कुरिंथियों के नाम पहली चिट्ठी
1 मैं पौलुस, जो परमेश्वर की मरज़ी से यीशु मसीह का प्रेषित* होने के लिए बुलाया गया हूँ, हमारे भाई सोस्थिनेस के साथ, 2 तुम्हें जो कुरिंथ में परमेश्वर की मंडली* में हो, यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। तुम मसीह यीशु के चेले होने के नाते पवित्र किए गए हो और पवित्र जन होने के लिए बुलाए गए हो। साथ ही, उन सभी भाइयों को भी लिख रहा हूँ जो हर कहीं हमारे प्रभु यीशु मसीह का नाम ले रहे हैं, जो हमारा और उनका भी प्रभु है:
3 परमेश्वर हमारे पिता की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से तुम्हें महा-कृपा और शांति मिले।
4 परमेश्वर की उस महा-कृपा को देखते हुए जो उसने मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हें दी है मैं हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ। 5 उसने तुम्हें मसीह में हर बात में, यानी वचन सुनाने की पूरी काबिलीयत में और पूरे ज्ञान में मालामाल किया है, 6 क्योंकि तुम्हारे बीच मसीह के बारे में गवाही अच्छी तरह जड़ पकड़ चुकी है। 7 जिससे कि इस दौरान जब तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के ज़ाहिर होने का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हो, तुम में किसी भी वरदान की कोई कमी न पायी जाए। 8 परमेश्वर तुम्हें आखिर तक मज़बूत भी करेगा, ताकि हमारे प्रभु यीशु मसीह के दिन में तुम निर्दोष ठहरो। 9 परमेश्वर विश्वासयोग्य है, उसने तुम्हें अपने बेटे और हमारे प्रभु यीशु मसीह के साथ साझेदार होने के लिए बुलाया है।
10 अब हे भाइयो, मैं तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से उकसाता हूँ कि तुम सब एक ही बात कहो और तुम्हारे बीच फूट न हो, बल्कि तुम्हारे विचारों और सोचने के तरीके में पूरी तरह से एकता हो। 11 इसलिए कि मेरे भाइयो, खलोए के घर के लोगों ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया है कि तुम्हारे बीच झगड़े हो रहे हैं। 12 मेरे कहने का मतलब यह है कि तुममें से कोई कहता है: “मैं पौलुस का चेला हूँ,” तो कोई “मैं अपुल्लोस का चेला हूँ,” और कोई “मैं कैफा का चेला हूँ,” “मैं मसीह का चेला हूँ।” 13 मसीह तुम्हारे बीच बँट गया है। क्या तुम्हारी खातिर पौलुस सूली पर चढ़ा था? या क्या तुम्हें पौलुस के नाम से बपतिस्मा दिया गया था? 14 मैं परमेश्वर का शुक्रगुज़ार हूँ कि मैंने तुममें से क्रिसपुस और गयुस को छोड़ किसी और को बपतिस्मा नहीं दिया, 15 ताकि कोई यह न कह सके कि तुम्हें मेरे नाम से बपतिस्मा मिला। 16 हाँ, मैंने स्तिफनास के घराने को भी बपतिस्मा दिया। इनको छोड़ मैं नहीं जानता कि मैंने किसी और को बपतिस्मा दिया हो। 17 इसलिए कि मसीह ने मुझे बपतिस्मा देने के लिए नहीं, बल्कि खुशखबरी सुनाने के लिए भेजा है और यह मुझे विद्वानों की भाषा में नहीं सुनानी है ताकि मसीह की यातना की सूली* बेकार न ठहरे।
18 इसलिए कि यातना की सूली का संदेश उन लोगों के लिए मूर्खता है जो विनाश की तरफ जा रहे हैं, मगर यह हम उद्धार पानेवालों के लिए परमेश्वर की ताकत है। 19 यह लिखा है: “मैं बुद्धिमानों की बुद्धि को नाश कर दूँगा और ज्ञानियों के ज्ञान को रद्द कर दूँगा।” 20 कहाँ रहा इस ज़माने* का बुद्धिमान? कहाँ रहा कानून जाननेवाला?* कहाँ रहा बहस करनेवाला? क्या परमेश्वर ने साबित नहीं कर दिया कि इस दुनिया की बुद्धि, मूर्खता है? 21 इसलिए कि परमेश्वर की बुद्धि इस बात से दिखायी देती है कि जब यह दुनिया अपनी बुद्धि से परमेश्वर को जान न पायी, तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि जिस संदेश का हम प्रचार करते हैं और जो लोगों को मूर्खता लगता है, उस पर विश्वास करनेवालों का वह उद्धार करे।
22 इसलिए कि यहूदी चमत्कारों की माँग करते हैं और यूनानी बुद्धि की बातों की तलाश में रहते हैं, 23 मगर हम सूली पर चढ़ाए गए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के लिए ठोकर की वजह है, मगर गैर-यहूदियों के लिए मूर्खता। 24 लेकिन, जो बुलाए गए हैं, यहूदी और यूनानी दोनों के लिए मसीह, परमेश्वर की शक्ति और परमेश्वर की बुद्धि है। 25 क्योंकि लोग जिसे परमेश्वर की मूर्खता समझते हैं, वह इंसानों की बुद्धि से ज़्यादा बुद्धिमान है और लोग जिसे परमेश्वर की कमज़ोरी समझते हैं, वह इंसानों की ताकत से कहीं ज़्यादा ताकतवर है।
26 इसलिए कि भाइयो, तुम अपने ही बुलाए जाने के मामले में देख सकते हो कि परमेश्वर ने ऐसे बहुतों को नहीं बुलाया जो इंसान की नज़र से बुद्धिमान हैं, न ही ताकतवरों को, न ही ऊँचे खानदान में पैदा होनेवालों को। 27 मगर परमेश्वर ने दुनिया के मूर्खों को चुना, ताकि वह बुद्धिमानों को शर्मिंदा कर सके और परमेश्वर ने दुनिया के कमज़ोरों को चुना ताकि ताकतवरों को शर्मिंदा कर सके। 28 परमेश्वर ने दुनिया के गए-गुज़रों को और जिन्हें नीची नज़र से देखा जाता है और जो लोग* मानो हैं ही नहीं ऐसों को चुना, ताकि जो हैं* उन्हें वह बेकार साबित कर सके, 29 ताकि कोई इंसान परमेश्वर के सामने शेखी न मार सके। 30 मगर तुम परमेश्वर की वजह से ही मसीह यीशु के चेले हो,* जो हमारे लिए परमेश्वर की तरफ से बुद्धि साथ ही नेकी बन गया और हमारे पवित्र ठहराए जाने का और फिरौती के ज़रिए छुटकारा पाने का ज़रिया बना, 31 ताकि वैसा ही हो जैसा लिखा है: “जो शेखी मारता है, वह यहोवा* की वजह से शेखी मारे।”
2 इसलिए भाइयो, जब मैं तुम्हारे पास परमेश्वर का पवित्र रहस्य सुनाता हुआ आया, तो लच्छेदार भाषा या बुद्धि का दिखावा करता हुआ नहीं आया। 2 क्योंकि जब मैं तुम्हारे साथ था तो मैंने तय किया था कि यीशु मसीह और उसके सूली पर चढ़ाए जाने को छोड़ किसी और बात पर तुम्हारा ध्यान न खींचूं। 3 मैं बहुत कमज़ोरी और डर के साथ थरथराता हुआ तुम्हारे पास आया। 4 मैंने जो बातें कहीं और जो प्रचार किया वह बुद्धि से भरे कायल करनेवाले शब्दों के साथ नहीं था, बल्कि मेरे वचनों ने परमेश्वर की पवित्र शक्ति और ताकत को ज़ाहिर किया, 5 ताकि तुम्हारा विश्वास इंसानों की बुद्धि पर नहीं, बल्कि परमेश्वर की ताकत पर हो।
6 जो सयाने और समझदार हैं, हम उनके बीच बुद्धि की बातें करते हैं, मगर न तो इस ज़माने* की बुद्धि के बारे में, न ही इस ज़माने में राज करनेवालों की बुद्धि के बारे में, जो मिटनेवाले हैं। 7 बल्कि हम एक पवित्र रहस्य में परमेश्वर की बुद्धि, हाँ, उस छिपी हुई बुद्धि के बारे में बताते हैं। परमेश्वर ने इसे दुनिया की व्यवस्थाओं की शुरूआत के पहले से ठहराया था। उसने यह इसलिए किया ताकि हम आदर पाएँ। 8 इस बुद्धि को इस ज़माने* में राज करनेवालों में से कोई न जान सका, क्योंकि अगर वे इसे जानते, तो वे महिमावान प्रभु को सूली पर न चढ़ाते। 9 मगर ठीक जैसा लिखा है: “जो बातें आँखों ने नहीं देखीं और कानों ने नहीं सुनीं, न ही जिनका खयाल इंसान के दिल में आया, उन्हीं बातों को परमेश्वर ने उनके लिए तैयार किया है जो उससे प्यार करते हैं।” 10 इसलिए कि परमेश्वर ने हम पर अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए ये बातें ज़ाहिर की हैं, क्योंकि उसकी पवित्र शक्ति सब बातों की खोजबीन करती है, यहाँ तक कि परमेश्वर के गहरे रहस्यों की भी।
11 इंसानों में कौन जानता है कि किसी इंसान के दिल में क्या है, सिवा उसके अंदर के इंसान* के? वैसे ही, परमेश्वर के दिल में क्या है, यह कोई नहीं जान पाया है, सिवा उसकी पवित्र शक्ति के। 12 हमने दुनिया की फितरत नहीं पायी बल्कि वह पवित्र शक्ति पायी है जो परमेश्वर की तरफ से है, ताकि हम उन बातों को जान सकें जो परमेश्वर ने हम पर कृपा करते हुए हमें दी हैं। 13 यही बातें हम बताते भी हैं, मगर इंसान की बुद्धि के सिखाए शब्दों से नहीं बल्कि पवित्र शक्ति के सिखाए शब्दों से, क्योंकि हम परमेश्वर के शब्दों* से परमेश्वर की बातें समझाते हैं।
14 मगर दुनियावी ख्वाहिशें रखनेवाला* इंसान परमेश्वर की पवित्र शक्ति की बातें स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसकी नज़र में ये मूर्खता की बातें हैं। वह इन बातों को जान नहीं सकता, क्योंकि इन्हें परमेश्वर की पवित्र शक्ति की मदद से ही जाँचा-परखा जाता है। 15 मगर परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलनेवाला इंसान सबकुछ जाँच-परख सकता है, मगर वह खुद किसी इंसान के ज़रिए जाँचा-परखा नहीं जाता। 16 क्योंकि “कौन है जो यहोवा का मन जान सका है कि वह उसे हिदायत दे सके?” मगर हमारे पास मसीह का मन है।
3 इसलिए भाइयो, मैं तुमसे ऐसे बात न कर सका जैसे उन लोगों से, जो परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, बल्कि मुझे ऐसे बात करनी पड़ी जैसे दुनियावी* लोगों से और उनसे जो मसीह में बच्चे हैं। 2 मैंने तुम्हें दूध ही दिया, न कि कुछ ठोस खाना, क्योंकि तुम उस वक्त उसे पचाने के काबिल नहीं थे। दरअसल तुम अब भी काबिल नहीं हो। 3 इसलिए कि तुम अब तक दुनियावी हो। तुम्हारे बीच जलन है और तकरार हो रही है, तो क्या तुम दुनियावी लोगों जैसे नहीं हो और क्या तुम इंसानों की लीक पर नहीं चल रहे? 4 इसलिए कि जब एक कहता है: “मैं पौलुस का चेला हूँ,” मगर दूसरा कहता है: “मैं अप्पुलोस का हूँ,” तो क्या तुम दुनियावी लोगों जैसे नहीं?
