वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • bi7 2 कुरिंथियों 1:1-13:14
  • 2 कुरिंथियों

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • 2 कुरिंथियों
  • नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
नयी दुनिया अनुवाद—मसीही यूनानी शास्त्र
2 कुरिंथियों

कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी

1 मैं पौलुस, जो परमेश्‍वर की मरज़ी से मसीह यीशु का एक प्रेषित* हूँ, हमारे भाई तीमुथियुस के साथ, कुरिंथ में परमेश्‍वर की मंडली* को यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। और यह चिट्ठी उन सभी पवित्र जनों के लिए भी है, जो सारे अखया में हैं।

2 तुम्हें परमेश्‍वर हमारे पिता की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से महा-कृपा और शांति मिले।

3 हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्‍वर और पिता धन्य हो। वह कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है। 4 वह हमारी सब दुःख-तकलीफों में हमें दिलासा देता है ताकि हम, किसी भी तरह का दुःख झेलनेवाले लोगों को वही दिलासा दे सकें जो परमेश्‍वर हमें दे रहा है। 5 इसलिए कि जैसे मसीह की खातिर हम बहुत दुःख झेलते हैं, उसी तरह मसीह के ज़रिए हम बहुत दिलासा भी पाते हैं। 6 चाहे हम दुःख-तकलीफ में हैं, तो यह तुम्हारे दिलासे और उद्धार के लिए है। या, अगर हम दिलासा पा रहे हैं, तो यह भी तुम्हारे दिलासे के लिए है। यह दिलासा, वे सारे दुःख सहने में तुम्हारी मदद करने का काम करता है जिन्हें हम भी सहते हैं। 7 तुम्हारे बारे में हमारी आशा अटल है, क्योंकि हम जानते हैं कि जैसे तुम हमारे दुःखों में हिस्सेदार हो, वैसे ही तुम हमारे साथ दिलासा भी पाओगे।

8 भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम उस संकट से अनजान रहो जो एशिया* ज़िले में हम पर आ पड़ा था। हम पर ऐसी भारी मुसीबत आ पड़ी थी कि उसे सहना हमारे बस के बाहर था, यहाँ तक कि हमें अपने ज़िंदा बच पाने का बिलकुल भरोसा नहीं था। 9 दरअसल हमें महसूस होने लगा था कि हम पर सज़ा-ए-मौत का हुक्म हो चुका है। यह इसलिए हुआ कि हमारा भरोसा खुद पर न हो बल्कि उस परमेश्‍वर पर हो जो मरे हुओं को जी उठाता है। 10 उसने हमें मौत के बड़े खतरे से बचाया है और बचाएगा। हमारी यह आशा है कि वह हमें आगे भी बचाता रहेगा। 11 तुम भी प्रार्थना में हमारे लिए मिन्‍नतें करते हुए हमारी मदद कर सकते हो। तब बहुतों की प्रार्थनाओं की वजह से हम पर जो कृपा की जाएगी, उसके लिए हमारी खातिर बहुत-से लोग बदले में धन्यवाद दे सकेंगे।

12 हमारे गर्व करने की वजह यह है और हम साफ ज़मीर के साथ ऐसा कह सकते हैं कि हम दुनिया में और खासकर तुम्हारे बीच ऐसी पवित्रता और सीधाई से रहे हैं जो परमेश्‍वर सिखाता है। हम दुनियावी बुद्धि पर नहीं बल्कि परमेश्‍वर की महा-कृपा पर निर्भर रहे हैं। 13 दरअसल, हम उन बातों को छोड़ तुम्हें और कुछ नहीं लिख रहे जिन्हें तुम अच्छी तरह जानते हो या मानते भी हो, और आशा करता हूँ कि आखिर तक मानते भी रहोगे। 14 ठीक जैसे तुमने, कुछ हद तक यह बात मानी भी है कि हम तुम्हारे लिए गर्व करने की वजह हैं, वैसे ही तुम भी हमारे प्रभु यीशु के दिन में हमारे लिए गर्व करने की वजह ठहरोगे।

15 इस भरोसे के साथ मैंने पहले इरादा किया था कि तुम्हारे पास दूसरी बार आऊँ ताकि तुम्हें खुशी का एक और मौका मिले 16 और तुम्हारे यहाँ ठहरने के बाद मकिदुनिया जाऊँ, और फिर मकिदुनिया से लौटकर तुम्हारे पास आऊँ और तुम मुझे यहूदिया के सफर पर कुछ दूरी तक विदा करो। 17 जब मैंने यह इरादा किया तो क्या मैंने बिना सोचे-समझे ऐसा किया था या जब मैं कुछ इरादा करता हूँ तो क्या मैं शरीर की ख्वाहिश के मुताबिक चलता हूँ कि एक ही वक्‍त में पहले तो ‘हाँ, हाँ’ कहूँ, मगर फिर ‘न, न’? 18 मगर जैसे परमेश्‍वर पर भरोसा किया जा सकता है, वैसे ही इस बात का भी भरोसा किया जा सकता है कि जब हम तुमसे ‘हाँ’ कहते हैं, तो उसका मतलब ‘न’ नहीं होता। 19 इसलिए कि परमेश्‍वर का बेटा मसीह यीशु, जिसका हमने यानी, मैंने, सिलवानुस* और तीमुथियुस ने तुम्हारे बीच प्रचार किया था, वह ‘हाँ’ होने के साथ-साथ ‘न’ नहीं है, बल्कि उसके मामले में ‘हाँ’ का मतलब हमेशा ‘हाँ’ हुआ है। 20 इसलिए कि परमेश्‍वर के चाहे कितने ही वादे हों, वे सब उसी के ज़रिए ‘हाँ’ हुए हैं। इसलिए उसी के ज़रिए परमेश्‍वर से “आमीन” कहा जाता है, ताकि हम परमेश्‍वर को महिमा दे सकें। 21 मगर वह जो इस बात की गारंटी देता है कि तुम और हम मसीह के हैं और जिसने हमारा अभिषेक किया है, वह परमेश्‍वर है। 22 उसने हम पर अपनी मुहर भी लगायी है और जो आनेवाला है, उसका बयाना यानी पवित्र शक्‍ति दी है जो हमारे दिलों में है।

23 अगर मेरी बात सच नहीं तो परमेश्‍वर मेरे खिलाफ गवाह होगा कि मैं अब तक सिर्फ इसलिए कुरिंथ नहीं आया क्योंकि मैं तुम्हें और ज़्यादा दुःखी नहीं करना चाहता था। 24 यह बात नहीं कि हम तुम्हारे विश्‍वास के मालिक हैं, बल्कि हम तुम्हारी खुशी के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं, क्योंकि तुम अपने ही विश्‍वास की वजह से खड़े हो।

2 मैंने यह फैसला किया है कि जब मैं दोबारा तुम्हारे पास आऊँ, तो तुम्हें उदास न करूँ। 2 इसलिए कि अगर मैं तुम्हें उदास कर दूँ तो मुझे कौन खुश करेगा, सिवा उसके जिसे मैंने उदास किया है? 3 मैंने तुम्हें यह सब लिखा है, ताकि जब मैं आऊँ तो जिनसे मुझे खुशी मिलनी चाहिए उनकी वजह से मैं उदास न हो जाऊँ, क्योंकि मुझे तुम सब पर भरोसा है कि जिन बातों से मुझे खुशी मिलती है उन्हीं बातों से तुम्हें भी खुशी मिलती है। 4 मैंने बड़ी तकलीफ और दिल की तड़प के साथ आँसू बहा-बहाकर तुम्हें लिखा, इसलिए नहीं कि तुम उदास हो जाओ बल्कि इसलिए कि तुम मेरे उस प्यार को जान सको जो मुझे खास तौर पर तुमसे है।

5 अब अगर किसी ने उदास किया है, तो उसने मुझे नहीं बल्कि तुम सबको कुछ हद तक उदास किया है, हालाँकि मैं बहुत कड़े शब्द इस्तेमाल नहीं करना चाहता। 6 उस आदमी को ज़्यादातर लोगों ने जो ताड़ना दी है वह काफी है। 7 इसलिए अब तुम्हें उसे कृपा दिखाते हुए माफ करना चाहिए और उसे दिलासा देना चाहिए, कहीं ऐसा न हो कि वह आदमी हद-से-ज़्यादा उदासी में डूब जाए। 8 इसलिए मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि तुम उस आदमी को अपने प्यार का सबूत दो। 9 मैं तुम्हें यह चिट्ठी इसलिए भी लिख रहा हूँ कि मैं इस बात का सबूत पा सकूँ कि तुम सब बातों में आज्ञा मानते हो कि नहीं। 10 तुम जिस किसी पर कृपा दिखाते हुए उसका कोई अपराध माफ करते हो, मैं भी उसे माफ करता हूँ। दरअसल, जहाँ तक मेरी बात है, अगर मैंने कृपा दिखाते हुए कोई अपराध माफ किया है, तो जो कुछ मैंने माफ किया है वह मसीह के सामने तुम्हारी खातिर किया है, 11 ताकि शैतान हम पर हावी न हो जाए, इसलिए कि हम उसकी चालबाज़ियों से अनजान नहीं।

