ा, यहाँ तक कि महा-संकट टूट पड़ा; और हमारे बापदादों को कहीं भी खाने की चीज़ें नहीं मिल पा रही थीं। 12 मगर जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अनाज है, तो उसने अपने बेटों यानी हमारे बापदादों को पहली बार वहाँ भेजा। 13 और जब वे दूसरी बार वहाँ गए, तब यूसुफ ने खुद को अपने भाइयों पर ज़ाहिर किया और बताया कि वह कौन है, और फिरौन को पता चला कि यूसुफ किस जाति का है। 14 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को और अपने घराने के सभी लोगों को कनान से बुलवा लिया, जो कुल मिलाकर पचहत्तर लोग थे। 15 तब याकूब मिस्र में आकर रहने लगा। और वहीं उसकी मौत हुई और हमारे बापदादों की भी मौत हुई, 16 और उनकी हड्डियाँ शकेम लायी गयीं और उस कब्र में रखी गयीं जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शकेम में हमोर के बेटों से खरीदा था।
17 और परमेश्वर ने अब्राहम से जो वादा किया था, जैसे-जैसे उसके पूरा होने का वक्त पास आ रहा था, वैसे-वैसे अब्राहम के वंशज मिस्र में बढ़ते गए और उनकी गिनती बहुत हो गयी। 18 फिर मिस्र में दूसरा राजा हुआ, जो यूसुफ को नहीं जानता था। 19 उसने हमारी जाति के खिलाफ सियासी चाल चली और हमारे बापदादों को मजबूर किया कि वे अपने शिशुओं को पैदा होते ही मरने के लिए बेसहारा छोड़ दें। 20 उसी दौरान मूसा पैदा हुआ और वह बहुत सुंदर* था। तीन महीने तक तो उसके माता-पिता ने उसे घर में पाला-पोसा। 21 मगर जब उसे बेसहारा छोड़ दिया गया, तो फिरौन की बेटी ने उसे उठा लिया और अपने बेटे की तरह उसकी परवरिश की। 22 और मूसा को मिस्रियों की हर तरह की शिक्षा दी गयी। दरअसल वह अपने कामों में शक्तिशाली और बातों में दमदार था।
23 जब वह चालीस साल का होनेवाला था, तब उसके दिल में यह बात आयी कि जाकर अपने इस्राएली भाई-बंधुओं का हाल देखूँ। 24 और जब मूसा ने देखा कि एक मिस्री किसी इस्राएली पर अन्याय कर रहा है, तो उसने जाकर उसे बचाया और मिस्री को मारकर सताए जानेवाले का बदला लिया। 25 उसने सोचा कि उसके भाई यह समझ लेंगे कि परमेश्वर उसके हाथों उन्हें छुटकारा दिला रहा है, मगर उन्होंने ऐसा नहीं समझा। 26 और अगले दिन जब दो इस्राएली आपस में झगड़ रहे थे, तो वह उनके सामने गया और यह कहकर उनमें सुलह करवाने की कोशिश की, ‘तुम तो भाई-भाई हो। फिर क्यों एक-दूसरे पर अन्याय करते हो?’ 27 मगर जो अपने साथी के साथ बुरा सलूक कर रहा था, उसने मूसा को झटककर दूर किया और कहा: ‘किसने तुझे हम पर अधिकारी और न्यायी ठहराया? 28 जैसे तू ने कल उस मिस्री को मार डाला था, क्या तू मुझे भी मार डालना चाहता है?’ 29 यह बात सुनकर मूसा वहाँ से भागा और मिद्यान देश में परदेसी होकर रहने लगा। वहाँ रहने के दौरान उसके दो बेटे पैदा हुए।
30 फिर चालीस साल के बाद, जब मूसा सीनै पहाड़ के पास वीराने में था, तब एक स्वर्गदूत मूसा के सामने एक जलती हुई कंटीली झाड़ी की लपटों के बीच प्रकट हुआ। 31 जब मूसा ने जलती हुई झाड़ी का यह नज़ारा देखा, तो वह हैरत में पड़ गया। जब वह जाँच-पड़ताल करने के लिए झाड़ी के पास जाने लगा, तो उसे यहोवा की यह आवाज़ सुनायी दी: 32 ‘मैं तेरे बापदादों का परमेश्वर, अब्राहम और इसहाक और याकूब का परमेश्वर हूँ।’ मूसा डर के मारे काँपने लगा और उसने आगे जाकर जाँच-पड़ताल करने की हिम्मत न की। 33 यहोवा ने उससे कहा: ‘अपने पाँवों की जूतियाँ उतार दे, क्योंकि जिस जगह तू खड़ा है वह पवित्र ज़मीन है। 34 मैंने वाकई देखा है कि मिस्र में मेरे लोगों के साथ कैसा बुरा सलूक किया जा रहा है और मैंने उनका कराहना सुना है और मैं उनको छुड़ाने के लिए नीचे आया हूँ। और अब आ, मैं तुझे मिस्र भेजूँगा।’ 35 यही मूसा, जिसे उन्होंने यह कहते हुए झटककर दूर कर दिया था कि ‘किसने तुझे हम पर अधिकारी और न्यायी ठहराया है?’ उसी को परमेश्वर ने अधिकारी और छुड़ानेवाला दोनों ठहराकर उस स्वर्गदूत के ज़रिए भेजा, जो कंटीली झाड़ी में उसे दिखायी दिया था। 36 यही मूसा उन्हें मिस्र और लाल सागर में चमत्कार और आश्चर्य के काम दिखाता हुआ वहाँ से निकाल लाया और उसने ऐसे ही आश्चर्य के काम चालीस साल तक वीराने में भी दिखाए।
37 यह वही मूसा है जिसने इस्राएलियों से कहा था कि ‘परमेश्वर तुम्हारे ही भाइयों में से तुम्हारे लिए मेरे जैसा एक भविष्यवक्ता खड़ा करेगा।’ 38 यह वही मूसा है जो वीराने में इस्राएल की मंडली के बीच था और वह उस स्वर्गदूत के साथ था, जिसने सीनै पहाड़ पर उससे बात की थी। इसी मूसा ने हमारे बापदादों से बात की थी और तुम तक पहुँचाने के लिए जीवित पवित्र वचन पाए। 39 लेकिन, हमारे बापदादों ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया, और उसे झटककर दूर कर दिया और वे अपने दिलों में वापस मिस्र लौटने के सपने संजोने लगे। 40 और उन्होंने हारून से कहा, ‘हमारे लिए देवता बना कि वह हमारे आगे-आगे चले। क्योंकि हम नहीं जानते कि इस मूसा का क्या हुआ जो हमें मिस्र देश से बाहर निकाल लाया था।’ 41 तब उन दिनों उन्होंने बछड़े की एक मूरत बनायी और उस मूरत के आगे बलि चढ़ायी और अपने हाथ की इस रचना के सामने वे मौज-मस्ती करने लगे। 42 इसलिए परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़ लिया और उन्हें सूरज, चाँद और तारों को पूजने के लिए छोड़ दिया, ठीक जैसा भविष्यवक्ताओं की किताब में भी लिखा है: ‘हे इस्राएल के घराने, क्या तुमने वीराने में चालीस साल तक पशु-बलियाँ और दूसरे बलिदान मुझ ही को चढ़ाए थे? 43 नहीं, बल्कि तुम मोलोक* के तंबू और रिफान देवता के तारे की मूरत लिए फिरते रहे, उन निशानियों को जिन्हें तुमने इसलिए बनाया था कि तुम उनकी पूजा करो। इसलिए मैं तुम्हें देश-निकाला देकर बैबिलोनिया के पार भेज दूँगा।’
44 हमारे बापदादों के पास वीराने में गवाही का तंबू* था, जिसके बारे में परमेश्वर ने मूसा से बात करते वक्त हुक्म दिया था कि उस तंबू का जो नमूना उसे दिखाया गया था, उसी के मुताबिक उसे बनाए। 45 और हमारे जिन बापदादों ने इसे विरासत में पाया, वे इसे यहोशू के साथ इस देश में ले आए जिस पर दूसरी जातियों का कब्ज़ा था। इन जातियों को परमेश्वर ने हमारे बापदादों के सामने से खदेड़कर इस देश से बाहर निकाल दिया। और गवाही का यह तंबू दाविद के दिनों तक यहीं रहा। 46 दाविद ने परमेश्वर की कृपा-दृष्टि पायी थी और उसने यह बिनती की कि उसे याकूब के परमेश्वर के निवास का एक भवन बनाने का मौका मिले। 47 मगर सुलैमान था जिसने यह भवन बनाया। 48 फिर भी, परम-प्रधान परमेश्वर हाथ के बनाए भवनों* में नहीं रहता, ठीक जैसे एक भविष्यवक्ता परमेश्वर के बारे में कहता है, 49 ‘स्वर्ग मेरी राजगद्दी और पृथ्वी मेरे पाँवों की चौकी है। तुम मेरे लिए कैसा भवन बनाओगे? यहोवा कहता है। या मेरे आराम करने की क्या कोई जगह है? 50 क्या मेरे ही हाथों ने ये सारी चीज़ें नहीं बनायीं?’
51 अरे ढीठ, कठोर और आज्ञा न माननेवाले लोगो,* तुम हमेशा से पवित्र शक्ति का विरोध करते आए हो; तुम्हारे बापदादों ने जो किया था, तुम भी वही करते हो। 52 ऐसा कौन-सा भविष्यवक्ता हुआ है जिस पर तुम्हारे बापदादों ने ज़ुल्म नहीं ढाए? हाँ, उन्होंने उन लोगों को मार डाला जिन्होंने पहले से उस नेक जन के आने का ऐलान किया था, जिसके साथ तुमने विश्वासघात किया और अब तुम जिसके हत्यारे बन गए हो, 53 हाँ तुम, जिन्होंने स्वर्गदूतों के ज़रिए पहुँचाया गया कानून तो पाया मगर उस पर चले नहीं।”
54 जब उन्होंने ये बातें सुनीं, तो वे तिलमिला उठे और उस पर दाँत पीसने लगे। 55 मगर, उसने पवित्र शक्ति से भरकर स्वर्ग की तरफ एकटक देखा और उसे परमेश्वर की महिमा दिखायी दी और उसने यीशु को परमेश्वर की दायीं तरफ खड़े देखा, 56 और कहा: “देखो! मैं स्वर्ग को खुला हुआ और इंसान के बेटे को परमेश्वर की दायीं तरफ खड़ा देख रहा हूँ।” 57 इस पर वे चीख उठे और हाथों से अपने कान बंद कर लिए और सब मिलकर उस पर लपक पड़े। 58 और वे उसे खदेड़कर शहर के बाहर ले गए और उसे पत्थरों से मारने लगे। स्तिफनुस के खिलाफ झूठी गवाही देनेवालों ने अपने चोगे उतारकर शाऊल नाम के एक नौजवान के पाँवों के पास रख दिए थे। 59 और जब वे स्तिफनुस को पत्थर मार रहे थे, तब उसने यह प्रार्थना की: “हे प्रभु यीशु, मैं अपनी जान* अब तेरे हवाले करता हूँ।” 60 फिर उसने घुटने टेककर बड़ी ज़ोर से यह पुकार लगायी: “यहोवा, यह पाप इनके सिर न लगाना।” और यह कहने के बाद वह मौत की नींद सो गया।
8 और शाऊल खुद स्तिफनुस की हत्या का समर्थन कर रहा था।
उस दिन से यरूशलेम की मंडली पर बड़ा ज़ुल्म होने लगा; और प्रेषितों को छोड़ बाकी सभी, यहूदिया और सामरिया के सारे इलाके में तित्तर-बित्तर हो गए। 2 मगर कुछ भक्त जन स्तिफनुस को दफनाने के लिए ले गए और उन्होंने उसके लिए बड़ा मातम किया। 3 शाऊल बड़ी बेरहमी से मंडली पर ज़ुल्म करने लगा। वह घर-घर घुसकर स्त्री-पुरुष, सभी को घसीटकर निकालता और उन्हें कैदखाने में डलवा देता था।
4 मगर, जो चेले तित्तर-बित्तर हो गए थे वे जहाँ कहीं गए सारे इलाके में वचन की खुशखबरी सुनाते गए। 5 इनमें से एक फिलिप्पुस था। वह सामरिया शहर गया और वहाँ लोगों को मसीह का प्रचार करने लगा। 6 और लोगों की भीड़ ने फिलिप्पुस की बातों पर ध्यान दिया और मन लगाकर उन्हें सुना और उसके चमत्कार देखे। 7 और वहाँ ऐसे बहुत-से लोग थे जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे और ये बड़ी ज़ोर से चीखते-चिल्लाते हुए उनसे बाहर निकल जाते थे। इसके अलावा, बहुत-से लोग जो लकवे के मारे थे और जो लंगड़े थे वे चंगे हुए। 8 और उस शहर में बड़ा आनंद छा गया।
9 वहाँ शमौन नाम का एक आदमी रहता था, जो अब तक अपनी जादू-विद्या से सामरिया के लोगों को हैरत में डालता आया था और वह खुद को एक महापुरुष बताता था। 10 और छोटे से लेकर बड़े तक, सभी लोग उसकी बात पर ध्यान देते थे और कहते थे: “इस आदमी में परमेश्वर की शक्ति है, महाशक्ति।” 11 उसने उन्हें काफी समय से अपनी जादूगरी से हैरत में डाल रखा था, इसलिए वे उसकी बात मानते थे। 12 मगर जब उन्होंने फिलिप्पुस का यकीन किया, जो उन्हें परमेश्वर के राज की और यीशु मसीह के नाम की खुशखबरी सुना रहा था, तो क्या पुरुष, क्या स्त्री सभी ने बपतिस्मा लिया। 13 शमौन खुद भी एक विश्वासी बन गया और बपतिस्मा पाने के बाद लगातार फिलिप्पुस के साथ रहता था। वह चमत्कार और बड़े-बड़े शक्तिशाली काम देखकर हैरत में पड़ जाता था।
14 जब यरूशलेम में प्रेषितों ने सुना कि सामरिया के लोगों ने परमेश्वर का वचन मान लिया है, तो उन्होंने पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेजा। 15 पतरस और यूहन्ना ने वहाँ जाकर उनके लिए प्रार्थना की कि वे पवित्र शक्ति पाएँ। 16 क्योंकि तब तक उनमें से किसी पर भी पवित्र शक्ति नहीं उतरी थी, मगर उनका प्रभु यीशु के नाम से सिर्फ बपतिस्मा हुआ था। 17 तब पतरस और यूहन्ना ने उन पर हाथ रखे और वे पवित्र शक्ति पाने लगे।
18 अब जब शमौन ने देखा कि प्रेषितों के हाथ रखने से पवित्र शक्ति मिलती है, तो उसने उन्हें पैसा देते हुए 19 कहा: “मुझे भी यह अधिकार दो कि जिस किसी पर मैं अपने हाथ रखूँ वह पवित्र शक्ति पाए।” 20 मगर पतरस ने उससे कहा: “तेरी चाँदी तेरे संग नाश हो, क्योंकि तू ने सोचा कि तू पैसे देकर परमेश्वर के मुफ्त वरदान को खरीद सकता है। 21 लेकिन इस सेवा में न तेरा कोई साझा है, न हिस्सा, क्योंकि परमेश्वर की नज़र में तेरा दिल सीधा नहीं है। 22 इसलिए अपनी यह बुराई छोड़ और पश्चाताप कर और यहोवा से मिन्नत कर कि हो सके तो तेरे दिल का यह धूर्त्त विचार माफ किया जाए; 23 क्योंकि मैं देख सकता हूँ कि तेरे दिल में ज़हर भरा है* और तू बुराई की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है।” 24 जवाब में शमौन ने कहा: “मेहरबानी से मेरे लिए यहोवा से मिन्नत करो कि जो बातें तुमने कही हैं उनमें से कोई भी मुझ पर न आ पड़े।”
25 इस तरह जब पतरस और यूहन्ना सारे इलाके में अच्छी तरह गवाही दे चुके और यहोवा का वचन सुना चुके, तो वे यरूशलेम लौट चले और रास्ते में सामरियों के बहुत-से गाँवों में खुशखबरी सुनाते गए।
26 मगर, यहोवा के स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस से कहा: “उठ और दक्षिण की तरफ उस रास्ते पर जा जो यरूशलेम से गाज़ा जाता है।” (यह एक सुनसान रेगिस्तानी रास्ता है।) 27 यह सुनकर फिलिप्पुस उठा और निकल पड़ा और उसे रास्ते में इथियोपिया का एक खोजा मिला। यह खोजा इथियोपिया की रानी कन्दाके के दरबार में ऊँचे पद पर था और उसके सारे खज़ाने पर अधिकारी था। वह यरूशलेम में उपासना करने गया था, 28 और अब लौट रहा था। वह अपने रथ पर बैठा ऊँची आवाज़ में यशायाह भविष्यवक्ता की किताब पढ़ रहा था। 29 और पवित्र शक्ति ने फिलिप्पुस से कहा: “रथ के नज़दीक जा और उसके संग हो ले।” 30 फिलिप्पुस उस रथ के साथ-साथ दौड़ने लगा और खोजे को यशायाह भविष्यवक्ता की किताब पढ़ते हुए सुना और उससे पूछा: “तू जो पढ़ रहा है, क्या उसे समझता भी है?” 31 उसने कहा: “जब तक कोई मुझे न समझाए, मैं भला कैसे समझ सकता हूँ?” और उसने फिलिप्पुस से बिनती की कि चढ़कर रथ पर उसके पास बैठ जाए। 32 शास्त्र का जो हिस्सा वह ज़ोर से पढ़ रहा था, वह यह था: “वह भेड़ की तरह बलि होने के लिए लाया गया, और जैसे मेम्ना, अपने ऊन कतरनेवाले के सामने चुपचाप रहता है, वैसे ही उसने अपना मुँह नहीं खोला। 33 उसका निरादर होते वक्त, उसके साथ न्याय नहीं किया गया। उसकी पीढ़ी के बारे में कौन जानकारी देगा? क्योंकि धरती से उसका जीवन ले लिया गया।”
34 तब खोजे ने फिलिप्पुस से पूछा: “मैं तुझसे बिनती करता हूँ, मुझे बता कि भविष्यवक्ता यह किसके बारे में कह रहा है? अपने बारे में या किसी दूसरे के बारे में?” 35 तब फिलिप्पुस ने बोलना शुरू किया और शास्त्र के इस वचन से शुरू करते हुए उसे यीशु के बारे में खुशखबरी सुनायी। 36 जब वे सड़क पर जा रहे थे, तो वे एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ काफी पानी था और खोजे ने कहा: “देख! यहाँ पानी है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रुकावट है?” 37* —— 38 इस पर खोजे ने रथ रोकने का हुक्म दिया और वे दोनों पानी में उतरे; और फिलिप्पुस ने उसे बपतिस्मा दिया। 39 जब वे पानी से बाहर निकले, तो यहोवा की पवित्र शक्ति फिलिप्पुस को वहाँ से फौरन कहीं और ले गयी और खोजा उसे फिर नहीं देख पाया और वह खुशी मनाता हुआ अपनी राह चला गया। 40 इसके बाद, फिलिप्पुस अशदोद में पाया गया और कैसरिया पहुँचने तक वह उस सारे इलाके में और सभी शहरों में खुशखबरी सुनाता रहा।
9 मगर शाऊल पर अब भी प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने का जुनून सवार था। इसलिए वह महायाजक के पास गया 2 और उससे दमिश्क शहर के सभा-घरों के नाम चिट्ठियाँ माँगीं ताकि प्रभु के मार्ग पर चलनेवाला जो भी मिले, चाहे स्त्री हो या पुरुष, उन्हें गिरफ्तार कर* यरूशलेम ले आए।
3 जब वह दमिश्क के पास रास्ते में था, तब अचानक आकाश से ज़बरदस्त रौशनी उसके चारों तरफ चमक उठी। 4 और वह ज़मीन पर गिर पड़ा और उसने एक आवाज़ सुनी जो उससे कह रही थी: “शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?” 5 शाऊल ने कहा: “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा: “मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है। 6 मगर अब उठ और शहर में जा और जो तुझे करना है वह तुझे बताया जाएगा।” 7 जो आदमी शाऊल के साथ सफर कर रहे थे, वे एकदम सुन्न होकर खड़े रहे। उन्हें यह आवाज़ तो सुनायी दे रही थी, मगर कोई दिखायी नहीं पड़ रहा था। 8 तब शाऊल ज़मीन से उठकर खड़ा हुआ। उसकी आँखें तो खुली थीं मगर वह कुछ देख नहीं पा रहा था। इसलिए वे उसका हाथ पकड़कर उसे ले गए और दमिश्क पहुँचा दिया। 9 और तीन दिन तक वह कुछ नहीं देख पाया और न उसने कुछ खाया, न पीया।