5 अप्पुलोस क्या है? और हाँ, पौलुस क्या है? सिर्फ सेवक, जिनके ज़रिए तुम विश्वासी बने, ठीक जैसे प्रभु ने हरेक को सेवा सौंपी। 6 मैंने पौधा लगाया, अप्पुलोस ने पानी देकर सींचा, लेकिन परमेश्वर उसे बढ़ाता रहा। 7 इसलिए न तो लगानेवाला कुछ है, न ही पानी देनेवाला कुछ है, मगर परमेश्वर सबकुछ है जो इसे बढ़ाता है। 8 जो पौधा लगाता है और पानी देता है, वे दोनों एकता में हैं, मगर हर कोई अपनी ही मेहनत के लिए अपना इनाम पाएगा। 9 हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं, तुम परमेश्वर का वह खेत हो जिसमें खेती की जा रही है और परमेश्वर की इमारत हो।
10 परमेश्वर की महा-कृपा जो मुझे दी गयी थी, उसके मुताबिक मैंने बुद्धिमान राजमिस्त्री की तरह नींव डाली, मगर कोई और उस नींव पर इमारत खड़ी करता है। मगर हर कोई ध्यान देता रहे कि वह किस तरह नींव पर इमारत खड़ी कर रहा है। 11 इसलिए कि कोई भी इंसान उस नींव के सिवा जो डाली जा चुकी है, दूसरी नींव नहीं डाल सकता, और यह नींव यीशु मसीह है। 12 कोई इस नींव पर सोने, चाँदी और कीमती पत्थरों से और कोई लकड़ी, भूसे या घास-फूस से इमारत खड़ी करता है। 13 जब परखे जाने का दिन आएगा तब हरेक का काम ज़ाहिर हो जाएगा, क्योंकि आग सबकुछ ज़ाहिर कर देगी और यह साबित करेगी कि हरेक का काम कैसा है। 14 अगर किसी इंसान की इमारत जो उसने नींव पर खड़ी की है, टिकी रहेगी तो वह इनाम पाएगा। 15 और अगर किसी का काम जल जाता है तो वह नुकसान उठाएगा, लेकिन वह खुद बचा लिया जाएगा, मगर ऐसा होगा मानो आग से जलते-जलते बचाया गया हो।
16 क्या तुम नहीं जानते कि तुम लोग परमेश्वर का मंदिर हो और परमेश्वर की पवित्र शक्ति तुममें निवास करती है? 17 अगर कोई परमेश्वर के मंदिर को नाश करता है, तो परमेश्वर उसे नाश करेगा, इसलिए कि परमेश्वर का मंदिर पवित्र है और यह मंदिर तुम लोग हो।
18 कोई खुद को न बहकाए: अगर तुम में से कोई सोचता है कि वह इस ज़माने* में बुद्धिमान है, तो वह मूर्ख बन जाए ताकि वह बुद्धिमान बन सके। 19 इसलिए कि इस दुनिया की बुद्धि परमेश्वर की नज़र में मूर्खता है, क्योंकि यह लिखा है: “वह बुद्धिमानों को उनकी अपनी ही चालाकी में फँसा देता है।” 20 और यह भी लिखा है: “यहोवा जानता है कि बुद्धिमानों के तर्क बेकार हैं।” 21 इसलिए कोई भी इंसानों पर शेखी न मारे। क्योंकि सबकुछ तुम्हारा है, 22 चाहे पौलुस या अप्पुलोस या कैफा या यह दुनिया या मौत या ज़िंदगी या आज की या आनेवाली चीज़ें, सबकुछ तुम्हारा है 23 और तुम मसीह के हो और मसीह, परमेश्वर का है।
4 लोग हमें मसीह के अधीन काम करनेवाले सेवक और ऐसे प्रबंधक समझें जिन्हें परमेश्वर के पवित्र रहस्य सौंपे गए हैं। 2 और एक प्रबंधक में यह देखा जाता है कि वह विश्वासयोग्य पाया जाए। 3 मेरे लिए यह बात कोई खास मायने नहीं रखती कि तुम या कोई इंसानी अदालत मेरी जाँच-पड़ताल करे। यहाँ तक कि मैं खुद अपनी जाँच-पड़ताल नहीं करता। 4 मुझे खुद में कोई बुराई नज़र नहीं आती। फिर भी इस बात से मैं नेक साबित नहीं होता, लेकिन जो मेरी जाँच-पड़ताल करता है वह यहोवा है। 5 इसलिए तय वक्त से पहले किसी बात का न्याय न करो, जब तक कि प्रभु नहीं आता। वही अंधकार में छिपी हुई बातों को रौशनी में लाएगा और दिलों के खयालों को ज़ाहिर कर देगा, और तब हर कोई अपने लिए परमेश्वर से तारीफ पाएगा।
6 भाइयो, मैंने तुम्हारे फायदे के लिए खुद को और अप्पुलोस को मिसाल बनाकर ये बातें कही हैं जिससे तुम हमारी मिसाल से यह नियम सीख सको: “जो लिखा है उससे आगे न जाना,” ताकि तुम एक के खिलाफ दूसरे का पक्ष लेते हुए घमंड से फूल न जाओ। 7 कौन-सी ऐसी बात है जो तुझे दूसरे से अलग दिखाती है? दरअसल, तेरे पास ऐसा क्या है जो तू ने पाया न हो? तो अगर तू ने इसे पाया है, तो तू इस तरह शेखी क्यों मारता है मानो तू ने नहीं पाया?
8 क्या तुम लोग पहले ही भरे-पूरे हो चुके हो? क्या तुम पहले ही दौलतमंद हो चुके हो? क्या तुमने हमारे बिना ही राज करना शुरू कर दिया है? वाकई मेरी यही ख्वाहिश है कि तुमने सचमुच राजाओं की हैसियत से राज करना शुरू कर दिया होता, ताकि हम भी तुम्हारे साथ राजाओं की हैसियत से राज कर सकते। 9 मुझे ऐसा लगता है कि परमेश्वर ने हम प्रेषितों को, उन आदमियों की तरह जो मौत के लिए ठहराए गए हैं, सबसे आखिर में नुमाइश में लाने के लिए रखा है, क्योंकि हम दुनिया के लिए और स्वर्गदूतों के लिए और इंसानों के लिए तमाशा बन चुके हैं। 10 हमें मसीह की खातिर मूर्ख समझा जाता है, मगर तुम खुद को मसीह में सूझ-बूझवाले समझते हो। हम कमज़ोर हैं, मगर तुम तो बलवान हो। तुम तो बड़े इज़्ज़तदार हो, मगर हमारी कोई इज़्ज़त नहीं। 11 आज के दिन तक हम भूखे-प्यासे और फटेहाल हैं, मार खाते फिरते हैं और बेघर हैं 12 और अपने ही हाथों से घोर परिश्रम करते हैं। लोग गाली-गलौज करते हैं, मगर हम आशीष का कारण बनते हैं। वे ज़ुल्म करते हैं, हम सह लेते हैं। 13 बदनाम किए जाने पर हम गुज़ारिश करते हैं। आज तक हमें दुनिया का कचरा और सब चीज़ों का कूड़ा-करकट समझा जाता है।
14 मैं तुम्हें शर्मिंदा करने के लिए ये बातें नहीं लिख रहा, बल्कि अपने प्यारे बच्चे समझकर तुम्हें समझा रहा हूँ। 15 इसलिए कि मसीह में चाहे तुम्हारे सिखानेवाले* दस हज़ार हों, तो भी तुम्हारे पिता बहुत नहीं हैं। क्योंकि खुशखबरी के ज़रिए मसीह यीशु में, मैं तुम्हारा पिता बना हूँ। 16 इसलिए मैं तुम से गुज़ारिश करता हूँ कि मेरी मिसाल पर चलो। 17 इसी वजह से मैं तुम्हारे पास तीमुथियुस को भेज रहा हूँ जो प्रभु में मेरा प्यारा और विश्वासयोग्य बच्चा है। वह मसीह की सेवा से जुड़े मेरे तौर-तरीके तुम्हारे मन में फिर से बिठाएगा, जिन तरीकों से मैं जगह-जगह हर मंडली में सिखा रहा हूँ।
18 कुछ तो इस तरह घमंड से फूल गए हैं मानो मैं वापस तुम्हारे पास आनेवाला ही नहीं। 19 लेकिन अगर यहोवा की मरज़ी हुई, तो मैं बहुत जल्द तुम्हारे पास आऊँगा और जो घमंड से फूल गए हैं, मुझे उनकी बातों से कोई सरोकार नहीं, बल्कि मैं यह देखूँगा कि उनमें परमेश्वर की शक्ति है या नहीं। 20 इसलिए कि परमेश्वर के राज का आधार बातें नहीं, बल्कि परमेश्वर से मिलनेवाली शक्ति है। 21 तुम क्या चाहते हो? क्या मैं डंडा लेकर तुम्हारे पास आऊँ या फिर प्यार और कोमल स्वभाव के साथ आऊँ?
5 दरअसल तुम्हारे यहाँ से व्यभिचार* की खबर मिली है और वह भी ऐसा व्यभिचार जैसा दुनिया के लोगों में भी नहीं होता, कि एक आदमी ने अपने पिता की पत्नी को अपनी कर लिया है। 2 तुम इस बात पर घमंड से फूल रहे हो, जबकि क्या तुम्हें मातम नहीं करना चाहिए था ताकि जिस आदमी ने ऐसी करतूत की है वह तुम्हारे बीच से निकाला जाता? 3 मगर मैं, जो भले ही शरीर से वहाँ गैर-हाज़िर हूँ मगर मन से मौजूद हूँ, उस आदमी को जिसने ऐसा काम किया है, पहले ही दोषी ठहरा चुका हूँ मानो मैं वहीं मौजूद था, 4 कि जब तुम हमारे प्रभु यीशु के नाम से इकट्ठा हो और प्रभु यीशु की ताकत से मैं भी मन से वहाँ मौजूद रहूँ, 5 तो तुम उस आदमी को शैतान के हवाले कर दो, ताकि शरीर का ऐसा पापी असर नाश हो। जिससे कि प्रभु के दिन में मंडली के मन का अच्छा रुझान बचा रह सके।
6 तुम्हारे घमंड करने की वजह सही नहीं है। क्या तुम नहीं जानते कि ज़रा-सा खमीर पूरे गुँधे हुए आटे को खमीर कर देता है? 7 पुराने खमीरे आटे को निकालकर फेंक दो ताकि तुम गुँधा हुआ नया आटा बन सको। इसलिए कि असल में तुम खमीर से आज़ाद हो, तुममें खमीर नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे फसह का बलिदान, मसीह बलि किया जा चुका है। 8 इसलिए आओ हम यह त्योहार न तो पुराने खमीर से, न ही बुराई और दुष्टता के खमीर से, बल्कि सीधाई और सच्चाई की बिन-खमीर की रोटियों के साथ मनाएँ।
9 मैंने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि तुम व्यभिचारियों के साथ मेल-जोल रखना बंद करो। 10 मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि तुम इस दुनिया के व्यभिचारियों से या लालची लोगों से और धन ऐंठनेवालों से या मूर्तिपूजा करनेवालों से बिलकुल भी नाता न रखो। क्योंकि ऐसे में तो तुम्हें दुनिया से ही निकल जाना होगा। 11 मगर अब मैं तुम्हें लिख रहा हूँ कि ऐसे हर किसी के साथ मेल-जोल रखना बंद कर दो, जो भाई कहलाते हुए भी व्यभिचारी है या लालची है या मूर्तिपूजा करता है या गाली-गलौज करता है या पियक्कड़ है या दूसरों का धन ऐंठता है। यहाँ तक कि ऐसे आदमी के साथ खाना तक न खाना। 12 बाहरवालों का न्याय करने से मुझे क्या सरोकार? मगर क्या तुम्हें उनका न्याय नहीं करना चाहिए जो अंदर हैं, 13 जबकि परमेश्वर बाहरवालों का न्याय करता है? “उस दुष्ट आदमी को अपने बीच से निकाल बाहर करो।”
6 जब तुम में से किसी का दूसरे के खिलाफ कोई मामला होता है, तो वह फैसले के लिए पवित्र जनों के पास जाने के बजाय अदालत में दुष्ट लोगों के सामने जाने की जुर्रत कैसे करता है? 2 या क्या तुम नहीं जानते कि पवित्र जन दुनिया का न्याय करेंगे? और अगर तुम दुनिया का न्याय करनेवाले हो, तो क्या तुम इस लायक भी नहीं कि छोटे-छोटे मामलों का फैसला कर सको? 3 क्या तुम नहीं जानते कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो फिर, इस ज़िंदगी के मामलों का क्यों नहीं? 4 तो जब तुम्हारे बीच इस ज़िंदगी के ऐसे मामले हैं जिनका फैसला किया जाना है, तो तुम ऐसे आदमियों को न्यायी क्यों चुनते हो जिनके बारे में मंडली जानती है कि वे खरे नहीं हैं? 5 मैं तुम्हें शर्म दिलाने के लिए यह कह रहा हूँ। क्या यह सच है कि तुम्हारे बीच एक भी ऐसा बुद्धिमान नहीं जो अपने भाइयों के बीच न्याय कर सके? 6 इसके बजाय, एक भाई दूसरे भाई को अदालत ले जाता है, और वह भी अविश्वासियों के सामने!