12 जब मैं मसीह के बारे में खुशखबरी सुनाने त्रोआस पहुँचा और प्रभु का काम और ज़्यादा करने के लिए मुझे एक मौका दिया गया,* 13 तो मेरे भाई तीतुस को वहाँ न पाने की वजह से मेरे जी* को चैन न मिला। तब मैंने वहाँ चेलों से अलविदा कहा और मकिदुनिया के लिए रवाना हो गया।

14 मगर परमेश्‍वर का धन्यवाद हो जो हमेशा हमारे आगे-आगे चलता हुआ हमें जीत के जुलूस में मसीह के संग लिए चलता है और हमारे ज़रिए अपने ज्ञान की सुगंध हर जगह फैलाता है! 15 इसलिए कि परमेश्‍वर के सामने हम, उद्धार की राह पर चलनेवालों और विनाश की राह पर चलनेवालों, दोनों के लिए मसीह के बारे में समाचार की सुगंध हैं, 16 यानी कितनों के लिए मौत की वह गंध जिसका अंजाम मौत होता है और कितनों के लिए जीवन की वह सुगंध जिसका अंजाम ज़िंदगी होता है। और कौन ऐसी सेवा के लिए ज़रूरी योग्यता रखता है? 17 हम रखते हैं, इसलिए कि हम परमेश्‍वर के वचन का सौदा करनेवाले* नहीं, जैसा कितने ही करते हैं, मगर हम मन की सीधाई से, हाँ, परमेश्‍वर की तरफ से भेजे हुओं के नाते, परमेश्‍वर को हाज़िर जानकर मसीह के संग बोलते हैं।

3 क्या हम एक बार फिर नए सिरे से अपना परिचय देने के लिए अपनी सिफारिश कर रहे हैं? या शायद कुछ लोगों की तरह, क्या हमें भी तुम्हें दिखाने के लिए सिफारिशी चिट्ठियाँ चाहिए या क्या हमें तुमसे सिफारिशी चिट्ठी पाने की ज़रूरत है? 2 हमारी सिफारिशी चिट्ठी तुम खुद हो, जो हमारे दिलों पर लिखी है और जिसे सब लोग जानते और पढ़ते हैं। 3 यह ज़ाहिर है कि तुम मसीह की चिट्ठी हो जिसे हम सेवकों ने स्याही से नहीं बल्कि जीवित परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से और पत्थर की पटियाओं पर नहीं बल्कि दिलों* पर लिखा है।

4 मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर के सामने हम यही भरोसा रखते हैं। 5 हमारे अंदर ज़रूरी योग्यता अपनी तरफ से नहीं है, न ही हम यह मानते हैं कि हमारी अपनी किसी खूबी की वजह से हममें यह योग्यता है। बल्कि हमें ज़रूरत के हिसाब से योग्यता परमेश्‍वर की तरफ से मिली है। 6 वाकई उसी ने हमें ज़रूरत के हिसाब से योग्य बनाया है कि हम किसी लिखित कानून के नहीं, बल्कि एक नए करार के और पवित्र शक्‍ति के सेवक बनें। क्योंकि लिखित कानून तो मौत की सज़ा सुनाता है, मगर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति जीवन देती है।

7 यही नहीं, अगर वह कानून जो मौत देता है और जो पत्थरों पर खोदकर लिखा गया था, इतनी महिमा के साथ आया कि इस्राएली, मूसा के चेहरे से निकलनेवाले तेज की वजह से उसे एकटक नहीं देख सके, जबकि वह ऐसा तेज था जिसे मिट जाना था, 8 तो पवित्र शक्‍ति का दिया जाना और भी ज़्यादा महिमा के साथ क्यों नहीं होना चाहिए? 9 अगर दोषी ठहरानेवाला कानून महिमा से भरपूर था, तो नेक ठहरानेवाली सेवा और भी कितनी महिमा से भरपूर होगी। 10 दरअसल जिसे एक वक्‍त महिमा से भरपूर किया गया था, उसकी महिमा भी इस मायने में घटायी गयी कि जो उसके सामने लाया गया वह इससे भी बढ़कर महिमा से भरपूर था। 11 तो जिसे मिटा दिया जाना था, अगर उसे बड़ी महिमा के साथ लाया गया, तो जो रहनेवाला है, उसकी महिमा कितनी बढ़कर होगी।

12 क्योंकि हमारी ऐसी आशा है, इसलिए हम बड़ी हिम्मत के साथ बेझिझक बोलते हैं 13 और हम वह नहीं करते जो मूसा करता था जब वह अपने चेहरे पर परदा डाला करता था ताकि इस्राएली उस मिटनेवाले के अंजाम* को एकटक न देख सकें। 14 मगर उनकी सोचने-समझने की शक्‍ति मंद पड़ गयी थी। इसलिए कि आज के दिन तक पुराने करार* के पढ़े जाने के वक्‍त उनके मनों पर वही परदा पड़ा रहता है, क्योंकि वह परदा सिर्फ मसीह के ज़रिए दूर किया जाता है। 15 असल में, आज के दिन तक जब कभी मूसा के लेख पढ़कर सुनाए जाते हैं, तो उनके दिलों पर परदा पड़ा रहता है। 16 मगर जब कोई पलटकर यहोवा* के पास आता है, तो वह परदा हटा दिया जाता है। 17 यहोवा आत्मा* है और जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है, वहाँ आज़ादी होती है। 18 हम उसी की छवि में बदलते जाते हैं और इस दौरान हम कम महिमा से बढ़कर और भी ज़्यादा महिमा हासिल करते जाते हैं और अपने चेहरों से आइने की तरह यह महिमा झलकाते हैं। इस तरह हम ठीक वैसे ही बनते जा रहे हैं जैसा खुद यहोवा हमें बनाना चाहता है, जो आत्मा* है।

4 इसलिए जब हम पर ऐसी दया की गयी कि हमें यह सेवा सौंपी गयी तो हम हिम्मत नहीं हारते, 2 मगर हमने छल-कपट के काम छोड़ दिए हैं जो शर्मनाक हैं। हम न तो चालाकी करते हैं, न ही परमेश्‍वर के वचन में मिलावट करते हैं, मगर हम सच्चाई ज़ाहिर करते हैं और परमेश्‍वर के सामने हर इंसान के ज़मीर को भानेवाली अच्छी मिसाल रखते हैं। 3 अब अगर उस खुशखबरी पर, जिसका हम ऐलान करते हैं, वाकई परदा पड़ा हुआ है, तो यह परदा उनके लिए पड़ा हुआ है जो विनाश की तरफ जा रहे हैं। 4 उन अविश्‍वासियों के मन, इस दुनिया की व्यवस्था* के ईश्‍वर ने अंधे कर दिए हैं, ताकि मसीह जो परमेश्‍वर की छवि है, उसके बारे में शानदार खुशखबरी की रौशनी उन पर न चमके। 5 इसलिए कि हम खुद अपने बारे में नहीं, बल्कि मसीह यीशु के बारे में प्रचार कर रहे हैं कि वह प्रभु है और अपने बारे में यह कहते हैं कि हम यीशु की खातिर तुम्हारे दास हैं। 6 इसलिए कि वह परमेश्‍वर ही था जिसने कहा: “अंधकार से रौशनी चमके।” वही हमारे दिलों पर चमका है ताकि इन्हें परमेश्‍वर के उस शानदार ज्ञान से रौशन करे जो मसीह के चेहरे से झलकता है।