10 वहाँ दमिश्क में हनन्याह नाम का एक चेला था और प्रभु ने एक दर्शन में उससे कहा: “हनन्याह!” उसने कहा: “जी प्रभु, मैं हाज़िर हूँ।” 11 प्रभु ने उससे कहा: “उठ, और उस गली को जा जो सीधी कहलाती है, और वहाँ यहूदा के घर में शाऊल नाम के आदमी का पता लगा जो तरसुस का रहनेवाला है। क्योंकि देख! वह प्रार्थना कर रहा है, 12 और उसने एक दर्शन में हनन्याह नाम के एक आदमी को आते और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है जिससे उसकी आँखों की रौशनी लौट आएगी।” 13 मगर हनन्याह ने जवाब दिया: “प्रभु, मैंने इस आदमी के बारे में बहुतों से सुना है कि उसने यरूशलेम में तेरे पवित्र जनों को कैसी-कैसी पीड़ाएँ दी हैं। 14 और अब उसके पास प्रधान याजकों की तरफ से यह अधिकार है कि जितने तेरा नाम लेते हैं, उन सबको बंदी बना ले।” 15 मगर प्रभु ने उससे कहा: “तू रवाना हो जा, क्योंकि यह आदमी मेरा चुना हुआ पात्र है जो गैर-यहूदियों, साथ ही राजाओं और इस्राएलियों के पास मेरा नाम ले जाएगा। 16 मैं उसे साफ-साफ दिखाऊँगा कि उसे मेरे नाम की खातिर कितने दुःख सहने होंगे।”
17 तब हनन्याह चल पड़ा और उस घर में गया जहाँ शाऊल था। उसने अपने हाथ शाऊल पर रखे और कहा: “शाऊल, मेरे भाई, प्रभु यीशु जिसने उस सड़क पर तुझे दर्शन दिया जहाँ से तू आ रहा था, उसी ने मुझे तेरे पास भेजा है ताकि तेरी आँखों की रौशनी लौट आए और तू पवित्र शक्ति से भर जाए।” 18 और उसी घड़ी शाऊल की आँखों से छिलके-से गिरे और वह फिर से देखने लगा; और उसने उठकर बपतिस्मा लिया। 19 उसने खाना खाया और ताकत पायी।
शाऊल कुछ दिनों तक दमिश्क में चेलों के साथ रहा। 20 वहाँ उसने बिना वक्त गँवाए सभा-घरों में यीशु का प्रचार करना शुरू कर दिया कि यही परमेश्वर का बेटा है। 21 मगर जितनों ने भी सुना वे सब दंग रह गए और कहने लगे: “क्या यह वही आदमी नहीं जो यरूशलेम में यीशु के चेलों को* तबाह करता था और यहाँ भी इसी इरादे से आया था कि उन्हें गिरफ्तार कर प्रधान याजकों के पास ले जाए?” 22 दूसरी तरफ, शाऊल और भी प्रभावशाली बनता गया। वह दमिश्क में रहनेवाले यहूदियों के सामने तर्कसंगत तरीके से यह साबित करता था कि यीशु ही मसीह है और इस तरह वह सबकी ज़बान बंद कर देता था।
23 इस तरह कई दिन गुज़र जाने के बाद, यहूदियों ने उसे मार डालने के लिए आपस में सलाह की। 24 मगर शाऊल को उनकी साज़िश का पता चल गया। यहूदी उसे मार डालने के लिए दिन-रात शहर के फाटकों पर भी घात लगाए रहते थे। 25 इसलिए उसके चेलों ने उसे एक बड़े टोकरे में बिठाकर, रात के वक्त शहर की दीवार में बनी एक खिड़की से नीचे उतार दिया।
26 जब वह यरूशलेम पहुँचा तो उसने चेलों से मिलने की कोशिश की, मगर वे सभी उससे डरते थे क्योंकि उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वह भी एक चेला बन चुका है। 27 इसलिए बरनबास उसकी मदद के लिए आगे आया और उसे प्रेषितों के पास ले गया। बरनबास ने उन्हें पूरा ब्यौरा देकर बताया कि कैसे शाऊल ने सड़क पर प्रभु को देखा था और यह भी कि प्रभु ने उससे बात की थी, और कैसे उसने दमिश्क में निडर होकर यीशु के नाम से प्रचार किया था। 28 और शाऊल यरूशलेम में चेलों के साथ-साथ रहा और खुलेआम आता-जाता था और प्रभु के नाम से निडर होकर बात करता था। 29 साथ ही, वह यूनानी बोलनेवाले यहूदियों से बातचीत और बहस किया करता था। मगर इन्होंने उसे खत्म करने की कोशिश की। 30 जब भाइयों ने यह भाँप लिया, तो वे उसे कैसरिया ले आए और वहाँ से उसे तरसुस भेज दिया।
31 इसके बाद, सारे यहूदिया, गलील और सामरिया में मंडली के लिए शांति का दौर शुरू हुआ और वह विश्वास में मज़बूत होती गयी। और मंडली यहोवा का भय मानते हुए और पवित्र शक्ति से मिलनेवाले दिलासे से हिम्मत पाती रही और उसमें बढ़ोतरी होती गयी।
32 जब पतरस सब जगहों का दौरा कर रहा था, तो वह लुद्दा शहर में रहनेवाले पवित्र जनों के पास भी आया। 33 वहाँ उसे ऐनियास नाम का एक आदमी मिला, जो लकवे का मारा होने की वजह से आठ साल से खाट पर पड़ा था। 34 पतरस ने उससे कहा: “ऐनियास, यीशु मसीह तुझे चंगा करता है। उठ और अपना बिस्तर ठीक कर।” और वह फौरन उठ खड़ा हुआ। 35 और लुद्दा और शारोन के मैदानी इलाके में रहनेवाले सभी लोगों ने उसे देखा और वे प्रभु की तरफ फिर गए।
36 याफा शहर में तबीता नाम की एक शिष्या थी जिसके नाम का यूनानी में मतलब है दोरकास यानी हिरणी। वह बहुत-से भले काम करती और दान दिया करती थी। 37 मगर उन दिनों वह बीमार पड़ गयी और मर गयी। तब उन्होंने उसे नहलाकर ऊपर के एक कमरे में रखा। 38 क्योंकि लुद्दा, याफा के पास ही था, इसलिए जब चेलों ने सुना कि पतरस लुद्दा शहर में है, तो उन्होंने दो आदमियों को भेजकर उससे बिनती की: “हमारे पास आने में देर न कर।” 39 तब पतरस उठकर उनके साथ गया। और जब वह याफा पहुँचा तो वे उसे ऊपरी कमरे में ले गए; और सारी विधवाएँ रोती हुई उसके पास आयीं और उसे वे कुरते और कपड़े दिखाने लगीं जो दोरकास उनके लिए बनाया करती थी। 40 मगर पतरस ने सबको बाहर कर दिया और घुटने टेककर प्रार्थना की और मुरदे की तरफ मुड़कर कहा: “तबीता, उठ!” उस स्त्री ने अपनी आँखें खोलीं और जैसे ही उसने पतरस को देखा, वह उठ बैठी। 41 पतरस ने अपना हाथ बढ़ाकर उसे उठाया और पवित्र जनों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीती-जागती उन्हें सौंप दिया। 42 यह बात पूरे याफा शहर में फैल गयी और बहुत-से लोग प्रभु में विश्वासी बन गए। 43 पतरस काफी दिनों तक याफा में ही शमौन नाम के एक आदमी के यहाँ रहा जो चमड़े का काम करता था।
10 कैसरिया में कुरनेलियुस नाम का एक आदमी था। वह उस फौजी टुकड़ी का अफसर* था जो इतालवी टुकड़ी कहलाती थी। 2 वह एक भक्त इंसान था और उसका पूरा घराना परमेश्वर का भय मानता था। वह लोगों को बहुत-से दान देता था और परमेश्वर के सामने हमेशा गिड़गिड़ाकर बिनती किया करता था। 3 उसने दिन के करीब नौवें घंटे* में, परमेश्वर के एक दूत को दर्शन में साफ-साफ देखा जिसने पास आकर उससे कहा: “कुरनेलियुस!” 4 उसने उस दूत की तरफ गौर से देखा और डरकर कहा: “प्रभु, क्या बात है?” उसने कुरनेलियुस से कहा: “तेरी प्रार्थनाएँ और दान परमेश्वर ने याद किए हैं। 5 इसलिए अब तू अपने आदमी भेज और याफा से शमौन को, जो पतरस भी कहलाता है, बुलवा ले। 6 वह, चमड़े का काम करनेवाले किसी शमौन के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुद्र के किनारे है।” 7 उस स्वर्गदूत के जाते ही कुरनेलियुस ने अपने घर के दो सेवकों और उसकी सेवा में हाज़िर रहनेवाले सैनिकों में से एक भक्त सैनिक को बुलाया। 8 उसने उन्हें पूरी बात बताकर याफा भेजा।
9 अगले दिन जब वे सफर करते-करते शहर के करीब आ चुके थे, तब छठे घंटे* के करीब पतरस प्रार्थना करने के लिए घर की छत पर गया। 10 मगर उसे ज़ोरों की भूख लगने लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब वे खाना तैयार कर रहे थे, तो उसे एक दर्शन दिखायी दिया।* 11 और उसने देखा कि आकाश खुल गया है और एक किस्म का पात्र नीचे उतर रहा है जो दिखने में बड़ी चादर जैसा था और जिसे चारों कोनों से पकड़कर धरती पर उतारा जा रहा था। 12 उसमें धरती पर पाए जानेवाले हर किस्म के जानवर* और रेंगनेवाले जीव-जंतु और आकाश के पक्षी थे। 13 और पतरस को एक आवाज़ सुनायी दी: “पतरस उठ, इन्हें मार और खा!” 14 मगर उसने कहा: “नहीं प्रभु, हरगिज़ नहीं, क्योंकि मैंने कभी कोई दूषित और अशुद्ध चीज़ नहीं खायी है।” 15 फिर दूसरी बार उसी आवाज़ ने उससे कहा: “तू उन चीज़ों को दूषित कहना बंद कर जिन्हें परमेश्वर ने शुद्ध किया है।” 16 तीन बार ऐसा हुआ और फिर वह पात्र फौरन आकाश में उठा लिया गया।
17 जब पतरस मन-ही-मन बड़ी उलझन में था कि जो दर्शन उसने देखा उसका क्या मतलब हो सकता है, तभी देखो! कुरनेलियुस के भेजे आदमी शमौन का घर पूछते-पूछते उसके दरवाज़े पर आ खड़े हुए। 18 उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगायी और पूछा कि शमौन जो पतरस कहलाता है, क्या वह यहीं पर ठहरा हुआ है। 19 जब पतरस मन में दर्शन के बारे में सोच ही रहा था, तब पवित्र शक्ति ने उससे कहा: “देख! तीन आदमी तुझे ढूँढ़ रहे हैं। 20 उठ, नीचे जा और उनके साथ बेखटके चला जा, क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” 21 तब पतरस सीढ़ियाँ उतरकर उन आदमियों के पास गया और कहा: “देखो! तुम जिसे ढूँढ़ रहे हो, वह मैं ही हूँ। यहाँ कैसे आना हुआ?” 22 उन्होंने कहा: “सेना-अफसर कुरनेलियुस ने हमें भेजा है। वह परमेश्वर का भय माननेवाला नेक इंसान है। यहूदियों की सारी जाति भी उसकी तारीफ करती है। उसी को एक पवित्र स्वर्गदूत ने परमेश्वर की तरफ से हिदायत दी है कि तुझे बुलवा ले और जो बातें तू बताएगा वे सुने।” 23 यह सुनकर पतरस ने उन्हें अंदर बुलाया और उनकी खातिरदारी की।
अगले दिन पतरस उठा और उनके साथ निकल पड़ा और याफा के कुछ भाई भी उसके साथ गए। 24 दूसरे दिन वह कैसरिया पहुँचा। बेशक, वहाँ कुरनेलियुस उनका इंतज़ार कर रहा था और उसने अपने रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों को अपने यहाँ इकट्ठा किया हुआ था। 25 जब पतरस आया, तो कुरनेलियुस उससे मिला और उसके पैरों पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 26 मगर पतरस ने उसे उठाकर कहा: “खड़ा हो, मैं एक इंसान ही हूँ।” 27 और वह उससे बातें करता हुआ अंदर गया और पाया कि वहाँ बहुत लोग जमा हैं, 28 और पतरस ने उनसे कहा: “तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक यहूदी के लिए दूसरी जाति के किसी इंसान से मिलना-जुलना या उसके यहाँ जाना भी नियम के खिलाफ है, मगर फिर भी परमेश्वर ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी भी इंसान को दूषित या अशुद्ध न कहूँ। 29 इसलिए जब मुझे बुलाया गया, तो मैं बिना किसी एतराज़ के चला आया। अब मैं पूछता हूँ कि तुमने मुझे किस वजह से बुलाया है।”
30 तब कुरनेलियुस ने कहा: “आज से ठीक चार दिन पहले की बात है, जब मैं नौवें घंटे* में अपने घर में प्रार्थना कर रहा था, तब मैंने देखा कि एक आदमी चमकदार कपड़े पहने मेरे सामने आ खड़ा हुआ 31 और मुझसे कहा: ‘कुरनेलियुस, तेरी प्रार्थना सुन ली गयी है और तेरे दान परमेश्वर ने याद किए हैं। 32 इसलिए, अब अपने आदमियों को याफा भेज और शमौन को, जो पतरस भी कहलाता है, बुलवा ले। यह आदमी, चमड़े का काम करनेवाले शमौन के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुद्र के किनारे है।’ 33 इसलिए मैंने फौरन तुझे बुलावा भेजा और तू ने यहाँ आकर बहुत अच्छा किया। अब इस वक्त, हम सब परमेश्वर के सामने हाज़िर हैं ताकि वे सारी बातें सुनें, जिन्हें सुनाने की आज्ञा यहोवा ने तुझे दी है।”
34 तब पतरस ने बोलना शुरू किया: “अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, 35 मगर हर ऐसा इंसान जो उसका भय मानता है और नेक काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो, वह परमेश्वर को भाता है। 36 परमेश्वर ने इस्राएलियों के पास अपना संदेश भेजा और उन्हें यह खुशखबरी सुनायी कि यीशु मसीह के ज़रिए उसके साथ शांति कायम करना मुमकिन है: यह संदेश कि यीशु ही सबका प्रभु है। 37 जब यूहन्ना ने बपतिस्मे का प्रचार किया उसके बाद, गलील में जिस बात पर चर्चा शुरू हुई और सारे यहूदिया में चारों तरफ फैल गयी तुम उसके बारे में जानते हो, 38 यानी नासरत के यीशु की चर्चा कि कैसे परमेश्वर ने पवित्र शक्ति और बल से उसका अभिषेक किया और वह पूरे देश में भलाई करता हुआ और शैतान* के सताए हुओं को चंगा करता फिरा, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। 39 और हम उन सभी कामों के गवाह हैं जो उसने यहूदियों के देश में और यरूशलेम में किए थे। उन्होंने उसे सूली पर लटकाकर मार डाला। 40 मगर परमेश्वर ने इसी यीशु को तीसरे दिन जी उठाया और इस काबिल किया कि वह खुद को लोगों पर ज़ाहिर कर सके, 41 मगर सभी लोगों पर नहीं बल्कि उन गवाहों पर जिन्हें परमेश्वर ने पहले से चुना था, यानी हम पर, जिन्होंने मरे हुओं में से यीशु के जी उठने के बाद उसके साथ खाया-पीया। 42 साथ ही, उसने हमें यह आज्ञा दी कि हम लोगों को प्रचार करें और इस बात की अच्छी तरह गवाही दें कि यह वही है जिसे परमेश्वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है। 43 सारे भविष्यवक्ता इसी यीशु की गवाही देते हैं कि जो कोई उस पर विश्वास करता है उसे उसके नाम से पापों की माफी मिलती है।”
44 जब पतरस ये बातें बोल ही रहा था तभी पवित्र शक्ति इस वचन को सुननेवाले सभी लोगों पर उतरी। 45 और यहूदियों में से* जो विश्वासी भाई पतरस के साथ आए थे वे दंग रह गए, क्योंकि पवित्र शक्ति का मुफ्त वरदान, गैर-यहूदियों को भी दिया जा रहा था। 46 क्योंकि वे उन्हें अलग-अलग भाषाएँ बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुन रहे थे। फिर पतरस ने कहा: 47 “इन लोगों ने ठीक वैसे ही पवित्र शक्ति पायी है जैसे हमने* पायी है, तो क्या कोई इन्हें पानी में बपतिस्मा लेने से रोक सकता है?” 48 तब पतरस ने यह आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए। इसके बाद उन्होंने उससे कुछ दिन वहीं ठहरने की बिनती की।
11 यह बात प्रेषितों और उन भाइयों ने सुनी, जो यहूदिया में थे कि गैर-यहूदियों ने भी परमेश्वर का वचन मान लिया है। 2 इसलिए जब पतरस यरूशलेम आया, तो खतने का समर्थन करनेवाले यह कहकर उससे बहस करने लगे कि 3 वह ऐसे लोगों के घर गया था जिनका खतना नहीं हुआ और उनके साथ खाना भी खाया। 4 इस पर पतरस उन्हें शुरू से लेकर सारी बात समझाने लगा कि क्या-क्या हुआ था:
5 “जब मैं याफा शहर में प्रार्थना कर रहा था, तो मुझ पर बेसुधी छा गयी और मैंने एक दर्शन देखा। एक किस्म का पात्र जो दिखने में बड़ी चादर जैसा था, आकाश से नीचे उतर रहा था और उसे चारों कोनों से पकड़कर धरती पर उतारा जा रहा था; और वह बिलकुल मेरे पास आ गया। 6 जब मैंने देखा, तो गौर किया कि उसमें धरती पर पाए जानेवाले चार-पैरोंवाले जीव, जंगली जानवर, रेंगनेवाले जीव-जंतु और आकाश के पक्षी थे। 7 साथ ही मैंने एक आवाज़ भी सुनी जो मुझ से कह रही थी: ‘पतरस उठ, इन्हें मार* और खा!’ 8 मगर मैंने कहा, ‘नहीं प्रभु, हरगिज़ नहीं, क्योंकि कभी कोई दूषित या अशुद्ध चीज़ मेरे मुँह में नहीं गयी है।’ 9 फिर दूसरी बार आकाश से उस आवाज़ ने कहा, ‘तू उन चीज़ों को दूषित कहना बंद कर जिन्हें परमेश्वर ने शुद्ध किया है।’ 10 ऐसा ही तीसरी बार हुआ और फिर सबकुछ वापस आकाश में खींच लिया गया। 11 और देखो! ठीक उसी घड़ी, तीन आदमी उस घर के सामने आ खड़े हुए जहाँ हम थे। उन्हें कैसरिया से मेरे पास भेजा गया था। 12 पवित्र शक्ति ने मुझे बताया कि मैं उनके साथ बेखटके चला जाऊँ। और ये छः भाई भी मेरे साथ हो लिए, और हम कुरनेलियुस नाम के आदमी के घर गए।
13 उसने हमें बताया कि कैसे उसने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़े देखा जिसने उससे कहा, ‘याफा में आदमी भेजकर शमौन को, जो पतरस भी कहलाता है, बुलवा ले, 14 और वह तुझे वे बातें बताएगा जिनसे तू और तेरा सारा घराना उद्धार पा सकेगा।’ 15 मगर जब मैंने बोलना शुरू किया, तो उन पर भी पवित्र शक्ति उतरी, ठीक जैसे शुरूआत में हम पर उतरी थी। 16 तब मुझे प्रभु की वह बात याद आयी, जो वह कहा करता था, ‘यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, मगर तुम पवित्र शक्ति से बपतिस्मा पाओगे।’ 17 इसलिए जब परमेश्वर ने उन्हें वह मुफ्त वरदान दिया, जो उसने हमें भी दिया, जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया है, तो परमेश्वर को रोकनेवाला भला मैं कौन होता हूँ?”