7 वाकई, यह हर तरह से तुम्हारी हार है कि तुम्हारे बीच एक-दूसरे के खिलाफ मुकद्दमे चल रहे हैं। इसके बजाय, तुम खुद अन्याय क्यों नहीं सह लेते? तुम क्यों ठगे जाना बरदाश्त नहीं कर लेते? 8 मगर तुम खुद अन्याय करते और ठगते हो, और वह भी अपने भाइयों को।
9 क्या तुम नहीं जानते कि जो परमेश्वर के स्तरों पर नहीं चलते, वे उसके राज के वारिस नहीं होंगे? धोखे में न रहो। न व्यभिचारी, न मूर्तियाँ पूजनेवाले, न शादी के बाहर यौन-संबंध रखनेवाले, न पुरुषों के साथ अस्वाभाविक संभोग के लिए रखे गए पुरुष, न ही पुरुषों के साथ संभोग करनेवाले पुरुष, 10 न चोर, न लालची, न पियक्कड़, न गाली-गलौज करनेवाले और न दूसरों का धन ऐंठनेवाले परमेश्वर के राज के वारिस होंगे। 11 फिर भी तुम में से कुछ लोग ऐसे ही थे। मगर परमेश्वर ने हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से और अपनी पवित्र शक्ति से तुम्हें धोकर शुद्ध किया, पवित्र कामों के लिए अलग किया और तुम्हें नेक करार दिया।
12 सब बातें मेरे लिए जायज़ तो हैं, मगर सब बातें फायदेमंद नहीं। सब बातें मेरे लिए जायज़ तो हैं, मगर मैं खुद को किसी भी चीज़ का गुलाम बनने नहीं दूँगा। 13 खाना पेट के लिए है और पेट खाने के लिए, मगर परमेश्वर इन दोनों को मिटा देगा। शरीर व्यभिचार के लिए नहीं बल्कि प्रभु के लिए है, और प्रभु शरीर के लिए है। 14 मगर परमेश्वर ने अपनी शक्ति से प्रभु को मरे हुओं में से जी उठाया और वह हमें भी जी उठाएगा।
15 क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे शरीर मसीह के अंग हैं? तो क्या मैं मसीह के अंगों को ले जाकर वेश्या के अंग बनाऊँ? ऐसा हरगिज़ न हो! 16 क्या तुम नहीं जानते कि जो वेश्या से मिल जाता है वह उसके साथ एक तन हो जाता है? क्योंकि परमेश्वर कहता है कि “वे दोनों एक तन होंगे।” 17 मगर जो प्रभु से मिल जाता है, वह उसके साथ एक मन हो जाता है। 18 व्यभिचार से दूर भागो। दूसरा हर पाप जो इंसान करता है वह उसके शरीर के बाहर होता है, मगर जो व्यभिचार में लगा रहता है वह अपने ही शरीर के खिलाफ पाप कर रहा है। 19 क्या तुम नहीं जानते कि तुम लोग मिलकर जो शरीर बनते हो, वह परमेश्वर की उस पवित्र शक्ति का मंदिर है जो तुम्हारे अंदर रहती है और जो परमेश्वर की तरफ से तुम्हें मिली है? और-तो-और, तुम्हारा खुद पर अधिकार नहीं है। 20 तुम्हें बड़ी कीमत देकर खरीदा गया है। इसलिए मसीह के शरीर के अंग होने के नाते, अपने शरीरों से परमेश्वर की बड़ाई करो।
7 अब मैं उन सवालों का जवाब दे रहा हूँ जिनके बारे में तुमने लिखकर मुझसे पूछा था: एक आदमी के लिए अच्छा तो यह है कि वह स्त्री को न छूए। 2 फिर भी, व्यभिचार के प्रचलन की वजह से, हर आदमी की अपनी पत्नी हो और हर स्त्री का अपना पति हो। 3 पति अपनी पत्नी का हक अदा करे और उसी तरह पत्नी भी अपने पति का हक अदा करे। 4 पत्नी को अपने शरीर पर अधिकार नहीं, मगर उसके पति को है। उसी तरह, पति को अपने शरीर पर अधिकार नहीं बल्कि उसकी पत्नी को है। 5 तुम एक-दूसरे को इस हक से वंचित न रखो, लेकिन अगर प्रार्थना के लिए वक्त निकालने के लिए ऐसा करो भी, तो आपसी रज़ामंदी से सिर्फ कुछ वक्त तक के लिए करो। इसके बाद फिर से एक संग हो जाओ, ताकि शैतान तुम्हारे संयम की कमी की वजह से तुम्हें फुसलाता न रहे। 6 मगर, मैं यह बात एक रिआयत के तौर पर कह रहा हूँ, न कि आज्ञा दे रहा हूँ। 7 मैं चाहता हूँ कि काश सब आदमी ऐसे होते जैसा मैं हूँ। मगर, हर किसी को परमेश्वर से अपना तोहफा मिला है, किसी को इस तरह का, तो किसी को दूसरी तरह का।
8 अब मैं अविवाहितों और विधवाओं से कहता हूँ कि उनके लिए अच्छा है कि वे ऐसे ही रहें जैसा मैं हूँ। 9 लेकिन अगर उनमें संयम नहीं तो वे शादी करें, क्योंकि काम-इच्छा की आग में जलने से तो बेहतर यह है कि वे शादी कर लें।
10 शादी-शुदा लोगों को मैं ये हिदायतें देता हूँ, दरअसल मैं नहीं बल्कि प्रभु देता है कि एक पत्नी को अपने पति से अलग नहीं होना चाहिए। 11 लेकिन अगर वह अलग हो भी जाए, तो वह फिर शादी न करे या दोबारा अपने पति के साथ मेल कर ले। और एक पति को चाहिए कि अपनी पत्नी को न छोड़े।
12 मगर दूसरों से प्रभु नहीं, बल्कि मैं, हाँ मैं कहता हूँ: अगर एक भाई की पत्नी अविश्वासी हो फिर भी वह अपने पति के साथ रहने के लिए राज़ी हो, तो वह भाई अपनी पत्नी को न छोड़े। 13 अगर एक स्त्री का पति अविश्वासी हो फिर भी वह अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए राज़ी हो, तो वह स्त्री अपने पति को न छोड़े। 14 इसलिए कि अविश्वासी पति अपनी पत्नी के साथ इस रिश्ते की वजह से पवित्र माना जाता है और अविश्वासी पत्नी अपने पति, यानी उस भाई के साथ इस रिश्ते की वजह से पवित्र मानी जाती है। अगर ऐसा न होता, तो तुम्हारे बच्चे असल में अशुद्ध होते, मगर अब वे पवित्र हैं। 15 लेकिन अगर अविश्वासी साथी अलग होना चाहता है, तो उसे अलग होने दो। ऐसे हालात में एक भाई या बहन बंदिश में नहीं, मगर परमेश्वर ने तुम्हें शांति के लिए बुलाया है। 16 इसलिए कि पत्नी, अगर तू अपने पति के साथ रहे तो क्या जाने तू अपने पति को बचा ले? या पति, अगर तू अपनी पत्नी के साथ रहे तो क्या जाने तू अपनी पत्नी को बचा ले?
17 ठीक जैसा यहोवा ने हरेक को हिस्सा दिया है और परमेश्वर ने जिस दशा में हरेक को बुलाया है, वह वैसा ही चलता रहे। मैं सब मंडलियों के लिए यही आदेश ठहराता हूँ। 18 क्या किसी आदमी को खतने की हालत में बुलाया गया था? फिर वह बिन खतने जैसा न बने। क्या किसी आदमी को बिना खतने की हालत में बुलाया गया था? तो वह खतना न कराए। 19 खतना होना कुछ मायने नहीं रखता है, न ही खतना न होना। मगर परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना मायने रखता है। 20 हरेक को जिस किसी हालत में बुलाया गया है, वह वैसा ही रहे। 21 क्या तुझे तब बुलाया गया जब तू एक दास था? तो यह बात तुझे परेशान न करे। लेकिन अगर तू आज़ाद हो सकता है, तो ऐसे मौके को न छोड़। 22 इसलिए कि जो दास की हालत में रहते हुए प्रभु में बुलाया गया था वह प्रभु में आज़ाद है और उसी का है। वैसे ही जो आज़ाद हालत में बुलाया गया था वह मसीह का दास है। 23 तुम्हें बहुत बड़ी कीमत देकर खरीद लिया गया है, इंसानों के गुलाम बनना छोड़ दो। 24 भाइयो, हरेक को जिस किसी हालत में बुलाया गया है, वह उसी हालत में परमेश्वर के साथ बना रहे।
25 अब कुँवारों के बारे में प्रभु से मुझे कोई आज्ञा नहीं मिली है। मगर मैं जिसे प्रभु ने दया दिखायी थी कि मैं विश्वासयोग्य पाया जाऊँ, मैं अपनी राय बताता हूँ। 26 इसलिए मुझे यह सही लगता है कि आजकल के मुश्किल हालात को देखते हुए, यह अच्छा है कि एक आदमी जैसा है वैसा ही रहे। 27 क्या तू पत्नी से बंधा हुआ है? तो उससे आज़ाद होने की कोशिश करना बंद कर। क्या तू एक पत्नी से आज़ाद है? तो एक पत्नी की खोज करना बंद कर। 28 लेकिन अगर तू शादी कर भी ले, तो कोई पाप नहीं करेगा। और अगर एक कुँवारा शादी करता है, तो यह कोई पाप नहीं है। फिर भी, जो शादी करते हैं उन्हें शारीरिक दुःख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी। मगर मैं तुम्हें इनसे बचाना चाहता हूँ।
29 इसके अलावा, भाइयो मैं यह कहता हूँ, जो वक्त रह गया है उसे घटाया गया है। इसलिए जिनकी पत्नियाँ हैं, वे अब से ऐसे हों जैसे उनकी पत्नियाँ हैं ही नहीं, 30 वे भी जो रोते हैं वे ऐसे हों जो रोते नहीं, जो खुशियाँ मनाते हैं वे ऐसे हों जो खुशियाँ नहीं मनाते और जो खरीदते हैं वे ऐसे हों कि उनके पास है ही नहीं। 31 इस दुनिया का इस्तेमाल करनेवाले ऐसे हों जो इसका पूरा-पूरा इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए कि इस दुनिया का दृश्य बदल रहा है। 32 वाकई, मैं चाहता हूँ कि तुम चिंताओं से आज़ाद रहो। अविवाहित आदमी प्रभु की सेवा से जुड़ी बातों की चिंता में रहता है कि वह कैसे प्रभु को खुश करे। 33 मगर शादी-शुदा आदमी दुनियादारी की बातों की चिंता में रहता है कि कैसे वह अपनी पत्नी को खुश करे, 34 और वह बँटा हुआ है। इसके अलावा, अविवाहित और कुँवारी स्त्री प्रभु की सेवा से जुड़ी बातों की चिंता में रहती है ताकि वह अपने शरीर और मन दोनों से पवित्र रहे। लेकिन, शादी-शुदा स्त्री दुनियादारी की बातों की चिंता में रहती है कि कैसे वह अपने पति को खुश करे। 35 मगर मैं यह बात खुद तुम्हारे फायदे के लिए कह रहा हूँ, न कि तुम पर कोई बंदिश लगाने के लिए। इसके बजाय, मैं तुम्हें वह करने के लिए उकसा रहा हूँ जो तुम्हारे लिए सही है, जिससे तुम बिना ध्यान भटकाए लगातार प्रभु की सेवा करते रहो।
36 लेकिन अगर किसी कुँवारे को लगता है कि वह अपने शरीर की इच्छाओं पर काबू नहीं कर पा रहा* और अगर वह जवानी की कच्ची उम्र पार कर चुका है और उसे लगता है कि उसे शादी करनी चाहिए, तो इन हालात में वह ऐसा ही करे। ऐसे में वह पाप नहीं करता। ऐसे लोग शादी कर लें। 37 लेकिन अगर कोई अपने दिल में इरादा कर चुका है कि वह कुँवारा ही रहेगा और वह अपने इस फैसले पर अटल रहता है क्योंकि उसे शादी करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती, बल्कि वह अपनी इच्छा पर पूरा अधिकार रखता है तो वह अच्छा करता है। 38 इसलिए वह कुँवारा भी जो शादी करता है वह अच्छा करता है। मगर वह जो शादी नहीं करता वह ज़्यादा अच्छा करता है।
39 एक पत्नी अपने पति के जीते-जी उससे बँधी होती है। लेकिन अगर उसका पति मौत की नींद सो जाता है, तो वह जिससे चाहे उससे शादी करने के लिए आज़ाद है, मगर सिर्फ प्रभु में। 40 लेकिन अगर वह जैसी है वैसी ही रहे, तो मेरी राय में ज़्यादा खुश रहेगी। बेशक मेरा मानना है कि मुझमें भी परमेश्वर की पवित्र शक्ति काम करती है।
8 अब मूर्तियों को चढ़ाई गयी खाने की चीज़ों के बारे में: हम जानते हैं कि इस बारे में हम सबके पास ज्ञान है। ज्ञान घमंड से भर देता है, मगर प्यार से बढ़ोतरी होती है और मज़बूती मिलती है।* 2 अगर कोई सोचता है कि उसे किसी बात का ज्ञान हासिल हो गया है, तो उसे अब तक ऐसा ज्ञान हासिल नहीं हुआ जैसा होना चाहिए। 3 मगर जो कोई परमेश्वर से प्यार करता है, तो उसे परमेश्वर जानता है।