7 लेकिन, हमारे पास यह खज़ाना मिट्टी के बरतनों में है, ताकि यह ज़ाहिर हो सके कि वह ताकत जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है, हमें परमेश्‍वर की तरफ से मिली है, न कि यह हमारी अपनी है। 8 हम हर तरह से दबाए तो जाते हैं, मगर ना-उम्मीदी की हद तक नहीं, उलझन में तो होते हैं कि क्या करें, मगर यह नहीं कि सारे रास्ते बंद हो जाएँ। 9 हम पर ज़ुल्म तो ढाए जाते हैं, मगर हम मँझधार में नहीं छोड़े जाते। हम गिराए तो जाते हैं, मगर नाश नहीं किए जाते। 10 जहाँ कहीं हम जाते हैं हम अपने शरीर पर वह जानलेवा बदसलूकी बरदाश्‍त करते हैं जो यीशु के साथ की गयी थी, ताकि यीशु की ज़िंदगी भी हमारे शरीर में ज़ाहिर की जा सके। 11 इसलिए कि हम जो ज़िंदा हैं, यीशु की खातिर हमेशा मौत के मुँह में डाले जाते हैं, ताकि हमारे मरनहार शरीर में यीशु का जीवन भी ज़ाहिर हो। 12 इसीलिए हममें मौत काम कर रही है, मगर तुममें जीवन।

13 अब क्योंकि हममें विश्‍वास की वही भावना है जिसके बारे में यह लिखा है: “मैंने विश्‍वास दिखाया, इसलिए मैं बोला,” हम भी विश्‍वास दिखाते हैं और इसलिए हम बोलते हैं, 14 यह जानते हुए कि जिसने यीशु को जी उठाया वह हमें भी उसी तरह जी उठाएगा जैसे यीशु को और तुम्हारे साथ हमें भी उसके सामने पेश करेगा। 15 यह सबकुछ तुम्हारी खातिर हुआ है, ताकि जो महा-कृपा बहुतायत में हुई है वह और भी बहुत-से लोगों के धन्यवाद देने से और ज़्यादा बढ़े, जिससे परमेश्‍वर की महिमा भी बढ़े।

16 इसलिए हम हार नहीं मानते, चाहे हमारा बाहर का इंसान* मिटता जा रहा है, मगर हमारा अंदर का इंसान दिन-ब-दिन नया होता जा रहा है। 17 हालाँकि हमारी दुःख-तकलीफें पल-भर के लिए और हल्की हैं, ये हमारे लिए ऐसी अपार महिमा पैदा करती हैं जो बेमिसाल है और हमेशा तक कायम रहती है। 18 इस दौरान हम अपनी नज़र दिखायी देनेवाली चीज़ों पर नहीं, बल्कि अनदेखी चीज़ों पर टिकाए रखते हैं। इसलिए कि जो चीज़ें दिखायी देती हैं वे कुछ वक्‍त के लिए हैं, मगर जो दिखायी नहीं देतीं वे हमेशा कायम रहती हैं।

5 हम जानते हैं कि जब धरती पर हमारा यह घर, यानी शरीर का यह डेरा मिट जाएगा, तब हमें परमेश्‍वर की तरफ से स्वर्ग में हमेशा तक कायम रहनेवाली ऐसी इमारत, ऐसा घर मिलेगा जो हाथ से नहीं बनाया गया। 2 क्योंकि हम इस डेरे में वाकई कराहते हैं और हमारे अंदर उसे पहनने की दिली तमन्‍ना है जो हमारे लिए स्वर्ग से है, 3 ताकि जब हम उसे सचमुच पहन लेंगे, तो हम नंगे नहीं पाए जाएँगे। 4 दरअसल, हम जो इस डेरे में हैं, हम बोझ से दबे हुए कराहते हैं। यह नहीं कि हम इसे उतारना चाहते हैं, बल्कि स्वर्ग के उस डेरे को पहनना चाहते हैं, ताकि जो मरनहार है उसे जीवन निगल सके। 5 जिसने हमें इसी बात के लिए तैयार किया है, वह परमेश्‍वर है। उसने हमें जो आनेवाला है उसके बयाने के तौर पर अपनी पवित्र शक्‍ति दी है।

6 इसलिए हम हमेशा हिम्मत रखते हैं और जानते हैं कि जब तक हम इस घर-सरीखे शरीर में हैं, तब तक हम प्रभु के सामने से गैर-हाज़िर हैं 7 और हम यह बात इसलिए जानते हैं क्योंकि हम आँखों-देखी चीज़ों से नहीं बल्कि विश्‍वास से चलते हैं। 8 मगर हम हिम्मत रखते हैं और यही चाहते हैं कि इस इंसानी शरीर में अब न जीएँ और प्रभु के साथ निवास करें। 9 इसलिए हमने यह लक्ष्य भी रखा है कि चाहे हम उसके साथ निवास करें या उसके सामने से गैर-हाज़िर हों, हम उसे खुश करें। 10 क्योंकि मसीह के न्याय-आसन के सामने हममें से हरेक के बारे में ज़ाहिर हो जाएगा कि हम कैसे इंसान हैं, ताकि हरेक को उन कामों का बदला मिल सके जो वह अपने शरीर से करता रहा है, फिर चाहे वे अच्छे हों या बुरे।

11 इसलिए, हम प्रभु का भय मानते हुए इंसानों को दलीलें देकर यकीन दिलाते हैं कि हमारी सुनें, मगर परमेश्‍वर जानता है कि हम कैसे इंसान हैं और मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम सबका ज़मीर भी यह जान गया है कि हम कैसे इंसान हैं। 12 हम तुम्हारे सामने एक बार फिर, नए सिरे से अपनी सिफारिश नहीं कर रहे, मगर तुम्हें हमारे अपने बारे में गर्व करने का मौका दे रहे हैं, ताकि तुम उन्हें जवाब दे सको जो दिल को नहीं बल्कि सूरत देखकर शेखी मारते हैं। 13 अगर हमारा दिमाग ठिकाने पर नहीं था, तो यह परमेश्‍वर के लिए था, अगर हम दिमाग से ठीक हैं तो यह तुम्हारे लिए है। 14 मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है, क्योंकि हमने यह निचोड़ निकाला है: एक आदमी सबके लिए मरा और इस तरह सभी मर गए। 15 वह सबके लिए मरा ताकि जो जीते हैं वे अब से खुद के लिए न जीएँ, बल्कि उसके लिए जीएँ जो उनके लिए मरा और जी उठाया गया।

16 इसलिए अब से हम किसी भी इंसान को शरीर के मुताबिक नहीं देखते। चाहे हमने पहले मसीह को शरीर के मुताबिक जाना भी था, मगर अब से हम उसे ऐसे नहीं जानते। 17 इसलिए अगर कोई मसीह के साथ एकता में है, तो वह एक नयी सृष्टि है। पुरानी चीज़ें गुज़र चुकी हैं, देखो! नयी चीज़ें वजूद में आयी हैं। 18 मगर सारी चीज़ें परमेश्‍वर की तरफ से हैं जिसने मसीह के ज़रिए अपने साथ हमारी सुलह करवायी और हमें सुलह करवाने की सेवा दी। 19 यानी यह ऐलान करने की सेवा कि परमेश्‍वर, मसीह के ज़रिए दुनिया की अपने साथ सुलह करवा रहा है और उसने उनके गुनाहों का उनसे हिसाब नहीं लिया और हमें सुलह का संदेश सौंपा।

20 इसलिए हम मसीह के बदले में काम करनेवाले राजदूत हैं, मानो परमेश्‍वर हमारे ज़रिए गुज़ारिश कर रहा है। मसीह के बदले में काम करनेवालों के नाते हम बिनती करते हैं: “परमेश्‍वर के साथ सुलह कर लो।” 21 जिसने कभी पाप नहीं किया, उसे परमेश्‍वर ने हमारे लिए पाप-बलि ठहराया ताकि उसके ज़रिए हम परमेश्‍वर की नज़र में नेक ठहरें।

6 परमेश्‍वर के साथ काम करते हुए हम तुमसे यह भी गुज़ारिश करते हैं कि परमेश्‍वर की महा-कृपा को स्वीकार करने के बाद उस कृपा का मकसद मत भूलो। 2 इसलिए कि वह कहता है: “मंज़ूरी पाने के वक्‍त में मैंने तेरी सुनी और उद्धार के दिन में तेरी मदद की।” देखो! अभी खास तौर पर मंज़ूरी पाने का वक्‍त है। देखो! अभी उद्धार का वह दिन है।