18 अब जब उन्होंने ये बातें सुनीं तो इस बारे में आगे और कुछ न कहा और यह कहकर परमेश्वर की बड़ाई करने लगे: “तो इसका मतलब है कि परमेश्वर ने गैर-यहूदियों को भी जीवन पाने के लिए पश्चाताप करने का मौका दिया है।”
19 स्तिफनुस को लेकर हुए क्लेश की वजह से जो चेले तित्तर-बित्तर हो गए थे, वे फिरते हुए फीनीके, कुप्रुस और अंताकिया तक पहुँच गए, मगर उन्होंने यहूदियों के अलावा किसी और को परमेश्वर का संदेश नहीं सुनाया। 20 लेकिन उनमें से कुछ आदमी जो कुप्रुस और कुरेने के थे, वे अंताकिया आए और उन्होंने यूनानी बोलनेवाले लोगों को प्रभु यीशु की खुशखबरी सुनानी शुरू की। 21 साथ ही, यहोवा का हाथ उन पर था, और बड़ी तादाद में लोगों ने विश्वास किया और प्रभु की तरफ फिर गए।
22 उनके बारे में यरूशलेम की मंडली के कानों तक खबर पहुँची और उन्होंने बरनबास को अंताकिया भेजा। 23 वहाँ पहुँचकर जब उसने परमेश्वर की महा-कृपा देखी, तो वह बहुत खुश हुआ और सबका हौसला बढ़ाने लगा कि वे दिल में पक्के इरादे के साथ प्रभु के वफादार बने रहें; 24 क्योंकि बरनबास एक अच्छा इंसान था और पवित्र शक्ति और विश्वास से भरपूर था। इसलिए, बड़ी तादाद में लोग प्रभु पर विश्वास करने लगे। 25 इसे देखते हुए, बरनबास तरसुस को रवाना हुआ ताकि ढूँढ़कर शाऊल का पता लगा सके। 26 और जब वह उसे मिल गया, तो वह उसे अंताकिया ले आया। इसके बाद, पूरे एक साल तक वे उस मंडली में भाइयों के साथ इकट्ठा होते रहे और लोगों की बड़ी भीड़ को सिखाते रहे। और परमेश्वर के मार्गदर्शन से अंताकिया में ही पहली बार चेले ‘मसीही’ कहलाए।
27 उन्हीं दिनों यरूशलेम से कुछ भविष्यवक्ता अंताकिया आए। 28 उनमें से एक का नाम अगबुस था। वह उठा और उसने पवित्र शक्ति की प्रेरणा से बताया कि सारे जगत में भारी अकाल पड़नेवाला है। वाकई, क्लौदियुस के दिनों में यह अकाल पड़ा। 29 इसलिए अंताकिया के चेलों ने ठान लिया कि उनमें से हरेक से जितना भी बन पड़ेगा, उतना वे यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की मदद के लिए राहत का सामान भेजेंगे। 30 और उन्होंने ऐसा ही किया और यह मदद बरनबास और शाऊल के हाथों बुज़ुर्गों के पास भेजी।
12 उन्हीं दिनों राजा हेरोदेस* कड़ा रुख अपनाते हुए मंडली के कुछ लोगों पर ज़ुल्म ढाने लगा। 2 उसने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला। 3 जब उसने देखा कि यहूदी इससे खुश हुए हैं, तो उसने पतरस को भी गिरफ्तार कर लिया। (ये बिन खमीर की रोटियों के त्योहार के दिन थे।) 4 हेरोदेस ने पतरस को पकड़कर कैदखाने में डाल दिया और उसे चार सिपाहियोंवाली चार पालियों के हवाले कर दिया गया, ताकि वे बारी-बारी उस पर पहरा दें। उसका इरादा था कि फसह के त्योहार के बाद वह उसे लोगों के सामने पेश करेगा। 5 इस वजह से, पतरस को कैदखाने में पहरे में रखा गया था, मगर मंडली उसके लिए परमेश्वर से दिलो-जान से प्रार्थना कर रही थी।
6 जिस दिन हेरोदेस उसे लोगों के सामने पेश करने पर था, उससे पहले की रात को पतरस दो ज़ंजीरों से बँधा हुआ दो सिपाहियों के बीच सो रहा था और दरवाज़े पर पहरेदार कैदखाने का पहरा दे रहे थे। 7 मगर तभी अचानक यहोवा का स्वर्गदूत वहाँ आ खड़ा हुआ और कैदखाने की वह कोठरी रौशनी से जगमगा उठी। स्वर्गदूत ने पतरस की बगल थपथपायी और यह कहकर उसे उठाया: “उठ, जल्दी कर!” और उसके हाथों की ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। 8 स्वर्गदूत ने पतरस से कहा: “कमर बाँध और अपनी जूतियाँ कस ले।” उसने ऐसा ही किया। आखिर में उसने पतरस से कहा: “अपना चोगा पहन ले और मेरे पीछे चलता चल।” 9 वह निकलकर उसके पीछे-पीछे चलता गया, मगर वह यह नहीं जानता था कि स्वर्गदूत जो कर रहा है वह हकीकत में हो रहा है। उसे तो यही लगा कि शायद वह कोई दर्शन देख रहा है। 10 पहरेदारों की पहली और दूसरी चौकी को पार कर वे लोहे के उस फाटक पर आ पहुँचे जो शहर की तरफ खुलता है और यह फाटक उनके लिए अपने आप खुल गया। और बाहर निकलने के बाद वे एक गली के अंदर पहुँचे और तब उसी घड़ी वह स्वर्गदूत उसे छोड़कर चला गया। 11 तब पतरस अपने आपे में आया और कहा: “अब मैं जान गया हूँ कि वाकई यहोवा ने अपना दूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से और उन सब बातों से बचाया है जो यहूदी उम्मीद कर रहे थे कि मेरे साथ होंगी।”
12 इस बात पर सोचने के बाद, वह मरियम के घर गया जो मरकुस कहलानेवाले यूहन्ना की माँ थी। वहाँ काफी चेले जमा थे और प्रार्थना कर रहे थे। 13 जब पतरस ने बाहर का फाटक खटखटाया, तो रुदे नाम की नौकरानी यह देखने आयी कि कौन आया है। 14 उसने पतरस की आवाज़ तो पहचान ली, मगर बेहद खुशी की वजह से फाटक न खोला। वह दौड़ती हुई अंदर गयी और खबर दी कि पतरस बाहर दरवाज़े के सामने खड़ा है। 15 घर में जमा चेलों ने उससे कहा: “तू पागल है।” मगर वह ज़ोर देकर कहती रही कि सचमुच वही आया है। वे उससे कहने लगे: “वह उसका स्वर्गदूत होगा।” 16 मगर पतरस वहीं खड़ा खटखटाता रहा। जब उन्होंने दरवाज़ा खोला और उसे देखा तो वे दंग रह गए। 17 मगर पतरस ने हाथ से उन्हें चुप रहने का इशारा किया और उन्हें पूरा किस्सा कह सुनाया कि कैसे यहोवा ने उसे कैदखाने से बाहर निकाला। फिर उसने कहा: “ये बातें याकूब और दूसरे भाइयों को बता देना।” इसके बाद वह वहाँ से निकलकर किसी और जगह के लिए रवाना हो गया।
18 फिर जब दिन हुआ, तो सिपाहियों में अफरा-तफरी मच गयी कि आखिर पतरस गया कहाँ। 19 हेरोदेस ने उसकी बहुत तलाश करवायी और जब उसे न पाया, तो उसने पहरेदारों से पूछताछ की और हुक्म दिया कि उन्हें सज़ा के लिए ले जाया जाए। फिर हेरोदेस यहूदिया से कैसरिया चला गया और वहाँ कुछ वक्त बिताया।
20 राजा हेरोदेस, सोर और सीदोन के लोगों से बहुत गुस्सा था। इसलिए वे सभी एकमत होकर उसके पास आए और उन्होंने राजा के घराने की देखरेख करनेवाले बलासतुस को मनाकर राजा के साथ सुलह करनी चाही, क्योंकि उनके देश को राजा के देश से ही खाने का सामान मिलता था। 21 फिर एक दिन एक खास मौके पर, हेरोदेस शाही लिबास में न्याय-आसन पर बैठा और उसने जनता को भाषण देना शुरू किया। 22 उसकी बातें सुनकर वहाँ जमा लोग यह पुकार उठे: “यह किसी इंसान की नहीं, बल्कि एक ईश्वर की आवाज़ है!” 23 उसी घड़ी यहोवा के दूत ने हेरोदेस को मारा, क्योंकि उसने परमेश्वर को महिमा नहीं दी; और उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया।
24 मगर यहोवा का वचन बढ़ता और फैलता चला गया।
25 और बरनबास और शाऊल यरूशलेम में राहत का काम पूरा करने के बाद लौट गए और अपने साथ यूहन्ना को ले गए जो मरकुस कहलाता है।
13 अंताकिया की मंडली में कई भविष्यवक्ता और शिक्षक थे। ये थे, बरनबास, शमौन जो काला* कहलाता था, कुरेने का लूकियुस, मनाएन जो ज़िला शासक हेरोदेस के साथ पढ़ा था और शाऊल। 2 जब ये यहोवा की सेवा करने और उपवास करने में लगे हुए थे, तो पवित्र शक्ति ने कहा: “सब लोगों में से मेरे लिए बरनबास और शाऊल को उस काम के लिए अलग करो, जिसके लिए मैंने उन्हें बुलाया है।” 3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना की और उन पर हाथ रखे और उन्हें रवाना कर दिया।
4 इसी के मुताबिक, ये आदमी पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में सिलूकिया गए और फिर वहाँ से समुद्री जहाज़ पर चढ़कर कुप्रुस द्वीप के लिए रवाना हुए। 5 और जब वे उस द्वीप के सलमीस शहर पहुँचे, तो वे यहूदियों के सभा-घरों में परमेश्वर का वचन सुनाने लगे। उनके साथ यूहन्ना मरकुस भी था, जो उनकी सेवा किया करता था।
6 जब वे उस पूरे द्वीप का दौरा करते हुए पाफुस शहर पहुँचे, तो वहाँ उन्हें बार-यीशु नाम का एक यहूदी मिला। वह एक जादूगर और झूठा भविष्यवक्ता था। 7 और वह उस प्रांत के राज्यपाल* सिरगियुस पौलुस के साथ-साथ रहता था। सिरगियुस पौलुस बहुत अक्लमंद इंसान था और उसने बरनबास और शाऊल को अपने पास बुलाया और परमेश्वर का वचन सुनने की गहरी इच्छा दिखायी। 8 मगर बार-यीशु जो इलीमास जादूगर कहलाता है (इलीमास नाम का मतलब है, जादूगर), उनका विरोध करने लगा और उसने पूरी कोशिश की कि राज्यपाल इस विश्वास को न अपनाए। 9 तब शाऊल ने, जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र शक्ति से भरकर उसकी तरफ टकटकी लगाकर देखा 10 और कहा: “अरे शैतान की औलाद, तू जो हर तरह की जालसाज़ी और मक्कारी से भरा हुआ है और हर तरह की नेकी का दुश्मन है, क्या तू यहोवा की सीधी राहों को बिगाड़ना नहीं छोड़ेगा? 11 अब देख! यहोवा का हाथ तेरे खिलाफ उठा है, और तू अंधा हो जाएगा और कुछ वक्त के लिए सूरज की रौशनी नहीं देख पाएगा।” उसी पल उसकी आँखों के आगे घने कोहरे जैसा धुँधलापन और अंधेरा छा गया और वह इधर-उधर टटोलने लगा कि कोई उसका हाथ पकड़कर उसे ले चले। 12 तब जो कुछ हुआ, उसे देखकर राज्यपाल विश्वासी बन गया क्योंकि वह यहोवा की शिक्षा से दंग रह गया था।
13 इसके बाद पौलुस और उसके साथी, पाफुस शहर से समुद्री यात्रा करते हुए पमफूलिया प्रांत के पिरगा शहर पहुँचे। मगर यूहन्ना मरकुस उन्हें छोड़कर यरूशलेम लौट गया। 14 मगर वे पिरगा से आगे बढ़े और पिसिदिया इलाके के अंताकिया शहर में आए और सब्त के दिन सभा-घर में जाकर बैठ गए। 15 वहाँ सबके सामने मूसा के कानून और भविष्यवक्ताओं की किताबों से पढ़ाई किए जाने के बाद, सभा-घर के अधिकारियों ने यह कहकर उन्हें बुलाया: “भाइयो, अगर लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए तुम्हारे पास कहने को कुछ हो तो कहो।” 16 तब पौलुस उठा और हाथ से सबको शांत हो जाने का इशारा करते हुए कहा:
“इस्राएलियो और परमेश्वर का भय माननेवाले दूसरे लोगो, सुनो। 17 परमेश्वर ने हम इस्राएली लोगों के बापदादों को चुना। जिस दौरान वे मिस्र देश में परदेसी होकर रहते थे, तब परमेश्वर ने उनका मान बढ़ाया और शक्तिशाली हाथ से उन्हें वहाँ से बाहर निकाल लाया। 18 और करीब चालीस साल तक वीराने में उनके तौर-तरीकों को सहता रहा। 19 उसने कनान देश में सात जातियों का नाश करने के बाद, इस्राएलियों को उनके देश में विरासत के तौर पर अपना-अपना हिस्सा दिया: 20 यह सब करीब चार सौ पचास साल के दौरान हुआ।
यह सब होने के बाद, परमेश्वर ने उनके बीच न्याय करने के लिए न्यायी ठहराए और इन न्यायियों का दौर शमूएल भविष्यवक्ता तक चला। 21 मगर इसके बाद इस्राएली एक राजा की माँग करने लगे और परमेश्वर ने उन्हें कीश का बेटा शाऊल दिया, जो बिन्यामीन के गोत्र का था। वह चालीस साल तक उनका राजा रहा। 22 उसे हटाने के बाद, उसने दाविद को उनका राजा बनाकर खड़ा किया, जिसके बारे में उसने गवाही दी और कहा, ‘मैंने यिशै के बेटे, दाविद में एक ऐसा इंसान पाया है जो मेरे मन के मुताबिक है। वह मेरी सारी मरज़ी पूरी करेगा।’ 23 परमेश्वर ने जैसा वादा किया था उसी के मुताबिक उसने इसी दाविद के वंश से, इस्राएल के लिए एक उद्धारकर्ता, यानी यीशु को भेजा। 24 यीशु के आने से पहले यूहन्ना ने सरेआम इस्राएल के सब लोगों को प्रचार किया था कि वे पश्चाताप दिखानेवाला बपतिस्मा लें। 25 मगर जिस दौरान यूहन्ना अपना काम पूरा करने में लगा था, तो वह कहा करता था, ‘तुम्हें क्या लगता है कि मैं कौन हूँ? मैं वह नहीं हूँ। मगर देखो! मेरे बाद वह आ रहा है जिसके पैरों की जूतियाँ तक खोलने के मैं लायक नहीं हूँ।’
26 भाइयो, तुम जो अब्राहम के वंश से हो और उसकी संतान हो, साथ ही परमेश्वर का भय माननेवाले बाकी लोगो, परमेश्वर ने हमारे लिए उद्धार का जो यह ज़रिया चुना है उसका संदेश उसने हमारे पास भेजा है। 27 यरूशलेम के रहनेवालों और उनके धर्म-अधिकारियों* ने उसे न पहचाना, मगर उसका न्याय करते वक्त उन्होंने भविष्यवक्ताओं की कही वे सारी बातें पूरी कीं जो हर सब्त के दिन पढ़कर सुनायी जाती हैं। 28 हालाँकि उसे सज़ा-ए-मौत देने की उन्हें कोई वजह न मिली, फिर भी उन्होंने पीलातुस से माँग की कि वह मार डाला जाए। 29 और जब उन्होंने उसके बारे में लिखी सारी बातें पूरी कर दीं, तो उसे सूली से नीचे उतारा गया और एक कब्र में रख दिया गया। 30 मगर परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जी उठाया; 31 और वह कई दिनों तक उन लोगों को दिखायी देता रहा जो उसके साथ गलील से यरूशलेम गए थे, और जो अब सब लोगों के सामने उसके गवाह हैं।
32 इसलिए हम तुम्हें उस वादे के बारे में खुशखबरी सुना रहे हैं जो हमारे बापदादों से किया गया था। 33 इस वादे को परमेश्वर ने उनकी संतानों पर, यानी हम पर हर तरह से पूरा किया है और इसके लिए यीशु को मरे हुओं में से जी उठाया है; जैसा कि दूसरे भजन में लिखा भी है, ‘तू मेरा बेटा है, मैं आज के दिन तेरा पिता बना हूँ।’ 34 परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से जी उठाया है और यह तय कर दिया है कि वह फिर कभी सड़ने के लिए न लौटे, इस सच्चाई को परमेश्वर ने यूँ बयान किया है, “मैं तुम लोगों के लिए अटल कृपा के वे काम करता रहूँगा जो विश्वासयोग्य हैं और जिनका वादा मैंने दाविद से किया था।” 35 इसलिए दाविद भी एक और भजन में कहता है, ‘तू अपने वफादार जन को सड़ने न देगा।’ 36 जहाँ एक तरफ दाविद था जिसने अपनी पीढ़ी में परमेश्वर की मरज़ी पूरी की जो उस पर ज़ाहिर की गयी थी। वह मौत की नींद सो गया और अपने बापदादों के साथ रखा गया और सड़ भी गया। 37 दूसरी तरफ, वह था जिसे परमेश्वर ने जी उठाया और उसने सड़न का मुँह नहीं देखा।
38 इसलिए भाइयो, तुम जान लो कि इसी यीशु के ज़रिए तुम्हें पापों की माफी मिल सकती है, जिसकी खबर तुम्हें सुनायी जा रही है। 39 और यह भी कि जिन बातों में मूसा का कानून तुम्हें निर्दोष नहीं ठहरा सकता, एक विश्वास करनेवाले को उन्हीं सब बातों के मामले में इसी यीशु के ज़रिए निर्दोष ठहराया जाता है। 40 इसलिए खबरदार रहो कि भविष्यवक्ताओं की किताबों में लिखी यह बात कहीं तुम पर न आ पड़े: 41 ‘हे ठट्ठा करनेवालो, देखो, ताज्जुब करो और मिट जाओ, क्योंकि मैं तुम्हारे दिनों में एक काम करनेवाला हूँ, ऐसा काम जिसके बारे में अगर कोई तुम्हें पूरी बारीकी से भी बताए, तब भी तुम हरगिज़ उसका यकीन न करोगे।’”
42 यह सब कहने के बाद जब वे बाहर जा रहे थे, तब लोग बिनती करने लगे कि ये बातें उन्हें अगले सब्त के दिन फिर सुनायी जाएँ। 43 इसलिए जब सभा बरखास्त हो गयी तो बहुत-से यहूदी और यहूदी धर्म अपनानेवाले, जो परमेश्वर की उपासना करते थे, पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए। और पौलुस और बरनबास उनसे बातें कर उन्हें उकसाते रहे कि वे परमेश्वर की महा-कृपा में बने रहें।
44 अगले सब्त के दिन करीब-करीब पूरा शहर यहोवा का वचन सुनने के लिए जमा हो गया। 45 जब यहूदियों ने इतनी भारी तादाद में लोग देखे, तो वे जलन से भर गए और पौलुस जो कह रहा था उसे झूठ बताकर परमेश्वर की निंदा की। 46 इसलिए पौलुस और बरनबास ने निडर होकर कहा: “यह ज़रूरी था कि परमेश्वर का वचन पहले तुम यहूदियों को सुनाया जाए। मगर इसलिए कि तुम इसे ठुकराकर खुद से दूर कर रहे हो और खुद को हमेशा की ज़िंदगी के लायक नहीं ठहराते, इसलिए देखो! हम दूसरी जातियों में जा रहे हैं। 47 दरअसल यहोवा ने यह कहकर हमें आज्ञा दी है, ‘मैंने तुम्हें दूसरी जातियों के लिए रौशनी ठहराया है ताकि तुम पृथ्वी की छोर तक जाकर यह ऐलान करो कि मैं किसके ज़रिए लोगों का उद्धार करूँगा।’”
48 जब गैर-यहूदियों ने यह बात सुनी, तो वे बड़ी खुशी मनाने लगे और यहोवा के वचन की बड़ाई करने लगे, और वे सभी जो हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते थे, विश्वासी बन गए। 49 इतना ही नहीं, यहोवा का वचन आस-पास के पूरे इलाके में फैलाया जाता रहा। 50 मगर यहूदियों ने शहर की जानी-मानी स्त्रियों को, जो परमेश्वर की भक्त थीं और खास-खास आदमियों को भड़काया। ये लोग, पौलुस और बरनबास पर ज़ुल्म करवाने लगे और उन्हें अपनी सरहदों के बाहर खदेड़ दिया। 51 तब पौलुस और बरनबास ने उनके खिलाफ अपने पाँवों की धूल झाड़ दी* और इकुनियुम शहर चले गए। 52 और चेले आनंद और पवित्र शक्ति से भरपूर होते रहे।
14 अब पौलुस और बरनबास इकुनियुम में एक-साथ यहूदियों के सभा-घर में गए और वहाँ उन्होंने इतने बढ़िया ढंग से बात की कि यहूदियों और यूनानियों में से भारी तादाद में लोग विश्वासी बन गए। 2 मगर जो यहूदी विश्वास नहीं लाए थे, उन्होंने गैर-यहूदियों को भड़काया और भाइयों के खिलाफ उनके मन में कड़वाहट भर दी। 3 इसलिए पौलुस और बरनबास ने वहाँ काफी समय बिताया और यह जानते हुए कि यहोवा ने उन्हें यह अधिकार दिया है वे निडर होकर उसका वचन सुनाते रहे। और परमेश्वर उनके हाथों चमत्कार और आश्चर्य के काम करवाता रहा ताकि इससे साबित हो कि परमेश्वर की महा-कृपा का जो संदेश पौलुस और बरनबास सुना रहे हैं वह उसी की तरफ से है। 4 मगर, शहर के लोगों में फूट पड़ गयी और कुछ यहूदियों की तरफ हो गए, तो दूसरे प्रेषितों की तरफ। 5 गैर-यहूदियों और यहूदियों के साथ उनके अधिकारियों ने मिलकर उन्हें बेइज़्ज़त करने और उन पर पत्थरवाह करने की योजना बनायी। 6 मगर पौलुस और बरनबास को इसकी खबर मिल गयी, इसलिए वे वहाँ से भाग गए और लुकाउनिया के लुस्त्रा और दिरबे शहरों के आस-पास के इलाकों में चले गए। 7 वहाँ वे खुशखबरी का ऐलान करते चले।
8 लुस्त्रा में एक आदमी था जो पाँवों से लाचार था। वह जन्म से ही लँगड़ा था और कभी चला नहीं था। 9 यह आदमी बैठकर पौलुस की बातें ध्यान से सुन रहा था। पौलुस ने उसे गौर से देखा और यह समझकर कि उसमें ठीक होने का विश्वास है, 10 ऊँची आवाज़ में कहा: “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो जा।” तब वह उछलकर खड़ा हो गया और चलने-फिरने लगा। 11 जब लोगों ने पौलुस का यह काम देखा, तो लुकाउनिया की बोली में ऊँची आवाज़ में कहने लगे: “देवता, इंसान बनकर हमारे बीच उतर आए हैं!” 12 और वे बरनबास को ज़्यूस, मगर पौलुस को हिरमेस कहने लगे क्योंकि बात करने में वही आगे था। 13 और शहर के सामने जो ज़्यूस का मंदिर था, वहाँ का पुजारी बैल और फूलों के हार लिए फाटक के पास आया और चाहता था कि लोगों के साथ मिलकर पौलुस और बरनबास के आगे बलि चढ़ाए।
14 मगर जब प्रेषितों यानी बरनबास और पौलुस ने इस बारे में सुना, तो उन्होंने अपने चोगे फाड़े और यह चिल्लाते हुए भीड़ में कूद पड़े: 15 “हे लोगो, तुम यह सब क्यों कर रहे हो? हम भी तुम्हारी तरह अदना इंसान हैं और तुम्हें एक खुशखबरी सुना रहे हैं ताकि तुम इन बेकार की चीज़ों को छोड़कर जीवित परमेश्वर के पास आओ, जिसने आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उनमें की सब चीज़ों को बनाया है। 16 बीते समय में उसने सब जातियों को अपनी-अपनी राह चलने दिया, 17 फिर भी उसने खुद को बे-गवाह न छोड़ा, यानी वह भलाई करता रहा और तुम्हें आकाश से बरसात और अच्छी पैदावार के मौसम देता रहा और तुम्हें जी भर के खाना और ढेरों खुशियाँ देकर तुम्हारे दिलों को आनंद से भरता रहा।” 18 यह सब कहने के बावजूद वे बड़ी मुश्किल से भीड़ को रोक पाए कि उनके आगे बलिदान न चढ़ाएँ।
19 मगर अंताकिया और इकुनियुम से यहूदी वहाँ आ धमके और उन्होंने लोगों को अपनी तरफ कर लिया। तब लोगों ने पौलुस पर पत्थरवाह किया और उसे मरा समझकर शहर के बाहर घसीटकर ले गए। 20 मगर जब चेले उसके चारों तरफ आ खड़े हुए, तो वह उठ बैठा और शहर में गया। दूसरे दिन वह बरनबास के साथ दिरबे चला गया। 21 और वे उस शहर में खुशखबरी सुनाने और कई चेले बनाने के बाद, लुस्त्रा और इकुनियुम और अंताकिया लौट गए। 22 वे चेलों की हिम्मत बँधाते रहे और उन्हें यह कहकर विश्वास में बने रहने का बढ़ावा देते रहे: “हमें बहुत तकलीफें झेलकर ही परमेश्वर के राज में दाखिल होना है।” 23 इसके अलावा, पौलुस और बरनबास ने हर मंडली में उनके लिए बुज़ुर्ग* ठहराए। उन्होंने इन बुज़ुर्गों को प्रार्थना और उपवास कर यहोवा के हाथ सौंपा जिस पर वे विश्वास लाए थे।
24 और वे पिसिदिया के इलाके से होते हुए पमफूलिया के प्रांत में पहुँचे, 25 और पिरगा शहर में वचन सुनाने के बाद वे अत्तलिया कस्बे में आए। 26 और वहाँ से वे समुद्री जहाज़ पर चढ़कर अंताकिया गए। यह वही जगह थी जहाँ भाइयों ने पौलुस और बरनबास को इस भरोसे के साथ परमेश्वर के हवाले सौंप दिया था कि वह उन्हें महा-कृपा दिखाएगा जिससे वे अपना काम पूरा कर सकें। और अब वे यह काम पूरा कर चुके थे।
27 जब वे अंताकिया पहुँचे, तो उन्होंने मंडली को इकट्ठा किया और उन्हें बताने लगे कि परमेश्वर ने उनके ज़रिए कैसे-कैसे काम किए और किस तरह उसने गैर-यहूदियों के लिए विश्वास को अपनाने का रास्ता* खोल दिया है। 28 और उन्होंने वहाँ चेलों के साथ काफी वक्त बिताया।
15 फिर यहूदिया से कुछ लोग अंताकिया आए और भाइयों को सिखाने लगे: “जब तक तुम मूसा के रिवाज़ के मुताबिक खतना नहीं करवाओगे, तब तक तुम उद्धार नहीं पा सकते।” 2 मगर जब इस बात पर पौलुस और बरनबास के साथ उनका काफी वाद-विवाद और झगड़ा हुआ, तो उन्होंने इस झगड़े के सिलसिले में पौलुस और बरनबास को साथ ही अपने बीच से कुछ और भाइयों को, प्रेषितों और बुज़ुर्गों के पास यरूशलेम भेजने का इंतज़ाम किया।
3 मंडली ने उन्हें कुछ दूर तक विदा किया और फिर ये भाई फीनीके और सामरिया के इलाकों से होते हुए गए और वहाँ के भाइयों को ब्यौरेदार जानकारी दी कि कैसे गैर-यहूदियों ने धर्म-परिवर्तन किया है और इन बातों से सभी भाइयों को बड़ी खुशी देते गए। 4 जब वे यरूशलेम पहुँचे तो मंडली और प्रेषितों और बुज़ुर्गों ने बड़ी खुशी से उनका स्वागत किया, और पौलुस और बरनबास ने उन सब कामों के बारे में उन्हें बताया जो परमेश्वर ने उनके ज़रिए किए थे। 5 मगर फरीसियों के गुट के कुछ लोग, जो विश्वासी बन गए थे, अपनी जगह से उठ खड़े हुए और कहा: “यह बेहद ज़रूरी है कि इन गैर-यहूदियों का खतना कराया जाए और उन्हें मूसा का कानून मानने की सख्त हिदायत दी जाए।”
6 तब प्रेषित और बुज़ुर्ग इस मामले पर गौर करने के लिए इकट्ठा हुए। 7 फिर काफी बहस के बाद, पतरस ने उठकर उनसे कहा: “भाइयो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि शुरू के दिनों से परमेश्वर ने तुम्हारे बीच में से मुझे चुना कि मेरे मुँह से गैर-यहूदी खुशखबरी का संदेश सुनें और विश्वास लाएँ; 8 और दिलों को जाननेवाले परमेश्वर ने उन्हें पवित्र शक्ति देकर यह गवाही दी कि उसने उन्हें मंज़ूर किया है, ठीक जैसे उसने हमारे साथ भी किया था। 9 और उसने हमारे और उनके बीच कोई फर्क नहीं किया, मगर विश्वास से उनके दिलों को शुद्ध किया। 10 तो अब तुम क्यों परमेश्वर की परीक्षा करने के लिए चेलों पर मूसा का कानून मानने का भारी बोझ लादते हो, जिसे न हमारे बापदादा उठा सके थे और न हम? 11 इसके बजाय, हम प्रभु यीशु की महा-कृपा के ज़रिए उद्धार पाने का भरोसा रखते हैं, वैसे ही जैसे वे लोग भी रखते हैं।”
12 इस पर पूरी सभा खामोश हो गयी और वे बरनबास और पौलुस की सुनने लगे कि कैसे परमेश्वर ने उनके ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच बहुत-से चमत्कार और आश्चर्य के काम किए थे। 13 जब वे बोल चुके तो याकूब ने यह कहकर जवाब दिया: “भाइयो, मेरी सुनो। 14 पतरस* ने पूरा ब्यौरा देकर बताया है कि परमेश्वर ने कैसे पहली बार गैर-यहूदी राष्ट्रों की तरफ ध्यान दिया कि उनके बीच से वे लोग चुन ले जो परमेश्वर के नाम से पहचाने जाएँ। 15 और इस बात से भविष्यवक्ताओं के वचन भी मेल खाते हैं, जैसा कि लिखा है: 16 ‘इन बातों के बाद मैं वापस आऊँगा और दाविद का गिरा हुआ डेरा फिर से खड़ा करूँगा; और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा और उसे दोबारा उठाऊँगा, 17 ताकि उसके बचे हुए लोग जी-जान से यहोवा की खोज करें और उनके साथ वे सारे गैर-यहूदी भी, जिनके बारे में यहोवा, जो ये काम करता है, कहता है, ये मेरे नाम से पुकारे जाते हैं। 18 इन बातों की जानकारी उसे सदियों से थी।’ 19 इसलिए मेरा फैसला यह है कि जो गैर-यहूदियों में से परमेश्वर की तरफ फिर रहे हैं, उन्हें हम परेशान न करें, 20 मगर उन्हें यह लिख भेजें कि वे मूर्तिपूजा के ज़रिए अपवित्र हुई चीज़ों से, और व्यभिचार* से और गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से* और लहू से हमेशा दूर रहें। 21 इसलिए कि शहर-शहर में मूसा की किताबों में लिखी इन्हीं बातों का प्रचार करनेवाले पुराने ज़माने से होते चले आए हैं, क्योंकि हर सब्त को सभा-घरों में उसके लेख पढ़कर सुनाए जाते हैं।”
22 फिर प्रेषितों और बुज़ुर्गों को, साथ ही सारी मंडली को यह सही लगा कि वे पौलुस और बरनबास के साथ, अपने बीच से चुने हुए आदमियों को अंताकिया भेजें, यानी बर-सबा कहलानेवाले यहूदा और सीलास को, जो भाइयों में अगुवे थे; 23 और अपने हाथ से उन्होंने यह लिख भेजा:
“अंताकिया, सीरिया और किलिकिया के इलाकों में गैर-यहूदी भाइयों को, आपके भाइयों यानी प्रेषितों और बुज़ुर्गों का नमस्कार! 24 हमने सुना है कि हममें से कुछ लोगों ने अपनी बातों से तुम्हें घबरा दिया है और तुम्हारे विश्वास को खत्म करने की कोशिश की है। हालाँकि हमने उन्हें कोई भी हिदायत नहीं दी थी। 25 इसलिए हम सब ने एकमत से यह तय किया है कि कुछ चुने हुए आदमियों को हमारे प्यारे बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें, 26 जिन्होंने हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम की खातिर अपनी जान तक दाँव पर लगा दी है। 27 इसलिए हम यहूदा और सीलास को भी भेज रहे हैं, ताकि वे भी अपने मुँह से इन्हीं बातों की जानकारी तुम्हें दें। 28 हम पवित्र शक्ति की मदद से इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इन ज़रूरी बातों को छोड़ हम तुम पर और ज़्यादा बोझ न लादें, 29 कि तुम मूरतों को बलि की हुई चीज़ों से और लहू से और गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से और व्यभिचार से हमेशा दूर रहो। अगर तुम इन बातों से दूर रहने में हर वक्त सावधान रहो, तो तुम्हारा भला होगा। सलामत रहो!”