4 मूर्तियों को चढ़ाई गयी चीज़ें खाने के बारे में हम जानते हैं कि मूर्ति दुनिया में कुछ नहीं है और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं है। 5 हालाँकि चाहे स्वर्ग में हों या धरती पर, ऐसे बहुत-से हैं जिन्हें ईश्वर कहा जाता है, ठीक जैसे बहुत-से ईश्वर और प्रभु हैं भी, 6 मगर असल में हमारे लिए एक ही परमेश्वर है, यानी पिता, जिसकी तरफ से सब चीज़ें हैं और हम उसी के लिए हैं। एक ही प्रभु है, यानी यीशु मसीह जिसके ज़रिए सब चीज़ें हैं और हम भी उसके ज़रिए हैं।
7 फिर भी यह ज्ञान सब लोगों के पास नहीं है, बल्कि कुछ लोग अभी तक खाना खाते वक्त मूर्तियों से जुड़े रिवाज़ों के बारे में सोचने के आदी हैं। जब वे खाना खाते हैं तो सोचते हैं कि यह मूर्तियों को चढ़ाया गया खाना है। उनका ज़मीर कमज़ोर होने की वजह से दूषित हो जाता है। 8 मगर खाना हमें परमेश्वर के करीब नहीं लाता। अगर हम न खाएँ, तो हमारे अंदर कुछ घट नहीं जाता और अगर हम खाएँ, तो हमारा कुछ बढ़ नहीं जाता। 9 मगर हमेशा यह ध्यान रखना कि तुम्हारा यह हक किसी तरह उन लोगों के लिए, जो कमज़ोर हैं, पाप में पड़ने की वजह न बन जाए। 10 इसलिए कि अगर कोई तुझ ज्ञान रखनेवाले को देखे कि तू मूर्ति के मंदिर में खाने के लिए बैठा हुआ है, तो क्या वह, जो कमज़ोर है, मूर्तियों के आगे चढ़ाई गयी चीज़ें खाने के लिए अपने ज़मीर को कड़ा न कर लेगा? 11 वाकई, तेरे ज्ञान की वजह से वह आदमी, जो कमज़ोर है, बरबाद हो रहा है, हाँ, तेरा वह भाई जिसकी खातिर मसीह ने अपनी जान दी थी। 12 लेकिन जब तुम लोग अपने भाइयों के खिलाफ इस तरह पाप करते हो और उनके कमज़ोर ज़मीर को चोट पहुँचाते हो, तो तुम मसीह के खिलाफ पाप कर रहे हो। 13 इसलिए अगर खाना मेरे भाई के लिए पाप में गिरने की वजह बनता है, तो मैं फिर कभी माँस न खाऊँगा ताकि मैं अपने भाई के लिए पाप में पड़ने की वजह न बनूँ।
9 क्या मैं आज़ाद नहीं कि जो चाहे वह करूँ? क्या मैं एक प्रेषित नहीं? क्या मैंने, हमारे प्रभु यीशु को नहीं देखा? क्या तुम प्रभु में मेरा काम नहीं हो? 2 चाहे मैं दूसरों के लिए प्रेषित न सही, फिर भी तुम्हारे लिए बेशक हूँ, इसलिए कि तुम एक ऐसी मुहर जैसे हो जो प्रभु में मेरे प्रेषित-पद का सबूत देती है।
3 जो मेरी जाँच-पड़ताल करते हैं, उनके सामने मेरी सफाई यह है: 4 क्या हमें खाने-पीने का हक नहीं? 5 क्या हमें यह हक नहीं कि किसी मसीही बहन से शादी करें और जहाँ कहीं जाएँ उसे अपने साथ-साथ ले जाएँ, जैसा कि बाकी प्रेषितों और प्रभु के भाइयों और कैफा ने भी किया है? 6 या क्या सिर्फ बरनबास और मुझे ही यह हक नहीं कि अपने गुज़ारे के लिए काम-धंधा करना बंद कर सकें? 7 ऐसा कौन है जो सैनिक-सेवा में हो, मगर अपना खर्च खुद उठाता हो? कौन है जो अंगूर का बाग तो लगाता है मगर उसका फल न खाता हो? या कौन चरवाहा है जो झुंड की देखभाल तो करता है मगर उसके दूध में से कुछ हिस्सा न लेता हो?
8 क्या मैं ये बातें इंसान के स्तरों के मुताबिक कह रहा हूँ? या क्या कानून भी यही बातें नहीं कहता? 9 इसलिए कि मूसा के कानून में यह लिखा है: “अनाज की दँवरी करनेवाले बैल का मुँह न बाँधना।” क्या परमेश्वर बैलों की परवाह की वजह से ऐसा कहता है? 10 या क्या वह, हर तरह से, हमारी खातिर ऐसा कहता है? वाकई, यह हमारी ही खातिर लिखा गया था, क्योंकि जो आदमी हल चलाता है उसका अनाज पाने की आशा से हल चलाना सही है और जो आदमी अनाज दाँवता है उसका अनाज में से हिस्सा पाने की आशा करना सही है।
11 अगर हमने तुम्हारी खातिर आध्यात्मिक बीज बोए हैं, और बदले में तुमसे शरीर की ज़रूरत की चीज़ें पाएँ, तो क्या यह कोई गलत बात होगी? 12 अगर दूसरे तुम पर यह हक जता सकते हैं, तो क्या हमारा और भी ज़्यादा हक नहीं बनता? तो भी, हमने इस हक का इस्तेमाल नहीं किया है, मगर हम सबकुछ सह रहे हैं ताकि हम मसीह के बारे में खुशखबरी के फैलने में कोई रुकावट न डालें। 13 क्या तुम नहीं जानते कि जो आदमी मंदिर में पवित्र सेवा के काम करते हैं, वे मंदिर से खाते हैं और जो वेदी के पास सेवा में लगे रहते हैं वे वेदी के साथ बलिदान का हिस्सा पाते हैं? 14 इसी तरह, प्रभु ने खुशखबरी सुनानेवालों के लिए भी यह ठहराया कि खुशखबरी से उनकी गुज़र-बसर हो।
15 मगर मैंने इनमें से एक भी इंतज़ाम का इस्तेमाल नहीं किया। दरअसल, मैंने ये बातें इसलिए नहीं लिखीं कि मेरे लिए यह सब किया जाए, क्योंकि इससे बेहतर तो मेरे लिए मर जाना होगा—कोई भी आदमी मेरे शेखी मारने की वजह को बेकार नहीं कह सकता! 16 अब अगर मैं खुशखबरी सुनाता हूँ, तो यह मेरे लिए शेखी मारने की कोई वजह नहीं, इसलिए कि यह मेरी ज़िम्मेदारी है। वाकई, धिक्कार है मुझ पर अगर मैं खुशखबरी न सुनाऊँ! 17 अगर मैं यह काम अपनी मरज़ी से खुशी-खुशी करता हूँ, तो मेरे लिए एक इनाम है। लेकिन अगर मैं इसे अपनी मरज़ी के खिलाफ करता हूँ, तो इस मामले में भी मुझे ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है। 18 तो फिर, मेरा इनाम क्या है? यही कि खुशखबरी सुनाते वक्त मैं बिना किसी कीमत के खुशखबरी सुनाऊँ, ताकि मैं खुशखबरी के मामले में अपने हक का गलत इस्तेमाल न करूँ।
19 हालाँकि मैं सब लोगों से आज़ाद हूँ फिर भी मैंने खुद को सबका गुलाम बनाया है ताकि मैं ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को मसीह की राह पर ला सकूँ। 20 इसलिए मैं यहूदियों के लिए यहूदी जैसा बना, ताकि मैं यहूदियों को ला सकूँ। जो कानून के अधीन हैं उनके लिए मैं कानून के अधीन जैसा बना ताकि जो कानून के अधीन हैं, उन्हें ला सकूँ, हालाँकि मैं खुद कानून के अधीन नहीं। 21 जिनके पास कानून नहीं है, उनके लिए मैं उन्हीं के जैसा बना, इसके बावजूद कि मैं परमेश्वर के सामने बिना कानून का नहीं हूँ, बल्कि मसीह के कानून के अधीन हूँ कि मैं उन्हें ला सकूँ जिनके पास कानून नहीं है। 22 मैं कमज़ोरों के लिए कमज़ोर बना, ताकि कमज़ोरों को ला सकूँ। मैं सब किस्म के लोगों के लिए सबकुछ बना ताकि मैं हर संभव तरीके से कुछ लोगों का उद्धार करा सकूँ। 23 मैं सबकुछ खुशखबरी की खातिर करता हूँ ताकि यह खबर मैं दूसरों के साथ बाँट सकूँ।
24 क्या तुम नहीं जानते कि दौड़ में दौड़नेवाले सभी दौड़ते हैं, मगर इनाम एक ही को मिलता है? तुम इस तरह से दौड़ो कि इनाम पा सको। 25 यही नहीं, प्रतियोगिता में हिस्सा लेनेवाला हर आदमी सब बातों में संयम से काम लेता है। बेशक, वे एक ऐसा ताज पाने के लिए यह सब करते हैं, जो नाश हो जाता है मगर हम उस ताज के लिए करते हैं जो कभी नाश नहीं हो सकता। 26 इसलिए मैं अंधाधुंध यहाँ-वहाँ नहीं दौड़ता, मैं इस तरह मुक्के नहीं चलाता मानो हवा को पीट रहा हूँ। 27 बल्कि मैं अपने शरीर को मारता-कूटता हूँ और उसे एक दास बनाकर काबू में रखता हूँ ताकि दूसरों को प्रचार करने के बाद मैं खुद किसी वजह से अयोग्य न ठहरूँ।
10 भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि हमारे बापदादा सभी बादल के नीचे थे और वे सभी समुद्र में से होकर गुज़रे। 2 उन सभी ने बादल के नीचे और समुद्र के बीच मूसा में बपतिस्मा लिया। 3 सभी ने परमेश्वर से मिलनेवाला एक ही खाना खाया। 4 सभी ने परमेश्वर से मिलनेवाला एक ही पानी पीया। इसलिए कि वे परमेश्वर की उस चट्टान से पीया करते थे, जो उनके साथ-साथ चलती थी और वह चट्टान मसीह को दर्शाती थी। 5 फिर भी, परमेश्वर उनमें से ज़्यादातर लोगों से खुश न हुआ, इसलिए वे वीराने में मार डाले गए।
6 ये बातें हमारे लिए सबक बनीं कि हम ऐसे इंसान न हों जो बुरी बातों की चाह रखते हैं, जैसे उन्होंने भी चाहीं। 7 न ही हम मूर्तियों की पूजा करनेवाले बनें, जैसे उनमें से कुछ ने की थी, ठीक जैसा लिखा है: “लोग खाने-पीने बैठे, और फिर उठकर नाचने और मौज-मस्ती करने लगे।” 8 न ही हम व्यभिचार में लगे रहें, जैसे उनमें से कुछ ने व्यभिचार किया और एक ही दिन में उनमें से तेईस हज़ार मारे गए। 9 न ही हम यहोवा की परीक्षा लें, जैसे उनमें से कुछ ने उसकी परीक्षा ली और साँपों के डसने से मारे गए। 10 न ही हम कुड़कुड़ानेवाले बनें, ठीक जैसे उनमें से कुछ कुड़कुड़ाते थे और नाश करनेवाले के हाथों मारे गए। 11 अब ये बातें जो उन पर बीतीं, मिसालों की तरह थीं और हमारी चेतावनी के लिए लिखी गयी थीं जिन पर दुनिया की व्यवस्थाओं का आखिरी वक्त आ पहुँचा है।
12 इसलिए जो सोचता है कि वह मज़बूती से खड़ा है, वह खबरदार रहे कि कहीं गिर न पड़े। 13 तुम ऐसी किसी अनोखी परीक्षा से नहीं गुज़रे, जिससे दूसरे इंसान कभी न गुज़रे हों। मगर परमेश्वर विश्वासयोग्य है और वह तुम्हें ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने देगा जो तुम्हारी बरदाश्त के बाहर हो, मगर परीक्षा के साथ-साथ वह उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा ताकि तुम इसे सहन कर सको।
14 इसलिए, मेरे प्यारो, मूर्तिपूजा से दूर भागो। 15 मैं तुमसे ऐसे बात करता हूँ जैसे उनसे जिनके पास परख-शक्ति है। मैं जो कहता हूँ उसका तुम खुद ही फैसला करो। 16 धन्यवाद का वह प्याला, जिसके लिए हम प्रार्थना में धन्यवाद देते हैं, क्या वह मसीह के लहू में एक हिस्सेदारी नहीं? जो रोटी हम तोड़ते हैं, क्या वह मसीह के शरीर में एक हिस्सेदारी नहीं? 17 क्योंकि रोटी एक है, और हम बहुत होने पर भी एक ही शरीर हैं, इसलिए कि हम सब उस एक रोटी में से खाते हैं।
18 उन्हें देखो जो पैदाइशी इस्राएली हैं: जो बलिदानों में से खाते हैं क्या वे वेदी के साथ हिस्सेदार नहीं होते? 19 तो फिर, मैं क्या कहूँ? मूर्तियों के आगे जो बलिदान चढ़ाया जाता है क्या वह कुछ है? या क्या मूर्ति कुछ है? 20 नहीं। मगर मैं यह कहता हूँ कि दूसरे राष्ट्र जो बलि चढ़ाते हैं वे परमेश्वर के लिए नहीं, बल्कि दुष्ट स्वर्गदूतों के लिए बलि चढ़ाते हैं और मैं नहीं चाहता कि तुम दुष्ट स्वर्गदूतों के साथ हिस्सेदार बनो। 21 तुम ऐसा नहीं कर सकते कि यहोवा के प्याले से पीओ और दुष्ट स्वर्गदूतों के प्याले से भी पीओ। तुम ऐसा नहीं कर सकते कि “यहोवा की मेज़” से खाओ और दुष्ट स्वर्गदूतों की मेज़ से भी खाओ। 22 या “क्या हम यहोवा को जलन दिला रहे हैं”? क्या हम उससे ज़्यादा ताकतवर हैं?
