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नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
रोमियों

रोमियों के नाम

1 मैं पौलुस, जो यीशु मसीह का एक दास हूँ, तुम्हें यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। मुझे प्रेषित* होने का बुलावा मिला है और मुझे परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनाने के लिए अलग किया गया है। 2 इस खुशखबरी का वादा परमेश्‍वर ने पहले से अपने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए पवित्र शास्त्र में किया था। 3 यह खुशखबरी उसके बेटे के बारे में है। वह शरीर के रिश्‍ते से तो दाविद के वंश से निकला था, 4 मगर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से और मरे हुओं में से जी उठाए जाने की वजह से सामर्थ के साथ परमेश्‍वर का बेटा ठहरा, जी हाँ, वही यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है। 5 उसी के ज़रिए हमने परमेश्‍वर की महा-कृपा और प्रेषित होने की ज़िम्मेदारी पायी, ताकि सब राष्ट्र उसके नाम पर विश्‍वास ला सकें और उसकी आज्ञा मानें। 6 इन राष्ट्रों में से तुम भी हो, जिन्हें यीशु मसीह का होने के लिए बुलाया गया है। 7 मैं पौलुस तुम सभी को लिख रहा हूँ, जो रोम में रहते हो और परमेश्‍वर के प्यारे हो और पवित्र जन होने के लिए बुलाए गए हो:

परमेश्‍वर हमारे पिता की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से तुम्हें महा-कृपा और शांति मिले।

8 सबसे पहले, मैं यीशु मसीह के ज़रिए तुम सबके बारे में अपने परमेश्‍वर का धन्यवाद करता हूँ, क्योंकि तुम्हारे विश्‍वास की चर्चा सारी दुनिया में हो रही है। 9 परमेश्‍वर, जिसकी पवित्र सेवा मैं उसके बेटे की खुशखबरी सुनाते हुए जी-जान से करता हूँ, वही मेरा गवाह है कि कैसे मैं हमेशा अपनी प्रार्थनाओं में लगातार तुम्हें याद करता हूँ 10 और बिनती करता हूँ कि अगर उसकी इच्छा हो, तो मैं कम-से-कम अब किसी तरह तुम्हारे पास आ सकूँ। 11 क्योंकि मैं तुमसे मिलने के लिए तरस रहा हूँ ताकि तुम्हें परमेश्‍वर की तरफ से कोई आशीष* दे सकूँ जिससे तुम मज़बूती पाओ। 12 या, यूँ कहूँ कि मैं और तुम, दोनों अपने-अपने विश्‍वास के ज़रिए, आपस में एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।

13 मगर भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि मैंने तुम्हारे पास आने की कई बार योजना बनायी, ताकि जैसे मैंने बाकी गैर-यहूदी राष्ट्रों में फल पाया है वैसे ही तुम्हारे बीच भी पाऊँ, मगर अब तक मुझे रोका गया है। 14 मैं यूनानियों और गैर-यूनानियों, समझदारों और मूर्खों, दोनों का कर्ज़दार हूँ: 15 इसलिए तुम जो वहाँ रोम में हो, मैं तुम्हें भी खुशखबरी सुनाने के लिए बेताब हूँ। 16 मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। दरअसल, यह विश्‍वास करनेवाले हर किसी के लिए, पहले यहूदी और फिर यूनानी* के उद्धार पाने के लिए परमेश्‍वर की शक्‍ति है। 17 क्योंकि जो विश्‍वास करते हैं वे यह देख पाते हैं कि इस खुशखबरी के ज़रिए परमेश्‍वर अपनी नेकी ज़ाहिर करता है और इससे उनका विश्‍वास मज़बूत होता है। ठीक जैसा लिखा भी है: “मगर जो नेक जन है, वह अपने विश्‍वास से ज़िंदा रहेगा।”

18 लेकिन जो लोग परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई को गलत तरीकों से दबा रहे हैं, उनकी सारी भक्‍तिहीनता और बुराई पर स्वर्ग से परमेश्‍वर का क्रोध प्रकट होता है। 19 क्योंकि परमेश्‍वर के बारे में जो कुछ जाना जा सकता है वह उनके बीच साफ ज़ाहिर है, इसलिए कि परमेश्‍वर ने उन पर यह ज़ाहिर किया है। 20 उसके अनदेखे गुण दुनिया की रचना के वक्‍त से साफ दिखायी देते हैं यानी यह कि उसके पास अनंत शक्‍ति है और सचमुच वही परमेश्‍वर है।* क्योंकि ये गुण उसकी बनायी चीज़ों को देखकर अच्छी तरह समझे जा सकते हैं, इसलिए उनके पास परमेश्‍वर पर विश्‍वास न करने का कोई बहाना बाकी नहीं बचता। 21 क्योंकि वे परमेश्‍वर को जानते तो थे, फिर भी उन्होंने उसकी वैसी बड़ाई न की जैसी परमेश्‍वर की करनी चाहिए, न ही उसका धन्यवाद किया, बल्कि वे खोखली बातें सोचने लगे और उनका निर्बुद्धि हृदय अंधकार से भर गया। 22 हालाँकि उनका दावा था कि वे बुद्धिमान हैं, मगर वे मूर्ख साबित हुए 23 और उन्होंने अनश्‍वर परमेश्‍वर की महिमा करने के बदले, नश्‍वर इंसान और पक्षियों और चार-पैरोंवाले जीवों और रेंगनेवाले जंतुओं की मूरतों की महिमा की।

24 इसलिए परमेश्‍वर ने उनके दिल की बुरी इच्छाओं के मुताबिक उन्हें अशुद्धता के हवाले छोड़ दिया ताकि वे अपने ही शरीर का अनादर करें। 25 ये वही लोग हैं जिन्होंने परमेश्‍वर की सच्चाई के बदले झूठ पर यकीन किया और सृष्टिकर्ता के बजाय उसकी सृष्टि की भक्‍ति और पूजा की। वही सृष्टिकर्ता सदा धन्य है, आमीन। 26 परमेश्‍वर ने इन लोगों को शरीर की नीच काम-वासनाओं के हवाले छोड़ दिया, इसलिए कि उनकी स्त्रियाँ स्वाभाविक यौन-संबंध छोड़कर अस्वाभाविक यौन-संबंध रखने लगीं। 27 उसी तरह पुरुषों ने भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक यौन-संबंध छोड़ दिए और पुरुष आपस में एक-दूसरे के लिए काम-वासना से जलने लगे। पुरुषों ने पुरुषों के साथ अश्‍लील काम किए और खुद अपनी करतूतों का पूरा-पूरा अंजाम भुगता।

28 इन लोगों को यह मंज़ूर नहीं था कि सही ज्ञान के मुताबिक परमेश्‍वर को जानें। इसलिए परमेश्‍वर ने भी उन्हें उनकी भ्रष्ट दिमागी हालत पर छोड़ दिया कि वे गलत काम करें 29 क्योंकि उनमें हर तरह का पाप, दुष्टता, लालच, बुराई कूट-कूटकर भरी है और वे ईर्ष्या, हत्या, झगड़े, छल और द्वेष से भरे हैं। वे चुगली लगानेवाले, 30 पीठ पीछे बदनाम करनेवाले, परमेश्‍वर से नफरत करनेवाले, बदतमीज़, मगरूर, खुद को बड़ा समझनेवाले, बुरी बातें गढ़नेवाले, माता-पिता की न माननेवाले, 31 समझ न रखनेवाले, अपने वादे से मुकरनेवाले, प्यार और लगाव से खाली और बेरहम हैं। 32 ये परमेश्‍वर के इस खरे आदेश को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि जो लोग ऐसे कामों में लगे रहते हैं वे मौत की सज़ा के लायक हैं। फिर भी वे न सिर्फ खुद ऐसे कामों में लगे रहते हैं बल्कि ऐसे काम करनेवालों से खुश भी होते हैं।

2 अरे दोष लगानेवाले, तू चाहे जो भी हो, अगर तू दूसरे पर दोष लगाता है, तो तेरे पास कोई सफाई नहीं रह जाती। क्योंकि जब तू किसी दूसरे को दोषी ठहराता है, तो उसी बात से तू खुद भी सज़ा के लायक ठहरता है, क्योंकि तू जिन कामों के लिए दूसरों को दोषी ठहराता है, खुद वही काम करता रहता है। 2 हम जानते हैं कि परमेश्‍वर का न्याय सच्चा है और जो इन कामों में लगे रहते हैं, वह उन्हें सज़ा देगा।

3 लेकिन अरे इंसान, तू जो ऐसे काम करनेवालों को दोषी ठहराता है मगर खुद इन्हीं कामों में लगा रहता है, क्या तू यह सोच बैठा है कि तू परमेश्‍वर के न्यायदंड से बच जाएगा? 4 या क्या तू उसकी अपार कृपा, बरदाश्‍त और सहनशीलता का तिरस्कार करता है? क्या तू नहीं जानता कि परमेश्‍वर की कृपा तुझे पश्‍चाताप की तरफ ले जाने की कोशिश कर रही है? 5 मगर तू अपनी कठोरता और पश्‍चाताप न करनेवाले दिल की वजह से परमेश्‍वर के क्रोध के उस दिन तक अपने लिए क्रोध जमा कर रहा है, जिस दिन वह अपने सच्चे स्तरों के मुताबिक न्याय करेगा। 6 वह हरेक को उसके कामों के हिसाब से बदला देगा: 7 जो धीरज के साथ भले काम में लगे रहकर महिमा और आदर और अनश्‍वरता की खोज करते हैं, वह उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा। 8 मगर जो झगड़ालू हैं और सच्चाई को मानने के बजाय परमेश्‍वर के स्तरों के खिलाफ काम करते हैं उन पर उसका क्रोध और गुस्सा भड़केगा, 9 और जो लोग बुरे कामों में लगे रहते हैं, परमेश्‍वर उन पर क्लेश और मुसीबत लाएगा, पहले यहूदियों पर और इसके बाद गैर-यहूदियों पर भी। 10 मगर हर वह इंसान जो अच्छे काम करता है, परमेश्‍वर उसे महिमा और आदर और शांति देगा, पहले यहूदियों को और फिर गैर-यहूदियों को भी। 11 इसलिए कि परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता।

12 जैसे, वे सभी जिन्होंने परमेश्‍वर का कानून न होते हुए पाप किया, वे कानून के न होते हुए भी मिट जाएँगे। मगर जिन्होंने कानून के तहत पाप किया, उनका न्याय कानून के हिसाब से होगा। 13 क्योंकि परमेश्‍वर के सामने, कानून को बस सुननेवाले नहीं, मगर कानून पर चलनेवाले नेक ठहराए जाएँगे। 14 राष्ट्रों के लोग,* जिनके पास परमेश्‍वर का कानून नहीं है, वे जब कभी अपने आप इस कानून के मुताबिक चलते हैं, तो इसके न होने पर भी, वे खुद अपने लिए एक कानून ठहरते हैं। 15 वे दिखाते हैं कि कानून की बातें उनके दिलों में लिखी हुई हैं और उनके साथ उनका ज़मीर भी गवाही देता है और उनके अपने सोच-विचार में वे या तो कसूरवार ठहरते हैं या बेकसूर। 16 ये बातें तब देखी जा सकेंगी जब परमेश्‍वर, मसीह यीशु के ज़रिए इंसानों की छिपी हुई बातों का न्याय करेगा। यह बात उस खुशखबरी का हिस्सा है जो मैं सुनाता हूँ।

17 अगर तू यहूदी कहलाता है और तुझे परमेश्‍वर के कानून पर भरोसा है और तू परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते पर गर्व करता है 18 और जानता है कि उसकी इच्छा क्या है और तुझे ज़बानी तौर पर कानून सिखाया गया है जिस वजह से तू उत्तम-से-उत्तम बातों की समझ रखता है, 19 और तुझे यकीन दिलाया गया है कि तू अंधों को राह दिखानेवाला और अंधकार में रहनेवालों के लिए रौशनी है, 20 तू ज़िद्दी लोगों को सुधारनेवाला और नादानों को सिखानेवाला गुरु है और कानून में पाए जानेवाले ज्ञान और सच्चाई के बुनियादी ढाँचे की समझ रखता है — 21 तो तू जो दूसरे को सिखाता है, क्या खुद को नहीं सिखाता? क्या तू जो प्रचार करता है कि “चोरी न करना,” खुद चोरी करता है? 22 तू जो कहता है कि “शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना,” क्या तू खुद ऐसा करता है? तू जो दिखाता है कि तुझे मूर्तियों से घिन है, क्या तू खुद मंदिरों को लूटता है? 23 तू जो कानून पर घमंड करता है, क्या तू खुद कानून के खिलाफ जाकर परमेश्‍वर का अनादर करता है? 24 क्योंकि जैसा लिखा है, “तुम्हारी वजह से राष्ट्रों के बीच परमेश्‍वर के नाम की बदनामी हो रही है।”