30 फिर जब इन आदमियों को विदा किया गया, तो वे अंताकिया गए और उन्होंने मंडली को इकट्ठा कर उन्हें वह चिट्ठी सौंप दी। 31 चिट्ठी पढ़कर वे लोग उसके हौसला बढ़ानेवाले संदेश से बेहद खुश हुए। 32 और क्योंकि यहूदा और सीलास खुद भविष्यवक्ता थे, इसलिए उन्होंने कई भाषण देकर भाइयों की हिम्मत बँधायी और उन्हें मज़बूत किया। 33 जब उन्होंने वहाँ कुछ वक्त बिता लिया, तो भाइयों ने उन्हें शांति से विदा किया कि वे उन लोगों के यहाँ वापस जाएँ जिन्होंने उन्हें भेजा था। 34* —— 35 मगर पौलुस और बरनबास अंताकिया में ही रहे और कई और लोगों के साथ मिलकर यहोवा के वचन की खुशखबरी सुनाने और सिखाने में अपना वक्त लगाते रहे।
36 फिर कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा: “आओ जिन-जिन शहरों में हमने यहोवा के वचन का प्रचार किया था, वहाँ लौटकर भाइयों से मिलें और देखें कि वे किस हाल में हैं।” 37 बरनबास ने तो ठान लिया था कि वह अपने साथ यूहन्ना को भी ले जाएगा जो मरकुस कहलाता है। 38 मगर पौलुस को उसे अपने साथ ले जाना ठीक नहीं लगा, क्योंकि वह पमफूलिया में उन्हें छोड़कर चला गया था और इस काम में उनका साथ नहीं दिया था। 39 इस पर पौलुस और बरनबास के बीच ज़बरदस्त तकरार हुई, इसलिए वे एक-दूसरे से अलग हो गए; और बरनबास मरकुस को लेकर समुद्री जहाज़ से कुप्रुस के लिए रवाना हो गया। 40 लेकिन पौलुस ने सीलास को चुना। भाइयों ने पौलुस को यहोवा की महा-कृपा के भरोसे सौंपा और वह निकल पड़ा। 41 वह सीरिया और किलिकिया के इलाकों से होता हुआ मंडलियों को मज़बूत करता गया।
16 फिर पौलुस दिरबे और लुस्त्रा शहर भी पहुँचा। और देखो! वहाँ तीमुथियुस नाम का एक चेला था, जो एक विश्वासी यहूदिन का बेटा था मगर उसका पिता यूनानी था। 2 लुस्त्रा और इकुनियुम के भाई तीमुथियुस की बहुत तारीफ किया करते थे। 3 इसलिए, पौलुस ने यह इच्छा ज़ाहिर की कि वह तीमुथियुस को अपने साथ सफर पर ले जाना चाहता है। उसने तीमुथियुस को अपने साथ लिया और वह जिन इलाकों में जानेवाला था वहाँ रहनेवाले यहूदियों की वजह से तीमुथियुस का खतना किया, क्योंकि हर कोई जानता था कि उसका पिता यूनानी था। 4 इसके बाद अपने सफर में वे जिन-जिन शहरों से गुज़रे वहाँ वे उन आदेशों को मानने के बारे में बताते गए जिनका फैसला यरूशलेम में मौजूद प्रेषितों और बुज़ुर्गों ने किया था। 5 नतीजा यह हुआ कि मंडलियाँ विश्वास में लगातार मज़बूत होती रहीं और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती चली गयी।
6 इसके बाद वे फ्रूगिया और गलातिया के देश से गुज़रे, क्योंकि पवित्र शक्ति ने उन्हें एशिया ज़िले में वचन सुनाने से मना किया था। 7 इसके बाद, उन्होंने मूसिया पहुँचकर बितूनिया प्रांत में जाने की कोशिश की, मगर यीशु ने पवित्र शक्ति के ज़रिए उन्हें इसकी इजाज़त नहीं दी। 8 इसलिए वे मूसिया से होकर त्रोआस शहर पहुँचे। 9 और रात के वक्त पौलुस को एक दर्शन दिखायी दिया। उसने देखा कि मकिदुनिया का एक आदमी खड़ा हुआ उससे यह बिनती कर रहा है: “इस पार मकिदुनिया आकर हमारी मदद कर।” 10 जैसे ही उसने यह दर्शन देखा, हम लोगों ने यह समझकर मकिदुनिया जाने का इरादा किया कि परमेश्वर ने हमें वहाँ के लोगों को खुशखबरी सुनाने का बुलावा दिया है।
11 इसलिए हम त्रोआस से जहाज़ पर समुद्र के रास्ते चल पड़े और सीधे समोथ्राके द्वीप पहुँचे, और अगले दिन नियापुलिस शहर। 12 वहाँ से हम फिलिप्पी गए जो मकिदुनिया के उस ज़िले का सबसे जाना-माना शहर और एक रोमी उपनिवेश बस्ती है। हम इस शहर में कुछ दिन रहे। 13 और सब्त के दिन हम यह सोचकर शहर के फाटक के बाहर नदी किनारे गए कि वहाँ प्रार्थना करने की कोई जगह होगी, और जो स्त्रियाँ वहाँ जमा थीं हम बैठकर उन्हें प्रचार करने लगे। 14 वहाँ थुआतीरा शहर की लुदिया नाम की एक स्त्री भी थी, जो बैंजनी कपड़े* बेचती थी और परमेश्वर की उपासक थी। जब वह सुन रही थी तब यहोवा ने उसके दिल के द्वार पूरी तरह खोल दिए कि वह पौलुस की कही बातों पर ध्यान दे। 15 नतीजा यह हुआ कि लुदिया और उसके घराने ने बपतिस्मा लिया। फिर उसने हमसे बिनती की: “अगर तुम वाकई मानते हो कि मैं यहोवा की वफादार हूँ, तो मेरे घर आकर ठहरो।” और वह हमें जैसे-तैसे मनाकर अपने घर ले ही गयी।
16 फिर जब हम प्रार्थना की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिसमें भविष्य बतानेवाला दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। वह दासी भविष्य बताया करती थी जिससे उसके मालिकों की बहुत कमाई होती थी। 17 पौलुस और हम जहाँ कहीं भी जाते, यह लड़की हमारे पीछे-पीछे आकर यह चिल्लाती थी: “ये आदमी परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो तुम्हें उद्धार के मार्ग का संदेश सुना रहे हैं।” 18 वह बहुत दिनों तक ऐसा करती रही। आखिरकार, पौलुस इससे तंग आ गया और उसने मुड़कर उस दासी में समाए दुष्ट दूत से कहा: “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से हुक्म देता हूँ, उससे बाहर निकल जा।” और उसी घड़ी वह बाहर निकल गया।
19 जब उस दासी के मालिकों ने देखा कि उनकी कमाई का ज़रिया खत्म हो चुका है, तो उन्होंने पौलुस और सीलास को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर चौक* में अधिकारियों के सामने ले आए। 20 वे उन्हें नगर-अधिकारियों के पास ले गए और उन पर यह इलज़ाम लगाया: “ये आदमी यहूदी हैं और हमारे शहर में बहुत गड़बड़ी मचा रहे हैं। 21 ये ऐसे रिवाज़ों का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें अपनाने या मानने की हमें इजाज़त नहीं है, क्योंकि हम रोमी नागरिक हैं।” 22 और लोगों की भीड़ इकट्ठी होकर उनके खिलाफ चढ़ आयी और नगर-अधिकारियों ने पौलुस और सीलास के कपड़े फाड़ दिए और उन्हें बेंत लगाने का हुक्म दिया। 23 जब वे उन्हें बेंतों से बहुत मार चुके, तो उन्हें कैदखाने में डलवा दिया और जेलर को हुक्म दिया कि उन पर सख्त पहरा रखे। 24 ऐसा कड़ा हुक्म पाने की वजह से जेलर ने उन्हें अंदर की कोठरी में डाल दिया और उनके पाँव काठ में कस दिए।
25 मगर आधी रात के वक्त, पौलुस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे और भजन गाकर परमेश्वर का गुणगान कर रहे थे; हाँ, कैदी उनकी सुन रहे थे। 26 तभी अचानक एक बड़ा भूकंप हुआ जिससे कैदखाने की नींव तक हिल गयी। इतना ही नहीं, कैदखाने के सारे दरवाज़े उसी घड़ी खुल गए और सबकी ज़ंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। 27 तब जेलर जाग उठा और कैदखाने के दरवाज़े खुले देखकर सोचा कि कैदी भाग गए हैं, इसलिए उसने अपनी तलवार खींची और अपनी जान लेनेवाला था। 28 मगर पौलुस ने ऊँची आवाज़ में पुकारकर कहा: “अपनी जान न ले, क्योंकि हम सब यहीं हैं!” 29 तब जेलर ने दीपक मँगवाए और लपककर अंदर आया और थर-थर काँपता हुआ पौलुस और सीलास के पैरों पर गिर पड़ा। 30 वह उन्हें बाहर ले आया और उनसे कहा: “साहिबो, उद्धार पाने के लिए मुझे क्या करना होगा?” 31 उन्होंने कहा: “प्रभु यीशु पर विश्वास कर, तो तू और तेरा सारा घराना भी उद्धार पाएगा।” 32 पौलुस और सीलास ने उसे और उसके घर के सभी लोगों को यहोवा का वचन सुनाया। 33 और जेलर रात को उसी घड़ी उन्हें अपने साथ ले गया और उनके घाव धोए, तब उसने और उसके घराने के सब लोगों ने बिना देर किए बपतिस्मा लिया। 34 फिर वह उन्हें अपने घर ले आया और उनके सामने मेज़ सजायी और उसने अपने पूरे घराने के साथ इस बात पर बड़ा आनंद मनाया कि अब वह परमेश्वर का विश्वासी बन गया है।
35 जब दिन निकला, तो नगर-अधिकारियों ने अपने प्यादों के हाथ यह संदेश भेजा: “उन आदमियों को रिहा कर दो।” 36 तब जेलर ने उनकी बात पौलुस को बतायी: “नगर-अधिकारियों ने इस संदेश के साथ आदमी भेजे हैं कि तुम दोनों को रिहा कर दिया जाए। इसलिए अब तुम बाहर निकलकर शांति से अपने रास्ते चले जाओ।” 37 मगर पौलुस ने उनसे कहा: “पहले तो उन्होंने हमें जो रोमी नागरिक हैं, बिना कोई जुर्म साबित किए सरेआम पिटवाया और कैदखाने में डाल दिया और अब चुपचाप यहाँ से निकल जाने के लिए कह रहे हैं? नहीं, ऐसा हरगिज़ नहीं होगा! उन्हें खुद आकर हमें यहाँ से बाहर निकालना होगा।” 38 प्यादों ने जाकर ये बातें नगर-अधिकारियों को बतायीं। जब अधिकारियों ने सुना कि ये आदमी रोमी नागरिक हैं, तो वे बहुत डर गए। 39 इसलिए वे आए और उन्हें मनाने लगे, और उन्हें बाहर लाकर उनसे गुज़ारिश की कि वे शहर छोड़कर चले जाएँ। 40 मगर वे कैदखाने से निकलकर लुदिया के घर गए और जब वे भाइयों से मिले, तो उनकी हिम्मत बँधायी और फिर वहाँ से विदा हो गए।
17 अब वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया शहरों से होते हुए थिस्सलुनीके शहर आए, जहाँ यहूदियों का एक सभा-घर था। 2 पौलुस अपने रिवाज़ के मुताबिक उस सभा-घर में गया और उसने तीन सब्त तक पवित्र शास्त्र से उन यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क किया, 3 और वह शास्त्र से हवाले दे-देकर समझाता रहा और इस बात का सबूत देता रहा कि मसीह के लिए दुःख उठाना और मरे हुओं में से जी उठना ज़रूरी था। वह कहता था: “यही है वह मसीह, वह यीशु जिसका मैं तुम्हें प्रचार कर रहा हूँ।” 4 नतीजा यह हुआ कि उनमें से कुछ विश्वासी बन गए और पौलुस और सीलास के साथ संगति करने लगे। इनके अलावा, परमेश्वर की भक्ति करनेवाले यूनानियों की एक बड़ी भीड़ ने भी विश्वास किया और उनके साथ हो ली। इनमें कई नामी स्त्रियाँ भी थीं।
5 मगर यह देखकर यहूदी जलन से भर गए और अपने साथ बाज़ार के कुछ आवारा बदमाशों को लेकर एक दल बना लिया और शहर भर में हंगामा करने लगे। उन्होंने भाई यासोन के घर पर धावा बोल दिया ताकि पौलुस और सीलास को इस पागल भीड़ के हवाले कर दें। 6 मगर जब ढूँढ़ने पर उन्हें पौलुस और सीलास वहाँ न मिले, तो उन्होंने यासोन और कुछ और भाइयों को पकड़ लिया और उन्हें घसीटकर नगर-अधिकारियों के पास ले गए और चिल्ला-चिल्लाकर उन पर यह इलज़ाम लगाते रहे: “जिन आदमियों ने सारी दुनिया में उथल-पुथल मचा रखी है, वे अब यहाँ भी आ पहुँचे हैं 7 और यासोन ने उन्हें अपने घर में मेहमान ठहराया है। ये सब आदमी सम्राट* के आदेशों के खिलाफ बगावत करते हैं और कहते हैं कि कोई दूसरा राजा है, जिसका नाम यीशु है।” 8 यह सब कहकर उन्होंने भीड़ को और नगर-अधिकारियों को बेहद भड़का दिया। 9 इसलिए, नगर-अधिकारियों ने यासोन और बाकियों को तब तक न छोड़ा जब तक उन्होंने ज़मानत के तौर पर उनसे भारी रकम न ले ली।
10 तब भाइयों ने रात में ही पौलुस और सीलास, दोनों को फौरन बिरीया शहर भेज दिया और वहाँ पहुँचने पर वे यहूदियों के सभा-घर में गए। 11 बिरीया के लोग तो थिस्सलुनीके के लोगों से ज़्यादा भले और खुले मन के थे क्योंकि उन्होंने मन की बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच करते रहे कि जो बातें वे सुन रहे थे वे ऐसी ही लिखी हैं या नहीं। 12 इसलिए उनमें से बहुत-से विश्वासी बन गए। इसी तरह, कई इज़्ज़तदार यूनानी स्त्रियाँ और पुरुष भी विश्वासी बन गए। 13 मगर जब थिस्सलुनीके के यहूदियों को पता चला कि पौलुस ने बिरीया में भी परमेश्वर के वचन का प्रचार किया है, तो वे वहाँ भी आ गए और जनता को भड़काने और हुल्लड़ मचाने लगे। 14 इस पर भाइयों ने फौरन पौलुस को विदा किया कि वह वहाँ से बहुत दूर समुद्र किनारे चला जाए, मगर सीलास और तीमुथियुस वहीं बिरीया में रह गए। 15 और पौलुस को पहुँचानेवाले भाई उसे एथेन्स शहर तक ले गए। पौलुस ने उन्हें सीलास और तीमुथियुस के लिए यह आज्ञा देकर विदा किया कि वे जल्द-से-जल्द उसके पास एथेन्स चले आएँ।
16 जब पौलुस एथेन्स में उनका इंतज़ार कर रहा था, तब उसने देखा कि पूरा शहर मूरतों से भरा हुआ है। यह देखकर उसका जी* जल उठा। 17 इसलिए उसने यहूदियों के सभा-घर में जाकर उनके साथ और परमेश्वर का डर माननेवाले दूसरे लोगों के साथ शास्त्र से तर्क-वितर्क करना शुरू कर दिया। साथ ही, हर दिन बाज़ार में उसे जो भी मिलता था उसके साथ वह इसी तरह तर्क-वितर्क करता था। 18 मगर इपिकूरी और स्तोइकी दार्शनिकों में से कुछ पौलुस से बहस करने लगे। उनमें से कुछ कहते थे: “यह बकबक करनेवाला हमसे क्या कहना चाहता है?” दूसरे कहते थे: “यह तो कोई विदेशी देवताओं का प्रचारक मालूम होता है।” यह उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि पौलुस, यीशु की और मरे हुओं के जी उठने की खुशखबरी सुना रहा था। 19 तब ये लोग उसे अपने साथ अरियुपगुस* ले गए और कहने लगे: “क्या हम जान सकते हैं कि तू यह जो नयी शिक्षा सिखा रहा है वह क्या है? 20 क्योंकि तू हमें ऐसी नयी बातें बता रहा है जो हमारे कानों को अजीब लगती हैं। इसलिए हम जानना चाहते हैं कि इन सब बातों का क्या मतलब है।” 21 दरअसल, एथेन्स के सभी लोग और वहाँ आनेवाले विदेशी अपना फुरसत का वक्त किसी और काम में नहीं बल्कि कुछ-न-कुछ नया सुनने या सुनाने में बिताते थे। 22 तब पौलुस अरियुपगुस के बीच खड़ा हुआ और उनसे कहने लगा:
“एथेन्स के लोगो, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में दूसरों से बढ़कर देवताओं के भक्त हो।* 23 मिसाल के लिए, जब मैं यहाँ से गुज़र रहा था और उन चीज़ों पर गौर कर रहा था जिनकी तुम पूजा करते हो, तो मैंने एक वेदी देखी जिस पर लिखा था, ‘अनजाने परमेश्वर के लिए।’ इसलिए तुम जिस परमेश्वर की अनजाने में भक्ति कर रहे हो, मैं उसी का तुम्हें प्रचार कर रहा हूँ। 24 जिस परमेश्वर ने पूरे विश्व और उसकी सब चीज़ों को बनाया, वही परमेश्वर आकाश और धरती का मालिक* है। वह हाथ के बनाए मंदिरों में नहीं रहता, 25 न ही वह इंसान के हाथों अपनी सेवा करवाता है, मानो उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो, क्योंकि वह खुद सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है। 26 और उसने एक ही इंसान से सारी जातियाँ बनायीं कि वे सारी धरती पर रहें और उनका वक्त ठहराया और उनके रहने की हदें तय कीं 27 कि वे परमेश्वर को ढूँढ़ें और उसकी खोज करें और वाकई उसे पा भी लें, क्योंकि सच तो यह है कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है। 28 क्योंकि उसी से हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं, जैसा तुम्हारे कुछ कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी की संतान हैं।’
29 इसलिए यह जानते हुए कि हम परमेश्वर की संतान हैं, हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर सोने या चाँदी या पत्थर जैसा है या इंसान की कल्पना और कला से गढ़ी गयी किसी चीज़ जैसा है। 30 सच है कि परमेश्वर ने उस वक्त को नज़रअंदाज़ किया है जब लोग अज्ञानता में थे। मगर अब वह हर जगह के सब लोगों को यह आदेश दे रहा है कि वे पश्चाताप करें। 31 क्योंकि उसने एक दिन तय किया है जिसमें वह सच्चाई से सारे जगत का न्याय एक ऐसे आदमी के ज़रिए करनेवाला है जिसे उसने ठहराया है। परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा कर सब इंसानों के लिए एक गारंटी दे दी है।”
32 जब उन्होंने मरे हुओं के जी उठने के बारे में सुना, तो कुछ लोग उसकी खिल्ली उड़ाने लगे, जबकि दूसरों ने कहा: “हम फिर कभी इस बारे में तुझसे और ज़्यादा सुनेंगे।” 33 इस पर पौलुस उनके बीच से निकल गया। 34 मगर कुछ आदमी उसके साथ हो लिए और विश्वासी बन गए, इनमें अरियुपगुस की अदालत का एक न्यायी, दियुनिसियुस और दमरिस नाम की एक स्त्री और इनके अलावा और भी लोग थे।
18 इसके बाद पौलुस एथेन्स से निकला और कुरिंथ शहर आया। 2 कुरिंथ में उसे अक्विला नाम का एक यहूदी मिला, जिसका जन्म पुन्तुस इलाके में हुआ था। वह हाल ही में अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इटली से आया था, क्योंकि सम्राट क्लौदियुस ने सभी यहूदियों को रोम से निकल जाने का हुक्म दिया था। पौलुस, अक्विला और प्रिस्किल्ला के पास गया। 3 पौलुस का और उनका पेशा एक ही था, इसलिए वह उनके घर में रहने और उनके साथ काम करने लगा। वे तंबू बनाया करते थे। 4 पौलुस हर सब्त के दिन सभा-घर में भाषण देता और यहूदियों और यूनानियों को दलीलें देकर कायल करता था।
5 जब सीलास और तीमुथियुस, दोनों मकिदुनिया से आ गए, तो पौलुस और भी ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार करने में पूरी तरह लग गया और यहूदियों को गवाही दे-देकर साबित करने लगा कि यीशु ही मसीह है। 6 मगर जब वे लगातार पौलुस के संदेश का विरोध करते रहे और उसके बारे में बुरी-बुरी बातें कहनी न छोड़ीं, तो उसने अपना पल्ला झाड़ते हुए उनसे कहा: “तुम्हारा खून तुम्हारे ही सिर पर पड़े। मैं निर्दोष हूँ। अब से मैं गैर-यहूदियों के पास जाऊँगा।” 7 फिर वह अपनी जगह बदलकर तितुस युस्तुस नाम के एक आदमी के घर रहने लगा, जो परमेश्वर का उपासक था और जिसका घर सभा-घर से सटा हुआ था। 8 सभा-घर का अधिकारी क्रिसपुस और उसका पूरा घराना पौलुस का संदेश सुनकर प्रभु में विश्वासी बन गया। और कुरिंथ के बहुत-से लोग भी यह संदेश सुनकर विश्वास लाए और उन्होंने बपतिस्मा लिया। 9 इतना ही नहीं रात में प्रभु, पौलुस को एक दर्शन में दिखायी दिया और उससे कहा: “मत डर, और प्रचार किए जा, चुप मत रह। 10 इस शहर में मेरे बहुत-से लोग हैं जिन्हें इकट्ठा करना बाकी है। इसलिए मैं तेरे साथ हूँ और कोई भी इंसान तुझ पर हमला कर तुझे चोट न पहुँचा सकेगा।” 11 इसलिए पौलुस डेढ़ साल तक वहीं रहा और उनके बीच परमेश्वर का वचन सुनाता रहा।