23 सब बातें जायज़ तो हैं, मगर सब बातें फायदेमंद नहीं। सब बातें जायज़ तो हैं, मगर सब बातें हौसला नहीं बढ़ातीं। 24 हर कोई अपना ही फायदा न सोचे, बल्कि उन बातों की खोज में लगा रहे जिनसे दूसरों का फायदा हो।
25 गोश्त-बाज़ार में जो कुछ बिकता है वह खाओ और अपने ज़मीर की वजह से कोई पूछताछ मत करो। 26 इसलिए कि “धरती और वे सारी चीज़ें जिनसे वह भरी है, यहोवा की हैं।” 27 अगर कोई अविश्वासी तुम्हें दावत पर बुलाए और तुम जाना चाहो, तो वहाँ जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए उसे खाओ और अपने ज़मीर की वजह से कोई पूछताछ मत करो। 28 लेकिन अगर कोई तुमसे यह कहता है: “यह चढ़ाए गए बलिदान में से है,” तो उसके बताने की वजह से और ज़मीर की वजह से मत खाना। 29 “ज़मीर” से मेरा मतलब है उस दूसरे का ज़मीर, न कि तुम्हारा ज़मीर। लेकिन, मेरी आज़ादी दूसरे के ज़मीर से क्यों परखी जाए? 30 अगर मैं प्रार्थना में धन्यवाद देकर खाता हूँ, तो फिर उसके लिए मुझे बुरा क्यों कहा जाए, जिसके लिए मैं धन्यवाद देता हूँ?
31 इसलिए चाहे तुम खाते हो या पीते हो या कोई और काम करते हो, सबकुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो। 32 तुम यहूदियों और यूनानियों के लिए, साथ ही परमेश्वर की मंडली के लिए पाप में गिरने की वजह मत बनो, 33 ठीक जैसे मैं भी सब बातों में सब लोगों को खुश कर रहा हूँ और अपने फायदे की नहीं, बल्कि बहुतों के फायदे की खोज में रहता हूँ ताकि वे उद्धार पा सकें।
11 मेरी मिसाल पर चलो, ठीक जैसे मैं मसीह की मिसाल पर चलता हूँ।
2 अब मैं तुम्हारी तारीफ करता हूँ क्योंकि तुम सब बातों में मुझे ध्यान में रखते हो और जैसी हिदायतें मैंने तुम्हें सौंपी थीं, उन्हें तुम उसी तरह मज़बूती से थामे रहते हो। 3 मगर मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि हर पुरुष का सिर मसीह है और स्त्री का सिर पुरुष है और मसीह का सिर परमेश्वर है। 4 हर पुरुष जो अपना सिर ढककर प्रार्थना या भविष्यवाणी करता है, वह अपने सिर का अपमान करता है। 5 मगर हर स्त्री जो बिना सिर ढके प्रार्थना या भविष्यवाणी करती है, वह अपने सिर का अपमान करती है, क्योंकि यह ऐसा ही होगा मानो वह एक ऐसी स्त्री है जिसका सिर मुंडाया गया हो। 6 इसलिए कि अगर एक स्त्री अपना सिर नहीं ढकती, तो वह अपने बाल भी कटवा ले। लेकिन अगर एक स्त्री के लिए बाल कटवाना या सिर मुंडाना शर्मनाक बात है, तो उसे अपना सिर ढकना चाहिए।
7 एक पुरुष को अपना सिर नहीं ढकना चाहिए, क्योंकि वह परमेश्वर की छवि और उसकी महिमा है। लेकिन स्त्री, पुरुष की महिमा है। 8 इसलिए कि पुरुष स्त्री से नहीं निकला, बल्कि स्त्री पुरुष से निकली है। 9 साथ ही, पुरुष को स्त्री की खातिर नहीं, बल्कि स्त्री को पुरुष की खातिर बनाया गया था। 10 इसलिए स्वर्गदूतों की वजह से एक स्त्री को चाहिए कि वह अपने सिर पर अधीनता की निशानी रखे।
11 फिर भी, प्रभु के इंतज़ाम में न स्त्री पुरुष के बिना है न पुरुष स्त्री के बिना। 12 इसलिए कि जैसे स्त्री पुरुष से निकली है, वैसे ही पुरुष स्त्री के ज़रिए आया है, लेकिन सबकुछ परमेश्वर से निकला है। 13 तुम खुद ही फैसला करो: क्या यह सही है कि एक स्त्री बिना सिर ढके परमेश्वर से प्रार्थना करे? 14 क्या स्वाभाविक तौर पर तुमने यह बात नहीं सीखी कि अगर एक पुरुष के बाल लंबे हों, तो यह उसके लिए अपमान की बात है। 15 लेकिन अगर एक स्त्री के बाल लंबे हों, तो ये उसकी शोभा हैं? क्योंकि उसे ओढ़नी के बजाय उसके बाल दिए गए हैं। 16 लेकिन, अगर कोई आदमी किसी और दस्तूर को मानने के लिए बहस करे, तो वह जान ले कि हमारे बीच और परमेश्वर की मंडलियों के बीच कोई और दस्तूर नहीं।
17 मगर ये हिदायतें देते वक्त, मैं तुम्हारी तारीफ नहीं करता क्योंकि जब तुम इकट्ठा होते हो, तो भला होने से ज़्यादा बुरा होता है। 18 सबसे पहले तो मेरे सुनने में आया है कि जब तुम मंडली में इकट्ठा होते हो, तो तुम्हारे बीच फूट होती है और कुछ हद तक मैं इस बात पर यकीन भी करता हूँ। 19 तुम्हारे बीच गुट भी ज़रूर होंगे और इससे तुम्हारे बीच वे लोग भी ज़ाहिर हो जाएँगे जिन पर परमेश्वर की मंज़ूरी है।
20 इसलिए, जब तुम एक जगह इकट्ठा होते हो, तो प्रभु के संध्या-भोज के मौके पर खाना मुमकिन नहीं होता। 21 क्योंकि जब इसे खाने का वक्त आता है, तो तुममें से कुछ पहले ही अपना खाना खा चुके होते हैं, इस तरह कोई भूखा होता है तो कोई पीकर धुत्त हो चुका होता है। 22 क्या खाने-पीने के लिए तुम्हारे घर नहीं हैं? या क्या तुम परमेश्वर की मंडली का तिरस्कार करते हो और जिनके पास कुछ नहीं उन्हें शर्मिंदा करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या मैं तुम्हारी तारीफ करूँ? इस बात में मैं तुम्हारी तारीफ नहीं करता।
23 जो बात मैंने प्रभु से पायी है, वही तुम्हें सिखायी थी कि जिस रात प्रभु यीशु पकड़वाया जानेवाला था, उसने एक रोटी ली 24 और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद, उसने यह तोड़ी और कहा: “यह मेरे शरीर का प्रतीक है जो तुम्हारी खातिर दिया जाना है। मेरी याद में ऐसा ही किया करना।” 25 उसने प्याला लेकर भी ऐसा ही किया और शाम का खाना खाने के बाद उसने कहा: “यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो मेरे लहू के आधार पर बाँधा गया है। हर बार जब तुम इसे पीते हो तो मेरी याद में ऐसा ही किया करो।” 26 हर बार जब तुम यह रोटी खाते हो और यह प्याला पीते हो, तो जब तक प्रभु नहीं आता, तुम उसकी मौत का ऐलान करते हो।
27 इसलिए हर कोई जो अयोग्य दशा में रोटी खाता या प्रभु के प्याले में से पीता है, वह प्रभु के शरीर और लहू के मामले में दोषी ठहरेगा। 28 एक आदमी पहले अपनी जाँच करे कि वह इस लायक है या नहीं और फिर वह रोटी में से खाए और प्याले में से पीए। 29 इसलिए कि जो खाता और पीता है, अगर वह प्रभु के शरीर को समझे बिना खाता और पीता है तो खुद पर सज़ा लाता है। 30 इसीलिए तुम्हारे बीच बहुत-से कमज़ोर और बीमार हैं और कई मौत की नींद सो रहे हैं। 31 लेकिन अगर हम खुद की जाँच करें कि हम असल में क्या हैं, तो हम दोषी नहीं ठहरेंगे। 32 लेकिन, जब हम दोषी ठहरते हैं, तो यहोवा से अनुशासन पाते हैं, ताकि हम दुनिया के साथ सज़ा न पाएँ। 33 इसलिए, मेरे भाइयो, जब तुम इसे खाने के लिए इकट्ठा होते हो, तो एक-दूसरे का इंतज़ार किया करो। 34 अगर कोई भूखा है, तो वह घर पर खाए, ताकि तुम्हारा इकट्ठा होना सज़ा का कारण न बने। बाकी बातें जब मैं वहाँ आऊँगा तब आकर सुधारूँगा।
12 अब भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम परमेश्वर की पवित्र शक्ति से मिलनेवाले वरदानों के बारे में अनजान रहो। 2 तुम जानते हो कि जब तुम दुनिया के लोगों का हिस्सा थे, तो तुम अलग-अलग तरीकों से गूँगी मूर्तियों की पूजा करने में लगे हुए थे और ऐसे ही चले जा रहे थे। 3 इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम यह जान लो कि जब कोई परमेश्वर की पवित्र शक्ति से उभारा जाता है, तो वह यह नहीं कहता कि “यीशु शापित है!” और न ही कोई पवित्र शक्ति के बिना यह कह सकता है: “यीशु प्रभु है!”