25 तेरे लिए खतना तभी फायदेमंद होगा जब तू कानून को मानता हो। लेकिन अगर तू कानून तोड़ता है, तो तेरा खतना, खतना न होने के बराबर है। 26 इसलिए अगर एक इंसान, खतना न होते हुए भी कानून में दी गयी परमेश्‍वर की माँगें पूरी करता है, तो क्या उसका खतना न होना, खतना होने के बराबर नहीं समझा जाएगा? 27 वह इंसान जिसका शरीर से खतना नहीं हुआ, वह कानून पर चलने की वजह से तुझे दोषी ठहराता है, क्योंकि तू लिखित नियम और खतना होते हुए भी कानून को तोड़ता है। 28 क्योंकि यहूदी वह नहीं जो ऊपर से यहूदी दिखता है, न ही खतना वह है जो बाहर शरीर पर होता है। 29 मगर यहूदी वह है जो अंदर से यहूदी है, और उसका खतना वह है जो लिखित नियम के हिसाब से नहीं बल्कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के हिसाब से दिल का खतना होता है। ऐसे इंसान की बड़ाई, इंसानों की तरफ से नहीं बल्कि परमेश्‍वर की तरफ से होती है।

3 तो फिर किस मायने में यहूदी दूसरों से बढ़कर हैं या खतने का क्या फायदा? 2 हर मायने में, कई तरह से। पहली बात तो यह कि यहूदियों को ही परमेश्‍वर के पवित्र वचन सौंपे गए थे। 3 तो अगर कुछ यहूदियों ने विश्‍वास नहीं किया, तो क्या हुआ? क्या उनके विश्‍वास न दिखाने से परमेश्‍वर का विश्‍वासयोग्य होना बेकार साबित हो जाएगा? 4 यह नामुमकिन है! इसके बजाय, परमेश्‍वर हर हाल में सच्चा साबित होता है, चाहे हर इंसान झूठा साबित हो, जैसा कि लिखा भी है: “कि तू अपनी बातों में सच्चा साबित हो और तू अपना मुकद्दमा जीत ले।” 5 लेकिन कुछ लोग कहते हैं, ‘अगर हम बुरे काम करते हैं तो यह असल में फायदेमंद है क्योंकि लोग इससे देख पाते हैं कि हम गलत हैं जबकि परमेश्‍वर सही है। इसलिए, हमारी बुराई लोगों का ध्यान परमेश्‍वर की तरफ दिलाने में मदद करती है। अगर परमेश्‍वर हमें इसके लिए सज़ा दे, तो क्या वह अन्यायी नहीं हुआ?’ (मैं एक इंसान के नज़रिए से बोलता हूँ।) 6 नहीं, वह अन्यायी नहीं हो सकता! अगर ऐसा हो तो वह पूरी दुनिया का न्याय कैसे करेगा?

7 कुछ यह भी दलील देते हैं: ‘अगर मेरे झूठ की वजह से परमेश्‍वर का सच्चा होना और भी बढ़कर ज़ाहिर होता है जिससे उसकी महिमा होती है, तो फिर मुझे इस काम के लिए पापी ठहराकर क्या परमेश्‍वर अन्याय नहीं कर रहा?’ 8 फिर हम भी यह क्यों न कहें, “चलो हम बुराई करें कि भलाई निकलकर सामने आए,” जैसा कि कुछ लोग हम पर झूठा इलज़ाम लगाते हुए कहते हैं कि हम यही सिखाते हैं। ऐसे लोग न्याय के हिसाब से ठीक सज़ा पाएँगे।

9 तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी दूसरों से बढ़कर हैं? हरगिज़ नहीं! क्योंकि हम पहले ही यह बात साफ कर चुके हैं* कि यहूदी और गैर-यहूदी सभी पाप के अधीन हैं। 10 ठीक जैसा लिखा है: “कोई नेक नहीं, एक भी नहीं। 11 ऐसा कोई भी नहीं जो ज़रा भी अंदरूनी समझ रखता हो, ऐसा कोई नहीं जो परमेश्‍वर की खोज करता हो। 12 सभी इंसान गुमराह हो गए हैं। वे सब-के-सब बेकार हो गए हैं। कोई भी अच्छे काम नहीं करता, एक भी नहीं।” 13 “उनका गला एक खुली कब्र है, वे अपनी ज़ुबान से छलते हैं।” “उनके होठों के पीछे साँपों का ज़हर छिपा है।” 14 “उनके मुँह में सिर्फ दूसरों को कोसनेवाली, कड़वी बातें भरी हैं।” 15 “उनके कदम खून बहाने के लिए फुर्ती करते हैं।” 16 “उनकी राहों में बरबादी और मुसीबतें हैं, 17 और वे शांति का रास्ता जानते ही नहीं।” 18 “उनकी आँखों में परमेश्‍वर का ज़रा भी डर नहीं।”

19 हम जानते हैं कि कानून खास तौर पर यहूदियों को दिया गया था। इसलिए, अगर उनमें से कोई यहूदी यह दावा करे कि वह निष्पाप है, तो कानून उसका मुँह बंद कर देगा, साथ ही पूरी दुनिया परमेश्‍वर के सामने सज़ा के लायक ठहरेगी। 20 क्योंकि मूसा के कानून में बताए कामों के आधार पर कोई भी इंसान परमेश्‍वर के सामने नेक नहीं ठहर पाएगा, इसलिए कि पाप क्या है इसका सही-सही ज्ञान कानून कराता है।

21 मगर अब यह ज़ाहिर किया गया है कि कानून को माने बिना एक इंसान परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहर सकता है। मूसा का कानून और भविष्यवक्‍ताओं की किताबें भी इस बात की गवाही देते हैं कि परमेश्‍वर की नज़र में नेक साबित होने के लिए क्या ज़रूरी है। 22 जी हाँ, यीशु मसीह पर विश्‍वास करने से परमेश्‍वर की नज़र में नेक इंसान ठहरा जा सकता है, और यह विश्‍वास दिखानेवाले हर इंसान के लिए है। इसमें कोई भेदभाव नहीं। 23 इसलिए कि सब ने पाप किया है और वे परमेश्‍वर के शानदार गुण* ज़ाहिर करने में नाकाम रहे हैं। 24 मगर परमेश्‍वर ने उन्हें यह मुफ्त वरदान दिया जब उसने अपनी महा-कृपा की वजह से उन्हें नेक इंसान करार दिया। परमेश्‍वर ने उन्हें उस फिरौती के ज़रिए रिहाई दिलाकर नेक करार दिया, जो मसीह यीशु ने चुकायी है। 25 परमेश्‍वर ने मसीह को बलिदान के तौर पर दे दिया ताकि मसीह के लहू में विश्‍वास करने से लोगों के पापों का प्रायश्‍चित्त हो और परमेश्‍वर के साथ उनकी सुलह हो। उसने ऐसा अपनी नेकी ज़ाहिर करने के लिए किया, क्योंकि बीते ज़माने के दौरान, जब वह बरदाश्‍त कर रहा था, वह लोगों के पापों को माफ करता रहा, 26 जिससे वह इस वक्‍त, हमारे ज़माने में भी अपनी नेकी ज़ाहिर कर सके, ताकि जो इंसान यीशु में विश्‍वास करता है, उसे भी नेक ठहराते वक्‍त वह खुद न्याय-संगत साबित हो।

27 तो क्या घमंड करने की कोई वजह रही? नहीं, कोई वजह नहीं रही। किस कानून के हिसाब से? क्या कामों के कानून के हिसाब से? नहीं, बिलकुल नहीं, बल्कि विश्‍वास के कानून के हिसाब से। 28 इससे हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि एक इंसान मूसा के कानून के कामों से नहीं, बल्कि विश्‍वास से परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहराया जाता है। 29 क्या वह सिर्फ यहूदियों का परमेश्‍वर है? क्या वह दूसरे राष्ट्रों के लोगों का भी परमेश्‍वर नहीं? बेशक, वह उनका भी परमेश्‍वर है। 30 वाकई परमेश्‍वर एक है, और वही खतना किए गए लोगों को उनके विश्‍वास की वजह से नेक ठहराता है और जिनका खतना नहीं हुआ है, उन्हें उनके विश्‍वास के ज़रिए नेक ठहराता है, 31 तो क्या हम अपने विश्‍वास से कानून को रद्द कर दें? यह नामुमकिन है। इसके बजाय, हम कानून को बुलंद करते हैं।

4 जब ऐसा है, तो हम अब्राहम के बारे में क्या कहें जो शरीर के रिश्‍ते से हमारा पुरखा था? 2 अगर अब्राहम कामों की वजह से नेक ठहराया गया होता, तो उसके पास शेखी मारने की वजह होती, फिर भी परमेश्‍वर के सामने नहीं। 3 शास्त्रवचन क्या कहता है? “अब्राहम ने यहोवा* पर विश्‍वास किया और यह उसके लिए नेकी गिना गया।” 4 जो आदमी काम करता है उसे मज़दूरी देना उस पर महा-कृपा करना नहीं समझा जाता, बल्कि उसका हक* माना जाता है। 5 दूसरी तरफ, जो इंसान अपने कामों पर भरोसा करने के बजाय उस परमेश्‍वर पर विश्‍वास दिखाता है जो पापी को नेक करार देता है, तो उस इंसान का यह विश्‍वास दिखाना उसके लिए नेकी गिना जाता है। 6 दाविद भी ऐसे इंसान को सुखी कहता है जिसके कामों के बिना ही परमेश्‍वर उसकी गिनती नेक इंसानों में करता है: 7 “सुखी हैं वे जिनके बुरे काम माफ किए गए हैं और जिनके पाप ढक दिए गए हैं। 8 सुखी है वह इंसान जिसके पाप का यहोवा हरगिज़ लेखा नहीं लेगा।”

9 तो फिर, क्या यह सुख सिर्फ उन्हें हासिल होता है जिनका खतना हुआ है? क्या यह उन्हें भी हासिल नहीं होता जिनका खतना नहीं हुआ? क्योंकि हम कहते हैं: “अब्राहम का विश्‍वास उसके लिए नेकी गिना गया।” 10 तो फिर, किन हालात में यह नेकी गिना गया? उसका खतना होने के बाद या खतना होने से पहले? खतना होने के बाद नहीं, बल्कि खतना होने से पहले। 11 जब अब्राहम ने बिना खतने की दशा में विश्‍वास दिखाया, तो परमेश्‍वर ने उसे नेक ठहराया और इसके लिए उसे एक निशानी यानी खतना दिया जो उसके नेक गिने जाने की मुहर थी, जिससे वह उन सबका पिता बन सके जो बिना खतना हुए भी विश्‍वास दिखाते हैं, ताकि यह उनके लिए भी नेकी गिना जाए। 12 साथ ही, वह उनका भी पिता बने जिनका खतना हुआ है और जो न सिर्फ खतने को मानते हैं, बल्कि उसके साथ-साथ हमारे पिता अब्राहम के नक्शे-कदम पर सीधी चाल चलते हुए वैसा ही विश्‍वास दिखाते हैं जैसा उसने बिना खतने की दशा में दिखाया था।

13 अब्राहम या उसका वंश दुनिया का वारिस होगा, यह वादा कानून के ज़रिए नहीं था बल्कि उस नेकी के ज़रिए था जो अब्राहम ने विश्‍वास दिखाकर हासिल की थी। 14 इसलिए कि अगर कानून पर चलनेवाले वारिस होते, तो विश्‍वास करना बेमाने हो जाता और वादा बेकार जाता। 15 सच तो यह है कि मूसा का कानून क्रोध पैदा करता है, मगर जहाँ कानून नहीं है वहाँ उसका तोड़ना भी नहीं है।