3 हम किसी भी तरह से ठोकर खाने की कोई वजह नहीं देते ताकि हमारी सेवा में कोई खामी न पायी जाए। 4 लेकिन हर तरह से हम परमेश्‍वर के सेवक होने का सबूत देते हैं, बहुत कुछ धीरज के साथ सहने से, दुःख-तकलीफों से, तंगहाली से, मुश्‍किलों से, 5 मार खाने से, कैद होने से, हंगामों से, कड़ी मेहनत से, जागते हुए रातें काटने से, भूखे पेट रहने से, 6 शुद्धता से, ज्ञान से, सहनशीलता से, कृपा से, परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से, बिना कपट प्यार करने से, 7 सच्ची बातें बोलने से, परमेश्‍वर की ताकत से। दाएँ और बाएँ हाथ में नेकी के हथियारों के ज़रिए, 8 इज़्ज़त और बेइज़्जती के दौरान, नेकनामी और बदनामी के दौरान। हम धोखा देनेवाले मालूम होते हैं, मगर सच्चे हैं, 9 अनजानों जैसे हैं फिर भी मशहूर हैं, मरने पर हैं फिर भी देखो! हम ज़िंदा हैं और ऐसे हैं जिन्हें अनुशासन दिया गया है फिर भी हमें मौत के हवाले नहीं किया गया, 10 दुःख मनानेवालों जैसे हैं मगर हमेशा खुश रहते हैं, गरीब जैसे हैं फिर भी बहुतों को अमीर बनाते हैं, मानो कंगाल हैं फिर भी हमारे पास सबकुछ है।

11 कुरिंथियो, हमने खुलकर तुमसे बात की है, हमने तुम्हारे लिए अपना दिल और बड़ा किया है। 12 हमारे दिल में तुम्हारे लिए बहुत जगह है, मगर तुम्हारे अपने दिल में कोमल स्नेह के लिए जगह नहीं, तुम तंगदिल हो गए हो। 13 इसलिए अपने बच्चे जानकर तुमसे कहता हूँ कि तुम भी बदले में अपने दिलों को बड़ा करो।

14 अविश्‍वासियों के साथ बेमेल जूए में न जुतो। क्योंकि नेकी के साथ दुराचार का क्या मेल? या रौशनी के साथ अंधेरे की क्या साझेदारी? 15 और मसीह और शैतान* के बीच क्या तालमेल? या एक विश्‍वासयोग्य इंसान का एक अविश्‍वासी के साथ क्या हिस्सा? 16 और परमेश्‍वर के मंदिर का मूर्तियों के साथ क्या समझौता? इसलिए कि हम जीवित परमेश्‍वर का एक मंदिर हैं, ठीक जैसा परमेश्‍वर ने कहा है: “मैं उनके बीच रहूँगा और उनके बीच चलूँगा-फिरूँगा और मैं उनका परमेश्‍वर होऊँगा और वे मेरे लोग होंगे।” 17 “यहोवा कहता है, ‘इसलिए उनके बीच में से निकल आओ और खुद को उनसे अलग करो और अशुद्ध चीज़ को छूना बंद करो, तब मैं तुम्हें अपने पास ले लूँगा।’ ” 18 “सर्वशक्‍तिमान यहोवा कहता है, ‘और मैं तुम्हारा पिता होऊँगा और तुम मेरे बेटे-बेटियाँ होगे।’ ”

7 इसलिए, मेरे प्यारो, जबकि हमसे ये वादे किए गए हैं, तो आओ हम तन और मन की हर गंदगी को दूर कर खुद को शुद्ध करें और परमेश्‍वर का भय मानते हुए पूरी हद तक पवित्रता हासिल करें।

2 हमें अपने दिलों में जगह दो। हमने किसी का बुरा नहीं किया, किसी को भ्रष्ट नहीं किया, न ही किसी का फायदा उठाया। 3 मैं तुम्हें दोषी ठहराने के लिए यह नहीं कहता। इसलिए कि मैंने पहले तुमसे कहा था कि हम चाहे जीएँ, चाहे मरें तुम हर हाल में हमारे दिल में रहते हो। 4 मैं तुमसे बेझिझक खुलकर बात कर सकता हूँ। मैं तुम्हारे बारे में बहुत शेखी मारता हूँ। मुझे पूरा दिलासा मिला है, सारे दुःख-दर्द में भी मेरा दिल खुशी से उमड़ रहा है।

5 दरअसल, जब हम मकिदुनिया पहुँचे, तो हमें बिलकुल भी चैन नहीं मिला, मगर हम हर तरह का दुःख-दर्द झेलते रहे—बाहर झगड़े थे और अंदर डर था। 6 फिर भी, परमेश्‍वर जो मुसीबत के मारे हुओं को दिलासा देता है, उसने हमें तीतुस की मौजूदगी से दिलासा दिया। 7 मगर सिर्फ उसकी मौजूदगी से ही नहीं बल्कि तीतुस ने तुम्हारी वजह से जो तसल्ली पायी उससे भी हमें दिलासा मिला, क्योंकि उसने वापस आकर हमें तुम्हारी दिली तमन्‍ना, तुम्हारे शोक और मेरे लिए तुम्हारे जोश की खबर दी, इसलिए मैं और भी खुश हुआ।

8 इसलिए, चाहे मैंने तुम्हें अपनी चिट्ठी से उदास किया हो, तो भी अब मुझे इसका अफसोस नहीं। हाँ, शुरू में मुझे इसका अफसोस हुआ था, (मैं देखता हूँ कि उस चिट्ठी ने तुम्हें उदास किया, मगर थोड़ी ही देर के लिए) 9 मगर अब मैं खुशी मनाता हूँ, इसलिए नहीं कि तुम सिर्फ उदास हुए थे, बल्कि इस कदर उदास हुए कि तुमने पश्‍चाताप किया। क्योंकि तुम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक उदास हुए ताकि तुम हमारी वजह से कोई नुकसान न उठाओ। 10 इसलिए कि परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक उदास होने से पश्‍चाताप पैदा होता है जिसका नतीजा उद्धार है और इसमें पछताने की कोई बात नहीं, मगर दुनियावी उदासी मौत ले आती है। 11 देखो! इसी बात से, हाँ, परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक तुम्हारे उदास होने से तुममें कितनी ज़्यादा तत्परता, हाँ, खुद पर से लांछन दूर करने का कैसा जज़्बा, कितना आक्रोश, कितना भय पैदा हुआ, हाँ, तुम्हारे अंदर कैसी हसरत, कैसा जोश पैदा हुआ और तुमने गलती को सुधारा! तुमने हर तरह से ज़ाहिर किया है कि तुम इस मामले में बेदाग हो। 12 असल में, मैंने तुम्हें लिखा तो सही, मगर मैंने न तो उसकी वजह से लिखा जिसने यह बुराई की थी, न ही उसकी वजह से जिसके खिलाफ यह बुराई हुई थी, बल्कि इसलिए लिखा ताकि तुम अपने बीच और परमेश्‍वर के सामने यह ज़ाहिर कर सको कि तुम हमारी बात मानने के लिए कितने तत्पर हो। 13 इसलिए हमें दिलासा मिला है।

लेकिन, खुद दिलासा पाने के अलावा हम तीतुस की खुशी की वजह से और भी ज़्यादा खुश थे, क्योंकि तुम सबने उसके दिल* को ताज़गी दी है। 14 इसलिए कि अगर मैंने उसके सामने तुम्हारे बारे में कोई शेखी मारी थी, तो मुझे अपनी बातों पर शर्मिंदा नहीं होना पड़ा। मगर जिस तरह हमने तुमसे जो कुछ कहा वह सच था, उसी तरह हमने तीतुस के सामने तुम्हारे बारे में जो शेखी मारी थी वह भी सच साबित हुई। 15 और जब वह याद करता है कि तुम सबने किस तरह आज्ञा मानी और डरते और काँपते हुए उसका स्वागत किया तो तुम्हारे लिए उसका कोमल स्नेह और भी बढ़ता जाता है। 16 मैं खुशी मनाता हूँ, क्योंकि तुम्हारी वजह से मुझे बड़ी हिम्मत मिलती है।