4 अब वरदान तो अलग-अलग किस्म के हैं, मगर परमेश्वर की पवित्र शक्ति एक ही है। 5 सेवाएँ अलग-अलग किस्म की हैं, फिर भी प्रभु एक ही है। 6 और जो काम हो रहे हैं वे अलग-अलग किस्म के हैं, फिर भी वह परमेश्वर एक ही है जो सब लोगों के अंदर ये सारे काम करता है। 7 मगर हर किसी में जिस तरह पवित्र शक्ति काम करती ज़ाहिर होती है, उसका मकसद सबको फायदा पहुँचाना है। 8 मिसाल के लिए, किसी को पवित्र शक्ति के ज़रिए बुद्धि की बातें बोलने का वरदान मिला है, तो दूसरे को उसी शक्ति से ज्ञान की बातें बोलने का, 9 किसी को उसी शक्ति से विश्वास का, किसी को उसी एक शक्ति से चंगा करने का वरदान दिया जाता है, 10 और किसी को शक्तिशाली काम करने का, किसी को भविष्यवाणी करने का, किसी को प्रेरित वचनों को परखने का, किसी को अलग-अलग भाषाएँ बोलने का और किसी को भाषाओं का अनुवाद कर समझाने का वरदान दिया जाता है। 11 मगर ये सारे काम वही एक पवित्र शक्ति करती है और हरेक को जैसा चाहती है वैसा अलग-अलग वरदान बाँट देती है।
12 इसलिए कि जैसे शरीर एक होता है मगर उसके कई अंग होते हैं और शरीर के अंग चाहे बहुत-से हों, फिर भी सब मिलकर एक ही शरीर हैं, वैसे ही मसीह भी है। 13 वाकई, चाहे यहूदी हो या यूनानी, चाहे गुलाम हो या आज़ाद, हम सब ने एक ही पवित्र शक्ति से एक ही शरीर में बपतिस्मा लिया और हम सभी को एक ही पवित्र शक्ति मिली।
14 वाकई, पूरा शरीर सिर्फ एक अंग नहीं होता बल्कि शरीर के कई अंग होते हैं। 15 अगर पाँव यह कहे: “मैं हाथ नहीं हूँ, इसलिए मैं शरीर का हिस्सा नहीं,” तो क्या वह इस वजह से शरीर का हिस्सा नहीं है? 16 और अगर कान यह कहे: “मैं आँख नहीं हूँ, इसलिए मैं शरीर का हिस्सा नहीं,” तो क्या वह इस वजह से शरीर का हिस्सा नहीं? 17 अगर सारा शरीर आँख ही हो, तो सुनना कहाँ होता? अगर सारा शरीर कान हो, तो सूँघना कहाँ होता? 18 मगर परमेश्वर ने शरीर के हर अंग को, जैसा उसे अच्छा लगा वैसे, उसकी जगह दी है।
19 अगर वे सब-के-सब एक ही अंग होते, तो शरीर कहाँ होता? 20 मगर अब वे बहुत-से अंग हैं, फिर भी एक ही शरीर है। 21 आँख हाथ से नहीं कह सकती: “मुझे तेरी कोई ज़रूरत नहीं है,” या सिर पाँवों से नहीं कह सकता: “मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं।” 22 इसके बजाय, शरीर के जो अंग दूसरों से कमज़ोर लगते हैं, वे असल में बहुत ज़रूरी हैं। 23 और शरीर के जिन हिस्सों को हम कम आदर के लायक समझते हैं, उन्हीं को हम ढककर और भी ज़्यादा आदर देते हैं और इस तरह शरीर के हमारे जो हिस्से कुरूप हैं उनकी शोभा और भी बढ़ती है। 24 जबकि हमारे सुंदर अंगों को ऐसी देखभाल की ज़रूरत नहीं होती। फिर भी, परमेश्वर ने शरीर के अंगों को आपस में ऐसे जोड़ा है कि जिस अंग को आदर की घटी है उसे और भी बढ़कर आदर मिले, 25 जिससे कि शरीर में कोई फूट न हो, बल्कि इसके अंगों को एक-दूसरे के लिए बराबर फिक्र हो। 26 अगर एक अंग को तकलीफ होती है, तो बाकी सभी अंग उसके साथ तकलीफ उठाते हैं। या अगर एक अंग इज़्ज़त पाता है, तो बाकी सभी अंग उसके साथ खुश होते हैं।
27 तुम मसीह का शरीर और उसके अलग-अलग अंग हो। 28 और परमेश्वर ने मंडली में हरेक को उसकी जगह दी है, पहले प्रेषित, दूसरे भविष्यवक्ता, तीसरे शिक्षक, उनके बाद शक्तिशाली काम करनेवाले, फिर बीमारियों को ठीक करने का वरदान रखनेवाले, मदद के लिए सेवाएँ देनेवाले, सही राह दिखानेवाले और अलग-अलग भाषाएँ बोलने की काबिलीयत रखनेवाले। 29 तो क्या सभी प्रेषित हैं? क्या सभी भविष्यवक्ता हैं? क्या सभी शिक्षक हैं? क्या सभी शक्तिशाली काम करनेवाले हैं? 30 क्या सबके पास बीमारियों को ठीक करने का वरदान है? क्या सबके पास दूसरी भाषाएँ बोलने का वरदान है? क्या सभी अनुवाद करनेवाले हैं? 31 मगर तुम जोश के साथ परमेश्वर से और भी बड़े-बड़े वरदान पाने की कोशिश करते रहो। तो भी मैं तुम्हें इन सबसे बेहतरीन एक राह दिखाता हूँ।
13 अगर मैं इंसानों और स्वर्गदूतों की भाषाएँ बोलूँ, मगर मुझ में प्यार न हो, तो मैं टनटन बजता पीतल या झनझन बजती झांझ हूँ। 2 और अगर मुझे भविष्यवाणी करने का वरदान मिला है और मैं सारे पवित्र रहस्यों की जानकारी और सारा ज्ञान रखता हूँ, और अगर मुझमें इतना विश्वास है कि मैं उसके बल से पहाड़ों को भी यहाँ से वहाँ हटा सकता हूँ, लेकिन अगर मुझमें प्यार नहीं, तो मैं कुछ भी नहीं। 3 अगर मैं अपनी सारी संपत्ति दूसरों को खिलाने के लिए दे दूँ और अपना शरीर बलिदान के लिए दे दूँ कि मैं घमंड कर सकूँ, लेकिन मुझ में प्यार न हो, तो इन सबका मुझे कोई फायदा नहीं होगा।
4 प्यार सहनशील और कृपा करनेवाला होता है। प्यार जलन नहीं रखता, यह डींगें नहीं मारता, घमंड से नहीं फूलता, 5 बदतमीज़ी से पेश नहीं आता, सिर्फ अपने फायदे की नहीं सोचता, भड़क नहीं उठता। यह चोट का हिसाब नहीं रखता। 6 यह बुराई से खुश नहीं होता, बल्कि सच्चाई से खुशी पाता है। 7 यह सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों पर यकीन करता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज के साथ सह लेता है।
8 प्यार कभी नहीं मिटता।* मगर चाहे भविष्यवाणी के वरदान हों, तो वे मिट जाएँगे, चाहे दूसरी भाषाएँ बोलने का वरदान हो, तो वह खत्म हो जाएगा, चाहे ज्ञान हो तो वह मिट जाएगा। 9 इसलिए कि हमारा ज्ञान अधूरा है और हम अधूरी भविष्यवाणी करते हैं। 10 लेकिन जब वह आएगा जो पूरा है, तो जो अधूरा है वह मिट जाएगा। 11 जब मैं बच्चा था, तो बच्चों की तरह बात करता था, बच्चों की तरह सोचता था, बच्चों जैसी समझ रखता था। मगर अब क्योंकि मैं बड़ा हो गया हूँ, तो मैंने बचपना छोड़ दिया है। 12 क्योंकि अभी हम धुंधला आकार देखते हैं, मानो हम एक धातु के आइने में देख रहे हों, मगर उस वक्त आमने-सामने एकदम साफ-साफ देखेंगे। अभी मैं परमेश्वर के बारे में अधूरा जानता हूँ, मगर उस वक्त मैं पूरा-पूरा जान लूँगा, ठीक जैसे परमेश्वर मेरे बारे में पूरी तरह से जानता है। 13 लेकिन जो तीन बाकी रह जाएँगे, वे हैं विश्वास, आशा और प्यार, मगर इन तीनों में सबसे बड़ा है प्यार।
14 एक-दूसरे से जी-जान से प्यार करो,* साथ ही, तुम जोश के साथ परमेश्वर के वरदान पाने की कोशिश करते रहो। मगर बेहतर यह होगा कि तुम भविष्यवाणियों का मतलब समझा सको। 2 इसलिए कि जो दूसरी भाषा बोलता है वह इंसानों से नहीं बल्कि परमेश्वर से बात करता है, क्योंकि वह इंसान पवित्र शक्ति के ज़रिए पवित्र रहस्य बताता तो है, मगर कोई समझता नहीं। 3 लेकिन जो भविष्यवाणी करता है वह अपनी बातों से लोगों को मज़बूत करता है और उनकी हिम्मत बँधाता है और उन्हें दिलासा देता है। 4 जो दूसरी भाषा बोलता है वह खुद को ही मज़बूत करता है, मगर जो भविष्यवाणी करता है वह मंडली को मज़बूत करता है। 5 मैं तुम सबके लिए चाहता तो हूँ कि तुम सभी दूसरी भाषाएँ बोलो, मगर मेरे हिसाब से बेहतर यह होगा कि तुम भविष्यवाणी करो। दरअसल भविष्यवाणी करनेवाला, दूसरी भाषाएँ बोलनेवाले से कहीं बढ़कर है। क्योंकि दूसरी भाषाएँ बोलनेवाला अगर अपनी बातों का अनुवाद न करे, तो उसकी बातों से मंडली को मज़बूती नहीं मिल सकेगी। 6 मगर भाइयो, अगर मैं इस वक्त तुम्हारे पास आकर दूसरी भाषाएँ बोलूँ, तो इससे तुम्हारा क्या भला होगा, जब तक कि मैं परमेश्वर के संदेश का खुलासा करने के वरदान या ज्ञान या भविष्यवाणी या किसी शिक्षा के वरदान के साथ न बोलूँ?