16 इसलिए, वारिस होने का यह वादा अब्राहम को विश्‍वास दिखाने की वजह से मिला। इस तरह, इस वादे से असल में परमेश्‍वर की महा-कृपा ज़ाहिर हुई। यह वादा विश्‍वास दिखाने की वजह से मिला था, इसलिए यह वादा न सिर्फ उनके लिए है जो कानून पर चलते हैं, बल्कि उनके लिए भी है जो अब्राहम की तरह विश्‍वास पर चलते हैं। (वह हम सबका पिता है, 17 ठीक जैसा लिखा भी है: “मैंने तुझे बहुत-सी जातियों का पिता ठहराया है।”) इस वादे के पूरा होने की गारंटी परमेश्‍वर के सामने दी गयी थी। इसी परमेश्‍वर पर अब्राहम को विश्‍वास था, हाँ, वही परमेश्‍वर जो मरे हुओं को ज़िंदा करता है और जो चीज़ें वजूद में नहीं हैं उनके बारे में ऐसे बात करता है जैसे वे सचमुच वजूद में हों। 18 हालाँकि अब्राहम के लिए आशा रखने की सारी वजह खत्म हो चुकी थीं, फिर भी उसने आशा रखते हुए विश्‍वास किया, ताकि उससे जो कहा गया था: “इसी तरह तेरा वंश भी बहुत होगा,” उसके मुताबिक वह बहुत-सी जातियों का पिता हो। 19 हालाँकि अब्राहम ने अपने शरीर की बेजान हालत पर गौर किया क्योंकि वह करीब सौ साल का हो चुका था और अपनी पत्नी सारा के गर्भ की बेजान हालत भी जानता था, फिर भी वह अपने विश्‍वास में कमज़ोर नहीं पड़ा। 20 परमेश्‍वर के वादे की वजह से वह विश्‍वास की कमी से नहीं डगमगाया, बल्कि अपने विश्‍वास के ज़रिए शक्‍तिशाली साबित हुआ और परमेश्‍वर की महिमा की। 21 वह इस बात का पूरा यकीन रखता था कि जिसने वादा किया है वह उसे पूरा करने के काबिल भी है। 22 इसलिए, “यह विश्‍वास उसके लिए नेकी गिना गया।”

23 मगर शास्त्र में यह बात कि ‘उसके लिए गिना गया’ न सिर्फ उसके लिए है 24 बल्कि यह हमारे लिए भी लिखी गयी है। क्योंकि हम उस परमेश्‍वर पर विश्‍वास करते हैं जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया, इसलिए हमारे लिए भी, जो नेक गिने जाने के लिए चुने गए हैं, यह विश्‍वास नेकी गिना जाएगा। 25 यीशु को हमारे गुनाहों की खातिर मार डाले जाने के लिए सौंपा गया और हमारे नेक ठहराए जाने के लिए ज़िंदा किया गया।

5 इसलिए, जब हमें विश्‍वास की वजह से नेक ठहराया गया है, तो आओ हम अपने प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर के साथ शांति के रिश्‍ते में बने रहें। 2 उसी के ज़रिए विश्‍वास से हम परमेश्‍वर की महा-कृपा पाने के लिए परमेश्‍वर के सामने पहुँच हासिल कर पाए हैं। इसी महा-कृपा में हम अभी बने हुए हैं। और आओ हम परमेश्‍वर से महिमा पाने की आशा पर गर्व करें। 3 यही नहीं, हम दुःख-तकलीफें झेलते हुए भी गर्व करें, क्योंकि हम जानते हैं कि दुःख-तकलीफों से धीरज पैदा होता है, 4 और धीरज से परमेश्‍वर की मंज़ूरी की दशा हासिल होती है और इस दशा से आशा पैदा होती है, 5 और यह आशा हमें शर्मिंदा नहीं होने देती। क्योंकि परमेश्‍वर का प्यार हमारे दिलों में उस पवित्र शक्‍ति* के ज़रिए भरा गया है, जो हमें दी गयी थी।

6 वाकई, जब हम कमज़ोर ही थे तब मसीह, तय किए गए वक्‍त पर भक्‍तिहीन इंसानों के लिए मरा। 7 क्योंकि शायद ही कोई किसी धर्मी इंसान के लिए अपनी जान देगा। हाँ, हो सकता है कि एक अच्छे इंसान के लिए कोई अपनी जान देने की हिम्मत करे। 8 मगर परमेश्‍वर ने अपने प्यार की अच्छाई हम पर इस तरह ज़ाहिर की है कि जब हम पापी ही थे, तब मसीह हमारे लिए मरा। 9 तो अब जब हम उसके लहू से नेक ठहराए जा चुके हैं, तो हम उसके ज़रिए परमेश्‍वर के क्रोध से भी क्यों न बचेंगे? 10 जब हम परमेश्‍वर के दुश्‍मन थे, अगर तब उसके बेटे की मौत से परमेश्‍वर के साथ हमारी सुलह हुई, तो अब जब हमारी सुलह हो चुकी है, तब हम और भी बढ़कर उसके जीवन के ज़रिए उद्धार क्यों न पाएँगे? 11 इतना ही नहीं, हम अपने प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर के साथ अपने रिश्‍ते पर गर्व भी करते हैं, क्योंकि प्रभु यीशु के ज़रिए ही परमेश्‍वर से अब हमारी सुलह हो चुकी है।

12 इसलिए, एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी, और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया। 13 मूसा का कानून दिए जाने तक पाप दुनिया में था तो सही, मगर जब कानून नहीं होता, तब किसी को पाप का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। 14 फिर भी, मौत ने आदम से लेकर मूसा के समय तक राजा बनकर राज किया, उन पर भी जिन्होंने आदम की तरह कानून तोड़कर पाप नहीं किया था। आदम बिलकुल उसी के जैसा था जो आनेवाला था।

15 मगर वरदान का नतीजा, उस गुनाह के नतीजे जैसा नहीं है। क्योंकि जहाँ एक आदमी के गुनाह से बहुत मर गए, वहीं इससे भी बढ़कर परमेश्‍वर की महा-कृपा और उसके मुफ्त वरदान से बहुतों को बेहिसाब फायदे मिले। यह मुफ्त वरदान, महा-कृपा के साथ एक आदमी यीशु मसीह के ज़रिए दिया गया। 16 मुफ्त वरदान से मिलनेवाले फायदे, एक आदमी के पाप के अंजामों जैसे नहीं हैं। इसलिए कि एक गुनाह के बाद जो न्यायदंड मिला उससे इंसान सज़ा के लायक ठहरे, मगर बहुत-से गुनाहों के बाद जो वरदान आया उससे इंसानों का परमेश्‍वर की नज़र में नेक करार दिया जाना मुमकिन हुआ। 17 एक आदमी के गुनाह की वजह से मौत ने उस एक के ज़रिए राजा बनकर राज किया। जब ऐसा है, तो जो लोग महा-कृपा और नेक ठहराए जाने का मुफ्त वरदान बहुतायत में पाते हैं, वे इससे भी बढ़कर यीशु मसीह के ज़रिए जीवन पाकर और राजा बनकर राज क्यों न करेंगे?

18 इसलिए, जिस तरह एक ही गुनाह का अंजाम यह हुआ कि सब किस्म के लोग सज़ा के लायक ठहरे, उसी तरह एक ही इंसान के एक नेक काम का नतीजा, सब किस्म के इंसानों के लिए नेक ठहराया जाना हुआ ताकि वे जीवन पाएँ। 19 और जैसे एक आदमी के आज्ञा न मानने से बहुत लोग पापी ठहरे, उसी तरह एक आदमी के आज्ञा मानने से बहुत लोग नेक ठहरेंगे। 20 फिर इस पापी हालत के रहते बाद में कानून आया जिसने गुनाहों को और भी बढ़कर ज़ाहिर किया। मगर जहाँ पाप बढ़ा, वहाँ महा-कृपा और भी बहुतायत में हुई। 21 किसलिए? ताकि जैसे पाप ने मौत के साथ राजा बनकर राज किया, वैसे ही महा-कृपा भी नेकी के ज़रिए राजा बनकर राज करे जिससे हमारे प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए हमें हमेशा की ज़िंदगी मिले।

6 जब ऐसा है, तो हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें ताकि और भी ज़्यादा महा-कृपा पाएँ? 2 ऐसा कभी न हो! जब हम एक बार पाप के लिए मर चुके, तो फिर आगे हम उसमें कैसे जीते रह सकते हैं? 3 या क्या तुम नहीं जानते कि हम सभी ने, जिन्होंने मसीह यीशु में बपतिस्मा पाया है, उसकी मौत में भी बपतिस्मा पाया है? 4 इसलिए उसकी मौत में बपतिस्मा पाने से हम भी उसके साथ दफन किए गए, ताकि जैसे पिता की महिमा से मसीह को मरे हुओं में से जी उठाया गया, वैसे ही हम भी परमेश्‍वर के लिए नया जीवन जीएँ। 5 जब हम उसकी मौत की समानता में उसके साथ एक हुए हैं, तो उसके जी उठने की समानता में भी उसके साथ एक होंगे। 6 क्योंकि हम जानते हैं कि हमारी पुरानी शख्सियत उसके साथ सूली पर चढ़ा दी गयी, ताकि हमारे पापी शरीर का हम पर अधिकार खत्म हो जाए और अब से हम पाप के दास न बने रहें। 7 इसलिए कि जो मर चुका है, वह अपने पाप से बरी हो चुका है।

8 और अगर हम मसीह के साथ मर चुके हैं, तो हमें यकीन है कि हम उसके साथ जीएँगे भी। 9 इसलिए कि हम जानते हैं कि मसीह, जिसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है दोबारा मरनेवाला नहीं, अब मौत का उस पर कोई अधिकार नहीं। 10 इसलिए कि मसीह जो मौत मरा, वह पाप को मिटाने के लिए हमेशा के लिए एक ही बार मरा। लेकिन वह जो जीवन जीता है वह परमेश्‍वर के लिए जीता है। 11 इसी तरह तुम भी खुद को पाप के लिए तो मरा हुआ, मगर मसीह यीशु के ज़रिए परमेश्‍वर के लिए ज़िंदा समझो।

12 इसलिए ऐसा मत होने दो कि तुम्हारे नश्‍वर शरीर में पाप राजा बनकर राज करता रहे और तुम शरीर की ख्वाहिशों के गुलाम बनकर उसी की मानो। 13 न ही अपने अंगों को बुराई के हथियार बनने के लिए पाप के हवाले करते रहो। इसके बजाय, मरे हुओं में से ज़िंदा किए गए लोगों के नाते खुद को परमेश्‍वर को सौंप दो, साथ ही अपने अंगों को नेकी के हथियार बनने के लिए परमेश्‍वर के हवाले कर दो। 14 अब पाप का तुम पर अधिकार न हो, क्योंकि तुम कानून के अधीन नहीं बल्कि महा-कृपा के अधीन हो।

15 तो फिर क्या? क्या हम इस वजह से पाप करें कि हम कानून के अधीन नहीं बल्कि महा-कृपा के अधीन हैं? ऐसा कभी न हो! 16 क्या तुम नहीं जानते कि अगर तुम किसी की आज्ञा मानने के लिए खुद को गुलामों की तरह उसके हवाले करते रहते हो, तो उसी के गुलाम बन जाते हो? फिर चाहे पाप के गुलाम, जिसका अंजाम मौत है या चाहे आज्ञा-पालन के गुलाम, जिसका नतीजा परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहराया जाना है। 17 मगर परमेश्‍वर का धन्यवाद हो कि तुम जो पाप के गुलाम थे, अब तुम दिल से उस शिक्षा के आज्ञाकारी बने जिसके हवाले उसने तुम्हें किया था। 18 हाँ, क्योंकि तुम्हें पाप से आज़ाद किया गया था, इसलिए तुम नेकी के दास बने। 19 मैं मिसालें देकर आसान शब्दों में तुमसे बात कर रहा हूँ, क्योंकि तुम सिद्ध नहीं हो। एक वक्‍त वह था जब तुमने अपने अंगों को अशुद्धता और दुराचार की गुलामी करने के लिए उनके हवाले कर दिया था ताकि दुराचार करो, उसी तरह अब अपने अंगों को नेकी के दास होने के लिए इसके हवाले कर दो, जिससे पवित्रता हासिल हो। 20 क्योंकि जब तुम पाप के गुलाम थे, तो नेकी के बंधनों से आज़ाद थे।

21 तो फिर, पहले तुम्हें इसका क्या फल मिलता था? ऐसी बातें जिन पर आज तुम शर्म महसूस करते हो। इसलिए कि उन बातों का अंजाम तो मौत है। 22 मगर, अब तुम पाप से आज़ाद किए गए हो और परमेश्‍वर के दास बन गए हो, इसलिए अब तुम पवित्रता की राह में अपना फल पा रहे हो और अंत में हमेशा की ज़िंदगी पाओगे। 23 क्योंकि पाप जो मज़दूरी देता है वह मौत है, मगर परमेश्‍वर जो तोहफा देता है वह हमारे प्रभु मसीह यीशु के ज़रिए हमेशा की ज़िंदगी है।

7 भाइयो, क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हें मालूम न हो (मैं उनसे बात कर रहा हूँ जो कानून को जानते हैं) कि कानून का एक इंसान पर तब तक अधिकार है, जब तक वह ज़िंदा है? 2 मिसाल के लिए, एक शादीशुदा स्त्री अपने पति के जीते-जी कानूनी तौर पर उससे बँधी होती है, लेकिन अगर उसका पति मर जाए, तो वह उसके कानून से छूट जाती है। 3 अगर वह पति के जीते-जी किसी और आदमी की हो जाए, तो व्यभिचारिणी* कहलाएगी। लेकिन अगर उसका पति मर जाता है, तो वह उसके कानून से छूट गयी है। इसके बाद अगर वह किसी और आदमी की हो जाए तो वह व्यभिचारिणी नहीं है।