12 फिर जिस दौरान गल्लियो, अखया* प्रांत का राज्यपाल था, तब यहूदी एकजुट होकर पौलुस पर चढ़ आए और उसे न्याय-आसन के सामने ले गए। 13 वे उस पर यह इलज़ाम लगाने लगे: “यह आदमी सरकारी कानून के खिलाफ जाकर किसी और तरीके से परमेश्वर की उपासना करने के लिए लोगों को कायल कर रहा है।” 14 मगर इससे पहले कि पौलुस कुछ बोलता, राज्यपाल गल्लियो ने यहूदियों से कहा: “यहूदियो, अगर यह मामला किसी अन्याय या बड़े अपराध का होता, तो वाजिब होता कि मैं सब्र के साथ तुम्हारी बात सुनूं। 15 लेकिन अगर ये झगड़े तुम्हारे अपने कानून को लेकर हैं और शब्दों और नामों के बारे में हैं, तो तुम्हीं जानो। मैं इन बातों में तुम्हारा न्यायी नहीं बनना चाहता।” 16 यह कहकर उसने यहूदियों को न्याय-आसन के सामने से निकलवा दिया। 17 फिर उन सभी ने सभा-घर के अधिकारी सोस्थिनेस को पकड़ लिया और न्याय-आसन के सामने उसे पीटने लगे। मगर गल्लियो ने इस पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया।
18 फिर भी, पौलुस वहाँ और भी कई दिन ठहरा और इसके बाद उसने भाइयों से विदा ली। उसने किंख्रिया* में अपने बाल कटवाए, क्योंकि उसने मन्नत मानी थी। फिर वह समुद्री जहाज़ से सीरिया प्रांत के लिए रवाना हो गया और प्रिस्किल्ला और अक्विला भी उसके साथ थे। 19 सफर के दौरान, वे इफिसुस आए और वह प्रिस्किल्ला और अक्विला को वहीं छोड़कर खुद वहाँ के सभा-घर में गया और यहूदियों के साथ तर्क-वितर्क कर उन्हें समझाने लगा। 20 हालाँकि वे उससे कुछ और वक्त वहीं रहने की बिनती करते रहे, फिर भी वह नहीं माना 21 मगर यह कहकर उनसे विदा ली: “अगर यहोवा ने चाहा तो मैं तुम्हारे पास दोबारा आऊँगा।” और वह इफिसुस से समुद्री यात्रा पर निकल पड़ा 22 और कैसरिया आया। और फिर वह यरूशलेम जाकर वहाँ की मंडली से मिला और उन्हें नमस्कार किया और वहाँ से अंताकिया* शहर गया।
23 अंताकिया में कुछ वक्त बिताने के बाद, पौलुस वहाँ से रवाना हुआ और गलातिया प्रांत और फ्रूगिया देश का दौरा करते हुए शहर-शहर जाकर सभी चेलों की हिम्मत बँधाता रहा।
24 अपुल्लोस नाम का एक यहूदी, जिसका जन्म सिकंदरिया शहर में हुआ था, इफिसुस आया। वह बात करने में माहिर था और शास्त्र का बहुत अच्छा ज्ञान रखता था। 25 इस आदमी को यहोवा का मार्ग ज़बानी तौर पर सिखाया गया था, और क्योंकि वह पवित्र शक्ति के तेज से भरपूर था, इसलिए वह यीशु के बारे में सही-सही बातें बोलता और सिखाता था। मगर उसे सिर्फ उस बपतिस्मे की जानकारी थी जिसका यूहन्ना ने प्रचार किया था। 26 यह आदमी सभा-घर में बेधड़क होकर बोलने लगा। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने उसकी बातें सुनी, तो उन्होंने उसे अपनी संगति में ले लिया और उसे परमेश्वर के मार्ग की बारीकियों की और भी सही समझ दी। 27 और अपुल्लोस की इच्छा थी कि वह उस पार अखया प्रांत जाए, इसलिए भाइयों ने वहाँ के चेलों को चिट्ठी लिखकर उन्हें बढ़ावा दिया कि वे उसका प्यार से स्वागत करें। अखया पहुँचने के बाद, अपुल्लोस ने उन लोगों की बहुत मदद की जिन्होंने परमेश्वर की महा-कृपा की वजह से विश्वास किया था, 28 क्योंकि उसने सरेआम और बड़े दमदार तरीके से यहूदियों को पूरी तरह से गलत साबित किया और शास्त्र से साफ-साफ दिखाया कि यीशु ही मसीह था।
19 जिस दौरान अपुल्लोस कुरिंथ में था, पौलुस तटीय इलाकों से दूर अंदर के इलाकों का दौरा करता हुआ इफिसुस शहर आया और वहाँ उसने कुछ चेले पाए। 2 उसने उनसे पूछा: “जब तुम विश्वासी बने तब क्या तुमने पवित्र शक्ति पायी?” उन्होंने कहा: “हमने इस बारे में कभी कुछ नहीं सुना कि पवित्र शक्ति कैसे पायी जाती है।” 3 तब पौलुस ने कहा: “तो फिर, तुमने किस तरह का बपतिस्मा पाया?” उन्होंने कहा: “यूहन्ना का।” 4 पौलुस ने कहा: “यूहन्ना ने पश्चाताप दिखानेवाला बपतिस्मा दिया था और लोगों को बताया कि उसके बाद जो आनेवाला है उस पर, हाँ यीशु पर विश्वास करें।” 5 यह सुनने पर, उन्होंने प्रभु यीशु के नाम से बपतिस्मा लिया। 6 और जब पौलुस ने उन पर अपने हाथ रखे, तो उन पर पवित्र शक्ति आयी और वे अलग-अलग भाषाओं में बोलने और भविष्यवाणी करने लगे। 7 ये करीब बारह आदमी थे।
8 फिर पौलुस तीन महीने तक इफिसुस के सभा-घर में जा-जाकर निडरता से बोलता रहा और परमेश्वर के राज के बारे में भाषण देकर कायल करता रहा। 9 मगर जब कुछ लोगों ने खुद को कठोर कर लिया और विश्वास नहीं किया, और लोगों के सामने प्रभु के मार्ग को बदनाम करने लगे, तो उसने उन्हें छोड़ दिया और चेलों को उनसे अलग कर लिया। वह हर दिन तरन्नुस के स्कूल के सभा-भवन में भाषण दिया करता था। 10 ऐसा दो साल तक चलता रहा, और इससे एशिया ज़िले में रहनेवाले हर किसी ने, चाहे वह यहूदी हो या यूनानी, प्रभु का वचन सुना।
11 परमेश्वर, पौलुस के हाथों बड़े-बड़े शक्तिशाली काम करवाता रहा। 12 यहाँ तक कि उसके शरीर को छूनेवाले कपड़े और रुमाल बीमारों के पास ले जाए जाते थे और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थीं और जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे वे उनमें से बाहर निकल जाते थे। 13 मगर यहूदियों में से कुछ लोग ऐसे थे जो जगह-जगह घूमकर दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने का काम किया करते थे। उन्होंने भी कोशिश की कि जिनमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे उन पर प्रभु यीशु का नाम लेकर यह कहें: “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम से हुक्म देता हूँ जिसका प्रचार पौलुस करता है।” 14 स्कीवा नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात बेटे ऐसा ही कहते हुए एक आदमी में समाए दुष्ट स्वर्गदूत को निकालने की कोशिश कर रहे थे। 15 मगर उस दुष्ट स्वर्गदूत ने उन्हें जवाब दिया: “मैं यीशु को भी जानता हूँ और पौलुस को भी; मगर तुम कौन हो?” 16 यह कहकर वह आदमी उन पर झपटा और एक-एक कर उन सातों को धर दबोचा और उन पर इस कदर हावी हो गया कि वे नंगे और ज़ख्मी हालत में उस घर से भागे। 17 यह बात इफिसुस में रहनेवाले यहूदियों और यूनानियों, सबको पता चली; और उन सब पर डर छा गया और प्रभु यीशु का नाम महिमा पाता गया। 18 और विश्वास करनेवालों में से बहुत-से आते थे और वे सरेआम अपने बुरे काम मान लिया करते थे और इनके बारे में खुलकर बताया करते थे। 19 वाकई, बहुत-से लोग जो जादूगरी की विद्या में लगे हुए थे, अपनी-अपनी पोथियाँ ले आए और सबके सामने उन्हें जला दिया। और जब उन्होंने उनका हिसाब लगाया तो उनकी कीमत पचास हज़ार चाँदी के सिक्के निकली। 20 इस तरह बड़े शक्तिशाली तरीके से यहोवा का वचन बढ़ता और प्रबल होता गया।
21 यह सब होने के बाद, पौलुस ने अपने मन में ठाना कि वह मकिदुनिया और अखया का दौरा करने के बाद यरूशलेम के सफर पर निकलेगा। उसने कहा: “वहाँ पहुँचने के बाद मुझे रोम भी जाना होगा।” 22 और उसने अपनी सेवा करनेवालों में से दो भाइयों यानी तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया भेजा, मगर वह खुद कुछ वक्त के लिए एशिया ज़िले* में रुका रहा।
23 उसी दौरान, इफिसुस में प्रभु के मार्ग को लेकर बड़ा हुल्लड़ मचा। 24 वहाँ देमेत्रियुस नाम का एक आदमी था, जो चाँदी का काम करनेवाला सुनार था। वह अरतिमिस के मंदिर की चाँदी की प्रतिमाएँ बनवाकर कारीगरों का बहुत मुनाफा करवाता था। 25 उसने इन कारीगरों को और ऐसा ही काम करनेवाले दूसरे लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा: “लोगो, तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस कारोबार से हमारी कितनी कमाई होती है। 26 और तुमने यह भी देखा और सुना है कि कैसे न सिर्फ इफिसुस में, बल्कि एशिया के करीब-करीब पूरे ज़िले में इस पौलुस ने भारी तादाद में लोगों को कायल किया है और उन्हें यह कहकर दूसरे मत की तरफ फेर दिया है कि जो हाथ के बनाए हुए हैं वे ईश्वर हैं ही नहीं। 27 और इससे न सिर्फ इस बात का खतरा है कि हमारे इस पेशे की बदनामी होगी बल्कि यह भी कि महान देवी अरतिमिस के मंदिर की शान खत्म हो जाएगी। और जिस देवी को एशिया का सारा ज़िला और सारा जगत पूजता है, उसका ऐश्वर्य मिट्टी में मिल जाएगा।” 28 यह सुनने पर लोग आग-बबूला हो उठे और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे: “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”
29 तब शहर में बड़ा हुल्लड़ मच गया और वे सब इकट्ठे रंगशाला में घुस गए और अपने साथ मकिदुनिया के रहनेवाले गयुस और अरिस्तरखुस को ज़बरदस्ती ले गए। ये दोनों पौलुस के सफरी साथी थे। 30 पौलुस तो चाहता था कि वह खुद अंदर लोगों के सामने जाए, मगर चेलों ने उसे जाने नहीं दिया। 31 यहाँ तक कि त्योहारों और खेलों के कुछ प्रबंधकों ने, जो पौलुस का भला चाहते थे, उसे पैगाम भेजा और यह बिनती की कि वह रंगशाला में जाने का जोखिम न उठाए। 32 और ऐसा हुआ कि भीड़ में कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ; क्योंकि सभा में गड़बड़ी मची हुई थी और उनमें से ज़्यादातर को यह पता नहीं था कि आखिर वे क्यों जमा हुए हैं। 33 इसलिए भीड़ में से कुछ लोगों ने मिलकर सिकंदर को आगे कर दिया और यहूदियों ने उसे सामने की तरफ धकेल दिया; और सिकंदर ने अपने हाथ से इशारा किया और लोगों को अपनी तरफ से सफाई देनी चाही। 34 मगर जब उन्होंने उसे पहचान लिया कि वह एक यहूदी है, तो वे सब एक साथ ललकार उठे और दो घंटे तक चिल्लाते रहे: “इफिसियों की देवी अरतिमिस महान है!”
35 आखिर में नगर-प्रमुख ने भीड़ को शांत किया और उनसे कहा: “इफिसुस के लोगो, इस दुनिया में ऐसा कौन है जो यह न जानता हो कि इफिसियों का शहर, महान अरतिमिस के मंदिर और आकाश से गिरी मूरत का रखवाला है? 36 इसलिए जबकि इन बातों को कोई काट ही नहीं सकता, तो यह ज़रूरी है कि तुम शांत रहो और जल्दबाज़ी में कोई कदम न उठाओ। 37 क्योंकि तुम ऐसे आदमियों को पकड़ लाए हो, जो न तो मंदिरों के लुटेरे हैं, न ही हमारी देवी को बदनाम करनेवाले हैं। 38 इसलिए अगर देमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों का किसी के साथ कोई झगड़ा है, तो ऐसे मामलों के लिए तय दिनों पर अदालत लगती है और राज्यपाल भी हैं। वे वहाँ जाकर एक-दूसरे के खिलाफ इलज़ाम लगाएँ। 39 लेकिन, अगर इनके खिलाफ तुम्हारे दूसरे कोई इलज़ाम हैं, तो इनका फैसला जनता की सभा में किया जाना चाहिए। 40 क्योंकि आज के इस मामले को लेकर हम पर देशद्रोह का इलज़ाम लगने का खतरा है, इसलिए कि हमारे पास ऐसी एक भी वजह नहीं कि हम हुल्लड़ मचानेवाली ऐसी भीड़ को इकट्ठा होने दें।” 41 जब वह ये बातें कह चुका, तब उसने सभा बरखास्त कर दी।
20 जब हुल्लड़ थम गया, तो पौलुस ने चेलों को बुलवाया और उनका हौसला बढ़ाने के बाद उन्हें अलविदा कहा और मकिदुनिया के सफर पर निकल पड़ा। 2 उन इलाकों का दौरा करते वक्त उसने बहुत-सी बातें कहकर वहाँ के चेलों का हौसला बढ़ाया और फिर वह यूनान आया। 3 वहाँ तीन महीने रहने के बाद, जब वह समुद्री जहाज़ पर सीरिया के लिए रवाना होने पर था, तो यहूदियों ने उसके खिलाफ साज़िश रची, इसलिए उसने मकिदुनिया से होते हुए लौटने का मन बनाया। 4 उसके साथ बिरीया के पुर्रुस का बेटा सोपत्रुस, थिस्सलुनीकियों में से अरिस्तरखुस और सिकुंदुस और दिरबे का गयुस और तीमुथियुस और एशिया ज़िले से तुखिकुस और त्रुफिमुस हो लिए। 5 ये आगे निकल गए और त्रोआस शहर में हमारा इंतज़ार कर रहे थे। 6 मगर हम बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के दिनों के बाद फिलिप्पी से समुद्री यात्रा पर निकले और पाँच दिन के अंदर उनके पास त्रोआस पहुँचे; और हमने वहाँ सात दिन बिताए।
7 हफ्ते के पहले दिन जब हम खाना खाने के लिए इकट्ठा हुए, तो पौलुस जमा हुए लोगों को उपदेश देने लगा क्योंकि वह अगले दिन वहाँ से निकलने पर था। वह आधी रात तक भाषण देता रहा। 8 ऊपर के जिस कमरे में हम इकट्ठा थे वहाँ बहुत-से दीए जल रहे थे। 9 युतुखुस नाम का एक जवान, खिड़की पर बैठा हुआ था। जब पौलुस देर तक बातें करता रहा, तो वह जवान गहरी नींद सो गया और नींद के झोंके में तीसरी मंज़िल से नीचे गिर पड़ा और जब उसे उठाया गया, तो वह मर चुका था। 10 मगर पौलुस सीढ़ियाँ उतरकर नीचे गया और उस पर झुककर उससे लिपट गया और भाइयों से कहा: “शांत हो जाओ, क्योंकि यह अब ज़िंदा हो गया है।” 11 इसके बाद वह ऊपर गया और उसने रोटी तोड़कर खाना शुरू किया और काफी देर तक उनसे बातें करता रहा, जब तक कि उजाला न हो गया और फिर उसने उनसे विदा ली। 12 और वे उस लड़के को ले गए और उसे ज़िंदा पाकर उन्हें इतना दिलासा मिला जिसका बयान नहीं किया जा सकता।
13 इसके बाद हम पहले निकले और जहाज़ पर चढ़कर अस्सुस के लिए रवाना हुए। वहाँ हमें पौलुस को भी अपने साथ जहाज़ पर लेना था, क्योंकि उसने हमें ऐसा करने की हिदायतें देने के बाद खुद पैदल जाने का इरादा किया था। 14 और जब वह अस्सुस में हमसे आ मिला, तो हमने उसे अपने साथ जहाज़ पर चढ़ाया और मितुलेने गए। 15 अगले दिन हम वहाँ से जहाज़ पर निकले और खियुस के सामने पहुँचे, मगर दूसरे दिन जहाज़ ने सामुस में कुछ वक्त के लिए लंगर डाला और फिर अगले दिन हम मीलेतुस पहुँचे। 16 पौलुस ने तय किया था कि वह इफिसुस में रुके बिना आगे बढ़ जाएगा ताकि उसे एशिया ज़िले में और वक्त न बिताना पड़े। वह इसलिए जल्दी कर रहा था कि हो सके तो पिन्तेकुस्त के त्योहार के दिन तक यरूशलेम पहुँच जाए।
17 मगर उसने मीलेतुस से इफिसुस में कहलवा भेजा और वहाँ की मंडली के बुज़ुर्गों को बुलवा लिया। 18 जब वे उसके पास आए तो उसने उनसे कहा: “तुम अच्छी तरह जानते हो कि एशिया ज़िले में कदम रखने के पहले दिन से मैं कैसे सारा वक्त तुम्हारे ही साथ रहा। 19 मैं मन के बड़े दीन स्वभाव से और आँसू बहा-बहाकर और यहूदियों की साज़िशों की वजह से आयी परीक्षाओं को झेलते हुए प्रभु का दास बनकर सेवा करता रहा। 20 इस दौरान मैं तुम्हें ऐसी कोई भी बात बताने से न चूका जो तुम्हारे फायदे की थी, न ही तुम्हें सरेआम और घर-घर जाकर सिखाने से रुका। 21 मगर मैंने यहूदी और यूनानी, दोनों को परमेश्वर के सामने पश्चाताप करने और हमारे प्रभु यीशु में विश्वास करने के बारे में अच्छी तरह गवाही दी। 22 और अब देखो, मैं पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन के मुताबिक यरूशलेम जाने के लिए विवश हूँ, हालाँकि मैं नहीं जानता कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगी। 23 मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि हर शहर में पवित्र शक्ति ने बार-बार गवाही देकर मुझ पर ज़ाहिर किया कि कैद और क्लेश मेरी राह तक रहे हैं। 24 फिर भी, मैं अपनी जान को ज़रा भी कीमती नहीं समझता कि इसकी परवाह करूँ, बस इतना चाहता हूँ कि मैं किसी तरह अपनी दौड़ पूरी कर सकूँ और अपनी सेवा पूरी कर सकूँ। यही सेवा जो मुझे प्रभु यीशु से मिली थी कि परमेश्वर की महा-कृपा के बारे में खुशखबरी की अच्छी गवाही दूँ।
25 और अब देखो! मैं जानता हूँ कि तुम सब जिनके बीच मैंने राज का प्रचार किया, मेरा मुँह फिर न देखोगे। 26 इसलिए आज के दिन तुम इस बात के गवाह हो कि मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ। 27 क्योंकि मैं तुम्हें परमेश्वर की सारी मरज़ी बताने से नहीं रुका। 28 तुम अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो जिसके बीच पवित्र शक्ति ने तुम्हें निगरानी करनेवाले ठहराया है कि तुम परमेश्वर की उस मंडली की चरवाहों की तरह देखभाल करो जिसे उसने अपने बेटे के लहू से मोल लिया है। 29 मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद अत्याचारी भेड़िए तुम्हारे बीच घुस आएँगे और झुंड के साथ कोमलता से पेश नहीं आएँगे, 30 और तुम्हारे ही बीच में से ऐसे आदमी उठ खड़े होंगे जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।
31 इसलिए जागते रहो और याद रखो कि तीन साल तक, रात-दिन आँसू बहा-बहाकर मैंने तुममें से हरेक को समझाना-बुझाना न छोड़ा। 32 और अब मैं तुम्हें परमेश्वर के और उसकी महा-कृपा के वचन के हवाले सौंपता हूँ। यह वचन तुम्हें मज़बूत कर सकता है और सब पवित्र जनों के बीच विरासत दिला सकता है। 33 मैंने किसी की चाँदी या सोने या कपड़े का लालच नहीं किया। 34 तुम खुद यह बात जानते हो कि मेरे इन्हीं हाथों ने न सिर्फ मेरी बल्कि मेरे साथियों की ज़रूरतों को भी पूरा किया है। 35 मैंने सब बातों में तुम्हें यह कर दिखाया है ताकि तुम भी इसी तरह मेहनत करते हुए उन लोगों की मदद करो जो कमज़ोर हैं, और प्रभु यीशु के ये शब्द हमेशा याद रखो जो उसने खुद कहे थे, ‘लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।’ ”
36 जब पौलुस ये बातें कह चुका, तो उसने उन सबके साथ घुटने टेके और प्रार्थना की। 37 तब वे सब फूट-फूटकर रोने लगे और पौलुस के गले लगकर उसे प्यार से चूमने लगे। 38 वे खासकर पौलुस की इस बात से दुःखी हो गए थे कि वे फिर कभी उसका मुँह न देखेंगे। फिर वे उसे जहाज़ तक विदा करने आए।
21 हमने भारी दिल से उनसे विदा ली और अपनी समुद्री यात्रा शुरू की। हम बड़ी तेज़ी से सीधे कोस द्वीप पहुँचे, फिर दूसरे दिन रुदुस द्वीप आए और वहाँ से पतरा बंदरगाह। 2 वहाँ हमें एक जहाज़ मिला जो सीधे समुद्र पार फीनीके जा रहा था, हम उस पर सवार होकर वहाँ से रवाना हुए। 3 रास्ते में हमें कुप्रुस द्वीप दिखायी दिया जो हमारी बायीं तरफ था। उसे पीछे छोड़ते हुए हम सीरिया की तरफ बढ़ते गए और सोर के बंदरगाह पहुँचकर वहाँ जहाज़ से उतरे, क्योंकि वहाँ जहाज़ का माल उतारा जाना था। 4 वहाँ हमने ढूँढ़कर पता लगाया कि चेले कहाँ रहते हैं और हम सात दिन तक उन्हीं के यहाँ ठहरे। मगर पवित्र शक्ति ने जो ज़ाहिर किया था उसकी वजह से चेलों ने पौलुस से बार-बार कहा कि वह यरूशलेम में कदम न रखे। 5 जब वहाँ ठहरने के दिन पूरे हुए, तो हम वहाँ से निकले और अपने सफर पर चल पड़े; मगर सारे भाई, स्त्रियों और बच्चों के साथ हमें शहर के बाहर तक विदा करने आए। और समुद्र के किनारे हमने घुटने टेककर प्रार्थना की 6 और एक-दूसरे को अलविदा कहने के बाद हम अपने जहाज़ पर चढ़ गए और वे अपने घरों को लौट गए।