7 इसी तरह बेजान चीज़ें जिनसे आवाज़ निकलती है, चाहे बाँसुरी हो या सुर-मंडल, अगर इनके सुर-तान में अंतर न हो तो यह कैसे मालूम पड़ेगा कि बाँसुरी या सुर-मंडल पर क्या बजाया जा रहा है? 8 वाकई, अगर तुरही की पुकार साफ न हो, तो लड़ाई के लिए कौन तैयार होगा? 9 उसी तरह, अगर तुम अपनी ज़बान से ऐसी बोली न बोलो जो आसानी से समझ में आ सके, तो जो बोला जा रहा है वह कैसे समझ में आएगा? दरअसल, तुम हवा में बात करनेवाले ठहरोगे। 10 दुनिया में चाहे कितनी ही किस्म की बोलियाँ क्यों न हों, मगर एक भी बोली ऐसी नहीं जिसका कोई मतलब न हो। 11 अगर मैं किसी बोली के मायने नहीं समझता, तो बोलनेवाले के लिए मैं एक विदेशी जैसा हूँ और वह मेरे लिए विदेशी जैसा होगा। 12 इसलिए तुम भी जो पूरे जोश के साथ पवित्र शक्ति के वरदान पाने की ख्वाहिश रखते हो, इन्हें बहुतायत में पाने की इसलिए कोशिश करो ताकि मंडली मज़बूत हो सके।
13 इसलिए जो दूसरी भाषा में बात करता है वह प्रार्थना करे कि वह उसका अनुवाद भी कर सके। 14 क्योंकि अगर मैं दूसरी भाषा में प्रार्थना कर रहा हूँ, तो पवित्र शक्ति का जो वरदान मुझे मिला है, उससे मैं प्रार्थना कर रहा हूँ, मगर मैं दिमाग से नहीं समझता कि मैं क्या प्रार्थना कर रहा हूँ। 15 तो फिर क्या किया जाए? मैं पवित्र शक्ति के वरदान के साथ प्रार्थना करूँगा, मगर साथ ही मैं अपने दिमाग से समझते हुए भी प्रार्थना करूँगा। मैं पवित्र शक्ति के वरदान से स्तुति के गीत गाऊँगा, मगर मैं अपने दिमाग से समझते हुए भी इन्हें गाऊँगा। 16 वरना, अगर तू पवित्र शक्ति के वरदान से प्रार्थना में स्तुति करे, तो आम इंसान तेरी धन्यवाद की प्रार्थना के लिए “आमीन” कैसे कहेगा, क्योंकि वह नहीं जानता कि तू क्या कह रहा है? 17 हाँ, यह सच है कि तू बहुत बढ़िया तरीके से प्रार्थना में धन्यवाद देता है, मगर उस दूसरे इंसान को इससे फायदा नहीं होता।* 18 मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ कि मैं तुम सबसे ज़्यादा भाषाएँ बोलता हूँ। 19 फिर भी, एक मंडली में मैं दूसरी भाषा में दस हज़ार शब्द बोलने के बजाय, अपने दिमाग से पाँच ऐसे शब्द कहना पसंद करूँगा जो समझ में आते हैं ताकि मैं दूसरों को ज़बानी तौर पर हिदायत दे सकूँ।
20 भाइयो, सोचने-समझने की काबिलीयत में बच्चों जैसे नादान न बनो, बल्कि बुराई के मामले में तो बच्चे रहो, मगर सोचने-समझने की काबिलीयत में सयाने बनो। 21 कानून में लिखा है: “यहोवा कहता है, ‘मैं इन लोगों से विदेशियों की भाषाओं और अजनबियों की बोली में* बात करूँगा, इसके बावजूद भी वे मेरी बात पर ध्यान नहीं देंगे।’ ” 22 इसलिए, दूसरी भाषाएँ विश्वासियों के लिए नहीं बल्कि अविश्वासियों के लिए एक निशानी हैं, जबकि भविष्यवाणी करना अविश्वासियों के लिए नहीं बल्कि विश्वास करनेवालों के लिए है। 23 इसलिए अगर सारी मंडली एक जगह इकट्ठा होती है और वे सभी दूसरी भाषाएँ बोलते हैं और अगर आम लोग या अविश्वासी अंदर आते हैं, तो क्या वे यह न कहेंगे कि तुम पागल हो? 24 लेकिन अगर तुम सभी भविष्यवाणी करते हो और कोई अविश्वासी या आम इंसान अंदर आता है, तो तुम सबकी बातों से उसे ताड़ना मिलती है और सबकी बातों से उसकी बारीकी से जाँच होती है। 25 उसके दिल के राज़ ज़ाहिर हो जाते हैं, जिससे कि वह अपने मुँह के बल गिरकर यह कहते हुए परमेश्वर की उपासना करेगा: “वाकई, परमेश्वर तुम्हारे बीच है।”
26 तो फिर भाइयो, क्या किया जाना चाहिए? जब तुम इकट्ठा होते हो, तो एक भजन सुनाता है, दूसरा शिक्षा देता है। जिस पर कुछ प्रकट किया गया है, वह उसके बारे में बताता है। कोई दूसरी भाषा में बात करता है, कोई उसका अनुवाद कर समझाता है। यह सब कुछ एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए किया जाए। 27 अगर दूसरी भाषा में बोलनेवाले हों तो ऐसे लोग ज़्यादा-से-ज़्यादा दो या तीन हों, और वे बारी-बारी से बोलें और कोई अनुवाद कर उनकी बात समझाए। 28 लेकिन अगर अनुवाद करनेवाला कोई न हो तो वे मंडली में चुप रहें और मन-ही-मन खुद से और परमेश्वर से बात करें। 29 भविष्यवक्ताओं में से दो या तीन बोलें और दूसरे उनकी बातों का मतलब समझें। 30 लेकिन अगर वहाँ बैठे हुए किसी और पर कोई रहस्य ज़ाहिर किया जाता है तो जो बोल रहा है, वह चुप हो जाए। 31 इसलिए कि तुम सभी एक-एक कर भविष्यवाणी कर सकते हो ताकि सभी सीख सकें और उनकी हिम्मत बँधे। 32 भविष्यवक्ताओं को पवित्र शक्ति से भविष्यवाणी करने के अपने वरदान पर काबू रखना है। 33 इसलिए कि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, बल्कि शांति का परमेश्वर है।
जैसे पवित्र जनों की सारी मंडलियों में होता है, 34 वैसे ही मंडलियों में स्त्रियाँ चुप रहें, क्योंकि उन्हें बोलने की इजाज़त नहीं है, बल्कि वे अधीन रहें, ठीक जैसे कानून भी कहता है। 35 अगर वे कुछ जानना चाहती हैं, तो वे घर पर अपने-अपने पति से सवाल करें, क्योंकि एक स्त्री के लिए मंडली के सामने बोलना अपमान की बात है।
36 क्या परमेश्वर का वचन तुम में से निकला था या क्या यह सिर्फ तुम तक ही पहुँचा?
37 अगर कोई सोचता है कि वह एक भविष्यवक्ता है या उसे पवित्र शक्ति का वरदान मिला है, तो वह इन बातों की हामी भरे जो मैं तुम्हें लिख रहा हूँ, क्योंकि ये प्रभु की आज्ञाएँ हैं। 38 लेकिन अगर कोई अनजान बनता है तो वह अनजान बना रहे। 39 इसलिए मेरे भाइयो, भविष्यवाणी करने के वरदान की पूरे जोश के साथ खोज करते रहो, मगर साथ ही दूसरी भाषाओं में बोलनेवालों को भी मत रोको। 40 मगर सब बातें कायदे से और अच्छे इंतज़ाम के मुताबिक हों।
15 भाइयो, अब मैं तुम्हें वही खुशखबरी बता रहा हूँ जिसका मैं तुम्हारे बीच प्रचार कर चुका हूँ, जिसे तुमने स्वीकार भी किया था और जिसमें तुम कायम भी हो। 2 तुमने मुझसे जो यह खुशखबरी सुनी है उसके ज़रिए तुम्हारा उद्धार भी हो रहा है, बशर्ते तुम इसे मज़बूती से थामे रहो, वरना तुम्हारा विश्वासी बनना बेकार गया।
3 इसलिए कि जो बातें मुझे मिली थीं और जो मैंने तुम तक पहुँचायी हैं उनमें सबसे ज़रूरी यह है कि जैसा शास्त्र में लिखा है, मसीह हमारे पापों के लिए मरा 4 और उसे दफनाया गया, हाँ, शास्त्र के मुताबिक उसे तीसरे दिन जी उठाया गया। 5 और यह कि वह कैफा को और फिर बारहों को दिखायी दिया। 6 उसके बाद वह एक ही वक्त पर पाँच सौ से ज़्यादा भाइयों को दिखायी दिया, जिनमें से ज़्यादातर आज भी मौजूद हैं, मगर कुछ मौत की नींद सो गए हैं। 7 इसके बाद वह याकूब को दिखायी दिया, फिर सभी प्रेषितों को, 8 मगर सबसे आखिर में वह मुझे भी दिखायी दिया, जो मानो वक्त पूरा होने से पहले जन्मा हो।
9 मैं प्रेषितों में सबसे छोटा हूँ यहाँ तक कि प्रेषित कहलाने के भी लायक नहीं हूँ, क्योंकि मैंने परमेश्वर की मंडली पर ज़ुल्म ढाया। 10 मगर आज मैं जो हूँ वह परमेश्वर की महा-कृपा से हूँ। और मेरे लिए उसकी महा-कृपा बेकार साबित नहीं हुई, क्योंकि मैंने उन सबसे ज़्यादा मेहनत की है, फिर भी यह मेहनत मैंने नहीं बल्कि परमेश्वर की उस महा-कृपा ने की है, जो मेरे साथ है। 11 लेकिन चाहे मैं हूँ या वे हों, हम यही प्रचार कर रहे हैं और इसी बात पर तुमने यकीन भी किया है।
12 अब अगर मसीह का इसी तरह प्रचार किया जा रहा है कि उसे मरे हुओं में से जी उठाया गया है, तो तुममें से कुछ यह कैसे कहते हैं कि मरे हुओं का जी उठना नहीं होगा? 13 वाकई, अगर मरे हुओं का जी उठना नहीं होगा, तो मसीह को भी नहीं जी उठाया गया। 14 अगर मसीह को नहीं जी उठाया गया, तो हमारा प्रचार करना वाकई बेकार है और हमारा विश्वास बेकार है। 15 इतना ही नहीं, हम परमेश्वर के झूठे गवाह भी ठहरे, क्योंकि हमने परमेश्वर के खिलाफ गवाही दी है कि उसने मसीह को जी उठाया है, जबकि अगर यह सच है कि वाकई मरे हुओं का जी उठना नहीं होगा, तो परमेश्वर ने उसे भी नहीं जी उठाया। 16 इसलिए कि अगर मरे हुए ज़िंदा नहीं किए जाएँगे, तो मसीह को भी नहीं उठाया गया। 17 और अगर मसीह को जी उठाया नहीं गया, तो तुम्हारा विश्वास बेकार है और तुम अब-भी अपने पापों में पड़े हुए हो। 18 अगर ऐसा है तो जो मसीह में मौत की नींद सो गए हैं, वे भी पूरी तरह मिट गए। 19 अगर हमने सिर्फ इसी ज़िंदगी के लिए मसीह में आशा रखी है, तो सारे इंसानों में सबसे ज़्यादा हम तरस खाने लायक हैं।
20 लेकिन, सच तो यह है कि मसीह को मरे हुओं में से जी उठाया गया है, जो मौत की नींद सो गए हैं उनमें से वह पहला फल है। 21 इसलिए कि एक इंसान के ज़रिए मौत आयी, तो एक इंसान के ज़रिए ही मरे हुओं का जी उठना होगा। 22 ठीक जैसे आदम में सभी मर रहे हैं, वैसे ही मसीह में सभी ज़िंदा किए जाएँगे। 23 मगर हर कोई अपनी-अपनी बारी से: पहले फलों के तौर पर मसीह, उसके बाद वे जो मसीह के हैं उसकी मौजूदगी* के दौरान ज़िंदा किए जाएँगे। 24 इसके बाद अंत में, जब वह सारी हुकूमत और सारे अधिकार और सारी ताकत को मिटा चुका होगा, तब वह अपने परमेश्वर और पिता के हाथ में राज सौंप देगा। 25 इसलिए कि उसका तब तक राजा बनकर राज करना ज़रूरी है जब तक कि परमेश्वर सारे दुश्मनों को उसके पाँव तले नहीं कर देता। 26 सब से आखिरी दुश्मन जो मिटा दिया जाएगा, वह मौत है। 27 परमेश्वर ने “सबकुछ उसके पाँवों तले कर दिया।” मगर जब वह कहता है कि ‘सबकुछ पाँव तले कर दिया गया है,’ तो ज़ाहिर है कि जिसने सबकुछ उसके पाँव तले किया है वह खुद इसमें शामिल नहीं है। 28 मगर जब सबकुछ उसके अधीन कर दिया जाएगा, तब बेटा भी अपने आप को उस एक के अधीन कर देगा जिसने सबकुछ उसके अधीन किया था, ताकि परमेश्वर ही सबके लिए सबकुछ हो।