4 उसी तरह मेरे भाइयो, तुम मसीह के शरीर के ज़रिए मूसा के कानून के संबंध में मर चुके हो, ताकि तुम मसीह के हो जाओ, यानी उसके जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था। इस तरह हम परमेश्‍वर की महिमा के लिए फल पैदा कर सकते हैं। 5 क्योंकि जब हम शरीर की इच्छाओं के मुताबिक जीते थे, तब मूसा के कानून के ज़रिए वे पाप-भरी वासनाएँ ज़ाहिर हुईं, जो हमारे अंगों में काम कर रही थीं कि हम ऐसे फल पैदा करें जिनका अंत मौत है। 6 मगर अब हम इस कानून से आज़ाद हो चुके हैं, क्योंकि हम जिसके बंधन में थे उसके लिए मर चुके हैं, ताकि हम लिखित कानून से पुराने मायने में नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति से एक नए मायने में दास बनें।

7 तो फिर, हम क्या कहें? क्या मूसा के कानून में खोट* है? हरगिज़ नहीं! दरअसल, अगर कानून न होता, तो मैं पाप के बारे में कभी न जान पाता। मिसाल के लिए, अगर कानून में यह आज्ञा न होती: “तू लालच न करना,” तो लालच क्या है यह मैं नहीं जान पाता। 8 मगर कानून की इस आज्ञा की वजह से बढ़ावा पाकर पाप ने मेरे अंदर हर तरह का लालच पैदा किया, क्योंकि बिना कानून के पाप मरा हुआ था। 9 दरअसल, एक वक्‍त ऐसा था जब मैं कानून के बिना ज़िंदा था, मगर जब कानून की यह आज्ञा आयी, तो पाप फिर से ज़िंदा हो गया, मगर मैं मर गया। 10 और जो आज्ञा जीवन के लिए थी, मैंने पाया कि वह मेरे लिए मौत की वजह बनी। 11 क्योंकि पाप ने इस आज्ञा से बढ़ावा पाकर मुझे बहकाया और इसके ज़रिए मुझे मार डाला। 12 जबकि, जहाँ तक मूसा के कानून की बात है, वह अपने आप में पवित्र है और यह आज्ञा पवित्र और सच्ची और अच्छी है।

13 तो फिर जो अच्छा है, क्या वह मेरे लिए मौत बन गया? हरगिज़ नहीं! बल्कि पाप मेरे लिए मौत बना, ताकि जो अच्छा है उससे यह ज़ाहिर हो सके कि यह पाप है जो मेरे अंदर काम करते हुए मुझे मौत की तरफ ले जा रहा है और कानून की आज्ञा के ज़रिए पाप की बुराई और भी बढ़कर ज़ाहिर हो। 14 हम जानते हैं कि कानून परमेश्‍वर की तरफ से है, मगर मैं असिद्ध* हूँ और पाप के हाथों बिका हुआ हूँ। 15 मैं क्यों ऐसे काम करता हूँ, मैं नहीं जानता। क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ वह नहीं करता, मगर जिस काम से मुझे नफरत है, वही करता हूँ। 16 लेकिन अगर मैं वही करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता, तो मैं मानता हूँ कि कानून बेहतरीन है। 17 इसलिए जो यह काम कर रहा है, अब वह मैं नहीं, बल्कि पाप है जो मेरे अंदर बसा हुआ है। 18 मैं जानता हूँ कि मुझमें यानी मेरे शरीर में कुछ भी अच्छा वास नहीं करता, क्योंकि भला काम करने की इच्छा तो मेरे अंदर है, मगर भला काम मुझसे होता नहीं। 19 क्योंकि जो अच्छा काम मैं करना चाहता हूँ मैं नहीं कर पाता, मगर जो बुरा काम मैं नहीं करना चाहता, वही करता रहता हूँ। 20 अगर मैं वही करता हूँ जो नहीं करना चाहता, तो इसे करनेवाला अब मैं नहीं बल्कि पाप है जो मेरे अंदर बसा हुआ है।

21 तो फिर मैं अपने मामले में यह नियम पाता हूँ: जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ। 22 मेरे अंदर का इंसान वाकई परमेश्‍वर के कानून में खुशी पाता है 23 मगर मैं अपने अंगों में दूसरे कानून को काम करता हुआ पाता हूँ, जो मेरे सोच-विचार पर राज करनेवाले कानून से लड़ता है और मुझे पाप के उस कानून का गुलाम बना लेता है जो मेरे अंगों में है। 24 मैं कैसा लाचार इंसान हूँ! मुझे इस शरीर से, जो मर रहा है, कौन छुड़ाएगा? 25 हमारे प्रभु, यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर का धन्यवाद हो! मैं अपने सोच-विचार में तो परमेश्‍वर के कानून का गुलाम हूँ, जबकि अपने शरीर से पाप के कानून का गुलाम हूँ।

8 इसलिए जो मसीह यीशु के साथ एकता में हैं, उन पर सज़ा का हुक्म नहीं है। 2 क्योंकि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति का वह कानून जो मसीह यीशु में जीवन देता है, उस कानून ने तुम्हें पाप और मौत के कानून से आज़ाद कर दिया है। 3 इसलिए कि मूसा का कानून इंसानों की असिद्धता की वजह से कमज़ोर होकर जो न कर पाया, वह परमेश्‍वर ने किया। परमेश्‍वर ने अपने बेटे को हाड़-माँस के इंसान की समानता में भेजा कि पाप को मिटाए। और इस तरह उसने शरीर में पाप को सज़ा का हुक्म सुनाया। 4 ताकि कानून की धर्मी माँगें हममें यानी जो शरीर के मुताबिक नहीं बल्कि पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलते हैं, पूरी हो सकें। 5 जो शारीरिक हैं वे शरीर की बातों पर मन लगाते हैं, मगर जो परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलते हैं, वे पवित्र शक्‍ति की बातों पर मन लगाते हैं। 6 इसलिए कि शरीर पर मन लगाने का मतलब मौत है, मगर पवित्र शक्‍ति की बातों पर मन लगाने का मतलब जीवन और शांति है। 7 क्योंकि शरीर की बातों पर मन लगाना, परमेश्‍वर से दुश्‍मनी रखना है इसलिए कि शरीर न तो परमेश्‍वर के कानून के अधीन है, न हो सकता है। 8 तो फिर, जो शरीर के मुताबिक चलते हैं, वे परमेश्‍वर को खुश नहीं कर सकते।

9 लेकिन अगर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति सचमुच तुममें वास करती है, तो तुम शरीर के मुताबिक नहीं, बल्कि पवित्र शक्‍ति के मुताबिक चलते हो। लेकिन अगर किसी में मसीह का स्वभाव नहीं है, तो वह मसीह का नहीं है। 10 लेकिन अगर मसीह तुम्हारे साथ एकता में है, तो चाहे तुम्हारा शरीर पाप की वजह से मुरदा है, फिर भी पवित्र शक्‍ति तुम्हें जीवन देती है, क्योंकि तुम परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहराए गए हो। 11 अब अगर यीशु को मरे हुओं में से जी उठानेवाले की पवित्र शक्‍ति तुममें वास करती है, तो मसीह यीशु को मरे हुओं में से जी उठानेवाला, तुम्हारे नश्‍वर शरीर को भी अपनी उस पवित्र शक्‍ति से ज़िंदा करेगा जो तुममें रहती है।

12 तो फिर भाइयो, हम शरीर के मुताबिक जीने और उसके काम करने के लिए मजबूर नहीं हैं। 13 अगर तुम शरीर के मुताबिक जीते हो तो तुम्हारा मरना तय है, लेकिन अगर तुम परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से शरीर के कामों को मार देते हो, तो तुम ज़िंदा रहोगे। 14 इसलिए कि जितने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, वे ही परमेश्‍वर के बेटे हैं। 15 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति* न तो हमें गुलाम बनाती है, न ही हमारे अंदर डर पैदा करती है, बल्कि यह हमारा मार्गदर्शन करती है ताकि हम बेटों के नाते गोद लिए जाएँ और इस पवित्र शक्‍ति की वजह से हम “अब्बा, हे पिता!” पुकारते हैं। 16 परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति* हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है कि हम परमेश्‍वर के बच्चे हैं। 17 तो अगर हम उसके बच्चे हैं, तो वारिस भी हैं: हाँ, परमेश्‍वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस, बशर्ते हम उसके साथ दुःख झेलें ताकि हम उसके साथ महिमा भी पाएँ।

18 इसलिए, मैं समझता हूँ कि आज के दौर में हम जो दुःख झेल रहे हैं वे उस महिमा के आगे कुछ भी नहीं जो हमारे मामले में ज़ाहिर होनेवाली है। 19 सृष्टि, परमेश्‍वर के बेटों के ज़ाहिर होने का इंतज़ार करते हुए बड़ी बेताबी से आस लगाए हुए है। 20 इसलिए कि सृष्टि व्यर्थता के अधीन की गयी, मगर अपनी मरज़ी से नहीं बल्कि इसे अधीन करनेवाले ने आशा के आधार पर इसे अधीन किया। 21 इस आशा के आधार पर कि सृष्टि भी भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होकर परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएगी। 22 हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक एक-साथ कराहती और दर्द से तड़पती रहती है। 23 यही नहीं, मगर हम जिन्हें अपनी विरासत का पहला फल, यानी पवित्र शक्‍ति मिली है, हाँ हम भी अपने दिलों में कराहते हैं। इस दौरान हम बड़ी बेचैनी से इंतज़ार कर रहे हैं कि परमेश्‍वर हमें अपने बेटों के नाते गोद ले ले और फिरौती के ज़रिए हमारे शरीरों से छुटकारा दिलाए। 24 जब हमें पाप की गुलामी से छुटकारा दिलाया गया तब हमें यह आशा थी। मगर जिस चीज़ की आशा की जाती है, जब वह दिखायी पड़ जाती है तो वह आशा नहीं रहती, इसलिए कि इंसान जिसे देख लेता है क्या फिर उसकी आशा रखता है? 25 लेकिन अगर हम उसकी आशा रखते हैं जिसे हमने देखा नहीं, तो हम धीरज के साथ उसका इंतज़ार करते रहते हैं।

26 इसके अलावा, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति भी हमारी कमज़ोरी में हमारी मदद करती है। क्योंकि समस्या यह है कि जब हमें प्रार्थना करनी चाहिए, तब हम नहीं जानते कि हम क्या प्रार्थना करें। मगर पवित्र शक्‍ति खुद हमारी दबी हुई आहों के साथ हमारे लिए बिनती करती है। 27 और दिलों को जाँचनेवाला जानता है कि पवित्र शक्‍ति का क्या मतलब है, क्योंकि यह परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक पवित्र जनों की खातिर बिनती करती है।

28 और हम जानते हैं कि जो परमेश्‍वर से प्यार करते हैं और जो उसके मकसद के मुताबिक बुलाए गए हैं, उनकी खातिर परमेश्‍वर अपने सब कामों के बीच इस तरह सहयोग कराता है जिससे इनका भला हो। 29 क्योंकि जिन पर उसने सबसे पहले ध्यान दिया, उनके लिए पहले से यह भी तय किया कि वे ऐसे ढाले जाएँ कि बिलकुल उसके बेटे जैसे हों, ताकि वह बहुत-से भाइयों में पहलौठा ठहरे। 30 यही नहीं, जिन्हें उसने पहले से ठहराया ये वे हैं जिन्हें उसने बुलाया भी। और जिन्हें उसने बुलाया ये वे हैं, जिन्हें उसने नेक करार भी दिया। और जिन्हें उसने नेक करार दिया ये वे हैं जिन्हें उसने महिमा भी दी।

31 तो फिर, इन बातों के बारे में हम क्या कहें? अगर परमेश्‍वर हमारी तरफ है, तो कौन हमारे खिलाफ कुछ कर सकेगा? 32 वह जिसने अपना बेटा तक दे दिया और हम सबके लिए उसे मौत के हवाले कर दिया, वह हम पर कृपा करते हुए उसके साथ-साथ हमें बाकी सबकुछ भी क्यों न देगा? 33 परमेश्‍वर के चुने हुओं के खिलाफ कौन इलज़ाम लगा सकता है? परमेश्‍वर है जो उन्हें नेक करार देता है। 34 कौन है जो उन्हें सज़ा के लायक ठहराएगा? कोई नहीं, क्योंकि हमारे लिए मसीह यीशु है जो मरा, हाँ, जिसे मरे हुओं में से जी उठाया गया, जो परमेश्‍वर की दायीं तरफ है और जो हमारी खातिर बिनती भी करता है।