8 भाइयो, अब हम तुम्हें परमेश्‍वर की उस महा-कृपा के बारे में बता रहे हैं जो मकिदुनिया की मंडलियों पर हुई है 2 कि जब वे बड़ी परीक्षा के दौरान दुःख झेल रहे थे तब अपनी घोर गरीबी के बावजूद उन्होंने बड़ी खुशी के साथ अपनी दरियादिली की दौलत लुटायी। 3 उन्होंने अपने बूते से बढ़कर, हाँ, मैं गवाही देता हूँ कि अपनी हैसियत से कहीं बढ़कर ऐसा किया। 4 और इन भाइयों ने अपने आप ही हमसे गुज़ारिश की, यहाँ तक कि मिन्‍नतें कीं कि पवित्र जनों की सेवा के लिए जो तय किया गया है, उसमें दान करने का उन्हें भी सम्मान दिया जाए। 5 और उन्होंने हमारी उम्मीद से भी बढ़कर किया, क्योंकि पहले तो उन्होंने खुद को प्रभु के लिए और परमेश्‍वर की मरज़ी से हमारे लिए दे दिया। 6 इस वजह से हमने तीतुस को उकसाया कि जिस तरह उसने तुम्हारे बीच इस काम की शुरूआत की थी, उसी तरह वह तुम्हारे बीच दान इकट्ठा करने का काम पूरा भी करे। 7 तो फिर, ठीक जैसे तुम हर बात में, यानी विश्‍वास और बोलने की काबिलीयत और ज्ञान और सारी तत्परता और वैसा ही प्यार दिखाने में जो हमें तुमसे है, धनी हो, वैसे ही तुम यह तोहफा देने में भी धनी बनो।

8 यह बात मैं तुम्हें हुक्म की तरह नहीं कह रहा, मगर दूसरों की तत्परता को देखते हुए और तुम्हारे प्यार की सच्चाई को परखने के लिए मैं ऐसा कह रहा हूँ। 9 इसलिए कि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा को जानते हो कि वह अमीर होते हुए भी तुम्हारी खातिर गरीब बना, ताकि तुम उसकी गरीबी से अमीर बन सको।

10 और इस मामले में मैं अपनी राय दे रहा हूँ: यह काम पूरा करना तुम्हारे ही फायदे के लिए है, क्योंकि एक साल बीत चुका है जब तुमने न सिर्फ यह काम करने की इच्छा दिखायी थी, बल्कि यह काम शुरू भी किया था। 11 इसलिए, अब यह काम पूरा भी करो, ताकि जैसे तुमने इसे करने की तैयारी दिखायी थी, वैसे ही तुम्हारे पास जो है उससे अब यह काम पूरा भी किया जाना चाहिए। 12 इसलिए कि जहाँ कोई इंसान कुछ देना चाहता है, वहाँ उसके पास देने के लिए जो कुछ हो वह मंज़ूर होता है। उससे कुछ ऐसा देने की उम्मीद नहीं की जाती जो उसके पास नहीं है। 13 ऐसा नहीं कि मैं दूसरों को रिआयत दे रहा हूँ और तुम पर बोझ डाल रहा हूँ, 14 बल्कि यह चाहता हूँ कि इस वक्‍त तुम्हारी बहुतायत उनकी घटी को पूरा करे, ताकि उनकी बहुतायत भी तुम्हारी घटी को पूरा करने के काम आए, जिससे कि बराबरी हो जाए। 15 ठीक जैसा लिखा भी है: “जिसके पास ज़्यादा था उसके पास बहुत ज़्यादा न था, और जिसके पास कम था उसके पास बहुत कम न था।”

16 परमेश्‍वर का धन्यवाद हो जिसने तीतुस के दिल में तुम्हारे लिए वैसी ही उत्सुकता पैदा की जैसी हमें तुम्हारे लिए है, 17 क्योंकि न सिर्फ वह हमारे उकसाने पर राज़ी हो गया है, बल्कि अपनी मरज़ी से, बड़ी उत्सुकता के साथ वह तुम्हारे पास आ रहा है। 18 मगर हम उसके साथ उस भाई को भी भेज रहे हैं जिसने खुशखबरी सुनाने के काम में जो किया है उसकी वजह से सारी मंडलियों में उसकी तारीफ हो रही है। 19 इतना ही नहीं, मंडलियों ने इस भाई को हमारे साथ जाने के लिए भी ठहराया ताकि वह उदारता से दिए गए इस तोहफे को ले जाने का काम हमारे साथ पूरा कर सके, जिसे हम खुद प्रभु की महिमा के लिए सौंपने जा रहे हैं और जो हमारी तत्परता का भी सबूत है। 20 इस तरह हम खुद के लिए एहतियात बरतते हैं ताकि उदारता से दिया गया दान पहुँचाने के मामले में कोई आदमी हम पर दोष न लगा सके। 21 इसलिए कि हम “न सिर्फ यहोवा की नज़र में बल्कि इंसानों की नज़र में भी सारे काम पूरी ईमानदारी से करने के लिए सावधानी बरतते हैं।”

22 इसके अलावा, हम उनके साथ अपने उस भाई को भी भेज रहे हैं जिसे हमने बार-बार परखा और बहुत बातों में जोशीला पाया है और क्योंकि उसे तुम पर बहुत भरोसा है इसलिए वह और भी ज़्यादा जोश से भरा हुआ है। 23 अगर तीतुस के बारे में कोई भी सवाल है, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि वह भी मेरी तरह तुम्हारी भलाई के लिए मेरा सहकर्मी है। या फिर, अगर दूसरे भाइयों के बारे में सवाल है तो वे मंडलियों को भेजे गए प्रेषित हैं और मसीह की महिमा करते हैं। 24 इसलिए, मंडलियों के सामने उन्हें अपने प्यार की सच्चाई का सबूत दो और यह भी कि तुम्हारे बारे में हमारा शेखी मारना क्यों सही है।

9 जहाँ तक उस मदद* की बात है, जो पवित्र जनों के लिए है, मैं तुम्हें लिखना ज़रूरी नहीं समझता। 2 क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम मन से तैयार हो जैसा कि मैं मकिदुनिया के भाइयों के आगे गर्व करता हूँ कि अखया के भाई पिछले एक साल से मदद देने के लिए तैयार हैं और तुम्हारे जोश ने उनमें से बहुतों के अंदर उत्साह भर दिया है। 3 मगर मैं भाइयों को पहले इसलिए भेज रहा हूँ ताकि इस मामले में हमने तुम्हारे बारे में जो शेखी मारी है वह कहीं खोखली साबित न हो, बल्कि तुम वाकई तैयार पाए जाओ, ठीक जैसे मैं कहा करता था कि तुम तैयार रहोगे। 4 नहीं तो, अगर किसी तरह मकिदुनिया के भाई मेरे साथ वहाँ आएँ और यह पाएँ कि तुम तैयार नहीं हो, तो तुम पर यह भरोसा दिखाने की वजह से हमें—मैं यह नहीं कहता कि तुम्हें—शर्मिंदा होना पड़ेगा। 5 इसलिए मैंने यह ज़रूरी समझा कि भाइयों को पहले से तुम्हारे यहाँ आने के लिए उकसाऊँ कि वे उदारता से दिए गए तुम्हारे तोहफे को तैयार रखें जिसे देने का तुमने पहले वादा किया था, ताकि यह दान उदारता से दिया गया तोहफा ठहरे, न कि ऐसा जो ज़बरदस्ती वसूला गया हो।

6 मगर इस मामले में जो कंजूसी से बोता है वह थोड़ा काटेगा, लेकिन जो भर-भरकर बोता है वह भर-भरकर कटाई करेगा। 7 हर कोई जैसा उसने अपने दिल में ठाना है, वैसा ही करे, न कुड़कुड़ाते हुए, न ही किसी दबाव में, क्योंकि परमेश्‍वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।

8 परमेश्‍वर तुम पर अपनी सारी महा-कृपा की बौछार करने के काबिल है, ताकि ठीक जैसे तुम्हारे पास हर चीज़ बहुतायत में होती है, वैसे ही हर भला काम करने के लिए जो कुछ ज़रूरी है वह भी तुम्हारे पास बहुतायत में हो। 9 (जैसा लिखा भी है: “उसने दिल खोलकर बाँटा है, उसने गरीबों को दिया है, उसकी नेकी हमेशा तक बनी रहेगी।” 10 जो बोनेवाले को बहुतायत में बीज देता है और खानेवाले को रोटी देता है, वही तुम्हारे बोने के लिए बीजों की बहुतायत कर देगा और तुम्हारी नेकी के फल बढ़ाएगा।) 11 हर बात में तुम्हें आशीषें देकर मालामाल किया जा रहा है ताकि तुम भी हर तरह से उदारता से दे सको और हमारे इस काम की वजह से परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया जा सके। 12 क्योंकि जब यह जन-सेवा की जाती है, तो इससे न सिर्फ पवित्र जनों की ज़रूरतें बहुतायत में पूरी की जाती हैं, बल्कि इसकी वजह से परमेश्‍वर का धन्यवाद बढ़-चढ़कर किया जाता है। 13 यह सेवा जिस बात का सबूत देती है उसे देखकर, वे परमेश्‍वर की महिमा करते हैं क्योंकि जैसा तुम सरेआम ऐलान करते हो वैसे ही तुम मसीह के बारे में खुशखबरी के अधीन भी रहते हो, और तुम उनके लिए और बाकी सभी के लिए दान देने में उदारता भी दिखाते हो। 14 वे तुम्हारे लिए परमेश्‍वर से मिन्‍नतें करते हुए तुम्हें देखने की तमन्‍ना रखते हैं, क्योंकि तुम पर परमेश्‍वर की बेजोड़ महा-कृपा हुई है।