7 फिर हम सोर से निकले और समुद्री रास्ते से पतुलिमयिस शहर के बंदरगाह पहुँचे। वहाँ हम भाइयों से मिले और एक दिन उनके साथ रहे। 8 अगले दिन हम वहाँ से निकलकर कैसरिया पहुँचे और प्रचारक* फिलिप्पुस के घर गए। फिलिप्पुस उन सात योग्य पुरुषों में से एक था जिनका अच्छा नाम था, और हम उसके यहाँ ठहरे। 9 इस आदमी की चार कुँवारी बेटियाँ थीं जो भविष्यवाणी करती थीं। 10 फिर जब हम वहाँ काफी दिन रहे, तो यहूदिया से अगबुस नाम का एक भविष्यवक्ता वहाँ आया 11 वह हमारे पास आया और उसने पौलुस का कमर-बंध लिया और उससे अपने हाथ-पैर बाँधकर कहा: “पवित्र शक्ति यह कहती है, ‘जिस आदमी का यह कमर-बंध है, उसे यहूदी इसी तरीके से यरूशलेम में बाँधेंगे और दूसरी जातियों के लोगों के हवाले कर देंगे।’” 12 जब हमने यह सुना, तो हम और उस जगह के लोग भी पौलुस से मिन्नतें करने लगे कि वह यरूशलेम न जाए। 13 इस पर पौलुस ने जवाब दिया: “तुम यह क्या कर रहे हो, तुम क्यों रो-रोकर मेरा दिल कमज़ोर कर रहे हो? यकीन मानो, मैं प्रभु यीशु के नाम की खातिर यरूशलेम में न सिर्फ बंदी होने के लिए बल्कि मारे जाने के लिए भी तैयार हूँ।” 14 जब वह अपनी बात से न टला, तो हम यह कहकर चुप हो गए: “यहोवा की मरज़ी पूरी हो।”
15 उन दिनों के बाद हमने सफर की तैयारी की और यरूशलेम जाने के लिए निकल पड़े। 16 कैसरिया में से कुछ चेले भी हमारे संग हो लिए कि हमें कुप्रुस के मनासोन के घर ले जाएँ जिसके यहाँ हमें ठहरना था। वह शुरू के चेलों में से एक था। 17 जब हम यरूशलेम पहुँचे, तो भाइयों ने खुशी-खुशी हमारा स्वागत किया। 18 मगर अगले दिन पौलुस हमारे साथ याकूब से मिलने गया और सभी बुज़ुर्ग वहाँ मौजूद थे। 19 पौलुस ने उन्हें नमस्कार किया और उन सभी कामों का ब्यौरा देने लगा, जो परमेश्वर ने उसकी सेवा के ज़रिए गैर-यहूदियों के बीच किए थे।
20 यह सुनकर वे परमेश्वर की महिमा करने लगे और उन्होंने पौलुस से कहा: “भाई, तू देख रहा है कि यहूदियों में हज़ारों ने विश्वास किया है। उन सब में मूसा का कानून मानने का जोश है। 21 मगर उन्होंने तेरे बारे में ये अफवाहें सुनी हैं कि तू दूसरी जातियों के बीच रहनेवाले सब यहूदियों को परमेश्वर की उन शिक्षाओं के खिलाफ बगावत करना* सिखा रहा है जो उसने हमें मूसा के ज़रिए सौंपी थीं। तू उनसे कहता है कि न तो अपने बच्चों का खतना करें न ही सदियों से चले आ रहे उन रिवाज़ों को मानें जिनका सख्ती से पालन किया जाता है। 22 अब इस बारे में क्या किया जाए? चाहे कुछ भी हो, लोगों को तो पता चल ही जाएगा कि तू यहाँ आया हुआ है। 23 इसलिए हम जो तुझसे कह रहे हैं वह कर: हमारे यहाँ चार आदमी ऐसे हैं जिन्होंने मन्नत मानी है। 24 तू इन आदमियों को साथ ले जा और उनके साथ जैसा मूसा के कानून में बताया गया है उसके मुताबिक खुद को शुद्ध कर और उनका खर्च उठा कि वे अपना सिर मुंड़ाएँ। ऐसा करने से हर कोई जान लेगा कि तेरे बारे में उन्होंने जो अफवाहें सुनी थीं वे सच नहीं हैं, बल्कि तू मूसा के कानून को मानता है और उसके मुताबिक ठीक चाल चलता है। 25 जहाँ तक दूसरी जातियों के विश्वासियों की बात है, हमने अपना फैसला उन्हें लिख भेजा है कि वे मूरतों के आगे बलि की हुई चीज़ों से, साथ ही लहू से और गला घोंटे हुए जानवरों के माँस से और व्यभिचार से हमेशा दूर रहें।”
26 तब पौलुस अगले दिन उन आदमियों को ले गया और मूसा के कानून के मुताबिक उनके साथ खुद को शुद्ध किया और मंदिर के अंदर यह बताने गया कि कानून के मुताबिक शुद्ध किए जाने के दिन कब पूरे होने हैं और कब उनमें से हरेक के लिए बलिदान चढ़ाए जाने चाहिए।
27 जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो एशिया से आए यहूदियों ने उसे मंदिर में देखा और भीड़ को भड़काकर उसे पकड़ लिया 28 और चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगे: “इस्राएल के लोगो, हमारी मदद करो! यही वह आदमी है जो हर कहीं, हर किसी को हमारे लोगों और मूसा के कानून और इस जगह के खिलाफ शिक्षा देता है। और-तो-और, यह यूनानियों को इस मंदिर में लाया है और इसने इस पवित्र जगह को दूषित कर दिया है।” 29 ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि उन्होंने पहले, इफिसुस के त्रुफिमुस को उसके साथ शहर में देखा था और उन्हें लगा कि पौलुस उसे मंदिर के अंदर ले आया था। 30 तब सारे शहर में हो-हल्ला होने लगा और लोग इकट्ठा होकर मंदिर की तरफ दौड़ पड़े। उन्होंने पौलुस को धर-दबोचा और उसे घसीटते हुए मंदिर के बाहर ले गए। उसी घड़ी दरवाज़े बंद कर दिए गए। 31 जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो रोमी पलटन के सेनापति* को खबर मिली कि सारे यरूशलेम में हाहाकार मचा हुआ है। 32 तब वह फौरन सैनिकों और सेना-अफसरों को लेकर नीचे उनके पास सरपट दौड़ा। जब यहूदियों ने सेनापति और उसके सैनिकों को देखा, तो पौलुस को पीटना बंद कर दिया।
33 तब सेनापति पास आया और पौलुस को पकड़कर सैनिकों को हुक्म दिया कि उसे दो ज़ंजीरों से बाँध दिया जाए। फिर वह पूछताछ करने लगा कि वह कौन है और उसने क्या किया है। 34 मगर भीड़ में कोई कुछ चिल्लाता तो कोई कुछ। जब वह इस हंगामे की वजह से पौलुस के बारे में ठीक-ठीक नहीं जान पाया, तो उसने हुक्म दिया कि पौलुस को सैनिकों के दुर्ग में लाया जाए। 35 मगर जब पौलुस सीढ़ियों पर पहुँचा, तो भीड़ ऐसी हिंसक हो उठी कि सैनिकों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। 36 क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई पीछे-पीछे आ रही थी: “इसे मार डालो!”*
37 जब सैनिक उसे अपने दुर्ग में ले जाने पर थे, तो पौलुस ने सेनापति से कहा: “क्या मुझे तुझसे कुछ कहने की इजाज़त है?” उसने कहा: “क्या तू यूनानी बोल सकता है? 38 क्या तू वह मिस्री नहीं जिसने कुछ दिन पहले बगावत की आग भड़कायी थी और चार हज़ार कटारबंद आदमियों को वीराने में ले गया था?” 39 तब पौलुस ने कहा: “मैं दरअसल एक यहूदी हूँ और किलिकिया के तरसुस शहर का नागरिक हूँ और वह कोई छोटा शहर नहीं है। इसलिए मैं तुझ से बिनती करता हूँ कि मुझे इन लोगों से बात करने की इजाज़त दे।” 40 उसके इजाज़त देने के बाद, पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े-खड़े अपने हाथ से लोगों को शांत होने का इशारा किया। जब चारों तरफ सन्नाटा छा गया, तो पौलुस इब्रानी भाषा में उनसे बात करने लगा और उसने कहा:
22 “भाइयो और पिता-समान बुज़ुर्गो, अब मैं अपनी सफाई में जो तुमसे कहता हूँ वह सुनो।” 2 (जब उन्होंने पौलुस को इब्रानी भाषा में बात करते सुना, तो वे और भी शांत हो गए और उसने कहा:) 3 “मैं एक यहूदी हूँ। मेरा जन्म किलिकिया के तरसुस शहर में हुआ था। मगर मैंने यहाँ यरूशलेम शहर में खुद गमलीएल से* शिक्षा पायी और हमारे बापदादों के कानून की एक-एक बारीकी का मुझे सख्ती से पालन करना सिखाया गया। मैं परमेश्वर की सेवा में बहुत जोशीला था, जैसे आज तुम सब हो। 4 और मैं इस मार्ग के माननेवाले सबको, चाहे वे स्त्री हों या पुरुष, गिरफ्तार कर कैद में डलवाता था। मैंने उन पर बहुत ज़ुल्म ढाए यहाँ तक कि उन्हें मरवा डालता था। 5 मैं जो कह रहा हूँ इसकी गवाही महायाजक और बुज़ुर्गों की पूरी सभा दे सकती है। मैंने उनसे दमिश्क के यहूदी भाइयों के नाम चिट्ठियाँ भी माँगी थीं। वहाँ इस मार्ग के माननेवाले जो थे उनको मैं गिरफ्तार कर यरूशलेम लाने के लिए निकल पड़ा था ताकि उन्हें सज़ा दिलाऊँ।
6 मगर जब मैं सफर करते-करते दमिश्क के पास आ पहुँचा, तो दोपहर के करीब अचानक आकाश से तेज़ रौशनी मेरे चारों तरफ चमक उठी, 7 और मैं ज़मीन पर गिर पड़ा और एक आवाज़ सुनी जो मुझसे कह रही थी, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है?’ 8 मैंने जवाब दिया, ‘हे प्रभु तू कौन है?’ और उसने मुझसे कहा, ‘मैं यीशु नासरी हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है।’ 9 जो आदमी मेरे साथ थे, उन्हें रौशनी तो दिखायी दे रही थी मगर उन्हें मुझसे बात करनेवाली आवाज़ के शब्द समझ नहीं आ रहे थे। 10 तब मैंने कहा, ‘प्रभु मैं क्या करूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा, ‘उठ और दमिश्क में जा और वहाँ वे सारे काम तुझे बताए जाएँगे जो तेरे लिए ठहराए गए हैं।’ 11 मगर मैं उस रौशनी की चमक की वजह से कुछ देख नहीं पा रहा था, इसलिए जो मेरे साथ थे उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर मुझे दमिश्क पहुँचाया।
12 वहाँ हनन्याह नाम का एक आदमी था जो परमेश्वर के कानून पर चलनेवाला एक भक्त इंसान था और वहाँ रहनेवाले सभी यहूदी उसकी तारीफ किया करते थे। 13 वह मेरे पास आकर खड़ा हुआ और मुझसे कहा: ‘शाऊल, मेरे भाई, आँखों की रौशनी पा!’ और उसी घड़ी मैंने मुँह उठाकर उसकी तरफ देखा। 14 उसने कहा: ‘हमारे बापदादों के परमेश्वर ने तुझे चुना है कि तू उसकी मरज़ी को जाने और उस नेक जन को देखे और उसके मुँह का वचन सुने, 15 क्योंकि तू उसकी तरफ से सब इंसानों के सामने उन बातों का गवाह होगा जो तू ने देखी और सुनी हैं। 16 और अब तू देर क्यों करता है? उठ और बपतिस्मा ले और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो ले।’
17 मगर जब मैं यरूशलेम लौटकर मंदिर में प्रार्थना कर रहा था, तो मैंने एक दर्शन देखा।* 18 और मैंने उसे देखा जो मुझसे कह रहा था, ‘जल्दी कर और फौरन यरूशलेम से निकल जा, क्योंकि वे मेरे बारे में तेरी गवाही नहीं मानेंगे।’ 19 तब मैंने कहा, ‘प्रभु, वे खुद जानते हैं कि मैं तुझ पर विश्वास करनेवालों को कैद में डालता था और एक-एक सभा-घर में जाकर उन्हें पीटता था। 20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का खून बहाया जा रहा था, तब मैं भी वहीं पास खड़ा था और उस हत्या का समर्थन कर रहा था और उसे मारनेवालों के कपड़ों की रखवाली कर रहा था।’ 21 फिर भी उसने मुझसे कहा, ‘तू उठ और जा, क्योंकि मैं तुझे दूर-दूर के गैर-यहूदियों के पास भेजूँगा।’”
22 भीड़ के लोग अब तक पौलुस की बात सुन रहे थे, मगर फिर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए कहने लगे: “ऐसे आदमी का धरती से नामो-निशान मिटा दो, क्योंकि यह ज़िंदा रहने के लायक नहीं है!” 23 और क्योंकि वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर अपने चोगे यहाँ-वहाँ हवा में उछाल रहे थे और धूल उड़ा रहे थे, 24 तो सेनापति ने हुक्म दिया कि पौलुस को सैनिकों के दुर्ग में लाया जाए और कहा कि उसे कोड़े लगाकर पूछताछ करो ताकि मैं ठीक-ठीक जान सकूँ कि ये लोग क्यों इसके खिलाफ इस कदर चिल्ला रहे हैं। 25 मगर जब सैनिकों ने उसे कोड़े लगाने के लिए बाँध दिया, तो पौलुस ने वहाँ खड़े सेना-अफसर से कहा: “क्या यह कानून के हिसाब से जायज़ है कि तुम लोग एक ऐसे आदमी को कोड़े लगाओ जो रोमी नागरिक है और जिसका जुर्म साबित नहीं हुआ है?” 26 जब सेना-अफसर ने यह सुना, तो वह सेनापति के पास गया और उसे यह कहते हुए खबर दी: “यह तू क्या करना चाहता है? यह आदमी तो एक रोमी नागरिक है।” 27 तब सेनापति ने पौलुस के पास आकर उससे पूछा: “मुझे बता, क्या तू रोमी नागरिक है?” उसने कहा: “हाँ।” 28 सेनापति ने कहा: “मैंने बड़ी रकम देकर नागरिक होने के ये अधिकार खरीदे हैं।” पौलुस ने कहा: “मगर मेरे पास तो ये जन्म से ही हैं।”
29 तब फौरन वे आदमी जो उसे मार-पीटकर पूछताछ करनेवाले थे, उसके पास से हट गए और सेनापति यह जानकर डर गया कि उसने एक रोमी को बंदी बनाया है।
30 इसलिए अगले दिन, यह सच्चाई जानने के इरादे से कि यहूदी क्यों उस पर इलज़ाम लगा रहे थे, उसने पौलुस के बंधन खोल दिए और प्रधान याजकों और पूरी महासभा* को इकट्ठा होने का हुक्म दिया। और वह पौलुस को नीचे लाया और उनके बीच उसे खड़ा किया।
23 पौलुस ने महासभा* की तरफ टकटकी लगाकर देखा और कहा: “भाइयो, मैंने आज के दिन तक परमेश्वर के सामने बिलकुल साफ ज़मीर से ज़िंदगी बितायी है।” 2 इस पर महायाजक हनन्याह ने, उसके पास जो खड़े थे, उन्हें पौलुस के मुँह पर थप्पड़ मारने का हुक्म दिया। 3 तब पौलुस ने उससे कहा: “अरे कपटी,* तुझ पर परमेश्वर की मार पड़ेगी। तू कानून के मुताबिक मेरा न्याय करने बैठा है और साथ ही मुझे मारने का हुक्म देकर उसी कानून को तोड़ भी रहा है?” 4 तब वहाँ खड़े लोगों ने कहा: “क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा कहता है?” 5 तब पौलुस ने कहा: “भाइयो, मुझे मालूम नहीं था कि यह महायाजक है। क्योंकि लिखा है, ‘तू अपने लोगों के अधिकारी के लिए बुरा बोल न बोलना।’”
6 जब पौलुस ने गौर किया कि उनमें से एक दल सदूकियों का है और दूसरा फरीसियों का, तो वह महासभा में बड़ी ज़ोर से पुकारकर कहने लगा: “भाइयो, मैं एक फरीसी हूँ, और फरीसियों का बेटा हूँ। मरे हुओं के फिर से जी उठने की आशा को लेकर मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है।” 7 जब उसने यह कहा, तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा और सभा में फूट पड़ गयी। 8 क्योंकि सदूकी कहते हैं कि न तो मरे हुए जी उठते हैं, न स्वर्गदूत होते हैं, और न स्वर्ग के प्राणी, मगर फरीसी इन सब पर विश्वास करते हैं और इनके बारे में सिखाते हैं। 9 इसलिए वहाँ बड़ी चीख-पुकार मच गयी और फरीसियों के दल के कुछ शास्त्री उठे और यह कहकर ज़बरदस्त तकरार करने लगे: “हमें इस आदमी में कोई बुराई नज़र नहीं आती; क्या पता स्वर्ग से किसी ने या किसी स्वर्गदूत ने उससे बात की हो, —।” 10 जब झगड़ा हद-से-ज़्यादा बढ़ गया, तो सेनापति ने इस डर से कि कहीं वे पौलुस की बोटियाँ न नोच लें, सैनिकों के दल को हुक्म दिया कि वे नीचे जाकर पौलुस को उनके बीच से जबरन छुड़ाएँ और सैनिकों के दुर्ग में ले आएँ।
11 मगर उसी रात प्रभु पौलुस के पास आ खड़ा हुआ और उससे कहा: “हिम्मत रख! क्योंकि जैसे तू यरूशलेम में मेरे बारे में अच्छी तरह गवाही देता रहा है, उसी तरह रोम में भी तुझे गवाही देनी है।”
12 जब दिन निकला, तो यहूदियों ने एक साज़िश रची और यह कसम खायी कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें तब तक अगर हम अन्न या जल कुछ भी लें, तो हम पर शाप पड़े। 13 चालीस से ज़्यादा आदमियों ने यह कसम खाकर साज़िश रची थी। 14 वे प्रधान याजकों और बुज़ुर्गों के पास गए और उनसे कहा: “हमने कसम खायी है कि जब तक हम पौलुस को मार नहीं डालते अगर उससे पहले एक निवाला भी खाएँ तो हम पर शाप पड़े। 15 इसलिए अब तुम लोग महासभा के साथ मिलकर सेनापति को यह समझाओ कि पौलुस को नीचे तुम्हारे पास ले आए, मानो तुम उससे जुड़े मामलों का और भी सही-सही जायज़ा लेना चाहते हो। मगर हम उसके यहाँ पहुँचने से पहले ही उसका काम तमाम करने के लिए तैयार रहेंगे।”
16 लेकिन, पौलुस के भाँजे ने यह सुन लिया कि वे घात लगाकर बैठेंगे और उसने सैनिकों के दुर्ग में जाकर पौलुस को इसकी खबर दी। 17 इस पर पौलुस ने एक सेना-अफसर को अपने पास बुलाकर उससे कहा: “इस नौजवान को सेनापति के पास ले जाओ, क्योंकि यह उसे एक खबर देना चाहता है।” 18 इसलिए यह अफसर उसे अपने साथ लेकर सेनापति के पास गया और उससे कहा: “कैदी पौलुस ने मुझे अपने पास बुलाया और मुझसे यह गुज़ारिश की कि इस नौजवान को तेरे पास ले आऊँ, क्योंकि यह तुझे कुछ बताना चाहता है।” 19 सेनापति उस नौजवान का हाथ पकड़कर उसे अलग ले गया और अकेले में उससे पूछने लगा: “तू मुझे क्या खबर देना चाहता है?” 20 उसने कहा: “यहूदियों ने मिलकर यह तय किया है कि तुझसे कल पौलुस को महासभा के सामने लाने की बिनती करें मानो वे उसके बारे में और सही-सही पता करना चाहते हैं। 21 चाहे कुछ भी हो जाए, तू उनकी बातों में न आना क्योंकि उनमें से चालीस से ज़्यादा आदमी पौलुस के लिए घात लगाए बैठे हैं और उन्होंने यह कसम खायी है कि जब तक वे पौलुस का खात्मा न कर दें तब तक अगर अन्न या जल कुछ भी लें, तो उन पर शाप पड़े। और अब वे तैयार हैं और तुझसे इजाज़त पाने का इंतज़ार कर रहे हैं।” 22 इसलिए सेनापति ने उस नौजवान को यह हुक्म देकर जाने दिया: “किसी के सामने बड़बड़ा मत देना कि तू ने मुझे ये बातें बतायी हैं।”
23 उसने दो सेना-अफसरों को बुलाया और उनसे कहा: “दो सौ सैनिक, सत्तर घुड़सवार और दो सौ भाला चलानेवाले तैयार रखो कि वे रात के तीसरे घंटे* कैसरिया के लिए कूच करें। 24 और पौलुस की सवारी के लिए घोड़े तैयार रखो कि वे उसे ले जाएँ और सही-सलामत राज्यपाल फेलिक्स तक पहुँचा दें।” 25 और उसने चिट्ठी लिखी जिसमें ये बातें थीं:
26 “महाप्रतापी राज्यपाल फेलिक्स को क्लौदियुस लूसियास का नमस्कार! 27 इस आदमी को यहूदियों ने पकड़ लिया था और वे इसे मारने पर थे, मगर मैंने अपने सैनिकों के दस्ते के साथ अचानक वहाँ पहुँचकर इसे बचा लिया, क्योंकि मुझे पता चला था कि यह एक रोमी नागरिक है। 28 मैं यह जानना चाहता था कि वे किस वजह से इस पर इलज़ाम लगा रहे हैं, इसलिए मैं इसे उनकी महासभा में ले गया। 29 मैंने पाया कि उनके कानून के सवालों को लेकर इस पर इलज़ाम लगाया गया था, मगर इस पर ऐसा कोई भी इलज़ाम नहीं था जिससे यह मौत की सज़ा पाने या कैद किए जाने के लायक ठहरे। 30 मगर मुझे खबर मिली कि इसके खिलाफ एक साज़िश रची गयी है, इसलिए मैं बिना देर किए इसे तेरे पास भेज रहा हूँ और मैंने मुद्दइयों को भी हुक्म दिया है कि तेरे सामने इसके खिलाफ अपने इलज़ाम बताएँ।”