35 कौन हमें मसीह के प्यार से अलग कर सकता है? क्या संकट या वेदना या ज़ुल्म या भूख या उघाड़ापन या खतरा या तलवार? 36 ठीक जैसा लिखा है: “तेरी खातिर हम दिन-भर मौत के हवाले किए जाते हैं, हमें उन भेड़ों में गिना जाता है जिन्हें काटा जाना है।” 37 इसके उलट, इन सारी मुसीबतों में से हम उसके ज़रिए शानदार जीत हासिल करते हुए निकलते हैं जिसने हमसे प्यार किया। 38 इसलिए कि मुझे यकीन है कि न तो मौत, न ज़िंदगी, न स्वर्गदूत, न सरकारें, न आज की चीज़ें, न आनेवाली चीज़ें, न कोई ताकत 39 न ऊँचाई, न गहराई, न ही कोई और सृष्टि हमें परमेश्‍वर के उस प्यार से अलग कर सकेगी जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है।

9 मैं मसीह में सच कहता हूँ, मैं झूठ नहीं बोल रहा, इसलिए कि मेरा ज़मीर मेरे साथ पवित्र शक्‍ति में गवाही देता है, 2 कि मुझे गहरा दुःख है और मेरे दिल में ऐसा दर्द उठता है जो थमने का नाम नहीं लेता। 3 काश ऐसा होता कि अपने भाइयों और रिश्‍तेदारों के बजाय, मैं वह शापित जन ठहरता जो मसीह से दूर हो गया है और जिनसे मेरा खून का रिश्‍ता है उनके बजाय मुझे नाश किया जाता। 4 ये इस्राएली हैं, जिन्हें बेटों के तौर पर गोद लिया गया था। उन्हीं को महिमा, और करार और मूसा का कानून दिया गया था और पवित्र सेवा सौंपी गयी थी और उन्हीं से वादे किए गए थे। 5 हमारे पुरखे भी उन्हीं में से हैं और उन्हीं के वंश में से मसीह पैदा हुआ। परमेश्‍वर जो सबके ऊपर है, हमेशा-हमेशा के लिए धन्य हो। आमीन।

6 मगर ऐसा नहीं है कि परमेश्‍वर का वचन मानो नाकाम हो गया। इसलिए कि इस्राएल के वंश से निकलनेवाले सभी सचमुच “इस्राएली” नहीं हैं। 7 न ही अब्राहम के वंश के होने की वजह से वे सभी असल में उसके बच्चे हैं, मगर जैसा लिखा है: “जो ‘तेरा वंश’ कहलाएगा, वह इसहाक से होगा।” 8 इसका मतलब यह है कि जो खून के रिश्‍ते से अब्राहम के बच्चे हैं, वे असल में परमेश्‍वर के बच्चे नहीं, बल्कि जो परमेश्‍वर के वादे के मुताबिक उसके बच्चे हैं, वे ही अब्राहम का वंश माने जाते हैं। 9 क्योंकि वादे के शब्द ये थे: “मैं अगले साल इसी वक्‍त आऊँगा और सारा एक बेटे को जन्म देगी।” 10 मगर यह वादा सिर्फ इसी मामले में नहीं किया गया था, बल्कि तब भी किया गया था जब रिबका हमारे पुरखे इसहाक से गर्भवती हुई और उसके गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे। 11 और यह वादा उस वक्‍त किया गया जिस वक्‍त तक बच्चे पैदा भी न हुए थे, न ही उन्होंने कोई अच्छा-बुरा काम ही किया था, ताकि परमेश्‍वर के मकसद के मुताबिक चुनाव, कामों पर निर्भर न होकर उस परमेश्‍वर पर निर्भर रहे जो किसी का चुनाव करने के लिए उसे बुलाता है। 12 रिबका से कहा गया: “बड़ा, छोटे का दास होगा।” 13 ठीक जैसा लिखा भी है: “याकूब से मैंने बहुत प्यार किया, मगर एसाव से कम*।”

14 तो हम क्या कहें? क्या परमेश्‍वर अन्याय करता है? हरगिज़ नहीं! 15 इसलिए कि वह मूसा से कहता है: “मैं जिस किसी पर दया दिखाना चाहूँ उस पर दया दिखाऊँगा और जिस किसी पर करुणा करना चाहूँ उस पर करुणा करूँगा।” 16 तो फिर यह न तो चाहनेवाले पर निर्भर करता है, न ही दौड़ में शामिल होनेवाले पर, बल्कि परमेश्‍वर पर निर्भर करता है जो दया दिखाता है। 17 इसलिए कि शास्त्रवचन फिरौन के बारे में यह कहता है: “मैंने तुझे इस वजह से अब तक ज़िंदा छोड़ा है, ताकि तुझे मिसाल बनाकर अपनी शक्‍ति दिखाऊँ जिससे मेरा नाम सारी धरती पर मशहूर हो।” 18 तो फिर, वह जिस किसी पर चाहता है दया दिखाता है, मगर जिस किसी के मामले में चाहता है उसका दिल कठोर होने देता है।

19 इसलिए अब तू मुझसे कहेगा: “तो फिर क्यों वह इंसानों को अब तक दोषी ठहराता है? कौन है जो उसकी ज़ाहिर मरज़ी के खिलाफ खड़ा रह सका है?” 20 हे इंसान, तू कौन है जो परमेश्‍वर को पलटकर जवाब देने की जुर्रत करता है? क्या ढाली हुई चीज़ अपने ढालनेवाले से कह सकती है, “तू ने मुझे ऐसा क्यों बनाया?” 21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं कि वह एक ही लोंदे से एक बर्तन आदर के काम के लिए और दूसरा मामूली काम* के लिए बनाए? 22 तो क्या हुआ अगर परमेश्‍वर ने अपना क्रोध प्रकट करने और अपनी शक्‍ति दिखाने की इच्छा रखते हुए भी बड़ी सहनशीलता के साथ उन क्रोध के बर्तनों यानी दुष्ट लोगों को बरदाश्‍त किया जो नाश होने के लायक हैं? 23 क्या हुआ अगर उसने ऐसा इसलिए किया कि अपनी अपार महिमा दया के बर्तनों पर ज़ाहिर कर सके जिन्हें उसने महिमा पाने के लिए पहले से तैयार किया है, 24 यानी हम पर जिन्हें उसने न सिर्फ यहूदियों में से बल्कि गैर-यहूदी राष्ट्रों में से भी बुलाया है? 25 यह ऐसा ही है जैसा होशे की किताब में भी वह कहता है: “जो मेरे लोग नहीं हैं, उन्हें मैं ‘अपने लोग’ कहूँगा और जो मेरी प्यारी नहीं थी, उसे ‘प्यारी’ कहूँगा, 26 और जिस जगह उनसे कहा गया था कि ‘तुम मेरे लोग नहीं हो,’ वहाँ वे ‘जीवित परमेश्‍वर के बेटे’ कहलाएँगे।”

27 इतना ही नहीं, यशायाह इस्राएल के बारे में पुकारकर यह कहता है: “इस्राएल के बेटों की गिनती चाहे समुद्र की रेत के कणों जितनी अनगिनत क्यों न हो, मगर उनमें थोड़े ही हैं जिन्हें बचाया जाएगा। 28 इसलिए कि यहोवा उन लोगों से जो धरती पर जी रहे हैं, हिसाब लेगा और बड़ी तेज़ी से यह काम पूरा करेगा।” 29 साथ ही, जैसे यशायाह ने पहले कहा था: “अगर सेनाओं का यहोवा हमारे लिए एक वंश न छोड़ता, तो हम बिलकुल सदोम की तरह हो जाते और हमारा हाल अमोरा जैसा कर दिया जाता।”

30 तो फिर हम क्या कहें? यही कि गैर-यहूदी राष्ट्रों के लोग परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, फिर भी परमेश्‍वर उन्हें अपनी मंज़ूरी देता है क्योंकि उनमें विश्‍वास है। 31 लेकिन इस्राएल ने मूसा के कानून पर चलकर परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने की कोशिश की, मगर वे इस कानून का पूरी तरह पालन न कर सके। 32 वजह क्या थी? क्योंकि उन्होंने विश्‍वास से नहीं बल्कि अपने कामों से परमेश्‍वर की मंज़ूरी हासिल करनी चाही। उन्होंने “ठोकर खिलानेवाले पत्थर” पर ठोकर खायी। 33 जैसा लिखा भी है: “देख! मैं सिय्योन में ठोकर खिलानेवाला पत्थर और ठेस पहुँचानेवाली चट्टान रखता हूँ, मगर जो उस पर विश्‍वास करेगा वह निराश न होगा।”

10 भाइयो, मैं दिल से यही चाहता हूँ और परमेश्‍वर से उनके लिए मेरी यही प्रार्थना है कि इस्राएली उद्धार पाएँ। 2 इसलिए कि मैं उनके बारे में गवाही देता हूँ कि वे परमेश्‍वर की सेवा के लिए जोश तो रखते हैं, मगर सही ज्ञान के मुताबिक नहीं। 3 क्योंकि परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहरने के लिए क्या ज़रूरी है, यह न जानते हुए वे खुद को नेक ठहराने की कोशिश में लगे रहे। इसलिए वे नेक ठहराए जाने की परमेश्‍वर की माँगों के अधीन न हुए। 4 मसीह की मौत पर मूसा के कानून का अंत हो गया, ताकि हर कोई जो मसीह पर विश्‍वास रखे वह परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहरे।

5 हाँ, यह सच है, मूसा ने लिखा है कि एक इंसान कानून का सख्ती से पालन करने पर ही परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहर सकेगा और जीवन पाएगा। 6 मगर जो लिखा गया था उससे यह भी पता चलता है कि परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहरने के लिए विश्‍वास ज़रूरी है। ध्यान दो कि क्या लिखा है: “अपने दिल में यह न कहो, ‘कौन ऊपर स्वर्ग जाएगा?’ कि मसीह को नीचे ले आए। 7 या, ‘कौन अथाह-कुंड में उतरेगा?’ ताकि मसीह को मरे हुओं में से ऊपर ले आए।” 8 मगर शास्त्र क्या कहता है? यह कहता है: “यह संदेश तेरे पास, तेरे ही मुँह में और तेरे ही दिल में है,” यानी वह “संदेश” जिसे विश्‍वास से स्वीकार किया जाता है और जिसका हम प्रचार कर रहे हैं। 9 अगर तू सब लोगों के सामने ‘अपने मुँह के इस संदेश’ का ऐलान करे कि यीशु ही प्रभु है और अपने दिल में यह विश्‍वास रखे कि परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से जी उठाया है, तो तू उद्धार पाएगा। 10 इसलिए कि एक इंसान परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहरने के लिए दिल से विश्‍वास करता है, मगर उद्धार पाने के लिए सब लोगों के सामने मुँह से अपने विश्‍वास का ऐलान करता है।

11 क्योंकि शास्त्र कहता है: “जो कोई उसे अपने विश्‍वास का आधार बनाता है, वह शर्मिंदा नहीं होगा।” 12 इसलिए कि यहूदी और यूनानी* के बीच कोई फर्क नहीं, क्योंकि सबके ऊपर एक ही प्रभु है, जो अपने सब पुकारनेवालों को ढेरों आशीषें देता है। 13 इसलिए कि लिखा है: “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।” 14 मगर वे उसका नाम कैसे पुकारेंगे जिस पर उन्होंने विश्‍वास ही नहीं किया? और वे उस पर कैसे विश्‍वास करेंगे जबकि उन्होंने उसके बारे में सुना ही नहीं? और वे उसके बारे में कैसे सुनेंगे जब तक कि कोई प्रचार करनेवाला न हो? 15 और प्रचार करनेवाले कैसे प्रचार करेंगे जब तक कि उन्हें भेजा न जाए? ठीक जैसा लिखा है: “उनके पाँव कितने सुंदर हैं जो अच्छी बातों की खुशखबरी सुनाते हैं!”