15 परमेश्‍वर के उस मुफ्त वरदान के लिए जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता, उसका धन्यवाद हो।

10 अब मैं पौलुस खुद, मसीह की कोमलता और कृपा का वास्ता देकर तुमसे गुज़ारिश करता हूँ, भले ही तुम्हें लगता है कि तुम्हारे बीच रहते हुए गया-गुज़रा दिखायी देता हूँ और न रहते हुए सख्ती से पेश आता हूँ। 2 मैं तुमसे बिनती करता हूँ कि जब मैं तुम्हारे बीच मौजूद रहूँ तो मुझे ऐसी सख्ती न बरतनी पड़े जैसी सख्ती मैं उन लोगों के साथ बरतने का इरादा रखता हूँ जो यह समझते हैं कि हम शरीर की इच्छाओं के मुताबिक चलते हैं। 3 हालाँकि हम शरीर में चलते हैं, मगर हम शरीर के हिसाब से युद्ध नहीं लड़ते। 4 क्योंकि हमारे युद्ध के हथियार शारीरिक नहीं हैं, बल्कि ऐसे शक्‍तिशाली हथियार हैं जो परमेश्‍वर ने हमें दिए हैं कि हम गहराई तक समायी हुई बातों को जड़ से उखाड़ सकें। 5 हम ऐसी दलीलों को और हर ऐसी ऊँची बात को जो परमेश्‍वर के ज्ञान के खिलाफ खड़ी की जाती है, उलट देते हैं और हरेक विचार को जीतकर उसे कैद कर लेते हैं ताकि उसे मसीह की आज्ञा माननेवाला बना दें। 6 हम हर उस इंसान को जो आज्ञा नहीं मानता, सज़ा देने के लिए तैयार हैं, बेशक इससे पहले तुम्हें साबित करना होगा कि तुम हर बात में पूरी तरह आज्ञा मानते रहे हो।

7 तुम बाहरी रूप देखकर राय कायम करते हो। अगर किसी को खुद के बारे में यह भरोसा है कि वह मसीह का है, तो वह इस सच्चाई को एक बार फिर अपने लिए जान ले कि जैसे वह मसीह का है, वैसे ही हम भी हैं। 8 अगर मैं उस अधिकार के बारे में बहुत ज़्यादा शेखी भी मारूँ, जो प्रभु ने हमें तुम्हारी हिम्मत बँधाने के लिए, न कि तुम्हें गिराने के लिए दिया है, तो मुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा। 9 मैं यह इसलिए कह रहा हूँ ताकि तुम्हें ऐसा न लगे कि मैं अपनी चिट्ठियों से तुम्हें डराने की कोशिश कर रहा हूँ। 10 वे कहते हैं: “उसकी चिट्ठियाँ तो वज़नदार और दमदार हैं, मगर जब वह खुद मौजूद होता है तो बहुत हल्का जान पड़ता है और उसकी बातें सुनने लायक नहीं होतीं।” 11 यह कहनेवाला इंसान जान ले कि हम अपनी गैर-मौजूदगी में चिट्ठियों में अपनी बातों से जो लगते हैं, वैसे ही जब हम मौजूद होंगे, तो अपने कामों से भी दिखाएँगे। 12 इसलिए कि हम यह जुर्रत नहीं करते कि अपनी गिनती उन लोगों में करें या खुद की तुलना उनसे करें जो खुद ही अपनी तारीफ करते हैं। बेशक, जब वे अपने ही नाप से खुद को नापते हैं और अपनी तुलना खुद से करते हैं, तो दिखाते हैं कि उनमें समझ नहीं।

13 जहाँ तक हमारी बात है, जो सीमा हमारे लिए ठहरायी गयी है, हम उससे बाहर जाकर शेखी नहीं मारेंगे, मगर परमेश्‍वर ने नापकर जो इलाका हमें दिया है, जिसमें तुम भी आ गए हो, उसी की सीमाओं में रहते हुए हम शेखी मारेंगे। 14 हम वाकई अपनी सीमा से आगे नहीं बढ़ रहे। अगर तुम हमारी सीमा के दायरे में न होते तो शायद हमें ऐसा करने की ज़रूरत पड़ती। मगर हमने ही सबसे पहले तुम तक मसीह की खुशखबरी पहुँचायी है। 15 बेशक, हम ठहरायी सीमा से बाहर जाकर किसी दूसरे की मेहनत पर शेखी नहीं मार रहे, बल्कि हम यह आशा रखते हैं कि जैसे-जैसे तुम्हारा विश्‍वास बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे हमारे इलाके के मामले में तुम्हारे बीच हमारी कामयाबी और भी बढ़ती जाए। इसके बाद हम और भी बढ़ेंगे, 16 ताकि हम तुमसे आगे के देशों में भी खुशखबरी सुना सकें, जिससे कि हम उस काम पर शेखी न मारें, जो किसी और के इलाके में पहले ही किया जा चुका है। 17 “मगर जो शेखी मारता है, वह यहोवा की वजह से शेखी मारे।” 18 इसलिए कि जो अपनी तारीफ खुद करता है वह नहीं, बल्कि जिसकी तारीफ यहोवा करता है, वही उसकी मंज़ूरी पाता है।

11 काश कि तुम मेरी इस थोड़ी-सी ज़्यादती को बरदाश्‍त कर लेते। असल में तुम मुझे बरदाश्‍त कर भी रहे हो! 2 मुझे तुम्हारे लिए वैसी ही जलन है, जैसी जलन परमेश्‍वर रखता है, क्योंकि मैं खुद, तुम्हारी शादी करवाने के लिए एक पुरुष यानी मसीह से तुम्हारी सगाई करवा चुका हूँ ताकि मैं तुम्हें एक पवित्र कुँवारी की तरह मसीह को सौंप सकूँ। 3 मगर मुझे डर है कि जैसे साँप ने अपनी चालाकी से हव्वा को बहका लिया था, वैसे ही तुम्हें किसी तरह तुम्हारे सोचने के तरीके में भ्रष्ट कर, उस सीधाई और पवित्रता से भटका न दिया जाए, जिसे पाने का हकदार मसीह है। 4 अगर कोई आकर किसी और यीशु का प्रचार करता है, जिसका प्रचार हमने नहीं किया या जो शक्‍ति* तुम्हारे मन पर पहले काम कर रही थी, उसके बजाय कोई तुम्हें किसी और तरह का मन का रुझान देता है, या जो खुशखबरी तुमने स्वीकार की थी उसे छोड़ कोई और ही खुशखबरी सुनाता है, तो तुम बड़ी आसानी से उसकी बात मान लेते हो। 5 मैं समझता हूँ कि मैं तुम्हारे महा-प्रेषितों से किसी भी बात में कम नहीं हूँ। 6 चाहे मैं बोलने में अनाड़ी सही, मगर ज्ञान में हरगिज़ नहीं हूँ और हमने यह ज्ञान सब बातों में हर तरह से तुम पर ज़ाहिर किया है।

7 या जब मैंने खुद को इसलिए छोटा किया ताकि तुम बड़े हो जाओ और बिना कोई दाम लिए तुम्हें खुशी-खुशी परमेश्‍वर की खुशखबरी सुनायी, तो क्या कोई पाप किया? 8 मैंने दूसरी मंडलियों को लूटा यानी उनसे मदद ली ताकि तुम्हारी सेवा करूँ। 9 फिर भी जब मैं तुम्हारे बीच मौजूद था और मुझ पर भारी तंगी आ पड़ी, तब मैं किसी पर भी बोझ न बना, क्योंकि मकिदुनिया से आए भाइयों ने ज़रूरत से बढ़कर मेरी मदद की। हाँ, मैंने हर तरह से कोशिश की कि तुम पर बोझ न बनूँ और ऐसा ही करता रहूँगा। 10 अगर मसीह की सच्चाई मुझ में है, तो अखया के इलाकों में मेरा यह शेखी मारना बंद नहीं किया जा सकता। 11 क्या वजह है कि मैं तुम पर बोझ न बना? क्या इसलिए कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता? परमेश्‍वर जानता है कि मैं करता हूँ।