31 इसलिए सैनिकों को जैसा हुक्म मिला था, वे पौलुस को रातोंरात अंतिपत्रिस शहर ले आए। 32 अगले दिन उन्होंने घुड़सवारों को उसके साथ आगे जाने दिया और वे खुद सैनिकों के दुर्ग लौट आए। 33 घुड़सवार कैसरिया में दाखिल हुए और उन्होंने राज्यपाल को चिट्ठी दी और पौलुस को भी उसके सामने पेश किया। 34 राज्यपाल ने चिट्ठी पढ़ी और पूछा कि पौलुस किस प्रांत का है और पता किया कि वह किलिकिया से है। 35 उसने पौलुस से कहा, “जब तेरे मुद्दई भी यहाँ आएँगे, तो मैं तुझे अपनी सफाई में बोलने का पूरा-पूरा मौका दूँगा।” और उसने हुक्म दिया कि उसे हेरोदेस के महल में पहरे में रखा जाए।
24 पाँच दिन बाद महायाजक हनन्याह कुछ बुज़ुर्गों और तिरतुल्लुस नाम के किसी वकील के साथ वहाँ आया और उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलुस के खिलाफ मुकदमा पेश किया। 2 जब उन्होंने तिरतुल्लुस को बोलने का इशारा किया, तो उसने यह कहते हुए पौलुस पर इलज़ाम लगाना शुरू किया:
“हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरी बदौलत हम बड़े अमन-चैन से हैं और तेरी दूरंदेशी की वजह से इस जाति में सुधार हो रहे हैं। 3 इनका फायदा हमें हर वक्त और हर जगह हो रहा है और इसके लिए हम तेरे बहुत एहसानमंद हैं। 4 मगर मैं तुझे और तकलीफ नहीं देना चाहता, इसलिए मैं तुझसे मिन्नत करता हूँ कि अगर तू कुछ देर के लिए हमारी सुने तो तेरी बड़ी मेहरबानी होगी। 5 हमने पाया है कि यह आदमी फसाद की जड़ है, और पूरी दुनिया में यहूदियों को बगावत के लिए भड़काता है और नासरियों के गुट का एक मुखिया है। 6 इसने मंदिर को अपवित्र करने की भी कोशिश की है और हमने इसे पकड़ा था। 7* —— 8 जिन बातों का हम इस पर इलज़ाम लगा रहे हैं, उन सबके बारे में तू खुद इससे पूछताछ कर पता लगा सकता है।”
9 इस पर वे यहूदी भी उसके खिलाफ बोलने लगे और दावा करने लगे कि ये बातें सही हैं। 10 और जब राज्यपाल ने सिर हिलाकर पौलुस को बोलने का इशारा किया, तो उसने जवाब दिया:
“यह जानते हुए कि तू कई सालों से इस जाति का न्यायी रहा है, मैं बड़ी खुशी से अपनी सफाई पेश कर रहा हूँ, 11 जैसा कि तू खुद भी इस बारे में मालूम कर सकता है कि मुझे उपासना के लिए यरूशलेम को गए बारह दिन से ज़्यादा नहीं हुए 12 और यहूदियों ने मुझे न तो मंदिर में किसी से बहस करते पाया, न ही सभा-घरों में या शहर में किसी भी जगह भीड़ को इकट्ठा करते पाया। 13 न ही वे उन बातों के सच होने का सबूत दे सकते हैं जिनका ये मुझ पर इस वक्त इलज़ाम लगा रहे हैं। 14 मगर मैं तेरे सामने यह स्वीकार करता हूँ कि जिस मार्ग को ये एक “गुट” कह रहे हैं, उसी के मुताबिक मैं अपने बापदादों के परमेश्वर की पवित्र सेवा कर रहा हूँ, क्योंकि मैं मूसा के कानून और भविष्यवक्ताओं की लिखी सारी बातों पर विश्वास करता हूँ। 15 और मैं परमेश्वर से आशा रखता हूँ, जैसे ये लोग खुद भी आशा रखते हैं कि अच्छे और बुरे,* दोनों तरह के लोग मरे हुओं में से जी उठेंगे।* 16 बेशक मैं इस मामले में अपना ज़मीर साफ रखने के लिए लगातार कड़ी मेहनत करता हूँ कि परमेश्वर और इंसानों के खिलाफ कोई अपराध न करूँ। 17 इसलिए कई सालों बाद मैं अपनी जाति के लिए दान देने और बलिदान चढ़ाने आया था। 18 जब मैं ये काम कर रहा था, तो उन्होंने मुझे मंदिर में मूसा के कानून के मुताबिक शुद्ध दशा में पाया, मगर न तो मेरे साथ कोई भीड़ थी, न ही मैं कोई दंगा कर रहा था। मगर वहाँ एशिया ज़िले के कुछ यहूदी मौजूद थे। 19 अगर उन्हें मेरे खिलाफ कुछ कहना था तो उन्हें यहाँ तेरे सामने हाज़िर होना चाहिए था और मुझ पर इलज़ाम लगाने चाहिए थे। 20 या फिर, ये लोग ही बताएँ कि जब मैं महासभा* के सामने खड़ा था तो इन्होंने मुझमें क्या बुरा पाया, 21 सिर्फ इस एक बात को छोड़कर जो मैंने इनके बीच खड़े होकर बुलंद आवाज़ में कही थी, ‘मरे हुओं के जी उठने को लेकर आज तुम्हारे सामने मुझ पर मुकदमा चलाया जा रहा है!’ ”
22 मगर फेलिक्स जो प्रभु के मार्ग के बारे में बहुत अच्छी तरह जानता था, उसने यह कहकर उन आदमियों को टाल दिया: “जब सेनापति लूसियास यहाँ आएगा तब मैं तुम्हारे इन मामलों का फैसला करूँगा।” 23 तब उसने सेना-अफसर को हुक्म दिया कि इस आदमी को हिरासत में रखा जाए और पहरे में कुछ रिआयत दी जाए और उसके लोगों में से जो कोई उसकी सेवा करना चाहता है, उनमें से किसी को भी न रोका जाए।
24 कुछ दिन बाद, फेलिक्स अपनी पत्नी द्रुसिल्ला को, जो यहूदिन थी, साथ लेकर आया और उसने पौलुस को बुलवाकर उससे मसीह यीशु में विश्वास करने के बारे में सुना। 25 लेकिन जब पौलुस नेकी और संयम और आनेवाले न्याय के बारे में बात करने लगा, तो फेलिक्स घबरा उठा और कहा: “फिलहाल तू जा, मगर जब मुझे सही मौका मिलेगा तब मैं दोबारा तुझे बुला लूँगा।” 26 लेकिन, साथ ही वह पौलुस से रिश्वत पाने की भी उम्मीद लगाए हुए था। इसलिए वह उसे और भी ज़्यादा बुला-बुलाकर उससे बातचीत किया करता था। 27 मगर जब दो साल बीत गए, तो फेलिक्स की जगह पुरकियुस फेस्तुस ने ले ली; और क्योंकि फेलिक्स यहूदियों को खुश करना चाहता था, इसलिए वह पौलुस को कैद में ही छोड़ गया।
25 प्रांत* की सत्ता सँभालने के तीन दिन बाद, फेस्तुस कैसरिया से यरूशलेम गया। 2 तब प्रधान याजकों और यहूदियों के नामी लोगों ने उसके सामने पौलुस के खिलाफ अपने इलज़ाम पेश किए। और वे उससे 3 बिनती करने लगे कि फेस्तुस, उस आदमी यानी पौलुस के खिलाफ उनकी तरफदारी करे और उसे यरूशलेम आने के लिए बुलवा भेजे, क्योंकि यहूदी रास्ते में ही पौलुस को मार डालने के लिए घात लगाए बैठे थे। 4 मगर फेस्तुस ने जवाब दिया कि पौलुस को कैसरिया में ही हिरासत में रखा जाना है और मैं खुद भी बहुत जल्द वहाँ जानेवाला हूँ। 5 उसने कहा: “इसलिए आप लोगों के जो बड़े अधिकारी हैं वे मेरे साथ चलें और इस आदमी ने अगर कुछ बुरा किया है, तो उस पर इलज़ाम लगाएँ।”
6 जब फेस्तुस उनके बीच आठ-दस दिन बिता चुका, तो वह कैसरिया आया और अगले दिन न्याय-आसन पर बैठा। उसने हुक्म दिया कि पौलुस को लाया जाए। 7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे वे उसे घेरकर खड़े हो गए और उस पर कई गंभीर इलज़ाम लगाने लगे जिनका वे कोई सबूत नहीं दे सकते थे।
8 मगर पौलुस ने अपने बचाव में कहा: “मैंने किसी के खिलाफ कोई पाप नहीं किया है, न यहूदियों के कानून के खिलाफ, न मंदिर के खिलाफ और न ही सम्राट के खिलाफ।” 9 फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने के इरादे से पौलुस को जवाब दिया: “तो क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि वहाँ मेरे सामने इन मामलों के बारे में तेरा न्याय किया जाए?” 10 मगर पौलुस ने कहा: “मैं सम्राट के न्याय-आसन के सामने खड़ा हूँ, मेरा न्याय यहीं किया जाना चाहिए। मैंने यहूदियों के साथ कुछ बुरा नहीं किया है, जैसा कि तुझे खुद अच्छी तरह मालूम हो रहा है। 11 अगर मैं वाकई अपराधी हूँ और मैंने मौत की सज़ा पाने लायक कोई अपराध किया है, तो मैं मरने से पीछे नहीं हटता; लेकिन दूसरी तरफ, अगर उन बातों में से एक भी सच नहीं है जिनका ये लोग मुझ पर इलज़ाम लगा रहे हैं, तो कोई भी आदमी उन्हें खुश करने के इरादे से मुझे उनके हवाले नहीं सौंप सकता। मैं सम्राट से फरियाद करता हूँ!” 12 तब फेस्तुस ने अपने सलाहकारों की सभा के साथ मशविरा करने के बाद उसे जवाब दिया: “तू ने सम्राट से फरियाद की है, तू सम्राट के पास जाएगा।”
13 कुछ दिन बीतने के बाद, राजा अग्रिप्पा* और बिरनीके, फेस्तुस का अभिवादन करने के लिए उससे मिलने कैसरिया आए। 14 उनके वहाँ कई दिन रहने के दौरान, फेस्तुस ने पौलुस का मामला राजा के सामने रखा और कहा:
“एक आदमी है जिसे फेलिक्स कैद में छोड़ गया है, 15 और जब मैं यरूशलेम में था तो प्रधान याजकों और यहूदियों के बाकी बुज़ुर्गों ने इसके बारे में मुझे जानकारी दी, और इसे सज़ा सुनाने के लिए मुझसे बिनती की। 16 मगर मैंने उन्हें यह जवाब दिया कि यह रोमी तरीका नहीं कि किसी मुलज़िम को उसके मुद्दइयों के सामने लाकर अपने बचाव में बोलने का मौका दिए बगैर उनके हवाले किया जाए ताकि वे खुश हों। 17 इसलिए जब वे यहाँ इकट्ठा हुए, तो मैं बिना देर किए अगले ही दिन न्याय-आसन पर बैठा और उस आदमी को लाने का हुक्म दिया। 18 जब मुद्दई खड़े हुए तो उन्होंने उस पर ऐसे किसी भी बुरे काम का इलज़ाम नहीं लगाया जिसकी मैंने उम्मीद की थी। 19 उनका झगड़ा बस अपने ईश्वर की उपासना और किसी यीशु को लेकर था, जो मर चुका है मगर जिसके बारे में पौलुस दावा करता रहा कि वह ज़िंदा है। 20 क्योंकि मुझे यह सूझ नहीं रहा था कि इस मामले का क्या करूँ, इसलिए मैंने उससे पूछा कि क्या वह यरूशलेम जाना चाहेगा ताकि वहाँ इन मामलों को लेकर उसका न्याय किया जाए। 21 मगर जब पौलुस ने फरियाद की कि उसका फैसला महामहिम* के हाथों हो और तब तक उसे वहीं पहरे में रखा जाए, तो मैंने हुक्म दिया कि जब तक मैं उसे सम्राट के पास न भेजूँ तब तक उसे वहीं रखा जाए।”
22 इस पर अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा: “मैं खुद इस आदमी की बात सुनना चाहूँगा।” फेस्तुस ने कहा: “तू कल उसे सुन सकेगा।” 23 इसलिए अगले दिन, अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम के साथ दरबार में आए और उनके साथ सेनापति और शहर के जाने-माने लोग भी वहाँ आए। और जब फेस्तुस ने हुक्म दिया, तो पौलुस को वहाँ लाया गया। 24 और फेस्तुस ने कहा: “राजा अग्रिप्पा और यहाँ मौजूद सभी सज्जनो, तुम उस आदमी को देख रहे हो जिसके खिलाफ सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला-चिल्लाकर मुझसे बिनती की है कि यह आदमी ज़िंदा रहने के लायक नहीं है। 25 मगर मैंने जान लिया कि इस आदमी ने ऐसा कुछ नहीं किया है कि इसे मौत की सज़ा दी जाए। इसलिए जब इस आदमी ने खुद महामहिम से फरियाद की, तो मैंने इसे भेजने का फैसला किया। 26 मगर इसके बारे में मेरे पास अपने स्वामी को लिखने लायक कोई पुख्ता बात नहीं है। इसलिए मैं इस आदमी को तुम सबके सामने, खासकर राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ, ताकि अदालती जाँच करने के बाद, मुझे इसके बारे में लिखने के लिए कुछ मिल सके। 27 क्योंकि मुझे यह बड़ा अजीब लगता है कि मैं एक कैदी को भेजूँ तो सही, मगर उस पर लगे इलज़ाम न बताऊँ।”
26 फिर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा: “तुझे अपने पक्ष में सफाई देने की इजाज़त है।” तब पौलुस ने अपना हाथ उठाया और अपने बचाव में यह कहने लगा:
2 “हे राजा अग्रिप्पा, यहूदियों ने मुझ पर जिन बातों का इलज़ाम लगाया है, उन सबके बारे में आज तेरे सामने अपना बचाव करने में मुझे बड़ी खुशी हो रही है, 3 खासकर इसलिए कि तू यहूदियों के सभी रिवाज़ों, साथ ही विवादों का बड़ा ज्ञानी है। इसलिए मैं तुझसे बिनती करता हूँ कि तू सब्र के साथ मेरी सुन ले।
4 वाकई, मैंने लड़कपन से अपने जाति-भाइयों के बीच और यरूशलेम में रहते वक्त जैसी ज़िंदगी बितायी है, उसके बारे में उन सभी यहूदियों को 5 मालूम है जो मुझे पहले से जानते हैं, और अगर वे चाहें तो इस बात की गवाही दे सकते हैं कि मैं अपने धर्म के सबसे कट्टर पंथ को मानते हुए, एक फरीसी की ज़िंदगी जीता था। 6 मगर अब उस आशा की वजह से जिसका वादा परमेश्वर ने हमारे बापदादों से किया था, मुझे यहाँ खड़ा कर मुझ पर मुकद्दमा चलाया जा रहा है। 7 जबकि हमारे बारह गोत्र इस वादे के पूरा होने की आशा लगाए हुए हैं, इसलिए वे रात-दिन बड़े जतन से परमेश्वर की पवित्र सेवा करते हैं। हे राजा, इसी आशा के बारे में यहूदियों ने मुझ पर इलज़ाम लगाए हैं।
8 परमेश्वर मरे हुओं को ज़िंदा करता है, इस बात को तुम लोग विश्वास के लायक क्यों नहीं समझते? 9 मैं भी वाकई ऐसा इंसान था, जो सोचा करता था कि यीशु नासरी के नाम का कड़े-से-कड़ा विरोध करना मेरा फर्ज़ है। 10 और यरूशलेम में मैंने ऐसा ही किया। मैंने प्रधान याजकों से अधिकार पाकर बहुत-से पवित्र जनों को कैदखानों में बंद किया और जब उन्हें मौत के घाट उतारा जाना होता, तो मैं उनके खिलाफ अपना समर्थन देता था। 11 और सभी सभा-घरों में उन्हें बार-बार सज़ा दिलाकर मैं उन्हें मजबूर करता था कि वे अपने विश्वास की निंदा करें और उसे त्याग दें। मैं उनके खिलाफ गुस्से से इस कदर पागल हो गया था कि दूसरे शहरों में भी जाकर उन पर ज़ुल्म ढाने लगा।
12 जब मैं इसी काम में लगा हुआ था और प्रधान याजकों से पूरा अधिकार और आज्ञा पाकर दमिश्क जा रहा था, 13 तो हे राजा, दोपहर के वक्त मैंने रास्ते में सूरज के तेज से कहीं बढ़कर तेज़ रौशनी को आकाश से चमकते देखा, जो मेरे और मेरे साथ चलनेवालों के चारों तरफ चमक उठी। 14 और जब हम सब ज़मीन पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में एक आवाज़ को मुझसे यह कहते सुना, ‘शाऊल, शाऊल, तू क्यों मुझ पर ज़ुल्म कर रहा है? इस तरह विरोध कर* तू अपने लिए मुश्किल पैदा कर रहा है।’ 15 मगर मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ और प्रभु ने कहा, ‘मैं यीशु हूँ, जिस पर तू ज़ुल्म कर रहा है। 16 मगर अब उठ और अपने पाँवों के बल खड़ा हो। क्योंकि मैंने इसीलिए तुझे दर्शन दिया है कि तुझे एक सेवक और उन बातों का गवाह ठहराऊँ जो तू ने देखी हैं और जो मैं तुझे अपने बारे में आगे भी दिखाऊँगा। 17 और मैं इस जाति और दूसरी जातियों के बीच तेरी हिफाज़त करूँगा, जिनके पास मैं तुझे भेज रहा हूँ। 18 जिससे कि तू उनकी आँखें खोले और उन्हें अंधकार से फेरकर उजाले में, और शैतान के अधिकार से फेरकर परमेश्वर के अधिकार में ले आए, ताकि वे मुझ पर विश्वास करने की वजह से पापों की माफी पा सकें और उनके साथ विरासत पा सकें जो पवित्र ठहराए गए हैं।’
19 इसलिए हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की आज्ञा न टाली, 20 मगर पहले दमिश्क के लोगों और फिर यरूशलेम के रहनेवालों और पूरे यहूदिया देश में और गैर-यहूदियों को यह संदेश देता रहा कि उन्हें पश्चाताप करना चाहिए और पश्चाताप के योग्य काम करते हुए परमेश्वर की तरफ फिरना चाहिए। 21 इन्हीं बातों की वजह से यहूदियों ने मुझे मंदिर में पकड़ लिया और मुझे मार डालने की कोशिश की। 22 मगर उस मदद की वजह से जो मुझे परमेश्वर से मिली है, मैं आज के दिन तक छोटे-बड़े सभी को गवाही देता रहा हूँ। मगर उन बातों के सिवा और कुछ नहीं कहता जो भविष्यवक्ताओं और मूसा ने भी कही थीं कि होनेवाली हैं। 23 यानी ये बातें कि मसीह को दुःख उठाना पड़ेगा और मरे हुओं में से जी उठाए जानेवालों में वही पहला होगा और इन लोगों और गैर-यहूदियों को प्रचार करेगा और रौशनी दिखाएगा।”
24 जब पौलुस अपने बचाव में ये बातें बोल ही रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँची आवाज़ में कहा: “अरे पौलुस, तेरा दिमाग खराब हो गया है, बहुत ज्ञान ने तुझे पागल कर दिया है!” 25 मगर पौलुस ने कहा: “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ, मगर मैं सच्चाई की और स्वस्थ मन की बातें कहता हूँ। 26 असल में मैं जिस राजा के सामने निडर होकर बात कर रहा हूँ, वह खुद भी इन बातों के बारे में अच्छी तरह जानता है; क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि इनमें से एक भी बात उससे छिपी नहीं है क्योंकि ये घटनाएँ किसी कोने में तो नहीं घटी हैं। 27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यवक्ताओं की बातों का विश्वास करता है? मैं जानता हूँ कि तू विश्वास करता है।” 28 मगर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा: “थोड़ी ही देर में तू मुझे मसीही बनने के लिए कायल कर देगा।” 29 इस पर पौलुस ने कहा: “परमेश्वर से मेरी यही कामना है कि चाहे थोड़ी देर में या ज़्यादा में, सिर्फ तू ही नहीं बल्कि जितने लोग आज मेरी सुन रहे हैं, सभी मेरी तरह बन जाएँ, बस इस तरह ज़ंजीरों में न हों।”
30 तब राजा अग्रिप्पा उठा और उसके साथ राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठे आदमी उठ खड़े हुए। 31 मगर जाते-जाते वे एक-दूसरे से कहने लगे: “यह आदमी ऐसा कुछ नहीं कर रहा है कि यह मौत की सज़ा पाए या कैद में डाला जाए।” 32 इतना ही नहीं, अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा: “अगर इस आदमी ने सम्राट से फरियाद न की होती, तो इसे रिहा किया जा सकता था।”
27 जैसा हमारे लिए तय किया गया था कि हम जहाज़ से इटली जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और दूसरे कुछ कैदियों को औगूस्तुस की टुकड़ी के सेना-अफसर, यूलियुस के हाथ सौंप दिया। 2 फिर हम अद्रमुत्तियुम के एक जहाज़ पर चढ़े जो एशिया ज़िले की किनारे की जगहों पर जानेवाला था और वहाँ से रवाना हुए। हमारे साथ अरिस्तरखुस नाम का एक मकिदूनी था जो थिस्सलुनीके का रहनेवाला था। 3 अगले दिन हमने सीदोन में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस को इंसानियत के नाते बड़ी दया दिखाते हुए उसे अपने दोस्तों के यहाँ जाकर उनसे सेवा-सत्कार पाने की इजाज़त दी।
4 वहाँ से लंगर उठाकर हम रवाना हुए और कुप्रुस की आड़ में होकर चले क्योंकि हवा का रुख हमारे खिलाफ था; 5 हम खुले समुद्र में किलिकिया और पमफूलिया के पास से होते हुए लूसिया के मूरा बंदरगाह में उतरे। 6 मगर वहाँ सेना-अफसर ने सिकंदरिया का एक जहाज़ देखा जो इटली जानेवाला था और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया। 7 इसके बाद, कई दिनों तक धीमी रफ्तार से बढ़ते हुए हम बड़ी मुश्किल से कनिदुस द्वीप पहुँचे, और हवा हमें सीधे आगे बढ़ने नहीं दे रही थी, इसलिए हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले। 8 और किनारे-किनारे बड़ी मुश्किल से खेते हुए हम उस जगह पहुँचे जो बढ़िया बंदरगाह कहलाती है, जहाँ से लसिया शहर पास था।