16 फिर भी, इस्राएलियों में से सबने खुशखबरी स्वीकार नहीं की। क्योंकि यशायाह कहता है: “यहोवा, किसने हमारे संदेश पर विश्‍वास किया है?” 17 तो संदेश सुनने के बाद ही विश्‍वास किया जाता है। और संदेश तब सुना जाता है जब कोई मसीह के बारे में वचन सुनाता है। 18 मगर मैं पूछता हूँ, क्या उन्होंने संदेश सुना नहीं? बेशक सुना, क्योंकि लिखा है: “संदेश सुनानेवालों की आवाज़ सारी धरती पर गूँज उठी और उनके वचन धरती के कोने-कोने तक पहुँच गए।” 19 फिर भी मैं पूछता हूँ, क्या इस्राएली समझ नहीं पाए? पहले मूसा कहता है: “मैं उन लोगों के ज़रिए तुम्हारे अंदर जलन पैदा करूँगा जो एक राष्ट्र तक नहीं। मैं एक मूर्ख राष्ट्र के ज़रिए तुम्हारे अंदर गुस्से की आग भड़काऊँगा।” 20 फिर यशायाह और भी बेधड़क होकर यह कहता है: “जिन्होंने मुझे नहीं ढूँढ़ा, उन्होंने मुझे पा लिया, और जिन्होंने मेरे बारे में न पूछा उन पर मैं ज़ाहिर हुआ।” 21 लेकिन इस्राएलियों के बारे में वह कहता है: “मैं दिन-भर ऐसे लोगों के लिए अपनी बाँहें फैलाए रहा जो मेरी आज्ञा नहीं मानते और मेरे खिलाफ बोलते हैं।”

11 तो फिर, मैं पूछता हूँ क्या परमेश्‍वर ने अपने लोगों को ठुकरा दिया? ऐसा हो नहीं सकता! इसलिए कि मैं भी तो एक इस्राएली हूँ, अब्राहम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र से हूँ। 2 परमेश्‍वर ने अपने उन लोगों को नहीं ठुकराया, जिन पर उसने सबसे पहले खास ध्यान दिया। क्यों, क्या तुम नहीं जानते कि जब एलिय्याह ने परमेश्‍वर से इस्राएल के खिलाफ बिनती की थी, तो शास्त्र इस बारे में क्या कहता है? 3 “हे यहोवा, उन्होंने तेरे भविष्यवक्‍ताओं को मार डाला है, उन्होंने तेरी वेदियों को खोदकर गिरा दिया है और मैं ही अकेला बचा हूँ और अब वे मेरी जान लेने के लिए मुझे ढूँढ़ रहे हैं।” 4 लेकिन, परमेश्‍वर ने उसे क्या जवाब दिया? “मैंने ऐसे सात हज़ार पुरुषों को अपने लिए बचा रखा है, जिन्होंने बाल देवता की पूजा करने के लिए उसके आगे घुटने नहीं टेके।” 5 इसी तरह, इस वक्‍त में भी कुछ बचे हुए ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्‍वर की महा-कृपा की वजह से चुना गया है। 6 अगर चुना जाना महा-कृपा की वजह से है, तो फिर अब यह कामों के आधार पर न रहा, नहीं तो, महा-कृपा फिर महा-कृपा नहीं रहती।

7 तो फिर, हम क्या कहें? इस्राएल जिस चीज़ की खोज में बड़े जतन से लगा हुआ था वह उसे हासिल नहीं हुई, मगर यह चुने हुओं को हासिल हुई। बाकियों के दिल कठोर हो गए, 8 ठीक जैसा लिखा है: “परमेश्‍वर ने उन्हें आध्यात्मिक मायने में गहरी नींद में डाल दिया है, उनकी आँखें ऐसी हैं जो देख नहीं सकतीं और कान ऐसे हैं जो सुन नहीं सकते। आज तक उनकी हालत ऐसी ही है।” 9 और दाविद भी कहता है: “उनकी दावत की मेज़ उनके लिए फंदा और जाल और ठोकर खिलानेवाला पत्थर और सज़ा का कारण बन जाए। 10 उनकी आँखों में अंधेरा छा जाए ताकि वे देख न सकें और उनकी पीठ हमेशा के लिए झुकी रहे।”

11 इसलिए मैं पूछता हूँ, क्या उन्होंने ऐसी ठोकर खायी कि हमेशा के लिए गिर पड़ें? हरगिज़ नहीं! मगर उनके गलत कदम उठाने से गैर-यहूदी राष्ट्रों के लोगों को उद्धार मिला जिससे यहूदियों में जलन पैदा हो। 12 अब अगर उनके गलत कदम उठाने से दुनिया को आशीषें मिलीं, और उनके घटने से गैर-यहूदी राष्ट्रों के लोगों ने आशीषें पायीं, तो उनकी गिनती के पूरा होने से और कितना फायदा होगा!

13 अब मैं तुमसे बात करता हूँ, तुम जो गैर-यहूदी राष्ट्रों के लोग हो। क्योंकि असल में मैं गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित यानी भेजा हुआ हूँ, और मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूँ। 14 और इस सेवा के ज़रिए मैं कोशिश करता हूँ कि उनमें, जो मेरे अपने ही लोग हैं, किसी तरह जलन पैदा कर सकूँ और उनमें से कुछ का उद्धार करवा सकूँ। 15 इसलिए कि जब उनका त्यागा जाना दुनिया के लिए परमेश्‍वर के साथ सुलह का कारण बना, तो उन्हें स्वीकार किया जाना उनके लिए जी उठने जैसा क्यों न होगा, जो मरी हुई हालत में थे? 16 इसके अलावा, अगर पहले फल के तौर पर ली गयी आटे की लोई पवित्र है, तो गुँधा हुआ पूरा आटा भी पवित्र है, और अगर जड़ पवित्र है, तो डालियाँ भी पवित्र हैं।

17 लेकिन अगर, जैतून के पेड़ की कुछ डालियाँ तोड़ दी गयीं और तुझे, जंगली जैतून की डाल होते हुए भी, बाकी डालियों के बीच कलम लगाया गया और तू जैतून की जड़ के उत्तम रस* का हिस्सेदार हो गया है, 18 तो तू टूटी हुई डालियों के सामने घमंड से न फूल। अगर तू घमंड करता है, तो याद रख कि तू जड़ को नहीं, बल्कि जड़ तुझे संभाले हुए है। 19 फिर तू कहेगा: “डालियाँ इसलिए तोड़ दी गयीं ताकि मैं उसमें कलम लगाया जाऊँ।” 20 ठीक है! उनके विश्‍वास की कमी की वजह से उन्हें तोड़ा गया मगर तू अपने विश्‍वास की वजह से कायम है। घमंड करना बंद कर, बल्कि सावधान रह। 21 इसलिए कि जब परमेश्‍वर ने असली डालियों को न बख्शा, तो तुझे भी न बख्शेगा। 22 इसलिए परमेश्‍वर की कृपा और सख्ती पर ध्यान दे। जो गिर गए उनके साथ सख्ती बरती गयी, लेकिन तुझ पर परमेश्‍वर की कृपा हुई, बशर्ते कि तू उसकी कृपा में बना रहे, नहीं तो तू भी काट डाला जाएगा। 23 फिर अगर वे भी विश्‍वास दिखाने लगें, तो उनकी भी कलम लगायी जाएगी। इसलिए कि परमेश्‍वर उन्हें दोबारा कलम लगाने के काबिल है। 24 इसलिए कि अगर तुझे जंगली जैतून में से काटकर, बाग में उगाए गए असली जैतून के पेड़ में प्रकृति के खिलाफ, कलम लगाया गया, तो ये असली डालियाँ अपने ही जैतून के पेड़ में और भी आसानी से क्यों न कलम लगायी जाएँगी!

25 भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम अपनी ही नज़र में खुद को बेहद समझदार मान बैठो और इस पवित्र रहस्य से अनजान रहो: इस्राएल का एक हिस्सा तब तक कठोर बना रहा जब तक कि गैर-यहूदी राष्ट्रों के लोगों की पूरी संख्या न आ गयी, 26 और इस तरह सारा इस्राएल उद्धार पाएगा। ठीक जैसा लिखा है: “छुड़ानेवाला सिय्योन से आएगा और याकूब से अभक्‍ति के काम दूर करेगा। 27 और जब मैं उनके पापों को दूर करूँगा, तब उनके साथ मैं एक करार करूँगा।” 28 सच है कि जहाँ तक खुशखबरी की बात है, वे परमेश्‍वर के दुश्‍मन हैं और इससे तुम्हें फायदा हुआ है, मगर जहाँ तक परमेश्‍वर के चुनने की बात है, तो उनके बापदादों को दिए गए वचन की वजह से वे परमेश्‍वर के प्यारे हैं। 29 इसलिए कि वरदानों और बुलावे के मामले में परमेश्‍वर अपना फैसला नहीं बदलेगा। 30 क्योंकि ठीक जैसे तुम एक वक्‍त में परमेश्‍वर की आज्ञा नहीं मानते थे, मगर अब तुम पर इसलिए दया दिखायी जा रही है, क्योंकि उन्होंने आज्ञा नहीं मानी, 31 वैसे ही इनके आज्ञा न मानने की वजह से तुम पर दया दिखायी गयी, ताकि अब खुद उन पर भी दया दिखायी जाए। 32 इसलिए कि परमेश्‍वर ने, यहूदी और गैर-यहूदी दोनों को आज्ञा न मानने की कैद में पड़ने दिया, ताकि वह उन सब पर दया दिखा सके।

33 वाह! परमेश्‍वर की दौलत और बुद्धि और ज्ञान की गहराई क्या ही अथाह है! उसके फैसले हमारी सोच से कितने परे और उसके मार्ग कैसे अगम हैं! 34 इसलिए कि “कौन यहोवा के मन को जान सका है या कौन उसे सलाह देनेवाला हुआ?” 35 या “कौन है जिसने उसे पहले कुछ दिया हो जो उसे लौटाया जाए?” 36 क्योंकि सबकुछ उसी की तरफ से, उसी के ज़रिए और उसी के लिए है। उसकी महिमा हमेशा-हमेशा होती रहे। आमीन।

12 इसलिए भाइयो, मैं तुम्हें परमेश्‍वर की करुणा का वास्ता देकर तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम अपने शरीर को जीवित, पवित्र और परमेश्‍वर को भानेवाले बलिदान के तौर पर अर्पित करो। इस तरह तुम अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल करते हुए पवित्र सेवा कर सकोगे। 2 और इस दुनिया की व्यवस्था* के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो, मगर अपने मन को नयी दिशा देने की वजह से तुम्हारी कायापलट होती जाए, ताकि तुम परखकर खुद के लिए मालूम करते रहो कि परमेश्‍वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी सिद्ध* इच्छा क्या है।

3 मुझ पर जो महा-कृपा हुई है, उसके ज़रिए मैं तुममें से हरेक से, जो वहाँ हैं, यह कहता हूँ कि कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे, बल्कि परमेश्‍वर ने हरेक को जो विश्‍वास बाँटा है उसी के मुताबिक समझे, ताकि वह स्वस्थ मन हासिल करे। 4 इसलिए कि जैसे हमारे एक ही शरीर में अनेक अंग हैं और सभी अंगों का काम एक जैसा नहीं है, 5 वैसे ही हम भी अनेक होते हुए भी मसीह के साथ एकता में एक शरीर हैं और एक-दूसरे से जुड़े अंग हैं। 6 तो जब उस महा-कृपा के मुताबिक जो हमें दिखायी गयी है, हमें अलग-अलग वरदान मिले हैं, चाहे भविष्यवाणी का वरदान हो, तो आओ, उस विश्‍वास के मुताबिक जो हमें बाँटा गया है, हम भविष्यवाणी करें। 7 या अगर सेवा का वरदान मिला है, तो आओ, हम सेवा में लगे रहें। और जिसे सिखाने का वरदान मिला है, वह शिक्षा देने में लगा रहे। 8 या जिसे सीख देकर उकसाने का वरदान मिला है, वह ऐसा करने में लगा रहे। जो बाँटता है वह दरियादिली से बाँटे, जो अगुवाई करता है, वह पूरी मेहनत से करे। जो दया दिखाता है, वह खुशी-खुशी दया दिखाए।

9 तुम्हारे प्यार में कपट न हो। दुष्ट बातों से घिन करो, अच्छी बातों से लिपटे रहो। 10 आपस में भाइयों जैसा प्यार दिखाते हुए एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखो। एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो। 11 अपने काम में आलस न दिखाओ। परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो। यहोवा के दास बनकर उसकी सेवा करो। 12 अपनी आशा की वजह से खुशी मनाओ। संकट में धीरज धरो। प्रार्थना में लगे रहो। 13 पवित्र जनों की ज़रूरतें पूरी करने में मदद करो। मेहमान-नवाज़ी दिखाने की आदत डालो। 14 जो तुम पर ज़ुल्म करते हैं, उनके लिए परमेश्‍वर से आशीष माँगते रहो। हाँ, आशीष ही दो, शाप मत दो। 15 खुशी मनानेवालों के साथ खुशी मनाओ, रोनेवालों के साथ रोओ। 16 दूसरों के लिए उसी तरह महसूस करो जैसा तुम खुद के लिए करते हो। बड़ी-बड़ी बातों पर मन न लगाओ, बल्कि जिन बातों* को दीन-हीन और छोटा समझा जाता है, उनसे लगाव रखते हुए उनके साथ लगे रहो। अपनी ही नज़र में खुद को बड़ा समझदार न समझो।