29 अगर मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, तो वे क्या करेंगे जो मरे हुए होने के मकसद से बपतिस्मा लेते हैं? अगर ऐसा है ही नहीं, तो वे मरे हुए होने के मकसद से बपतिस्मा क्यों ले रहे हैं? 30 हम भी क्यों हर घड़ी जोखिम उठाते हैं? 31 भाइयो, जितना यह सच है कि हमारे प्रभु मसीह यीशु में मैं तुम पर गर्व करता हूँ, उतना ही यह भी सच है कि मैं हर दिन मौत का सामना करता हूँ। 32 अगर बाकी इंसानों की तरह मैं भी, इफिसुस में जंगली जानवरों से लड़ा, तो इससे मुझे क्या फायदा हुआ? अगर मरे हुओं को जी उठाया नहीं जाएगा, तो “आओ हम खाएँ-पीएँ, क्योंकि कल तो मरना ही है।” 33 धोखा न खाओ। बुरी सोहबत अच्छी आदतें बिगाड़ देती है। 34 नेकी के काम करने के लिए होश में आ जाओ और पाप करने में न लगे रहो, क्योंकि कुछ लोग परमेश्वर के बारे में ज्ञान नहीं रखते। मैं तुम्हें शर्म दिलाने के लिए यह कह रहा हूँ।
35 फिर भी, कोई कहेगा: “मरे हुओं को कैसे जी उठाया जाएगा? हाँ, वे किस किस्म के शरीर के साथ जी उठेंगे?” 36 अरे मूर्ख इंसान! तू जो बोता है वह जब तक कि पहले मर न जाए, जीवन नहीं पाता। 37 और तू जो बोता है, वह पौधा नहीं है जो उगेगा बल्कि सिर्फ एक दाना है, फिर चाहे वह गेहूं का हो या बाकी किसी अनाज का। 38 मगर परमेश्वर को जैसा अच्छा लगता है वह उसे एक शरीर देता है और हर बीज को उसका अपना एक शरीर देता है। 39 सब शरीर एक जैसे नहीं होते। इंसानों का शरीर अलग होता है, जानवरों का शरीर अलग। पक्षियों का शरीर अलग होता है और मछलियों का शरीर अलग। 40 स्वर्गीय शरीर हैं और धरती पर रहनेवालों के शरीर हैं, मगर स्वर्गीय शरीरों का तेज एक किस्म का है और धरती पर रहनेवालों के शरीर का तेज दूसरे किस्म का है। 41 सूरज का तेज एक किस्म का है और चाँद का तेज दूसरे किस्म का और तारों का तेज और किस्म का। दरअसल, एक तारे से दूसरे तारे के तेज में फर्क है।
42 ऐसा ही मरे हुओं का जी उठना भी है। शरीर नश्वर दशा में बोया जाता है और अनश्वर दशा में जी उठाया जाता है। 43 इसे अनादर की दशा में बोया जाता है और महिमा की दशा में जी उठाया जाता है। इसे कमज़ोर दशा में बोया जाता है और शक्तिशाली दशा में जी उठाया जाता है। 44 हाड़-माँस का शरीर बोया जाता है और आत्मिक* शरीर जी उठाया जाता है। अगर हाड़-माँस का शरीर है, तो आत्मिक शरीर भी है। 45 ऐसा लिखा भी है: “पहला आदमी, आदम जीवित प्राणी बना।” आखिरी आदम जीवन देनेवाला आत्मिक प्राणी* बना। 46 फिर भी, पहला वह नहीं था जो आत्मिक* है, बल्कि वह था जो हाड़-माँस का था, उसके बाद वह आया जो आत्मिक है। 47 पहला आदमी धरती से था और मिट्टी से बनाया गया था, दूसरा स्वर्ग से था। 48 जैसा वह है जो मिट्टी से बनाया गया है, वैसे ही दूसरे हैं जो मिट्टी से बनाए गए हैं। और जैसा वह है जो स्वर्गीय है, वैसे ही दूसरे भी हैं जो स्वर्गीय हैं। 49 और ठीक जैसे हमने उसकी छवि धारण की है जो मिट्टी से बना था, वैसे ही हम उसकी छवि भी धारण करेंगे जो स्वर्गीय है।
50 मगर भाइयो, मैं यह कहता हूँ कि माँस और लहू परमेश्वर के राज के वारिस नहीं हो सकते, न ही नश्वरता, अनश्वरता की वारिस होती है। 51 देखो! मैं तुम्हें एक पवित्र रहस्य बताता हूँ: हम सभी मौत की नींद नहीं सोएँगे, मगर हम सभी बदल जाएँगे, 52 पल-भर में पलक झपकते ही, आखिरी तुरही फूँके जाने के दौरान ऐसा होगा। तुरही फूँकी जाएगी और मरे हुए अनश्वर दशा में जी उठाए जाएँगे और हम बदल जाएँगे। 53 इसलिए कि यह जो नश्वर है इसे अनश्वरता को पहनना है और यह जो मरनहार है इसे अमरता को पहनना है। 54 इसलिए जब [यह जो नश्वर है वह अनश्वरता को पहन लेता है और] यह जो मरनहार है वह अमरता को पहन लेता है, तब यह बात पूरी होगी जो लिखी है: “मौत को हमेशा के लिए निगल लिया गया है।” 55 “मौत, तेरी जीत कहाँ है? मौत, तेरा डंक कहाँ है?” 56 मौत पैदा करनेवाला डंक पाप है, मगर पाप को जिससे बल मिलता है वह मूसा का कानून है। 57 मगर परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए हमें जीत दिलाता है!
58 इसलिए मेरे प्यारे भाइयो, अटल बनो, डटे रहो और प्रभु की सेवा में व्यस्त रहने के लिए हमेशा तुम्हारे पास बहुत काम हो, क्योंकि तुम जानते हो कि प्रभु में तुम्हारी कड़ी मेहनत बेकार नहीं है।
16 अब पवित्र जनों के लिए इकट्ठा किए जानेवाले पैसों के बारे में, मैंने जो आदेश गलातिया की मंडलियों को दिए हैं, ठीक उसी तरह तुम भी करो। 2 हर हफ्ते के पहले दिन तुममें से हर कोई अपने ही घर में अपनी आमदनी के मुताबिक कुछ अलग जमा करता रहे ताकि जब मैं आऊँ तो उस वक्त पैसे इकट्ठे न करने पड़ें। 3 मगर जब मैं वहाँ आऊँगा, तो तुमने अपनी चिट्ठियों में जिन आदमियों की सिफारिश की है उन्हें मैं भेज दूँगा कि वे उदारता से दिया हुआ तुम्हारा तोहफा यरूशलेम ले जाएँ। 4 लेकिन अगर मेरे लिए भी वहाँ जाना मुनासिब हुआ, तो वे मेरे साथ वहाँ जाएँगे।
5 मगर मैं मकिदुनिया का दौरा पूरा करने के बाद तुम्हारे पास आऊँगा क्योंकि मैं मकिदुनिया से होकर ही आऊँगा 6 और शायद मैं तुम्हारे यहाँ ठहरूँ या फिर शायद तुम्हारे यहीं सर्दियाँ भी बिताऊँ और इसके बाद जहाँ मैं जाऊँगा वहाँ के लिए तुम कुछ दूरी तक मुझे विदा कर देना। 7 क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मैं अभी रास्ते में तुमसे बस मुलाकात करता जाऊँ, इसलिए कि अगर यहोवा इजाज़त दे तो मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताने की उम्मीद करता हूँ। 8 मगर मैं पिन्तेकुस्त के त्योहार तक इफिसुस में ही रहूँगा, 9 इसलिए कि मेरे लिए मौके का एक बड़ा दरवाज़ा खोला गया है, ताकि मैं और भी सरगर्मी के साथ सेवा कर सकूँ, मगर विरोधी भी बहुत हैं।
10 लेकिन अगर तीमुथियुस वहाँ आता है, तो इस बात का ध्यान रखना कि वह तुम्हारे बीच बिना किसी डर के रहे, इसलिए कि वह भी मेरी तरह यहोवा का काम कर रहा है। 11 कोई उसे तुच्छ न समझे। तुम उसे कुछ दूरी तक ठीक तरह से विदा कर देना ताकि वह यहाँ मेरे पास आ सके क्योंकि मैं भाइयों के साथ उसका इंतज़ार कर रहा हूँ।
12 अब हमारे भाई अप्पुलोस की बात कहूँ, तो मैंने उससे बहुत गुज़ारिश की कि भाइयों के साथ तुम्हारे पास आए, मगर अभी तुम्हारे पास आने की उसकी बिलकुल भी इच्छा नहीं थी। मगर जब उसे मौका मिलेगा तब वह तुम्हारे पास आएगा।
13 जागते रहो, विश्वास में मज़बूत खड़े रहो, दिलेर बनो,* शक्तिशाली बनते जाओ। 14 तुम्हारे बीच सारे काम प्यार से किए जाएँ।
15 अब भाइयो मैं तुम्हें यह सीख देकर उकसाता हूँ: तुम जानते हो कि स्तिफनास का घराना अखया के पहले फल हैं और वे पवित्र जनों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। 16 तुम भी ऐसों के अधीन रहो और ऐसे हर किसी के अधीन रहो जो सहयोग देते हैं और कड़ी मेहनत करते हैं। 17 मगर मैं स्तिफनास और फूरतूनातुस और अखइखुस की मौजूदगी से बेहद खुश हूँ, क्योंकि उन्होंने तुम्हारे यहाँ न होने की कमी पूरी कर दी है। 18 उन्होंने तुम्हारा और मेरा जी* तरो-ताज़ा किया है। इसलिए ऐसे आदमियों की कदर किया करो।
19 एशिया* की मंडलियाँ तुम्हें अपना नमस्कार भेजती हैं। अक्विला और प्रिस्का, साथ ही उनके घर में इकट्ठा होनेवाली मंडली भी प्रभु में तुम्हें दिल से नमस्कार कहते हैं। 20 सारे भाई तुम्हें नमस्कार भेजते हैं। पवित्र चुंबन से एक-दूसरे का स्वागत करो।
21 मैं पौलुस खुद अपने हाथ से अब तुम्हें नमस्कार लिखता हूँ।
22 अगर कोई प्रभु के लिए गहरा लगाव नहीं रखता तो वह शापित हो। हे हमारे प्रभु, आ! 23 प्रभु यीशु की महा-कृपा हमेशा तुम्हारे साथ रहे। 24 मसीह यीशु में मेरा प्यार तुम सबके साथ रहे।
1कुरिं 1:1 या, “भेजा गया।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”
1कुरिं 1:2 मत्ती 16:18 दूसरा फुटनोट देखें।
1कुरिं 1:17 अतिरिक्त लेख 6 देखें।
1कुरिं 1:20 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
1कुरिं 1:20 शाब्दिक, “शास्त्री।”
1कुरिं 1:28 शाब्दिक, “जो चीज़ें हैं ही नहीं।”
1कुरिं 1:28 शाब्दिक, “जो चीज़ें हैं।”
1कुरिं 1:30 शाब्दिक, “के साथ एकता में हो।”
1कुरिं 1:31 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्त लेख 2 देखें।
1कुरिं 2:6 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
1कुरिं 2:8 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
1कुरिं 2:11 यूनानी में, नफ्मा।
1कुरिं 2:13 या, “शब्द जो परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मुताबिक हैं।”
1कुरिं 2:14 शाब्दिक, “शारीरिक।”
1कुरिं 3:1 शाब्दिक, “शारीरिक।”
1कुरिं 3:18 या, “दुनिया की व्यवस्था।”
1कुरिं 4:15 शाब्दिक, “संरक्षक,” जिस पर बच्चों की देखरेख और हिफाज़त की ज़िम्मेदारी होती थी।
1कुरिं 5:1 यानी, हर किस्म के नाजायज़ यौन-संबंध। अतिरिक्त लेख 4 देखें।
1कुरिं 7:36 शाब्दिक, “अपने कुँवारेपन के साथ बुरा सलूक कर रहा है।”
1कुरिं 8:1 शाब्दिक, “निर्माण करता है।”
1कुरिं 13:8 या, “कभी नाकाम नहीं होता।”
1कुरिं 14:1 शाब्दिक, “प्यार का पीछा करो।”
1कुरिं 14:17 या, “उसका निर्माण नहीं होता।”
1कुरिं 14:21 शाब्दिक, “होंठ।”
1कुरिं 15:23 अतिरिक्त लेख 5 देखें।
1कुरिं 15:44 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
1कुरिं 15:45 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
1कुरिं 15:46 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
1कुरिं 16:13 शाब्दिक, “मरदानगी से काम करते रहो।”
1कुरिं 16:18 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्त लेख 7 देखें।
1कुरिं 16:19 प्रेषि 2:9 फुटनोट देखें।