9 जब बहुत दिन हो गए यहाँ तक कि प्रायश्चित दिन* का उपवास भी बीत गया और समुद्र में यात्रा करना अब खतरे से खाली न था, तो पौलुस ने एक सलाह दी 10 और उनसे कहा: “सज्जनो, मुझे ऐसा लगता है कि आगे जहाज़ खेते रहने से न सिर्फ माल और जहाज़ का भारी नुकसान होगा, बल्कि हमें अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ेगा।” 11 मगर सेना-अफसर ने पौलुस की बातों पर ध्यान देने के बजाय जहाज़ के कप्तान और मालिक की बात मानी। 12 वह बंदरगाह, सर्दियाँ बिताने के लिए अच्छा नहीं था, इसलिए ज़्यादातर लोगों ने यह राय दी कि वहाँ से आगे रवाना हुआ जाए और हम किसी तरह फीनिक्स पहुँचकर वहाँ सर्दियाँ बिताएँ। फीनिक्स, क्रेते का एक बंदरगाह है जो उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व की तरफ खुलता है।
13 जब दक्षिणी हवा मंद-मंद बह रही थी, तो उन्हें लगा कि जैसा उन्होंने सोचा था वैसा ही हो जाएगा, और उन्होंने लंगर उठाया और क्रेते के किनारे-किनारे होकर जहाज़ आगे बढ़ाने लगे। 14 मगर ज़्यादा वक्त नहीं बीता था कि उत्तर-पूर्व से क्रेते द्वीप की तरफ एक बड़ी आँधी उठी जो यूरकुलीन कहलाती है और इसने द्वीप को अपनी चपेट में ले लिया। 15 और जहाज़ इस तूफान में घिर गया और आँधी को चीरकर आगे न बढ़ सका, इसलिए हमने लाचार होकर उसे हवा के रुख के साथ-साथ बहने दिया। 16 तब हम बहते-बहते कौदा नाम के एक छोटे द्वीप की आड़ में आ गए, फिर भी हम बहुत मुश्किल से जहाज़ के पिछले हिस्से में लगी डोंगी को काबू में कर सके। 17 मगर डोंगी को ऊपर खींचने के बाद, नाविक जहाज़ को ऊपर से नीचे तक रस्सों से लपेटकर बाँधने लगे और उथले पानी के नीचे रेत के दलदल* में धँस जाने के डर से उन्होंने पाल उतार दिया और जहाज़ को बहने दिया। 18 फिर भी जब आँधी की वजह से जहाज़ ज़बरदस्त हिचकोले खा रहा था, तो अगले दिन नाविक जहाज़ को हल्का करने के लिए समुद्र में माल फेंकने लगे। 19 तीसरे दिन, उन्होंने अपने ही हाथों से पाल चढ़ाने के रस्से समुद्र में फेंक दिए।
20 जब कई दिनों तक न सूरज निकला, न ही तारे दिखायी दिए, न ही इस ज़बरदस्त आँधी के थपेड़े थम रहे थे, तब हमारे बचने की सारी उम्मीदें खत्म होने लगीं। 21 और जब बहुत दिनों से किसी ने कुछ नहीं खाया, तब पौलुस ने उनके बीच खड़े होकर कहा: “सज्जनो, तुम्हें मेरी बात मान लेनी थी और क्रेते से आगे सफर नहीं करना चाहिए था, तब तुम्हें यह तकलीफ और नुकसान नहीं झेलना पड़ता। 22 पर अब भी मैं तुम्हें यह सलाह देता हूँ कि हिम्मत रखो, क्योंकि तुममें से किसी की जान का नुकसान नहीं होगा, सिवा जहाज़ के। 23 क्योंकि मैं जिस परमेश्वर का हूँ और जिसकी मैं पवित्र सेवा करता हूँ, उसका एक दूत रात को मेरे पास आया 24 और उसने मुझसे कहा, ‘हे पौलुस, मत डर। तू सम्राट के सामने ज़रूर खड़ा होगा और देख! जो लोग तेरे साथ जहाज़ में सफर कर रहे हैं, परमेश्वर ने तेरी खातिर दया दिखाकर उन सबकी जान भी बख्श दी है।’ 25 इसलिए हे लोगो, हिम्मत रखो; क्योंकि मुझे परमेश्वर पर विश्वास है कि जैसा मुझे बताया गया है बिलकुल वैसा ही होगा। 26 मगर, हमारा जहाज़ एक द्वीप के किनारे जा टूटेगा।”
27 जब चौदहवीं रात हुई और हम अद्रिया सागर में हिचकोले खा रहे थे, तो आधी रात को नाविकों को लगने लगा कि वे किसी तट के पास पहुँच गए हैं। 28 और जब उन्होंने पानी की गहराई जानने के लिए थाह नापी, तो पाया कि छत्तीस मीटर गहरा है और थोड़ी दूर जाकर फिर से नापने पर पाया कि सत्ताइस मीटर गहरा है। 29 और इस डर से कि हम कहीं चट्टानों से न जा टकराएँ, उन्होंने जहाज़ के पिछले हिस्से से चार लंगर डाले और दिन निकलने का इंतज़ार करने लगे। 30 मगर जब नाविकों ने जहाज़ से भाग निकलने के लिए, आगे के हिस्से से लंगर डालने के बहाने डोंगी को नीचे समुद्र में उतारा, 31 तो पौलुस ने सेना-अफसर और सैनिकों से कहा: “अगर ये आदमी जहाज़ में न रहे, तो तुम भी बच नहीं पाओगे।” 32 तब सैनिकों ने डोंगी के रस्से काट दिए और उसे समुद्र में गिर जाने दिया।
33 जब दिन निकलने पर था, तो पौलुस यह कहते हुए सबको समझा-बुझाकर खाने के लिए मनाने लगा: “आज चौदहवाँ दिन हो गया है और तुम इंतज़ार करते-करते भूखे रहे और तुमने कुछ नहीं खाया है। 34 इसलिए मेरी मानो और कुछ खा लो, क्योंकि मैं यह बात तुम्हारी ही सलामती के लिए कह रहा हूँ; क्योंकि तुम में से किसी का एक बाल भी बाँका न होगा।” 35 यह कहने के बाद उसने सबके देखते एक रोटी ली और परमेश्वर का धन्यवाद कर तोड़ी और खाने लगा। 36 तब उन सभी के चेहरे खिल उठे और वे खुद भी खाने लगे। 37 उस जहाज़ में हम सबको मिलाकर दो सौ छिहत्तर लोग थे। 38 जब उन्होंने भर-पेट खाया तो वे जहाज़ से गेहूँ समुद्र में फेंककर उसे हल्का करने लगे।
39 आखिरकार जब दिन निकला, तो वे उस जगह को पहचान न सके मगर उन्हें एक खाड़ी और उसका किनारा नज़र आया। वे हर हाल में उस किनारे पर जहाज़ को लगाना चाहते थे। 40 इसलिए उन्होंने लंगर के रस्से काट दिए और उन्हें समुद्र में गिरा दिया, साथ ही जहाज़ को खेनेवाले पतवारों के बंधन ढीले किए और आगे का पाल चढ़ाकर हवा के रुख में किनारे की तरफ बढ़ चले। 41 जब उनका जहाज़ रेत के ऐसे ढेर पर जा टिका जो दो समुद्रों की लहरों के टकराने से बना था, तो जहाज़ रेत में धँस गया और उसका अगला हिस्सा रेत में गड़ गया और हिल न सका, जबकि जहाज़ का पिछला हिस्सा लहरों के ज़बरदस्त थपेड़ों से चकनाचूर होने लगा। 42 इस पर सैनिकों ने तय कर लिया कि वे कैदियों को मार डालें ताकि कोई भी तैरकर भाग न जाए। 43 लेकिन सेना-अफसर ने पौलुस को बचाने के इरादे से उन्हें ऐसा करने से रोका। और हुक्म दिया कि जो कोई तैरकर किनारे पर पहुँच सकता है, वह समुद्र में कूद जाए और पहले किनारे पर जा पहुँचे, 44 और बाकी लोग जहाज़ के तख्तों और दूसरी चीज़ों के सहारे किनारे पहुँच जाएँ। और इस तरह सभी किनारे पर सही-सलामत पहुँच गए।
28 जब हम सही-सलामत किनारे पहुँच गए, तो हमें मालूम हुआ कि उस द्वीप का नाम माल्टा था। 2 वहाँ के लोगों ने, जो दूसरी भाषा बोलते थे, इंसानियत के नाते हम पर बहुत कृपा की और ठंड और बारिश की वजह से हमारे लिए आग जलायी और हम सबका प्यार से स्वागत किया। 3 मगर जब पौलुस ने लकड़ियों का एक गट्ठर बटोरकर आग पर रखा, तो आँच की वजह से गट्ठर के अंदर से एक ज़हरीला साँप निकला और पौलुस के हाथ से लिपट गया। 4 जब वहाँ के निवासियों* ने देखा कि एक ज़हरीला साँप उसके हाथ से लटक रहा है, तो वे एक-दूसरे से कहने लगे: “यह आदमी वाकई हत्यारा है, यह समुद्र से तो बच गया मगर इंसाफ ने इसकी जान नहीं बख्शी।” 5 मगर पौलुस ने अपना हाथ झटककर साँप को आग में झोंक दिया और पौलुस को कुछ नुकसान नहीं हुआ। 6 मगर लोगों को यह उम्मीद थी कि पौलुस का शरीर सूज जाएगा या फिर वह अचानक गिरकर मर जाएगा। मगर जब वे बहुत देर तक देखते रहे और उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ, तो उन्होंने अपनी राय बदल दी और कहने लगे कि वह ज़रूर कोई ईश्वर है।
7 उस जगह के पास, उस द्वीप के प्रधान पुबलियुस की ज़मीनें थीं। उसने आदर-सत्कार के साथ हमारा स्वागत किया और तीन दिन तक बड़े प्रेम-भाव से हमारी खातिरदारी की। 8 लेकिन ऐसा हुआ कि पुबलियुस का पिता बुखार और पेचिश से बेहाल था और बिस्तर से उठ नहीं पा रहा था। तब पौलुस उसके पास गया, उसके लिए प्रार्थना की, अपने हाथ उस पर रखे और उसे चंगा किया। 9 जब ऐसा हुआ, तो द्वीप के बाकी लोग भी जो बीमार थे वे उसके पास आने लगे और चंगे हुए। 10 फिर उन्होंने हमें कई तोहफे देकर हमारा सम्मान किया और जब हम जहाज़ पर चढ़कर जाने लगे, तो उन्होंने हमारी ज़रूरत के सामान का ढेर लगा दिया।
11 तीन महीने बाद हम सिकंदरिया के एक जहाज़ से रवाना हुए, जो सर्दियों के दौरान उसी द्वीप पर रुका हुआ था और उसकी निशानी थी, “ज़्यूस के बेटे।” 12 फिर हम सुरकूसा के बंदरगाह में लंगर डालकर तीन दिन वहीं रहे। 13 वहाँ से हम गोल घूमकर रेगियुम पहुँचे। और एक दिन बाद दक्षिणी हवा चली और हम दूसरे दिन पुतियुली आए। 14 यहाँ हमें भाई मिले और उन्होंने हमसे बिनती की कि उनके पास सात दिन ठहरें और इस तरह हम रोम के पास आए। 15 वहाँ से जब भाइयों ने हमारे आने की खबर सुनी, तो वे हमसे मिलने के लिए अपियुस के बाज़ार तक आ पहुँचे और तीन सराय तक भी आए। जैसे ही पौलुस की नज़र भाइयों पर पड़ी, तो उसने परमेश्वर को धन्यवाद दिया और हिम्मत पायी। 16 आखिरकार, जब हम रोम में दाखिल हुए, तो पौलुस को अकेला रहने की इजाज़त मिली, और उसके साथ उसकी पहरेदारी के लिए एक सैनिक रहता था।
17 मगर, तीन दिन बाद उसने यहूदियों के खास आदमियों को अपने यहाँ बुलाया। जब वे इकट्ठा हुए, तो वह उनसे कहने लगा: “भाइयो, मैंने अपने लोगों या अपने बापदादों के रीति-रिवाज़ के खिलाफ कुछ नहीं किया। फिर भी, यहूदियों ने मुझे यरूशलेम में कैदी बनाकर रोमियों के हाथों सौंप दिया। 18 उन्होंने जाँच-पड़ताल करने के बाद मुझे छोड़ देना चाहा, क्योंकि उन्होंने मुझे ऐसी किसी भी बात का कसूरवार नहीं पाया जिसके लिए मुझे मौत की सज़ा दी जाए। 19 मगर जब यहूदी मेरी रिहाई के खिलाफ बोलते रहे, तो मजबूरन मुझे सम्राट से फरियाद करनी पड़ी, लेकिन इसलिए नहीं कि मैं अपनी जाति पर कोई दोष लगाना चाहता था। 20 वाकई, इसी वजह से मैंने तुम्हें बुलाने और तुमसे बात करने की बिनती की है, क्योंकि इस्राएल की आशा की वजह से मैं इन ज़ंजीरों में कैद हूँ।” 21 उन्होंने पौलुस से कहा: “हमें तेरे बारे में न तो यहूदिया से चिट्ठियाँ मिली हैं, न ही वहाँ से आए किसी यहूदी भाई ने तेरे बारे में खबर दी या कुछ बुरा कहा। 22 मगर हमें लगता है कि जो भी तेरे विचार हैं वे तुझी से सुनना सही होगा, क्योंकि जहाँ तक हमें इस गुट के बारे में मालूम हुआ है, सब जगह लोग इसके खिलाफ ही बात करते हैं।”
23 उन्होंने उसके साथ एक दिन तय किया और भारी तादाद में उसके ठहरने की जगह पर इकट्ठा हुए। और पौलुस ने उन्हें सारी बात समझायी और परमेश्वर के राज के बारे में अच्छी तरह गवाही देने के लिए वह मूसा के कानून और भविष्यवक्ताओं की किताबों से यीशु के बारे में दलीलें देकर उन्हें कायल करता रहा और सुबह से शाम हो गयी। 24 और कुछ ने उसकी कही बातों पर विश्वास किया और दूसरों ने नहीं। 25 क्योंकि वे आपस में एकमत नहीं थे, इसलिए वे वहाँ से जाने लगे। इस पर पौलुस ने यह एक और बात कही:
“पवित्र शक्ति ने यशायाह भविष्यवक्ता के ज़रिए तुम्हारे बापदादों से बिलकुल सही 26 कहा था: ‘जाकर इन लोगों से कह: “तुम लोग सुनोगे और सुनते हुए भी न समझोगे; और देखोगे, और देखते हुए भी न देख पाओगे। 27 क्योंकि इन लोगों के दिल सख्त हो चुके हैं, और वे अपने कानों से सुनते तो हैं मगर सुनकर कुछ नहीं करते, और उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली हैं; ताकि वे कभी अपनी आँखों से न देख पाएँ और अपने कानों से न सुन पाएँ और न ही अपने दिलों से समझ पाएँ जिससे कि वे अपने कामों से फिरें और मैं उन्हें चंगा करूँ।” ’ 28 इसलिए तुम्हें यह मालूम हो कि परमेश्वर जिसके ज़रिए उद्धार करता है, उसका संदेश गैर-यहूदियों के पास भेजा गया है और वे ज़रूर इसे सुनेंगे।” 29* ——
30 तब पौलुस पूरे दो साल तक किराए के मकान में रहा और जो कोई उसके यहाँ आता था उसका बड़े प्यार से स्वागत करता था 31 और उनको परमेश्वर के राज का प्रचार करता था और प्रभु यीशु मसीह के बारे में बेझिझक और बिना किसी रुकावट के सिखाया करता था।
प्रेषि 1:2 या, “भेजे गए।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”
प्रेषि 1:5 बपतिस्मे का मतलब किसी को पानी में पूरी तरह डुबकी देना है। यह एक धार्मिक रस्म है।
प्रेषि 1:8 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
प्रेषि 1:12 यह करीब आधे मील की दूरी थी।
प्रेषि 1:18 ज़ाहिर है कि यहाँ वे हालात बताए गए हैं, जिनमें यहूदा ने खुद को फाँसी लगायी थी। मत्ती 27:5 से मिलाकर देखें।
प्रेषि 1:21 या, “अपना काम किया करता था।”
प्रेषि 1:22 या, “पुनरुत्थान।”
प्रेषि 1:24 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्त लेख 2 देखें।
प्रेषि 2:9 मसीही यूनानी शास्त्र में उस रोमी प्रांत को ‘एशिया ज़िला’ कहा गया है, जो एशिया माइनर के पश्चिमी हिस्से में था। इसका मतलब आज का एशिया महाद्वीप नहीं है।
प्रेषि 2:15 मत्ती 20:3 फुटनोट देखें।
प्रेषि 2:26 शाब्दिक, “मेरा शरीर आशा में वास करेगा।”
प्रेषि 2:27 यूनानी में “हेडिज़।” अतिरिक्त लेख 8 देखें।
प्रेषि 2:30 या, “उसकी जाँघों का फल।”
प्रेषि 2:31 या, “अभिषिक्त जन, मसीहा।” मत्ती 1:1 फुटनोट देखें।
प्रेषि 2:33 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
प्रेषि 2:35 शाब्दिक, “चौकी न बना दूँ।”
प्रेषि 3:1 मत्ती 20:5 दूसरा फुटनोट देखें।
प्रेषि 3:2 शाब्दिक, “दया के दान।”
प्रेषि 3:13 मत्ती 27:2 फुटनोट देखें।
प्रेषि 4:5 शास्त्री, यीशु के ज़माने में परमेश्वर के कानून का मतलब समझानेवाले और इसके शिक्षक थे।
प्रेषि 4:9 या, “इसका उद्धार हुआ है।”
प्रेषि 4:15 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
प्रेषि 4:26 या, “उसके मसीह।”
प्रेषि 4:27 लूका 3:1 फुटनोट देखें।
प्रेषि 5:11 मत्ती 16:18 दूसरा फुटनोट देखें।
प्रेषि 5:21 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
प्रेषि 5:28 या, यीशु।
प्रेषि 5:30 या, “पेड़।”
प्रेषि 6:12 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
प्रेषि 7:20 शाब्दिक, “परमेश्वर के सामने बेहद खूबसूरत था।”
प्रेषि 7:43 हो सकता है कि यह अम्मोनियों का देवता मोलेक हो। पहला राजा 11:7 देखें।
प्रेषि 7:44 या “निवास-स्थान।”
प्रेषि 7:48 या, “चीज़ों; जगहों।”
प्रेषि 7:51 या, “दिलों और कानों से खतनारहित हो।”
प्रेषि 7:59 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
प्रेषि 8:23 शाब्दिक, “तू एक ज़हरीला पित्त है।”
प्रेषि 8:37 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।
प्रेषि 9:2 या, “उनके हाथ बाँधकर।”
प्रेषि 9:21 शाब्दिक, “इस नाम के लेनेवालों।”
प्रेषि 10:1 या, “शतपति,” जिसकी कमान के नीचे सौ सैनिक होते थे।
प्रेषि 10:3 मत्ती 20:5 दूसरा फुटनोट देखें।
प्रेषि 10:9 मत्ती 20:5 पहला फुटनोट देखें।
प्रेषि 10:10 या, “उस पर बेसुधी छा गयी।”
प्रेषि 10:12 शाब्दिक, “चार-पैरोंवाले प्राणी।”
प्रेषि 10:30 मत्ती 20:5 दूसरा फुटनोट देखें।
प्रेषि 10:38 यूनानी में “दियाबोलोस,” जिसका मतलब है “निंदा करनेवाला।”
प्रेषि 10:45 शाब्दिक, “खतना किए हुए।”
प्रेषि 10:47 यानी, खतना किए हुए यहूदी मसीही।
प्रेषि 11:7 शाब्दिक, “इन्हें हलाल कर।”
प्रेषि 12:1 यानी, हेरोदेस अग्रिप्पा प्रथम।
प्रेषि 13:1 शाब्दिक, “नीगर।”
प्रेषि 13:7 रोमी सेनेट का एक प्रांतीय राज्यपाल।
प्रेषि 13:27 शाब्दिक, “शासक।”
प्रेषि 13:51 मत्ती 10:14 फुटनोट देखें।
प्रेषि 14:23 या, “प्राचीन।”
प्रेषि 14:27 शाब्दिक, “विश्वास का द्वार।”
प्रेषि 15:14 शाब्दिक, “सिमियन।”
प्रेषि 15:20 यानी, हर किस्म के नाजायज़ यौन-संबंध। अतिरिक्त लेख 4 देखें।
प्रेषि 15:20 या, “मारने के बाद जिसका खून निकल जाने न दिया गया हो।”
प्रेषि 15:34 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।
प्रेषि 16:14 या, बैंजनी रंग की डाई।
प्रेषि 16:19 बाज़ार का वह चौक, जहाँ लोग जमा होते थे।
प्रेषि 17:7 यूनानी में “कैसर।”
प्रेषि 17:16 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
प्रेषि 17:19 “प्राचीन एथेन्स की एक पहाड़ी, जहाँ सबसे बड़ी अदालत भी लगती थी।”
प्रेषि 17:22 शाब्दिक, “का भय मानते हो।”
प्रेषि 17:24 शाब्दिक, “प्रभु।”
प्रेषि 18:12 दक्षिणी यूनान का रोमी प्रांत, जिसकी राजधानी कुरिंथ थी।
प्रेषि 18:18 पूर्वी इलाकों के लिए कुरिंथ का बंदरगाह।
प्रेषि 18:22 सीरिया के।
प्रेषि 19:22 प्रेषि 2:9 फुटनोट देखें।
प्रेषि 21:8 या, “एक मिशनरी” जो खुशखबरी का प्रचार करता है।
प्रेषि 21:21 या, “सच्ची उपासना से मुँह मोड़ लेने।”
प्रेषि 21:31 या, “सहस्रपति,” जिसकी कमान के नीचे एक हज़ार सैनिक होते थे।
प्रेषि 21:36 शाब्दिक, “इसे दूर करो!”
प्रेषि 22:3 शाब्दिक, “के पैरों के पास बैठकर।”
प्रेषि 22:17 या, “बेसुधी छा गयी।”
प्रेषि 22:30 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
प्रेषि 23:1 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
प्रेषि 23:3 या, “सफेदी से पोती गयी दीवार।”
प्रेषि 23:23 मत्ती 20:3 फुटनोट देखें।
प्रेषि 24:7 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।
प्रेषि 24:15 या, “धर्मी और अधर्मी।”
प्रेषि 24:15 या, “पुनरुत्थान होनेवाला है।”
प्रेषि 24:20 मत्ती 26:59 फुटनोट देखें।
प्रेषि 25:1 यानी, यहूदिया का प्रांत। राज्यपाल का निवास-स्थान कैसरिया में हुआ करता था।
प्रेषि 25:13 यानी, हेरोदेस अग्रिप्पा द्वित्तीय।
प्रेषि 25:21 यह कैसर नीरो की उपाधि थी, जो ऑक्टेवियन के बाद चौथा सम्राट था और जिसने पहली बार यह उपाधि पायी थी।
प्रेषि 26:14 शाब्दिक, “अंकुश की नोंक पर लात मारकर।”
प्रेषि 27:9 या, “पतझड़ के मौसम का उपवास।”
प्रेषि 27:17 शाब्दिक, “सुरतिस।” चोरबालू की दो बड़ी खाड़ियाँ, जो उत्तरी अफ्रीका के लिबिया के तट के पास थीं।
प्रेषि 28:4 दूसरी भाषा बोलनेवाले।
प्रेषि 28:29 मत्ती 17:21 फुटनोट देखें।