17 किसी को भी बुराई का बदला बुराई से न दो। ऐसे काम करने की कोशिश में रहो जो सबकी नज़र में बढ़िया हों। 18 जहाँ तक तुमसे हो सके, सबके साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो। 19 हे प्यारो, अपना बदला मत लेना, मगर परमेश्‍वर के क्रोध को मौका दो, क्योंकि लिखा है: “यहोवा कहता है, बदला देना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।” 20 लेकिन “अगर तेरा दुश्‍मन भूखा हो तो उसे खाना खिला। अगर वह प्यासा है तो उसे पानी पिला, इसलिए कि ऐसा करने से तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा।” 21 बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।

13 हर इंसान अपने ऊपर ठहराए गए उच्च-अधिकारियों के अधीन रहे, इसलिए कि ऐसा कोई अधिकार नहीं जो परमेश्‍वर की इजाज़त से न हो। मौजूदा अधिकारियों को परमेश्‍वर ने ही उनके मातहत पदों पर रहने दिया है। 2 इसलिए जो अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर के ठहराए इंतज़ाम के खिलाफ खड़ा होता है। जो इस इंतज़ाम के खिलाफ खड़े होते हैं वे सज़ा पाएँगे। 3 राज करनेवाले, उनके लिए डर की वजह हैं जो बुरे काम करते हैं, न कि अच्छे काम करनेवालों के लिए। क्या तू अधिकारी से निडर रहना चाहता है? तो वही करता रह जो अच्छा है और तुझे उससे तारीफ मिलेगी। 4 क्योंकि अधिकारी तेरे अच्छे के लिए परमेश्‍वर का सेवक है। लेकिन अगर तू वह करता है जो बुरा है, तो डर: क्योंकि वह बेवजह हाथ में तलवार लिए हुए नहीं है। इसलिए कि वह परमेश्‍वर का सेवक है और उसके क्रोध के मुताबिक ऐसे इंसान को सज़ा देता है जो बुराई में लगा रहता है।

5 इसलिए न सिर्फ उस क्रोध की वजह से बल्कि अपने ज़मीर की वजह से भी तुम्हारे लिए अधीन रहना ज़रूरी है। 6 इसी वजह से तुम कर भी अदा करते हो, क्योंकि वे परमेश्‍वर के ठहराए जन-सेवक हैं, जो इसी सेवा में लगे रहते हैं। 7 इसलिए जिसका जो हक बनता है वह उसे दो। जो कर की माँग करता है उसका कर अदा करो। जो चुंगी की माँग करता है, उसे चुंगी दो। जिससे डरना चाहिए, उससे डरो। जिसे आदर देना चाहिए उसे वह आदर दो।

8 एक-दूसरे के लिए प्यार को छोड़ किसी भी बात में एक-दूसरे के कर्ज़दार न बनो। इसलिए कि जो अपने पड़ोसी से प्यार करता है, उसने परमेश्‍वर का कानून पूरा किया है। 9 क्योंकि ये आज्ञाएँ, “तू शादी के बाहर यौन-संबंध न रखना, तू खून न करना, तू चोरी न करना, तू लालच न करना,” और इनके अलावा दूसरी जो भी आज्ञा है, उन सबका निचोड़ इस एक बात में पाया जाता है कि “तुझे अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना है जैसे तू खुद से करता है।” 10 प्यार अपने पड़ोसी के बुरे के लिए काम नहीं करता, इसलिए प्यार करना कानून को पूरा करना है।

11 ऐसा इसलिए भी करो क्योंकि तुम जानते हो कि कैसे वक्‍त में जी रहे हो। अब तुम्हारे लिए नींद से जाग उठने की घड़ी आ चुकी है, इसलिए कि जब हम विश्‍वासी बने थे, तब के मुकाबले आज हमारे उद्धार का वक्‍त और भी पास आ गया है। 12 रात बहुत बीत चुकी है, दिन निकलने पर है। इसलिए आओ हम अंधकार के कामों को उतार फेंकें और रौशनी के हथियार धारण कर लें। 13 आओ हम शराफत से चलें, जैसे दिन के वक्‍त शोभा देता है, न कि रंग-रलियाँ मनाएँ और नशेबाज़ी के दौर चलाएँ, न ही नाजायज़ संबंधों और बदचलनी में लगें, न ही झगड़ों और जलन में। 14 इसके बजाय, प्रभु यीशु मसीह को पहन लो और शरीर की वासनाओं को पूरा करने के मनसूबे न बाँधो।

14 जिसका विश्‍वास कमज़ोर है उसे स्वीकार करो, मगर उसके निजी विचारों के बारे में फैसले करने के लिए नहीं। 2 किसी को विश्‍वास है कि सबकुछ खाया जा सकता है, मगर जो विश्‍वास में कमज़ोर है वह साग-सब्ज़ी खाता है। 3 खानेवाला, न खानेवाले को नीचा न समझे, वैसे ही न खानेवाला उस पर दोष न लगाए जो खाता है, क्योंकि परमेश्‍वर उसे स्वीकार करता है। 4 तू दूसरे के घर के नौकर को दोषी ठहरानेवाला कौन होता है? वह खड़ा रहेगा या गिर जाएगा, इसका फैसला करना उसके मालिक के हाथों में है। दरअसल, उसे खड़ा किया जाएगा, क्योंकि यहोवा उसे खड़ा कर सकता है।

5 कोई आदमी, एक दिन को दूसरे दिन से बड़ा मानता है, तो दूसरा सभी दिनों को एक बराबर मानता है। हर एक इंसान वह करे जिस पर उसे पूरे मन से यकीन है। 6 जो आदमी किसी दिन को खास मानता है, वह यहोवा के लिए मानता है। साथ ही, जो खाता है, वह यहोवा के आदर के लिए खाता है, क्योंकि वह परमेश्‍वर को धन्यवाद देकर खाता है। और जो नहीं खाता वह यहोवा के लिए नहीं खाता, फिर भी वह परमेश्‍वर का धन्यवाद करता है। 7 दरअसल हम में से कोई भी सिर्फ अपने लिए नहीं जीता, और न ही कोई अपने लिए मरता है। 8 क्योंकि अगर हम जीते हैं, तो यहोवा के लिए जीते हैं और अगर मरते हैं तो यहोवा के लिए मरते हैं। इसलिए चाहे हम जीएँ या मरें, हम यहोवा ही के हैं। 9 इसी वजह से मसीह मरा और फिर जी उठा कि वह मरे हुओं और जीवितों, दोनों का प्रभु ठहरे।

10 लेकिन तू अपने भाई को क्यों दोषी ठहराता है? या अपने भाई को क्यों नीचा समझता है? हम सब परमेश्‍वर के न्याय-आसन के सामने खड़े होंगे, 11 क्योंकि यह लिखा है: “यहोवा कहता है, ‘बेशक,* हरेक का घुटना मेरे सामने टिकेगा और हर कोई अपनी ज़बान से सबके सामने मान लेगा कि मैं ही परमेश्‍वर हूँ।’” 12 तो फिर, हम में से हरेक इंसान परमेश्‍वर को अपना-अपना हिसाब देगा।

13 इसलिए अब से हम एक-दूसरे पर दोष न लगाएँ। इसके बजाय, तुम यह ठान लो कि किसी भाई को ठोकर न खिलाओगे, न ही गिरने की वजह दोगे। 14 मैं जानता हूँ और प्रभु यीशु में मुझे यकीन है कि कोई भी चीज़ अपने आप में अशुद्ध नहीं है, मगर जो उसे अशुद्ध समझता है उसके लिए वह चीज़ अशुद्ध है। 15 क्योंकि अगर तेरे खाने की वजह से तेरे भाई को ठेस पहुँचती है, तो तू अब प्यार की राह पर नहीं चल रहा। जिसके लिए मसीह ने अपनी जान दी है, तू अपने खाने के ज़रिए उसे नाश न कर। 16 इसलिए तुम लोग जो अच्छा काम करते हो, उसकी बदनामी न होने दो। कहीं ऐसा न हो कि यह तुम्हारे लिए नुकसानदेह हो। 17 इसलिए कि परमेश्‍वर के राज का मतलब खाना-पीना नहीं, बल्कि नेकी, शांति, और वह खुशी है जो परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से मिलती है। 18 जो इस तरीके से मसीह का दास बनकर उसकी सेवा करता है, वह परमेश्‍वर को भाता है और इंसानों से तारीफ पाता है।

19 तो आओ हम उन बातों में लगे रहें जिनसे शांति कायम होती है और एक-दूसरे का हौसला मज़बूत होता है।* 20 खाने की खातिर, परमेश्‍वर के काम को बरबाद मत करो। माना कि सब चीज़ें शुद्ध हैं, मगर ये तब नुकसानदेह हो जाती हैं जब एक इंसान का खाना दूसरे के लिए ठोकर की वजह बनता है। 21 अच्छा तो यह है कि तू न माँस खाए, न दाख-मदिरा पीए, न ही ऐसा कुछ करे जिससे तेरे भाई को ठोकर लगे। 22 इन चीज़ों के बारे में तेरा जो विश्‍वास है, उसे परमेश्‍वर के सामने अपने तक ही सीमित रख। सुखी है वह इंसान जो उस बात में जिसे वह ठीक समझता है, अपने आप को दोषी नहीं ठहराता। 23 लेकिन अगर उसके मन में शंका है, फिर भी वह खाता है तो वह दोषी ठहर चुका है, क्योंकि वह विश्‍वास से नहीं खाता। वाकई, हर वह चीज़ जो विश्‍वास से नहीं है, पाप है।

15 लेकिन हम जो विश्‍वास में मज़बूत हैं, हमें चाहिए कि हम उनकी कमज़ोरियाँ सहें जो मज़बूत नहीं हैं, न कि खुद को खुश करने की सोचें। 2 हरेक अपने पड़ोसी को उन बातों में खुश करे जो उसके भले के लिए हैं और जिनसे उसे मज़बूती मिलती है। 3 इसलिए कि मसीह ने भी खुद को खुश नहीं किया, बल्कि ठीक जैसा लिखा है: “जो तेरी निंदा करते थे, उनकी निंदा भरी बातें मुझ पर आ पड़ी हैं।” 4 जो बातें पहले लिखी गयी थीं, वे सब हमारी हिदायत के लिए लिखी गयी थीं, ताकि इनसे हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम शास्त्र से दिलासा पाएँ, और इनके ज़रिए हम आशा रख सकें। 5 धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर तुम्हें ऐसी आशीष दे कि तुम्हारे मन का स्वभाव वैसा ही हो जैसा मसीह यीशु का था, 6 ताकि तुम सब एक मन से और एक आवाज़ में हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्‍वर और पिता की महिमा करो।

7 इसलिए, परमेश्‍वर की महिमा के लिए एक-दूसरे को अपना लो,* ठीक जैसे मसीह ने भी हमें अपनाया है।* 8 मैं कहता हूँ कि मसीह असल में खतना पानेवालों का सेवक बना ताकि यह गवाही दे कि परमेश्‍वर सच्चा है और परमेश्‍वर ने उनके बापदादों से जो वादे किए थे वे भरोसे के लायक हैं, 9 और इसलिए भी कि गैर-यहूदी राष्ट्र परमेश्‍वर की दया के लिए उसकी बड़ाई करें। ठीक जैसा लिखा है: “इसीलिए मैं राष्ट्रों के बीच सरेआम तेरी तारीफ करूँगा और तेरे नाम का गीत गाऊँगा।” 10 फिर वह कहता है: “हे राष्ट्रो, उसके लोगों के साथ मग्न हो।” 11 और फिर कहता है: “हे सभी राष्ट्रो, यहोवा का गुणगान करो, और सारे लोग उसका गुणगान करें।” 12 और फिर यशायाह कहता है: “यिशै की जड़ प्रकट होगी और राष्ट्रों पर राज करनेवाला एक खड़ा होगा और राष्ट्र उस पर आशा रखेंगे।” 13 मेरी दुआ है कि आशा देनेवाला परमेश्‍वर, तुम्हारे विश्‍वास करने की वजह से तुम्हें सारी खुशी और शांति से भर दे, ताकि पवित्र शक्‍ति की ताकत से तुम्हारी आशा बढ़ती ही जाए।