12 लेकिन मैं जो कर रहा हूँ उसे करता ही रहूँगा ताकि उन लोगों को कोई मौका न दूँ जो हमारे बराबर दर्जा रखने की शेखी मारते हैं और हमारी बराबरी करने के लिए किसी मौके की तलाश में रहते हैं। 13 ऐसे आदमी झूठे प्रेषित, छल से काम करनेवाले हैं और मसीह के प्रेषित होने का रूप धारण करते हैं। 14 इसमें कोई ताज्जुब नहीं क्योंकि शैतान खुद भी रौशनी देनेवाले स्वर्गदूत का रूप धारण करता है। 15 इसलिए अगर उसके सेवक भी नेकी के सेवक होने का ढोंग करते हैं, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। मगर उनका अंत उनके कामों के हिसाब से होगा।

16 मैं फिर कहता हूँ कि कोई आदमी यह न सोचे कि मैं ज़्यादती कर रहा हूँ। अगर तुम ऐसा समझते भी हो, तब भी मुझे ज़्यादती करनेवाला समझकर ही बरदाश्‍त कर लो, ताकि मैं थोड़ी-सी और शेखी मार सकूँ। 17 मैं जो कहता हूँ, वह प्रभु की मिसाल पर नहीं कहता, बल्कि ज़्यादती करनेवाले की तरह कहता हूँ, जैसे शेखी मारनेवाला अकसर हद-से-ज़्यादा यकीन के साथ कहता है। 18 बहुत-से लोग दुनियावी बातों पर शेखी मार रहे हैं, इसलिए मैं भी शेखी मारूँगा। 19 क्योंकि तुम तो इतने लिहाज़दार हो कि ज़्यादती करनेवालों की खुशी-खुशी सह लेते हो। 20 दरअसल, तुम ऐसे हर किसी को, जो तुम्हें अपना गुलाम बना लेता है, जो कुछ तुम्हारा है उसे हड़प लेता है, जो तुम्हारे पास है उसे छीन लेता है, तुम्हारे सिर पर सवार हो जाता है और तुम्हारे मुँह पर थप्पड़ मारता है उसे बरदाश्‍त कर लेते हो।

21 मेरे लिए यह कहना शर्म की बात है, क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि हम अपना अधिकार सही तरह से नहीं चला रहे हैं।

अगर कोई किसी बात में ढिठाई दिखाता है, तो मैं भी ढिठाई दिखाता हूँ, फिर चाहे कोई मेरी बात को ज़्यादती समझे। 22 क्या वे इब्रानी हैं? मैं भी हूँ। क्या वे इस्राएली हैं? मैं भी हूँ। क्या वे अब्राहम के वंशज हैं? मैं भी हूँ। 23 क्या वे मसीह के सेवक हैं? मैं पागलों की तरह चिल्ला-चिल्लाकर कहता हूँ, मैं उनसे कहीं बढ़कर हूँ: बहुत ज़्यादा कड़ी मेहनत करने में, बार-बार कैद होने में, हद-से-ज़्यादा पिटाई खाने में, अकसर मौत के खतरे में। 24 मैंने पाँच बार यहूदियों से उनतालिस-उनतालिस कोड़े खाए 25 तीन बार मुझे डंडों से पीटा गया, एक बार मुझ पर पत्थरवाह हुआ, तीन बार जिन जहाजों पर मैं चढ़ा वे समंदर में टूट गए, एक रात और एक दिन मैंने समंदर के बीच काटा। 26 मैं बार-बार सफर में, नदियों के खतरों में, डाकुओं के खतरों में, अपनी ही जाति के लोगों से खतरों में, दूसरी जाति के लोगों से खतरों में, शहर के खतरों में, वीराने के खतरों में, समंदर के खतरों में, झूठे भाइयों के बीच रहने के खतरों में रहा हूँ। 27 मैंने कड़ी मेहनत और घोर मज़दूरी में, अकसर रात-रात भर जागते रहने में, भूख और प्यास में, कई बार भूखे पेट रहने में, ठंड में और उघाड़े में दिन बिताए।

28 इन सब बातों के अलावा हर दिन सारी मंडलियों की चिंता मुझे खाए जाती है। 29 किसकी कमज़ोरी से मैं खुद को कमज़ोर महसूस नहीं करता? किसके ठोकर खाने से मेरा जी नहीं जलता?

30 अगर मुझे शेखी मारनी ही है, तो मैं उन बातों पर शेखी मारूँगा जिनसे मेरी कमज़ोरियाँ ज़ाहिर होती हैं। 31 प्रभु यीशु का परमेश्‍वर और पिता, वही जिसका गुणगान हमेशा-हमेशा तक होता रहेगा, जानता है कि मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ। 32 दमिश्‍क में अरितास राजा के अधीन जो राज्यपाल था, उसने मुझे पकड़ने के लिए दमिश्‍कियों के शहर पर पहरा बिठा रखा था, 33 मगर मुझे एक बड़े टोकरे में बिठाकर शहर की दीवार में बनी एक खिड़की से नीचे उतार दिया गया और मैं उसके हाथ से बच गया।

12 शेखी मारने से कोई फायदा तो नहीं, फिर भी मुझे ऐसा करना ही होगा। मगर अब मैं प्रभु के दिखाए चमत्कारी दर्शनों और उससे मिले संदेशों की बात करूँगा। 2 मैं मसीह में एक आदमी को जानता हूँ जिसे चौदह साल पहले, न जाने शरीर के साथ या शरीर से अलग, परमेश्‍वर ही जानता है, तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया। 3 हाँ, मैं उस आदमी को जानता हूँ—न जाने शरीर के साथ या शरीर से अलग, मैं नहीं जानता, परमेश्‍वर जानता है— 4 कि उसे उठाकर फिरदौस में ले जाया गया और उसने ऐसी बातें सुनीं जो ज़ुबान पर नहीं लायी जा सकतीं और जिन्हें कहने की एक इंसान को इजाज़त नहीं। 5 मैं ऐसे इंसान के बारे में शेखी मारूँगा, मगर मैं अपनी कमज़ोरियों को छोड़ किसी और बात में खुद के बारे में शेखी नहीं मारूँगा। 6 अगर मैं कभी शेखी मारना चाहूँ, तो भी ज़्यादती करनेवाला नहीं ठहरूँगा, क्योंकि मैं सच ही कहूँगा। लेकिन मैं शेखी मारने से दूर रहता हूँ ताकि कोई भी, उन कामों से बढ़कर जो वह मुझे करते देखता है और जो बोलते सुनता है, किसी और बात का श्रेय मेरे खाते में न जोड़े, 7 सिर्फ इसलिए कि मुझ पर हद-से-ज़्यादा रहस्य प्रकट किए गए, कोई मुझे बहुत बड़ा न समझे।

कहीं मैं घमंड से फूल न जाऊँ, इसलिए मेरे शरीर में एक काँटा चुभाया गया है, यानी शैतान का एक दूत, ताकि मुझे थप्पड़ मारता रहे जिससे कि मैं खुद को हद-से-ज़्यादा बड़ा न समझूँ। 8 इस बारे में मैंने प्रभु से तीन बार गिड़गिड़ाकर बिनती की थी कि यह काँटा निकाल दिया जाए। 9 फिर भी प्रभु ने मुझसे कहा: “मेरी महा-कृपा तेरे लिए काफी है। मेरी ताकत, तेरी कमज़ोरी में पूरी तरह ज़ाहिर होती है।” इसलिए, मैं बड़ी खुशी के साथ अपनी कमज़ोरियों के बारे में शेखी मारूँगा, ताकि मसीह की ताकत तंबू की तरह मेरे ऊपर छायी रहे। 10 मैं मसीह की खातिर कमज़ोरियों में, बेइज़्ज़ती में, तंगहाली में, ज़ुल्मों और मुश्‍किलों में खुश होता हूँ। क्योंकि जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी मैं ताकतवर होता हूँ।