14 भाइयो, मुझे तुम्हारे बारे में यकीन है कि तुम खुद भलाई से और सारे ज्ञान से भरपूर हो और एक-दूसरे को सीख भी दे सकते हो। 15 फिर भी मैं कुछ बातों के बारे में तुम्हें खुलकर लिख रहा हूँ, मानो तुम्हें फिर से याद दिला रहा हूँ, क्योंकि मुझे परमेश्‍वर की तरफ से महा-कृपा हासिल हुई है। 16 यह महा-कृपा मुझे इसलिए दी गयी कि मैं मसीह यीशु के एक जन-सेवक के नाते गैर-यहूदी राष्ट्रों में परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनाने का पवित्र काम करूँ। यह काम मैं इसलिए करता हूँ ताकि गैर-यहूदी राष्ट्र एक ऐसी भेंट के तौर पर परमेश्‍वर को चढ़ाए जाएँ जो उसे स्वीकार हो और पवित्र शक्‍ति से पवित्र ठहरायी गयी हो।

17 इसलिए जब परमेश्‍वर की सेवा से जुड़ी बात आती है, तो मैं मसीह यीशु का चेला होने पर गर्व करता हूँ। 18 जो काम मसीह ने मेरे ज़रिए किए हैं, उनके बारे में बताने के अलावा मैं कुछ और कहने की जुर्रत नहीं करूँगा। मसीह ने मेरे ज़रिए काम किया कि गैर-यहूदी राष्ट्रों को आज्ञाकारी बनाए। उसने मेरे वचनों और कामों के ज़रिए, 19 चमत्कारों और आश्‍चर्य के कामों की ताकत से और पवित्र शक्‍ति की ताकत से ऐसा किया है। मैंने यरूशलेम से इल्लुरिकुम के बीच चारों तरफ मसीह के बारे में खुशखबरी का अच्छी तरह प्रचार किया है। 20 वाकई, इस तरह मैंने अपना यह लक्ष्य बनाया है कि मैं ऐसे इलाकों में खुशखबरी न सुनाऊँ जहाँ मसीह के नाम का प्रचार पहले ही हो चुका है, ताकि मैं किसी दूसरे की डाली हुई नींव पर इमारत खड़ी न करूँ। 21 इसके बजाय, मैंने वैसा ही करने का लक्ष्य बनाया है जैसा लिखा है: “जिन्हें उसके बारे में कभी नहीं बताया गया, वे देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे समझेंगे।”

22 इसलिए मुझे तुम्हारे पास आने से बहुत बार रोका भी गया। 23 मगर अब इन प्रांतों में मेरे पास कोई अनछूआ इलाका नहीं बचा और मैं कुछ साल से तुम्हारे पास आने के लिए तरस भी रहा था। 24 इसलिए सबसे बढ़कर मेरी यही आशा है कि जब कभी मैं स्पेन के सफर पर निकलूँ, तो रास्ते में तुम्हारे पास आऊँ ताकि कुछ वक्‍त के लिए तुम्हारी संगति का आनंद लेकर अपना जी भर सकूँ, जिसके बाद तुम मुझे कुछ दूर आगे तक पहुँचा देना। 25 लेकिन अभी मैं पवित्र जनों की सेवा करने के लिए यरूशलेम के सफर पर जानेवाला हूँ। 26 यरूशलेम के पवित्र जनों में जो गरीब हैं उनके लिए मकिदुनिया और अखया के रहनेवालों ने अपनी संपत्ति में से खुशी-खुशी दान दिया है। 27 सच है कि उन्होंने ऐसा करने से खुशी पायी है, फिर भी असल में वे उनके कर्ज़दार थे। क्योंकि जब गैर-यहूदी राष्ट्रों ने परमेश्‍वर से मिले उन वरदानों में हिस्सा पाया जो यरूशलेम के पवित्र जनों को मिले थे, तो उनका भी यह फर्ज़ बनता है कि वे उनके तन की ज़रूरतें पूरी करने के लिए दान दें। 28 इसलिए मैं यह काम पूरा करने और खुद ही उन तक यह दान पहुँचाने के बाद, तुम्हारे यहाँ से होता हुआ स्पेन जाऊँगा। 29 और मैं जानता हूँ कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मसीह की तरफ से भरपूर आशीष के साथ आऊँगा।

30 अब मेरे भाइयो, हमारे प्रभु यीशु मसीह में तुम्हारे विश्‍वास और उस प्यार के ज़रिए जो पवित्र शक्‍ति ने तुम्हारे अंदर पैदा किया है, मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि तुम मेरे लिए परमेश्‍वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ तन-मन से लगे रहो 31 कि परमेश्‍वर मुझे यहूदिया के अविश्‍वासियों के हाथों में पड़ने से बचाए और मेरी सेवा जो यरूशलेम के लिए है वह पवित्र जनों को स्वीकार हो, 32 ताकि जब मैं परमेश्‍वर की मरज़ी से खुशी-खुशी तुम्हारे पास आऊँ, तो तुम्हारी संगति से तरो-ताज़ा हो जाऊँ। 33 दुआ करता हूँ कि शांति देनेवाला परमेश्‍वर तुम सबके साथ रहे। आमीन।

16 मैं तुम्हारे पास हमारी बहन फीबे को भेज रहा हूँ जो किंख्रिया की मंडली* में सेवा करती है। मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि 2 प्रभु में उसका वैसे ही स्वागत करो जैसे पवित्र जनों का किया जाना चाहिए, और अगर किसी भी काम में उसे तुम्हारी ज़रूरत पड़े तो उसकी मदद करना, क्योंकि वह खुद भी बहुतों की, और हाँ, मेरी भी मददगार* साबित हुई है।

3 प्रिसका और अक्विला को, जो मसीह यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, मेरा नमस्कार। 4 उन्होंने मेरी जान बचाने के लिए खुद अपनी जान* जोखिम में डाल दी, और सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि गैर-यहूदी राष्ट्रों की सभी मंडलियाँ भी उनका धन्यवाद करती हैं। 5 उनके घर में इकट्ठा होनेवाली मंडली को भी नमस्कार। मेरे प्यारे इपैनितुस को भी नमस्कार जो मसीह के लिए एशिया* का पहला फल है। 6 मरियम को नमस्कार, जिसने तुम्हारे लिए बहुत मेहनत की है। 7 मेरे रिश्‍तेदार अन्द्रुनीकुस और यूनियास को नमस्कार, जो मेरे साथ कैद में थे और जिनका प्रेषितों के बीच बड़ा नाम है और जो मुझसे भी पहले से मसीह के चेले हैं।*

8 प्रभु में मेरे प्यारे अम्पलियातुस को मेरा नमस्कार। 9 मसीह में हमारे सहकर्मी उरबानुस और मेरे प्यारे इस्तखुस को नमस्कार। 10 अपिल्लेस को नमस्कार, जो मसीह में खरा निकला है। जो अरिस्तुबुलुस के घराने से हैं, उन्हें नमस्कार। 11 मेरे रिश्‍तेदार हेरोदियोन को नमस्कार। नरकिस्सुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उनको नमस्कार। 12 प्रभु में कड़ी मेहनत करनेवाली त्रूफैना और त्रूफोसा को नमस्कार। हमारी प्यारी पिरसिस को नमस्कार, जिसने प्रभु में कड़ी मेहनत की है। 13 प्रभु में चुने हुए रूफुस को और उसकी माँ को जो मेरी भी माँ समान है, नमस्कार। 14 असुक्रितुस और फिलगोन और हिरमेस और पत्रुबास और हिरमास और उनके साथ के भाइयों को नमस्कार। 15 फिलुलुगुस और यूलिया, नेरयुस और उसकी बहन, और उलुम्पास और उनके साथ के सभी पवित्र जनों को नमस्कार। 16 पवित्र चुंबन के साथ एक-दूसरे को नमस्कार करो। मसीह की सारी मंडलियाँ तुम्हें नमस्कार भेजती हैं।

17 भाइयो, अब मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि जो लोग उस शिक्षा के खिलाफ जो तुमने पायी है, मंडली में फूट डालते और किसी के लिए विश्‍वास की राह छोड़ देने की वजह* बनते हैं, उन पर नज़र रखो और उनसे कोई वास्ता न रखो। 18 क्योंकि इस तरह के आदमी हमारे प्रभु मसीह के नहीं, बल्कि अपने पेट के ही गुलाम हैं और वे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों और तारीफों से सीधे-सादे लोगों के दिलों को बहका देते हैं। 19 तुम्हारे आज्ञा मानने की चर्चा सब लोगों में फैल गयी है। इसलिए मैं तुम्हारी वजह से खुशी मनाता हूँ। लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम अच्छी बातों के मामले में बुद्धिमान बनो, मगर बुरी बातों के मामले में मासूम रहो। 20 शांति देनेवाला परमेश्‍वर बहुत जल्द शैतान को तुम्हारे पैरों तले कुचल देगा। हमारे प्रभु यीशु की महा-कृपा तुम्हारे साथ बनी रहे।

21 मेरा सहकर्मी, तीमुथियुस और मेरे रिश्‍तेदार लूकियुस और यासोन और सोसिपत्रुस का तुम्हें नमस्कार।

22 यह चिट्ठी लिखनेवाले मुझ तिरतियुस का प्रभु में तुम्हें नमस्कार।

23 गयुस, जो मेरा और सारी मंडली का मेज़बान है, तुम्हें नमस्कार भेजता है। इरास्तुस जो शहर का खजांची है, और उसके भाई क्वारतुस का तुम्हें नमस्कार। 24* ——

25 परमेश्‍वर तुम्हें, यीशु मसीह के बारे में प्रचार से जुड़ी उस खुशखबरी के मुताबिक मज़बूत कर सकता है, जिसका मैं ऐलान करता हूँ। यह खुशखबरी पवित्र रहस्य की उन बातों के मुताबिक है जो ज़ाहिर की गयी हैं। इस पवित्र रहस्य को पुराने ज़माने से राज़ रखा गया है, 26 मगर अब इसे ज़ाहिर किया जा रहा है और सदा कायम रहनेवाले परमेश्‍वर की आज्ञा के मुताबिक भविष्यवक्‍ताओं के लेखों के ज़रिए सब राष्ट्रों को बताया जा रहा है जिससे वे विश्‍वास करें और आज्ञा माननेवाले बन जाएँ। 27 उसी एकमात्र बुद्धिमान परमेश्‍वर की यीशु मसीह के ज़रिए हमेशा-हमेशा के लिए महिमा होती रहे। आमीन।

रोमि 1:1 या, “भेजे गए।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”

रोमि 1:11 या, “तोहफा।”

रोमि 1:16 ज़ाहिर है, यूनानी बोलनेवाले गैर-यहूदी।

रोमि 1:20 शाब्दिक, “उसके परमेश्‍वरत्व।”

रोमि 2:14 या, “गैर-यहूदी।”

रोमि 3:9 शाब्दिक, “आरोप लगा चुके हैं।”

रोमि 3:23 शाब्दिक, “महिमा।”

रोमि 4:3 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्‍वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्‍त लेख 2 देखें।

रोमि 4:4 शाब्दिक, “कर्ज़।”

रोमि 5:5 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

रोमि 7:3 या, “शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवाली।”

रोमि 7:7 या, “क्या मूसा का कानून पाप है?”

रोमि 7:14 शाब्दिक, “शारीरिक।”

रोमि 8:15 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

रोमि 8:16 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

रोमि 9:13 शाब्दिक, “नफरत।”

रोमि 9:21 शाब्दिक, “अनादर।”

रोमि 10:12 ज़ाहिर है, यूनानी बोलनेवाले गैर-यहूदी।

रोमि 11:17 शाब्दिक, “जड़ की चिकनाई।”

रोमि 12:2 या, “ज़माने।”

रोमि 12:2 या “परिपूर्ण।”

रोमि 12:16 या, “जिन लोगों।”

रोमि 14:11 शाब्दिक, “जैसे मेरा जीवन अटल है, वैसे ही यह बात अटल है कि ..”

रोमि 14:19 या, “निर्माण होता है।”

रोमि 15:7 या, “स्वागत करो।”

रोमि 15:7 या, “स्वागत किया।”

रोमि 16:1 मत्ती 16:18 दूसरा फुटनोट देखें।

रोमि 16:2 या, “हिमायती।”

रोमि 16:4 शाब्दिक, “अपनी गरदन।”

रोमि 16:5 प्रेषि 2:9 फुटनोट देखें।

रोमि 16:7 शाब्दिक, “के साथ एकता में हैं।”

रोमि 16:17 शाब्दिक, “ठोकर खाने की वजह।”

रोमि 16:24 सबसे पुरानी यूनानी हस्तलिपियों में ये शब्द “हमारे प्रभु यीशु की महा-कृपा तुम्हारे साथ बनी रहे। आमीन” नहीं पाए जाते, यही शब्द आयत 20 के आखिर में हैं।

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