11 मैं ज़्यादती करनेवाला बना, इसलिए कि तुमने मुझे ऐसा करने पर मजबूर किया। होना तो यह चाहिए था कि तुम मेरी तरफ से बोलते। मैं तुम्हारे महा-प्रेषितों से एक बात में भी कम नहीं हूँ, भले ही मैं तुम्हारे हिसाब से कुछ नहीं। 12 सच तो यह है, मेरे प्रेषित-पद के सबूत तुमने खुद अपनी आँखों से देखे थे, जो तुम्हारे बीच सारे धीरज, और चमत्कारों और आश्‍चर्यजनक और शक्‍तिशाली कामों से ज़ाहिर किए गए थे। 13 तुम किस मायने में बाकी मंडलियों से छोटे बने, सिवा इसके कि मैं खुद तुम पर बोझ न बना? मेहरबानी से मेरी यह गलती माफ करो।

14 देखो! यह तीसरी बार है कि मैं तुम्हारे पास आने के लिए तैयार हूँ और फिर भी मैं तुम पर बोझ न बनूँगा। क्योंकि मैं तुमसे तुम्हारी दौलत नहीं चाहता, मगर तुम्हें चाहता हूँ। बच्चों का यह फर्ज़ नहीं बनता कि वे माँ-बाप के लिए धन इकट्ठा करें, बल्कि माँ-बाप का फर्ज़ बनता है कि वे बच्चों के लिए इकट्ठा करें। 15 मैं तुम्हारी खातिर हँसते-हँसते खर्च करूँगा, यहाँ तक कि खुद भी पूरी तरह खर्च हो जाऊँगा। अगर मैं तुमसे इतना ज़्यादा प्यार करता हूँ तो क्या मुझे कम प्यार मिलना चाहिए? 16 माना कि मैंने तुम पर बोझ नहीं डाला। फिर भी तुम कहते हो कि मैं “धूर्त्त” था और मैंने तुम्हें “छल से” फँसा लिया। 17 और मैंने जितनों को भी तुम्हारे पास भेजा, उनमें से एक के ज़रिए भी मैंने तुम्हारा फायदा नहीं उठाया। क्या उठाया? 18 मैंने तीतुस से गुज़ारिश की और उसके साथ एक भाई को भेजा। तीतुस ने तुम्हारा बिलकुल भी फायदा नहीं उठाया, क्या उठाया? क्या हमने एक ही तरह की नीयत नहीं दिखायी? क्या हम एक ही लीक पर नहीं चले?

19 क्या इस दौरान तुम यह सोच रहे हो कि हम तुम्हारे सामने अपनी सफाई पेश कर रहे हैं? तुम्हारे सामने नहीं बल्कि परमेश्‍वर के सामने हम मसीह में सफाई दे रहे हैं। लेकिन मेरे प्यारो, हम सबकुछ तुम्हें मज़बूत करने के लिए करते हैं। 20 मुझे डर है कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो मैं तुम्हें ऐसा न पाऊँ जैसा चाहता हूँ और तुम भी मुझे वैसा न पाओ जैसा तुम चाहते हो। इसके बजाय, कहीं ऐसा न हो कि तुममें तकरार, जलन, गुस्से से आग-बबूला होना, झगड़े, पीठ पीछे बदनाम करना, चुगली लगाना, घमंड से फूलना, और हंगामे पाए जाएँ। 21 कहीं ऐसा न हो कि जब मैं दोबारा तुम्हारे पास आऊँ तो मेरा परमेश्‍वर तुम्हारे बीच मुझे शर्मिंदा करे और मुझे उन बहुतों के लिए शोक मनाना पड़े जो पाप की राह पर चले हैं और जिन्होंने अपनी अशुद्धता और व्यभिचार और बदचलनी से अभी तक पश्‍चाताप नहीं किया।

13 मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आ रहा हूँ। “हर मामला दो या तीन गवाहों की गवाही से साबित हो।” 2 हालाँकि मैं अभी तुमसे बहुत दूर हूँ, लेकिन तुम मेरी बात इस तरह लो, मानो मैं तुम्हारे साथ दूसरी बार मौजूद हूँ। जैसा मैंने पहले कहा था अब भी मैं तुम्हें पहले से खबरदार कर रहा हूँ कि जब कभी मैं दोबारा आऊँगा, तो उन्हें बख्शूँगा नहीं। 3 क्योंकि तुम इस बात का सबूत चाहते हो कि मसीह मुझ में होकर बोलता है। मसीह तुम्हारे मामले में कमज़ोर नहीं है, इसके बजाय वह तुम्हारे बीच ताकतवर है। 4 यह सच है कि वह कमज़ोर हालत में* सूली पर चढ़ाया गया, फिर भी वह परमेश्‍वर की ताकत से ज़िंदा है। यह भी सच है कि जैसा वह पहले कमज़ोर था वैसे हम भी अभी कमज़ोर हैं, मगर हम उसके साथ जीएँगे और यह परमेश्‍वर की उसी ताकत से होगा जो तुम्हारे बीच काम करती है।

5 खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्‍वास में हो या नहीं। तुम खुद क्या हो, इसका सबूत देते रहो। या क्या तुम्हें यह एहसास नहीं कि यीशु मसीह तुम्हारे साथ एकता में है? अगर नहीं है तो तुम ना-मंज़ूर किए गए हो। 6 मैं वाकई आशा करता हूँ कि तुम जान जाओगे कि हम ना-मंज़ूर नहीं किए गए।

7 अब हम परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं कि तुम कुछ भी गलत न करो, इसलिए नहीं कि हम खुद तुम्हारे बीच खरे दिखायी दें, बल्कि तुम खुद जो भला है वह करते हुए पाए जाओ, फिर चाहे हम ना-मंज़ूर किए हुए क्यों न दिखायी दें। 8 इसलिए कि हम सच्चाई के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते, बल्कि सिर्फ सच्चाई की खातिर ही कर सकते हैं। 9 जब कभी हम कमज़ोर होते हैं, मगर तुम ताकतवर होते हो तो हम खुशी मनाते हैं, और हम प्रार्थना करते हैं कि तुम सुधार करते जाओ। 10 मैं गैर-हाज़िर होने पर भी इसलिए तुम्हें ये बातें लिख रहा हूँ कि जब मैं तुम्हारे बीच मौजूद रहूँ तो मुझे प्रभु के दिए अधिकार के मुताबिक तुम्हारे साथ सख्ती न करनी पड़े। यह अधिकार उसने मुझे तुम्हें मज़बूत करने के लिए दिया है, न कि तुम्हें गिराने के लिए।

11 अब आखिर में भाइयो, मैं तुम्हें उकसाता हूँ कि तुम खुशी मनाते रहो, सुधारे जाते रहो, दिलासा पाते रहो, एक ही तरह की सोच रखो, शांति से रहो और प्यार और शांति का परमेश्‍वर तुम्हारे साथ रहेगा। 12 पवित्र चुंबन से एक-दूसरे का स्वागत करो। 13 सभी पवित्र जन तुम्हें नमस्कार भेजते हैं।

14 प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा और परमेश्‍वर का प्यार और पवित्र शक्‍ति* में जो हिस्सेदारी हम सबको मिली है, वह तुम सबके साथ रहे।

2कुरिं 1:1 या, “भेजा गया।” यूनानी में “अपोस्टोलोस।”

2कुरिं 1:1 मत्ती 16:18 दूसरा फुटनोट देखें।

2कुरिं 1:8 प्रेषि 2:9 फुटनोट देखें।

2कुरिं 1:19 या, “सीलास।”

2कुरिं 2:12 शाब्दिक, “मेरे लिए एक दरवाज़ा खोला गया।”

2कुरिं 2:13 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

2कुरिं 2:17 शाब्दिक, “फेरीवाले।”

2कुरिं 3:3 शाब्दिक, “माँस की पटियाओं पर, दिलों पर।”

2कुरिं 3:13 या, “अंत।”

2कुरिं 3:14 अतिरिक्‍त लेख 10 देखें।

2कुरिं 3:16 यह उन 237 जगहों में से एक जगह है, जहाँ परमेश्‍वर का नाम, ‘यहोवा’ इस अनुवाद के मुख्य पाठ में पाया जाता है। अतिरिक्‍त लेख 2 देखें।

2कुरिं 3:17 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

2कुरिं 3:18 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

2कुरिं 4:4 या, “ज़माने।”

2कुरिं 4:16 या, “हमारा शरीर।”

2कुरिं 6:15 या, “बलियाल।”

2कुरिं 7:13 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

2कुरिं 9:1 शाब्दिक, “सेवा।”

2कुरिं 11:4 या, “परमेश्‍वर की शक्‍ति।”

2कुरिं 13:4 या, “इंसान होने की वजह से।”

2कुरिं 13:14 यूनानी नफ्मा। अतिरिक्‍त लेख 7 देखें।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें